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मनुष्य का पतित होनाTHE FALL OF MAN डॉ आर एल हायमर्स‚ जूनि |
बाइबल में उत्पत्ति की पुस्तक मानों बीज की क्यारी है। इस पुस्तक के सबसे रोचक तथ्यों में से एक तथ्य यह है कि यह बहुत सारे आधुनिक झूठों का उत्तर देती है। सी. एस. लुईस ने अपने जीवन के अंत में यह कहा था कि डॉरविनियन विकासवाद ‘‘आधुनिक काल का सबसे बड़ा झूठ है।"
डॉरविनियन वाद को उत्पत्ति की पुस्तक ने दो प्रकार से असत्य ठहराया है। पहली बात‚ हम को बार बार यह बताया गया है कि जानवर और यहां तक कि पौधे भी सीधे सीधे यहोवा परमेश्वर द्वारा निर्मित किये गये हैं। दूसरा, उत्पत्ति बताती है कि समस्त पौधे और जानवर अपने ही ‘‘समान जाति" को जन्म दे सकते हैं। जानवर व पौधे अपनी ही जाति के अंर्तगत ‘‘जाति" को जन्म दे सकते हैं। उत्पत्ति की पुस्तक विकासवाद परिकल्पना का इंकार करती है, जिसके अनुसार प्रजनन द्वारा अन्य ‘‘जाति" को भी जन्म दिया जा सकता है। विकासवाद का सबसे कमजोर तर्क है एक जाति का दूसरी जाति में विकास हो सकता है, फिर वह जाति किसी अन्य जाति को जन्म दे सकती है। यह सिद्ध नहीं हुआ है। इसलिये उत्पत्ति की पुस्तक बताती है कि विकासवाद की परिकल्पना की आधारभूत धारणाओं मे से एक धारणा पूर्णतः गलत है! एक कुत्ता कभी घोड़े में नहीं बदल सकता है। एक बाज कभी मुर्गी नहीं बन सकता है। एक जाति कभी दूसरी में नहीं बदल सकती है। अतः उत्पत्ति दर्शाती है कि विकासवाद की परिकल्पना में से एक धारणा सरासर गलत है!
दूसरा झूठ है कि मनुष्य जाति उनके परिवेश की उपज हैं‚ यह भी उत्पत्ति की पुस्तक द्वारा गलत ठहराया गया है। हमारे आदि माता पिता तो बिल्कुल पवित्र वातावरण में रहते थे। तौभी वे पापमय हो गये। उनका पहिला पुत्र हत्यारा निकला!
तीसरा‚ यह विचार कि बुराई की समस्या को समझना नामुमकिन है‚ इसे भी उत्पत्ति द्वारा नकार दिया गया है। अदन के बगीचे में सर्वाधिक नारकीय व शैतानी गतिविधि घटित हुई। शैतान ने ईव के भीतर प्रवेश किया और पाप करने के लिये उकसाया। अध्याय छः में दानवों के पुत्र जब मनुष्य की पुत्रियों से समागम करते थे‚ तब ‘‘नेफीलिम" उत्पन्न होते थे। इसलिये बुराई की ‘‘समस्या" आधुनिक लोगों द्वारा रचा मनगढ़ंत झूठ है‚ जो शैतान और दानवों की सत्यता को समझ पाने में असफल रहे।
चौथा‚ भूगर्भशास्त्र की यूनिफार्मेटियन परिकल्पना को उत्पत्ति की पुस्तक ने झूठ ठहराया है। पृथ्वी वैश्विक प्रलय के पर्याप्त प्रमाण दिखाती है। जबकि यूनिफार्मेटेरयंस कहते हैं सब कुछ वैसा ही है‚ ‘‘जैसा सृष्टि के आरम्भ से था" (२ पतरस ३:४) वे नूह के समय के प्रलय से ‘‘जानबूझकर अनजान" हैं। आधुनिक भूगर्भशास्त्रियों के पास प्रामाणिक स्पष्टीकरण नहीं है यह समझाने के लिये कि कैसे अतिविशाल खड्ड अस्तित्व में आये और कैसे समुद्री जीवों के जीवाश्म पहाड़ों पर पाये गये। इसलिये उत्पत्ति आधुनिक भूगर्भशास्त्र के पीछे छिपे झूठ का खंडन करती है।
