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आंसु भरी प्रार्थना

TEARS IN PRAYER
(Hindi)

डॉ. क्रिस्टोफर एल कैगन
by Dr. Christopher L. Cagan

लॉस ऐंजीलिस के बैपटिस्ट टैबरनेकल में २ जून‚ २०१९ रविवार
संध्या पर दिया गया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Evening, June 2, 2019

‘‘उस ने (मसीह ने) अपनी देह में रहने के दिनों में ऊंचे शब्द से पुकार पुकार कर और आंसू बहा बहा कर उस से जो उस को मृत्यु से बचा सकता था‚ प्रार्थनाएं और बिनती की और भक्ति के कारण उस की सुनी गई" (इब्रानियों ५:७)


हमारे इस पद में गैतसेमनी के बाग में क्रूस पर चढ़ाए जाने के पूर्व वाली रात्रि में यीशु द्वारा आंसु बहा बहा कर प्रार्थना करने का विवरण मिलता है। उस बगीचे में हमारे पाप उनके उपर लाद दिये गये है जिसके दवाब में वे अत्यंत विकल हो थे। उन्हें उन पापों को अपनी देह में लेकर सूली पर अगले दिन चढ़ जाना था। लूका का सुसमाचार इस संदर्भ में कहता है‚

‘‘और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्थना करने लगे; और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था" (लूका २२:४४)

उस रात मसीह ने ‘‘बड़ी व्याकुलता में" प्रार्थना की। हमारे पद में लिखा हुआ है कि उन्होंने ‘‘आंसू बहा बहा कर प्रार्थनाएं और बिनती की।" यीशु की यह प्रार्थना अत्यंत ही भावपूर्ण आंसु बहा बहा कर की गयी प्रार्थना थी। आज रात्रि मैं भावों व वेदना के साथ की गयी प्रार्थना के उपर बात करूंगा।

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१॰ पहिली बात‚ अतिरेक भावुकता भरी झूठी प्रार्थना।

बहुत से पेंटीकॉस्टल्स और करिश्माई पंथ वाले लोग मानते हैं कि चिल्लाना‚ रोना‚ प्रबल भावनाएं प्रगट करना प्रार्थना करने के आवश्यक अंग हैं। उनके विचार से चीखने चिल्लाने से पवित्र आत्मा की उपस्थिति प्रार्थना में प्रगट होती है और अगर हिलना डुलना और हाहूकरण नहीं किया तो इसका अर्थ हुआ कि पवित्र आत्मा वहां उपस्थित नहीं है। उनका यह कहना सिर्फ प्रार्थना करने तक ही सीमित नहीं हैं परंतु जब वे गाते हैं‚ उन्हें ऐसा करना चाहिए‚ जब वे संदेश सुनते हैं तब उन्हें ऐसा करना चाहिए। चर्च में किसी भी गतिविधि करते समय वे ऐसा करना आवश्यक मानते हैं। परंतु वे गलत हैं। अपने आप उमड़ने वाली भावनाएं अर्थहीन हैं। ये आप को प्रार्थना से दूर ले जाती हैं। ये शैतानी कार्य भी हो सकता है।

चलिए मैं आप को बाइबल से प्रार्थना में झूठी भावना का उदाहरण देता हूं। ऐलियाह ने बाल देवता के भविष्यवक्ताओं का सामना किया था। उसने उनसे कहा कि वे बाल देवता की दुहाई देते हुए एक दिन बिताएं और वह यहोवा परमेश्वर की दुहाई देते हुए समय बिताएगा। यहोवा परमेश्वर ने अग्नि गिराकर प्रकट कर दिया कि वे सच्चे परमेश्वर हैं। बाल देवता के अनुयायी उनकी प्रार्थना मांगने में उग्र रूप से भावुक हो गये थे। आज हमारे चर्चेस में भी तो लोगों को ऐसा करना भाता है! वे‘‘प्रार्थना करते रहे, कि हे बाल हमारी सुन, हे बाल हमारी सुन! परन्तु न कोई शब्द और न कोई उत्तर देने वाला हुआ। तब वे अपनी बनाई हुई वेदी पर उछलने कूदने लगे" (१ राजा १८:२६) । दोपहर में ‘‘उन्होंने बड़े शब्द से पुकार पुकार के अपनी रीति के अनुसार छुरियों और बछिर्यों से अपने अपने को यहां तक घायल किया कि लोहू लुहान हो गए" (१ राजा १८:२८)। परंतु ‘‘कोई शब्द सुन न पड़ा; और न तो किसी ने उत्तर दिया" (१ राजा १८:२९)। तब ऐलियाह ने एक साधारण सी प्रार्थना यहोवा परमेश्वर से की और उन्होंने स्वर्ग से आग बरसा दी। ये शैतानी भावनाएं रखना‚ उछल कूद करना‚ चीखना चिल्लाना और सारे ढकोसले करना उन झूठे अनुयायियों के कुछ काम नहीं आया। अपने आप में भावुक हो जाना किसी काम का नहीं है।

