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दो आदम−ऐसा संदेश जो वर्तमान में हमारे निर्जीव होते चर्चेस THE TWO ADAMS – डॉ आर एल हिमर्स रविवार की संध्या, ४ दिसंबर, २०१६ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल ‘‘तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, कि तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा'' (उत्पत्ति २:१६−१७) |
परमेश्वर ने पहले मनुष्य को मिट~टी से बनाया था। जब मैं युवा था तो इस बात पर विश्वास नहीं करता था। सिंतबर के चौथे सप्ताह, १९६१ तक मैं विकासवाद के सिद्वांत पर विश्वास करता था। २८ सितंबर को मुझमें ऐसा बदलाव आया, जीवन बदल देने वाला परिवर्तन। उस एक सप्ताह में सब कुछ बदल गया। जो सबसे बड़ा परिवर्तन मुझमें आया कि बाइबल पर मेरा विश्वास अटूट हो गया। उस क्षण से मैंने जाना कि विकासवाद धोखा है, कोरी विज्ञान की कल्पना, मार्मन की पुस्तक और कुरान जितनी ही असत्य। मेरे परिवर्तन में अब डार्विनवाद से विश्वास हटकर बाइबल में मौखिक प्रेरणा से जो शब्द इब्री और यूनानी भाषा में रचे गये, उन पर पूरा विश्वास कायम हो गया। अब मैं अपनी आत्मा में जानता हूं कि ‘‘हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और लाभदायक है'' (२ तीमुथियुस ३:१६) । चूंकि धर्मशास्त्र का हर शब्द परमेश्वर की श्वांस से निकला (थियोपनूस्टोस) है इसलिये इसमें संभवतःत्रुटि नहीं पायी जाती - इसका प्रत्येक शब्द - उत्पत्ति से लेकर प्रकाशितवाक्य- उन व्यक्तियों को सौंपा गया जिन्होनें पवित्र बाइबल लिखी! बाइबल कहती है, ‘‘और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया और आदम जीवता प्राणी बन गया'' (उत्पत्ति २:७)। मैं जानता था कि मनुष्य को परमेश्वर ने रचा है, न कि वह किसी निम्न जीवन रूपों से पैदा हुआ है। मैं जान गया था कि उत्पत्ति में मनुष्य के उत्पन्न होने का जो वर्णन दिया है, वह शब्दशः सत्य है एवं विकासवाद शैतान की ओर से बोला गया झूठ है।
तब परमेश्वर ने मनुष्य को सुंदर बगीचे में रखा, वह बगीचा जो सब प्रकार के स्वादिष्ट व पौष्टिक फलों से भरा हुआ था। उनमें से कई पोषक पेड़ व फल अब नहीं मिलते क्योंकि वे उस महाप्रलय में नष्ट हो गये थे।
बगीचे के बीचो बीच दो महत्वपूर्ण पेड़ थे− जीवन का पेड़ और भले बुरे के ज्ञान का पेड़। परमेश्वर ने आदम को केवल एक आज्ञा मानने के लिये दी थी, ‘‘पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है उसका फल तू कभी न खाना क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा'' (उत्पत्ति २:१७)। उत्पत्ति २:१७ में ‘‘ज्ञान'' शब्द मूल शब्द ‘‘यदा'' से निकला है। इसका अर्थ है ‘‘सुपरिचित मित्र से जान पहचान हो जाना'' (स्ट्रॉंग)। अगर वे प्रतिबंधित फल खायेंगें तो वे उसके आदी हो जायेंगे। उदाहरण के लिये, विवाह के