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उन भूत प्रेत पर जयवंत होना जो हमें कमजोर बनाते हैं –
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आज रात्रि मैं दुष्टात्माओं और शैतान के उपर बोलने जा रहा हूं। और साथ ही जैसा डॉ जे आय पैकर कहते हैं ‘‘आज के चर्चेस की निराशाजन्य हालात के उपर कहूंगा।" और उस कारण को स्पष्ट करूंगा कि क्यों अमेरिका में १८५९ के बाद से आत्मिक जाग्रति नहीं आयी।मैं यहां आज‚ डॉ मार्टिन ल्योड जोंस के संदेश की रूपरेखा के उपर निर्भर होकर बोल रहा हूं।
‘‘जब वह घर में आये‚ तो उनके चेलों ने एकान्त में उन से पूछा‚ हम उसे क्यों न निकाल सके उन्होंने उन से कहा‚ कि यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के किसी और उपाय से निकल नहीं सकती" (मरकुस ९:२८—२९)
मैं इन दो पदों को जो अमेरिका और पश्चिमी जगत के चर्चेस के ‘‘निराशाजन्य हालात" के लिये अत्यंत आवश्यक है — संदेश में लूंगा‚ जिसमें कुछ बिंदु हमारे चर्च के लिये भी जानना हितकर है।
चर्चेस में ‘‘आत्मिक जाग्रति" होना चाहिये यह सुनकर‚ तो लोग मुंह घुमा लेते हैं। इस बारें में सुनना भी गंवारा नहीं। वे क्यों करते हैं ऐसा‚ इसके पीछे शैतानी कारण है! आत्मिक जाग्रति फैले‚ शैतान की मंशा नहीं। नहीं चाहता वह कि इस विषय में लोग सोचें भी। तो मेरी विनती है कि सारे चर्चेस और अपने चर्च के लिये अत्यंत आवश्यक इस विषय पर जब मैं प्रचार करूं‚ तो आप इसे ध्यान से सुनें।
यह ऐसा विषय है कि गहराई से हममें से प्रत्येक की इसमें रूचि होना चाहिये। जब तक हम चर्चेस की ऐसी हालात के लिये बहुत चिंतित नहीं होंगे‚ तब तक हम बहुत दयनीय क्रिश्चियन समझे जाएंगे। वास्तव में देखा जाए तो अगर इस विषय में आप की रूचि नहीं है‚ तो फिर आप को खुद से प्रश्न करना चाहिये कि आप सच्चे क्रिश्चियन है भी या नहीं! अगर आप को हमारे चर्च और अन्य चर्चेस में आत्मिक जाग्रति लाने के प्रति अरूचि है‚ तो निश्चित आप जोशपूर्ण क्रिश्चियन नहीं हैं! फिर दोहराता हूं‚ सही अर्थो में आत्मिक जाग्रति चर्च में आना एक ऐसा विषय होना चाहिए जिसमें हम सब गहरी रूचि लेवें। तो चलिये बाइबल की पुस्तक मरकुस में घटी इस घटना का विश्लेषण आरंभ किया जाये। अत्यंत महत्वपूर्ण घटना थी ये। क्योंकि पवित्र आत्मा ने बहुत सावधानी पूर्वक इस घटना का विवरण बाइबल की सुसमाचार नाम से प्रसिद्व चार पुस्तकों में से तीन में दिया है। पुस्तक हैं‚ मत्ती‚ मरकुस और लूका। मैं ये दो पद मरकुस की पुस्तक से पढ़ रहा हूं। अध्याय के आरंभिक हिस्से में लेखक मरकुस बताता है कि प्रभु यीशु मसीह अपने तीन शिष्यों पतरस‚ याकूब और यूहन्ना को लेकर उस पर्वत पर चढ़े‚ जिस पर आगे चलकर उनका रूप परिवर्तित हो जाता है। शिष्य वहां एक अदभुत घटना के गवाह बनते हैं। किन्तु जब वे पर्वत से नीचे उतर कर आते