पांचवा‚ मनुष्य की भ्रष्टता को विश्वसनीय ढंग से स्पष्ट नहीं किया जा सकता और हकीकत में देखा जाये तो सारी परिकल्पनाएं झूठ सिद्ध हुई हैं‚ क्योंकि उत्पत्ति की पुस्तक कितने सजीव ढंग से बखान करती है कि कैसे मनुष्य अपनी मूल धार्मिकता से असभ्य जंगलीपन की अवस्था में गिरा। आधुनिक जगत आज इसी असभ्यता का प्रदर्शन कर रहा है‚ ‘‘इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे‚ यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्धेरा हो गया" (रोमियों १:२१)। अतः आधुनिक युग के मनोविज्ञान की बहुत सी परिकल्पनाएं उत्पत्ति की पुस्तक द्वारा झूठी साबित हुई।
आज हम इस झूठ के उपर और विस्तार से चर्चा करेंगे। कृपया उत्पत्ति ३:१—१० निकाल लीजिये।
‘‘यहोवा परमेश्वर ने जितने बनैले पशु बनाए थे‚ उन सब में सर्प धूर्त था और उसने स्त्री से कहा‚ क्या सच है‚ कि परमेश्वर ने कहा‚ कि तुम इस बाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना? स्त्री ने सर्प से कहा‚ इस बाटिका के वृक्षों के फल हम खा सकते हैं। पर जो वृक्ष बाटिका के बीच में है‚ उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना‚ नहीं तो मर जाओगे। तब सर्प ने स्त्री से कहा‚ तुम निश्चय न मरोगे‚ वरन परमेश्वर आप जानता है‚ कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे। सो जब स्त्री ने देखा कि उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा और देखने में मनभाऊ और बुद्धि देने के लिये चाहने योग्य भी है‚ तब उसने उस में से तोड़कर खाया; और अपने पति को भी दिया और उसने भी खाया। तब उन दोनों की आंखे खुल गई और उन को मालूम हुआ कि वे नंगे है; सो उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़ जोड़ कर लंगोट बना लिये। तब यहोवा परमेश्वर जो दिन के ठंडे समय बाटिका में फिरता था उसका शब्द उन को सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्नी बाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए। तब यहोवा परमेश्वर ने पुकार कर आदम से पूछा‚ तू कहां है? उसने कहा‚ मैं तेरा शब्द बारी में सुन कर डर गया क्योंकि मैं नंगा था; इसलिये छिप गया" (उत्पत्ति ३:१—१०)
आर्थर डब्ल्यू पिंक ब्रिटेन के धर्मविज्ञानी और बाइबल के टीकाकार थे। पिंक ने सही कहा था कि बाइबल के संपूर्ण महत्वपूर्ण वचनों में से एक भाग उत्पत्ति का तीसरा अध्याय है। पिंक का कथन था‚
‘‘बाइबल में यह मुख्य कथावस्तु" है। ये वह नींव है जिस पर हमारे बुनियादी विश्वास के मौलिक सिद्धांत निर्भर करते हैं। ईश्वरीय सत्य की अनेक सरिताओं के उदगम स्थल को हम यहीं से खोजना आरंभ करते हैं। मानवीय इतिहास के महान नाटक का आरंभ इसी मंच से प्रारंभ होता है........वर्तमान की पतित और बर्बाद (मानव) जाति की अवस्था की ईश्वरीय व्याख्या हमको इसी गधांश में मिलती है........यहीं से हम हमारे बैरी शैतान की छल भरी चालों के बारे में सीखते हैं। यहीं से मनुष्य स्वभाव की वैश्विक प्रवृत्ति का चिंन्ह प्रकट होता है कि वह अपनी नैतिक शर्म ढांपने के लिये अपने ही हाथों से बनाये हस्तशिल्प का प्रयोग करते हैं (आर्थर डब्ल्यू पिंक‚ ग्लीनिंग्स इन जेनेसिस‚ मूडी प्रेस‚ संस्करण १९८१‚ पेज ३३)
