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गैतसैमनी में मसीह की मृत्यु यन्त्रणाCHRIST’S AGONY IN GETHSEMANE डॉ आर एल हिमर्स जूनि. लॉस ऐंजीलिस बैपटिस्ट टैबरनेकल में‚ रविवार संध्या १७ फरवरी‚ २०१८ ‘‘फिर वे गैतसेमनी नाम एक जगह में आए और उस ने अपने चेलों से कहा‚ यहां बैठे रहो‚ जब तक मैं प्रार्थना करूं। और वह पतरस और याकूब और यूहन्ना को अपने साथ ले गया और बहुत ही अधीर और व्याकुल होने लगा। और उन से कहा; मेरा मन बहुत उदास है‚ यहां तक कि मैं मरने पर हूं: तुम यहां ठहरो और जागते रहो" (मरकुस १४:३२—३४) |
मसीह ने अपने शिष्यों के संग फसह का भोजन ग्रहण किया। रात्रि भोजन के पश्चात मसीह ने उन्हें रोटी और प्याला दिया जिसे हम ‘‘प्रभु भोज" कहते हैं। उन्होंने उन्हें समझाया कि यह रोटी उनकी देह का स्मरण करवायेगी जो अगली सुबह क्रूस पर चढ़ा दी जायेगी। उन्होंने कहा कि यह प्याला उनके रक्त का प्रतीक ठहरेगा जो हमें हमारे पापों से शुद्ध करने हेतु वे क्रूस पर बहायेंगे। तत्पश्चात यीशु और उनके शिष्यों ने एक भक्ति गीत गाया और वे उस कमरे से बाहर निकल गये।
वे यरूशलेम की पूर्वी ढलान पर पहुंचे और क्रिदोन का नाला पार किया। उसके बाद वे थोड़ा और आगे चलकर गैतसेमनी के किनारे पर पहुंचे। बगीचे के किनारे पर उन्होंने आठ शिष्यों को वहीं रोक दिया और उन्हें प्रार्थना करते रहने के लिये कहा। फिर वे और अंदर गये और वहां पतरस याकूब यूहन्ना को छोड़ दिया। फिर यीशु स्वयं अकेले बगीचे में और अंदर गहन अंधकार में जैतून पेड़ों के नीचे चले गये। उस स्थान पर पहुंचकर ‘‘बहुत ही अधीर (अत्यधिक निस्तब्ध) और व्याकुल (बेहद व्यथित) होने लगे और उन से कहा; मेरा मन बहुत उदास है, यहां तक कि मैं मरने पर हूं.......और भूमि पर गिरकर प्रार्थना करने लगे कि यदि हो सके तो यह घड़ी मुझ पर से टल जाए।" (मरकुस १४:३३‚ ३५)
जे. सी. राईल ने कहा था‚ धर्मशास्त्र में गैतसेमनी के बगीचे में हमारे प्रभु की वेदना का वर्णन बहुत गहन और रहस्यमय है। इसमें वे बातें निहित हैं जो अति विद्धान धर्मविज्ञानी भी नहीं बता सकते हैं.......तथापि इसमें (गूढ़) महत्व की सीधी सच्चाई का वर्णन हैं (जे. सी. राईल‚ एक्सपोजिटरी रिमार्क्स ऑन मार्क‚ दि बैनर ऑफ ट्रूथ ट्रस्ट‚ १९९४‚ मरकुस १४:३२—४२ पर व्याख्या)
चलिये‚ विचारों में आज शाम गैतसेमनी में बितायें। मरकुस की पुस्तक में वर्णन मिलता है कि वे ‘‘बहुत ही अधीर बेहद निस्तब्ध" थे (मरकुस १४:३३) । यूनानी भाषा में इसके लिये शब्द है ‘‘एक्सथेंबेस्थाय —जिसका अर्थ है‚ अत्यधिक व्याकुल‚ अत्यधिक हताश‚ विस्मित और बैचेन।" और वह थोड़ा आगे बढ़े और भूमि पर गिरकर प्रार्थना करने लगे" ....... और उन से कहा‚ ‘‘मेरा मन बहुत उदास है, यहां तक कि मैं मरने पर हूं" (मरकुस १४:३४‚ ३५)