हैं‚ तो देखते हैं कि यीशु के शेष शिष्यों को एक बड़ी भीड़ घेर कर बहस कर रही होती है! तीनों शिष्य जो प्रभु यीशु के साथ नीचे उतर कर आये‚ समझ नहीं पाये कि यह सब क्या चल रहा है। भीड़ में से एक व्यक्ति निकलकर प्रभु यीशु के पास पहुंचा और कहने लगा कि उसका पुत्र दुष्टात्मा ग्रसित है वह उसे जहां कहीं पकड़ती है‚ उठा कर पटक देती है और वह मुंह से झाग निकालता और अपने दांत भींचता है। आगे उस व्यक्ति ने कहा‚ ‘‘मैं ने चेलों से कहा कि वे उसे (दुष्टात्मा को निकाल दें) परन्तु वे निकाल न सके" (मरकुस ९:१८) । उन्होंने प्रयास किया परन्तु विफल रहे।
यीशु ने उस व्यक्ति से कुछ प्रश्न पूछे। तब अत्यंत शीघ्रता से उस बालक के भीतर से दुष्टात्मा को बाहर निकाल दिया। तब मसीह अपने घर चले गये और शिष्य भी पीछे पीछे उनके साथ गये। घर पहुंचकर शिष्यों ने प्रभु यीशु से पूछा‚ ‘‘हम उसे क्यों न निकाल सके?" (मरकुस ९:२८) उन्होंने तो कड़े प्रयास किये थे। इसके पहिले कई स्थानों पर वे सफल भी हुए थे। परन्तु इस बार तो वे बिल्कुल ही असफल रहे। और मसीह ने तो सिर्फ इतना भर कहा‚ ‘‘इस लड़के में से बाहर निकल आ" और वह लड़का अच्छा हो गया। उन्होंने पूछा‚ ‘‘हम उसे क्यों न निकाल सके?" मसीह ने उत्तर दिया‚ ‘‘यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के नहीं निकल सकती" (मरकुस ९:२९)।
इस घटना का प्रयोग अब मैं आज के चर्चेस की हालत दिखाने के लिये करूंगा। घटना में जो बालक है‚ वह आज के युग के युवा हैं। शिष्य हमारे आज के चर्च को प्रस्तुत करते हैं। क्या यह साफ जाहिर नहीं है कि हमारे आज के चर्चेस युवाओं की आत्मिक उन्नति करने में विफल हो रहे हैं? जार्ज बारना का सर्वे बताता है कि हमारे अपने ही चर्च में बढ़े हुए ८८ प्रतिशत युवा को हम खोते जा रहे हैं। और संसार में से बहुत ही कम युवाओं को हम आत्मिक जाग्रति का मार्ग दिखा पा रहे हैं। चर्चेस शुष्क हो गये हैं और साथ ही तेजी से असफल साबित हुए हैं। सदर्न बैपटिस्ट समूह प्रति वर्ष १००० चर्चेस को खो रहा है! यह उनका खुद का आंकड़ा है! हमारे स्वतंत्र चर्च भी कुछ अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं। इन आंकड़ों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि सैकड़ों साल पहिले चर्च जिस प्रकार मजबूत हुआ करते थे‚ अब वह स्थिति घट कर आधी भी नहीं रही। यह देखकर ही डॉ जे आय पैकर ने ‘‘आज के चर्च की निराशाजन्य हालत" के बारे में वक्तव्य दिया था।
हमारे चर्चेस‚ घटनाक्रम के शिष्यों के समान ही‚ अपना पूरा प्रयास कर रहे हैं‚ तौभी सदस्यों की आत्मिक उन्नति करने की दिशा में विफल हैं। बुरी तरह से विफल‚ जैसे शिष्य उस बालक को ठीक करने में विफल सिद्ध हुए। अब यह प्रश्न हमें पूछना चाहिये‚ ‘‘क्यों हम उस दुष्टात्मा को नहीं निकाल सके?" इस असफलता का कारण क्या है?
