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जीवित रहने के लिये आत्मिक जाग्रतिREVIVAL FOR SURVIVAL डॉ आर एल हिमर्स दि बैपटिस्ट टैबरनेकल ल्योस ऐंजीलिस में रविवार |
मैं आप से निवेदन करता हूं कि अपने स्थानों पर खड़े होकर गीत संख्या १९ को गायें‚ जिसके शब्द इस प्रकार हैं, ‘‘यहां वह प्रेम हैं समुद्र जैसा विशाल।"
यहां वह प्रेम हैं समुद्र जैसा विशाल‚ करूणा बाढ़ समान बहती‚
जब जीवन के राजकुमार‚ हमारा छुटकारा‚ हमारे लिये अपना बेशकीमती लहू बहाया‚
कौन उनके प्रेम को स्मरण नहीं रखेगा? उनकी प्रशंसा गाते गाते कौन थकेगा?
उन्हें कभी न भुलाया जा सकेगा‚ स्वर्गीय अनंत काल तक के लिये
क्रूसीकरण वाली पहाड़ी पर गहरे‚ चौड़े फव्वारे फूट पड़े;
परमेश्वर की करूणा की बाढ़ से बड़ा उदार प्रवाह बह निकला।
उपर से अनुग्रह और प्रेम विशाल नदियों जैसी अविरल धारा बन बह निकला।
एवं इस दोषी संसार को स्वर्गिय शांति और उत्तम न्याय ने प्रेम वश चूम लिया।
मैं आप का संपूर्ण प्रेम स्वीकार कर सकूं‚ ऐसा अनुग्रह मुझ पर होने दीजिये;
मैं आप का राज्य खोजूं और मेरा जीवन आपकी प्रशंसा बन जायें;
आप एकमात्र में मेरा सब कुछ ठहरे‚ और कुछ न इस संसार में देखूं।
आप ही ने मुझे शुद्ध और पवित्र किया है‚ आप ही ने मुझे स्वतंत्र किया है।
आप के सत्य की ओर आप की आत्मा और वचन से आप मुझे निर्देशित करते हैं;
आप के अनुग्रह में मेरी आवश्यकता पूर्ण होती‚ मैं आप में विश्वास करता हूं‚ मेरे प्रभु महान।
आप की संपूर्णता में आप मुझ पर अपने बड़े प्रेम और सामर्थ को उड़ेल देते हैं।
(‘‘हियर इज लव‚ वास्ट एज दि ओशन" द्वारा विलियम रीज‚ १८०२−१८८३)
प्रत्येक जन परमेश्वर की उपस्थिति के लिये प्रार्थना करे (वे प्रार्थना करते हैं)। आइये अब गीत संख्या २२‚ ‘‘दि स्ट्राइफ इज ओवर" गायेंगे।
हैल्लूयाह! हैल्लूयाह! हैल्लूयाह!
संघर्ष पूरा हो गया, युद्ध समाप्त‚
जीवन की विजय जयवंत हुई।
विजय का गान आरंभ है‚ हैल्लूयाह!
हैल्लूयाह! हैल्लूयाह! हैल्लूयाह!
शक्तियों ने प्रबल होकर बुरा किया‚
परंतु मसीह ने उनकी सेना को तितर बितर कर दिया;
पवित्र आनंद के जयकारे लगाओ!
हैल्लूयाह! हैल्लूयाह! हैल्लूयाह!
वे तीन दिन भी तेजी से बीत गये;
वह महिमा से पूर्ण होकर मुरदों में से जीवित हुआ;
हमारे जीवित उठने वाले प्रधान को सारी महिमा! हैल्लूयाह!
हैल्लूयाह! हैल्लूयाह! हैल्लूयाह!
उन्होंने नर्क के उबाउ द्धारों को बंद कर दिया;
स्वर्ग से सारी रूकावटें दूर हो गयी:
उसकी प्रशंसा के गीत उसके जयवंत होने को बतायें हैल्लुयाह!
हैल्लुयाह! हैल्लुयाह! हैल्लुयाह!
प्रभु‚ उन कोड़ो से जिनसे आप घायल हुए‚
मौत के क्रूर डंक से आप का दास मुक्त होता है‚
ताकि हम जीवित हो सके और गा सके‚ हैल्लूयाह!
हैल्लूयाह! हैल्लूयाह! हैल्लूयाह!
(‘‘दि स्ट्राइफ इज ओवर" फ्रांसिस पॉट द्वारा अनुवादित‚ १८३२−१९०९)
प्रत्येक जन प्रार्थना करे कि आज रात मसीह को यहां महिमा मिले (वे प्रार्थना करते हैं)। आइये गीत संख्या २३ गाते हैं ‘‘और क्या यह हो सकता है?"
क्या यह हो सकता है कि मैं मसीहा के लहू में रूचि रखूं?