जे सी राईल ने कहा था, इन भावों के लिये केवल एक तर्कपूर्ण व्याख्या है । यह मात्र शारीरिक पीड़ा सहने का भय मात्र नहीं था....... यह मनुष्य जाति के असाधारण पाप का बोझ का दवाब था जिसने उन्हें उस घड़ी पीड़ित करना आरंभ कर दिया। यह हमारे पापों और अधर्म का (अकथनीय) भार था, जो उस समय उनके उपर रखे गये थे। वह हमारे लिये ‘श्रापित’ ठहराये गये। वह हमारे दुख और संताप को सहन कर रहे थे.....वह हमारे लिये ‘पापी ठहराये गये जो स्वयं पाप को जानते तक नहीं थे।’ उनके पवित्र स्वभाव ने (गहराई से) उनके भीतर लादे गये इस छिपे बोझ को महसूस कर लिया। बगीचे में यीशु की अपार मानसिक वेदना के पीछे ये कारण थे। गैतसेमनी में प्रभु के अत्यधिक संताप को देखकर हमें हमारे पापों की अतिशयता का बोध होना आवश्यक है। (आज के धर्मविज्ञानियों को) जिसे पाप मानना चाहिये, उसे लेकर उनके विचार बहुत कम स्तर के हैं। (राईल पेज ३१७)
जब कि आप विडियो गेम्स‚ पोर्नोग्राफी‚ नाच गाना और शराबखोरी में लगे रहते हैं और इनके कारण चर्च से गैरहाजिर रहने और बाइबल नहीं पढ़ने को हल्का पाप तो नहीं समझते हैं। आप के ये सारे पाप गैतसेमनी में यीशु के उपर लादे गये थे। पर इससे बढ़कर भी आगे — कुछ और है। जो सबसे बड़ा पाप गैतसेमनी के बगीचे में यीशु के उपर लादा गया‚ वह हमारा मूल पाप था‚ हमारे पूर्ण भ्रष्ट होने का पाप‚ जो हमारे संपूर्ण रूप से भ्रष्ट पापी होने का कारण है। यह वह ‘‘सड़ाहट है जो संसार में बुरी अभिलाषाओं से होती है" (२ पतरस १:४) यह सच्चाई है कि ‘‘हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं" (यशायाह ६४:६)। हमारे स्वभाव में पाया जाने वाला स्वार्थ, लालच और विद्रोह हमें परमेश्वर यहोवा के विरोध में खड़ा करता है। ये हमारे ‘‘दैहिक विचार हैं (जो) परमेश्वर पिता के विरूद्ध बने रहते हैं" जो उनसे विद्रोह करते हैं और उनके विरोध में ही जाते हैं (रोमियों ८:७) । हमारा मानस भददा व घृणास्पद है। यह पापयुक्त हृदय हमें आदम, जो पहिला पापी मनुष्य था, उससे मिला है। यह पापी स्वभाव आदम से हमारे वंशाणु‚ हमारे रक्त और हमारी आत्मा में प्रविष्ठ कर गया। (रोमियों ५:१२) — ‘‘इसलिये..........जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से (बहुत लोग) पापी ठहरे" (रोमियों ५:१९) ।
