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कैसे एक आत्मा को मसीह के पास लाना —
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यीशु का कहना था एक व्यक्ति के लिये मन फिराना आवश्यक है — मन फिराओ — अन्यथा वह व्यक्ति स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पायेगा। ‘‘मन फिराना’’ यूनानी शब्द ‘‘एपिर्स्टेफों’’ का अनुवाद है। इसका अर्थ है ‘‘एक मोड़।’’ यह ऐसी बात नहीं है कि कोई इंसान केवल पापंगीकार की प्रार्थना बोल दे या हाथ उठाकर मन फिराने की सहमति दे दे। यह तो मन का बदलाव है जो एक पापी जन को‚ उसके नये जन्म पर‚ परमेश्वर यहोवा देते हैं। यीशु ने निकोदेमस से कहा था‚ ‘‘यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता’’ (यूहन्ना ३:३)। आगे फिर मसीह कहते हैं, ‘‘कि तुम्हें नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है’’ (यूहन्ना ३:७) इसे मन का स्वाभाविक परिवर्तन कहते हैं। बाइबल कहती है, ‘‘सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई (सृष्टि) है: पुरानी बातें बीत गई हैं देखो‚ वे सब नई हो गईं’’ (२ कुरूंथियों ५:१७)। तो यह पापी जन द्वारा केवल पापमुक्ति के लिये दोहराई जाने वाली प्रार्थना मात्र कतई नहीं है। यह तो हृदयका परिवर्तन है! आज सुबह मैं इस विषय पर परामर्श देने के लिये चर्चा करूंगा कि कैसे एक पापी जन को यीशु के पास लाया जा सकता है।
परिवर्तन है क्या? हम क्या चाहते है कि कैसा परिवर्तन हो? पापी को परिवर्तन या मन फिराने की जरूरत होती है‚ निर्णय लेने की नहीं। चार्ल्स फिनी (१७९२—१८७५) के समय से संसार भर के चर्चेस में ‘‘निर्णयवाद’’ ने परिवर्तन का स्थान ले लिया‚ हजारों लोगों ने निर्णय लिये‚ परंतु मन नहीं फिराया‚ असल परिवर्तन तो घटा ही नहीं।
‘‘निर्णयवाद’’ क्या है? परिवर्तन क्या है? एक पुस्तक टूडैज एपोस्टोफी से इसकी परिभाषा दूंगा‚ जिसे डॉ हायमर्स और मेरे पिता डॉ कैगन ने मिलकर लिखा है।
निर्णयवाद वह विश्वास है कि व्यक्ति किसी प्रार्थना सभा या चर्च में आगे आता है‚ हाथ उठाता है‚ एक प्रार्थना दोहराता है‚ किसी सिद्धांत पर विश्वास रखता है‚ प्रभुता के प्रति प्रतिबद्धता प्रकट करता है‚ या कोई भी ऐसा मानवीय कर्म करता है‚ जिसे आंतरिक परिवर्तन के बराबर ही समझ कर प्रमाणित मान लिया जाता है; यह वह विश्वास है कि व्यक्ति ने केवल किसी बाहरी ऐजेंसी मात्र से उद्धार पाया होः यह वह विश्वास है कि इन सब मानवीय गतिविधियों के करने से व्यक्ति को उद्धार प्राप्त हो गया है।
परिवर्तन करना पूर्णतः पवित्र आत्मा का कार्य है जो भटके हुए पापी जन को प्रभु यीशु मसीह के पास क्षमा पाने और पुर्नरूद्धार के लिये लेकर आता है। यहोवा परमेश्वर के समक्ष उसकी अवस्था को पापी से उद्धारप्राप्त के रूप में परिवर्तित कर देता है। उस भ्रष्ट आत्मा को दिव्य जीवन प्रदान करता है‚ इस तरह परिवर्तित के जीवन में एक नयी दिशा पैदा करता है। उद्धार का विषय पुर्नज्जीवन पाना है। इसका परिणाम परिवर्तन कहेंगे। (टूडैज एपोस्टोफी १७‚१८)
निर्णय लेना मानवीय कार्य है। जिसे कोई भी‚ कहीं भी कर सकता है। परिवर्तन अलौकिक सामर्थ से होता है जो मनुष्य का जीवन और उसकी शाश्वत नियति को सदा के लिये बदल कर रख देता है।
किसी का निर्णय प्राप्त करना ज्यादा आसान है बनिस्पत किसी आत्मा को परिवर्तन तक लेकर आने के। एक प्रचारक को बहुत बड़ी संख्या में आंकड़ों के लिये ‘‘निर्णय’’ मिल सकते हैं। कहीं भी‚ किसी से आप उसके निर्णय को प्राप्त कर सकते हैं। आप पापी जन के लिये दोहराई जाने वाली प्रार्थना किसी के घर के दरवाजे पर या हवाई जहाज में या कहीं भी कर सकते हैं। आप मान सकते हैं कि वह व्यक्ति परिवर्तित हो गया है। परंतु आप उस व्यक्ति को फिर कभी नहीं देखते या मिलते हैं। उस व्यक्ति ने निर्णय लिया, सच्चे परिवर्तन का अनुभव तो उसे हुआ ही नहीं।
परिवर्तन के लिये तो एक मनुष्य को कई बार चर्च आना आवश्यक है और मसीह को जानने समझने व उन पर विश्वास लाने के लिये सुसमाचार संदेश सुनना आवश्यक है। कई व्यक्ति तो महिनों या सालों तक परिवर्तित होने के पूर्व चर्च आते रहते हैं।