कई बार हमने देखा है कि भावनाएं खुद ब खुद उमड़ने लगती है। उन्माद आप का कोई भला नहीं करता है। एक बार मैं परामर्श कक्ष में एक लड़की को समझा रहा था‚ कोशिश कर रहा था कि मसीह के पास आने का मार्ग उसे बताऊं। उसका रोना और कांपना जारी रहा। मैंने उसे रूकने को कहा परंतु वह रोती ही रही। उसने कहा कि वह अपने पापों को लेकर रो रही है। किंतु ऐसे रोने से वह यीशु के पास नहीं आ गयी। उसने अपना ध्यान तो कभी मसीह के ऊपर केंद्रित ही नहीं किया। उसने कभी उद्धार नहीं प्राप्त किया। उसके पश्चात वह चर्च छोड़कर चली गयी और अंधकारमय जीवन में धंसती चली गयी।

कुछ लोग बहुत भावुक होते हैं। वे बात बात पर हिम्मत हार जाते हैं और रोने लगते हैं। मुझे एक और लड़की स्मरण हो आती है जिसने बिल्कुल ऐसा ही किया। यह सिर्फ संदेश के समय या परामर्श देने के समय की ही बात नहीं थी। वह किसी भी समय ऐसा करने लगती थी। फूट फूट कर रोने लगती थी। वह अपने ध्यान को मसीह‚ चर्च या बाइबल के ऊपर केंद्रित कर ही नहीं पायी। एक दिन उसके भीतर उदासी छा गयी। वह भावनाओं से चली और चर्च को छोड़ दिया। मैंने उसे दुबारा कभी नहीं देखा।

रोना या चिल्लाना किसी बात को ‘‘सच" नहीं बना देता है। इससे प्रार्थना सच्ची प्रार्थना नहीं हो जाती। स्वयं को रूलाना या चिल्लाने का कोई परिणाम नहीं निकलता। जब आप प्रार्थना करते हैं तो जिस बात के लिए प्रार्थना कर रहे हैं‚ उस पर ध्यान लगाइए। आप आंसू के साथ या आंसुओं के बिना भी प्रार्थना कर सकते हैं। यीशु ने गैतसेमनी के बाग में अपने भावों को प्रकट किया था। उन्होंने ‘‘अत्यंत विकल होकर आंसू बहा बहा कर प्रार्थना की थी।" उनका ये रूदन स्वयं के लिए नहीं था। उनके आंसुओं ने प्रार्थना को भला नहीं बनाया। वो तो प्रार्थना करते करते उनके आंसु बहे। उनकी प्रार्थना का प्रकार कुछ ऐसा था कि उनके आंसु बह निकले। जैसे ही मनुष्य जाति के पापों को उनके ऊपर लादा गया‚ उस दुख‚ बोझ और कष्ट के कारण वे यहोवा परमेश्वर के समक्ष पुकार उठे। उनकी गंभीरता‚ चिंता‚ आवश्यकता‚ उनका बोझ‚ उनके क्लेश के कारण उनका रूदन फूट पड़ा। ऐसा ही आपके साथ भी होता है। जबरदस्ती रोने का प्रयास मत कीजिए। रोने की योजनाभी मत बनाइए और न ही रोने की कोई तैयारी कीजिए। आप तो केवल प्रार्थना कीजिए। यहोवा आप को रूला सकते हैं या नहीं भी रूला सकते हैं। जो भी हो‚ परंतु ऐसी प्रार्थना ही सच्ची प्रार्थना कहलायेगी।