अतिरिक्त बनाये गये सैक्सुएल संबंध हमेशा दिमाग में रहते हैं क्योंकि अब व्यक्ति उनसे परिचित हो चुका है। कुछ नशीली दवायें एक या दो बार लेने पर व्यक्ति उसका आदी हो जाता है। उसकी मासूमियत सदा के लिये खो जाती है। एक बार भले बुरे के ज्ञान के पेड़ से खा लेने पर उसकी मासूमियत सदा के लिये नष्ट हो जायेगी। पहले उसे आत्मिक मृत्यु आयेगी और उसके बाद में उसकी शारीरिक मृत्यु होगी।
शैतान इसे बहुत अच्छे तरीके से जानता था। इसलिये उसने मनुष्य की प्रतिबंधित फल खाने का प्रलोभन देकर परीक्षा ली। वह जानता था कि मनुष्य अपनी मासूमियत खो देगा और सदा के लिये पापी हो जायेगा। इस परीक्षा में पड़ना उसका विवेक भ्रष्ट कर के रख देगा। वह सदा के लिये पापी हो जायेगा। जिस क्षण प्रतिबंधित फल खायेगा, उसका विवेक मर जायेगा। वह परमेश्वर से छिपेगा। उसकी आत्मा ‘‘पाप में निष्प्राण होगी'' (इफिसियों २:१)। वह ‘‘पाप में मरा हुआ'' कहलायेगा (इफिसियों २:१)। वह शरीर पर मन लगायेगा और परमेश्वर से बैर रखेगा (रोमियों ८:७)। न केवल उसकी आत्मिक मृत्यु होगी परंतु समय के साथ उसका शरीर भी बूढ़ा होगा और उसे शारीरिक मृत्यु भी आयेगी। चूंकि आत्मिक मृत्यु हो चुकी होगी इसलिये ‘‘परमेश्वर की आत्मा की बातें भी वह ग्रहण नहीं'' कर सकेगा....... क्योंकि परमेश्वर के सत्य ‘‘उसके लिये मूर्खता के समान होंगे'' (१ कुरूंथियों २:१४)।
परंतु इससे भी बढ़कर, जो बुरी बात होगी कि उसका भ्रष्ट स्वभाव और आत्मिक मृत्यु उसकी पीढ़ियां भी ग्रहण करेगीं, हरेक जन जो धरती पर है ‘‘एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से (बहुत) लोग पापी ठहरे'' (रोमियों ५:१९, केजेवी, इएसवी) ‘‘इसलिये....... जैसा एक अपराध (आदम) सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ'' (रोमियों ५:१८) । ‘‘आदम के मूल पाप का अर्थ है कि प्रत्येक जन्म लिये, मानव का मन, पाप की तरफ ही झुका हुआ होता है.......उसके भीतर पाप के प्रति झुकाव, सारे बुरे कर्म करने की जड़ है और यह स्वभाव आदम से उसके अंदर आया है (ग्रहण किया है).......हम पाप करते हैं इसलिये पापी नहीं हैं, परंतु पापी ही उत्पन्न हुए हैं, पाप के स्वभाव के वश में हैं, इस कारण पाप करते हैं (दि रिफार्मेशन स्टडी बाइबल, ७८१ पेज पर व्याख्या) । मनुष्य.......जो पाप में मरा हुआ है.....उसकी स्वयं की कोई ताकत नहीं है कि अपनी आत्मा का परिवर्तन कर ले'' (वेस्टमिंस्टर कंफेशंस, ९, ३)
आदम का पाप उसकी समस्त संतानों में (संपूर्ण मानव जाति में) उतर आया है। यह इस सत्य से सिद्व होता है कि आदम के पहले पुत्र कैन ने अपने ही भाई हाबिल को मार डाला (उत्पत्ति ४:८)। इस तरह आप आदम की संतान हैं। स्वभाव से पापी हैं। आप जो भी करें या कहें, आप स्वयं को पापी स्वभाव से मुक्त नहीं करवा सकते। भले कर्म करना, आप को पाप से मुक्ति नहीं दिलवा सकते। चर्च आना, आप को पाप से मुक्ति नहीं दिला सकता। कितनी भी अच्छी प्रार्थना करें, पापों से मुक्ति नहीं मिलेगी। कितने ही सत्कर्म कर लें, छुटकारा नहीं मिलेगा। कुछ नहीं - मैं दोहराता हूं - आप कुछ भी नहीं कह और कर सकते, कि आप को पाप से मुक्ति मिल जाये। आप के प्रयास निरर्थक है।
