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अमेरिका और पश्चिम के चर्चेस में क्यों आत्मिक जागरण नहीं होता उसके दो कारणTHE TWO REASONS WHY THE CHURCHES IN AMERICA डॉ आर एल हिमर्स रविवार की संध्या, २५ सितंबर, २०१६ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल |
आज संध्या मैं बोलने जा रहा हूं कि कौन से वे दो मुख्य कारण हैं जिनकी वजह से पश्चिम और अमेरिका के देशों में आत्मिक जागरण नहीं हो रहा है। ''आत्मिक जागरण'' से मेरा तात्पर्य ऐसे पांरपरिक आत्मिक जागरण से है जिनके बारे में हम पढ़ते हैं जो १८ शताब्दी और १९ शताब्दी के मध्य में हुआ करते थे। मैं २० शताब्दी और २१ शताब्दी जिसमें हम रहते हैं के पहले भाग में होने वाले नये इवेंजलीकल्स और पेंटीकोस्टल द्वारा चलाये जाने वाले आत्मिक जागरण के बारे में नही बोल रहा हूं।
कृपया अपनी बाइबल में से २ तीमुथियुस ३:१ निकाल लीजिये। यह (स्कोफील्ड स्टडी बाइबल के पेज नं. १२८०) पर मिलता है। मैं चाहता हूं कि आप मेरे साथ इस अध्याय के प्रथम ७ पद पढ़े।
''पर यह जान रख, कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता पिता की आज्ञा टालने वाले, कृतघ्न, अपवित्र। दयारिहत, क्षमारिहत, दोष लगाने वाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी। विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्वर के नहीं वरन सुखविलास ही के चाहने वाले होंगे। वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे ऐसों से परे रहना। इन्हीं में से वे लोग हैं, जो घरों में दबे पांव घुस आते हैं और छिछौरी स्त्रियों को वश में कर लेते हैं, जो पापों से दबी और हर प्रकार की अभिलाषाओं के वश में हैं। और सदा सीखती तो रहती हैं पर सत्य की पहिचान तक कभी नहीं पहुंचतीं।'' (२ तीमुथियुस ३:१)
अब पद १३ पढ़िये
''और दुष्ट, और बहकाने वाले धोखा देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएंगे।'' (२ तीमुथियुस ३:१३)
ये पद ''अंतिम दिनों'' में चर्चेस के अंदर एक बड़ा स्वधर्म त्याग दिखाई देगा, इसके बारे में बताते हैं (३:१) पद २ से ४ हमारे दिनों के तथा कथित मसीहियों की स्वधर्म त्याग अवस्था का वर्णन करते हैं। पद ५ यह कारण स्पष्ट करता है कि क्यों झूठे मसीही इतने दुष्ट और विद्रोही हैं,
''वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे ऐसों से परे रहना।'' (२ तीमुथियुस ३:५)
इसके पहले कि मैं यह पद समझाउं, मैं आप को डॉ जे वर्नान मैगी ने इस गद्यांश के विषय में क्या कहा है इस बारे में बताउंगा। पद १ में उल्लेखित अंतिम पद के बारे में डॉ मैगी ने कहा है '''अंतिम दिनों' जो पद प्रयुक्त किया गया है वह एक तकनीकी शब्द है..... (जो) चर्च के अंतिम दिनों के बारे में बोलते हैं'' पद १ से ४ तक के विषय में डॉ मैगी ने कहा, ''इसके लिये हमें उन्नीस विभिन्न वर्णन दिये हुये हैं....... यह भददे लोगों का (समूह) है..... चर्च में अंतिम दिनों (में) क्या हो रहा हैं ये उसका सबसे उत्तम धर्मशास्त्रिय चित्रण प्रस्तुत करते हैं। (जे वर्नान मैगी, टी एच डी, थ्रू दि बाइबल, २ तिमोथी पर व्याख्या अध्याय ३) फिर डॉ मैगी ने पद ५ समझाया, ''वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे....'' डॉ मैगी ने कहा, ''वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे! वे धर्म के विधान तो पूरा करते हैं परंतु जीवन और वास्तविकता की उनमें कमी है'' (उक्त संदर्भित) इन तथा कथित ''मसीहियों'' के अंदर उपरी भक्ति का भाव जाग्रत है − वे भक्ति के बाहरी रूप को धारण किये हुये हैं परंतु इसके भीतर बसे बल को मानने से इंकार करते हैं। इसका यह अर्थ है कि ऐसे लोग परमेश्वर की सामर्थ और मसीह के लहू से कभी भी परिवर्तित नहीं हुये। यह इस बात को बताता है कि क्यों पद ७ आज के इवेंजलीकल्स के लिये सत्य है। वे ''सदा सीखती तो रहती हैं पर सत्य की पहिचान तक कभी नहीं पहुंचतीं।'' आज की रात यहां इस प्रकार के लोग उपस्थित हैं!