२॰ दूसरी बात‚ भाव के अभाव में की गयी प्रार्थना सच्ची नहीं होती।

आजकल जो प्रार्थनाएं की जा रही हैं‚ वे बिल्कुल भी ‘‘प्रार्थना" नहीं हैं। एक व्यक्ति केवल कुछ कहता है‚ जो यहोवा परमेश्वर से कही गयी सच्ची प्रार्थना की श्रेणी में नहीं आता है। प्रार्थना के शब्द बड़े भले प्रतीत होते हैं‚ धार्मिक से लगते हैं‚ परंतु केवल औपचारिकता भर है‚ यहोवा की ओर मुड़े बिना और सच में उनसे कुछ पाने की उत्कंठा रखने वाली प्रार्थना तो यह लगती ही नहीं है।

मैं अनेक ग्रेजुएशन समारोह में गया हूं। समारोह के प्रारंभ में ‘‘मंगलाचरण" होता है। इसे प्रार्थना कहा जाता है‚ किंतु वास्तव में यह प्रार्थना नहीं होती है। एक व्यक्ति कुछ दो एक वाक्य कहता है जिसमें ग्रेजुएशन अच्छा सिद्ध हो और विघार्थियों का जीवन अच्छा साबित हो‚ ऐसी कामना की जाती है। वहां कोई भी यहोवा से उत्तर पाने की और किसी बात के होने या बदलाव होने की आशा नहीं रखता — लेकिन ‘‘प्रार्थना" करने वाले से तो वहां कम से कम ऐसी अपेक्षा नही होती है। इन समारोहों में हृदय से उपजा ऐसा कोई भाव या अभिव्यक्ति देखने को नहीं मिलती।

एक बार मैं अपने देश की राजधानी वाशिंगटन डी॰सी॰ घूमने गया। वहां मैं राष्ट्रीय कैथेड्रल गया। हाल ही में राष्ट्रपति रोनॉल्ड रैगन का देहांत हुआ था और वहां उनके अंतिम संस्कार की तैयारियां चल रही थी। फिर मैंने एपिस्कोपल पादरी को ‘‘प्रार्थना" के शब्द कहते हुए सुना। प्रार्थना तो वह कर ही नहीं रहे थे। वे तो एक पुस्तक से शब्द पढ़ रहे थे। बस यही सब कुछ था। यहोवा परमेश्वर से तो वे कुछ करने को कह ही नहीं रहे थे। उन्होंने परमेश्वर से किसी उत्तर की आशा भी नहीं की। केवल कुछ शब्द कहे क्योंकि यही सब उन्हें करना था। प्रार्थना में हृदय की किसी भावना का कोई समावेश नहीं था।

यीशु एक फरीसी का उदाहरण देते हैं जो प्रार्थना करने मंदिर में गया। उसने कहा, ‘‘हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि मैं और मनुष्यों की नाईं अन्धेर करने वाला, अन्यायी और व्यभिचारी नहीं, और न इस चुंगी लेने वाले के समान हूं" (लूका १८:११‚ १२)। इस उदाहरण में, यह फरीसी तो बिल्कुल ही प्रार्थना नहीं कर रहा। उसने यहोवा से कुछ मांगा भी नहीं। इसके बदले वह परमेश्वर को बता रहा था कि वह कितना अच्छा है। मसीह कहते हैं कि इस फरीसी ने केवल अपने ‘‘आप से प्रार्थना की" (लूका १८:११)। उसके भीतर कोई भाव मौजूद नहीं था। वह अपने हृदय से प्रार्थना नहीं कर रहा था।

मसीह ने फरीसियों को उनकी झूठी प्रार्थनाओं के लिए डांटा। उन्होंने कहा‚ ‘‘हे अन्धे अगुवों‚ तुम मच्छर को तो छान डालते हो‚ परन्तु ऊंट को निगल जाते हो" (मत्ती २३:१४)। वे स्वयं को पवित्र दर्शाने के लिए लंबी लंबी प्रार्थनाएं किया करते थे। किंतु वास्तव में उनका मकसद बुजुर्ग स्त्रियों का पैसा और घर हड़पना हुआ करता था। सरल सी बात थी। ऊपर से अच्छी भावना का प्रदर्शन केवल भले के लिए करते थे। दिल से वे प्रार्थना करते ही नहीं थे। क्योंकि उनके दिलों में मैल होता था।

