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देखना अथवा विश्वास करना?

SEEING OR BELIEVING?
(Hindi)

डॉ आर एल हिमर्स जूनि.
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

रविवार संध्या‚ ४ फरवरी‚ २०१८ ल्योस ऐंजीलिस के बैपटिस्ट टैबरनैकल चर्च मे
प्रचार किया गया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Evening, February 4, 2018

‘‘उस से तुम बिन देखे प्रेम रखते हो और अब तो उस पर बिन देखे भी विश्वास करके ऐसे आनन्दित और मगन होते हो‚ जो वर्णन से बाहर और महिमा से भरा हुआ है। और अपने विश्वास का प्रतिफल अर्थात आत्माओं का उद्धार प्राप्त करते हो" (१ पतरस १:८‚९)


पतरस उन लोगों से बोल रहे थे जिन्होंने यीशु को कभी नहीं देखा था। जब यीशु पृथ्वी पर थे‚ तब उस भीड़ ने उन्हें कभी नहीं देखा था। यद्यपि‚ भीड़ को उद्धार उनके द्वारा ही प्राप्त हुआ था। ऐसे अनेक लोग थे, जिन्होंने यीशु को उनके पृथ्वी पर निवास काल के समय में देखा था। परंतु तौभी उन्होंने उद्धार प्राप्त नहीं किया। निश्चित ही हम भी महान स्पर्जन के समान ऐसा कह सकते हैं — ‘‘देखना विश्वास करना नहीं है‚ परंतु विश्वास करना ही देखना है।" स्पर्जन के संदेशों में से एक संदेश का शीर्षक भी यही था। यह हमारे आज के संदेश के पद पर आधारित था। मैं स्पर्जन के संदेशों को आप के लिये सरल कर दूंगा।

१॰ पहिली बात‚ देखना विश्वास करना नहीं कहलाता है।

इस बात को जानने के लिये हमें अधिक बाइबल जानने की आवश्यकता नहीं है। चारों सुसमाचार की पुस्तकों में ऐसे लोगों का वर्णन हैं जिन्होंने यीशु को देखा था। उन्होंने यीशु को प्रत्यक्ष देखा। परंतु यीशु पर विश्वास नहीं कर सके। यहूदा इस्किरियोति तो यीशु के चेलों में से ही एक था। परंतु उसने यीशु पर विश्वास नहीं किया। उसने तीन वर्षो तक यीशु का अनुसरण किया। यीशु के साथ साथ रहा। यीशु के साथ खाया। यीशु के नाम से दुष्टात्मायें निकाली। यीशु के बारे में प्रचार भी किया। यीशु से बहुत घनिष्टता और निकटता का संबंध था। यहां तक कि यीशु यहूदा को अपना मित्र भी कहते थे। किंतु यहूदा ने यीशु पर कभी विश्वास नहीं किया। इसीलिये उसने यीशु को चांदी के तीस सिक्कों के लिये धोखा दे दिया। इसीलिये वह बाहर चला गया और स्वयं को फांसी लगा ली और नर्क में गया। अन्य चेले भी इतने अच्छे नहीं थे। वे भी यीशु पर इतना विश्वास नहीं करते थे। यीशु उनसे बोले मैं दुख उठाने और मरने यरूशलेम जा रहा हूं। ‘‘परंतु उन्होंने इन बातों में से कोई बात न समझी जो कहा गया था........ वह उन की समझ में न आया" (लूका १८:३४) उन्होंने यीशु पर तब तक विश्वास नहीं किया जब तक यीशु ने उन पर पवित्र आत्मा नहीं फूंका (यूहन्ना २०:२२) । थोमा ने तो उसके बाद तक भी यीशु पर विश्वास नहीं किया था! यीशु के साथ ये चेले तीन वर्षो तक रहे। परंतु वे यीशु पर विश्वास नहीं ला पाये। राजा हेरोदेस ने यीशु को देखा किंतु विश्वास नहीं किया। पीलातुस ने देखा, उसने विश्वास नहीं किया। फरीसियों ने उन्हें आश्चर्यकर्म करते हुए देखा, तो विश्वास नहीं किया। सदूकी और शास्त्री उनसे वार्तालाप करते थे परंतु उन पर विश्वास नहीं लाये। अपार जनसमूह को उन्होंने भोजन करवाया और उनके सामने अनेक आश्चर्यकर्म किये तौभी भीड़ उन पर विश्वास नहीं कर सकी। बहुत थोड़े ही जन होंगे, जिन्होंने यीशु को प्रत्यक्ष देख कर उन पर विश्वास किया! बहुत ही थोड़े जन! कितना विस्मित कर देने वाले सत्य है! यह इतना चौंकाने वाला सत्य है कि शिष्य यूहन्ना ने इसके बारे में लिख दिया। यूहन्ना लिखते हैं, ‘‘वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया" (यूहन्ना १:११) । यीशु को पृथ्वी पर देख कर विश्वास करने वाले केवल मुटठी भर लोग ही थे।