आप भ्रष्ट मानव हैं। कुछ प्रचारक जिन्हें मैं पहचानता हूं, जो रोज बाइबल पढ़ते हैं, हद दर्जे के पापी इंसान हैं। कुछ अनाज्ञाकारी पापी इंसान, जो क्रिश्चियन माता पिता से ही उत्पन्न हुए, विद्रोही होते चले गये, विद्रोह किया माता पिता से, विद्रोह किया परमेश्वर से, जो कुछ अच्छी शिक्षा चर्च में पाई, उससे ही विद्रोह कर बैठे। चाहते तो बाइबल अच्छी रीति से जान सकते थे, पंरतु इसके उससे विद्रोह कर बैठे। जो बाइबल से शिक्षा प्रदान करे, ऐसे पास्टर के विरूद्व हो गये। विद्रोह का कारण है कि वे अपने मन में सत्य से घृणा करते हैं। मैं ‘‘चर्च के इन कुछ बच्चों'' को जानता हूं जो शैतान के जितने ही दुष्ट हैं। चर्च में बढ़ी हुई लड़कियां, लड़को को उत्तेजित करती हैं कि वे उनके साथ सैक्स संबंध कायम करें। और अगले ही रविवार वे इस तरह चर्च में गीत गाती हैं कि मानो स्वर्गदूत हों, परंतु सच्चाई यह हैं कि वे दुष्ट पापी हैं। मैंने ‘‘चर्च के लड़कों'' को देखा है वे लडकियों के साथ सैक्स संबंध बनाते हैं, अपने सैक्स संबंधों का वर्णन दूसरे छोटे लड़कों के सामने करते हैं और उनके दिमागों में कामुकता का जहर भरते हैं।
आप कहते हैं ‘‘कि मैंने इसे कभी नहीं किया!'' परंतु आप ने इसके बारे में सोचा तो है। आप ने अपने दिमाग में फालतू बातें भर रखी है, क्या नहीं भर रखी हैं? यीशु ने भी इसे पाप की श्रेणी में रखा है!
आप कहते हैं कि आप परमेश्वर से प्रेम रखते हैं परंतु क्या आप परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं? क्या आप अपने संपूर्ण मन से परमेश्वर से प्रेम रखते हैं? क्या आप को प्रतिदिन बाइबल पढ़ना पसंद है? क्या आप परमेश्वर के साथ हर दिन अकेले में प्रार्थना में समय बिताना चाहते हैं? या आप विडियो गेम खेलते हुए या टी वी पर तरह तरह के खेल देखते हुए खाली समय बिताना चाहते हैं − पर नहीं चाहते कि इसके बदले कि आप वह समय बाइबल पढ़ने में व्यतीत करें। मैं कहता हूं कि यह इसे प्रदर्शित करता है कि आप परमेश्वर से प्रेम नहीं करते हैं - सचमुच नहीं करते - आप परमेश्वर से प्रेम करने की सिर्फ बात करते हैं। आप परमेश्वर को तुच्छ जानते हैं। आप तो केवल स्वयं से प्रेम करते हैं। सोचिये! क्या यह सही नहीं है? क्या आप पापी नहीं हैं जो परमेश्वर की उपेक्षा करते हैं? क्या आप पास्टर से नहीं डरते हैं? क्यों आप मुझसे डरते हैं? क्या इसलिये नहीं कि मैं आप को परमेश्वर और पाप के विषय में चेतावनी देता हूं? क्या इसीलिये आप मुझसे भय नहीं खाते?