वह मेरे लिये मरे‚ जिसने उनको दर्द दिया? मेरे लिये जो मौत तक उन्हें ले गया?
अदभुत प्यार! यह कैसे हो सकता है कि मेरा मसीहा हमारे लिये अपने प्राण दें?
अदभुत प्यार! यह कैसे हो सकता है कि मेरा मसीहा हमारे लिये अपने प्राण दें?
यह रहस्य है! अमर भी मरते हैं! उसके विचित्र नमूने को कौन खोज सकता है?
व्यर्थ में पहिलौठे स्वर्गदूत ने स्वर्गिक प्रेम की गहराई को नापना चाहा!
उनकी करूणा को सारी धरती सराहे! स्वर्गदूतों का मानस कुछ और न जानना चाहे।
अदभुत प्यार! यह कैसे हो सकता है कि मेरा मसीहा हमारे लिये अपने प्राण दें?
उन्होंने अपने पिता का स्वर्गिय सिंहासन छोड़ दिया‚ बेदाम अनंत अनुग्रह उनका,
प्रेम बांटने के लिये खाली कर लिया‚ आदम के असहाय वंश के लिये लहू बहा;
मुफ़्त और बहुत बड़ी दया हे मेरे परमेश्वर आप की दया ने मुझे खोज लिया।
अदभुत प्यार! यह कैसे हो सकता है कि मेरा मसीहा हमारे लिये अपने प्राण दें?
लंबे समय से मेरी आत्मा बंधन में थी पाप और इसके अंधकार में;
आप की दृष्टि ने मुझे छिन्न भिन्न कर दिया मैं जैसे तहखाने से बाहर निकल आया;
मेरे बंधन सारे गिर गये मेरा दिल मुक्त हो गया मैं उठा और चला आया आप के पास।
अदभुत प्यार! यह कैसे हो सकता है कि मेरा मसीहा हमारे लिये अपने प्राण दें?
किसी खौफ से अब मैं नहीं डरता; बस यीशु ही मेरे सब कुछ हैं !
मैं उनमें जीवित हूं‚ मेरे जीवित प्रधान और उनकी दिव्य धार्मिकता में लिपटा हुआ
निर्भीक हो स्वर्गिय सिंहासन तक पहुंचता हूं मेरे अपने मसीह के मुकुट को मांग सकूं।
अदभुत प्यार! यह कैसे हो सकता है कि मेरा मसीहा हमारे लिये अपने प्राण दें?
(‘‘क्या यह हो सकता है?" चार्ल्स वीजली‚ १७०७−१७८८)
अब आप बैठ सकते हैं। हमारे सीनियर डीकन बेन ग्रिफिथ अब हमारे लिये एक गीत गायेंगे।
हम आज रात प्रभु यीशु मसीह की प्रशंसा करने और उन्हें महिमा प्रदान करने के लिये उपस्थित हुए हैं − एकमात्र उन्हीं की महिमा! बाइबल में से नीतिवचन अध्याय १४‚ पद १४ को खोल लीजिये। यह स्कोफील्ड बाइबल में पेज ६८१ पर है। जब मैं बाइबल में से पढ़ता हूं अपने स्थानों पर खड़े हो जाइये।
‘‘वह अपनी चाल चलन का फल भोगता है" (नीतिवचन १४:१४)
अपने आप से पूछिये − क्या मैं अपने चाल चलन का फल भोग रहा हूं? क्या मेरा दिल ठंडा हो चुका है? जब मैं अकेले में प्रार्थना करता हूं मुझे परमेश्वर की उपस्थिति मुझे महसूस नहीं होती है। क्या यह आप की तस्वीर है? जब आप सुसमाचार प्रचार के लिये जाते हैं तो क्या आप के दिल में ऐसी आग जल रही होती है कि जो आप को बाध्य करे कि कोई उद्धार पाने को तरसता व्यक्ति मिल जाये? या अब आप की लगन इस कार्य के लिये ठंडी हो चुकी है? जब कोई उंची आवाज में प्रार्थना करता है तो क्या आप का दिल और होंठ उनकी हर विनती पर आमीन कहते हैं? या आप सोचते हैं कि वे प्रार्थना करने में इतने अच्छे नहीं हैं जिस लगन से आप पहले प्रार्थना किया करते थे? या आप सोचते हैं कि वे जल्द ही बहक जायेंगे? क्या आप नये विश्वासियों में दोष ढूंढते हैं? क्या आप सोचते हैं कि जब आप ने उद्धार पाया था‚ वे आप के समान उतने अच्छे नहीं हैं? जब संदेश सुनकर आप को पापों का बोध तो होता है‚ परंतु आप सोचते हैं कि मैं कभी अपने पाप उनके सामने स्वीकार नहीं करूंगा। वे कभी मुझसे पाप स्वीकार नहीं करवा सकते। क्या आप को प्रसन्नता होती है कि जब एक नये विश्वासी का ध्यान रखा जाता है? क्या आप उनसे सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करते हैं? जब आप मसीह के नये बने अनुयायी थे‚ तो आप उस समय अधिक धुन से भरे रहते थे‚ क्या अब आप का जोश ठंडा हो चुका है और दिल खाली?