इन तथ्यों से हम यह जान पाते हैं कि ‘‘देखना अर्थात विश्वास करना नहीं होता है।" हांलाकि आप में से कई यह सोच रहे होंगे कि अगर आप उन्हें देखते तो उन पर अवश्य विश्वास लाते। आप इस बात को मानेंगे नहीं परंतु यह सत्य है। आप किसी चीज को ‘‘महसूस" करना चाहते हैं यह सिद्ध करने के लिये कि यीशु वास्तविक हैं।

आप किसी ‘‘अहसास" को खोजते हैं या फिर किसी बाइबल के पद को‚ जिसमें प्रतिज्ञा दे रखी हो। अहसास आप को समझ में आता है। बाइबल की प्रतिज्ञा आप को समझ आती है। परंतु यीशु को आप देख नहीं सकते। उन पर विश्वास नहीं लाने का यही बहाना आप के पास है। उन पर भरोसा नहीं करने के लिये यही आधार आप ने बनाया है। उन पर विश्वास नहीं करने के लिये आप ने बहाना गढ़ा है। आप ने उद्धार प्राप्त नहीं किया है‚ उसके लिये आप यह उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। परंतु मैं आप से कहता हूं‚ ‘‘देखना विश्वास करना नहीं कहलाता।" किसी चीज का अहसास करना‚ उस पर विश्वास करना नहीं कहलाता है। बाइबल की प्रतिज्ञा को दोहराना विश्वास करना नहीं कहलायेगा। किसी आश्चर्यकर्म को देखना विश्वास करना नहीं कहलायेगा। जितने भी अविश्वासियों का वर्णन मैंने किया वे सब बाइबल के पद जानते थे। सबने यीशु को देखा भी था। लगभग सभी ने उन्हें आश्चर्यकर्म करते हुए देखा था। तौभी उन पर विश्वास नहीं लाये। उनमें से अधिकतर लोग मर गये और नर्क गये क्योंकि यीशु को अनेकों बार देखते हुए भी उन्होंने उन पर कभी विश्वास नहीं किया!

यशायाह भविष्यवक्ता ने यीशु के विषय में कहा था। यशायाह के यह वचन थे‚ ‘‘वह तुच्छ जाना जाता और मनुष्यों का त्यागा हुआ था" (यशायाह ५३:३) । धर्मशास्त्री बार्नेस की व्याख्या कहती है‚

वह तुच्छ जाना गया........वह मुक्तिदाता होकर सदूकियों‚ फरीसियों और रोमी लोगों के बीच घृणा व तिरस्कार के पात्र बने। इस संसार में अपने जीते जी वे तुच्छ जाने जाते रहे‚ मरे भी तुच्छता के साथ और उसके बाद भी उनके नाम और व्यक्तित्व को लोगों ने तुच्छ ही जाना।

मनुष्यों द्धारा उनका इंकार किया गया.......यह वाक्यांश अपने आप में संपूर्ण है। यह मनुष्य के संपूर्ण इतिहास को बताता है कि उसने मुक्तिदाता के साथ कैसा व्यवहार किया। ‘‘मनुष्यों (द्धारा) त्यागा गया" यह वाक्यांश अत्यंत अवसाद और निराशाजन्य इतिहास को प्रस्तुत करता है। यहूदियों ने उनका इंकार किया। धनवान‚ महान और विद्धानों ने उन्हें नहीं स्वीकारा। हर वर्ग और आयु और स्तर के लोगों ने उनकों मानने ने इंकार किया।