वे दशकों तक बाइबल का अध्ययन करते रहेंगे परंतु परिवर्तित नहीं होते हैं। डॉ चार्ल्स सी रायरी ने कहा था इसका अर्थ है कि, ''वे मसीहा द्वारा बचाये जाने वाली सामर्थ (तक) कभी नहीं पहुंच पाते'' (रायरी स्टडी बाइबल; पद ७ पर व्याख्या) लाखों इवेंजलीकल्स आज इस दशा में जी रहे हैं। वे अपरिवर्तित, संसारिक जन हैं १ कुरूंथियों २:१४ इस प्रकार उनका वर्णन करता है, ''परन्तु शारीरिक (अपरिवर्तित) मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता....... क्योंकि वे उस की दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं, और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उन की जांच आत्मिक रीति से होती है।'' अब मैं आप को दो मुख्य कारण दूंगा कि क्यों पिछले १४० से उपर इन सालों में अमेरिका और पश्चिम में कोई बड़ा आत्मिक जागरण नहीं हुआ।
१. प्रथम, १४० सालों से कोई बड़ा आत्मिक जागरण नहीं हुआ क्योंकि हमवास्तविक रूप में केवल भटके हुये लोगों को ही बपतिस्मा देते हैं !
चर्चेस में चार्ल्स फिनी ने जो निर्णयवाद की शुरूआत की उसके कारण लोगों ने धोखा खाया और लाखों इवेंजलीकल्स का परिवर्तन नहीं हुआ। उनकी शिक्षा चर्चेस में इतनी मजबूती से व्याप्त हो गई कि लाखों लोगों ने यही सोचा कि उन्होंने निर्णय ले लिया है और पापी जन द्वारा बोली जाने वाली प्रार्थना बोल ली है या बाइबल के पद पर विश्वास कर लिया है किंतु वे पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा परिवर्तित नहीं हुये हैं। पवित्र आत्मा का पहला कार्य पापी जन को उसके भीतर पाप का बोध उत्पन्न करना है। यूहन्ना १६:८,९ में कहा गया है, ''और वह (पवित्र आत्मा) आकर संसार को पाप और धामिर्कता और न्याय के विषय में निरूत्तर (बोध दिलायेगा) करेगा....... पाप के विषय में इसलिये कि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते।'' जब तक एक पापी जन को अपने पाप का गहरा बोध नहीं होगा, वह मसीह के लिये सच्ची आवश्यकता नहीं महसूस कर पायेगा, मसीह का सलीब पर बलिदान और पापों को लहू से धोये जाने की तीव्र आवश्यकता नहीं महसूस कर पायेगा। कई बार लोग कहते हैं कि वे उद्वार प्राप्त करना चाहते हैं परंतु चूंकि उन्हें पापों का गहरा बोध नहीं हुआ होता है इसलिये वे कभी भी मसीह पर विश्वास लाने योग्य नहीं होते हैं।
पवित्र आत्मा का दूसरा कार्य मसीह को महिमा प्रदान करना है। यीशु ने कहा, ''वह मेरी महिमा करेगा, क्योंकि वह (मेरी बातों में से लेकर) तुम्हें बताएगा'' (यूहन्ना १६:१४) और जैसे यीशु ने १५:२६ में कहा, पवित्र आत्मा ''मेरी महिमा करेगा।'' पहले मनुष्य को पाप का बोध होता तब ही पवित्र आत्मा पापी को यह दर्शाता है कि केवल यीशु ही पापों की क्षमा प्रदान कर सकते हैं। परिवर्तन के अंतिम कार्य में परमेश्वर पापी जन को यीशु के पास खींचते हैं....... '' (यूहन्ना ६:४४) । जिस व्यक्ति ने कहा था, ''मैं मसीह के पास आ सकता हूं?'' वह यह नहीं जानता था कि पहले उसे पापों का बोध होना आवश्यक है तभी पाप से छुटकारे के लिये मसीह से उद्वार मिलने की अंतिम आवश्यकता को वह देख सकता है और तब वह मसीह के पास खिंचा जायेगा। चेलों ने यीशु से कहा, ''तब कौन बचाया जा सकता है?'' यीशु ने कहा, ''मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से हो सकता है'' (मरकूस १०:२६,२७)