मरकुस के नवें अध्याय में मसीह भी इसी प्रश्न का उत्तर देने में तत्पर हैं। उनका उत्तर उस समय जितना प्रसंगोचित था‚ आज भी उतना सटीक सिद्ध होता है।
‘‘जब वह घर में आये‚ तो उनके चेलों ने एकान्त में उन से पूछा‚ हम उसे क्यों न निकाल सके उन्होंने उन से कहा‚ कि यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के किसी और उपाय से निकल नहीं सकती" (मरकुस ९:२८—२९)
इस पद को तीन सरल बिंदुओं में बांटा जा सकता है।
१॰ पहिला बिंदु है ‘‘यह जाति।"
वे क्यों दुष्टात्मा को नहीं निकाल सके? मसीह ने कारण स्पष्ट किया‚ ‘‘यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के किसी और उपाय से निकल नहीं सकती।" उन्होंने उन्हें बताया ऐसे हर मामले एक दूसरे से अलग होते हैं। इसके पहिले हमने पढ़ा है कि मसीह ने उन शिष्यों को प्रचार करने और दुष्टात्मा निकालने के लिये भेजा था — और वे प्रचार करने गये और अनेक दुष्टात्माएं भी निकाली। वे आनंद मनाते हुए लौटे। उनका कहना था कि दुष्टात्माएं भी उनके अधीन थीं।
तो जब यह मनुष्य अपने पुत्र को शिष्यों के पास लेकर आया‚ उन्होंने पूर्व के मामलों के समान‚ उस बालक में से भी उसी रीति से दुष्टात्मा निकालने की चेष्टा की। हांलाकि इस बार दुष्टात्मा नहीं निकाल सके। सारे प्रयासों को उपयोग में लाने के पश्चात‚ वह बालक दुष्टात्माग्रस्त ही बना रहा। वे आश्चर्य करते रहे कि उनकी सामर्थ कहां चली गयी। तब मसीह ने ‘‘इस जाति की" कहकर इसका सत्य उजागर किया। ‘‘इस जाति की" दुष्टात्मा और अभी तक जिन्हें वे निकालते आये‚ उनमें अंतर था।
एक तरह से समस्या दोनों रूप में समान है। चर्च का कार्य है युवाओं को शैतान और उसकी दुष्टात्माओं के बंधन से मुक्त करवाना‚ उन्हें‚ ‘‘अंधकार से ज्योति की ओर और शैतान के अधिकार से परमेश्वर की ओर लेकर आना" (प्रेरितों के कार्य २६:१८) यह बात हर उम्र‚ हर सभ्यता के उपर लागू होती है। चर्चेस को हमेशा ही शैतान और दुष्टात्माओं का सामना करना पड़ता है। दुष्टात्मों के प्रकार में अंतर पाया जाता है। वे सब एक जैसी नहीं होती हैं। शिष्य पौलुस का कथन इस संदर्भ में देखिये ‘‘क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में है (इफिसियों की पत्री ६:१२)। उन्होंने दुष्टात्माओं के अलग अलग स्तर बताये हैं‚ उनमें से एक है नेतृत्वकर्ता शैतान स्वयं‚ जिसे‚ ‘‘आकाश के अधिकार का हाकिम" कहा जाता है (इफिसियों २:२)। शैतान अपने बल सहित सक्रिय है। उसके अधीनस्थ दूसरी निम्न शक्तियों वाली दुष्टात्माएं हैं। शिष्य इन निम्न शक्तियों वाली दुष्टात्माओं को तो आसानी से निकाल सकते थे। परन्तु यहां इस लड़के में तो बड़े बल वाली दुष्टात्मा का वास था। ‘‘इस प्रकार की जाति वाली" दुष्टात्मा को वश में करना एक बड़ी समस्या ही थी। तो पहिली बात यह जानना है कि यह ‘‘किस प्रकार की दुष्टात्मा" है‚ जिसे आज हमें भी अपने अधीन कर निकाल दूर करना है।
‘‘इस प्रकार की दुष्टात्मा" के ऊपर विचार करें तो मुझे आश्चर्य होगा कि इस जमाने के अनेकों पास्टर्स अगर यह महसूस भी करते हों कि हम कोई आत्मिक युद्ध लड़ रहे हैं। मैं निश्चित जानता हूं कि वे कभी विचार भी नहीं करते हैं कि उनका कार्य एक संघर्ष है‚ शैतान और उसकी आत्माओं के विरूद्ध। सेमनरी और बाइबल कॉलेज जिन पास्टर्स को तैयार करते हैं‚ वे भी मानवीय पद्धति सीखने पर ही बड़ा जोर देते हैं। परन्तु अपने विद्यार्थियों को इसकी शिक्षा नहीं देते हैं कि मुख्य समस्याओं की जड़ आत्मिक क्षेत्र में पायी जाती है।
