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बहुत क्लेश उठाकर
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मैंने अभी अभी अपने चर्च के दो जवानों को यह कहते हुये सुना है कि मुझे हमारे चर्च के २५ साल पहले हुये उस बड़े विभाजन के बारे में बातें करना बंद कर देना चाहिये। मुझे भविष्य के बारे में प्रचार करना चाहिये। अतीत की नारकीय बातें जिससे होकर हमारे चर्च के लोग गुजरे थे उसको दोहराने की जरूरत नहीं है । मैं इन आलोचनाओं का आदी हो गया हूं। आलोचना करने वाले मेरे मित्र ही हैं। मेरे जवान मित्र । किंतु जो वे कहते हैं वह बिल्कुल गलत है! सरासर गलत! देखा जाये तो मैंने वास्तव में चर्च विभाजन पर इतना प्रचार किया ही नहीं है। परमेश्वर कहता है मुझे इसे बार, बार और बार बार प्रचार करना चाहिये − जब तक कि इसका सारांश आप को चुभने न लगे और जीवन बदलने में सहायक न हो! मुझे अधिक और अधिक प्रचार करना चाहिये! हां, अधिक और अधिक − और बार, बार, बार!
कहानी साधारण सी है। उस समय हमारे चर्च में ५०० लोग थे। चर्च के एक वरिष्ठ ''अगुए'' का मानना था कि मै बहुत अधिक निराशावादी प्रवृत्ति का व्यक्ति था। उनका कहना था कि मैं लोगों से बहुत अधिक पाने की आशा रखता था। उसने मुझे तानाशाह और उत्पीड़क भी कहा क्योंकि जैसा मसीह प्रचार करते थे मैं उसी शैली में प्रचार करता था –
''और जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता'' (लूका १४:२७) इसलिये ''आसान'' जीवन जीने का सपना लिये ४०० लोग हमसे अलग हो गये। पर उनका हश्र क्या हुआ? वह ''वरिष्ठ अगुआ'' उसके साथ अलग हुये लोगों में से केवल चौदह पंद्रह को ही लेकर ''सुविधाजनक शैली'' में रविवार के छोटे से चर्च में आराधना करता रहा। उन लोगों में से कोई भी सच्चा मसीही जन नहीं बन पाया, न ही परमेश्वर के किसी काम आ पाया। बाकि के लोग हवा में चारों दिशा में बिखर गये। उनके आत्मिक जीवन मुरझा गये। वे पतझड़ की पत्तियों के समान बिखर गये। एक प्रसिद्व कथन है, ''यीशु ने उस से कहा; जो कोई अपना हाथ हल पर रखकर पीछे देखता है, वह परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं'' (लूका ९: ६२)
हां, चर्च भवन को बचाने वाले उन ''३९ लोगों'' के उपर मैं प्रचार करने जा रहा हूं। मैं उन चार सौ लोगों के उपर प्रचार करने जा रहा हूं जो संसार में वापस लौट गये! हां मैं प्रचार करूंगा! चर्च में पीठ पीछे बातें करने वाले व कुछ विद्रोही बच्चे कहते हैं, ''हमारे पास्टर कैंसर के मरीज हैं अब ज्यादा दिन नहीं बोल पायेंगे।'' मेरे दिन मत गिनिये! मैं अभी जीवित हूं! मैं उस सिदांत से चिढ़ता हूं जो कहता है एक बार उद्वार मिलने के बाद तुम नैतिक नियमों को तोड़ भी दोगे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। चालीस साल पहले भी मैं इस शिक्षा को नापसंद करता था! हां, मैंने नापसंद शब्द का सही प्रयोग किया है। मैं इस शिक्षा से घृणा करता हूं! घृणा − घृणा! वह पवित्र घृणा जो यीशु भी ऐसी शिक्षा से करते थे! बाइबल कहती है, ''बुराई से बैर और भलाई से प्रीति रखो और फाटक में न्याय को स्थिर करो, क्या जाने सेनाओं का परमेश्वर यहोवा यूसुफ से बचे हुओं पर अनुग्रह करे'' (आमोस ५:१५)