पुल्पिट कमेंटरी ऐसा कहती है‚

उनको तुच्छ समझा गया। कुछ तो लोगों ने उनकी शिक्षाओं के उपर कम ध्यान देकर प्रदर्शित किया। कुछ ने उनके क्रूस पर चढ़ाये जाने के पूर्व की रात और दिन को अपने व्यवहार से दर्शा दिया। मनुष्यों ने उनका इंकार किया........और बल्कि कहें तो उन्हें त्याग ही दिया........हमारे प्रभु मात्र एक ‘‘छोटे झुंड" तक ही सिमट कर रह गये। बल्कि उनमें से भी कुछ उन्हें छोड़कर चले गये और फिर उनके साथ नहीं चले। कुछ केवल रात में उनसे भेंट करने आते थे। सारे ‘‘शासक" और महान लोग उनसे अलग थलग ही रहते थे। अंत समय में उनके अपने शिष्यों ने भी ‘‘साथ छोड़ दिया और चले गये।"

यीशु के इस संसार में रहने के दिनों में लगभग जिन्होंने उन्हें देखा था‚ उनको मानने से इंकार ही किया। क्या आप उन लोगों से अलग कहलाना पसंद करेंगे? अगर आप मन परिवर्तन नहीं करते हैं तो आप भी ठीक उन के समान ही कहलायेंगे! आप भी उन्हें तुच्छ समझते और उनका इंकार करते हैं। आप अपना मुख उनसे छिपाते हैं। आप में और उन लोगों में कोई अंतर नहीं होगा, जिन्होंने यीशु को साक्षात्कार देखने के उपरांत भी उनका विश्वास नहीं किया! उन्होंने उन्हें देखा। उनकी आवाज सुनी। किंतु तौभी अविश्वासी बने रहे। इसलिये देखना विश्वास करना नहीं होता है!

२॰ दूसरी बात‚विश्वास करना देखना कहलाता है!

‘‘उस से तुम बिन देखे प्रेम रखते हो और अब तो उस पर बिन देखे भी विश्वास करके ऐसे आनन्दित और मगन होते हो‚ जो वर्णन से बाहर और महिमा से भरा हुआ है। और अपने विश्वास का प्रतिफल अर्थात आत्माओं का उद्धार प्राप्त करते हो" (१ पतरस १:८‚९)

पतरस जिस भीड़ को संबोधित करते हैं‚ उस भीड़ ने यीशु को कभी नहीं देखा था। तौभी उन्होंने उन पर विश्वास किया और यीशु के द्धारा उद्धार प्राप्त किया! क्यों उन्होंने यीशु पर विश्वास किया‚ जिन्हें उन्होंने कभी आमने सामने देखा नहीं‚ कभी जिनकी आवाज नहीं सुनी‚ जिनका स्पर्श नहीं किया? महान धर्म सुधारक कैल्विन के पास इसका उत्तर है। कैल्विन कहते हैं‚ ‘‘कोई व्यक्ति अपनी समझ के बल पर स्वयं को कभी परिवर्तित कर पायेगा........केवल परमेश्वर पिता का आत्मा (उसे) सुधारता और उसे नया बनाता है।"

वही समान पवित्र आत्मा आज भी यीशु पर विश्वास लाने में सहायक हो सकता है। भले ही आज — जागती आंखों से आप यीशु को नहीं देख सकते हैं। भले ही आज आप उनके शरीर का स्पर्श क्यों न कर पायें — किंतु वही समान पवित्र आत्मा आज भी आप को यीशु के संपर्क में ला सकता है।

यीशु से संपर्क का पहिला बिंदु प्रेम है। हमारा पद कहता है‚ ‘‘जिससे तुम बिन देखे प्रेम रखते हो।" ‘‘आप ने उन्हें देखा नहीं, तौभी आप उनसे प्रेम रखते हैं।" यीशु का प्रेम हम तक कई रूपों में पहुंचता है। जब मैंने चर्च जाना आरंभ किया था, मेरे रिश्तेदार मेरा मखौल उड़ाते थे। साथ में यीशु का भी उपहास उड़ाते थे। वे मुझसे पूछते, कैसे तुम यीशु पर विश्वास ला सकते हो? उन्होंने तुम्हारे लिये किया ही क्या है?" जितना वे यीशु के लिये हास परिहास करते, मैं यीशु के प्रति और प्रेम से भरता जाता। मेरे चर्च में भी कुछ बिगड़ैल बच्चे थे। वे यीशु की माता के उपर लतीफे बनाते कि उनकी माता अच्छे चरित्र की स्त्री नहीं थी। वे कहते, यीशु अवैध संतान थे। वे हंसते। जितना वे हंसते मैं उतना यीशु के प्रति प्रेम से भरता जाता।