इसलिये वे उन्हीं पद्धतियों को अपनाना जारी रखते हैं‚ जो अतीत में सफल रही हों। उनमें सजगता की कमी है कि ये पुरानी पद्धतियां आज के युग की ‘‘इस विशेष प्रकार की बुरी आत्मा" को निकाल दूर करने में विफल हैं। हर कोई जानता है कि किसी बात की आवश्यकता जरूर है। परन्तु प्रश्न यह है — कि वह आवश्यकता किस बात की है? जब हम आज के युग की ठोस आवश्यकता के बारे में ही चौकस नहीं है‚ तो हमारा यीशु के शिष्यों के समान विफल हो जाना लाजिमी है‚ जो उस लड़के में से शक्तिशाली‚ दुष्ट प्रकार की आत्मा को नहीं निकाल पाये।
आज के परिप्रेक्ष्य में ‘‘इस दुष्टात्मा का प्रकार" क्या है? यह अस्तित्ववाद की दुष्टात्मा है। अस्तिवाद का ज्ञान कहता है कि अगर आप किसी चीज का दिमागी अनुभव कर लेंगे — या महसूस कर लेंगे‚ तो वह वास्तविक हो जायेगा। आजकल के लोगों के दिमाग ‘‘महसूस करने की दुष्टात्मा से" अंधे कर दिये गये हैं। ये अस्तिववाद परक ज्ञान कहता है कि आप को शुद्धिकरण का दिमागी अनुभव होना आवश्यक है — कोई दिलासा देने वाली भावना का पैदा होना आवश्यक है। मसीही अध्यात्म में इसे कहा गया है कि शैतान इस नकली प्रकार के उद्धार पाने की भावना के भ्रम में आदमी को भर देता है।
इस प्रकार से अंधे बनाये गये लोग परमेश्वर यहोवा के न्याय में विश्वास नहीं करते हैं। उन्हें केवल भावनाओं पर विश्वास है। वे सोचते हैं कि उद्धार पाने की भावना होना आवश्यक है। उन्हें भावना रूपी ‘‘आश्वासन" चाहिये कि वे पाप से छुटकारा पा चुके हैं। यह ‘‘आश्वासन" रखना ही प्रतिमा — आसक्ति तुल्य है! उन्हें अपनी भावनाओं पर भरोसा है‚ प्रभु यीशु पर नहीं! हम पूछते हैं‚ ‘‘कि क्या आप ने प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास किया है?" वे कहते हैं‚ ‘‘नहीं।" नहीं क्यों कहते हैं? क्योंकि अभी उनके अंदर सही भावना पैदा नहीं हुई कि उन्हें लगे कि उद्धार मिल गया है! भावनायें बड़ी हो गयीं‚ मसीह यीशु पर विश्वास गौण! शैतान ने उनके दिमागों को अंधा बना दिया है। इस प्रकार की ‘‘दुष्ट आत्मा" केवल प्रार्थना और उपवास रखकर सामर्थ मांगने से ही परास्त की जा सकती है! हमें उपवास रखना आवश्यक है ताकि ‘‘इस प्रकार की दुष्ट आत्मा" की पैठ तोड़ सकें!
२॰ दूसरा बिंदु‚ इस बारे में है कि वे कौन सी पद्धतियां हैं जो विफल हो चुकी हैं।
मैं चर्चेस को उन पद्धतियों को निरंतर अमल में पाता हूं‚ जो अतीत में काम में आती थीं। परन्तु इन तरीकों से ‘‘इस प्रकार की दुष्ट आत्मा" को शिकस्त देना मुश्किल है। पुरानी पद्धतियों पर अमल करते रहने से हम‚ आज के लगभग सभी युवाओं को खोते जा रहे हैं। संसार में से मुश्किल से किसी युवा को यीशु का शिष्य होने के लिए समझा पाते हैं। अपने आप को गलत समझे जाने के जोखिम को लेते हुए भी मैं इंगित करना चाहता हूं कि संडे स्कूल की पद्धति भी उन पुराने तरीकों में से एक है। सवा सौ साल पहले यह प्रभावकारी हुआ करती थी। पर आज इसकी उपयोगिता मेरे अनुसार कम रह गयी है। उद्धार पाने के धार्मिक पर्चो का वितरण भी उसी श्रेणी का है। एक समय था‚ वास्तव में लोग उन्हें पढ़ते थे और चर्च आया करते थे। परन्तु आज मैं ऐसे ही किसी पास्टर से पूछना चाहता हूं‚ ‘‘क्या कोई युवा है आप के चर्च में‚ जो ऐसे पर्चे पढ़कर चर्च आया हो और प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास रखकर उद्धार पा गया हो?" मेरे हिसाब से यह प्रकट है कि आज के समय की ‘‘प्रचलित बुरी आत्मा" अतीत में उपयुक्त होने वाली पद्धतियों पर प्रतिक्रिया नहीं देती हैं। मैं घर — घर प्रचार पर जाने को भी इन्हीं पुरानी पद्धतियों का एक भाग समझता हूं। पूर्वकाल में यह बड़ा प्रभावकारी हुआ करता था, परन्तु आज के युवा को जो ‘‘इस प्रकार की दुष्ट आत्मा" के अधीन हैं, चर्च में लाने के लिये यह पद्धति भी असरकारक नहीं है।