जब लोग आप के आमंत्रित करने पर आते हैं, तो उन्हें मसीह के पास लाने के लिये‚ आप को स्वयं‚ व्यक्तिगत स्तर पर उनसे बातें करना होगी। उनको किसी अन्य स्थान पर ले जाकर बात की जा सकती है। जल्दी से उनसे कोई प्रार्थना मत करवाइये। पापंगीकार प्रार्थना बोलना, यीशु पर विश्वास करने के बराबर नहीं है, हाथ उठाना, आगे जाना, बपतिस्मा लेना यीशु पर विश्वास करने के बराबर नहीं है। इन चीजों को करने से प्रमाणित नहीं होता कि एक मनुष्य ने यीशु पर विश्वास किया है। यीशु पर विश्वास करना अपने आप में एक भिन्न, अनूठी और विशिष्ट चीज है। यीशु पर विश्वास रखना, यीशु पर विश्वास रखना है।
एक मनुष्य को मसीह पर विश्वास रखने और सच्चे परिवर्तन के अनुभव तक लाने के लिये समय लगता है‚ प्रयास‚ परख‚ प्रार्थनायें और यहोवा परमेश्वर का अनुग्रह लगता है। सच्चे परिवर्तन के अनुभव तक लाने के लिये डॉ हायमर्स और डॉ कैगन तीस सालों से लोगों को परामर्श दे रहे हैं। कुछ बातें इस दौरान जो उन्होंने सीखीं‚ वे इस प्रकार से हैं।
१॰ पहिली बात‚ पास्टर्स को पापी जन की बात सुनना आवश्यक है।
ऐसा मत मान बैठिये — जैसा लगभग सभी इवेंजलिस्ट मान बैठते हैं कि — पापी जन पहिले से ही सुसमाचार जानता है। आप को उसकी सुनना आवश्यक है कि वह किस पर विश्वास करता है। उसकी धार्मिक पृष्ठभूमि क्या है? यीशु के विषय में वह क्या मानता है? क्या वह मसीह को एक आत्मा मानता है? क्या वह सोचता है कि मसीह पहिले से ही उसके हृदय में रहते हैं? क्या वह ऐसा सोचता है कि मसीह उससे गुस्सा है? क्या वह सोचता है कि वह स्वर्ग जायेगा अथवा नहीं? पता कीजिये वह क्या सोचता है? तब उसे सच प्रकट कीजिए और सच्चे मसीहा की ओर ले चलिये।
पापी जन कैसे जीता है? मसीही जीवन जीने की राह में कौनसी बाधाएं हैं — पोर्नोग्रॉफी‚ व्यभिचार‚ या उसके परिवार के सदस्य जो उसका विरोध करते हो? उद्धार पाने के लिये पापियों को स्वयं को सिद्ध बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है — अपने प्रयासों से आप स्वयं को सिद्ध बना भी नहीं सकते हैं। परंतु अगर कोई जानबूझकर और लगातार किसी बड़े पाप में लिप्त रहता है‚ तो वह मसीह पर विश्वास नहीं करता है। बजाय मसीह के‚ वह सिर्फ स्वयं पर ही विश्वास करता है।
अगर आप भटके हुए जन की बात नहीं सुनेंगे‚ तो आप उनकी सहायता भी नहीं कर पायेंगे। पता कीजिए क्यों वह भटका हुआ जन आप से बात करने आया है। वह क्या चाहता है कि यीशु उसके लिये करें? वह क्यों आया? एक व्यक्ति ने कहा कि वह चाहता है कि यीशु उसे नौकरी दे देवें। परंतु यह उद्धार पाना नहीं है! अगर यीशु उसे नौकरी दे भी देते हैं‚ तौभी वह इंसान तो भटका की भटका ही रहेगा। उस व्यक्ति के लिये आवश्यक है कि उसके पाप यीशु के लहू में धुलकर क्षमा हो जायें।
२॰ दूसरी बात‚ भटके हुए जन यीशु मसीह के विषय में गलती करते हैं।
भटका जन यीशु के बारे में क्या विचार रखता है? उससे पूछिये‚ ‘‘अभी यीशु कहां हैं?’’ बाइबल कहती है यीशु स्वर्ग में है और पिता ‘‘यहोवा परमेश्वर के दाहिने हाथ विराजमान हैं’’ (रोमियों ८:३४) । परंतु अधिकतर भटके हुए बैपटिस्ट सोचते हैं कि यीशु उनके हृदय में रहते हैं या वे कोई हवा में विचरण करती आत्मा हैं। आप यीशु के पास नहीं आ सकते जब तक आप नहीं जानेंगे कि वे कहां हैं?
भटके हुए जन से पूछिये‚ ‘‘यीशु कौन हैं?’’ कई लोग सोचते हैं कि वे मात्र एक व्यक्ति हैं इतिहास के महान शिक्षकों में से एक। परंतु वह ‘‘यीशु’’ किसी को भी उद्धार नहीं दे सकते हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि यीशु आत्मा हैं‚ यीशु पवित्र आत्मा हैं। परंतु मसीह एक आत्मा नहीं हैं। यीशु जब मरके जीवित हुए‚ बाइबल उस संदर्भ में कहती है‚
‘‘परन्तु वे घबरा गए और डर गए और समझे कि हम किसी भूत को देखते हैं। उस ने उन से कहा क्यों घबराते हो और तुम्हारे मन में क्यों सन्देह उठते हैं? मेरे हाथ और मेरे पांव को देखो कि मैं वहीं हूं; मुझे छूकर देखो; क्योंकि आत्मा के हड्डी मांस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो। यह कहकर उस ने उन्हें अपने हाथ पांव दिखाए। जब आनन्द के मारे उन को प्रतीति न हुई और आश्चर्य करते थे‚ तो उस ने उन से पूछा; क्या यहां तुम्हारे पास कुछ भोजन है? उन्होंने उसे भूनी मछली का टुकड़ा दिया। उस ने लेकर उन के साम्हने खाया’’ (लूका २४:३७—४३)
वह जब मरके जीवित हुए‚ यीशु ने खाया। एक आत्मा भोजन ग्रहण नहीं करती है। एक आत्मा के मांस और हडडी नहीं होती जैसे मसीह के पास था। और एक आत्मा — यहां तक कि पवित्र आत्मा के पास भी — लहू नहीं है जो पापों को धो सके!