आप कह सकते हैं कि ‘‘मैं उनके समान नहीं हूं।" परंतु आप भी केवल शब्दों को दोहराने वाली झूठी प्रार्थना ही किया करते हैं? मैं ऐसा कर चुका हूं। अपने निजी प्रार्थना के समय में क्या आप व्यक्तियों के बारे में बिना सोचे केवल नाम दुहराते नहीं जाते हैं‚ यहोवा परमेश्वर से उत्तर भी नहीं मांगते हैं? क्या आप ने ऐसा चर्च की प्रार्थना सभाओं में नहीं किया है? मैं ऐसा कर चुका हूं। क्या आपने इसलिए प्रार्थना की क्योंकि आप को प्रार्थना करना थी — क्योंकि प्रार्थना करने की आप की बारी आ गयी थी? सभा छूटने पर आप प्रसन्न हो जाते हैं कि आप को और अधिक प्रार्थना नहीं करना पड़ी। तो कैसे ऐसी प्रार्थना सच्ची प्रार्थना कहलाएगी। आप ने तो बस जैसे तैसे समय व्यतीत किया। क्या दूसरों को ‘‘प्रभावित करने" के लिए आप ने प्रार्थना की थी? मैं एक ऐसे जन को जानता हूं जिसने प्रार्थना कैसे की जाएं इसकी योजना काफी पहिले बना रखी है। तो फिर तो यह वास्तव में प्रार्थना नहीं ठहरी‚ परंतु भाषण या व्याख्यान ठहरा। मेरा कहना है‚ ‘‘अपनी प्रार्थनाओं की तैयारी मत कीजिए‚ बल्कि उनके लिए प्रार्थना कीजिए!" प्रार्थना सभा के पूर्व कुछ समय प्रार्थना में बिताइए और यहोवा से मांगिए कि वे आप की मदद करें। और जब सभा में आप प्रार्थना करते हैं तो विचार कीजिए कि आप क्या प्रार्थना कर रहे हैं। सोचिए कि वह कितनी बुरी स्थिति होगी जब यहोवा आप की मदद नहीं करेंगे। सोच कर देखिए परमेश्वर पिता के उत्तर की आप को कितनी आवश्यकता है। उपवास रखकर प्रार्थना करना‚ आप की मदद करेगा क्योंकि यह आप के ध्यान को आकर्षित करता है और प्रभु यहोवा को दर्शाता है कि आप कितने गंभीर हैं। प्रार्थना में प्रभु की ओर मुड़िए और उनसे विनती कीजिए कि जो आप ने मांगा है‚ वह मिले। आप उस भावना के साथ रो भी सकते हैं। अपने आप को रोकिए मत। परमेश्वर पिता आप को इस स्थिति तक लेकर आए हैं। कभी हो सकता है कि रोना नहीं आए। अपने आप को तब रोने के लिए बाध्य मत कीजिए। एक प्रार्थना इसलिए अच्छी नहीं होती क्योंकि उसमें रोना जुड़ा होता है या इसलिए अच्छी नहीं होती कि उसमें रोना नहीं जुड़ा होता है। परंतु एक प्रार्थना तब अच्छी होती है जब प्रभु यहोवा इसमें उपस्थित होते हैं!

३॰ तीसरी बात‚ सच्ची प्रार्थना भावना के साथ या भावना के बिना।

हमारा पद दर्शाता है कि मसीह ने गैतसेमनी के बाग में ‘‘आंसु बहा बहा कर" प्रार्थना की थी। कभी कभी ऐसा भी होता है कि सच्ची प्रार्थना जो थोड़ी सी या बिल्कुल ही भावनारहित हो‚ तौभी उसका उत्तर मिलता है। मैंने आप को बताया कि बाल देवता के अनुयायियों ने उनके झूठे देवता से प्रार्थना की। अब मैं आप को बताता हूं कि एलियाह ने किस प्रकार प्रार्थना की। उसने कहा था‚

