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चीन में सफलता का रहस्य
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एक चीनी संरक्षक पास्टर वैंग मिंगदाऊ की आत्मकथा लिखने वाले के कथन थे‚
चीनी सरकार कौनसी नीति अपनाती है‚ इस और ध्यान दिए बगैर‚ एक बात तो तय है कि चीन में चर्च‚ आने वाली पीढ़ियों तक विश्व भर में मसीहत को गहराई तक प्रभावित कर आकार देता रहेगा। (लगभग) सत्तर लाख आत्माएं (अब १६० लाख आत्माएं) चीन में मसीहियों की संख्या में ७ प्रतिशत वार्षिक दर से वृद्धि करते हुए पृथ्वी भर के देशों के मसीहियों की संख्या को बौना कर देंगी। विकासशील देशों के मसीहियों के सामने इक्कीसवीं सदी में चीनी मसीही (अग्र दल) होकर सबसे श्रेष्ठ रूप में हैं। (थॉमस ऐलन हार्वे‚ एक्वेंटेड विथ ग्रीफ‚ ब्राजोस प्रेस‚ २००२‚ पेज १५९)
डेविड आयेकमन ने‚ अपनी पुस्तक जीजस इन बीजिंग‚ में कहा था‚
इस बात की संभावना पर विचार करना श्रेयस्कर होगा‚ कि न केवल संख्यामें अंतर दिख रहा है‚ किंतु.......यूरोप और उत्तरी अमेरिका में मसीहत के बौद्धिक केंद्र भी इन स्थानों से बाहर चले जाएंगे‚ क्योंकि जैसे जैसे चीन मसीहत में बढ़ना जारी रखता है और जैसे जैसे सुपरपॉवर होने की दिशा में आगे कदम बढ़ा रहा है.....यह प्रक्रिया घरेलू कलीसियाओं के अगुवों की उम्मीदों और कार्य में पहिले से ही आरंभ हो चुकी है (डेविड आयेकमन‚ जीजस इन बीजिंग‚ रेगनेरी पब्लिशिंग‚२००३‚पेज २९१‚ २९२)
मसीह ने स्मुरना की कलीसिया का जो वर्णन किया था‚ वह चित्रण‚ आज चीन की ‘‘घरेलू कलीसियाओं" में जो हो रहा है‚ उसको दर्शाता है‚
‘‘मैं तेरे क्लेश और दरिद्रता को जानता हूं (परन्तु तू धनी है) ........." (प्रकाशितवाक्य २:९)
स्मुरना की कलीसिया के विषय में डॉ जेम्स ओ कोंब्स ने कहा था‚
स्मुरना‚ इफिसुस के उत्तर में स्थित कलीसिया थी‚ उसके धर्मपुरोहित पोलीकार्प ने सदियों तक इस कलीसिया को संभाला‚ जो १५५ ए डी में ९० वर्ष की उम्र में एक शहीदी मौत मरे......... कलीसिया ने अपार दुख सहा और अपनी सांसारिक संपत्ति की कुर्की को सहन किया.........किंतु आत्मिक रूप से धनी कलीसिया थी (जेम्स ओ कोंब्स‚ डी मिन‚ लिट डी‚ रेनबोज फ्राम रिविलेशन‚ ट्रिब्यून पब्लिशर्स‚ १९९४‚ पेज ३३)
स्मुरना की कलीसिया के समान ही‚ चीन के घरेलू चर्च बहुत सताव और ‘‘क्लेश" झेलते हैं तौभी आत्मिक रूप से वे बहुत समृद्ध हैं‚ इतना अधिक कि उनके यहां सुसमाचार प्रचार ‘‘७ प्रतिशत वार्षिक दर से" वृद्धि उत्पन्न करता है (थॉमस ऐलन हार्वे, उक्त संदर्भित) । तो इस तरह चीन में मसीहियों की संख्या ने पहिले ही से ‘‘पृथ्वी भर के देशों में मसीहियों की संख्या को पीछे छोड़ दिया है।" मेरा मानना है कि चीन में १६० मिलियन से अधिक लोग सच्चे मसीही जन हैं और अमेरिका की तुलना में चीन में पहिले से ही अधिक सच्चे मसीहियों की संख्या पायी जाती है। यह स्तब्धकारी है! हमें खुद से यह सवाल पूछना होगा‚ ‘‘उनकी सफलता का क्या कारण है? उनके सुसमाचार सुनाये जाने का रहस्य क्या है?" उन सच्चे मसीहियों के लिये ऐसा क्यों कहा जा सकता है‚
‘‘मैं तेरे क्लेश और दरिद्रता को जानता हूं (परन्तु तू धनी है) ........." (प्रकाशितवाक्य २:९)
जब हम इस तथ्य पर विचार करते हैं कि सुसमाचार प्रचार आधारित मसीहत‚ अमेरिका में बिल्कुल ही नहीं बढ़ पा रही है और सत्य तो यह है कि कई लोग यहां तक कह रहे हैं कि यह सुसमाचार प्रचार असल में दम तोड़ रहा है। तो हम जो अमेरिका में रह रहे हैं हमें गहनता से विचार करना होगा कि उनके पास क्या नहीं है जो हमारे पास है और उनके पास ऐसा क्या है जो हमारे पास नहीं है।
१॰ पहिली बात‚ उनके पास ऐसी क्या चीज नहीं है जो हमारे पास है।
उनके पास चर्च की इमारतें नहीं हैं! केवल ‘‘थ्री सेल्फ" के पास चर्च इमारतें हैं। किंतु घरेलू कलीसियाओं में बढ़ोतरी हो रही है और उनके पास भी न के बराबर इमारतें हैं। अधिकतम के पास हमारे समान चर्च इमारतें नहीं हैं!
