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अच्छे आदमी ने उद्वार को खो दिया और बुरे ने पा लिया!A GOOD MAN LOST AND A BAD MAN SAVED! डॉ आर एल हिमर्स रविवार की संध्या, ५ मार्च, २०१७ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल ‘‘और उस ने कितनो से जो अपने ऊपर भरोसा रखते थे, कि हम धर्मी हैं, और औरों को तुच्छ जानते थे, यह दृष्टान्त कहा। कि दो मनुष्य मन्दिर में प्रार्थना करने के लिये गए; एक फरीसी था और दूसरा चुंगी लेने वाला। फरीसी खड़ा होकर अपने मन में यों प्रार्थना करने लगा, कि हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि मैं और मनुष्यों की नाईं अन्धेर करने वाला, अन्यायी और व्यभिचारी नहीं, और न इस चुंगी लेने वाले के समान हूं। मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूं; मैं अपनी सब कमाई का दसवां अंश भी देता हूं। परन्तु चुंगी लेने वाले ने दूर खड़े होकर, स्वर्ग की ओर आंखें उठाना भी न चाहा, वरन अपनी छाती पीट पीटकर कहा; हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर। मैं तुम से कहता हूं, कि वह दूसरा नहीं; परन्तु यही मनुष्य धर्मी ठहराया जाकर अपने घर गया; क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा '' (लूका १८:९–१४) |
यह एक दृष्टांत है। एक बड़े सत्य को समझाने के उददेश्य से यीशु ने यह कहानी सुनाई। यीशु ने उन लोगों को शिक्षा देने के लिये कहा जो स्वयं को आत्म विश्वास से भरा, अपनी स्वयं की अच्छाई पर भरोसा करने वाले और हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने वाले होते हैं।
डॉ आर.ए. टोरी एक महान सुसमाचार प्रचारक थे। वह अक्सर इन पदों पर प्रचार किया करते थे। उन्होंने इस संदेश को नाम दिया था ‘‘अच्छे आदमी ने उद्वार खो दिया और बुरे आदमी ने पा लिया।'' डॉ टोरी कहते थे, ‘‘आप में से कुछ सोचते होंगे कि मैंने विषय को घुमा दिया है, इसको ऐसा होना चाहिये ‘अच्छा आदमी बचाया गया, बुरे को उद्वार नहीं मिला।' परंतु आप गलत सोच रहे हैं। विषय स्पष्ट है। ‘अच्छे आदमी ने उद्वार खो दिया और बुरे आदमी ने पा लिया।'' मसीह ने यह कहानी सुनाई थी। मसीह अच्छे और बुरे आदमी के विषय में बोल रहे थे। अच्छे आदमी ने उद्वार को खो दिया और बुरे ने पा लिया
फरीसी अच्छे आदमी थे। वे धार्मिक थे। वे अच्छा जीवन व्यतीत कर रहे थे। वे कर वसूल करने वाले थे। जितना पैसा चाहते थे, उतना बना लेते थे। वे मानों गैंगस्टर्स के समान थे। वे लोगो को अधिक रकम देने के लिये धमकाते थे। उसमें से कुछ पैसा वे रोमी सरकार को भी देते थे। शेष रकम स्वयं रख लेते थे। यहूदी लोग उनसे घणा करते थे। उनको धोखेबाज कहा जाता था, और दुष्ट समझा जाता था। सब प्रकार के पापियों में कर वसूल करने वाले सबसे बड़े पापी मनुष्य माने जाते थे। वे डाकू और लुटेरे समझे जाते थे। इस दृष्टांत में यीशु ने संपूर्ण मानव जाति को दो भागों में विभक्त कर दिया। यीशु ने लोगों को दो वर्गो में बांट दिया – स्व धार्मिक लोग जो भटके हुए थे और दूसरे, वे लोग जो जानते थे कि वे पापी हैं, और उन्हें उद्वार मिल गया । गेहूं का भूसा और गेहूं का फर्क। जो चौड़े मार्ग पर चलते हैं, वह मार्ग उन्हें नर्क ले जाता है। जो संकरे मार्ग पर चलते हैं, उद्वार पा जाते हैं। यीशु ने मनुष्य जगत को दो वर्गो में विभक्त कर दिया। आज रात यहां दोनों वर्गो के लोग उपस्थित हैं। आज रात आप किस वर्ग से हैं? यीशु ने कहा, ‘‘दो मनुष्य मन्दिर में प्रार्थना करने के लिये गए; एक फरीसी था और दूसरा चुंगी लेने वाला।'' एक अच्छा आदमी और एक बुरा आदमी। आप इनमें से कौन हैं?