मसीह ने उन कमजोर लौदीकियां वासियों, ऐंटीनोमियंस और नये सुस्त इवेंजलिस्टों से कहा − या कहें कि चेतावनी दी, ''सो इसलिये कि तू गुनगुना है, और न ठंडा है और न गर्म, मैं तुझे अपने मुंह में से उगलने पर हूं।'' (प्रकाशितवाक्य ३:१६) हां! ''मैं तुझे अपने मुंह में से उगलने पर हूं'' (रायरी, एनएएसवी) ''मैं तुझे अपने मुंह में से उगलने पर हूं!'' ''मैं तुझे अपने मुंह में से उगलने पर हूं!'' मैं तुझे अपने मुंह में से उगलने पर हूं, थूकने पर हूं, उगलने पर हूं − अपने मुंह में से!'' डॉ चाल्र्स सी रायरी इस पद की व्याख्या इस प्रकार करते हैं, ''गुनगुना निष्क्रिय और समझौता करने वाला......चर्च प्रभु को अप्रिय लगता है, प्रभु के उददेश्य को नुकसान पहुंचाता है।'' (रायरी स्टडी बाइबल; प्रकाशितवाक्य ३:१६ पर व्याख्या)
लौदिकियां वासियों के गुनगुने होने का उपचार क्या है? नये इवेंजलीकल्स की सुस्ती और विद्रोहीपन का उपचार क्या है? इसका उपचार सीधे इस पद में है:
''हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।'' (प्रेरितों के कार्य १४:२२)
पौलुस और उसके सहयोगी बरनबास इकुनियम और लुस्त्रा व अंताकिया में पहुंचे। वे इन शहरों में नये बने विश्वासियों को शिक्षित करने गये थे। टामस हैल की व्याख्या इस प्रकार है। उनका कथन है,
किसी एक स्थान पर सुसमाचार का प्रचार करना ही पर्याप्त नहीं है। पर नये विश्वासियों को शिक्षित करना और विश्वास में मजबूत करना आवश्यक है। पौलुस और बरनबास ने यही किया। उन्होंने नये (विश्वासियों) को चेताया था कि परमेश्वर के अनंत राज्य में प्रवेश के लिये उन्हें बहुत क्लेश सहन करना होगा। अगर वे मसीह के संगी वारिस होना चाहते हैं तो उन्हें उसके लिये दुख भी उठाना होगा। (टामस हैल, एमडी, दि एप्लाईड न्यू टेस्टामेंट कमेंटरी, चेरियट विक्टर पब्लिशिंग, १९९७, प्रेरितों १४:२२ पर व्याख्या)
२३ पद के उपर टिप्पणी करते हुये डॉ हेल ने बताया कि जिनको पौलुस और बरनबास ने शिक्षित किया वे सब नये विश्वासी थे। उनका मानना था कि इन चर्चेस के ''अगुए'' स्वयं भी ''नये विश्वासी थे'' (२३ पद) । पौलुस और बरनबास ने एकदम नये बने मसीहियों से कहा कि उन्हें ''बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा'' (प्रेरितों के कार्य १४:२२)। मैथ्यू हैनरी की व्याख्या कहती है, ''न केवल वे लोग पर हमें भी क्लेश उठाना आवश्यक है: यह सभी पर लागू होता है कि जिन्हें स्वर्ग जाने की आशा है उन्हें क्लेश और सताव झेलना आवश्यक होगा...... कोई इसका अर्थ यह लग सकता है कि इससे नये विश्वासियों को सुनकर धक्का लग सकता है और यह उन्हें थका सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है...... क्लेश उठाने से वे सही मायने में मसीही बनेंगे और मसीह के उपर ही उनका ध्यान लगा रहेगा.... 'पर जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे'.... वे सब लोग जो मसीह के शिष्य हैं उन्हें अपना क्रूस उठाना आवश्यक है। (मैथ्यू हैनरी कमेंटरी ओन दि व्होल बाइबल; प्रेरितों १४:२२ पर व्याख्या)
।यीशु, मैंने अपना क्रूस उठा लिया है, सब छोड़ आप के पीछे होने के लिये;
अक्षम, तिरस्कृत, परित्यक्त, अब से आप ही मेरे सब कुछ होंगे;
मेरी चाहतें खत्म हों, अब तक जो मैंने चाही, खोजी या तलाशी;
तौभी मैं कितना धनी हूं कि परमेश्वर और स्वर्ग आज भी मेरे हैं!