‘‘जिसका मन ईश्वर की ओर से हट जाता है‚ वह अपनी चाल चलन का फल भोगता है" (नीतिवचन १४:१४)
जब आपने मसीह में नया नया उद्धार पाया था, तब आप उनके लिये कुछ भी करने के लिये तैयार थे। उसके बाद आप कहते थे, ‘‘मैं यीशु की सेवा करना पसंद करता हूं। परंतु मैं उनके लिये ज्यादा कुछ नहीं कर सका?" क्या आज भी आप इसी बात पर अडिग हैं? या आप का मन ईश्वर की ओर से हट गया है? मैं केवल युवाओं से बात नहीं कर रहा हूं। आज मेरी बातचीत ‘‘३९ वर्ष" की उम्र के लोगों से भी हो रही है - परिपक्व और युवा दोनों से मुखातिब हूं। मैं आज किंन्हीं भटके हुए युवा जन से बात नहीं कर रहा हूं। मैं तो बात कर रहा हूं आप परिपक्व लोगों से जिन्होंने एक समय पहले मसीह को अपने जीवन का उद्धारकर्ता माना था। क्या आप ने अपना पहिला सा प्रेम खो दिया है? क्या आज भी आप के दिल मे मसीह के लिये वैसा ही प्रेम उमड़ता है जो शुरू के दिनों में उमड़ा करता था? इस पहिले से प्यार को खो देने के लिये यीशु इफिसुस की कलीसिया को चेतावनी देते हैं
‘‘पर मुझे तेरे विरूद्ध यह कहना है कि तू ने अपना पहिला सा प्रेम छोड़ दिया है। सो चेत कर‚ कि तू कहां से गिरा है‚ और मन फिरा और पहिले के समान काम कर; और यदि तू मन न फिराएगा‚ तो मै तेरे पास आकर तेरी दीवट को उस स्थान से हटा दूंगा" (प्रकाशितवाक्य २:४‚५)
मैं ६० सालों से मसीह के प्रचार कार्य में हूं। मेरा मन इन ६ दशकों में कई बार ईश्वर की ओर से भटक गया था। मैं कैसे इस अवस्था से बाहर आ सकता हूं? इसका यह तरीका है। पहिले‚ मुझे यह अहसास हो जाना चाहिये कि मेरा दिल अपनी इच्छा से ही चलना चाहता है। मुझे स्वयं के लिये बुरा लगना चाहिये। मुझे उदास होना चाहिये। मैं यह शिकायत करता हूं कि चीजें कितनी मुश्किल हैं। दूसरा‚ मैं यह महसूस करता हूं कि मैंने यीशु से अपना पहिले के समान प्रेम करना छोड़ दिया है। तीसरा‚ मुझे स्मरण होना चाहिये कि कितनी अवस्था तक मेरा पतन हुआ है। मेरे और यीशु के मध्य आने वाले पापों के लिये मैं दोषी हूं। तब मुझे स्मरण होना चाहिये कि मसीह ने क्रूस पर मेरे पापों का मूल्य चुकाने के लिये लहू बहाया और प्राण दे दिये। मैं पश्चाताप करता हूं और पुनः अपने विश्वास को मसीह के लिये नया बनाता हूं। लगभग ये दूसरी बार पश्चाताप करके उद्धार पाने जैसा है। ‘‘मेरे दर्शन को पूरा कर दीजिये" गीत गाते हैं
मेरे स्वर्गिक मसीहा मेरे दर्शन को पूरा कर दीजिये‚ प्रार्थना है मेरी‚
मैं आज केवल यीशु को देखने पाउं;
यद्यपि गहरी खाइयों में से आप मुझे लेकर चलते हैं‚
तौभी कभी न मुरझाने वाली आप की अप्रतिम सुंदरता मुझे घेरे रखती है।
मेरे स्वर्गिक मसीहा मेरे दर्शन को पूरा कर दीजिये‚
जब तक कि आप के आनंद से मेरी आत्मा जगमगाने न लगे।
मेरे दर्शन को पूरा कर दीजिये कि सब देखें
आप की पवित्र प्रतिच्छाया मुझमें झलकती है।
(मेरे दर्शन को पूरा कर दीजिये‚ एविस बर्जसन क्रिश्चियनसन‚ १८९५−१९८५)