१॰ पहले स्थान पर, ‘‘अच्छा आदमी'' जिसने उद्वार खो दिया।
‘‘फरीसी खड़ा होकर अपने मन में यों प्रार्थना करने लगा, कि हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि मैं और मनुष्यों की नाईं अन्धेर करने वाला, अन्यायी (लुटेरे) और व्यभिचारी नहीं, और न इस चुंगी लेने वाले के समान हूं। मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूं; मैं अपनी सब कमाई का दसवां अंश भी देता हूं।'' (लूका १८:११–१२)
संसार की निगाहों में वह एक बहुत ‘‘भला'' आदमी था। वह नैतिक रूप से अच्छा आदमी था। साफ सुथरा जीवन था। धार्मिक आदमी था। उदार मनुष्य था। समाज में आदरणीय था। वह मेरे ही समान था, जब मुझे उद्वार नहीं मिला था। मैंने सूट पहिना और अपने अंकल की बैठक में से निकल गया। वहां दूसरे लोग पियक्कड़ थे। वे बिस्तर और सोफे पर लेटे हुए थे। मैं उस समय लगभग १८ साल का था। मैंने सोचा था, ‘‘मैं कभी इन लोगों के समान नहीं बनूंगा।'' मैं एक अच्छा लड़का था। मैं नशा नहीं करता था। मैं शराब नहीं पीता। मैंने सिगरेट पहले से ही लगभग छोड़ दी है। मैं तो एक अच्छा लड़का हूं। मैंने तो स्वयं को एक बैपटिस्ट प्रचारक बनने के लिये समर्पित किया है। मैं तो सच में बहुत अच्छा हूं। परंतु मैं तो अभी तब भटका हुआ ही था! मुझे स्वयं पर बहुत घमंड था कि मैं वह सब नहीं करता जो इस उम्र में मेरे साथ के बच्चे करते थे। मैं अपने आप में ही घमंड करता था। मैं सोचा करता था कि मुझमें कुछ गलत नहीं था। परंतु मुझे तौभी अपने आप में अच्छा महसूस नहीं होता था। मैं स्वयं से प्रश्न पूछता था, ‘‘परमेश्वर को मुझसे और क्या चाहिये?'' मैं चर्च गया। मैं प्रत्येक रविवार की सुबह और रात्रि चर्च जाया करता था। हर रविवार दोपहर बिली ग्राहम को रेडियो पर प्रचार करते सुना करता था। मैं रविवार रात्रि को जवानों की क्वायर में गाया करता था। मैंने अपना जीवन प्रचारक बनने के लिये दिया था। यद्यपि हृदय की गहराई में मुझे किसी प्रकार की शांति नहीं थी। बाइबल कहती है, ‘‘दुष्टों के लिये शान्ति नहीं है, मेरे परमेश्वर का यही वचन है'' (यशायाह ५७:२१) परमेश्वर और अधिक मुझसे क्या चाहते हैं? मैं भी फरीसी व्यक्ति के समान था!