(''जीसस आय माय क्रास हैव टेकेन'' हैनरी एफ लाईट, १७९३−१८४७)
''हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।'' (प्रेरितों के कार्य १४:२२)
१. प्रथम, मन परिवर्तन का कष्ट उठाना होगा।
पद इसके बारे में कहता है, ''हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।'' ''कष्ट'' के लिये यूनानी शब्द ''थिलिप्सिस'' प्रयुक्त किया जाता है। इसका अर्थ है ''दवाब, मनोव्यथा, बोझ या अशांतता सहन करना'' (स्ट्रोंग) । हम बाइबल में वर्णित कुछ विशेष परिवर्तनों के उपर चर्चा करेंगे।
''और याकूब आप अकेला रह गया, तब कोई पुरूष आकर पह फटने तक उससे मल्लयुद्ध करता रहा। जब उसने देखा, कि मैं याकूब पर प्रबल नहीं होता, तब उसकी जांघ की नस को छूआ; सो याकूब की जांघ की नस उससे मल्लयुद्ध करते ही करते चढ़ गई।'' (उत्पत्ति ३२:२४,२५)
जिस ''मनुष्य'' से याकूब ने युद्व किया था, वह परमेश्वर का पुत्र था, याकूब ने इस विषय में स्वयं कहा, ''तब याकूब ने यह कह कर उस स्थान का नाम पनीएल रखा: कि परमेश्वर को आम्हने साम्हने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है। पनूएल के पास से चलते चलते सूर्य उदय हो गया, और वह (जांघ से लंगड़ाता था, एनएएसवी) (उत्पत्ति ३२:३०,३१) । याकूब जीवन भर लंगड़ाता रहा क्योंकि वह अपने परिवर्तन की रात में घायल हुआ था। जिस रात उसका नाम बदलकर याकूब से इजरायल रखा गया ''इजरायल का अर्थ है 'जो परमेश्वर के साथ युद्व करता है''' (रायरी स्टडी बाइबल) क्या आप ने परमेश्वर के साथ संघर्ष नहीं किया था? मसीह पर विश्वास करने से पहले, क्या आप द्वंद्व से होकर नहीं गुजरे?
पौलुस के परिवर्तन के बारे में सोचिये। जिसका सामना मसीह से हुआ था और मसीह ने उससे कहा था, ''पैने पर लात उठाना कठिन है।'' (प्रेरितों ९:५) डॉ हैनरी एम मोरिस ने पौलुस के लिये कहा कि वह एक ''हठी जानवर जैसा बर्ताव कर रहा था जिसकी लगाम अगर खींची जाये तो वह इस तरह खींचे जाने का विरोध करता है।'' (दि डिफेंडर स्टडी बाइबल) उसके कांपे जाने और भयभीत होने पर प्रभु उससे कहते हैं ''परन्तु अब उठकर नगर में जा, और जो कुछ करना है, वह तुझ से कहा जाएगा।'' (प्रेरितों ९:६) उसका मन परिवर्तन होने से पहले पौलुस ने तीन दिनों का अंधापन झेला और उपवास रखा (प्रेरितों ९:१७)
मसीही इतिहास में जो बड़े मन परिवर्तन हुये हैं उनके बारे में पढ़िये − औगुस्तिन, लूथर बनयन, व्हाईटफील्ड, वैस्ली, स्पर्जन की गवाहियां पढ़िये। सभी बहुत द्वंद, मनोव्यथा, दवाब और पाप के कचोटे जाने के बोध से होकर गुजरे थे − मसीह पर विश्वास लाने से पहले उनके दिमागों में विचारों का मंथन चलता रहा। क्या आप सोच सकते हैं कि बिना दवाब झेले, पाप के भीतर से कचोटे जाने के बगैर आप का परिवर्तन हो सकता है? अगर पश्चाताप नहीं है तो आप का निर्णय गलत हो सकता है। अगर पश्चाताप नहीं है तो आप का परिवर्तन झूठा है। लोगों के दिमाग में शैतान ऐसा गलत भ्रम पैदा करता है कि रोना कमजोर होने की निशानी है। इसलिये पुरूष, पाप के बोध होने का बहुत हद तक विरोध करते हैं यह सोचकर कि पुरूष को कमजोर नहीं दिखना चाहिये। ऐसा करना उचित नहीं है! हठ भरी मूर्खता है− इसे परमेश्वर की आत्मा का विरोध करना कहेंगे! मसीह का विरोध करना जो क्रूस पर हमारे लिये मरे। ऐसा व्यक्ति कटटरवादी मुस्लिम उग्रवादी से कम नहीं जो छोटे बच्चों को मौत के घाट उतारने, स्त्रियों के साथ दुव्र्यवहार करने और जवानों के सिर कलम करने को मर्दानगी समझते हैं। क्या आप ने अपने पापों के लिये कभी आंसू बहाये हैं? पुरूष कहते हैं, ''तुम हमसे ऐसा कभी नहीं करवा सकते।'' ''वह डींगे हांकता हुए कहता है कि तुम उसे कमजोर नहीं कर सकते। मैं कोई रोने वाला बच्चा थोड़े न हूं!'' मैं कहता हूं आप शैतान से कम थोड़े न है − जो सर्वसामर्थी के सामने झुकने से इंकार करता है! वह ''कायर किस्म'' का व्यक्ति है, जो अपने पाप के लिये आंसू बहाने से डरता है। वह ''रिरियाने'' वाला व्यक्ति है, जो परमप्रधान के सामने आंसू बहाने से डरता है!
''हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।'' (प्रेरितों के कार्य १४:२२)
२. दूसरा, पवित्रीकरण की प्रक्रिया में दुख उठाना ।
सिर्फ हृदय परिवर्तन के समय ही कष्ट आना स्वाभाविक नहीं है − परंतु एक मसीही जन को परिपक्व बनाने के लिये भी कष्ट आना आवश्यक होता है। प्रेरित पौलुस का कथन है,
''केवल यही नहीं, वरन हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज। ओर धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है और आशा से लज्ज़ा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है।'' (रोमियों ५:३−५)
मैं जोन मैक आर्थर के मसीह के रक्त के उपर जो विचार व्यक्त करते हैं उनसे कदापि सहमत नहीं हूं। वह इतने महत्वपूर्ण विषय पर सरासर गलत हैं! परंतु रोमियों ५:३−५ पर उनकी व्याख्या बिल्कुल सटीक है। उनका कथन है, ''कष्ट, शब्द दवाब झेलने के लिये प्रयुक्त होने वाला शब्द है, जैसे अंगूर या जैतून को निचोड़ कर उनका रस निकाला जाता है। यह सामान्य जीवन में आने वाले दवाबों से अलग हटकर है। मसीह के अनुयायी के रास्ते में आने वाले कुछ अवश्यंभावी दवाब हैं...... ये ऐसी कठिनाईयां है जिनके फल व्यक्ति को आत्मिक संपदा प्रदान करते हैं......धैर्य शब्द सहन शक्ति को बताता है जो उस व्यक्ति के अंदर जर्बदस्त भार और दवाब सहने की क्षमता है जिसके कारण वह क्लेशों में सिर नहीं झुकाता है...... मसीह जन ऐसे कष्ट में भी परम आनंद में रह सकते हैं क्योंकि ये क्लेश उनके लिये आगे चलकर उपयोगी फल पैदा करते हैं।'' (दि मैकआर्थर स्टडी बाइबल)
हम कष्ट सहन करके, दवाब झेलकर और परीक्षा में पड़कर मजबूत मसीही जन बन जाते हैं। मैंने जब इन दो जवानों को चर्च विभाजन पर संदेश देने पर आपत्ति उठाते देखा तो मैं समझ गया कि शैतान ने उनके मन में यह विचार पैदा किया है। मैं जानता हूं कि वे सरासर गलत हैं। उनकी इस बात ने मुझे और अधिक निश्चयी बना दिया कि मै उन विश्वसनीय लोगों के कड़ी परीक्षा में पड़ने के उपर प्रचार करूं। अगर आप स्वयं ऐसी कठिन परेशानियों में से होकर गुजरने से मना करेंगे तो आप किस प्रकार एक मजबूत मसीही जन बन सकते हैं? जिन्होंने हमारे चर्च को बचाया मैं उन्हें ''३९'' कहकर बुलाता हूं। इन ३९ ने वह कुछ सहा ताकि आप को यह सुंदर चर्च भवन मिल सके। उन्होंने अपने जीवन में आप के लिये त्याग किया। आप के भीतर यह साहस कैसे आया कि आप मुझे उनके बारे में बात करने से रोके? कैसे साहस किया आप ने! आप ने परमेश्वर के लिये किसी चीज का त्याग नहीं किया! इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आप को परमेश्वर के होने पर भी संशय लगता होगा। जीवन में कभी ऐसा मौका नहीं आया होगा कि आप को अपने लिये बहुत बुरा लगा होगा। विश्वास टूट कर बिखर गया होगा! आप को ''३९'' के समान बनने के लिये कष्ट से होकर गुजरना होगा। आप ने कौनसा कष्ट उठाया? कुछ नहीं! हर वह चीज जो आप को मिली आप ने उसकी कीमत न जानी! अगर आप ने त्याग करने और कष्ट झेलने और क्रूस उठाने से मना किया तो आप कभी भी मिसिस सालाजर, कार्ला डिबोट, डॉ कैगन, बैन ग्रिफिथ, ऐबेल प्रुधोमे, मि सोंग और मिसिस हिमर्स जैसे मजबूत मसीही जन नहीं बन पायेंगे। अगर यीशु मसीह के लिये त्याग करने से आप ने मुंह मोड़ा तो आप कभी भी एक मजबूत मसीही जन नहीं बन पायेंगे!
