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हरेक जन शुभ संदेश सुना रहा था!EVERY PERSON EVANGELIZING! डॉ आर एल हिमर्स दि बैपटिस्ट टैबरनेकल ल्योस ऐंजीलिस में रविवार ‘‘और जाते ही जाते वे शुद्ध हो गए" (लूका १७:१४) |
जब यीशु सामरिया और गलील प्रांत से होकर जा रहे थे तो वे छोटे नगर में पहुंचे। नगर के बाहर उन्हें दस कोढ़ी मिले। वे उनसे ‘‘दूर खड़े रहे" (१७:१२)। प्राचीन धर्मशास्त्र में वर्णित व्यवस्था के अनुसार कोढ़ियों को दूसरे स्वस्थ लोगों से दूर रहने के निर्देश दिये गये थे।
‘‘कोढ़ी.......अशुद्ध‚ अशुद्ध पुकारा करे....... वह अकेला रहा करे‚ उसका निवास स्थान छावनी के बाहर हो" (लैव्यव्यवस्था १३:४५−४६)
इन दस कोढ़ियों ने सुन रखा था कि यीशु आश्चर्यकर्म करते थे। इसलिये‚ वे थोड़ी दूर पर खड़े होकर चिल्लाकर बोले‚ ‘‘हे यीशु‚ हे स्वामी‚ हम पर दया कर" (लूका १७:१३) । प्रभु यीशु ने एकाएक उसी स्थान पर कोढ़ रोग अच्छा नहीं कर दिया। बल्कि उनसे कहा कि यरूशलेम के मंदिर में जाकर पुरोहितों को दिखायें। दो कारणों से यीशु ने ऐसा कियाः ताकि पुराने धर्मशास्त्र की व्यवस्था पूरी हो सके, जैसा लैव्यव्यवस्था १४:१−२० में लिखा है कि केवल पुरोहित इसे तय कर सकते थे कि कोढ़ी उस रोग से पूर्णतः अच्छा हुआ है या नहीं। दूसरा कारण, वह पुरोहतों और अन्य यहूदियों को इस बात का गवाह बनाना चाहते थे कि यीशु के भीतर रोगों को ठीक करने की सामर्थ वास करती थी (थॉमस हेल, दि अप्लाईड न्यू टेस्टामेंट, चैरियट विक्टर, पब्लिशिंग‚ १९९६, पेज २३६) ।
दसों कोढ़ियों ने मसीह की आज्ञा मानी और यरूशलेम के लिये रवाना हुए। इससे प्रगट होता है कि उनमें थोड़ा विश्वास अवश्य था, अन्यथा उन्होंने आज्ञा नहीं मानी होती। यद्यपि हम यह देखते हैं कि यहां उनका विश्वास उद्धार दिलाने वाला विश्वास नहीं था। उन्होंने बाह्य रूप में मसीह की आज्ञा मानी‚
‘‘और जाते ही जाते वे शुद्ध हो गए" (लूका १७:१४)
जब वे गलील के दक्षिण से यरूशलेम के मंदिर की ओर चले‚ तो जाते जाते ही उनके शरीर से कोढ़ चला गया।
शुद्ध होते ही उन दसों में से एक मुड़ा और वापस यात्रा करके जहां यीशु उन्हें मिले थे‚ आया:
‘‘और (यीशु) के पांवों पर मुंह के बल गिरकर‚ उसका धन्यवाद करने लगा......... " (लूका १७:१५−१६)
‘‘उस (यीशु) ने उस से कहा‚ उठकर चला जा‚ तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है" (लूका १७:१९)
मुझे ऐसा लगता है कि इस गद्यांश में बहुत सारे सबक हैं। मैं सारे सबक को यहां नहीं बता सकता परंतु तीन ऐसे सबक है जिनका जिक्र में यहां करूंगा।
१॰ पहिला‚ मसीह के प्रति आज्ञाकारिता रखने से कुछ मात्रा में पवित्रीकरण होता है।
सभी दसों कोढ़ी उनकी बीमारी से अच्छे हो चुके थे। यद्यपि‚ वे सारे के सारे यीशु के एकाएक स्पर्श से चंगे नहीं हुए थे। यह अनोखे प्रकार की चंगाई थी। यरूशलेम के रास्ते में जाते जाते उनके शरीर से कोढ़ की बीमारी चली गयी। यद्यपि, आत्मा का चंगा होना अभी शेष था। यीशु ने कहा था‚
‘‘उस ने उन्हें देखकर कहा‚ जाओ और अपने तई याजकों को दिखाओ; और जाते ही जाते वे शुद्ध हो गए" (लूका १७:१४)