आज हम इस झूठ के उपर और विस्तार से चर्चा करेंगे। उत्पत्ति का अध्याय तीन इस वृत्तांत को बताता है कि कैसे शैतान ने अदन के बगीचे में प्रवेश किया‚ अभी तक निर्दोष माने गये सर्प में निवास कर उसके मुख से बातें की। इस वर्णन में हम पढ़ते हैं कि वह स्त्री से बात करता है, यहोवा परमेश्वर ने जो आदम को कहा था‚ उस कथन के प्रति संशय उत्पन्न करता है‚ उनके कहे गये वचन को तोड़ मरोड़कर पेश करता है। ईव को भरमाता है कि अगर ‘‘भले बुरे के ज्ञान के पेड़" का प्रतिबंधित फल खाओगी तो ‘‘निश्चित ही तुम नहीं मरोगी।"
यह याद रखना चाहिये कि शैतान इस समय तक छल का स्वामी बन चुका था। बाइबल की प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में लिखा है‚
‘‘और उस की पूंछ ने आकाश के तारों की एक तिहाई को खींच कर पृथ्वी पर डाल दिया........" (प्रकाशितवाक्य १२:४)
इस पद का अर्थ कुछ समय बाद अगले पद‚ प्रकाशितवाक्य १२:९ में मिलता है‚
‘‘और वह बड़ा अजगर अर्थात वही पुराना सांप‚ जो इब्लीस और शैतान कहलाता है‚ और सारे संसार का भरमाने वाला है‚ पृथ्वी पर गिरा दिया गया और उसके दूत उसके साथ गिरा दिए गए" (प्रकाशितवाक्य १२:९)
डॉ हैनरी एम मोरिस ने कहा था‚
उस बड़े अजगर को यहां अदन के बगीचे का सांप पहचाना गया है........ (उत्पत्ति ३:१) और जिस शैतान ने प्रभु यीशु की (जंगल में) परीक्षा ली थी (पीएचडी‚ दि डिफेंडर स्टडी बाइबल‚ वर्ल्ड पब्लिशिंग‚ १९९५‚ पेज १४४८‚ प्रकाशितवाक्य १२:९ पर नोटस)
यहोवा प्रभु के विरूद्ध बगावत करने के कारण और उनके परमेश्वरत्व (यशायाह १४:१२—१५; यिजकेल २८: १३—१८) को छीन लेने की चेष्टा करने के प्रयास में शैतान को स्वर्ग से गिरा दिया गिया। जहां वह
‘‘........आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात उस आत्मा के अनुसार चलते थे‚ जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता है" (इफिसियों २:२)
और वे देवदूत जो यहोवा परम प्रधान से विद्रोह करते हुए शैतान के अनुयायी बन बैठे थे‚ उनका क्या हश्र हुआ? तो प्रकाशितवाक्य १२:९ कहता है‚
‘‘वह पृथ्वी पर गिरा दिया गया और उसके दूत उसके साथ गिरा दिए गए" (प्रकाशितवाक्य १२:९)
कितने देवदूतों ने शैतान के साथ मिलकर विद्रोह किया था? ‘‘कितने उसके साथ पृथ्वी पर गिरा दिये" गये थे? तो प्रकाशितवाक्य १२:४ इसका उत्तर देता है‚
‘‘और उस की पूंछ ने आकाश के तारों की एक तिहाई को खींच कर पृथ्वी पर डाल दिया" (प्रकाशितवाक्य १२:४)
डॉ मोरिस का कथन था‚
‘आकाश के ये तारे’ प्रकाशितवाक्य की पुस्तक १२:९ में शैतान के दूत पहचाने गये हैं (मोरिस‚ उक्त संदर्भित‚ पेज १४४७)
तो हम यहां मानते हैं कि स्वर्ग के एक तिहाई देवदूतों ने अपना नेता शैतान को मानते हुए विद्रोह किया और पृथ्वी पर गिरा दिये गये। वे भी ऐसे शैतान बन गये जिनसे प्रभु यीशु का उनकी पृथ्वी पर की सेवकाई के दिनों में सामना होता रहता था।
शैतान इन देवदूतों से भी झूठ बोला। निसंदेह‚ भरमाने वाला झूठ। आदम और हवा को जैसा झूठ अदन के बगीचे में कहा था‚ ‘‘तुम परमेश्वर के समान बन जाओगे" (उत्पत्ति ३:५) संदेहरहित बात है‚ इस झूठ ने देवदूतों को बर्बाद कर के रख दिया‚ ‘‘मेरा अनुसरण करो तो तुम परमेश्वर के बराबर हो जाओगे।" उन्होंने शैतान की बात मानी तो‚ परंतु ‘‘परमेश्वर के समान नहीं" बन सके। ओह‚ ये क्या हो गया! वे तो दानव व अशुद्ध प्रकार की दुष्टात्माओं में बदल गये। इस जगत में क्रोध‚ कामना और उग्रता में विचरण करने लगे!