देखिये‚ कितने छोटे छोटे शिशु भी पाप में ही जन्म लेते हैं। ए. डब्ल्यू पिंक ने कहा था‚ मनुष्य की भ्रष्टता का स्वभाव शिशुपन में ही प्रकट हो जाता है..........और कितनी जल्दी यह दिख पड़ता है! अगर मनुष्य ने कोई अच्छाई (उत्तराधिकार) में पायी होती‚ तो यह (नये जन्में शिशुओं) से ही प्रकट होने लगती‚ जबकि इस संसार के संपर्क में आने पर उनमें बुरी आदतों का निर्माण जल्द होने लगता है। क्या हम शिशुओं को अच्छा पाते हैं? इससे भी बढ़कर जो सत्य है‚ वह यह है। परंतु मनुष्यों में अपरिवर्तनशील परिणाम यह है कि जैसे जैसे (वे) बड़े होते हैं उनमें बुराई की ओर झुकाव स्वतः बढ़ता है। बालक जिद‚ डाह और प्रतिशोध प्रकट करते हैं। जो उनके लिये अच्छा नहीं है‚ उसी को पाने के लिये रोते हैं और (माता पिता से मुंह फुला) लेते हैं‚ जब मना किया जाता है तो अक्सर उन्हें (काटने) का प्रयास करते हैं। वे ईमानदारी के मध्य पैदा होते और बढ़ने लगते हैं परंतु कोई (वस्तु चुराने का) अपराध बोध उनमें प्रकट होता है‚ इसके पहिले भले ही किसी को चोरी करते हुए उन्होंने देखा ही न हो। मानव स्वभाव की ये (गलतियां) ..........प्रारंभ से ही (पापयुक्त) प्रकट होने लगती हैं। (ए. डब्ल्यू पिंक‚ ग्लीनिंग्स फ्राम दि स्किपचर्स‚ मैंस टोटल डिप्रेविटी‚ मूडी प्रेस‚ १९८१‚ पेज १६३‚ १६४)। मिनेसोटा क्राईम कमीशन ने अपनी एक रिपोर्ट में इसे और स्पष्ट किया है। ‘‘प्रत्येक छोटा बच्चा अपना जीवन एक छोटे असभ्य के रूप में ही आरंभ करता है। वह पूर्णतः स्वार्थी और स्वकेंद्रित होता है। जो चीज उसे चाहिये अर्थात चाहिये..........अपनी मां का ध्यान‚ अपना प्रिय खिलौना‚ अपने अंकल की घड़ी। इन चीजों को देने से आपने अगर इंकार किया तो वह असभ्यों के समान चीखने लगता है। वह अपनी बात मनवा कर ही दम लेता है..........इसका यह अर्थ है कि सब बच्चे पैदायशी दोषी होते है अर्थात पापी" (हैडन डब्ल्यू रॉबिनसन‚ बिब्लीकल प्रीचिंग‚ बेकर बुक हाउस‚ १९८०‚ पेज १४४‚ १४५)
जैसे हम शिशु रूप में श्वास लेते है‚
पाप के बीज मौत के लिये बढ़ने लगते हैं
आप की आज्ञा सिद्ध हृदय मांगती है‚
परंतु हम तो हर भाग में भ्रष्ट पाये जाते हैं
(‘‘भजन ५१" डॉ आयजक वाटस‚ १६७४—१७४८)
जन्म लेते ही बालक चीख कर रोता है। जानवरों के बच्चे ऐसा नहीं करते हैं। मनुष्यों के बच्चों के समान अगर वे चीखते या हल्ला मचाते हैं तो उन्हें दूसरे जानवरों द्धारा मारे जाने का भय होता है। परंतु मनुष्य के बच्चे परमेश्वर, उनकी सत्ता, और अपने पैदा होने के बाद के क्षणों के लिये चीखते हैं। क्यों? क्योंकि आप आदम द्धारा आप के भीतर उत्पन्न हुए पाप के कारण चीखते हैं। इसलिये आप की प्रवृत्ति चीखने की ही है, मसीही अगुवों के साथ असहमति की है, अपना रास्ता चुनने की है और जो सही है उसका इंकार करने की है। समस्त संसार के दुख भोगने और मृत्यु होने का कारण - जन्मते ही आप के भीतर बसा हुआ पाप है। इसीलिये उद्धार पाने के बाद भी आप पाप करते हैं। आप के माता पिता सोचते हैं कि आप युवा क्रिश्चयन हैं किंतु आप सच्चाई यह है कि आप युवा पापी जन है जो परमेश्वर यहोवा की इच्छा पूरी करने से करते हैं!