जो मैं स्वयं नहीं करता हूं मैं आप से करने के लिये नहीं कहूंगा। मैंने जॉन कैगन से कहा था कि वह प्रचार कार्य के लिये स्वयं को समर्पित कर दे। अंततः उसने हामी भरी। तब मुझे पता चला कि वह तो मुझसे भी अच्छा प्रचारक है। उसके पास युवाओं की ताकत है‚ मैं तो बूढ़ा हो गया हूं और शक्ति भी खो चुकी है। मुझे जॉन से बहुत ईर्ष्या हुई। इतनी ज्यादा ईर्ष्या हुई कि इसने मुझे व्यथित कर दिया और एक रात मैंने जॉन से यह बात कबूली। फिर मैंने इसे आप के सामने स्वीकार किया। तब मैं भीतर से स्वस्थ हो गया और मेरा आनंद लौट आया। जो मैंने किया वैसा ही करने के लिये आप से कहता हूं। आज की रात यहां अपने भीतर के पापों को स्वीकार कर लीजिये। मेरा मन भी एक समय ईश्वर से इतना भटक गया था कि मैं सचमुच इस विचार में पड़ गया कि आप लोग अब मुझे प्रचारक के रूप में नहीं चाहते हैं। फिर परमेश्वर ने हमारे चर्च में लोगों में मध्य आत्मिक जाग्रति भेजी‚ तब मैंने पश्चाताप किया और स्वयं के अंर्तमन को शुद्ध करने के लिये यीशु के पास गया कि उनके अनमोल लहू से शुद्ध हो जाउं।
क्या आप को यह अजीब लगता है कि एक ७६ साल का बूढ़ा आदमी जो ६० सालों से प्रचार कर रहा है‚ उसे पश्चाताप करने की आवश्यकता है? नहीं‚ इसमें अजीब बात नहीं है। केवल अपने आप को फिर से नया बनाना है और पुर्नरूज्जीवित होना है। ‘‘मन फिरा और पहिले के समान काम कर" (प्रकाशितवाक्य २:५)। बारंबार पश्चाताप कीजिये। यीशु के पास पुनः आइये और उनके लहू में बारंबार धुलकर शुद्ध हो जाइये! महान धर्मसुधारक लूथर ने कहा था‚ हमारा संपूर्ण जीवन अनवरत पश्चाताप का जीवन होना चाहिये। लूथर को भी निरंतर पश्चाताप करना पड़ा था और ऐसा ही आप को और मुझे करना होगा।
मैं मानता हू कि याकूब ५:१६ में आत्मिक जाग्रति को प्रयोग में लाने की पद्धति दे रखी है। यह कहता है‚ ‘‘इसलिये तुम आपस में एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मान लो‚ और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करो‚ जिस से चंगे हो जाओ....... " "पापों" शब्द पर ध्यान दीजिये। इसके लिये यूनानी शब्द ‘‘पेरापटोमा" प्रयुक्त किया जाता है। डॉ कहते हैं कि इस शब्द का अर्थ ‘‘गलती होना होता है‚ (कोई) त्रुटि या दोष होना होता है।" हमारे और परमेश्वर के बीच में हमारे द्धारा किसी पर किया गया क्रोध, हमारे द्धारा किसी को क्षमा नहीं किया जाना, हमारी ईर्ष्या, हममें प्रेम की कमी होना इत्यादि बातें आती है।
अक्सर हमारे हृदय केवल परमेश्वर के सामने हमारे पाप या दोष को मान लेने से चंगे हो जाते हैं। मैंने ध्यान दिया कि काई पर्नाग का चेहरा प्रेम और लगाव के कारण लगा था। उसके पहले उसके चेहरे पर कड़वाहट और क्रोध के भाव रहते थे। उसने मुझे बताया‚ ‘‘मैंने देखा कि शर्ली ली के उपर पवित्र आत्मा ने कार्य किया। जो शांति और आनंद उसके पास था, मैं भी वैसा ही चाहता था। मैंने परमेश्वर के सामने स्वीकार किया मैं अपने पास्टर से नाराज था। उसके बाद मैंने पाया कि मेरा क्रोध चला गया और मुझे शांति और दूसरों के प्रति लगाव पैदा हुआ।" अदभुत बात! मुझे यह सुनकर अत्यंत हर्ष हुआ जब मैंने उसे यह कहते हुए सुना! मैंने उससे कहा कि मैं उससे प्रेम रखता हूं। बस यही तो स्वीकारोक्ति है। ये दूसरों को क्षमा कर देने में निहित है और परमेश्वर से नयी शांति और आनंद प्राप्त करने में है! यही तो आत्मिक जाग्रति में होता है - आप अपने पापों को स्वीकार करते हैं। जब आप अपने दोष परमेश्वर के सामने मान लेवें।
परंतु जब परमेश्वर की उपस्थित बनी हुई हो तब आपको अपने दोष किसी भाई या बहिन के सामने मान लेने चाहिये। एक दूसरे के सामने अपने पाप स्वीकार कर लेना चाहिये। याकूब ५:१६ को इस प्रकार भी अनुवादित किया जा सकता है‚ ‘‘‘एक दूसरे के सामने अपने पापो को मान लेने का अभ्यास करते रहना चाहिये और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करने की आदत होनी चाहिये। इसका यह अर्थ हुआ कि बीमार पड़ने पर आप को पाप स्वीकार करने का इंतजार नहीं करना होगा" (आर सी एच लैंस्की) । चीन में एक दूसरे के समक्ष पाप स्वीकार करने का प्रचलन है इसीलिये तो चीन में लगातार आत्मिक जाग्रति होती रहती है।