लोग जो बाहरी स्तर पर मसीहत के प्रति आज्ञाकारी बने होते हैं‚ वे आज्ञा न मानने वालों की तुलना में कई सारी बीमारियों से स्वस्थ हो जाते हैं। जो लोग चर्च आते हैं और मसीहत के बाहरी नियमों से बंधे रहते हैं‚ वे यह जान जाते हैं कि उनका जीवन और अधिक नियमित हो गया है। उनका अध्ययन स्कूल में अच्छे परिणाम दे रहा होता है। उनके मनोभाव नियंत्रित हो जाते हैं। सामान्य तौर पर वे अपने जीवन में और अधिक सफल और उपयोगी हो जाते हैं उनकी तुलना में‚ जो आधुनिक समाज की संरचना में ‘‘डूबते उतराते" ही रहते हैं (इफिसियों ४:१४) ।
‘‘संसारी" लोगों में यह मान्यता है कि चर्च में जाना उनके लिये हानिप्रद सिद्ध होगा। उनके स्कूल और कामकाज का बहुत सा समय चर्च जाने के कारण नष्ट होगा। गैर मसीही माता पिता अक्सर यही सोचते हैं। उनका मानना है कि चर्च जाने से उनके बच्चे की पढ़ाई पर असर आयेगा, वह पिछड़ जायेगा। उसके कामकाज पर असर आयेगा। परंतु हमने बार बार इसके ठीक विपरीत ही होता देखा है। जब युवा बच्चे चर्च में आते हैं तो बिना किसी अपवाद के वे एक अच्छे विधार्थी और एक अच्छे कर्मचारी या अधिकारी सिद्ध होते हैं। वे ‘‘अवसर को बहुमूल्य" जानकर अपने अध्ययन को नियमित करना सीखते हैं (इफिसियों ५:१६; कुलुस्सियों ४:५)। वे चर्च के अगुवों के उपदेशों से और चर्च सदस्यों के उदाहरण से अपने अध्ययन और कार्य में परिश्रम करना सीखते हैं, बजाय जगत के अन्य बच्चों के समान स्वयं को ‘‘व्यर्थ बातों में उलझाये रखने के"‚ जिससे उनको घर पर पढ़ाई का समय भी कम मिलता है और अतिरिक्त मेहनत करना पड़ती है।
मेरा मानना है कि अमेरिका के चर्चेस में एक हमारे चर्च में सबसे अधिक कॉलेज में पढ़ने वाले युवा विधार्थियों की संख्या मौजूद है। और मेरा यह भी मानना है कि यीशु के प्रति आज्ञाकारिता रखने से वे संसार के अन्य लोगों द्धारा झेली जाने वाली समस्याओं से ‘‘शुद्ध होते" जा रहे हैं‚ उन लोगों की तुलना में जो चर्च की स्थानीय संगति में नहीं आते हैं और जो सभाएं आयोजित की जाती हैं‚ उनमें आने से बचते हैं। बरसों तक ऐसा देखने के बाद अनुभव से हमने यह पाया है।
२॰ जब आप मसीह के पास आते हैं आप को पूर्ण उद्धार मिलता है।
जब शरीर में कोढ़ रोग से साफ हो गये तो दस में से नौ व्यक्ति शरीर की चंगाई पाकर फूले नहीं समा रहे थे। परंतु इनमें से एक था‚ जो केवल बाहरी नियम धर्म मानकर शुद्ध होने से संतुष्ट नहीं हुआ। उसका हृदय अंदर ही अंदर उछल रहा था अपने परमेश्वर को धन्यवाद देने के लिये। वह मुड़ा और जहां यीशु उन्हें मिले थे‚ वहां आया। यीशु के पैरों पर गिरा और ‘‘कृतज्ञता पूर्वक आभार" (लूका १७:१६) व्यक्त किया। दूसरे शब्दों में कहें, यह व्यक्ति यीशु के पास आया! वह मसीह के पास आया और उसने न केवल शरीर में रोग से शुद्धता पाई किंतु यीशु के चरणों में गिरकर आत्मा में भी पूर्ण उद्धार भी प्राप्त किया।
अगर आप हमारे चर्च में नियमित आ रहे हैं इसकी सभा में भाग ले रहे हैं‚ बहुत अच्छी बात है। यह आप को धैर्य और प्रेम के साथ जीवन जीने और पढ़ाई करने में लाभदायक सिद्ध होगा। पर सच्ची क्रिश्चियनिटी अच्छा जीवन जीने में सहायक होने वाली शिक्षाओं से बढ़कर है! एक बहुत सफल जीवन बिताने वाले जन से यीशु बोले,