जैसे शैतान ने देवदूतों से झूठ बोला। उन्हें भरमाया कि परमेश्वर यहोवा के प्रति विद्रोह कर देवें। दुबारा‚ वह फिर ऐसा करता है, जब वह मनुष्य से झूठ बोलता है। जिस छल के प्रयोग से उसने देवदूतों को भरमाया वैसे ही वह आदम व हवा को अदन के बगीचे में फुसलाता है कि वे पाप कर बैठे। आइये उत्पत्ति ३:४—५ को सुनिये
‘‘तब सर्प ने स्त्री से कहा‚ तुम निश्चय न मरोगे‚ वरन परमेश्वर आप जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी‚ और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे" (उत्पत्ति ३:४—५)
शैतान ने समान तर्क प्रयुक्त किया होगा‚ वही समान झूठ‚ देवदूतों की एक तिहाई संख्या को उनके महिमादायक स्थान से पतन की ओर ले चला। जिसने स्वर्ग से देवदूतों के बड़े पतन को जन्म दिया।
अब वह वही झूठ‚ वही सत्य वचनों के घुमावदार प्रयोग को हमारे प्रथम माता पिता के उपर भी प्रयुक्त किया जा रहा है। अदन के बगीचे में हमारे माता पिता ने भी उसी तोड़े मरोड़े गये सच अर्थात शैतान के झूठ पर विश्वास कर लिया। वे भी देवदूतों के समान श्रापित कहलाये। क्योंकि उन्होंने ‘‘झूठों के पिता" की बात मान ली थी। इसी शैतान का वर्णन प्रभु यीशु मसीह उनके समय के फरीसी लोगों को चेतावनी देते हुए करते हैं
‘‘तुम अपने पिता शैतान से हो और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरम्भ से हत्यारा है और सत्य पर स्थिर न रहा क्योंकि सत्य उस में है ही नहीं: जब वह झूठ बोलता तो अपने स्वभाव ही से बोलता है क्योंकि वह झूठा है‚ वरन झूठ का पिता है" (यूहन्ना ८:४४)
इस पद में यीशु शैतान के लिये दो प्रमुख बातें हमें बताते हैं: १॰ ‘‘वह आरंभ से हत्यारा था। २॰ वह झूठा है और झूठों का पिता है।"
शैतान ने स्वर्ग में देवदूतों को उसके पीछे आने के लिये प्रलोभन दिया। शैतान ने आदम और हवा को एक पेड़ विशेष के फल जिसका खाना वर्जित था‚ उसे खाने के लिये झूठ बोलकर उकसाया।
शैतान आरंभ से ‘‘हत्यारा" था। उसने अपने झूठ के द्वारा उसके पीछे आने वाले ‘‘देवदूतों" की भी हत्या कर डाली। क्योंकि जब वे भी स्वर्ग से निकाले गये थे, तो वे भी नर्क की आग में जलने के लिये ठहरा दिये गये‚ जो ‘‘शैतान और उसके दूतों के लिये तैयार की गई है।" (मत्ती २५:४१) ‘‘वह आरंभ से हत्यारा था" क्योंकि उसने न केवल स्वर्ग के एक तिहाई देवदूतों की ‘‘हत्या" कर डाली परंतु संपूर्ण मनुष्य जाति को भी उसके झूठ और छल के प्रयोग से खत्म कर डाला। यीशु इसी विषय में तो कहते हैं‚
‘‘वह तो आरम्भ से हत्यारा है और सत्य पर स्थिर न रहा क्योंकि सत्य उस में है ही नहीं........" (यूहन्ना ८:४४)
शैतान स्वयं तो बाहर कर दिया गया किंतु वह उसका साथ देने वाले देवदूतों के भी विनाश का कारण बना। शैतान ने संपूर्ण मनुष्य जगत की हत्या कर डाली क्योंकि सबसे पहिले उसने यहोवा परमेश्वर का इंकार करके जो बड़ा पाप किया, उस पाप में समस्त मानव जाति सहभागी हुई। जैसा उत्पत्ति के प्रारंभिक पदों ३:१—१० में वर्णन किया गया है, इस पतन में शैतान के पीछे चलकर वे भी दंड के भागीदार होंगे।