क्या आप को जॉन कैगन का संदेश कैसे डेट करे सचमुच अच्छा नहीं लगता? आप सीधे बैठ जाते हैं और तीव्रता से इसे सुनते हैं। परंतु मैं जब आप को पाप, उद्वार और मसीह के बारे में संदेश देता हूं आप उस तन्मयता से नहीं सुनते! किसी के साथ डेटिंग पर जाने का ख्याल आप को अधिक लुभाता है बजाय मुझे मसीह के उपर प्रचार करते सुनने के - मसीह जिसने आप को पाप से बचाने के लिये क्रूस पर बलिदान दिया। अगर ऐसा है, और आप को लगता है कि मैं सच बोल रहा हूं तो आप एक विद्रोही पापी हैं जिसके मन में मसीह के लिये कोई प्रेम नहीं। इसे मानिये। आप को इसे मानना होगा और महसूस करना होगा कि आप एक भटके हुए पापी हैं। आप को स्वीकारना होगा नहीं तो आप के लिये कोई आशा शेष नहीं होगी। बिल्कुल भी कोई आशा नहीं रहेगी!
‘‘जो अपने अपराध छिपा रखता है, उसका कार्य सुफल नहीं होता, परन्तु जो उन को मान लेता और छोड़ भी देता है, उस पर दया की जायेगी'' (नीतिवचन २८:१३)
अपने मन की पापमय अवस्था को स्वीकार कीजिये अन्यथा अनंत काल आप को नर्क की आग में जलना होगा! यह सच्चाई है। मैं एक बड़े जन के रूप में आप को कह रहा हूं। यह कोई संडे स्कूल का मधुर लगने वाला पाठ नहीं है। यह जोएल ओस्टीन की छोटी मीठी बातें नहीं हैं। यह जॉन मैक आर्थर की एक एक पद की व्याख्या नहीं चल रही है। यह तो पुराने समय का प्रचलित संदेश चल रहा है आप को जगाने के लिये। यह किसी प्राचीन स्कूल का सुसमाचारीय संदेश चल रहा है। यह वह संदेश है जिसे परमेश्वर आप को इस सत्य को मानने के लिये प्रयुक्त कर सकता है कि आप का चित्त पापी है और आप पाप में मरे हुए हैं। मैं आप से इस तरह बात कर रहा हूं जैसे हर प्रचारक को करना चाहिये। मुझे आप का पैसा नहीं चाहिये। आप का पैसा कोई अर्थ नहीं रखता। मुझे आप की आत्मा चाहिये। मैं आप को यीशु द्वारा मुक्ति पाया हुआ देखना चाहता हूं। मैं देखना चाहता हूं कि परमेश्वर ने आप के मन को बदल दिया, उसे मसीह के लहू से धोकर साफ कर दिया है। अभी जिस प्रकार के पाखंडी व्यक्ति आप हैं, उसके बदले मैं आप को एक प्रसन्न चित्त मसीही जन के रूप मे देखना चाहता हूं! पाखंडी वह है, जो उपर से तो क्रिश्चियन दिखता है परंतु उसका अंर्तमन ‘‘चूना फिरी हुई कब्रों के समान है जो ऊपर से तो सुन्दर दिखाई देती हैं....... परन्तु भीतर मुर्दों की हड्डयों और सब प्रकार की मलिनता से भरी है'' (मत्ती २३:२७,२८) तुम जैसे हो स्वयं को वैसा ही पसंद करते हो। पाप तुम्हारे भीतर भरा है और उपर से भले क्रिश्चियन दिखने की चेष्टा करते हो − परंतु अपने हृदय को देखो! मानस, तुम्हारा पाप से भरा, कामुकता और अविश्वास से भरा हुआ है। तुम्हारा चित्त विद्रोही है, जैसे कैन का था।