उनके पास सरकार की अनुमति नहीं है। वे लगातार चीन की सरकार के द्वारा उत्पीड़न सहते हैं। जैसे हमें धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है‚ उन्हें नहीं है!
जैसे हमारे पास पास्टर्स को शिक्षित करने के लिए सेमनरीज हैं‚ उनके पास नहीं है। अगर थोड़ा सा प्रशिक्षण किसी पास्टर को मिलता है तो वह केवल घर में ही दिया जाता है — वह भी अत्यंत अल्प प्रशिक्षण और पूरी तरीके से भी नहीं। यह प्रशिक्षण भी वे ‘‘बचते बचाते हुए" प्राप्त करते हैं।
उनके पास संडे स्कूल की इमारतें नहीं होती हैं। लाने ले जाने के लिए ‘‘बसों की व्यवस्था" नहीं होती है। उनके पास ‘‘क्रिश्चियन टी वी" नहीं है। न ही ‘‘क्रिश्चियन रेडियों" है। उनके पास क्रिश्चियन पब्लिशिंग हाउसेज नहीं हैं। ‘‘पॉवर पाईंट" दिखाने के लिए उनके पास उपकरण नहीं हैं। बड़ी स्क्रीन पर प्रचारक को दिखाने के लिए उनके पास टीवी प्रोजेक्टर नहीं हैं। उनके पास ‘‘क्रिश्चियन रॉक बैंड" नहीं हैं। उनके पास आर्गन नहीं है और पियानों भी नहीं है। संडे स्कूल के लिए छपी हुई सामग्री नहीं है। यहां तक कि अक्सर हरेक के पास बाइबल और गीत की पुस्तिका भी नहीं होती है। सच में, जो हमारे पास है, उनके पास वह नहीं है! इसके स्थान पर उन्हें सरकार की ओर से उत्पीड़न और क्लेश मिलता रहता है। कभी कभी सिर्फ मसीही होने के कारण उनको जेल जाना पड़ता है। जब कोई व्यक्ति गंभीर प्रकार का मसीही जन बन जाता है, उसके लिए हमेशा ही जोखिम बना रहता है! चीन में मसीहियों पर अत्याचार को पढ़ने के लिये www.persecution.com वेबसाईट पर जाइए। इतना उत्पीड़न सहन करने के बावजूद चीन में मसीही जन दूसरे लोगों के सामने यीशु के सच को प्रकट करने में बेतहाशा सफल हैं। चीन में मसीहियों की संख्या में विस्फोट होता जा रहा है, आधुनिक इतिहास का सबसे बड़ा आत्मिक जागरण!
‘‘मैं तेरे क्लेश और दरिद्रता को जानता हूं (परन्तु तू धनी है) ........." (प्रकाशितवाक्य २:९)
मुझे भय है कि यीशु ने लौदीकिया की कलीसिया के बारे में जो वर्णन किया‚ वह आज अमेरिका के बहुत से चर्चेस पर बिल्कुल ठीक बैठता है‚
‘‘तू जो कहता है‚ कि मैं धनी हूं और धनवान हो गया हूं और मुझे किसी वस्तु की घटी नहीं और यह नहीं जानता कि तू अभागा और तुच्छ और कंगाल और अन्धा और नंगा है" (प्रकाशितवाक्य ३:१७)
२॰ दूसरी बात‚ जो उनके पास अवश्य है‚ वह हमारे पास नहीं है।
यहां हम देखेंगे जो उनके पास है‚ वह हमारे पास नहीं है। और यहीं रहस्य छिपा है उनके सफल होने का — और हमारे असफल होने का!