आप में से कुछ को डॉ कैगन द्वारा मेरे उपर प्रचार किया गया संदेश पसंद नहीं आया। आप ने सोचा यह व्यक्ति तो बहुत अधिक नकारात्मक है। आप ने सोचा कि ''कौन इतनी झंझटों से होकर जाना पसंद करेगा।'' अगर मैं इन सब तकलीफों से होकर नहीं गुजरा होता तो आज सुबह यह चर्च भवन नहीं दिखाई पड़ता! अगर मैं इन सब तकलीफों से होकर नहीं गुजरा होता तो आप सब भी नहीं दिखाई देते! ''चर्च के बच्चे'' यहां नहीं होते! अगर मैंने ये कष्ट नहीं झेले होते तो आप का अस्तित्व नहीं होता! मैं आप के माता पिता को मसीह के पास लेकर आया। मैंने उनकी शादियां दी। मैं उन्हें खतरनाक चर्च विभाजन के दिनों में संभाले रहा। चर्च के बच्चे और जवान यहां नहीं दिखाई देते अगर मैंने अपने जीवन में इतना संघर्ष नहीं किया होता!
केवल एक बच्चे ने मुझे ७५ वें जन्मदिन पर कार्ड भेजा! सारे ''३९'' ने मुझे कार्ड भेजे और धन्यवाद लिखकर भेजा। पर चर्च के केवल एक बच्चे ने मुझे कार्ड भेजा। यह वह बच्चा था जिसने हमारे चर्च में उद्वार पाया और चर्च के सारे बच्चों में से केवल इसी बच्चे ने कार्ड भेजा। केवल उसी ने मेरे दिल को प्रफुल्लित करने के लिये ये शब्द लिखे,
प्रिय हिमर्स,
आप को ७५ वें जन्मदिन की बधाई! यीशु के नाम की सेवकाई करने के लिये और आप की विश्वसनीय सेवा के लिये परमेश्वर आप को आशीष देवे! मैं पास्टर के रूप में आप की सेवा के लिये परमेश्वर का बहुत आभारी हूं! अपने प्रचार पर कायम रहने और यीशु के लिये जीने के लिये आप को बहुत धन्यवाद। आप का जीवन यीशु के लिये अदभुत गवाही है! एक विश्वसनीय मसीही जन का उदाहरण रखने के लिये बहुत धन्यवाद। यीशु के कारण आप का जीवन अदभुत है जो अन्य लोगों के जीवन को स्पर्श करता है। ''सो हे मेरे प्रिय भाइयो, दृढ़ और अटल रहो, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ।'' प्रिय हिमर्स आप मुझे इस पद का स्मरण दिलाते हैं और मैं प्रार्थना करता हूं कि जो दर्शन आप ने देखा है वह और अधिक विकसित होता जायेगा और आपके कार्य को आगे ले जाने के लिये यह चर्च संघर्षरत रहेगा। यीशु के लिये प्रज्जवलित रहेगा! परमेश्वर आप को यीशु के नाम में आशीष देवे (उस बालक ने नीचे अपना नाम लिखा था) नाम के नीचे उसने १ यूहन्ना २ लिखा था,
''और संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा''
मैं बाकि के बच्चों पर गुस्सा नहीं हूं। बिल्कुल भी नहीं हूं। मैं सिर्फ आप की आत्माओं के लिये चिंतित हूं। मैं आप के लिये प्रार्थना कर रहा हूं कभी कभी तो रात रात भर। मैं आप के लिये डरता हूं क्योंकि मैं जानता हूं,
''हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।'' (प्रेरितों के कार्य १४:२२)
अगर आप ''३९'' के लिये खुश नहीं होंगे − अगर आप उनसे प्रेम नहीं रखेंगे और उनके किये गये त्याग का अनुसरण नहीं करेंगे − तो आप कभी भी मेरे सपनों के उस महान चर्च का हिस्सा नहीं हो सकते। एक व्यक्ति जो अपनी गर्दन को कड़ी रखता है और कहता है, ''मैं कभी नहीं करूंगा'' तो वह ऐसा व्यक्ति होगा जो परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाने का खतरा मोल लेगा। बाइबल कहती है, ''जो बार बार डांटे जाने पर भी हठ करता है, वह अचानक नाश हो जाएगा और उसका कोई भी उपाय काम न आएगा'' (नीतिवचन २९:१) यीशु ने कहा था,