स्वयं पर विश्वास करने वाला। उसने दूसरों का अपमान किया। उसने यह नहीं स्वीकार किया वह एक पापी है। उसने अपने पापमय हृदय को पहचानने से इंकार किया। वह अपना दंभ लेकर प्रार्थना कर रहा था, बजाय परमेश्वर के सामने समर्पित होने के। आज रात आप की दशा भी तो फरीसी के समान है! आप सोच रहे हैं आप बहुत अच्छे इंसान हैं। परंतु आप स्वयं को धोखे में रख रहे हैं। आप ने शैतान की बातें सुनी हैं। आप ईमानदार हैं और बाहरी रूप में नैतिक हैं। परंतु मन में पाप गहराई से भरा है। बाइबल तुम्हारे मन के लिये कहती है, ‘‘मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है?'' (यिर्मयाह १७:९)। जब मैं इस पर प्रचार करता हूं तो आप को पसंद नहीं आता है। आप चिंतित और बैचेन हो उठते हैं।
आप अपने मन को जांचना नहीं चाहते हैं। आप आदम के समान परमेश्वर से छिपना चाहते हैं। आप आदम के समान अपने पाप को छिपाना चाहते हैं। आप आदम के समान दूसरों के उपर दोष मढ़ना चाहते हैं। आप को परमेश्वर ने आदम के समान श्राप दिया है! आप भटके हुए हो। बाहरी धर्म, रीति रिवाजों और नैतिकता में भटक चुके हैं। स्वयं को धोखे में रख कर बैठे हैं। झूठी आशा में भटके हुए हैं। अगर आप इसी रूप में मरते हैं तो फिर आप अनंत काल तक के लिये नष्ट हो जायेंगे
अनंत काल, अनंत काल
अनंत काल तक के लिये नष्ट होंगे।
अनंत काल, अनंत काल
अनंत काल तक के लिये नष्ट होंगे!
(‘‘अनंत काल,'' एलिशा हॉफमैन, १८३९–१९२९)
मैं अपने आप से यही पूछता हूं कि, ‘‘परमेश्वर अब मुझसे और क्या चाहते हैं?'' मैंने जो कुछ किया, वह भी कम लगता है! हर दिन और रात मैंने बैचेन महसूस किया – और ऐसा ही प करते होंगे! आप को कभी खुशी नहीं होती होगी! आप को कभी इस तरह शांति नहीं मिलेगी! (यशायाह ५७:२१) ‘‘दुष्टों के लिये शान्ति नहीं है, मेरे परमेश्वर का यही वचन है'' आप उस धनवान युवा के समान हैं। आप ने परमेश्वर की आज्ञा को बाहरी रूप में पूर्ण किया है। परंतु आप ने अपने की आंतरिक दशा पर कोई ध्यान नहीं दिया! परंतु आप परमेश्वर की आज्ञा का आत्मिक अर्थ नहीं समझते हैं। परमेश्वर की आज्ञा जो आप के में छोटी सी वासना की भावना की भी निंदा करती है! आप स्वयं के विचारों में अच्छे आदमी हो सकते हैं। परंतु परमेश्वर की में निकम्मे इंसान हैं! अगर आप इसी तरह मरे तो आप सीधे नर्क की अग्नि में जलते रहेंगे!