मैंने एक भाई से कहा कि मैं उन्हें आमंत्रण दूंगा कि वे वे चर्च में आगे आयें और उनके लिये प्रार्थना की जाये, जैसा मैंने दो बार पहिले भी किया था। मैंने उनसे पूछा‚ ‘‘क्या आप सोचते हैं कि कोई आगे आयेगा?" उसने कुछ क्षण के लिये सोचा‚ फिर कहा ‘‘नहीं‚ कोई नहीं आयेगा।" मैने उससे पूछा कि कोई व्यक्ति क्यों नहीं आयेगा तो उसका उत्तर था आप सोचते हैं कि मैं इसलिये आत्मिक जाग्रति चाहता हूं ताकि अधिक लोग चर्च में आयें। परंतु कारण यह नहीं है। आप अपने आप से पूछिये अगर अधिक लोग आयेंगे तो उनका क्या भला होगा? अगर वे आने लगे तो हम कैसे उनकी मदद कर पायेंगे? हम चर्च में उन्हें मैत्री भाव, प्रसन्नता और गहरी संगति सभी कुछ तो प्रदान करते है। परंतु क्या ये सभी चीजें हमारे यहां कितनों के अंदर हैं? क्या हम प्रेमरहित कर्त्तव्य का पालन कर रहे हैं? यथार्थ में चर्च में आप एक दूसरे से प्रेम नहीं रख रहे हैं न ही किसी के हितों की चिंता कर पा रहे हैं, क्या कर पा रहे हैं? किसी के साथ आप की गहन मित्रता नहीं है, क्या है? मन में आनंद व्याप्त है, नहीं न? किसी के साथ आत्मिक गहरी संगति नहीं है, क्या है? चर्च में आने वाले नये लोगों के प्रति आपके में नहीं है, क्या यह सच नहीं है? ईमानदारी से कहिये आप के मन में तो यीशु के प्रति भी अब प्रेम नहीं रहा? तो जब जो चीजें हमारे अंर्तमन में नहीं, तो हम दूसरों को क्या बांटेगे?
जब मैं आप से आप के पाप और दोषों को स्वीकार करने के लिये कहता हूं‚ तो आप कहते हैं‚ ‘‘अरे‚ ऐसा करना तो मेरे लिये निहायत शर्म की बात होगी।" आप तो वैसे ही बहुत कर्म किये जा रहे हैं − भले कर्म! परंतु प्रिय मित्रों‚ आप को भले कर्म करके अपना उद्धार करने की आवश्यकता नहीं है। आप को और अधिक प्रेम करने की आवश्यकता है! मसीह से और अधिक प्रेम! एक दूसरे के प्रति प्रेम तभी उपज सकता है जब यीशु के प्रति आप के मन में प्रेम हो!
मेरे दर्शन को पूरा कर दीजिये‚ मेरी प्रत्येक इच्छा को
मुझे आप के गुणगान के लिये रखिये‚ आत्मा मेरी प्रेरित होती है‚
आप की उत्तमता से‚ आपके पवित्र प्रेम से‚
मेरे मार्ग को रोशन कर दीजिये।
मेरे स्वर्गिक मसीहा मेरे दर्शन को पूरा कर दीजिये‚
जब तक आप के आनंद से मेरी आत्मा जगमगाने न लगे।
मेरे दर्शन को पूरा कर दीजिये कि सब देखने पाये‚
कि आप की पवित्र प्रतिच्छाया मुझमें झलकती है।
मैं एक रात्रि बेचारे सेमसन के लिये सोच रहा था। बाइबल में पूरे चार अध्याय उसके उपर समर्पित है। इब्रानियों में उसे उद्धार प्राप्त व्यक्ति कहा गया है। उसको कब उद्धार मिला? मैं सोचता हूं से कुछ मिनटों पहले जब उसने परमेश्वर को सहायता के लिये पुकारा होगा‚ उसने उद्धार पा लिया होगा। यीशु ने उसे यीशु ने उसे पवित्र मनुष्य ‘‘परमेश्वर का नाजीर रहेगा" होने के लिये बुलाहट दी थी (न्यायियों १३:५) ‘‘और यहोवा का आत्मा उसको उभारने लगा" (न्यायियों १३:२५) । सेमसन परमेश्वर से प्रेम रखने में असफल रहा। अपने थोड़े समय के जीवन में हमारे समान ही जीवन उसने जिया। उसने सोचा कि वह इस मसीही जीवन को अपनी ताकत के बल पर जी लेगा‚ स्वयं के शरीर की ताकत के बल पर। किंतु बारंबार असफल होता रहा। आप के और मेरे समान। अंत में शैतानी शक्तियों के अधीन हो गया जिन्होंनें उसकी आंखे फोड़ दीं ‘‘और वह बन्दीगृह में चक्की पीसने लगा" (न्यायियों १६:२१)।