ईस्टर के अवसर पर जब मैं यीशु के बारे में सोचता‚ मैं उनके प्रति प्रेम से ओत प्रोत हो जाता। क्रूस पर उनके पीड़ा सहने से मुझे प्यार हो गया था। जिस बेरहमी से उनके हाथ और पैरों में कीलें ठोंकी गयी‚ वह वर्णन मेरे को चीर कर रख देता था। क्रूस पर उनके पीड़ा सहने से मुझे प्यार हो गया था। जिस बेरहमी से उनके हाथ और पैरों में कीलें ठोंकी गयी‚ उसका वर्णन‚ मेरे मर्म को चीर कर रख देता था। मैं समझ नहीं पाता कि इतनी क्रूरता का बर्ताव उन्होंने यीशु के साथ आखिर क्यों किया? और मैं उनके प्रति अगाध सहानुभूति और दुख से भर जाता।

मैं एक अकेला लड़का था। मेरे माता पिता नहीं थे‚ जो मुझे खुश और प्रसन्न रखते। मैं सोचता कि यीशु भी अकेले थे — उनका कोई ऐसा मित्र नहीं था जो उन्हें आराम दे सके — इस विचार से मैं और अधिक उन के प्रति प्रेम से भर जाता। मैं अपने मन में कह उठता‚ ‘‘यीशु अगर आप को कोई प्यार नहीं करता तो मैं आप से प्यार करूंगा!" और यह यीशु का मेरे प्रति प्रेम था, जिस ने मेरी आत्मा को उनकी ओर खींच लिया। जिस दिन मैंने उद्धार पाया, लोग चार्ल्स वैस्ली का भक्ति गीत गा रहे थे। हर अंतरे के शब्द मेरे हृदय को तोड़ते जा रहे थे। ‘‘कितना अदभुत प्यार, कि मेरे प्रभु, मेरे लिये अपनी जान दे दे।" ‘‘कितना अदभुत प्यार, कि मेरे प्रभु, मेरे लिये अपनी जान दे दे।"

यीशु मानव देह में परमेश्वर थे। उन्होंने उस खुरदुरे लकड़ी के क्रूस पर मेरे परमेश्वर को कीलों से जड़ दिया। ‘‘कितना अचंभित कर देने वाला प्यार है ये!" इस घटना ने मेरे दिल को तोड़ दिया। मैंने यीशु पर विश्वास किया। उनके मेरे प्रति प्रेम — और मेरे उनके प्रति प्रेम रखने के कारण मैं उनके संपर्क में आया।

मैं नहीं सोचता कि यहां कोई जॉन कैगन को कायर कहेगा। आप जॉन को उसके चरित्र की ताकत के लिये पसंद करते हैं। एक समय था‚ अपने अस्तित्व की रग — रग से उसने यीशु को मानने से इंकार किया था। मेरे परामर्श कक्ष में‚ मैं जो उन्हें समझाता था‚ किसी बात ने उन पर कोई असर नहीं डाला। उनका मानना था कि‚ ‘‘यह विचार मुझे हताश कर देता था कि मुझे यीशु को अपना जीवन समर्पित करना पड़ेगा‚ सरल सी बात थी कि मैं ऐसा कभी नहीं कर पाउंगा। यीशु ने अपना जीवन मेरे लिये दिया। वह मेरे लिये क्रूसित होने के लिये गये‚ जब कि मैं उनका विरोधी ही था। और मैं उनके सामने अपने को समर्पित नहीं कर पाउंगा। यह विचारधारा शनैः शनैः मुझे तोड़ने लगी। मेरे भीतर चल रहे द्वंद को मैं अधिक देर तक सहन नहीं कर सका। मुझे अब यीशु को पाने की तीव्र उत्कंठा पैदा हुई। मैंने उसी क्षण यीशु को समर्पण कर दिया और विश्वास से उनके पास आ गया........मुझे किसी भावना की आवश्यकता नहीं थी। मेरे पास अब यीशु थे!......मैं जो बिल्कुल अयोग्य पापी इंसान था‚ यीशु ने कैसे अपने प्रेमवश मेरे पापों को क्षमा कर दिया। यीशु ने मेरे लिये अपना जीवन बलिदान किया और अब मैं अपना सर्वस्व उनके लिये देता हूं......यीशु ने मेरे भीतर की नफरत और क्रोध को ले लिया और बदले में मेरे दिल को प्रेम से सराबोर कर दिया।"