अनंत काल, अनंत काल
अनंत काल तक के लिये नष्ट होंगे।
परंतु इस व्यक्ति के लिये मैं आप को एक और बात बताना चाहता हूं। उसकी प्रार्थना बताती है कि वह कितना जालसाज था; पूर्णतः फर्जी। परमेश्वर के प्रति कोई जागरूकता नहीं। उसकी प्रार्थना ‘‘बनावटी'' और झूठी थी। एक व्यक्ति की प्रार्थनायें बताती है कि वह मन से परिवर्तित हुआ कि नहीं। उनकी प्रार्थना के स्वर झूठे प्रतीत होते हैं। यंत्र चालित प्रार्थनायें। पाखंडी प्रार्थनायें। जो प्रार्थना हो ही नहीं सकती! खोखले शब्द जो किसी को प्रभावित करने के लिये कहे गये हों - स्वयं को ही भुलावे में रखते हैं। इस फरीसी की प्रार्थना को तो प्रार्थना कहा ही नहीं जा सकता! वह तो स्वयं की ‘‘अच्छाई’’ पर स्वयं को ही मुबारकबाद दे रहा था - ‘‘धन्यवाद परमेश्वर मैं औरों जैसा नहीं हूं।’’ कैसा पागलपन है! क्या वह नहीं जानता कि परमेश्वर झूठे शब्दों को पहचानते हैं? हां, झूठे शब्द! क्या वह सचमुच परमेश्वर पर विश्वास करता है? सच में नहीं! उसके लिये परमेश्वर एक कल्पना है, व्यक्तिगत और सच्चा परमेश्वर नहीं - और जीवित परमेश्वर तो बिल्कुल भी नहीं। मैं परमेश्वर को कैसे जान सकता हूं? वह ‘‘खड़ा होकर अपने मन में यों प्रार्थना करने लगा'' (लूका१८:११) इसका अनुवाद ऐसे भी किया जा सकता है ‘‘उसने स्वयं से प्रार्थना की'' (एनआयवी व्याख्या अ भाग) देखा जाये तो इस व्यक्ति ने परमेश्वर से बिल्कुल प्रार्थना नहीं की। उसने केवल अपनी अच्छाई की शेखी बघारी थी। उसने स्वयं से प्रार्थना की, परमेश्वर से नहीं! क्या आप का भी यह तरीका तो नहीं है, क्या आप भी इसी तरह से प्रार्थना करते हैं? क्या आप अपने आप को ही सुनाने वाली प्रार्थना तो नहीं करते हैं? क्या इसीलिये आप को प्रार्थना सभा में जोर की आवाज से प्रार्थना करने से डरते हैं? क्या आप जानते हैं कि लोग आप की प्रार्थना के शब्दों को झूठा समझेंगे? आप केवल दिखावे के लिये प्रार्थना कर रहे हैं? क्या ऐसा प्रदर्शित नहीं होता कि आप भटके हुए व्यक्ति हैं और एक भटका हुआ व्यक्ति सचमुच में परमेश्वर से प्रार्थना नहीं कर सकता? पद १४ में यीशु ने सीधे तौर पर कह दिया कि इस ‘‘तथाकथित'' व्यक्ति को ‘‘उद्वार नहीं'' मिला। उसने पापों से मुक्ति नहीं प्राप्त की! वह भटका हुआ इंसान ही रहा। वह धार्मिक तो था, परंतु खोया हुआ इंसान था। वह अनंत काल तक नर्क में ही रहेगा।
अनंत काल, अनंत काल
अनंत काल तक के लिये नष्ट होंगे !