भटके हुए जन से पूछिये‚ ‘‘क्या यीशु आप से नाराज हैं?’’ बहुत से कैथोलिक्स और अन्य लोग सोचते हैं कि हां वे नाराज हैं। वे एक नाराज मसीह में विश्वास रखते हैं — जो नये नियम के यीशु नहीं हैं। बाइबल कहती है यीशु भटके हुए लोगों से प्रेम रखते हैं। उन्होंने क्रूस पर टंगे चोर और जो स्त्री व्यभिचार में पकड़ी गयी थी‚ उनको क्षमा कर दिया था। एक पापी जन‚ उससे नाराज किसी व्यक्ति पर भरोसा कैसे कर सकता है? इन गलतियों को सुधारिये और पापी जन को सच्चे यीशु की ओर उन्हें ले चलिये।
३॰ तीसरी बात‚ पापी जन उद्धार पाने के विषय में गलती करते हैं।
उद्धार पाने के विषय में तीन प्रकार की मुख्य गलतियां पायी जाती हैं। कई पापी जन सोचते हैं कि अगर वे निम्न चीजों में से एक चीज कर लेंगे‚ तो वे उद्धार पा जायेंगे — और अगर वे इनमें से कोई एक चीज कर चुकेंगे‚ तो यह प्रमाण होगा कि उन्होंने उद्धार पा लिया है। मसीह पर विश्वास करने के बजाय‚ ये तीन चीजें हैं जिन पर भटका हुआ जन विश्वास करता है।
शारीरिक क्रियाएं: बैपटिज्म‚ चर्च में आगे जाना‚ हाथ खड़ा करना‚ प्रभुता के प्रति प्रतिबद्धता जतलाना‚ कुछेक पापों को छोड़ देना (यह बाइबल आधारित पश्चाताप नहीं है‚ बाइबल दिमाग की बदली हुई अवस्था के लिये कहती है) या किसी प्रकार की प्रार्थना दोहराना। ये सब मानवीय कार्य हैं जो किसी को उद्धार नहीं दे सकते हैं। बाइबल के वचन हैं‚ ‘‘यह धर्म के कामों के कारण नहीं‚ जो हम ने आप किए‚ पर परमेश्वर की दया के अनुसार हमें नया बनाने के द्वारा हुआ’’ (तीतुस ३:५)।
मानसिक क्रियाएं: सही विचार रखना‚ यीशु और उद्वार के विषय में बाइबल के बताये सत्य पर विश्वास करना। पापी जन अक्सर कहते हैं कि‚ ‘‘मैं मानता हूं कि यीशु मसीह मेरे लिये क्रूस पर मरे।’’ हजारों लोग बाइबल के इस सत्य पर विश्वास करते हैं। शैतान भी विश्वास करता है कि यीशु परमेश्वर यहोवा के पुत्र हैं और जो क्रूस पर मरे और पुनः जीवित हुए। उसने तो यह देखा भी। बाइबल का वचन है‚ ‘‘दुष्टात्मा (शैतान) भी विश्वास रखते, और थरथराते हैं’’ (याकूब २:१९)। एक पापी से अपेक्षा की जाती है कि वह यीशु के विषय में कहे गये सत्य पर नहीं अपितु यीशु पर विश्वास करे।
भावनात्मक क्रियाएं: भावुकता और अनुभव‚ मसीह के बजाय किसी भावना या ‘‘आश्वासन’’ को तलाशना‚ जीवन में अच्छा महसूस करने लगना। भावनाओं में तो उतार चढ़ाव आता रहता है। हरेक के पास अच्छे विचार और भावनायें मौजूद रहती हैं। हरेक के पास बुरे विचार और बुरी भावनायें मौजूद रहती हैं। एक भटका हुआ जन इसे जानता है।उसके पास भी ऐसी भावनाएं होती हैं। अगर आप अपनी भावनाओं पर भरोसा रखेंगे तो आप सोचेंगे कि आप को उद्धार मिल चुका है‚ जबकि भटके हुए ही रहेंगे। फिर भावना का उबाल आयेगा और आप स्वयं को उद्धार पाया हुआ समझेंगे। जीवन पर्यंत आप के भीतर ये भ्रम चलता रहेगा। बड़े पुराने भक्ति गीत के बोल हैं,
मेरी आशा इससे कम पर नहीं टिकी है‚
सिर्फ यीशु के लहू और उनकी धार्मिकता पर।
मैं हियाव नहीं करता करूं भरोसा (भावना‚ दिमाग की अवस्था पर)
पूरा झुक जाता हूं यीशु के नाम पर।
मसीह‚ जो ठोस चटटान हैं‚ उन पर मैं टिकता‚
बाकि सब तो फिसलती हुई रेत का तल हैं;
बाकि सब तो फिसलती हुई रेत का तल हैं।
(‘‘दि सॉलिड रॉक‚’’ रचनाकार एडवर्ड मोट‚ १७९७—१८७४)
इन गलतियों को सुधारियें और भटके हुए मनुष्य को सीधे यीशु की ओर ले चलिये‚ उनके लहू से ही पापों की क्षमा संभव है।