महान स्पर्जन कभी जॉन कैगन से नहीं मिले। परंतु उनका लेखन इस प्रकार का था जैसे वह जॉन की मनोदशा को जानते हों। स्पर्जन ने कहा था, ‘‘आखिरकार यह देखने की बात नहीं है — देखना बाहरी प्रक्रिया है — यह तो यीशु के विषय में सोचने की बात है, समझने की बात है, उनसे प्रभावित होने की बात है। ये बातें हमें यीशु के सच्चे संपर्क में लेकर आती हैं। इस तरह मसीह से प्रेम रखना‚ उनसे संयुक्त होने का एक वास्तविक माध्यम हो जाता है........ यह प्रेम ही है जिसके कारण मसीहा हमारे दिल को सच्चे प्रतीत होते हैं इसलिये प्रेम जो संबंध आप के और मसीह के बीच स्थापित करता है‚ उसे व्यक्ति या वस्तु के स्पर्श की आवश्यकता नहीं है।" ‘‘यद्यपि आप ने उन्हें देखा नहीं है, तौभी आप उनसे प्रेम रखते हैं।"

परंतु हमारे इस पद में यीशु के साथ संबंध रखने के लिये एक दूसरा बिंदु भी दिया हुआ है — ‘‘अब तो उस पर बिन देखे भी विश्वास करते हो।" ‘‘बिन देखे भी विश्वास करते हो।" यहां हमें इस तथ्य से अवगत करवाया गया है कि हम उन पर बिन देखे भी विश्वास ला सकते हैं। ‘‘अब तो उस पर बिन देखे भी तुम विश्वास करके ऐसे आनन्दित और मगन होते हो...." बिन देखे भी विश्वास लाते हो! विश्वास लाते हो! पतरस जिस भीड़ को संबोधित करते हैं‚ उस भीड़ ने यीशु को कभी नहीं देखा था। कभी उनकी आवाज नहीं सुनी‚ उनका स्पर्श नहीं किया। किंतु तौभी वे उन्हें जानते थे! ‘‘और अब तो उस पर बिन देखे भी तुम विश्वास करके ऐसे आनन्दित और मगन होते हो" "यीशु को सशरीर देखे बिना तुम विश्वास लाते हो।"

हैलेन कैलर पूर्ण रूप से अंधी और बहरी पैदा हुई थी। एन सूलिवेन नामक एक महिला ने उन्हें बात करना सिखाया। यह एक अदभुत कहानी थी। जब मैं छोटा लड़का था‚ मैं रेडियों पर हैलेन कैलर का व्याख्यान सुनता था। हैलेन कैलर यीशु में विश्वास रखती थीं! आप भी यीशु में विश्वास में रख सकते हैं — भले ही आप उन्हें देख नहीं पाते या सुन नहीं पाते हैं!

यीशु पर विश्वास करना आप को उनके साथ संपर्क में लेकर आता है। प्रेम और विश्वास दोनों यीशु से संपर्क रखने के मुख्य बिंदु हैं। ये दोनों हमें मसीहा से संयुक्त करते हैं। ‘‘उस से तुम बिन देखे प्रेम रखते हो और अब तो उस पर बिन देखे भी विश्वास करके ऐसे आनन्दित और मगन होते हो‚ जो वर्णन से बाहर और महिमा से भरा हुआ है।" ‘‘और अब तो उस पर बिन देखे भी विश्वास करके ऐसे आनन्दित और मगन होते हो!"