यह मनुष्य पाखंडी था – ऐसे ही आप हैं! उसने परमेश्वर से प्रार्थना करने का बहाना किया - और आप भी ऐसा ही करते हैं! एक दिन आप की ‘‘अच्छाई'' काम नहीं देगी। आप के साथ कुछ भयानक बात होगी, जैसे हरेक के साथ होती है। पर उस भयानक और तनाव वाले दिनों में आप का पाखंड कुछ साथ नहीं देगा। बाइबल कहती है, (यशायाह ३३:१४) आप मरने के उपरांत परमेश्वर के समक्ष खड़े होंगे तब परमेश्वर आपसे कहेंगे, ‘‘मैं तुम्हें नहीं जानता, दूर हो जाओ, मेरे सामने से'' (मत्ती ७:२३) तब आपका झूठा धर्म आप को नहीं बचा पायेगा। परमेश्वर आप जैसे पाखंडी को नर्क की आग में डाल देंगे। आप लोगों की निगाह में तो अच्छे आदमी थे। परंतु परमेश्वर की निगाहों में भटके हुए जन! संसार की निगाहों में इज्जत और शोहरत से भरे हुए, परंतु कायनात के मालिक की निगाहों में भटके हुए।
२॰ दूसरा, बुरा मनुष्य जो बचाया गया।
“परन्तु (चुंगी लेने वाले) ने दूर खड़े होकर, स्वर्ग की ओर आंखें उठाना भी न चाहा, वरन अपनी (छाती पीट–पीटकर) कहा; हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर।“ (लूका १८:१२)
वह एक अच्छा आदमी नहीं था। वह एक नैतिक आदमी नहीं था। उसने यह नहीं देखा था कि वह कितना पापी था। पवित्र आत्मा ने उसे दिखाया कि वह सचमुच में एक भटका हुआ इंसान था। उसने महसूस किया कि वह सिर्फ परमेश्वर से दंड की आशा रखता है। उसने भजनकर्ता के समान स्वयं को महसूस किया ‘‘मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है।'' (भजन ५१:३) डॉ जॉन गिल ने कहा, ‘‘वह उपर नहीं देख सका शर्म से वह भरा हुआ था दुख से उसका (चेहरा) भर गया था। (परमेश्वर के) भय और क्रोध ने उस को जकड़ लिया था ; उसने स्वयं को (परमेश्वर के अनुग्रह) के लायक नहीं समझा। वह अपनी छाती पीटता रहा.... उसने अपनी आत्मा को जगाने के लिये ऐसा किया....ताकि परमेश्वर को पुकारे..........यह कहते हुए कि ‘हे परमेश्वर मुझे पापी पर दया कर!' यह एक छोटी सी प्रार्थना है, छोटी, परंतु संपूर्ण.....जिसमें यह भाव निहित है कि मैं पापी जन हूं और मुझे आप की दया की निहायत आवश्यकता है। मैंने आदम का (स्वभाव प्राप्त) किया है, मैं पाप में ही जन्मा हूं। मैं कर्मो से भी पापी हूं मैंने सच में बहुत बुरे कर्म किये हैं, मैं दोषी हूं.....मैं परमेश्वर के क्रोध के लायक हूं और (निम्न प्रकार) के नर्क में जाने योग्य हूं......मैंने परमेश्वर के विरूद्व में पाप किया है'' (लूका१८:१३ पर व्याख्या)
आप को पाप का बोध भी हो सकता है और आप को उद्वार न भी मिले। मैंने लोगों के चेहरे को प्रायश्चित स्वरूप आंसुओं में डूबे देखा है। उन्होंने बहुत समय प्रायश्चित और दुख मनाते बिताया तौभी वे उद्वार न पा सके। मैंने देखा है लोगों को बहुत पश्चाताप और शोक करते देखा है। परंतु तौभी उनका मन परिवर्तित नहीं होता है। मैंने लोगों को यह कहते सुना है, ‘‘कि मैं बहुत बड़ा पापी हूं'' और मैंने गलत कार्य किये हैं। मैंने उन्हें आंसुओं के साथ ऐसा कहते हुए सुना है – परंतु तौभी उन्हें उद्वार न मिल सका! ऐसा