‘‘फिर भेंट चढ़ाने के समय एलिय्याह नबी समीप जा कर कहने लगा‚ हे इब्राहीम‚ इसहाक और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा! आज यह प्रगट कर कि इस्राएल में तू ही परमेश्वर है‚ और मैं तेरा दास हूँ‚ और मैं ने ये सब काम तुझ से वचन पाकर किए हैं। हे यहोवा! मेरी सुन‚ मेरी सुन‚ कि ये लोग जान लें कि हे यहोवा‚ तू ही परमेश्वर है‚ और तू ही उनका मन लौटा लेता है" (१ राजा १८:३६‚ ३७)

ऐसा कोई विवरण नहीं है कि एलियाह रोया। ऐसा कोई विवरण नहीं कि एलियाह ने उछल कूद की। निश्चित ही उसने अपने आप को चाकू से घायल नहीं किया! उसने एक बेहद गंभीर प्रार्थना की। उसने प्रभु यहोवा परमेश्वर से कहा कि वे लोगों को प्रकट कर दें कि वे सच्चे परमेश्वर हैं। और यहोवा परमेश्वर ने स्वर्ग से आग भेजकर एलियाह की भेंट को भस्म करके उसकी प्रार्थना का उत्तर दिया। लोग कहने लगे‚‘‘यहोवा ही परमेश्वर है‚ यहोवा ही परमेश्वर है" (१ राजा १८:३९) । यह एलियाह की गंभीर प्रार्थना थी‚ जिसमें उन्माद का कोई वर्णन नहीं‚ जो बाल देवता के अनुयायियों के जाहिलपन के बिल्कुल विपरीत थी। सच्ची प्रार्थना में ऐसे किसी उन्माद की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इसमें यहोवा की उपस्थिति होना चाहिए!

परंतु अधिकतर‚ सच्ची प्रार्थना में आंसू भी शामिल होते हैं। जब आप को आपकी जरूरत का ख्याल आता है‚ तो स्वाभाविक है कि आप भावुक हो जाएंगे। आप यहोवा परमेश्वर को जुनून‚ तीव्र इच्छा और रोते हुए पुकार सकते हैं। आप फूट फूट कर रो सकते हैं और आंसुओं से भरकर विनती कर सकते हैं। बाइबल एक के बाद एक प्रार्थना और आंसुओं के संबंध के बारे में कहती है। भजनकार ने प्रार्थना की थी‚ ‘‘हे यहोवा‚ मेरी प्रार्थना सुन‚ और मेरी दोहाई पर कान लगा‚ मेरा रोना सुनकर शांत न रह" (भजनसंहिता ३९:१२) ।

राजा हिजकियाह मरने ही वाला था। हिजकियाह ने यहोवा परमेश्वर से प्रार्थना की। उसने कैसी प्रार्थना की? बाइबल कहती है‚ ‘‘तब हिजकिय्याह बिलक बिलक कर रोया" (२ राजा २०:३) निसंदेह वह रोया। वह मरने जा रहा था। वह दिल की गहराइयों से रोया। वह प्रार्थना बोलते समय रोया। तब प्रभु यहोवा का वचन भविष्यवक्ता यशायाह के पास पहुंचा। यशायाह की पुस्तक में इस प्रकार लिखा है, "कि लौटकर मेरी प्रजा के प्रधान हिजकिय्याह से कह, कि तेरे मूलपुरुष दाऊद का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि मैं ने तेरी प्रार्थना सुनी और तेरे आंसू देखे हैं; देख, मैं तुझे चंगा करता हूँ" (२ राजा २०:५) "मैंने तेरे आंसू देखें हैं।" यहोवा परमेश्वर ने देखा और हिजकियाह के आंसु‚ उसके असहायपन‚ उसकी गिड़गिड़ाती हुई विनती को महसूस किया। और यहोवा ने उत्तर दिया और राजा के जीवन को बचा लिया।