एमी जबाल्गा, हमारे चर्च की पियानो वादक की साक्षी सुनिये। वह एक संवेदनशील महिला हैं। जो वह बताती हैं, आप उन पर भरोसा कर सकते हैं‚

     मैं यीशु पर विश्वास नहीं करती थी। ‘‘यीशु" मेरे लिये बस एक शब्द थे‚ एक सिद्धांत‚ एक ऐसे व्यक्ति जिनका अस्तित्व तो है‚ किंतु वे मुझसे बहुत दूर रहते हैं। बजाय यीशु की ओर तीव्रता से निहारने के मैं किसी भावना या ऐसे किसी अनुभव की तलाश में थी।
     एक रात अचानक मुझे अहसास हुआ कि यीशु मेरे लिये मरे। उस रात (मेरे विचारों में) उनकी छवि उभर आयी‚ मैंने उन्हें गैतसेमनी के बगीचे में मेरे पाप के बोझ तले‚ वेदना के साथ‚ पसीना बहाते हुए आहें भर के प्रार्थना करते हुए देखा। मेरी उस छवि में क्रूस पर चढ़े मसीहा सामने आ रहे थे। (उस छवि में) मैने उनके रक्तरंजित बलिदान को देखा। मेरे इंकार करने के कारण उनको भाले से बेधा जाते हुए देखा। किंतु मैंने अभी तक उन पर विश्वास नहीं किया था। मैं किसी भावना की ही तलाश में भटक रही थी।
     डॉ हिमर्स ने श्रेष्ठगीत पुस्तक से मसीह के प्रेम का संदर्भ लेकर संदेश देना आरंभ किया। जैसे जैसे मैं सुनती गयी‚ मसीह मेरे लिये और अधिक प्रियतम होते चले गये। मैं उनके लिये व्यथित रहने लगी। मैंने वह पद सुना‚ ‘‘हे मेरी सुन्दरी‚ उठ कर चली आ" (श्रेष्ठगीत २:१०) । मैंने महसूस किया मसीह मुझसे कह रहे हैं‚ वे मुझे स्वयं उनके पास आने का आमंत्रण दे रहे हैं।
     मैं जानती हूं जितने अनुभवों से होकर मैं गुजरी हूं‚ वे परेशानियां‚ इस संसार का शुष्क ठंडापन‚ रिश्तों की हताशा‚ मेरे पापों का कुचलता हुआ बोझ‚ ये सब इसलिए घटा क्योंकि परमेश्वर यहोवा मुझसे प्रेम रखते थे। वे चाहते थे कि मैं यीशु की आवश्यकता अपने जीवन में महसूस करू।
     मैं (संदेश समाप्त होने पर डॉ हिमर्स से मिलने गयी)। मेरे सामने अपने पापों की दीवार उभरना आरंभ हो गयी थी — मेरे हृदय की दुष्टता‚ मस्तिष्क में उठने वाले कुविचार‚ यीशु का अंतहीन रूप से इंकार करते जाना। अब और अधिक मैं इस बोझ को नहीं सह सकी। मुझे मसीह की आवश्यकता तीव्रता से महसूस हुई। मुझे तुरंत ही उनके रक्त से शुद्ध होने की उत्कंठा पैदा हुई।
     इसके पहिले कि मेरा मन फिर से यीशु की ओर से विमुख हो जाये‚ मैं किसी प्रकार के झूठे भ्रम में पड़ जाउं कि मेरा उद्धार हो चुका ........मैं घुटनों के बल बैठ गयी। इस बार मैंने अपनी भावनाओं को नहीं जांचा। कोई तर्क मेरे मन में नहीं किया। मैं केवल सरल से विश्वास के साथ यीशु के पास आ गयी...... मैंने उनकी ओर निहारा। उन्होंने मेरे पाप अपने बहुमूल्य रक्त में धो दिये। मेरे पापों का भारीपन अब उतरने लगा! वे मेरे समस्त पापों को क्षमा प्रदान कर चुके थे।
     अब वे मेरे नायक हैं‚ प्रभु हैं‚ मसीहा हैं! उसके बाद से अनेकों बार मैं यीशु के पास सामर्थ, सुरक्षा और सहायता पाने के लिये जाती हूं। जैसे एक गीत के शब्द हैं‚ ‘‘करूणा ने मेरे जीवन को पुनः गढ़ा‚/ करूणा ने मेरे जीवन को पुनः गढ़ा/ मैं पाप में खो चुकी थी/ यीशु ने मेरे जीवन को पुनः लिख दिया।" अब जब कोई दूसरा जन यीशु के द्वारा उद्धार पाता है तो मुझे अत्यंत आनंद मिलता है। पापों के क्षमा होने के उपरांत मिलने वाली शांति और संतुष्टता का वर्णन शब्दों में सीमित नहीं किया जा सकता....... मैं तो चाहती हूं जो लोग मेरे समान संघर्षरत है, उन्हें यीशु से क्षमा मिलने का अनुभव प्राप्त करना चाहिये! जो सुसमाचार पहिले शुष्क और निर्जीव प्रतीत होता था‚ अब रोमांच पैदा करने लगा। यीशु के उपर संदेश सुनकर मेरा मन आनंद और धन्यवाद की अनुभूति से फूल उठता था। धन्यवाद परमेश्वर यहोवा‚ आप ने अपने पुत्र यीशु की ओर मुझे खींचा। मैं पौलुस के साथ केवल यह कह सकती हूं‚ ‘‘परमेश्वर को उसके उस दान के लिये जो वर्णन से बाहर है‚ धन्यवाद हो" (२ कुरूं ९:१५)!