उत्पत्ति ५:१‚३ सिद्व करता है कि आदम के पाप ने संपूर्ण मनुष्य जाति को नष्ट करके रख दिया । इसलिये आज तुम्हारा मानस पाप में निर्जीव पाया जाता है। उत्पत्ति ५:१ में हम देखते हैं कि ‘‘परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की तब अपने ही स्वरूप में उसको बनाया'' (उत्पत्ति ५:१) । परंतु आदम ने पाप किया और अपनी निर्दोषता से दूर हो गया। उसके बाद हम पढ़ते हैं कि आदम से ‘‘उसकी समानता में उस ही के स्वरूप के अनुसार एक पुत्र उत्पन्न हुआ'' (उत्पत्ति ५:३) । जब आदम निष्कलंक था, तो हम पढ़ते हैं कि वह परमेश्वर की समानता में बनाया गया था - वह परमेश्वर जैसे ही निष्पाप था! परंतु जब उसने पाप किया उसने ‘‘अपने समान ही पुत्र को'' जन्म दिया - जो पाप का दोषी था, जिसका स्वभाव ही पाप करने का था! (उत्पत्ति ५:३) ।
और इसी पापमय समानता के साथ हम उत्पन्न हुए हैं - हम स्वभाव से ही पापी हैं, जैसे आदम विद्रोह करके पापी कहलाया। हम स्वभाव से ही पापी हैं। आप के माता पिता स्वभाव से पापी हैं। आप के स्कूल या आप के कार्य स्थल पर पाया जाने वाला हरेक जन स्वभाव से पापी ही है। असंशोधनीय पापी, जो स्वयं अपने दुष्ट मानस को बदलने के लिये असहाय हैं। ‘‘क्या?'' आप कहते हैं कि ‘‘मेरी माता का मानस पापमयी है?'' हां! उसका मानस उतना ही पापी और विद्रोही है जितना कि तुम्हारा या आदम का या और किसी वंशज का। संपूर्ण मानव जाति भ्रष्ट हुई और मृत्यु सभी को आई। आदम के पाप के कारण मृत्यु सबको आना तय है। मार्क को चेतावनी दी गयी थी। मार्क को आज्ञाहीन होने का कोई कारण ही नहीं था। मार्क जानता था कि वह मरेगा और जो भी पैदा होगा, मार्क के कर्म हर उस एक जन को भ्रष्ट करेंगे। मार्क अर्थात आदम ऐसा शुद्व जन था − जो बाद में अपने पाप के कारण निर्दयी जन में परिवर्तित हो गया! हर विचारशील व्यक्ति हिटलर को नापसंद करता है क्योंकि उसने छः मिलियन यहूदियों को मार डाला था। परंतु आदम की तुलना में हिटलर कम दोषी सिद्व होता। क्योंकि हिटलर ने तो छः मिलियन को मारा था लेकिन आदम ने तो संपूर्ण मानव जाति को मार डाला! बेहिसाब लोगों को मार डाला! आदम ने आप के हृदय को भ्रष्ट कर दिया। आदम ने आप को चर्च जाने वाला पाखंडी इंसान बना दिया - ऐसा पाखंडी जो अपने को स्वयं से नहीं बदल सकता - ऐसा पाखंडी जो नर्क की तरफ आगे बढ़ रहा है, जो वहीं जाने योग्य है क्योंकि उसे अपने मूल पिता से स्वभाव में पाप ही मिला है, और क्योंकि वह एकमात्र बचाने वाले उस अंतिम आदम अर्थात यीशु मसीह को मानने से इंकार करता है। संसार में पहले आदम ने आप को विद्रोह करने वाला पापी हृदय सौंपा। अंतिम आदम अर्थात यीशु मसीह इस संसार में एकमात्र परमेश्वर हैं जो आप को नया हृदय देंगे। केवल मसीह आप के पत्थर के हृदय को निकालकर आप को ‘‘मांस का हृदय देते हैं'' (यिजकेल ३६:२६) । इसी को पुर्नजीवन कहते हैं। क्रिश्चियंस में हृदय परिवर्तन इसे ही कहते हैं। अब हम कठिन भाग पर आते हैं। जो अपने को नहीं बदल सकते उसे कैसे पाप से मुक्ति मिल सकती हैं?
