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अक्षम्य अपराधTHE UNPARDONABLE SIN – by Dr. R. L. Hymers, Jr. शनिवार संध्या, २५ फरवरी, २०१७ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट |
‘‘इसलिये मैं तुम से कहता हूं, कि मनुष्य का सब प्रकार का पाप और निन्दा क्षमा की जाएगी पर आत्मा की निन्दा क्षमा न की जाएगी। जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहेगा, उसका यह अपराध क्षमा किया जाएगा, परन्तु जो कोई पवित्र आत्मा के विरोध में कुछ कहेगा, उसका अपराध न तो इस लोक में और न पर लोक में क्षमा किया जाएगा'' मत्ती १२:३१, ३२)
१॰ पहली बात, अक्षम्य अपराध क्या है ?
दि रिफार्मेशन स्टडी बाइबल (लिगोनियर मिनिस्ट्रीज, २००५) कहती है,
अक्षम्य अपराध .......‘पवित्र आत्मा की निंदा' करना है। निंदा का कार्य बोलने के द्वारा, हृदय में समझे जाने के द्वारा और के विचारों द्वारा होता है। इसको ऐसे समझा जा सकता है कि यीशु जब आश्चर्यकर्म कर रहे थे तब उनके विरोधियों ने यह आरोप लगाया कि उनके भीतर कोई दुष्ट आत्मा है जिसके कारण वे यह कार्य कर रहे हैं। यीशु पवित्र आत्मा की निंदा करने और दूसरे पापों के मध्य, चाहे वे वाणी के द्वारा किये गये पाप हो या सामान्य प्रकार के पाप हो, सबके बीच अंतर स्पष्ट करते हैं। जैसा बाइबल बताती है कि परमेश्वर ने कौटुंबिक व्यभिचार, हत्या, झूठ बोलना, और यहां तक कि पौलुस अर्थात ‘शाऊल जो अब तक प्रभु के चेलों को धमकाने और घात करने की धुन में था' उसके द्वारा चर्च के लोगों की प्रताड़ना का पाप भी क्षमा कर दिया (प्रेरितों के कार्य ९:१) ।
यह अक्षम्य अपराध दूसरे पापों से अलग है क्योंकि इसका संबंध पवित्र आत्मा से होने के कारण यह भिन्न है? पवित्र आत्मा का कार्य होता है कि वह पापियों की आत्मा को जगाये (इफिसियों१:१७–१८) उन पर सुसमाचार प्रकट करे और सिखाये (यूहन्ना १४:२६) लोगों को प्रायश्चित करने और (मसीह) पर विश्वास करने के लिये तैयार करे। आत्मा न केवल परमेश्वर के वचन को समझाता है परंतु वह लोगों के मन को भी खोलता है कि वे वचन को स्वीकार करें.......जब आत्मा के प्रभाव को जानबूझ कर या जानते हुए भी इंकार किया जाता है तब इच्छा से दुर्भावनावश यह पाप घटित होता है जो अक्षम्य पाप कहलाता है। फलस्परूप परमेश्वर मन को कड़ा कर देते हैं कि उसमें से प्रायश्चित और विश्वास की संभावना भी घट जाती है (इब्रानियों ३:१२,१३)। परमेश्वर मानवीय इच्छा के निर्णय को इस मामले में स्थायी मानते हैं। परमेश्वर इसे हल्के स्तर पर नहीं करते या बिना कारण ऐसा नहीं करते हैं। परंतु उनके प्रेम की अवज्ञा करने वाले को प्रतिक्रिया देते हुए ऐसा करते हैं।
दूसरे पद जो अक्षम्य पाप को बताते हैं, वे इस प्रकार हैं, इब्रानियों ६:४–६; १०:२६–२९; १यूहन्ना ५:१६, १७। इनमें इस पाप की संभावना बताई गयी है........यीशु कहते हैं कि, ‘सब प्रकार के पाप' ‘सब प्रकार की निंदा' क्षमा की जायेगी, केवल एक प्रकार के पाप को छोड़कर'' – वही जो अक्षम्य पाप है!
डॉ हैनरी सी थिसैन ने अपनी पुस्तक इंट्रोडक्टरी लेक्चर्स इन सिस्सटमेटिक थियोलोजी (इयर्डेंमंस,१९४९) में कहा था,
‘‘हठकारिता का पाप (मन कड़ा करने का पाप) । जिस स्तर तक आत्मा कठोर हो जाती है और परमेश्वर के अनुग्रह प्राप्त करने के अनगिनत मौके दिये जाने पर भी यीशु को ग्रहण नहीं करती है, यह (हठकारिता) का पाप कहलाता है। अंततः यह पाप पवित्र आत्मा के विरूद्व किये जाने वाला अक्षम्य पाप है क्योंकि आत्मा धीरे धीरे स्वर्गिक प्रभाव को ग्रहण करना बंद कर देती है'' (पेज, २७०)
२॰ दूसरा, अक्षम्य पाप के उदाहरण।
१॰ कैन, उत्पत्ति ४:३–७, ११–१२, १६
२॰ नूह के समय के लोग, उत्पत्ति ७: १६ – ‘‘तब यहोवा ने उसका द्वार बन्द कर दिया।''
(मत्ती २४:३७–३८; २ पतरस २:५)
३॰ सदोम के लोग उत्पत्ति १९:१२–१५,२४,२६
४॰ फिरौन, निर्गमन ७:१४; ७:२२; ८:१५; ८:१९; ८:३२; ९:३५; १०:१७–२०; ११:१०
५॰ एसाव, इब्रानियों १२:१६–१७
६॰ कादेश बार्निया में इजरायल, इब्रानियों ३:७,८, १०–१२
७॰ लोग, जिन्हों ने एक बार ज्योति पाई है, इब्रानियों ६:४–६
८॰ धनवान युवा शासक, मत्ती १९:२२; रोमियों १:२८–३२
९॰ यहूदा, मत्ती २७:३–५
ऐसा कोई उड़ाउ पुत्र या पुत्री हमारे चर्च में नहीं रही जो एक बार चले जाने के बाद वापस आये हों और मन नहीं फिराया हो। इसके से भी बढ़कर, अगर कोई चर्च छोड़कर गया हो और फिर कहीं जाकर उसका मन परिवर्तित हुआ हो। हम किसी के लिये निश्चित नहीं कह सकते, परंतु ऐसा लगता है कि उन्होंने अक्षम्य पाप किया है, इब्रानियों ६:४, ६।
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(संदेश का अंत)
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