उनके पास कष्ट है — और इसीलिए वे क्रूस उठाना सीख रहे हैं! यहां एक शाम की हानि हमारे लोग नहीं सहन कर सकते हैं‚ अगर उन्हें दूसरों को सुसमाचार बताने के कार्य पर भेजा जाए। अधिकतर लोग रविवार की संध्या को चर्च में आने के लिए अपनी आरामदायक शाम का त्याग नहीं करना चाहते हैं! अमेरिका में कई पास्टर्स को अपने वजन घटाने की आवश्यकता है। हमें कैलोरीज घटाने का कष्ट सहन करना आवश्यक है। चीन में प्रचारक दुबले हैं। इसलिए वे जोश और ताकत से प्रचार कर पाते हैं। हमें वजन घटाने की आवश्यकता है नहीं तो हम ओज के साथ संदेश नहीं सुना पाएंगे। चीन में बहुत दुबले व्यक्ति हैं‚ वे जब प्रचार करते हैं‚ आत्मा के ओज से भरे हुए होते हैं। मैंने चीन की ‘‘घरेलू कलीसिया" में किसी प्रचारक को अधिक वजन वाला नहीं देखा। जब मसीहत अमेरिका में शुष्क हो रही है‚ मद्धिम पड़ रही है और यही हाल दूसरे पश्चिमी देशों का भी है‚ ऐसे में आश्चर्य की बात है कि चीन के लोगों में बड़ी आत्मिक जाग्रति फैल रही है! अभ्यास करने में थोड़ा सहन करना पड़ता है। जब तक आपका वजन न घट जाए‚ तब तक संतुलित और कम खाने के लिए थोड़ा कष्ट तो सहन करना चाहिए! जिस प्रकार का मनुष्य यहोवा आप को बनाना चाहते हैं‚ वैसा बनने के लिए कष्ट तो सहना होगा! चीनी महान प्रचारक जॉन संग ने कहा था‚
ज्यादा क्लेश ज्यादा आत्मिक जाग्रति लेकर आता है.........यहोवा उनको सर्वाधिक काम में लेते हैं जो कठिनतम हालात में से होकर निकले हों........अधिक दुख उठाना अधिक लाभ लेकर आता है......ऐसे शिष्यों का जीवन जैतून के फल के समान होता हैः जितना कठोरतम कुचले जाते हैं‚ उतना तेल उनमें से निकलता है। केवल वे ही लोग जो दुख में से होकर गुजरे हों‚ दूसरों के प्रति प्रेम और (सहानूभूति) दिखा सकते हैं (जॉन संग‚ पीएचडी‚ द जर्नल वंस लॉस्ट‚ जेनेसिस बुक्स‚ २००८‚ पेज ५३४)
यीशु के कथन हैं‚
‘‘यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे‚ तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए‚ और मेरे पीछे हो ले" (मत्ती १६:२४)
पुनः यीशु के कथन हैं‚
‘‘मैं तेरे क्लेश और दरिद्रता को जानता हूं (परन्तु तू धनी है) ........." (प्रकाशितवाक्य २:९)
चीन में वे मसीह को अपनाने के कारण दुख उठाते हैं! इसलिए आत्मिक जाग्रति फैलने की आशीष उनको यहोवा की ओर से मिली हुई है! आइए‚ हम अपने चर्च से प्रारंभ करें‚ अपने हृदय में वैराग्य धारण करें‚ मसीह का अनुसरण करते हुए अपने अपने क्रूस उठा लेंवे — चाहे उसकी कीमत कुछ भी क्यों न हो!