मेरे प्रिय मित्रों मैं स्वयं स्वर्गिक ‘‘उल्लास" का अर्थ तब तक नहीं जानती थी‚ जब तक मैंने यीशु को नहीं जाना था। मेरा जीवन अपार कठिनाइयों से होकर गुजरा है। जिन पर भरोसा किया‚ नाउम्मीदी मिली। मैंने एकाकी जीवन काटा और बड़े दुखों का अनुभव किया। मैं घंटों तक रात दर रात विचार मग्न रहती थी। मैंने बिना किसी मानवीय मित्र के ‘‘उदासी के तीखे प्रहारों" का सामना किया है। रातों में विचारों का मंथन मेरा साथी बन चुका था। परंतु यीशु मुझे उन अवसाद के क्षणों से हर बार बाहर निकाल कर लाये। जब किसी ने मुझे स्वीकार नहीं किया‚ यीशु आगे आये और सदैव मुझे अपनाया। ‘‘अपने सरल से विश्वास के साथ मैंने उस सोते को देखा/ उनके घावों से बहता सोता,/ यह छुड़ाने वाला प्यार मेरा पसंदीदा विषय है/ मरण तक साथ रहेगा।/ जब तक मौत के आगोश में न चली जाउं/ आगोश में न चली जाउं/ यह छुड़ाने वाला प्यार मेरा पसंदीदा विषय रहेगा/ मरण तक साथ रहेगा।" अगर आप आज तक भटके हुए ही हैं, तो इस मधुर गीत के बोलों को आत्मसात कीजिये।

व्यर्थ ही मैंने हजारों राहें तलाशीं
मेरे भयों का दमन करने के लिये‚ आशा को बढ़ाने के लिये;
किंतु केवल एक चीज जो चाहिये थी मुझे‚
बाइबल कहती है‚ वह यीशु हैं।

मेरी आत्मा में तम‚ हृदय कठोर —
न देख पाउं‚ न महसूस कर सकूं;
रोशनी‚ जीवन पाने के लिये विनती करूं
सरल से विश्वास को लेकर यीशु से।

वह मर गये‚ वह जी उठे‚ वह राज्य करते हैं‚ वह अनुनय करते हैं;
उनके हर शब्द और कार्य प्रेम से ओत प्रोत;
एक दोषी पापी जन को केवल इसी की
जरूरत है सदा यीशु में।
   (‘‘यीशु में" जेम्स प्रॉक्टर द्वारा रचित‚ १९१३)

आप कह सकते हैं‚ ‘‘मैं सहमत नहीं हूं। आप प्रेम और विश्वास की बात करते हैं।" आप कहते हैं‚ ‘‘मुझे यीशु से प्रेम नहीं होता है।" ‘‘मैं उन पर विश्वास नहीं कर सकता हूं। आप के तर्को से मैं सहमत नहीं हूं।"

तब मुझे आप को चेतावनी देना आवश्यक है। एक दिन आ रहा है जब आप प्रेम और विश्वास जैसे मधुर शब्द नहीं सुनेंगे। आप के कान ठंडे और सत्त्वहीन हो जायेंगे। शांति और क्षमा के कोई शब्द आप को सुनायी नहीं देंगे। नर्क के अनंत गहन अंधकार में सब कुछ लील लिया जायेगा।