''सो चेत कर, कि तू कहां से गिरा है, और मन फिरा और पहिले के समान काम कर और यदि तू मन न फिराएगा, तो मै तेरे पास आकर तेरी दीवट को उस स्थान से हटा दूंगा।'' (प्रकाशितवाक्य २:५)
कृपया खड़े होकर पेज ३ पर अंकित गीत गाये।
सब यीशु के लिये, सब यीशु के लिये! मेरी छुड़ौती के लिये सब दे दिया:
मेरे सारे विचार शब्द और कार्य, और मेरे सारे दिन और घंटे।
सब यीशु के लिये सब यीशु के लिये! मेरे सारे दिन और घंटे;
सब यीशु के लिये, सब यीशु के लिये! मेरे सारे दिन और घंटे।
मेरे हाथ उसकी आज्ञा माने, मेरे पैर उसके मार्ग में दौड़े:
मेरी आंखे केवल यीशु को देखें और मेरे होंठ केवल उसकी प्रशंसा गायें।
सब यीशु के लिये, सब यीशु के लिये! मेरे होंठ केवल उसकी प्रशंसा गायें।
सब यीशु के लिये, सब यीशु के लिये! मेरे होंठ केवल उसकी प्रशंसा गायें।
चूंकि मेरी आंखें यीशु पर केंद्रित हैं, मुझे आसपास कोई सूझ नहीं पड़ता;
मेरी आंखों का दर्शन बंध गया है, केवल क्रूसित यीशु को देखता हूं
सब यीशु के लिये, सब यीशु के लिये! केवल क्रूसित यीशु को देखता हूं;
सब यीशु के लिये, सब यीशु के लिये! केवल क्रूसित यीशु को देखता हूं;
(''सब यीशु के लिये'' मेरी डी जेम्स, १८१०−१८८३)
मसीह आप के पापों का दंड भरने के लिये क्रूस पर मरे। आप के पापों को शुद्व करने के लिये उन्होंने अपना लहू बहाया। उनके मर कर जीवित होने से आप को शाश्वत जीवन मिलता है। वह इस समय परमेश्वर के दाहिने हाथ स्वर्ग में उपस्थित हैं। जब आप अपने पापों से पश्चाताप करेंगे और यीशु पर विश्वास रखेंगे तो आप को उसी समय उद्वार मिलेगा। अगर आप चाहते हैं कि यीशु द्वारा उद्वार पाने के विषय में हमसे चर्चा करें तो डॉ कैगन के साथ आडिटोरीयम के पीछे बने हिस्से में चले जाइये। आमीन।
अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।
(संदेश का अंत)
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पांडुलिपि संदेशों का कॉपीराईट नहीं है। आप उन्हें बिना डॉ.
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा धर्मशास्त्र पढ़ा गया: प्रेरितों १४:१९−२३
संदेश के पूर्व बैंजमिन किंकेड ग्रिफिथ ने एकल गान गाया गया:
''लिविंग फार जीसस'' (थामस ओ किसहोम, १८६६−१९६०)
रूपरेखा बहुत क्लेश उठाकर ENTERING THE KINGDOM डॉ आर एल हिमर्स ''और वे उस नगर के लोगों को सुसमाचार सुनाकर, और बहुत से चेले बनाकर, लुस्त्रा और इकुनियम और अन्ताकिया को लौट आए। और चेलों के मन को स्थिर करते रहे और यह उपदेश देते थे, कि हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।''
(लूका १४:२७; ९:६२; आमोस ५:१५; प्रकाशित ३:१६) १. प्रथम, मन परिवर्तन का कष्ट उठाना होगा, उत्पत्ति ३२:२४,२५,३० २. दूसरा, पवित्रीकरण की प्रक्रिया में दुख उठाना, रोमियों ५:३−५; |