जब आदम ने पाप किया था तब वह कोई साधारण आदमी नहीं थे। वे समूचे जगत की मनुष्य जाति के नैसर्गिक मुखिया थे। साथ ही साथ केंद्रीय प्रमुख भी थे। जैसे शैतान के विद्रोह ने सीधे सीधे स्वर्ग के एक तिहाई देवदूतों को प्रभावित किया। ठीक उसी प्रकार आदम के विद्रोह और पाप में गिरने से उत्पन्न परिणामों ने दूसरों को प्रभावित किया। तमाम मानव जाति आदम के केंद्रीय प्रमुख होने के कारण उनके साथ ही पतित मानी गयी। बच्चों के लिए एक प्राचीन प्यूरीटन पुस्तक में बिल्कुल सही लिखा है कि‚ ‘‘आदम के पतन में हम सब ने पाप किया।" शैतान के झूठ पर विश्वास करके‚ प्रतिबंधित फल खाकर‚ आदम अपनी संतति में मृत्यु लाये — संपूर्ण मनुष्य जाति में। जैसे कि पौलुस प्रेरित कहते हैं‚
‘‘इसलिये जैसा एक मनुष्य (आदम) के द्वारा पाप जगत में आया‚ और पाप के द्वारा मृत्यु आई और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई........" (रोमियों ५:१२)
आदम के पाप का मनुष्य जाति पर अपरिमित असर पड़ा। पतन के पूर्व यहोवा परमेश्वर और मनुष्य सहभागिता में रहते थे। जैसे ही आदम का पतन हुआ‚ यह सहभागिता टूट गयी। यहोवा परमेश्वर से मनुष्य का संपर्क टूट गया। मनुष्य ने पाप में अपनी गिरावट के पश्चात स्वयं को परम प्रधान से छिपाने का प्रयास किया।
इस पतन के पूर्व मनुष्य पाप रहित और पवित्र हुआ करता था। आदम और हवा के स्वभाव पाप रहित थे। पतन पश्चात वे अधर्मी हो गये और शर्म आने लगी। प्रेरित पौलुस इसी संदर्भ में कहते हैं‚
‘‘एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया" (रोमियों ५:१२)
यह पद ऐसा नहीं कहता है कि ‘‘पापों" ने संसार में प्रवेश किया। किंतु यह पद ‘‘पाप" एकवचन का प्रयोग करता है। आदम एक बुरे उदाहरण के द्वारा पाप को संसार में नहीं लेकर आया। उसके पाप के कृत्य ने उसके स्वभाव में भी बदलाव लाया। उसका स्वयं का हृदय भी भ्रष्ट हो गया।
पाप में गिरावट के पूर्व वे जीवन के से फल खा सकते थे और सदा लों जीवित रह सकते थे (उत्पत्ति २:९ ३:२२) इस पतन के बाद शरीर का मरना आवश्यक हो गया, यह आदम के पाप करने का दंड था। रोमियों की पुस्तक अध्याय ५:१२ कहता है‚
‘‘इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया और पाप के द्वारा मृत्यु आई........" (रोमियों ५:१२)
इस पद में आत्मिक और शारीरिक दोनों मृत्यु का उल्लेख है। जब आदम ने पाप किया‚ यहोवा परम प्रधान ने कहा‚
‘‘.......तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा" (उत्पत्ति ३:१९)
अतः शारीरिक और आत्मिक दोनों मृत्यु आदम के पाप का परिणाम है।
आदम के पाप में गिरने के पश्चात‚ पाप समूचे मनुष्य जगत में व्याप्त हो गया। सब मनुष्य पापमयी स्वभाव के साथ उत्पन्न होने लगे‚ जो उन्होंने आदम से ग्रहण किया था। आदम जो मनुष्य जाति का केंद्रीय प्रमुख था। बाइबल कहती है‚