कैसे हो सकता है? जितना संभव होगा मैं इसे स्पष्ट करने का प्रयास करूंगा। पाप का बोध होना पाप से उद्वार पा लेना नहीं है। आप को पाप का बोध हो सकता है परंतु तौभी आप को यीशु से उद्वार नहीं मिल सकता है। मैं लोगों को आंसुओं में डूब कर फूट फूट कर रोते हुए देखता हूं – परंतु तौभी वे प्रभु यीशु मसीह पर कभी विश्वास नहीं करते हैं। डॉ मार्टिन ल्योड जोंस इस बात को समझ चुके थे। उन्होंने कहा, क्रिश्चियन बनना, एक चरम बिंदु पर पहुंचना है, एक जोखिम का कार्य है, संपूर्ण कायापलट है, जिसे नया नियम कहता है, नया जन्म होना नई सृष्टि बन जाना....यह अलौकिक कार्य है जिसे स्वयं परमेश्वर (करते) हैं, ऐसा जैसे मृतक आत्मा जीवित की गयी हो.....। यह ऐसी विकट स्थिति हो जाती है कि जिसमें परमेश्वर आप को अपने पापयुक्त के प्रति घृणा उत्पन्न कर देते हैं। यह नाजुक घड़ी परमेश्वर आप के भीतर पैदा करते हैं। ऐसा होने पर आप का हृदय प्रायश्चित के लिये तड़फ उठता है। जॉन बुनयन पाप के बोध तले सात साल तक तड़फते रहे। जैसे धरती पर सात वर्षो का नरक काटा हो। मैं अपने अनुभव से जानता हूं कि पाप का बोध होना अलग बात है और पाप से उद्वार मिलना अलग बात है।
नौसिखिये प्रचारक जब किसी व्यक्ति का आंसुओं में डूबे हुए प्राश्श्चित करते हुए देखते हैं, तो निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि उस व्यक्ति का उद्वार हो चुका है! तौभी वे प्रायश्चित की नारकीय पीड़ा में नहीं उतरे होते हैं। जब आप किसी के आंसुओं को देखकर उससे प्रभु यीशु पर विश्वास करने के लिये कहो तो यह एकाएक नहीं हो सकता। जब तक कि इंसान टूट न जाये। भीतर से तड़फ न जाये कि यीशु मसीह उसे बचा ले। इस अनुभव से गुजरे बिना, ‘‘संसार का कोई भी जन क्रिश्चियन नहीं बन सकता।'' जिसे अपने ‘‘जीवनकाल'' में यीशु के लिये ऐसी प्यास न लगी हो, वह असल क्रिश्चियन है ही नहीं। यीशु का अनुयायी नहीं। भले ही हर रविवार चर्च क्यों न जा रहा हो। देखने में तो यह आता है कि चर्च में बैठा व्यक्ति यंत्र चालित सा सारी गतिविधियों में भाग लेता है। बाइबल के सारे सिद्वांतों पर पूरा विश्वास है। कहता है हां, मैं विश्वास करता हूं कि यीशु मेरे लिये मरे। परंतु सच्चे परिवर्तन के अनुभव से बहुत कम लोग गुजर पाते हैं। क्योंकि स्वयं इवेंजलीकल्स ने कभी नये जन्म का अनुभव नहीं पाया होता है। इसलिये चर्च में आने वाला बहुमत उद्वार पाने से मीलों दूर होता है। लोग भ्रम में हैं कि उनको सामने जाने से उद्वार मिल चुका है। जमीन पर गिरने से या सामने जाने के तरीकों से उद्वार नहीं ठहराया गया है। यह तो अंर्तमन में घटने वाली घटना है। जब आप का मन प्रेरित पौलुस के समान यह पुकार उठे, ‘‘मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस (मृत्यु की देह से) कौन छुड़ाएगा?'' (रोमियों ७:२४) ऐसा आवेग चाहिये, सच्चे परिवर्तन के लिये। यीशु का सच्चा अनुयायी बनने के लिये। वह पापी मनुष्य ऐसे ही आवेग से भर गया था! केवल तभी, परमेश्वर पिता आप को यीशु के पास खींचते हैं!