तो ‘‘इस ‘‘प्रचलित बुरी आत्मा" पर अमल किये जाने के लिये कुछ निश्चित तरीके आज बिल्कुल व्यर्थ सिद्ध हो रहे हैं। दूसरे शब्दों में यूं कहें कि‚ मसीह प्रबलता से यह कह रहे हैं‚ ‘‘तुम इस मामले में असफल हो गये हो क्योंकि जो सामर्थ तुम्हारे पास है‚ वह दूसरे मामलों के लिये सही है‚ पर यहां इस दुष्टात्मा को समूल उखाड़ फेंकने के लिये महत्वहीन है। यह बालक जो ‘‘ऐसी दुष्टात्मा" से ग्रसित है‚ उसकी मदद करने के लिये तुम सामर्थहीन हो।"
मैं जानता हूं ऐसे पास्टर्स भी हैं जो समझते हैं कि पूर्व में प्रयुक्त होने वाले ये तरीके आज व्यर्थ हैं। परन्तु उनको प्रशिक्षण मिला हुआ है, इसी कार्य प्रणाली का, न कि शैतान की ‘‘युक्तियों से" निपटने का (२ कुरूंथियों २:११) — ऐसे में ताबड़तोड़ वे नये तरीके अपनाते हैं, जो पुराने तरीकों के ही समकक्ष अनुपयोगी ठहरते हैं — युवाओं में आत्मिक जाग्रति फैला कर उनको मसीह में ही ठोस उद्धार निहित है‚ इसके लिए आप क्या करते हैं, मैं यह बतला रहा हूं। उदाहरण के लिए‚ हमारे यहां कुछ लोग हैं जो सोचते हैं कि युवाओं के समक्ष बाइबल में उत्पत्ति के वर्णन को सच ‘‘सिद्ध" कर दें और विकासवाद को गलत। ऐसा करने से युवा पीढ़ी इसका उत्तर बाइबल में खोजेगी और विकासवाद को झूठा व खंडित पायेगी। उनके विचार से वर्तमान स्थिति में इस तरीके को भी उपयोग में लाया जा सकता है।
डॉ ल्योड जोंस का कथन था‚ ‘‘अठाहरवीं शताब्दी के प्रारंभ में बिल्कुल ऐसा ही था‚ जब (क्रिश्चयन मत को सुरक्षित रखने वाले धर्मविज्ञान) पर लोग अपना भरोसा जतला रहे थे। उन्होंने यह सिखाया कि ये वे बातें हैं‚ जो क्रिश्चयनिटी के सच को प्रकट करेगीं। परन्तु उस तरीके से लोग यीशु को नहीं जान पाए। लोगों के दिमागों को अंधा बनाने वाली ‘दुष्टात्मा की यह जाति’ ज्ञानवादी ढंग से नहीं निकाली जा सकती है।"
दूसरी पद्धति जो असफल हुई‚ वह बाइबल के आधुनिक अनुवादों का प्रयोग करना। हमें यह कहा गया कि युवा बच्चे किंग जेम्स बाइबल को नहीं समझ पाते हैं। हमें आधुनिक भाषा में बाइबल चाहिये। युवा इसे पढ़ेंगें। तब वे कहेंगे कि‚ ‘‘यह क्रिश्चियनिटी है" — और वे झुंड के झुंड चर्च में आना आरंभ कर देंगे। किंतु ऐसा नहीं हुआ। इसके बजाय‚ उल्टा ही हुआ। मैं विशेष तौर पर साठ सालों से युवाओं के साथ कार्य कर रहा हूं। मैं एक कारण जानता हूं कि ये युवा लोग इन नये अनुवादों से भी आकर्षित नहीं होते हैं। सच बात तो यह है कि‚ मैंने उनमें से कुछ को यह कहते हुए सुना है कि‚ ‘‘ये अनुवाद सही नहीं लगते हैं। ये बाइबल जैसे प्रतीत नहीं होते हैं।"
मैं आधुनिक अनुवाद से कभी प्रचार नहीं करता हूं। न करूंगा। हम देख रहे हैं‚ युवा जन प्रभु यीशु मसीह के अनुयायी बन रहे हैं‚ हमारे चर्च में उदाहरण है और बाहर की दुनिया से भी कुछ उदाहरण देखे गये हैं। इन आधुनिक अनुवादों का महत्व कुछ भी हो‚ वे समस्या का हल करने में सहायक नहीं हैं। वे ‘‘इस प्रकार की" दुष्ट आत्मा से निपटने में सहायक नहीं हैं।