कई गलत धारणायें मसीह का वर्णन करती हैं‚ परंतु वे ‘‘मसीह को प्रमुखता’’ नहीं देती‚ ‘‘उन्हें प्रथम स्थान’’ नहीं देतीं। कुछ लोगों का विचार है कि अगर आप बपतिस्मा ले लेते हैं तो मसीह में आप का उद्धार हो गया है। यहां आपने जल के बपतिस्मा को माध्यम बना दिया‚ मसीह को बपतिस्मे से ‘‘कम’’ स्थान दिया‚ उनको ‘‘बाजू’’ में कर दिया‚ बपतिस्मा प्रमुख हो गया। कई सोचते हैं कि पापांगीकार वाली प्रार्थना बोलने से उद्धार मिल गया‚ प्रार्थना बोलना मसीह पर विश्वास करने के बराबर हो गया। इसलिये वे लोगों से प्रार्थना करवाकर उन्हें उद्धार पाया हुआ गिन लेते हैं‚ यथार्थ में उस मनुष्य का कभी परिवर्तन होता ही नहीं है। इसे कहेंगे कि प्रार्थना दोहराकर मसीह को ‘‘दरकिनार’’ कर दिया‚ उन्हें ‘‘प्रमुख’’ स्थान नहीं दिया। बाइबल का कथन याद रखें ‘‘मसीह यीशु स्वयं’’ सिरे का पत्थर हैं (इफिसियों २:२०) न कि पापंगीकार की प्रार्थना के शब्द। भटके हुए जन को बताइये कि सीधे यीशु पर भरोसा करे।
मैंने देखा है कि लोग एक गलती से दूसरी गलती करते जाते हैं। सबसे पहिले वे सोचते हैं कि उनके मन में उद्धार पाने की भावना पैदा होगी। अगली बार कहेंगे‚ ‘‘ऐसी कोई भावना मेरे अंदर पैदा ही नहीं हुई। पर मै मानता हूं कि मसीह मेरे लिये क्रूस पर मरे।’’ पापी जन पहिले भावना को खोजने की गलती करता है‚ दूसरी गलती‚ वह यीशु के बारे में कहे गये सत्य पर विश्वास रखकर करता है। पापी जन ने जिन झूठों में शरण ले रखी हो‚ उसे उनमें से बाहर निकालिये और सीधे मसीह की ओर संकेत कीजिए।
४॰ चौथी बात‚ पापियों को अपने हृदय में पाप का गहरा बोध होना चाहिए।
एक पापी के लिये आवश्यक है कि उसके अंर्तमन में पाप कचोट पैदा करें। हर कोई मानता है कि वे किसी रूप में पापी हैं। हरेक जन स्वीकार करता है कि वह सिद्ध नहीं है। उससे कुछ न कुछ गलतियां जरूर हुई हैं। परंतु मैं इन गलतियों की बातें नहीं कर रहा हूं।
मैं किसी वास्तविक या विशेष पाप के बोध के बारे में भी बात नहीं कर रहा हूं। हां‚ पापी जन ने बहुत सारे पाप कर रखे होते हैं। उन पापों के बारे में विचार करना आप को उद्धार नहीं दिला सकता। अगर आप पाप विशेष की सूची में से होकर जायें तो सोचने लगते हैं कि अरे‚ ‘‘मैं तो ये सब चीजें नहीं कर रहा हूं‚ अर्थात मैं तो उद्धार पाया हुआ इंसान हूं।’’ या उसका विचार होता है‚ ‘‘मैं यह करना बंद कर दूंगा‚ तब तो प्रमाणित हो जायेगा कि मैंने उद्धार पा लिया है।’’
पाप तो इन बातों से भी गहरा जाता है। हर कोई भीतर से पापी है‚ पापी स्वभाव आदम से ही वंशानुगत मिला है। हरेक के भीतर एक दुष्ट हृदय है। बाइबल कहती है‚ ‘‘मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है‚ उस में असाध्य रोग लगा है’’ (यिर्मयाह १७:९)। हर पापी भीतर से स्वार्थी होता है। हरेक भटका हुआ जन हृदय में परमेश्वर यहोवा का विरोधी होता है। यह अधिक गहरी बात है‚ बजाय उन विशेष पापों के जो वह करता या नहीं करता है। जो इंसान के भीतर है‚ वही बाहर निकल कर आता है। जो कुछ एक पापी करता है‚ उससे कही गहरी बात‚ उसका हृदय‚ उसका संपूर्ण अस्तित्व पापी और दोषपूर्ण है। पापी को अपने स्वयं के अंर्तमन के पापों का कचोटा जाना आवश्यक है। जब आप प्रचार करते हैं‚ या संदेश के पश्चात बात करते हैं तो आप के पास आये भटके हुए जन के‚ अंर्तमन के पाप की ओर संकेत कीजिए।
एक पापी मनुष्य अपने को स्वयं परिवर्तित नहीं कर सकता जैसे एक बकरी स्वयं को भेड़ में परिवर्तित नहीं कर सकती। तो इसका अर्थ हुआ कि वह भटका हुआ जन है और स्वयं को उद्धार नहीं दे सकता। वह स्वयं से यीशु पर विश्वास नहीं ला सकता। केवल परमेश्वर यहोवा ही उसे यीशु के पास खींच कर ला सकते हैं। मसीह ने कहा था‚ ‘‘कोई मेरे पास नहीं आ सकता‚ जब तक पिता‚ जिस ने मुझे भेजा है‚ उसे खींच न ले’’ (यूहन्ना ६:४४)। इसे ‘‘सुसमाचार का शिकंजा’’ कहा जाता है — पापी को मसीह के पास आना आवश्यक है। परंतु ऐसा उसके किसी प्रयासों या कर्म द्वारा संभव नहीं। बाइबल कह चुकी है‚ ‘‘उद्धार यहोवा ही से होता है’’ (योना २:९)। पापी जन को यशायाह के समान कहना चाहिये‚ ‘‘हाय! हाय! मैं नाश हूआ’’ (यशायाह ६:५)। आप के पास जो भटका हुआ जन आया है‚ उसे उसके हृदय के पापों की तरफ इशारा कीजिए। उसे बताइये‚ उसे परमेश्वर यहोवा की दया की आवश्यकता है। तभी वह मसीह के पास आ सकता है।