‘‘इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया और पाप के द्वारा मृत्यु आई और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई इसलिये कि सब ने पाप किया" (रोमियों ५:१२)
पतित मनुष्य के पापमयी स्वभाव का उल्लेख संपूर्ण बाइबल में दिया हुआ है।
‘‘निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है" (१ राजा ८:४६)
‘‘निसन्देह पृथ्वी पर कोई ऐसा धर्मी मनुष्य नहीं जो भलाई ही करे और जिस से पाप न हुआ हो" (सभोपदेशक ७:२०)
‘‘जैसा लिखा है कि कोई धर्मी नहीं‚ एक भी नहीं। कोई समझदार नहीं‚ कोई परमेश्वर का खोजने वाला नहीं। सब भटक गए हैं‚ सब के सब निकम्मे बन गए‚ कोई भलाई करने वाला नहीं‚ एक भी नहीं " (रोमियों ३:१०—१२)
‘‘इसलिये कि हर एक मुंह बन्द किया जाए और सारा संसार परमेश्वर के दण्ड के योग्य ठहरे" (रोमियों ३:१९)
‘‘यदि हम कहें कि हम में कुछ भी पाप नहीं तो अपने आप को धोखा देते हैं और हम में सत्य नहीं" (१ यूहन्ना १:८)
आदम का पाप उसकी भावी पीढ़ियों में अभ्यारोपित कर दिया गया‚ अर्थात समूची मानव जाति में। मनुष्यों की इंद्रिय संबंधी एकता के कारण, यहोवा परम प्रधान‚ आदम के पाप को एकाएक उसके सारे वंशजों में अभ्यारोपित कर देते हैं। इसप्रकार, जो स्वभाव मनुष्य धारण करता है, वह भ्रष्ट स्वभाव आदम के पतन के कारण तमाम मनुष्यों को मिला हुआ स्वभाव है। रोमियों की पुस्तक अध्याय ५:१२ के अनुसार समस्त मनुष्य जगत को मृत्यु आयी (शारीरिक और आत्मिक दोनों), क्योंकि सबने आदम में होकर, जो उनका प्राकृतिक मुखिया था, पाप किया था।
मनुष्य जगत की ‘‘संपूर्ण भ्रष्टता" इसी को कहेंगे। मनुष्य जो अपनी प्राकृतिक अवस्था में भ्रष्ट उत्पन्न होता है‚ उसके हृदय में यहोवा परमेश्वर के लिये प्रेम नहीं होता है। अर्थात‚ वह स्वयं को परम प्रधान से बढ़कर मानता है‚ अपने रचने वाले से बढ़कर स्वयं से प्रेम रखता है। संपूर्ण भ्रष्टता का अर्थ है अपनी प्राकृतिक अवस्था में प्रत्येक मनुष्य यहोवा को नापसंद करता है‚ उनके प्रति विकर्षण‚ विरोध रखता है‚ उसे परमेश्वर से विरक्ति हो जाती है।
‘‘क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है" (रोमियों ८:७)
‘‘शारीरिक दशा में" रहने वाला व्यक्ति ‘‘पुर्नज्जीवन पाया हुआ नहीं" होता है‚ उद्धार रहित होता है (जिनेवा बाइबल‚ १५९९‚ रोमियों ८:७ पर व्याख्या)
अतः उत्पत्ति की पुस्तक अध्याय तीन में आदम के पाप में गिरने का आप पर सीधा प्रभाव है। भले ही आप क्रिश्चयन परिवार या चर्च में पले बढ़े हो या नहीं। आप ने ऐसा स्वभाव पाया है जो यहोवा परमेश्वर और मसीह को नापसंद करता है‚ यह स्वभाव आप के पूर्वज आदम से आप को मिला है। आप अपनी सोच के द्वारा‚ सीख के द्वारा या ऐसा कुछ भी करने के द्वारा‚ आप के इस स्वभाव को पलट नहीं सकते हैं। इसलिये‚ उद्धार देने का कार्य किसी ‘‘बाहरी स्त्रोत" के द्वारा ही होगा‚ वह स्त्रोत जो पापयुक्त मनुष्य दायरे से बाहर हो। ऐसा स्त्रोत केवल यहोवा परमेश्वर हो सकते हैं। वह आप को आपकी आंतरिक भ्रष्टता के प्रति जगायेंगे। वह आप को मसीह के पास खीचेंगे कि आप पापों से शुद्ध हों एवं साथ ही आप एक नया जन्म प्राप्त रचना बन सकें। आदम के पाप के कारण‚ और कोई नहीं‚ केवल मसीह जो ‘‘अंतिम आदम" हैं‚ आप को उद्धार प्रदान करेंगे। उद्धार केवल अनुग्रह से दिया जाता है‚ एकमात्र मसीह के द्वारा। यही हम मानते हैं और लोगों के मध्य प्रचार करते हैं।