‘‘अचम्भा न कर‚ (चकित न हो) कि मैं ने तुझ से कहा‚ कि तुम्हें नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है" (यूहन्ना ३:७)
यही तो उस कोढ़ी के साथ हुआ‚ जो यीशु के पास लौटा। यीशु की आज्ञा मानकर बाहरी शुद्धता तो पा गया परंतु पलट कर आया और पैरों पर गिरकर अंर्तमन में भी उद्धार पा गया। तब मसीह ने उससे कहा‚
‘‘तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है" (लूका १७:१९)
मैं व्यवहारिक नये नियम से सहमत हूं। यद्यपि मेरी इच्छा थी कि इन्होंने प्रामाणिक किंग जेम्स बाईबल में से लिया होता‚ किंतु तौभी यह अनुवाद बहुत अच्छी तरह से बताता है कि शुद्ध हो चुके कोढ़ी के साथ क्या हुआ जो मसीह के पास पलटकर आया। जब यीशु ने उससे कहा, ‘‘तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है" तो यह व्याख्या यह घोषित करती है कि न केवल उसका शरीर अच्छा हुआ किंतु साथ ही साथ उसकी आत्मा भी शुद्ध हो गई। उसने आत्मा में भी उद्धार पा लिया (उक्त संदर्भित‚ पेज ३४१) ।
चर्च आने से आप आशीषित भी हुए हैं और यह जीवन जीने में भी सहायक हुआ है। हम इस आशीष के लिये परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं। लेकिन एक कदम और आगे बढ़ाने के लिये हम आप को प्रेरित करते हैं कि पूर्ण उद्धार पा जाइये। यीशु के पास विश्वास से आइये, उनके चरणों में गिर जाइये और उनके उपर अपने संपूर्ण विश्वास को केंद्रित कर दीजिये।
आखिरकार‚ यीशु ने क्रूस पर इसलिये दुख नहीं सहा या वे इसलिये नहीं मरे कि आप संसार में एक अच्छा जीवन जी सके। परंतु इससे कई गुना आगे बढ़कर सोचें! वह क्रूस पर मरे कि आप के पाप क्षमा हों। क्रूस पर बहे अनमोल लहू से आप के पाप शुद्ध हों। मरकर जीवित होने के उपरांत‚ वे परमेश्वर पिता के दाहिने हाथ पर विराजमान हैं कि उनके पास आने वाले को अनंत जीवन प्रदान करें। जैसे इस व्यक्ति ने किया‚ वैसे ही आप भी साधारण से विश्वास के साथ यीशु के पास आ जायें‚ तो भी आप परिवर्तित हो जायेंगे‚ नया जन्म पा जायेंगे‚ संपूर्ण अनंत काल तक के लिये। परिवर्तित होने की सत्यता का अनुग्रह आप को अति शीघ्रता से प्राप्त हो! इसके साथ ही मैं मानता हूं कि धर्मशास्त्र के इस पाठ में में एक तीसरा सबक भी है‚ कि हर व्यक्ति सुसमाचार प्रचार कर सकता है।
३॰ तीसरा‚ आप के उद्धार पाने के पूर्व‚ सुसमाचार संदेश बताने का कार्य तो एकाएक शुरू होना चाहिये।
ध्यान देने योग्य बात है। यीशु ने उन दस से कहा जो अभी तक न शरीर से शुद्ध हुए थे और (न आत्मा से)‚
‘‘उस ने उन्हें देखकर कहा‚ जाओ; और अपने तई याजकों को दिखाओ; और जाते ही जाते वे शुद्ध हो गए" (लूका १७:१४)
यीशु ने उन्हें भेजा ताकि पुरोहितों और अन्य यहूदियों के सामने गवाही हो सके और उन लोगों के सामने यीशु के बारे में बता सकें (दि एप्लाइड न्यू टेस्टामेंट‚ उक्त संदर्भित‚ पेज २३६) वे गवाही देने के लिये भेजे गये‚ शरीर में स्वस्थ होने से पहले और आत्मा में उद्धार पाने से पहले!