५॰ पांचवीं बात‚ अगर पापी को उसके अंर्तमन में पाप कचोटता है तो उसे मसीह के पास लाने का प्रयास कीजिए।
जो कोई मुझसे बात करने आता है‚ मैं हरेक को मसीह के पास लाने की चेष्टा नहीं करता हूं! कुछ लोग तो केवल जिज्ञासु होते हैं। वे नहीं चाहते हैं कि उनके पाप क्षमा हों। कुछ लोग इसलिए आते हैं क्योंकि उन्होंने दूसरों को आते देखा है। किसी को तो उनके पापों का कोई बोध भी नहीं होता‚ न परमेश्वर यहोवा द्वारा दी गयी कोई आत्मिक जाग्रति। जो केवल मसखरा पन कर रहे हैं‚ उनको मसीह पर विश्वास लाने मे सहायता देने के लिये प्रार्थना करना‚ उनके झूठे परिवर्तन को जन्म देगा। तो ऐसा कब प्रतीत होता है कि एक इंसान मसीह पर विश्वास लायेगा?
पापी जन को ‘‘अपने आप से थक चुका’’ होना चाहिये‚ जैसा हमारे चर्च में एक लड़की ने कहा था। ऐसा जन ‘‘अपने प्रयासों से हार चुका’’ हो। वह ‘‘स्वयं के अस्तित्व को समाप्त’’ समझने लगा हो। यशायाह ऐसे ही अपने अस्तित्व को धिक्कारने की अवस्था तक पहुंच चुका था‚ ‘‘हाय! हाय! मैं नाश हूआ’’ (यशायाह ६:५)। ऐसी अवस्था में मसीह पर विश्वास रखना आसान होता है, जब मनुष्य कुछ सीखने का प्रयास नहीं कर रहा होता है। उसे केवल मसीह चाहिये होते हैं, जो उसे बचा लें, उद्धार दे देवें।
पापी इंसान को सीधे मसीह पर भरोसा रखना चाहिये। उसे मार्गदर्शन देंवे कि सीधे प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास रखें और उनके लहू में अपने पापों की क्षमा को प्राप्त करें। आप ऐसे व्यक्ति के साथ प्रार्थना कर सकते हैं ‘‘यीशु, मैं आप पर विश्वास करता हूं। मेरे पापों को अपने लहू से धो दीजिए।’’ या फिर कोई प्रार्थना न हो, सीधे मसीह की ओर ऐसा इंसान मुड़ जाये और पापों की क्षमा उनके लहू में प्राप्त कर लेवे। पापी जन को प्रार्थना करने की भी आवश्यकता नहीं। पापी जन को मन में यीशु की तस्वीर बनाने की भी आवश्यकता नहीं। ‘‘शब्दों’’ को सही निकलने की आवश्यकता नहीं है। कुछ लोग प्रार्थना याद करते हैं — उसके शब्द दोहराते हैं — ‘‘शब्द’’ सही हो जाते हैं, मसीह पर विश्वास करना पीछे छूट जाता है। क्रूस पर टंगे चोर ने किसी प्रकार के जमे हुए शब्द नहीं कहे थे। उसने सिर्फ इतना कहा‚ ‘‘हे यीशु‚ जब तू अपने राज्य में आए‚ तो मेरी सुधि लेना’’ (लूका २३:४२) । क्योंकि वह जानता था कि वह एक आशारहित पापी था, वह सीधे मसीह की ओर मुड़ा। कितनी सरल सी बात! प्रभु ने भी तुरंत उसे उत्तर दिया, ‘‘तू आज ही मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा’’ (लूका २३:४३)। शब्दों की बजाय मसीह पर विश्वास करना अधिक महत्वपूर्ण है!
६॰ छटवीं बात‚ जब आप भटके हुए जन से बात कर चुके हों‚ तो उससे कुछ प्रश्न पूछिये।
उससे पूछिये‚ ‘‘क्या उसने यीशु पर विश्वास किया है?’’ अगर वह ‘‘नहीं’’ कहता है‚ तो उससे फिर बात कीजिए। अगर वह कहता है ‘‘हां’’ तो उससे पूछिये कि कब उसने यीशु पर विश्वास किया। अगर वह कहता है कि ‘‘मैंने अपने सारे जीवन काल यीशु पर विश्वास किया’’ या ‘‘मैं लंबे समय से उन पर विश्वास करना आया हूं‚’’ तो यह मनुष्य परिवर्तित नहीं हुआ है।
अगर वह कहता है‚ ‘‘मैंने अभी मसीह पर विश्वास किया है।’’ उससे पूछिये उसने किस प्रकार ऐसा किया। उसके स्वयं के शब्दों में विश्वास की प्रक्रिया का विवरण सुनिये। अगर वह सही मायने में परिवर्तित नहीं होता हैं‚ तो वह चर्च में किसी के द्वारा दी गयी गवाही में बोले गये ‘‘शब्दों को हूबहू याद’’ कर लेता हैं‚ दोहरा देता हैं। अपने विश्वास में एक पापी क्या करता है? क्या वह मसीह के बारे में कुछ विश्वास करता है? क्या वह किसी भावना पर ही विश्वास कर लेता है? या वह सीधे मसीह पर विश्वास करता है?