और क्या प्रयास वे कर रहे हैं? अरे हां‚ सबसे बड़ा प्रयास तो संगीत व नृत्य का प्रयोग करना है! हम बहुत अच्छा गीत — संगीत बजायें व नृत्य करें‚ तो युवा आकर्षित होकर चर्च आयेंगे और यीशु मसीह के अनुयायी बन जायेंगे। बहुत उदास कर देने वाला सत्य है ये। क्या मुझे इस पर टिप्पणी करने की आवश्यकता है? लॉस ऐंजीलिस में एक सदर्न बैपटिस्ट चर्च है जो किराये के भवन में लगता है। वहां के पास्टर टी—शर्ट पहनते और स्टूल पर बैठते हैं। इसके पहिले कि वह वार्ता प्रारंभ करे — एक घंटे का रॉक संगीत बजता है। हमारे यहां का एक आदमी वहां यह सब देखने गया था। स्तंभित हो गया। उसका कहना था कि उनकी आराधना निष्प्रभावी और दयनीय थी। बिल्कुल भी आत्मा से ओजस्वी नहीं। उसने बताया कि उसे नहीं लगता कि वे किसी को यीशु मसीह के बारे में बता पायेंगे । जैसे हमारे यहां युवा बच्चे प्रार्थना में एक घंटा बिताते हैं‚ वैसा उस चर्च के लिये सोचा भी नहीं जा सकता। इसके उलट वे कहेंगे‚ एक घंटे कुछ नहीं‚ केवल प्रार्थना? तो रहने दीजिए! इस तरह आधुनिक वाद्य और रॉक संगीत भी ‘‘इस जाति की" दुष्टात्मा को निकालने में विफल रहा है।
३॰ तीसरा बिंदु‚ हमें ऐसी सामर्थ की आवश्यकता है जो इस दुष्टात्मा की जड़ें हिला दे‚ उसे निष्प्रभावी बना दे और परमेश्वर यहोवा की एकमात्र सामर्थ इस कार्य को सफलतम रूप से कर सकती है!
डॉ ल्योंड जोंस के अनुसार‚ ‘‘हमें यह महसूस करना आवश्यक है कि कितनी शक्तिशाली ‘यह दुष्टात्मा’ क्यों न हो‚ यहोवा परमेश्वर की सामर्थ अनंत रूप से बड़ी है‚ हमें बहुत ज्ञान नहीं चाहिये‚ कोई बहुत अधिक समझ नहीं चाहिये‚ बहुत अधिक सैंदातिक धर्मविज्ञान की समझनहीं चाहिए‚ (नये अनुवाद — रॉक संगीत) नहीं चाहिए — नहीं चाहिए ये सब। चाहिए‚ तो केवल एक ऐसी सामर्थ जो मनुष्यों की आत्मा के भीतर प्रवेश कर सके। आत्मा पर कड़ी चोट कर सके। उसे दीन बना सके। नया बना दे। ऐसी सामर्थ जीवित परमेश्वर के पास है।" यहां से हम अपने पद पर पुन: लौटते हैं‚
‘‘हम उसे क्यों न निकाल सके‚ उन्होंने उन से कहा कि यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के किसी और उपाय से निकल नहीं सकती" (मरकुस ९:२८—२९)
प्रार्थना और उपवास अंतिम उपाय हैं। हमारे चर्चेस को ‘‘इस जाति की दुष्टात्मा" के शैतानी प्रहार से और कोई नहीं बचा सकता। हमारे चर्च युवाओं के मन को स्पर्श नहीं कर पा रहे हैं। हम क्या कर सकते हैं? ‘‘यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के किसी और उपाय से निकल नहीं सकती।"
कुछ ‘‘विद्धानों" का कथन है कि सबसे अच्छी हस्तलिपियों में ‘और उपवास’ शब्द नहीं लिखा गया है। पर ये ‘‘विद्धान" दुष्टात्मा के बारे में क्या जानते हैं? ये विद्धान क्या जानें हमारे शहर की गलियों और कालेज के युवाओं को प्रभु यीशु मसीह का संदेश देना और सत्य से उनका परिचय करवाना? वे आत्मिक जाग्रति के बारे में क्या जानते हैं — ऐसा आत्मिक जागरण जो अभी युवा पीढ़ी चीन में अनुभव कर रही है। ये विद्धान इन बातों के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। मैं मेरे जीवन में तीन बार पापों के बंधन तोड़ने वाली इन आत्मिक जाग्रतियों का आंखो देखा गवाह रहा हूं। मैं यह सोचकर इतना अभिभूत हो जाता हूं कि मुझे उन तीनों महान आत्मिक जाग्रतियों में प्रचार करने का महान सौभाग्य प्राप्त हुआ। वे सुसमाचारीय सभाएं नहीं थीं। वह ऐसा समय था जब यहोवा परमेश्वर का आत्मा लोगों के हृदयों में प्रवेश कर गया, हृदयों को तोड़ा, चूर चूर किया। उन्हें मसीह यीशु में नया प्राणी बना डाला!