मेरे भाइयों और बहिनों क्या आपकी दशा भी सेमसन के ही समान नहीं है? आप भी तो यीशु द्धारा बुलाये हुए थे? आप को भी पवित्र आत्मा ने पिछले समय में परमेश्वर के लिये बड़े कार्य करने के लिये बुलाहट दी थी। किंतु आप के जीवन में धीरे धीरे कड़वाहट और उदासी भरती गयी। अब आप प्रसन्नचित्त नहीं रहते हैं। चर्च के प्रति भी आप का सच्चा प्रेम खो गया है। आप चर्च में प्रवेश करते हैं। आप का धर्म अरूचिकर कार्य करना‚ कठोर परिश्रम करना और आनंदहीन होकर रहना है। अरूचिकर कार्य करना और गुलामी वाले कार्य! बस इतना ही! आप चर्च एक गुलाम के रूप में आते हैं। बिल्कुल अरूचिकर कार्य! यहां आने पर आप को बहुत खुशी नहीं होती है। बेचारे सेमसन के समान आप बन्दीगृह में चक्की पीसते जा रहे हैं। मैं दूसरों का अनुभव तो नहीं जानता‚ परंतु मैं तो ‘‘बन्दीगृह में चक्की पीसने वाली" इस घटना को बाइबल में पढ़ते समय बहुत रोया − कि कैसे वह पीतल की बेड़ियों में जकड़े हुए एक के बाद एक घंटे चक्की पीसता जा रहा था।
ऐसा ही तो आप का धर्म है। बंधनकारी। कभी कभी मेरा हृदय आप के लिये रोता है। कोई आनंद नहीं। कोई प्रेम नहीं। कोई आशा नहीं। केवल बन्दीगृह के गुलाम बनकर चक्की पीसे जा रहे हैं। हां! आप में से कुछ लोगों के लिये यह चर्च भी तो बन्दीगृह समान है। जहां इसकी आराधना में भाग लेना चक्की पीसने के समान है। सुसमाचार कार्य में भाग लेना चक्की पीसने जैसा है। आप में से कुछ लोगों के लिये नफरत होने लगती होगी! किंतु यहां से बच निकलने का रास्ता क्या है? बाहरी धर्म के आचरण के बंधनों में जकड़े गये हैं। इसलिये पीसते जा रहे हैं। कुछ यहां से भाग निकलने का विचार करते होंगे। मैं जानता हूं उन्हें भी जो ऐसा प्रयास करते हैं। परंतु नहीं छोड़ सकते। आप के मित्र यहां है। आप के सगे संबंधी यहां आते हैं! कैसे यहां आकर अरूचिकर कार्य जैसे आराधना में भाग लेना आदि करते हैं‚ जिसमें मन लीन नहीं हो पाता‚ ध्यान भटकता है। परमेश्वर से प्रेम नहीं होने की अवस्था में चर्च आना भी गुलामों जैसे चक्की पीसते रहने के समान कार्य हो जाता है‚ क्या ऐसा नहीं है? अब मैं यहां आप की सहायता करना चाहता हूं! परमेश्वर पिता जानते हैं ऐसी मनोस्थिति में मैं आपकी मदद करना चाहता हूं। एक ही रास्ता है बच निकलने का। आप पूछेंगे वह कैसे प्रचारक महोदय? क्योंकि आप के समान मनोदशा से मैं भी एक समय होकर गुजर चुका हूं! चर्च आता था मानो गुलामों जैसे बंधन में जकड़े हुए चक्की पीसे जा रहा था −परंतु इनसे निकल नहीं पा रहा था! अपने पापों के बंधन दोषों के बंधन! जो जंजीर बन कर भारी हो गये! क्यों न पश्चाताप कर लें? इसलिये यीशु के सामने उन दोषों को मान लो! पश्चाताप कर लो। उन बंधनों से स्वतंत्र हो जाओगे। वह आप के समस्त बंधनों को तोड़ सकते हैं‚ यीशु के लहू से धुलकर शुद्ध हो जाइये।
‘‘इसलिये तुम आपस में एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मान लो; और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करो‚ जिस से चंगे हो जाओ.........." (याकूब ५:१६)