मनुष्य के द्वारा मन, वाणी और कर्म से किये जाने वाले सारे पापों को आदम से मिले मूल पाप में जोड़ लीजिये, तो यह समझना सरल हो जायेगा कि क्यों यीशु इतने आघात में थे! वह भीतर ही भीतर कुचले गये जब परमेश्वर यहोवा ने जगत के पापों को उनके भीतर लाद दिया।
बाइबल में लूका की पुस्तक में इस वर्णन को खोल लीजिये। स्कोफील्ड स्टडी बाइबल में यह पेज संख्या ११०८ पर मिलता है। अपने स्थानों पर खड़े होकर इसे उंचे स्वर में पढ़ें।
‘‘और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था" (लूका २२:४४)
अब आप बैठ सकते हैं। उस बगीचे में हमारे प्रभु जिस गहनतम पीड़ा से होकर गुजरे‚ उस को आप कैसे (समझा) सकते हैं? उनकी मानसिक व शारीरिक दोनों प्रकार की इस घोर वेदना का कारण क्या (रहा होगा)? इसका एकमात्र संतोषजनक उत्तर है। (इस) जगत के पाप जो उनके भीतर अभ्यारोपित किये गये‚ ये उसका भार था‚ जो असहनीय बोझ बन कर उभर रहा था......उन (पापों) का भीषण बोझ उनके लिये अपार कष्ट बन गया। (इस) संसार के पापों के बोझ ने उन्हें इस तरह कुचल डाला कि परमेश्वर के शाश्वत पुत्र के रक्त की बड़ी बूंदे पसीने की तरह टपकने लगी। (जे. सी. राईल‚ लूका‚ वॉल्यूम २‚ दि बैनर ऑफ ट्रूथ ट्रस्ट‚ २०१५ संस्करण‚ पेज ३१४‚ ३१५‚ लूका २२:४४ पर व्याख्या)
‘‘जो पाप से अज्ञात था‚ उसी को उस (परमेश्वर) ने हमारे लिये पाप ठहराया" (२ कुरूं ५:२१)
‘‘यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया" (यशायाह ५३:६)
‘‘वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिए हुए क्रूस पर चढ़ गया" (१ पतरस २:२४)
जे सी राईल का कथन था‚ ‘‘हमें उस प्राचीन सिद्धांत पर अडिग रहना चाहिये कि मसीह ने (गैतसेमनी) बगीचे में और क्रूस पर हमारे पापों को उठा लिया। कोई भी सिद्धांत मसीह के (रक्तिम पसीने को) नहीं समझा सकता या मनुष्य के दोषी विवेक को संतुष्ट कर सकता है" (उक्त संदर्भित)। जोसेफ हार्ट ने कहा था‚
परमेश्वर के दुख सहते बेटे को देखों‚
हांफता‚ कराहना‚ रक्त बहाते हुए!
इतनी गहनतम पीड़ा
जिसे स्वर्गदूत भी नहीं जान पायें।
सिर्फ और सिर्फ परमेश्वर को
ज्ञात था पूर्णतः उस पाप का बोझ।
(‘‘दाइन अननोन सफरिंग्स" जोसेफ हार्ट‚ १७१२—१७६८
‘‘इट इज मिडनाईट एंड ऑन आलिव्स ब्रो" की धुन पर)
पुनः जोसेफ हार्ट ने कहा‚
वहां परमेश्वर के बेटे ने मेरे सारे दोष अपने उपर ले लिये;
अनुग्रह के द्वारा हम यह विश्वास कर सकते हैं;
किंतु इतनी भयावहता जो उन्होंने सही
वह समझ पाने के लिये अति विशाल है।
कोई उस निराशाजन्य‚ गहन अंधकार‚
को गैतसेमनी के भेद नहीं सका।
(‘‘मैनी वोज ही हेज ऐंडयोर्ड" जोसेफ हार्ट‚ १७१२—१७६८
कम यी सिनर्स की धुन पर")
विलियम विलियम ने कहा‚
मनुष्यों के अपराधों का वह बड़ा बोझ जो मसीहा पर रखा गया था;
जिसमें शोक को वस्त्र जैसे धारण करे‚ वह पापियों के लिये सजाया गया‚
पापियों के लिये सजाया गया।