क्या यह याद रखने योग्य बात नहीं है? आज अधिकतर प्रचारक सोचते हैं कि अगर आप को सुसमाचार संदेश सुनाने वाला बनना है तो आप को बहुत ठोस क्रिश्चियन और बाईबल के ज्ञान का ठोस ज्ञाता होना चाहिये। मैं कहता हूं कि ऐसा सोचना निरी मूर्खता है! यह तो ऐसी मूर्खता है कि कोई कहे कि आप को सभाओं में आने से पहले ठोस क्रिश्चियन होना आवश्यक है! मैं सोचता हूं कि कुछ लोग भी मूर्ख होते हैं जो ऐसा विचार करते हैं! किंतु बाइबल ऐसा नहीं सिखाती। यीशु ने जो बारह चेले बनाये उन्हें उसी समय शुभ संदेश सुनाने के लिये भेज दिया गया था। अशर्स क्रोनोलॉजी के अनुसार‚ जिस वर्ष यीशु ने चेलों को अपना अनुसरण करने के लिये चुना‚ उसी वर्ष उन्हें शुभ संदेश को सुनाने के लिये भेज दिया गया। यीशु के अनुयायी बने उन्हें थोड़ा ही समय बीता था, जब उन्होंने उन्हें भेजना आरंभ किया
“और वह बारहों को अपने पास बुलाकर उन्हें दो दो......... करके भेजने लगा; और उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया” (मरकुस ६:७‚ १२)
यधपि एक चेला (यहूदा) परिवर्तित नहीं हुआ था। तौभी‚ उन्हें एकाएक भेज दिया गया‚ भले ही वे मन से परिवर्तित हुए या नहीं‚ या विश्वास में मजबूत थे या नहीं! वे मसीह के आदेश पर − शुभ संदेश सुनाने निकल पड़े!
मैं सोचता हूं कि मसीह की इस पद्धति से हम भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। शुभ संदेश सुनानें के लिये जाना मसीह की सबसे प्रसिद्ध आज्ञाओं में से एक हैः
‘‘तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ" (मत्ती २८:१९)
उनकी आज्ञा मानने से पहिले क्या हमें प्रशिक्षित होना आवश्यक है? दस कोढ़ी जो पुरोहितों और यहूदियों को शुभ संदेश सुनाने गये थे‚ वे तो किसी प्रकार का प्रशिक्षण प्राप्त नहीं थे। तौभी मसीह ने उन्हें आज्ञा का पालन करते हुए एकाएक जाकर पुरोहितों और यहूदियों को यह शुभ संदेश सुनाने के लिए कहा। चेले भी तो बिल्कुल अनुभवहीन थे, बिल्कुल अज्ञानी मछुआरे, परंतु यीशु उन्हें भी एकाएक दो दो करके शुभ संदेश सुनाने के लिये भेजने लगे।
मेरे विचार से आज हमें भी ऐसा ही करना चाहिये। हमें यीशु द्धारा ठहराया गयी पद्धति का अनुसरण करना चाहिये। हमें लोगों को बाइबल का प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। निश्चित है! परंतु इसके पहिले कि वे पूर्ण प्रशिक्षित हों, उन्हें शुभ संदेश सुनानें के लिये भेजना आरंभ कर देना चाहिये। इसके पहिले कि वे धर्मशास्त्र की संपूर्ण सैंद्धांतिक शिक्षा को सुन लेवे, उन्हें शुभ संदेश सुनाने जाने की जरूरत है!
आप अनगिनत लोगों को प्रशिक्षित करते जायें और उनके द्धारा चर्च में शुभ संदेश सुनने के लिये कभी एक व्यक्ति भी न लाया जाये। आप लोगों को धर्मशास्त्र की बड़ी बड़ी व्याख्याएं सुनाएं‚ परंतु श्रोतागण किसी अन्य जन को शुभ संदेश सुनने के लिये आप की आराधना में न ला पाये। तो बड़ा दुर्भाग्य।
कोई भी विचारशील जन यह जानता है कि बात तो सच है परंतु नहीं जानते कि इस विषय में किया क्या जाये। किंतु यीशु ने हमें बताया है कि क्या किया जाना चाहिये । उन्हें तुरंत सुसमाचार प्रचार के लिये भेजना आरंभ करें − उनका मन परिवर्तन हुआ हो या नहीं हुआ हो‚ उन्होंने बाइबल का सैद्धांतिक प्रशिक्षण लिया हो या नहीं लिया हो! मेरा मानना है कि चर्च में हरेक व्यक्ति को शुभ संदेश सुनानें के लिये जाना चाहिये। मसीह के प्रति आज्ञा कारिता रखने का यह साधारण सा भाग है। मैं मानता हूं हर व्यक्ति जो हमारे चर्च में एक या दो बार से अधिक आ चुका हो‚ उसे सुसमाचार प्रचार के लिये जाना चाहिये।