उससे पूछिये‚ ‘‘यीशु मसीह ने तुम्हारे लिये क्या किया?’’ अगर वह ऐसा नहीं कहता है कि मसीह ने उनके लहू से मेरे पापों को धो दिया‚ तो वह व्यक्ति अपने विचार‚ भावनाओं या अच्छाई पर ही टिका हुआ है‚ वह परिवर्तित नहीं हुआ है!
उससे पूछिये‚ ‘‘तुम आज मर जाते हो तो स्वर्ग जाओगे या नर्क?’’ अगर वह कहता है ‘‘स्वर्ग‚’’ तो पूछिये क्यों। वह परमेश्वर यहोवा को क्या कहेगा‚ अगर वे उसे स्वर्ग में प्रवेश देने के लिये पूछते हैं? अगर व्यक्ति अपने अच्छे कार्यो का वर्णन करता है या मसीह और उनके लहू के अतिरिक्त कुछ और बात कहता है‚ तो व्यक्ति परिवर्तित नहीं हुआ है! तब उससे पूछिये‚ ‘‘आज से एक साल बाद अगर तुम्हारे मन में कोई बुरा विचार आया‚ और तुम मर गये, तो तुम कहां जाओगे।’’ वह कहेगा‚ ‘‘नर्क‚’’ तो वह व्यक्ति अपने कार्यो पर ही टिक रहा है‚ न कि मसीह पर। तब आप उससे पूछ सकते हैं‚ ‘‘आज से एक साल बाद अगर तुम चर्च आना छोड़ देते हो और कभी लौट कर नहीं आते हो और एक महिला (या पुरूष) के साथ बिना विवाह के रहना आरंभ कर देते हो‚ उसके साथ सैक्स करते हो‚ प्रतिदिन नशीली दवाएं लेते हो‚ तो क्या तुम मसीही जन बने रहोगे?’’ अगर वह कहता है ‘‘हां‚’’ तो फिर उसने पाप की समस्या को कभी समझा ही नहीं‚ यह व्यक्ति अभी भी भटका हुआ ही है।
‘‘मैंने यीशु पर विश्वास किया‚’’ इससे बढ़कर यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि उससे विवरण सुनें कि विश्वास के उन क्षणों में उसने यीशु के साथ क्या किया। आप उसके विश्वास के क्षण सुनना चाहते हैं न कि उसके जीवन का पूरी कहानी‚ या हर वह बात जो उस दिन घटी। मैं किसी के विशेष विचारों या भावनाओं पर नहीं जाता हूं। परंतु उस क्षण में‚ उसके पाप और पापों की क्षमा सीधे मसीह पर विश्वास रखने के द्वारा संपन्न हो‚ मैं यह देखता हूं। उस अनुभव का वर्णन अलग अलग लोगों में अलग अलग प्रकार का हो सकता है। उस व्यक्ति के कहने में‚ मैं ईमानदारी देखता हूं।
अगर उस व्यक्ति ने कुछ गलती की हो‚ उसे दुरस्त कीजिए और फिर से उससे बात कीजिए। परंतु वह व्यक्ति अगर बार बार उस गलती को दोहराता हो‚ तो फिर वह गंभीर नहीं है‚ उद्धार पाने के लिए‚ परिवर्तित होने के लिए। जिनकों यहोवा परमेश्वर खींचते हैं‚ वे संदेशों को और आप की सलाह को सुनेंगे। जो संदेश नहीं सुनेंगे‚ वे मन भी नहीं फिरा सकेंगे।
निराश मत होइये‚ आप के कहने के उपरांत भी‚ व्यक्ति ने मन नहीं फिराया है तो। कुछ लोग पहिली बार में सुसमाचार सुनकर मन फिरा लेते हैं और अधिकतर लोग परिवर्तित नहीं हो पाते हैं। मसीह पर विश्वास लाने के पूर्व‚ कई लोगों को बार बार आराधना भवन आना पड़ता है।
एक व्यक्ति को बार बार परखिये। तुरंत ही लोगों को बपतिस्मा मत दीजिए। उनसे कम से कम एक साल ठहरने को कहिये। और आज के चर्चेस की अविश्वास की दशा को देखते हुए तो उन्हें दो साल तक रूकने को कहिये। शायद दो या तीन साल अच्छे रहेंगे। यह समय आप को उनके ईमानदार विश्वास की परख के लिये पर्याप्त होगा। उस दौरान आप उस व्यक्ति को तरह तरह से परख सकते हैं। आप चर्च आराधना के बाद — उनसे उनके जीवन की गवाही सुन सकते हैं। आप काफी सप्ताह या महिनों के बाद उनसे पूछ सकते हैं। जिन्होंने मसीह पर विश्वास नही किया होगा‚ वे अपनी ‘‘गवाही’’ को भूल चुके होंगे‚ जो उन्होंने मन से बनाकर बोली होगी और यहीं वे गलती कर जायेंगे। वे केवल इस जांच को ‘‘उत्तीर्ण’’ कर जाना चाहते हैं या अनुमोदन चाहते हैं‚ किंतु वे यीशु पर विश्वास नहीं करते हैं। कुछ लोग अपने कहे गये शब्दों को याद कर लेंगे और जब आप पूछेंगे‚ तो वही दोहरा देंगे। परंतु जब आप उनसे तरह तरह से पूछेंगे‚ तो वे गोलमाल उत्तर देंगे‚ यह सिद्ध करेगा कि उन्हें यीशु पर विश्वास करने का व्यक्तिगत अनुभव नहीं हुआ है।