अपने भय अपने संदेह‚ अपने पाप‚ अपना क्रोध‚ अपनी कड़वाहट‚ अपनी ईर्ष्या सारे मनोभावों को यीशु के सामने स्वीकार कर लीजिये‚ ‘‘इसलिये तुम आपस में एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मान लो; और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करो, जिस से चंगे हो जाओ......" (याकूब ५:१६) मिसिस ली ने ऐसा ही किया था! और यीशु ने उन्हें अच्छा कर दिया। पर्न ने ऐसा ही किया और वे अच्छे हो गये। अभी भी आशा की किरण है। आप सोचते हैं‚ ‘‘क्या यह सच हो सकता है?" हां! यह सच है! प्रत्येक जन अभी प्रार्थना मांगे कि कोई आज यहां इस चर्च में अपने पापों को स्वीकार करे‚ और यीशु के द्धारा अच्छा किया जाये (वे प्रार्थना करते हैं)।
‘‘मसीह कहते हैं‚ ‘धन्य हैं वे जो शोक करते हैं‘ (मत्ती ५:४) ईश्वर से मन भटक जाने के लिये मन में दुखित होते हैं । जो मसीही जन पाप के प्रति व्यथित होते हैं। जल्द आत्मिक जाग्रति पाने के विचार से भर जाते हैं। यह संसार उनकी इस व्यथा को नहीं देख पाता परंतु जाग्रति पाने की लौ उनको बैचेन बना देती है। आत्मा के जाग्रत हो जाने से............मन की गहरी गुफाओं में प्रकाश पहुंचता हैं। इवान राबर्ट लोगों को स्मरण दिलाते हैं जब तक मनुष्य मन से तैयार नहीं होगे, (पवित्र) आत्मा नहीं उतरेगा: ‘(चर्च) को सारे बुरे मनोभावों के प्रभाव से मुक्त करना होगा − सारे कपट, द्धेष, जलन, अहंकार, और गलतफहमियों से मुक्त करना होगा। (मत प्रार्थना कीजिये), जब तक एक दूसरे को पहुंचायी गयी चोटों के लिये दिल से क्षमा नहीं मांगी हो। लाभ पाने के लिये उपरी तौर पर क्षमा मत मांगिये: किसी को क्षमा करने की इच्छा नहीं होती है, तो घुटनों के बल जमीन तक झुक जाइये और क्षमा करने वाली आत्मा को मांगिये। क्षमा करने वाला मन भी मिलेगा....... ‘"(ब्रायन एच एडवर्ड‚ रिवाईवल‚ इवेंजलीकल्स प्रेस, २००४‚ पेज ११३)..... ‘‘प्रत्येक जन एक दूसरे को भूल जायें आप का चेहरा केवल परमेश्वर के सामने है (जब आप पाप स्वीकार करते हैं)..... (आत्मिक जागरण में) ऐसा ही किया जाता है।.....गहराई से पश्चाताप किये बिना, व्यथित और मन में नम्र हुए बिना आत्मिक जाग्रति का अनुभव नहीं मिलेगा" (उक्त संदर्भित‚ पेज ११६) .....‘‘हमारे चर्च आज अपवित्र हैं क्योंकि मसीह जन पाप स्वीकार ही नहीं करते हैं या उससे भय खाते हैं.......... जो आत्मा में जागरण मिलने की इच्छा रखते हैं, उन्हें पवित्र परमेश्वर के समक्ष अपने जीवनों और हृदय को जांचना चाहिये।
अगर पाप ढांपे रखेंगे, अभी स्वीकार नहीं करेंगे तो (आत्मा में प्रकाश नहीं पहुचेगा).........एक पवित्र परमेश्वर‚ मसीह के अनुयायी को उसका छोटे सा छोटा पाप स्मरण दिलाता है........ जो हमेशा परमेश्वर की उपस्थिति में रहते हैं वे अपने व्यक्तिगत पापों के प्रति बहुत सजग रहते हैं........ अपने बुरे कर्मो को दिल की गहराई से स्वीकार किये जाना एक सुखमय आनंदित आजादी प्रदान करता है।
अपने ‘दिल को पश्चाताप‘ करने की पीड़ा प्रदान करेंगे तो उद्धार पाने के आनंद के सोते फूट पड़ेगे" (उक्त संदर्भित‚ पेज ११६)
सत्रह युवाओं ने हमारी आत्मिक जागरण की सभा में मन फिराया। पवित्र आत्मा की उपस्थिति उनका स्पर्श हमें प्राप्त हुआ। ऐसे युवाओं के मन में आत्मा के जाग्रत होने का भाव आया जिनके लिये किसी ने आशा नहीं की होगी। जब मैंने उनके नाम पुकारे तो कलीसिया में किसी को खुशी नहीं हुई क्योंकि लोगों को उनके लिये कोई आशा ही नहीं थी। आप को क्यों खुशी नहीं हुई? चीन में तो वे मारे आनंद के रोने लगे थे‚ जब युवाओं में आत्मिक जागरण फैलने लगा था! तो यहां क्यों खुशी नहीं होती?