उन्हें ज्यादा कहने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें सिर्फ इतना कहना है कि ‘‘चर्च में कुछ अदभुत बात हो रही है" और उन्हें वहां आना चाहिये। ऐसी ही कुछ सरल सी बात कहना चाहिये। तब उनसे फोन नंबर्स लिये जा सकते है ताकि चर्च के अगुवे उनसे बात कर सकें। इस पद्धति को अमल में लाने से हमारे यहां रविवार को बहुत सारे दर्शक आये। मैं हर रविवार चर्च में शुभ संदेश सुनाता हूं। हमारी आराधना में अनेक उद्धारहीन लोगों के आने के कारण सुसमाचारिय संदेश सुनाना आवश्यक है।
मैं अनुशंसा करता हूं कि उस साधारण मार्ग पर लौट जाना आवश्यक है जिसके अनुसार यीशु ने लोगों को संसार में शुभ संदेश सुनाने भेज दिया था। आखिरकार‚ दूसरे तरीके इतने उपयोगी नहीं है‚ हैं क्या? परंतु मैं जानता हूं कि यीशु की पद्धति किसी भी चर्च को उनकी हर आराधना में बहुत लोगों से भर देगी। डॉ जॉन आर राईस अक्सर कहते थे‚ ‘‘आत्मा को उद्धार पहुंचाने वाली‚ यह नये नियम की एकमात्र पद्धति है जिस पर संपूर्ण ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये" (जॉन आर राईस‚ डी.डी.‚ व्हाय अवर चर्चेस डू नॉट विन सोल्स‚ सोर्ड ऑफ दि लार्ड पब्लिशर्स‚ १९६६‚ पेज १४९) । मैं उनकी इस बात से पूरी तरह से सहमत हूं!
एक और बात‚ जब लोगों को शुभ संदेश सुनाने के लिये भेजा जाता है तो वे मसीह में बढ़ना भी आरंभ करते हैं। लोग अगर सुसमाचार नहीं बतायेंगे‚ तो बरसों तक वे निष्क्रिय बने रहेंगे। परंतु मैं अपने अनुभव से बता सकता हूं कि प्रत्येक सप्ताह अगर वे शुभ संदेश के बारे में बताने जाते हैं तो वे ठोस क्रिश्चियंस बनेंगे। मसीह की उस महान आज्ञा का पालन करना मसीहत में उन्नति का मूल है!
‘‘उस ने उन्हें देखकर कहा‚ जाओ; और अपने तई याजकों को दिखाओ; और जाते ही जाते वे शुद्ध हो गए" (लूका १७:१४)
आप जहां कहीं भी शुभ संदेश बताना आरंभ कर देगें‚ आप का जीवन परिवर्तित होता जायेगा! जब विश्वास रखकर आप मसीह के पास आते हैं‚ आप में से प्रत्येक को नया जन्म प्राप्त होवे। तब आप भटके हुए लोगों के मध्य और अधिक शुभ संदेश सुनाने में सफल होते जायेंगे। हो सके कि परमेश्वर आप को शुभ संदेश सुनाने के कार्य के लिये और अधिक प्रेरित करे। जितना शीघ्र हो सके‚ इसे करना आरंभ करें। आमीन।
अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।
(संदेश का अंत)
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पांडुलिपि संदेशों का कॉपीराईट नहीं है। आप उन्हें बिना डॉ.
हिमर्स की अनुमति के भी उपयोग में ला सकते हैं। यद्यपि डॉ.
हिमर्स के सारे विडियो संदेश का कॉपीराईट है और उन्हें
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संदेश के पूर्व धर्मशास्त्र पाठ का पठन डॉ क्रेटन एल चान द्वारा: लूका १७:११−१९
संदेश के पूर्व बैंजामिन किंकेड ग्रिफिथ का एकल गान:
‘‘सो लिटिल टाईम" (डॉ जॉन आर. राईस‚ १८९५−१९८०)
रूपरेखा हरेक जन शुभ संदेश सुना रहा था! EVERY PERSON EVANGELIZING! डॉ आर एल हिमर्स ‘‘और जाते ही जाते वे शुद्ध हो गए" (लूका १७:१४) (लूका१७:१२; लैव्य१३:४५−४६; लूका १७:१३‚ १४‚ १५−१६‚१९) १॰ पहिला‚ मसीह के प्रति आज्ञाकारिता रखने से थोड़ा पवित्रीकरण होता है‚ २॰ दूसरा, जब आप मसीह के पास आते हैं आप को पूर्ण उद्धार मिलता है‚ ३॰ तीसरा‚ आप के उद्धार पाने के पूर्व‚ सुसमाचार संदेश बताने का कार्य तो |