आदम के पाप में गिरने से पूर्व‚ यहोवा के साथ उसका सिद्ध संबंध था। वह उनके साथ मित्र के समान चला फिरता था। किंतु जब उसने पाप किया‚ उसने अपनी पत्नी समेत खुद को परमेश्वर यहोवा से बगीचे के पेड़ों की आड़ में छिपा लिया।
आप आदम की संतान हैं। इसलिये आप की सोच परमेश्वर यहोवा के प्रति बिल्कुल गलत है! उन पर विश्वास लाने के बजाय, आप उनसे विद्रोह करते हैं, उनसे छिप जाते हैं, बिल्कुल जैसे आप के पूर्वज आदम ने किया। इसलिये जब तक आप मसीह पर विश्वास नहीं करते हैं‚ आप एक के बाद एक गलती करते जाते हैं। आप के विचार उसी चक्र में घूमते जाते हैं — बारंबार आप वही गलतियां करते जाते हैं। अंतहीन गलतियां‚ बारंबार दोहराते जाते हैं।
एक कॉलेज के विधार्थी की गवाही
एक के बाद एक मैंने झूठे रूप में पाप से मुक्ति पायी। मैं सोचता था कि मेरे भीतर उद्धार पाने की भावना पैदा होनी चाहिये। झूठे रूप में उद्धार पाना मेरे लिये एक बड़ा खराब अनुभव रहा।
जब मुझे परामर्श दिया गया‚ मैंने कुछ कहने का प्रयास किया। मैंने याद करने की कोशिश की कि उस दिन सुनाये गये संदेश में से कुछ बोलूं। किंतु मेरे कहे गये शब्दों का कुछ अर्थ ही नहीं निकल रहा था। मैं किसी ओर के उद्धार पाने की गवाही की नकल कर रहा था। सचमुच कितनी मूर्खता मैं कर रहा था!
मैंने अकेले प्रार्थना करना आरंभ किया और अपने पाप के विषय में सोचने लगा। तब शुभ संदेश मेरे सामने बिल्कुल स्पष्ट होता चला गया। मैं यीशु के समक्ष बिल्कुल निकम्मे पापी इंसान के समान समर्पित हो गया‚ जैसे अपने आप से मुझे कोई आशा ही नहीं हो — किंतु मेरी आशा प्रभु यीशु मसीह में थी। मेरे लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात हुई कि मैं यीशु के पास आ गया और मेरे सारे पाप उनके लहू में धुल गए। मैंने उनके लहू पर विश्वास किया।
एक कॉलेज की युवती की गवाही
शैतान मुझसे कहता रहता था‚ ‘‘ये लोग गलत बता रहे हैं। तुम जैसी हो‚ अच्छी हो। तुम को यीशु की आवश्यकता नहीं है।" फिर मैं आप के यहां चर्च में आयी। मैंने जाना‚ मैं गलत थी। मैं रो रही थी और मेरा रूदन थम ही नहीं रहा था। डॉ कैगन ने मुझसे पूछा, ‘‘क्या आप मसीह के पास आयेंगी?" मैंने उत्तर दिया ‘‘हां‚ मैं उनके पास आउंगी। मैं उनके पास आउंगी।" मैंने उस दिन अपने आप को यीशु के चरणों में डाल दिया। मैंने पूर्ण रीति से स्वयं को यीशु के समक्ष समर्पित कर दिया। यीशु मसीह ने मुझे गले से लगा लिया और मेरे पाप उनके लहू में धुल गये।
एक जवान की गवाही