नौसिखिये प्रचारक झटपट किसी को उद्वार का यह अनुभव दिलाने पर तुल जाते हैं। हमने पिछले साल के आत्मिक जागरण में देखा। आप में से कई यह कहते हुए आये कि ‘‘मैंने यीशु पर विश्वास किया कि वह मुझे मुक्ति देंगे।'' या ऐसा कहते हैं, ‘‘तब मैंने विश्वास किया कि यीशु ने मुझे बचा लिया।'' प्रभु यीशु मसीह को तो आप ने पूर्ण रूप से छोड़ दिया। उनको इसलिये छोड़ दिया क्योंकि आप को पाप का बोध हुआ ही नहीं। अपने हृदय में घने बसे अंधेरे को आप ने जानबूझकर देखना न चाहा। परमेश्वर के प्रति आप बागी बन बैठे। आप नहीं जानते कि आप स्वयं नहीं बदल सकते हैं। जॉन कैगन ने कहा था, ‘‘मुझे यीशु के पास आना था, परंतु मैं नहीं आ सका।'' ‘‘मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?'' हम आप को बता रहे हैं कि आप ने केवल बाइबल में लिखे सिद्वांत पर विश्वास किया है। उस सिद्वांत को जिया नहीं है। आप ने केवल यह विश्वास किया कि यीशु आप को बचा सकते हैं। आप थोड़े से उदास होते हैं! फिर आत्मिक नींद में डूब जाते हैं। इसलिये आप में से बहुमत तो सच्चा क्रिश्चियन है ही नहीं। आप को पुनः सच्चे परिवर्तन की प्रक्र्रिया में से होकर जाना होगा। जीवन की सबसे बड़ी सत्यता उद्वार प्राप्त करना है। आप यीशु में अपने विश्वास को एक वाक्य में पूरा नहीं कर सकते हैं। या आधे वाक्य में, जैसे यहां चर्च की एक लड़की ने किया, और उसके बाद वह आत्मिक नींद में चली गयी। अब उसको पापों का कोई बोध ही नहीं है। अगर आप को आंसुओं और टूटे के साथ अपने पापों का बोध नहीं होता है तो आप आगे वेदी पर क्यों आते हैं? क्या आप सोचते हैं कि हम कुछ कर सकते हैं? आप इस पूरे अनुभव को कुछ ही मिनटों में महसूस कर लेना चाहते हैं? भले ही आप वेदी के सामने १००० बार आ चुके हो, हम आप के लिये कुछ नहीं कर सकते हैं। हम आप को मन परिवर्तन के लिये कुछ नहीं सिखा सकते हैं। ऐसा कुछ तिलिस्मी नहीं है जो हम आप को कहे! एकमात्र परमेश्वर आप की मदद कर सकते हैं और परमेश्वर पाखंडी की मदद नहीं किया करते। आप को स्वयं उस अनुभव में ठहरे रहना होगा। क्या आप किसी यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री बिना गहन अध्ययन और निद्राविहीन हुए कमा सकते हैं? जीवन का सर्वोच्च अनुभव है, पापों के बोझ से मुक्ति पा लेना। पर पहले यह जानो कि आप भटके हुए हैं। जब तक आप स्वयं मे हताश व असहाय महसूस नहीं करेंगे। आप उद्वार प्राप्त नहीं कर सकते हैं। आप को अपने जीवन के बुरे कर्मो और के पापों से हो जाना चाहिये। जब तक आप ये नहीं पुकार उठे, हे प्रभु यीशु मुझ पापी पर दया करें। आइये, गीत संख्या १० को गाते हैं। ‘‘आओ, हे पापी जन'' जोसेफ हार्ट (१७१२ – १७६८)
अब मैं आप से विनती करता हूं कि आप यीशु पर विश्वास लायें। अगर आप पापों के बोध तले दब रहे हैं, भटके हुए हैं, हताश महसूस कर रहे हैं, आगे पुल्पिट पर आ जाइये, हम आप से यीशु के विषय में बातें करेंगे। यीशु स्वर्ग से धरती पर आये। वह क्रूस पर कीलों से ठोककर लटकाये गये। असहनीय पीड़ा का चरमोत्कर्ष उन्होंने सहा, ताकि पवित्रतम परमेश्वर के समक्ष न्याय प्रक्रिया को पूर्ण करें। आप के बदले उस दंड को भर दिया। यीशु अपने मरण के बाद जीवित हुए और स्वर्ग में विराजमान हैं। जब आप उन पद विश्वास रखते हैं, वह आप के पापों से आप को छुटकारा प्रदान करते हैं। आइये, मिलकर गीत गाते हैं, आओ, हे पापी जन यह गीत पुस्तिका में १० संख्या पर है।