नये नियम की घटना है‚ एक व्यक्ति यीशु के पास आया। उसका पुत्र दुष्टात्माग्रस्त था। मसीह ने उससे पूछा कि क्या वह विश्वास करता है कि उसका पुत्र अच्छा हो सकता है। और लिखा है कि "बालक के पिता ने तुरन्त गिड़िगड़ाकर कहा‚ हे प्रभु‚ मैं विश्वास करता हूं‚ मेरे अविश्वास का उपाय कर" (मरकुस ९:२४) यीशु ने उस बालक में से दुष्टात्मा को बाहर कर दिया। अक्सर इस घटना का वर्णन यह दिखाने के लिये किया जाता है कि एक कमजोर विश्वास वाले व्यक्ति को भी उत्तर मिल सकता है। "मेरे अविश्वास का उपाय कर।" परंतु इस घटना में यह भी वर्णन है कि पिता "गिड़गिड़ाते हुए" "आंसुओं के साथ" मसीह से विनती कर रहा था। यह व्यक्ति तो मसीह का शिष्य भी नहीं था। उसका तो हृदय — परिवर्तन भी नहीं हुआ था। वह तो "जनसाधारण में से ही एक" था। भीड़ का ही एक मनुष्य था (मरकुस ९:१७)। किंतु वह अपने पुत्र को यीशु के पास लेकर आया और आंसुओं से भरकर विनती की।

क्यों वह मनुष्य आंसु भरकर गिड़गिड़ाया? वह तो प्रार्थना योद्धा भी नहीं था। उसने तो उद्धार भी नहीं पाया था। उसकी नितांत आवश्यकता के कारण यीशु से बोलने का उसका तरीका बिल्कुल ही स्वाभाविक था। उसका पुत्र दुष्टात्माग्रस्त था और यीशु को छोड़कर कोई छुटकारा नहीं दिला सकता था। यह मनुष्य जबरदस्ती नहीं रोया। उसकी आवश्यकता के वशीभूत‚ हताशा में‚ उसके आंसु बहे। जब अत्यंत जरूरी आवश्यकता हो‚ दुख व हताशा का बोध हो अक्सर इस अवस्था में इंसान गिड़गिड़ाता है और उसके आंसु निकल आते हैं। इसे भावना के साथ‚ सच्ची प्रार्थना करना कहते हैं।

यहां हम अपने पद पर वापस लौटते हैं। मसीह ने बाग में "आंसू बहा बहा कर" प्रार्थनाएं और बिनती की । वह बात बात में रोने वाले इंसान नहीं थे। वह किसी भावुक लड़की के समान नहीं थे‚ जिसके हर बात में आंसु गिरने लगते हो। वह एक परिपक्व इंसान थे‚ तीस साल की उम्र से बढ़कर। फिर वे क्यों रोए? क्योंकि वे अपने हदय में द्रवित हो गये थे। अपने भीतर प्रत्यारोपित प्रत्येक स्त्री और पुरूष के पाप को उन्होंने महसूस किया। अगले दिन जो अथाह कष्ट उन्हें उठाना था‚ जिसके उठाए बिना किसी भी मनुष्य को उद्धार नहीं मिलना था‚ उस भीषण दुख के विषय में उन्होंने सोचा। मनुष्य के पापों के बोझ ने उन्हें लगभग मार ही डाला था। अगर यहोवा की प्रदान की हुई ताकत उनके पास नहीं होती‚ तो उस रात्रि ही उनका प्राणांत हो गया होता और वे कभी क्रूस पर नहीं चढ़ पाते। मसीह अपने हृदय में विकल हो गये थे। और इसलिए उन्होंने "आंसू बहा बहा कर" प्रार्थनाएं और बिनती की। जिस परिस्थिति से वे गुजर रहे थे‚ उसमें यह सामान्य और स्वाभाविक सी बात थी। बल्कि ये और अधिक आश्चर्य की बात होती‚ अगर वे भावना से भरकर प्रार्थना नहीं करते। यीशु ने "आंसू बहा बहा कर" बिनती की। और इस संबंध में पद बताता है कि उनकी प्रार्थना "सुनी गयी।" यहोवा ने उनकी प्रार्थना सुनी‚ उन्हें जीवित रखा ताकि वे अगले दिन क्रूस पर चढ़ाए जा सकें। परमेश्वर यहोवा ने उनकी "आंसुओं से भरी गिड़गिड़ाहट वाली प्रार्थना" का उत्तर दे दिया।