उनके रवैये और आचरण को देखिये। एक व्यक्ति जो आप का चर्च छोड़ देता है और आप की सुनने से इंकार करता है‚ यह इस बात को प्रकट करता है कि वह अपने पाप के विषय में गंभीर था ही नहीं और उसने मसीह पर विश्वास नहीं किया। एक व्यक्ति जो लगातार चर्च और मसीही जीवन के प्रति बुरा रवैया रखता है‚ दर्शाता है कि वह पाप के बारे में गंभीर नहीं है और मसीह पर उसने विश्वास नहीं किया।
७॰ सातवीं बात‚ परामर्श देने वाली सेवा द्वारा जारी इस सही परीक्षण को याद रखिये।
परामर्श देने वाली सेवा द्वारा की जाने वाली सही जांच कहती है: क्या आप एक व्यक्ति को कह सकते हैं कि उसने मसीह पर विश्वास नहीं किया और उस दिन वह परिवर्तित नहीं हुआ था? क्या आप एक व्यक्ति को कह सकते हैं कि पुन: वह आप के पास आये और आप से उद्धार पाने के विषय में बातें करें? मैं किसी ऐसे पास्टर्स को नहीं जानता जो ऐसा कर सकता है। इसी लिये हमारे चर्च भटके हुए लोगों से भरे हुए हैं‚ जिसमें संडे स्कूल टीचर्स‚ डीकंस‚ पास्टर्स की पत्नियां और स्वयं पास्टर्स सम्मिलित हैं। पास्टर्स के आमंत्रण का जो उत्तर देते हैं‚ उन लोगों के साथ प्रार्थना किये जाने पर बल दिया जाता है। प्रार्थना इसलिए करते हैं ताकि वे बपतिस्मों के आंकड़ों की गणना कर सकें। जितनों को वे बपतिस्मा देते हैं‚ लगभग उनमें से कोई भी सच्चे रूप में मसीह पर विश्वास रखने वाला नहीं होता है। वे चर्च के प्रति भी विश्वसनीय नहीं होते हैं क्योंकि उन्होंने पुर्नज्जीवन पाया ही नहीं है। ये लोग ‘‘धर्मत्यागी’’ नहीं हैं। ये भटके हुए हैं क्योंकि पास्टर्स ने कभी समय ही नहीं निकाला कि उनकी परख करे कि वास्तव में उन्होंने मन फिराया है या नहीं। अगर आप किसी व्यक्ति को कह सकें कि वह अभी तक भटका हुआ ही है और उसे दुबारा उसके उद्धार पाने के विषय में परामर्श की आवश्यकता है‚ तो यह आपकी सेवा का सच्चा परीक्षण होगा। क्या आप उन लोगों के समान हैं ‘‘जिन्हें मनुष्यों की प्रशंसा‚ परमेश्वर की प्रशंसा से अधिक प्रिय लगती थी’’? (यूहन्ना १२:४३)। या आप सच बोलते हैं भले ही लोग पसंद करें अथवा नहीं?
यह कहने का एक तरीका है: क्या आप सच्चे परिवर्तन में विश्वास करते हैं — मसीह में एक सच्चा विश्वास जो एक सच्चे मसीही जीवन को जन्म देता है? अगर आप लोगों के साथ प्रार्थना करने पर बल देते हैं‚ हाथ खड़े करवाते हैं‚ उनसे कार्ड पर हस्ताक्षर करवाते हैं‚ तो आप ‘‘निर्णयवादी’’ हैं। आप मनुष्यों की आत्माओं की देखभाल नहीं कर रहे हैं‚ जो परमेश्वर यहोवा ने आप के पास भेजी हैं।
मैं आशा करता हूं कि आप में से कुछ पास्टर्स सच्चे परिवर्तन पर विश्वास रखते हैं। मेरी उम्मीद है कि आप में से कुछ‚ प्रत्येक व्यक्ति के साथ समय बिताने की आवश्यकता को समझते हैं‚ ताकि यह तसल्ली कर सकें कि वह जन मसीह पर विश्वास करता है या नहीं‚ उसने पुर्नज्जीवन पाया है या नहीं। एक विश्वसनीय पास्टर ऐसा ही करता है। विश्वसनीय मेषपाल अपनी भेड़ों की चिंता करता है। मैं उम्मीद करता हूं कि आप अपने उत्तम प्रयास करेंगे यह देखने के लिये कि आप के लोगों ने सच्चे रूप में मसीह पर विश्वास किया और नया जन्म पाया है।
क्यों मेडीकल साइंस में प्रसुति विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है जो विस्तारपूर्वक बतायें कि बच्चे का जन्म किस तरह होगा? क्या हो अगर सब एक जैसी प्रक्रिया करने लगे‚ हाथों को भी न धोवें या जिनकों पैरों की ओर से जन्म लेने वाली प्रसूति के बारे में नहीं पता हो? अगर हम जिस बेपरवाही से मनुष्यों की आत्माओं की देखभाल करते हैं‚ ऐसे ही प्रसूति वाली महिला या बच्चे की देखभाल करें‚ तो हजारों बच्चे मर जायेंगे — क्योंकि वर्तमान में हजारों हजार आत्माएं‚ हमारे बेपरवाह होने से अनावश्यक रूप में नर्क में मरती हैं क्योंकि हमने पर्याप्त समय ही नहीं निकाला‚ उनकी जांच करने का‚ कि वे सही मायने में यीशु पर विश्वास रखती हैं या नहीं। लोगों को बाइबल स्कूल या सेमनरियों में ऐसी परख करना नहीं सिखाया — इन स्थानों पर ये बातें बिल्कुल ही नहीं सिखायी जाती है!!!