इसलिए हम उन दो पुरानी हस्तलिपियों का अनुसरण नहीं करने वाले हैं जिसमें से ‘‘उपवास" शब्द निकाल दिया गया। रहस्यवादियों ने ‘‘उपवास" शब्द पर अधिक बल दिया। इसलिए जो लोग सिनेटीकस हस्तलिपि का अनुवाद कर रहे थे‚ उन्होंने ‘‘और उपवास" शब्द ही हटा दिया। ताकि रहस्यवादियों द्वारा इस पद के अधिक उपयोग को बचा पाए। ‘‘रहस्यवादी भूखों मरने की सीमा तक उपवास किया करते थे" (विलियम आर हार्न ट्रिनिटी इवेंजलीकल सेमनरी, दि प्रेक्टिस ऑफ फास्टिंग इन चर्च हिस्ट्री, पेज ३) कई विद्धान बताते हैं कि हस्तलिपि की नकल करने वालों ने ये शब्द जोड़े थे। परन्तु ज्यादातर संभावना इस बात की है कि उन्होंने ये शब्द हटा दिये थे। (पढ़िये दि सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ नास्टिकः देअर स्क्रिप्चर बिलीफ एंड ट्रडिशन‚ एंड्रयू फिलिप स्मिथ द्वारा रचित‚ अध्याय ५‚ पेज १) हम जानते हैं मसीह ने कहा था ‘‘और उपवास।" यह हम कैसे जानते हैं? दो कारणों से जानते हैं। पहिली बात‚ शिष्यों ने जब पूर्व में भी दुष्टात्माओं को व्यक्तियों में से निकाला होगा तो उन्होंने उसके पहले प्रार्थना की होगी। इसलिए इस प्रक्रिया में कुछ और भी जोड़ा जाना था। कुछ और जो जोड़ा जाना था — वह था उपवास! अकेले प्रार्थना पर्याप्त नहीं थी। हम अनुभव से भी इसे जानते हैं। क्योंकि हमने भी उपवास किये हैं और अपनी आंखों से देखा है कि जब हम अपने को उपवास और प्रार्थना के दौरान यहोवा परमेश्वर के आगे उड़ेल देते हैं, तो वे क्या कुछ नहीं कर सकते हैं।
अब मैं डॉ ल्योड जोंस के गुणी कथन के साथ इस संदेश को समाप्त करूंगा। क्या प्रचारक थे वह! क्या अंतदृष्टि पायी थी! कितना धन्यवाद मैं यहोवा परमेश्वर को उनके लिये देता हूं। एक ओर अन्य स्थान पर उन्होंने कहा था‚
मुझे आश्चर्य होता है कि क्या हमारे साथ ऐसा भी हुआ हो कि हमने कभी उपवास किये जाने वाले प्रश्न पर विचार भी किया हो? सच यह है‚ क्या ऐसा नहीं है कि यह पूरा विषय हमारी जीवनशैली से हट चुका है। और अब तो हमारे विचारों से भी?