मसीही भाइयों‚ मैं आप से पूछता हूं‚ "क्या आप आंसू बहा बहा कर प्रार्थना करते हैं?" आप के द्वारा की जाने वाली हर प्रार्थना की बात मैं नहीं कर रहा हूं। परंतु मैं पुन: आप से पूछता हूं‚ "क्या आप कभी आंसुओं से भरे हुए प्रार्थना करते हैं?" मैं अक्सर करता हूं हांलाकि जितनी करनी चाहिए उतनी नहीं करता। क्या आवश्यकता के बोझ तले दब कर आप गिड़गिड़ाते हुए प्रार्थना करते हैं — कभी आंसुओ से भी तर हो जाते हैं? अगर आप ऐसा कभी नहीं करते हैं‚ तो आप का प्रार्थना का जीवन अच्छा नहीं है। परमेश्वर यहोवा ऐसा जीवन नहीं चाहते हैं। प्रार्थना कीजिए कि यहोवा आप को आप की आवश्यकता के प्रति बोध दें‚ और तब आप उस भावना से भरकर प्रार्थना करें। अगर आप उपवास रखते है‚ उस समय अगर आप भूख महसूस करें‚ तो उन विषयों पर ध्यान केंद्रित कीजिए‚ जिनके लिए प्रार्थना कर रहे हैं। परमेश्वर की ओर मुड़िए और प्रार्थना कीजिए।

आप में से कुछ ने अभी तक उद्धार नहीं पाया है। आप ने यीशु पर विश्वास नहीं किया है। मैं आप से पूछता हूं कि‚ "क्या आप के साथ ऐसा क्षण बीतता है कि आप रोते हुए अपने पापों को महसूस करते हैं — कम से कम कुछ समय तक उस बोध में बने रहते हैं?" क्या आप को अपने पाप का बोध होता है? रोना लक्ष्य नहीं है — यीशु लक्ष्य हैं। भले ही आप रोए अथवा न रोए‚ परंतु उन पर विश्वास रखिए। मेरा कहना है‚ "क्या आप को अपने दिल में अपने पाप के प्रति किसी प्रकार की उदासी आती है?" आनी चाहिए‚ क्योंकि आपका हृदय "अधिक धोखा देने वाला होता है" (यिर्मयाह १७:९)। यहोवा परमेश्वर से प्रार्थना कीजिए कि आप के हृदय का भयानक पाप आप पर प्रकट करें। तब प्रार्थना करें कि यहोवा आप को मसीह के पास खींचे।

यीशु आप की जरूरतों का उत्तर हैं। वह उपचार हैं और आप के पापों का दाम उन्होंने चुकाया है। वह आप के प्रत्येक पाप का मोल चुकाने के लिए‚ यहां तक कि आप के हृदय में बसे भयानक पाप का मूल्य चुकाने के लिए क्रूस पर मरे। उन्होंने अपना लहू आप के पापों को ढंपने और उन्हें सदा के लिए धो देने के लिए बहाया। वह मरकर जीवित हुए ताकि न केवल स्वयं के लिए बल्कि आप के लिए भी मौत पर जय को हासिल करें। अगर आप यीशु पर विश्वास करते हैं तो अनंतकाल तक के लिए उद्धार पाएंगे। अगर आप हमसे मसीह पर विश्वास लाने के लिए कुछ बात करना चाहते हैं‚ तो कृपया आगे आइए और आगे की दो पंक्तियों में बैठ जाइए। आमीन।


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(संदेश का अंत)
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जैक नैन द्वारा संदेश के पूर्व एकल गान:
‘‘टीच मी टू प्रे" (अल्बर्ट एस रिर्ज, १८७९—१९६६)


रूपरेखा

आंसु भरी प्रार्थना

TEARS IN PRAYER

डॉ. क्रिस्टोफर एल कैगन

‘‘उस ने (मसीह ने) अपनी देह में रहने के दिनों में ऊंचे शब्द से पुकार पुकार कर और आंसू बहा बहा कर उस से जो उस को मृत्यु से बचा सकता था‚ प्रार्थनाएं और बिनती की और भक्ति के कारण उस की सुनी गई" (इब्रानियों ५:७)

(लूका २२:४४)

१॰ पहिली बात‚ भावुक मगर झूठी प्रार्थना‚ १राजा १८:२६‚२८‚२९

२॰ दूसरी बात‚ भावना के अभाव में की गयी प्रार्थना सच्ची नहीं होती‚
लूका १८:११‚१२; मत्ती २३:१४

३॰ तीसरी बात‚ सच्ची प्रार्थना भावना के साथ या बिना‚ १राजा १८:३६‚ ३७‚३९;
भजन ३९:१२; २ राजा २०:३‚५; मरकुस ९:२४‚ १७; यिर्मयाह १७:९