आओ, हे पापी जन, दीन हीन और निकम्मे, कमजोर, घायल, लाचार, रोगी;
यीशु प्रेम, दया, सामर्थ से परिपूर्ण आप के लिये तैयार खड़े है :
वह समर्थ हैं, वह समर्थ हैं, वह आप को मुक्ति प्रदान करते हैं ;
वह समर्थ हैं, वह समर्थ हैं, वह आप को मुक्ति प्रदान करते हैं ;
हे बोझ से दबे लोगों, परंपराओं से दबे लोगों, टूटे चुके लोगों आओं;
अगर राह देखोगे कि दशा तुम्हारी सुधरेगी, तो राह न देखों:
धमिर्यो को नहीं, धमिर्यो को नहीं, पापियों को यीशु बुलाते हैं;
धमिर्यो को नहीं, धमिर्यो को नहीं, पापियों को यीशु बुलाते हैं।
मसीहा को देखिये, जो परम पिता से आप के लिये विनती करते हैं
अपने आप को यीशु के भरोसे छोड़ दीजिये, आप का विश्वास ही पर्याप्त है;
यीशु आप पापी की मदद कर सकते हैं, यीशु आप पापी की मदद कर सकते हैं
यीशु आप पापी की मदद कर सकते हैं, यीशु आप पापी की मदद कर सकते हैं ।
(‘‘आओ, हे पापी जन'' जोसेफ हार्ट १७१२ – १७६८; इसे थोड़ा बदला गया है)
अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।
(संदेश का अंत)
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पांडुलिपि संदेशों का कॉपीराईट नहीं है। आप उन्हें बिना डॉ.
हिमर्स की अनुमति के भी उपयोग में ला सकते हैं। यद्यपि डॉ.
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संदेश के पूर्व बैंजामिन किंकैड ग्रिफिथ ने एकल गान गाया गया:
(‘‘आओ, हे पापी जन'' जोसेफ हार्ट १७१२ – १७६८)
रूपरेखा अच्छे आदमी ने उद्वार को खो दिया और बुरे ने पा लिया! A GOOD MAN LOST AND A BAD MAN SAVED! डॉ आर एल हिमर्स ‘‘और उस ने कितनो से जो अपने ऊपर भरोसा रखते थे, कि हम धर्मी हैं, और औरों को तुच्छ जानते थे, यह दृष्टान्त कहा। कि दो मनुष्य मन्दिर में प्रार्थना करने के लिये गए; एक फरीसी था और दूसरा चुंगी लेने वाला। फरीसी खड़ा होकर अपने मन में यों प्रार्थना करने लगा, कि हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि मैं और मनुष्यों की नाईं अन्धेर करने वाला, अन्यायी और व्यभिचारी नहीं, और न इस चुंगी लेने वाले के समान हूं। मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूं; मैं अपनी सब कमाई का दसवां अंश भी देता हूं। परन्तु चुंगी लेने वाले ने दूर खड़े होकर, स्वर्ग की ओर आंखें उठाना भी न चाहा, वरन अपनी छाती पीट पीटकर कहा; हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर। मैं तुम से कहता हूं, कि वह दूसरा नहीं; परन्तु यही मनुष्य धर्मी ठहराया जाकर अपने घर गया; क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा '' (लूका १८:९–१४) १॰ पहले स्थान पर, ‘‘अच्छा आदमी'' जिसने उद्वार खो दिया, लूका १८:११–१२; २॰ दूसरा, बुरा मनुष्य जो बचाया गया, लूका १८:१३; भजन ५१:३; रोमियों ७:२४ |