मैं अब और इस तथ्य की उपेक्षा नहीं कर सका कि मेरा हृदय भददा‚ विद्रोही‚ दुष्टता से भरा हुआ व यहोवा परमेश्वर के विरोध में रहता है। मेरा हृदय अब मुझे इस भुलावे में रखकर धोखा नहीं दे सकता कि मैं एक अच्छा आदमी हूं। मैं ठीक नहीं था और मेरे भीतर कुछ अच्छा नहीं था। मैं जानता था कि आज मेरी मौत हो जाये तो मैं नर्क में जाउंगा। मैं नर्क के ही योग्य था। मैं एक पापी था। मैं सोचता था कि मैं मेरे पापों को लोगों से छिपा सकता था। परंतु मैं यहोवा से अपने पापों को नहीं छिपा पाया। यहोवा परमेश्वर ने मेरे सारे पापों को देखा। मैं स्वयं को आदम के समान महसूस कर रहा था जो प्रतिबंधित फल खाकर स्वयं को यहोवा से छिपाने का यत्न कर रहा था। मैंने पूर्ण हताशा महसूस की। मेरे सारे अच्छे कर्म मिलकर भी मुझ निकम्मे पापी जन को बचा नहीं सकते थे। केवल मसीह ने मुझे बचाया। उनके लहू ने मुझे ढांप लिया और मेरे सारे पापों को धो दिया। मसीह ने उनके लहू में लपेट लिया। उन्होनें अपनी धार्मिकता में मुझे ढांप दिया। उनके लहू ने मेरे पापयुक्त हृदय को धो दिया। मेरा विश्वास और भरोसा केवल मसीह में है। मैं एक पापी जन था — किंतु यीशु ने मेरे पापों से मुझे उद्धार दिया।
एक कॉलेज की युवती की गवाही
मैं चर्च में आयी मेरा हृदय भारी था। मैं स्वयं को पापी महसूस कर रही थी। जब संदेश समाप्ति पर था‚ मैंने पहली बार शुभ संदेश सुना। इसके पहले इसका कोई अर्थ मेरे लिये नहीं था। मैने सुना‚ मसीह मेरे स्थान पर क्रूस पर मरे‚ मेरे पापों का दंड चुकाने के लिये। वह मेरे लिये क्रूस पर मरे! उनका लहू मेरे लिये बहाया गया! मुझे तीव्रता से यीशु की आवश्यकता महसूस हुई। मेरी आंखें मुझ पर से हट गयी थी। मैंने पहली बार मसीह की ओर निहारा और उसी क्षण मसीह ने मुझे बचा लिया! अब मैं जॉन न्यूटन के गीत का अर्थ समझीं‚ ‘‘अदभुत अनुग्रह! कितना मधुर स्वर‚ जिसने मेरे जैसे पापी को बचा लिया! एक बार जो मैं खो चुका था‚ पर अब लौट आया हूं‚ मैं अंधा था पर अब देखता हूं!" मैं एक पापी युवती थी पंरतु यीशु मसीह ने मुझे मेरे पापों से छुटकारा दे दिया।
मैंने यीशु को देखा नहीं और न महसूस किया। न मुझे कोई दिव्य धार्मिक अनुभव हुआ। मैंने तो सरलता से उन पर विश्वास किया। जिस क्षण मैंने यीशु पर विश्वास किया‚ उन्होंने अपने लहू से मेरे पापों को धो दिया।
मैं सुन सकता हूं‚ मेरे मसीहा की पुकार‚
मैं उनके साथ जाउंगा‚ मैं उनके साथ संपूर्ण रास्ते जाउंगा!
(‘‘व्हेअर ही लीडस मी" अर्नेस्ट डबल्यू ब्लैंडी‚ १८९०)
मैं आप के पास आ रहा हूं प्रभु‚ आप के पास आता हूं;
मुझे धो दीजिए‚ शुद्ध कीजिए अपने लहू से जो क्रूस पर बहा
(‘‘आय एम कमिंग लार्ड" लैविस हार्टसौ द्वारा रचित‚ १८२८—१९१९)
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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व मि बैंजामिन किंकेड ग्रिफिथ द्वारा एकल गान:
‘‘आय एम कमिंग लार्ड" (लैविस हार्टसौ द्वारा रचित‚ १८२८—१९१९)