(‘‘लव इन एगोनी" विलियम विलियम‚१७५९;
‘मैजेस्टिक स्वीटनैस सिटस ऑन एनथ्रोनड" की धुन पर)
‘‘और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था" लूका २२:४४
‘‘यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया" (यशायाह ५३:६)
यह हमारे बदले में दिये गये बलिदान का आरंभ था। ‘‘बदले में" का अर्थ है कि किसी एक व्यक्ति के स्थान पर दूसरे व्यक्ति द्वारा दुख उठाने से तात्पर्य है। मसीह आप के स्थान पर कष्ट सहन कर रहे हैं‚ आप के पापों के लिये‚ उनके स्वयं के कोई पाप नहीं थे। गैतसेमनी में जैतून के पेड़ों के नीचे‚ मसीह हमारे पाप के वाहक ठहरे। अगली सुबह उन्हें कीलों से ठोंका जाना था‚ हमारे पाप का पूर्ण मूल्य चुकाने के लिये। ऐसे प्यार का इंकार आप कैसे कर सकते हैं — वह प्रेम जो यीशु का आप के लिये प्रकट है? कैसे आप अपने दिल को इतना कड़ा कर सकते हैं? इस तरह परमेश्वर के पुत्र आप के स्थान पर आप के पापों का दाम चुकाने के लिये क्रूस पर चढ़ गये। क्या आप इतने शुष्क और निष्क्रिय दिल के हैं कि उनका प्रेम आप के लिये कुछ मायने नहीं रखता?
क्या मैं आप से पूछ सकता हूं कि क्या आप इतने शुष्क और निष्क्रिय दिल के हो गये हैं कि जब आप यीशु के कष्ट सहने का वर्णन सुनते हैं तो आप का दिल नहीं पिघलता। क्या आप इतने विचित्र हो गये हैं कि मैं जब आप को यीशु की पीड़ा के बारे में सुनाता हूं जो उन्होंने आप के पापों के बदले सही‚ तब भी आप अप्रभावित ही बने रहते हैं? क्या आप यीशु को कीलें ठोंकने वाले सैनिकों जितने निर्दयी हो गये हैं — जिन्होंने उनके मरते समय के वस्त्र को भी बांट लिया था? काश‚ ऐसा नहीं हो! मैं आज शाम आप से आग्रह करता हूं कि आप उनके पवित्र रक्त से धुलकर शुद्ध हो जाइये!
आप कहेंगे कि ‘‘बहुत त्याग करना पड़ेगा।" सुनिये‚ आप शैतान की बातों को सुनने से इंकार कर दीजिये! यीशु पर विश्वास रखने से बढ़कर और कुछ महत्व की चीज नहीं है!
ओह! क्या मेरे मसीहा का रक्त बहा? क्या मेरे परम पिता ने प्राण दिये?
क्या मेरे जैसे अस्तित्वहीन के लिये वे अपने पवित्र शीश को अर्पित कर देंगे?
किंतु प्रेम के उस कर्ज को शोक रूपी (आंसु) भी चुका (नहीं सकते);
अब प्रभु मैं स्वयं को आप को अर्पित करता हूं‚ केवल यही मैं कर सकता हूं।
(‘‘अलास! ऐंड डिड माय सेवियर ब्लीड?" डॉ आयजक वाटस‚ १६७४—१७४८)
क्या आप यीशु पर विश्वास करने के लिये तैयार है? क्या आप स्वयं को पूर्ण रूप से उन्हें सौंपने के लिये तैयार है? क्या आप हृदय में उनके प्रति प्रेम से भरकर व्यथित है? अगर नहीं है, तो यहां से मत जाइये। अगर आप व्यथित हैं तो आगे आकर प्रथम दो पंक्तियों में बैठिये। आमीन।
अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व बैंजामिन किंकेड ग्रिफिथ का एकल गान:
‘‘गैतसेमनी‚ दि ऑलिव प्रेस!" (जोसेफ हार्ट‚ १७१२—१७६८;
‘‘इट इज मिडनाईट एंड ऑन आलिव्स ब्रो" की धुन पर).