दूसरा‚ उनकी आंखों में आंसू होते हैं‚ जब वे औरों की आत्मा के लिए प्रार्थना करते हैं! एक भाई‚ जो मुझे जानते हैं‚ उन्होंने मुझसे कहा‚ ‘‘चीन में लोगों की आंखें आंसुओं से तर हैं कि उनके भाई उद्धार पाएं।" मेरे इस भाई का कहना बिल्कुल सही है! जब वे किसी भटके जन के लिए प्रार्थना करते हैं तो वे रोते हैं। इसमें कतई आश्चर्य नहीं कि कितने लोगों ने हृदय में मसीह का अंगीकार किया! बाइबल कहती है‚
‘‘जो आंसू बहाते हुए बोते हैं‚ वे जयजयकार करते हुए लवने पाएंगे" (भजन १२६:५)
प्रार्थना कीजिए कि यहोवा आप को टूटा हुआ हृदय दे ताकि भटके हुए लोगों के मन में वैराग्य लाने‚ उन्हें उद्धार मिलने की प्रार्थना में लीन हो जावें! (आइए सब प्रार्थना करें)
तीसरा, वे जितने प्रयास बन पड़ते हैं‚ करते हैं ताकि भटके हुए लोगों को अपनी ‘‘घरेलू कलीसियाओं" में लेकर आएं। डी एल मूडी ने कहा था‚ ‘‘उनसे प्रेम रखिए कि वे आएं।" इस तरह से चीन में सच्चे मसीही जन अन्य लोगों को को अपनी घरेलू कलीसियाओं में लेकर आते हैं — और ऐसा ही हमें करना आवश्यक है! ‘‘उनसे प्रेम रखिए कि वे आएं।" आत्माओं को जीतने से तात्पर्य लोगों से मसीह में होकर प्रेम रखना है — अपनी संगति में उनसे प्रेम रखना हैं। ‘‘उनसे प्रेम रखिए कि वे आएं!" ये उदारवाद नहीं है! ये ‘‘जीवन शैली वाला" सुसमाचार प्रचार नहीं है! ये डी एल मूडी का विचार है! मेरा मानना है वे बिल्कुल सही थे। चीन में इसी ने कार्य किया है — यहां भी यही कार्य करेगा! ‘‘उनसे प्रेम रखिए कि वे आएं।"
अगर हम आराधना करके जल्द निकल जाना चाहते हैं तो हम आत्माओं को नहीं बचा पाएंगे। केवल वे जो ठहरे रहते हैं‚ आत्मा जीत सकते हैं। केवल वे जो भटके हुए जन के साथ आराधना समय के पूर्व और पश्चात ठहरकर समय बिताते हैं‚ आत्माओं का मार्गदर्शन कर पाएंगे। संगति में मिलाने का और कोई रास्ता नहीं है! ‘‘हमें उनसे प्रेम रखना हैं कि वे आएं" — जैसा वे लोग चीन में करते हैं! आइए गीत गाते हैं‚ ‘‘मेक मी ए चैनल ऑफ ब्लैसिंग!" यह गीत की पुस्तिका में संख्या ४ पर अंकित है।
मुझे आज आशीषों की कड़ी बनाइए‚
मेरी प्रार्थना है‚ मुझे आशीषों की कड़ी बनाइए;
मेरे जीवन को आशीषित‚ मेरी सेवा को आशीषित‚
मुझे आज आशीषों की कड़ी बनाइए।
(‘‘मेक मी ए चैनल ऑफ ब्लैसिंग" हार्पर जी स्माईथ‚ १८७३—१९४५)
मुझे इस आराधना का समापन उन लोगों को संबोधित किए बिना नहीं करना चाहिए जिन्होंने अभी तक मसीह को हृदय में अंगीकार नहीं किया हो। चर्च आने से तात्पर्य यह नहीं है कि आप का हृदय परिवर्तन हो गया हो। बाइबल पढ़ना आप के मन को नहीं बदलेगा। आप को आपके पापों से पश्चाताप करना होगा। आप को यीशु मसीह की ओर फिरना होगा‚ उनके पास आना होगा। उन्होंने आप की आत्मा को उद्धार देने के लिए क्रूस पर कष्ट सहा और लहू बहाया। आप को उनके बहाये हुए लहू में अपने पापों को शुद्ध करना आवश्यक है। यीशु के पास आ जाइए और पाप‚ मृत्यु और नर्क से बच जाइए। मेरी ऐसी प्रार्थना है कि यह आप का अनुभव हो सके। आमीन।
अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व मि बैंजामिन किकेंड ग्रिफिथ द्वारा एकल गान:
‘‘जीजस लव्स मी" (अना बी. वार्नर‚ १८२०—१९१५)
रूपरेखा चीन में सफलता का रहस्य THE SECRET OF SUCCESS IN CHINA डॉ आर एल हायमर्स‚ जूनि ‘‘मैं तेरे क्लेश और दरिद्रता को जानता हूं (परन्तु तू धनी है) ........." (प्रकाशितवाक्य २:९) १॰ पहिली बात‚ उनके पास ऐसी क्या चीज नहीं है जो हमारे पास है‚ २॰ दूसरी बात‚ जो उनके पास अवश्य है‚ वह हमारे पास नहीं है‚ मत्ती |