मैं ओसवाल्ड जे स्मिथ के गीत ‘‘देन जीजस केम’’ के कुछ शब्द पढ़ने जा रहा हूं‚ इस गीत का संगीत होमर रोडहीवर ने दिया था। जब यीशु आप के जीवन में आते हैं‚ उनके लहू से वे आप के सारे पापों को धो देते हैं; जो लहू उन्होंने क्रूस पर बहाया‚ वह आज भी उपलब्ध है आप के पापों को धोने के लिये। और यीशु मरके जीवित हो उठे कि आप को शाश्वत जीवन प्रदान करें। केवल यीशु पर विश्वास करें और वे आप के पापों को क्षमा करेंगे और आप को शाश्वत जीवन देंगे। मैं आशा करता हूं आप वापस आयेंगे और हमारे साथ ६:१५ पर रात्रि भोजन ग्रहण करेंगे।
डॉ हायमर्स एक सुसमाचारिय संदेश देंगे जिसका शीर्षक है‚ ‘‘एक नेत्रहीन युवक को यीशु ने आंखों की रोशनी लौटायी।’’ आज संध्या ६:१५ पर अपना आना सुनिश्चित कीजिए‚ डॉ हायमर्स के संदेश के पश्चात हम रात्रि भोजन ग्रहण करेंगे।
एक वह जो बैठा था राजपथ के किनारे भिक्षा के लिये‚
आंखों की रोशनी नहीं थी‚ नहीं देख पाता था कुछ भी नेत्रों से।
वह शिकंजों में था अपने चिथड़ों के‚ कांपता था परछाइयों से
तब यीशु आये और उसका अंधेरा दूर भाग गया।
जब यीशु आते हैं‚ शैतान की सामर्थ टूट जाती है;
जब यीशु आते हैं‚ आंसू बह निकलते हैं‚
वह दुख का हरण कर लेते और भर देते हैं जीवन प्रताप से‚
सब कुछ बदल जाता है जब यीशु ठहरने के लिये आ जाते हैं।
घर वालों और मित्रों और दुष्टात्माओं ने उसे बाहर निकाला‚
कब्रों के बीच परेशानी में वह रहने लगा;
खुद की हानि कर लेता वह जब दुष्टात्मा उसे सताती‚
तब यीशु आये और उसे दुष्टात्मा से मुक्त किया।
जब यीशु आते हैं‚ शैतान की सामर्थ टूट जाती है;
जब यीशु आते हैं‚ आंसू बह निकलते हैं‚
वह दुख का हरण कर लेते और भर देते हैं जीवन प्रताप से‚
सब कुछ बदल जाता है जब यीशु ठहरने के लिये आ जाते हैं।
इसलिये मनुष्य आज यीशु को पाते हैं सामर्थवान‚
वे अपने कामना‚ लालसा और पाप पर नहीं कर सकते काबू;
उनके टूटते दिलों ने उदासी और अकेलेपन में ला छोड़ा है‚
तब यीशु आये और स्वयं उनके भीतर बसेरा किया।
जब यीशु आते हैं‚ शैतान की सामर्थ टूट जाती है;
जब यीशु आते हैं‚ आंसू बह निकलते हैं‚
वह दुख का हरण कर लेते और भर देते हैं जीवन प्रताप से‚
सब कुछ बदल जाता है जब यीशु ठहरने के लिये आ जाते हैं।
(‘‘देन जीजस केम’’ ओसवाल्ड जे स्मिथ का गीत‚ १८८९—१९८६;
संगीत होमर रोडहीवर ने दिया‚ १८८०—१९५५)
अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व मि बैंजामिन किकेंड ग्रिफिथ द्वारा एकल गान:
‘‘देन जीजस केम’’ (ओसवाल्ड जे स्मिथ का गीत‚ १८८९—१९८६;
संगीत होमर रोडहीवर ने दिया‚ १८८०—१९५५)
रूपरेखा कैसे एक आत्मा को मसीह के पास लाना — HOW TO LEAD A SOUL TO CHRIST – डॉ सी एल कैगन द्वारा लिखा संदेश १॰ पहिली बात‚ पास्टर्स को पापी जन की बात सुनना आवश्यक है। २॰ दूसरी बात‚ भटके हुए जन यीशु मसीह के विषय में गलती करते हैं‚ ३॰ तीसरी बात‚ पापी जन उद्धार पाने के विषय में गलती करते हैं‚ तीतुस ३:५; ४॰ चौथी बात‚ पापियों को अपने हृदय में पाप का गहरा बोध होना चाहिए‚ ५॰ पांचवीं बात‚ अगर पापी को उसके अंर्तमन में पाप कचोटता है तो उसे ६॰ छटवीं बात‚ जब आप भटके हुए जन से बात कर चुके हों‚ तो उससे कुछ ७॰ सातवीं बात‚ परामर्श देने वाली सेवा द्वारा जारी इस सही परीक्षण को याद रखिये‚ |