आप को पुर्नजीवन मिलना आवश्यक है। पुर्नजीवन एक अति आवश्यक सिद्वांत है। मैं प्रचारकों को इस विषय पर प्रचार करते हुए नहीं देखता। कोई शक नहीं हमारे चर्च आज निष्प्राण होते जा रहे हैं! ‘‘पुर्नजीवन'' परमेश्वर का कार्य है जिसमें वह आदम के द्वारा बनाये गये निष्प्राण हृदय को पुनः जीवित करते हैं। मसीह ने ‘‘पुर्नजीवन'' के कार्य को नया जन्म पाने का नाम दिया‚ यह एक आत्मिक परिवर्तन है जिसमें पवित्र आत्मा नये हृदय का निर्माण करता है‚ एक व्यक्ति आदम के पुत्र से‚ परमेश्वर के पुत्र के रूप में परिवर्तित हो जाता है। पुर्नजीवन एकमात्र परमेश्वर का कार्य है जिसमें वह आदम के द्वारा निष्प्राण बनाये गये हृदय को पुनः जीवित करते हैं। नया जन्म पाना आवश्यक है क्योंकि आप का हृदय मरा हुआ है इसके पहले कि आप के भीतर पुर्नजीवन का संचार हो।
अभी तक जो सर्वश्रेष्ठ गवाही मैंने सुनी‚ वह युवा जॉन कैगन की गवाही है। यह इतनी सही है कि एक व्यक्ति जिसने इसे पढ़ा‚ कहा कि यह किसी पंद्रह साल के लड़के की गवाही नहीं हो सकती। उस व्यक्ति ने मुझे दोष दिया कि शायद मैंने उसे सुधारा होगा या जोड़ा होगा। परंतु जॉन यहां प्लेटफार्म पर अभी उपस्थित है। वह आप को भरोसा दिला सकता है कि मैंने उसकी गवाही में न तो कुछ संशोधन किया है − न उसके पिता जॉन कैगन ने कुछ जोड़ा है। हमारे साथ ऐसे भी लोग थे जो मात्र इस गवाही को सुनने और पढ़ने से यीशु द्वारा बचाये गये।
प्रथम आदम में मनुष्य के हृदय की मृत्यु अब पलट गयी है क्योंकि अंतिम आदम‚ मसीह ने आकर हृदय को पुर्नजीवित कर दिया है। मसीह प्रेरित पौलुस ने इसे बहुत स्पष्ट लिखा है‚
‘‘इसलिये जैसा एक अपराध (आदम) सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ‚ वैसा ही एक (मसीह)........धर्म का काम भी सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ। क्योंकि जैसा एक मनुष्य (आदम) के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे‚ (वैसे) ही एक मनुष्य (मसीह) के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे'' (रोमियों ५:१८‚१९)
पुनः प्रेरित पौलुस‚ आदम और मसीह का विरोधाभास प्रगट करता है‚
‘‘प्रथम मनुष्य‚ अर्थात आदम‚ जीवित प्राणी बना और अन्तिम आदम (मसीह) (जीवनदायक आत्मा) बना'' (१कुरूंथियों १५:४५)
केवल मसीह (अन्तिम आदम) पापी के निष्प्राण हृदय में जीवन का श्वांस फूंक सकता है। मसीह पाप की गुलामी से मुक्त करवाकर‚ नये हृदय में बदल देता है। यह नया हृदय परमेश्वर से प्रेम रखता है। यह कार्य तब आरंभ होता है‚ जब परमेश्वर का आत्मा आप के हृदय में पाप का बोध उत्पन्न करता है (यूहन्ना १६:८) । तब परमेश्वर का आत्मा मसीह को आप के सामने प्रगट करता है (यूहन्ना १६:१४‚१५) । अंततः परमेश्वर आप को मसीह के पास खींचते हैं (यूहन्ना ६:४४) ।