और सारी बातों से बढ़कर यह बात है कि संभवत: इसीलिए हम ‘‘ऐसी दुष्टात्मा" के उपर जयवंत नहीं हो पाये हैं।
मैं चर्च में एक सामान्य उपवास रखने के लिये आदेश देने वाला हूं। इसके बारे में और अधिक मैं बाद में बताऊंगा। मैं बताऊंगा कि हम कब उपवास करेंगे। मैं आप को यह भी बताऊंगा कि कैसे उपवास का आरंभ करना है‚ और कैसे अंत।
उस समय हम चर्च आयेंगे और प्रार्थना सभा आरंभ होने के पूर्व भोजन ग्रहण करेंगे। डॉ कैगन फोन करने वाले लोगों को थोड़े समय के लिए फोन करने के लिए कहेंगे। बाकि सब लोग प्रार्थना में रहेंगे और डॉ कैगन और मैं प्रश्नों का उत्तर देंगे।
१॰ हम हमारे नये कार्यक्रमों की सफलता के लिए उपवास और प्रार्थना करेंगे।
२॰ हम लड़के और लड़की की ‘ ‘नयी फलियों" के लिये उपवास और प्रार्थना करेंगे। ‘‘नयी फलियां" पांच या छः लड़के व लड़कियों का समूह है‚ जो शनिवार और रविवार प्रातः व संध्या को चर्च आता है और अब शिष्य बनने के इच्छुक हैं।
३॰ हम हमारे चर्च में लोगों के उद्धार पाने के लिये उपवास और प्रार्थना करेंगे। हमारा केंद्र होगा कि हम ‘‘इस जाति की दुष्टात्मा" के लिये विशेष उपवास और प्रार्थना करेंगे — ऐसी बुरी आत्मा जो व्यक्ति को जकड़ लेती है और वह उद्धार पाने के स्थान पर भावनाओं की अनुभूति को ही उद्धार मान लेता है।
अब मैं इस सभा का समापन बिना यीशु के विषय में बोले नहीं करूंगा। हमारी सारी आवश्यकताएं उनमें पूर्ण होती हैं। इब्रानियों की पुस्तक कहती है‚
‘‘हम यीशु को जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गया था‚ मृत्यु का दुख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहिने हुए देखते हैं‚ ताकि परमेश्वर के अनुग्रह से हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखे" (इब्रानियों २:९)
यीशु‚ यहोवा परमेश्वर के पुत्र पापियों के स्थानापन्न होकर‚ पापियों के बदले मरे। यीशु शारीरिक दशा में मांस और हडडी समेत जीवित हुए कि आप को नया जीवन प्रदान करें। जिस क्षण आप यीशु के समक्ष समर्पण करते हैं आप के पाप उनके क्रूस पर मरने के द्वारा निरस्त होते हैं। जिस क्षण आप मसीहा के सामने झुक जाते हैं‚ आप के पाप मसीह के बहाये गये कीमती लहू से शुद्ध होकर‚ यहोवा परमेश्वर के अभिलेख से मिटा दिये जाते हैं। आमीन एवं आमीन। आइये‚ अपने स्थानों पर खड़े होकर गीत की पुस्तिका से गीत संख्या ४ को गाते हैं।
एक प्रबल गढ़ परमेश्वर यहोवा‚ कभी न ध्वस्त हो ऐसी शहरपनाह‚
सांसारिक बुराइयों की बाढ़ में हमें बचाने वाले सहायक।
हमारा पुराना बैरी अभी भी हमें खोजता है कि अनिष्ठ करे;
उसकी चालाकी व सामर्थ बड़ी‚ क्रूर घृणा से सुसज्जित‚
नहीं धरती पर उसके कोई बराबर।
क्या हम भरोसा रखेंगे अपनी ही ताकत पर‚ तो संघर्ष हारते जायेंगे‚
क्या सही मनुष्य हमारी ओर नहीं खड़ा‚ यहोवा स्व का चुनाव।
क्या हम नहीं पूछते कौन हैं वो? मसीह यीशु‚ हां‚ वह है;
सब्त का प्रभु उन्हें पुकारो‚ युगों से एक जैसे हैं वो‚
वहीं इस युद्ध को जीतेंगे।
(‘‘ए माइटी फोर्टेस इज अवर गॉड" मार्टिन लूथर द्वारा रचित‚ १४८३—१५४६)
अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व मि बैंजामिन किकेंड ग्रिफिथ द्वारा एकल गान:
‘‘ओल्ड टाईम पॉवर" (रचयिता पॉल रॉडर‚ १८७८—१९३८)
रूपरेखा उन भूत प्रेत पर जयवंत होना जो हमें कमजोर बनाते हैं – OVERCOMING THE DEMONS THAT WEAKEN US – डॉ आर एल हायमर्स‚ जूनि ‘‘जब वह घर में आये‚ तो उनके चेलों ने एकान्त में उन से पूछा‚ हम उसे क्यों न निकाल सके उन्होंने उन से कहा‚ कि यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास‚ किसी और उपाय से निकल नहीं सकती" (मरकुस ९:२८—२९) (मरकुस ९:१८) १॰ पहिला बिंदु है ‘‘यह जाति‚" प्रेरितों के कार्य २६:१८; इफिसियों ६:१२; २:२ २॰ दूसरा बिंदु‚ इस बारे में है कि वे कौन सी पद्धतियां हैं जो विफल हो चुकी हैं‚ ३॰ तीसरा बिंदु‚ हमें ऐसी सामर्थ की आवश्यकता है जो इस दुष्टात्मा की जड़े हिला दे‚ |