तो अभी मेरी सुन लीजिये! इसके पहिले कि परमेश्वर क्रोध और न्याय के साथ आप से बातें करें। इसके पहिले मेरी गुहार सुन लीजिये! तब परमेश्वर आप से कहेंगे‚ ‘‘मैंने तुम्हें बुलाया और तुमने मेरे पास आने से इंकार कर दिया।"

मैं केवल आप से इतना कह सकता हूं क्या आप मसीह पर विश्वास करेंगे? क्या आप अभी ऐसा करेंगे? आज की रात ही? इससे ज्यादा मैं और कुछ नहीं कर सकता। मैं आप को विश्वास रखना नहीं सिखा सकता। यह कार्य मैं परमेश्वर पिता पर छोड़ता हूं। उनकी सामर्थ से परमेश्वर अनेकों मन को यीशु के पास आने के लिये खोल देंगे। मैं जितना कुछ आप से कह रहा हूं‚ वह तब तक फलीभूत नहीं होगा‚ जब तक परमेश्वर का आत्मा उतर कर आप के मनों में कार्य न करें। आप उन लोगों के मध्य बैठे हैं जिन्हें कभी परमेश्वर ने यीशु के समीप खींचा था। परमेश्वर ने उनका चयन यीशु के समीप खींचे जाने के लिये किया था। अगर वे आप को नहीं खींचते हैं, तो मैं कुछ नहीं कर पाउंगा। अगर उद्धार देने के लिये आप का चुनाव नहीं किया गया है, तो आप को इतना बताने के अलावा मैं और कुछ नहीं कर सकता। अगर आप परमेश्वर द्वारा चयन के लिये नियुक्त नहीं किये गयें हैं तो मेरी कोई भूमिका इससे बढ़कर नहीं है।

किंतु अगर परमेश्वर ने आज रात आप से दिल में कुछ कहा है‚ तो मसीह को ग्रहण कीजिये। अभी मसीह को ग्रहण कर लीजिए। आप को सबसे बढ़कर जरूरत यीशु की है। उन पर सरल सा विश्वास रखकर समीप आ जाइये। जो कुछ मैं कह रहा हूं वह तब तक क्रियाशील नहीं होगा, जब तक स्वयं परमेश्वर का आत्मा आप के मनों में वह बात नहीं डाले। जैसे पतरस ने इस पद में उन लोगों से कहा, वैसी ही मेरी प्रार्थना है आप उन लोगों के समान ही विश्वास लायेंगे। हमने परमेश्वर पिता से प्रार्थना की है जैसे उन्होंने जॉन कैगन, एमी जबाल्गा और आप के आस पास बैठे लोगों के मनों में कार्य किया। वैसे ही आप के मनों में भी क्रियाशीलता प्रकट करें। प्रार्थना है, जो चुने हुए हैं, वे आज रात उद्धार पायें। आप यीशु के पास आ सकें, उन पर विश्वास ला सकें और उनके संपूर्ण छुटकारा देने वाले रक्त में अपने पापों को शुद्ध हो जाने देंवे। आमीन!


अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।

(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व बैंजामिन किंकेड ग्रिफिथ का एकल गान:
‘‘यीशु में" (जेम्स प्रॉक्टर द्वारा रचित‚ १९१३)


रूपरेखा

देखना अथवा विश्वास करना?

SEEING OR BELIEVING?

डॉ आर एल हिमर्स जूनि

‘‘उस से तुम बिन देखे प्रेम रखते हो और अब तो उस पर बिन देखे भी विश्वास करके ऐसे आनन्दित और मगन होते हो‚ जो वर्णन से बाहर और महिमा से भरा हुआ है। और अपने विश्वास का प्रतिफल अर्थात आत्माओं का उद्धार प्राप्त करते हो" (१ पतरस १:८‚९)

१॰ पहिली बात‚ देखना विश्वास करना नहीं कहलाता है‚ लूका २०:२०; १:११;
यशायाह ५३:३

२॰ दूसरी बात‚ विश्वास करना देखना कहलाता है! श्रेष्ठगीत २:१०;
२ कुरूंथियों ९:१५