सत्रह युवाओं ने उद्धार पाया परंतु हमारे यहां चर्च में किसी को उनके लिये न हर्ष हुआ न खुशी के आंसु बह निकले। क्या कारण है? क्योंकि ‘‘जिसका मन ईश्वर की ओर से हट जाता है‚ वह अपनी चाल चलन का फल भोगता है" (नीतिवचन १४:१४)
‘‘क्या तू हम को फिर न जिलाएगा‚ कि तेरी प्रजा तुझ में आनन्द करे " (भजनसंहिता ८५:६)
खुशी के आंसुओ के साथ हम तब तक आनंद नहीं मना सकते‚ जब तक हमने पश्चाताप करने मे अपने आंसु नहीं बहाये हों! चीन में यीशु के द्धारा उद्धार पाने वाले ऐसा कर रहे हैं। हमारे चर्चेस में ऐसी भावना का अभाव क्यों हैं? एक दूसरे के सामने अपने पापों को मान लें और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करें तो आप को मन, तन और आत्मा का उत्तम स्वास्थ्य मिल जायेगा। दूसरे क्या सोचेंगे, इसका भय आप को अपने पाप को स्वीकार करने से रोकता है। यशायाह भविष्यवक्ता कहते हैं, ‘‘मैं ही तेरा शान्तिदाता हूं; तू कौन है जो मरने वाले मनुष्य से.........और अपने कर्ता यहोवा को भूल गया है......... " (यशायाह ५१:१२‚१३)
“हे ईश्वर‚ मुझे जांच कर जान ले!
मुझे परख कर मेरी‚
चिन्ताओं को जान ले:
और देख कि मुझ में‚
कोई बुरी चाल है कि नहीं‚
और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर”
(भजन संहिता १३९:२३‚२४)
मेरे दर्शन को पूर्ण कीजिये पाप का लेश मात्र भी
मेरे भीतर की आभा को मद्धिम न करने पाये।
आप का धन्य चेहरा मैं देखने पाउं‚
आपके अनंत अनुग्रह पर मेरी आत्मा पोषित होती है
मेरे स्वर्गिक मसीहा‚ मेरे दर्शन को पूर्ण कर दीजिये‚
जब तक कि आप के प्रताप से मेरी आत्मा रोशन न हो जाये।
मेरे दर्शन को पूर्ण कीजिये कि सब देखने पाये‚
कि आप की पवित्र प्रतिच्छाया मुझमें झलकती है।
(‘‘मेरे दर्शन को पूर्ण कीजिये"‚ एविस बर्जसन क्रिश्चियनसन‚ १८९५−१९८५)
आप पहिले कभी आगे नहीं आये। आप जानते थे कि आना तो चाहिये था‚ मगर डरते थे। मिसिस चान ने मुझे फोन पर बताया कि उनका मन पूरी रीति से परमेश्वर की ओर से हट गया था। तब रविवार की सुबह मैंने मिसिस चान की ओर देखा − और उन्होंने मेरी तरफ। मैं देख सकता था कि वह चर्च में आगे आना चाहती हैं। मैने उनका हाथ पकड़ा और कहा‚ ‘‘आइये।" वह आगे चलीं। आगे आने मे उन्हें भय लग रहा था। आखिरकार‚ वह डॉ चान की पत्नी थी! लोग क्या सोंचेंगे अगर उन्होंने अपने पापों को स्वीकार कर लिया तो? भूल जाइये लोग क्या सोचेंगे! आइये‚ जब तक हम गीत गाते हैं‚ आप आगे आकर घुटने टेककर प्रार्थना करें और अपने पापों को स्वीकार करें! परमेश्वर पिता आप के मन में पापों को मानने का बोध पैदा करेंगे और तब मसीह का लहू जो क्रूस पर बहाया गया आपको आप के पापों से शुद्ध कर देगा।
मेरे दर्शन को पूर्ण कीजिये पाप का लेश मात्र भी
मेरे भीतर की आभा को मद्धिम न करने पाये।
आप का धन्य चेहरा मैं देखने पाउं,
आपके अनंत अनुग्रह पर मेरी आत्मा पोषित होती है
मेरे स्वर्गिक मसीहा‚ मेरे दर्शन को पूर्ण कर दीजिये‚
जब तक कि आप के प्रताप से मेरी आत्मा रोशन न हो जाये।
मेरे दर्शन को पूर्ण कीजिये कि सब देखने पाये‚
कि आप की पवित्र प्रतिच्छाया मुझमें झलकती है।
(‘‘मेरे दर्शन को पूर्ण कीजिये‚" एविस बर्जसन क्रिश्चियनसन‚ १८९५−१९८५)
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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व बैंजामिन किंकेड ग्रिफिथ का एकल गान:
‘‘मोर लव टू दी" (इलिजबेथ पी. प्रेंटिस‚ १८१८−१८७८)