पुर्नजीवन के ये तीनों चरण जॉन कैगन की गवाही में बताये गये हैं। पहले चरण में जॉन अपने बुरे हृदय के बारे में कहता है जो उसे आदम से मिला है। दूसरे पैरा में वह कहता है कि कितनी प्रबलता से परमेश्वर ने उसे पापों का बोध करवाया कि वह बहुत व्यथित हुआ। उसने कहा‚ ‘‘परमेश्वर ने मुझे इस तरह महसूस करवाया कि मैं अपने आप से घृणा करने लगा‚ मेरे पापों से मुझे घृणा होने लगी।'' तीसरे चरण में उसने कहा कि कैसे उसका पाप मय हृदय मेरे प्रचार से घृणा करता था और मसीह का इंकार करता था। यह एक बहुत बड़ा संघर्ष उसके पापमय हृदय व परमेश्वर में चल रहा था। वह स्वयं से मसीह के पास आने में सक्षम नहीं था। चौथे पैरा में जॉन बताता है उसने विचार किया कि कैसे मसीह ने क्रूस पर उसे पाप से बचाने के लिये दुख सहा। इस ख्याल ने उसके हठी मन को तोड़ कर रख दिया और अंत में मसीह में उसे शांति मिली। अंततः अपने परिवर्तन के समय जॉन ने कहा कि मसीह ने अपना सब कुछ मेरे लिये दिया इसलिये मैं अपना जो कुछ भी है वह मसीह के लिये देता हूं....क्योंकि उसने मुझे बदला है। आप शर्त जीत गये। वह एक उधमी किशोर था! परंतु अब वह परमेश्वर का जन बन गया!
अगले माह से जॉन कैगन एक बैपटिस्ट पास्टर बनने के लिये थियोलोजिकल सेमनरी में जायेगा।
आप जो भी हो − आप एक पापी हैं‚ आप का हृदय आत्मिक रूप से मृत है क्योंकि आदम के पाप के कारण आप ने मृत हृदय पाया है। अगर आप की यह दशा है तो यीशु मसीह आप की एकमात्र आशा है− क्योंकि जैसे चार्ल्स वैस्ली कहता है ‘‘वह ही पाप के बंधन तोड़ने‚ कैदी को मुक्त करने में सक्षम'' है। मसीह के लहू में सामर्थ है‚ जो आप के पापों को धो सकता है। उस पर विश्वास कीजिये। वह आप को पापों से मुक्ति देगा।
अगर आप यीशु द्वारा उद्वार पाने के लिये‚ पापों से मुक्ति पानें के लिये बात करना चाहते हैं तो मुझसे‚ डॉ कैगन और जॉन कैगन से संपर्क कर सकते हैं। आप आगे आ सकते है तब तक मि ग्रिफ्रिथ ‘‘इन जीजस'' गीत के तीनों अंतरा‚ दो बार गायेंगे।
मैंने हजारों रास्ते तलाशे‚ पर सब व्यर्थ रहा
मेरे भय को दबाना चाहा‚ आशा को उभारना चाहा
पर मुझे जो चाहिये था‚ जैसा बाइबल कहती है
वह केवल यीशु ही है।
मेरी आत्मा में अंधकार है‚ मेरा मन पत्थर का है−
न मैं देख सकता हूं‚ न मैं कुछ महसूस कर सकता हूं;
प्रकाश के लिये‚ जीवन के लिये‚ मुझे विनती करना है
यीशु पर सरल भरोसा रखते हुए।
यद्यपि कुछ लोग हंसेगें‚ और कुछ दोष देंगे‚
मैं अपने सारे दोष और शर्म के साथ जाउंगा;
मैं उसके पास जाउंगा क्योंकि उसका नाम‚
सब नामों से उंचा नाम यीशु है।
(‘‘इन जीजस'' जेम्स प्रोक्टर‚१९१३)
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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व नोहा सोंग द्वारा धर्मशास्त्र पढ़ा गया: रोमियों ५:१७−१९
संदेश के पूर्व बैंजामिन किंकैड ग्रिफिथ ने एकल गान गाया गया:
‘‘इन जीजस'' (जेम्स प्रोक्टर‚१९१३)