प्रोटेस्टैंट के पारंपरिक परिवर्तन में पहली बात जो होती है पापी को अपने पाप के प्रति गहरा बोध उत्पन्न होता है। जिससे वह अपने आप को बचाना चाहता है। वह मसीह को अपनी अंतिम आशा के रूप में देखता है। वह मसीह के पास आता है और परमेश्वर उसे मसीह के पास खींचता है। बेशक इन सब बातों को आधुनिक ''निर्णयवाद'' ने अस्वीकार कर दिया है। आज मनुष्य केवल आसंदी की ओर चलकर जाता है और कुछ शब्द प्रार्थना के दोहरा कर आ जाता है। मनुष्य की आत्मा में जो परमेश्वर का कार्य होता है उसे पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया गया है। यह वह पहला कारण है कि हमारे यहां आत्मिक जागरण नहीं होता है।
जोन कैगन हमारे चर्च में वह युवा है जो सेवकाई में जाने का इच्छुक है। वह १५ की उम्र में परिवर्तित हुआ था। मैं उसकी पूरी गवाही यहां दो कारणों से दे रहा हूं। पहला तो, यह बिल्कुल पुराने परंपरागत तरीके का परिवर्तन है जो फिने द्वारा चर्चेस में निर्णयवाद के शुरू होने से पहले हुआ था। ऐसे प्रकार के परिवर्तन की हमें नितांत आवश्यकता है। दूसरा, एक कॉलेज का विधार्थी मुझे इस गवाही को पढ़ता सुनकर पिछले शनिवार परिवर्तित हो गया था। इस विधार्थी ने दो सालों तक मसीह का इंकार किया था। मैं बहुत कम ऐसी गवाहियां जानता हूं जिन्होंने वास्तव में लोगों के जीवन बदले हों। यहां जोन कैगन के उद्वार पाने की गवाही है।
मुझे अपने परिवर्तन के क्षण बहुत विस्तारपूर्वक और घनिष्टता से स्मरण हैं कि जितना बड़ा परिवर्तन मसीह ने मेरे जीवन में किया है, उसको बयान करने के लिये शब्द भी कम पड़ेंगे। मेरे परिवर्तन के पूर्व मैं बहुत क्रोध में रहा करता था और घमंडी था। मुझे पाप करने में आनंद आता था। मुझे लोगों को दर्द देने में खुशी मिलती थी। मैं उन लोगों की संगति किया करता था जिन्हें परमेश्वर पसंद नहीं करते हैं। मेरी निगाह में पाप कोई ''गलती'' नहीं थी जिसके लिये मुझे शर्मिंदा होना पड़े। मैं जानबूझ करके इस राह पर चल रहा था। परमेश्वर ने मेरे जीवन में कार्य करना आरंभ कर दिया जिसका कभी मैंने अनुमान भी नहीं लगाया था और मेरे आस पास का संसार बिखरने लगा। परिवर्तन के पहले के कुछ सप्ताह मेरे लिये मरने जैसे थे। न मैं सो पाता था; न हंस सकता था, मुझे किसी प्रकार की शांति नहीं थी। हमारा चर्च सुसमाचारिय सभा आयोजित कर रहा था और मैं उन सभाओं का उपहास उड़ा रहा था। क्योंकि मैं अपने पास्टर और मेरे पिता का अनादर करता था।
उस समय पवित्र आत्मा ने मुझे मेरे पापों का बोध करवाना आरंभ कर दिया था। परंतु मैंने संपूर्ण इच्छा से परमेश्वर और परिवर्तन का विरोध करना चाहा। मैंने इसके बारे में सोचने से भी इंकार किया तौभी मैं भीतर से बहुत प्रताड़ित हो रहा था। रविवार की सुबह थी मैं पूर्ण रूप से थक चुका था। मैं सारी चीजों से थक चुका था। मुझे अपने आप से नफरत हो रही थी, अपने पाप से नफरत हो रही थी और इसके प्रति मैं अजीब महसूस कर रहा था।
जब डा हिमर्स प्रचार कर रहे थे मैं भीतर से मन को कड़ा करके उनकी बातों को नकार रहा था। शाब्दिक तौर पर तो मैं अपने पापों का बोझ अपनी आत्मा पर महसूस कर रहा था। पर मैं इंतजार कर रहा था कि संदेश जल्दी समाप्त हो। किंतु पास्टर का प्रचार करना थम ही नहीं रहा था और मेरे पापों का बोझ सहना मेरे लिये अत्यंत बोझिल होता जा रहा था। मैं और अधिक कांटो के विरूद्व संघर्ष नहीं कर सका अब वह दिन आ गया था कि मेरा उद्वार होना तय था! जब निमंत्रण दिया गया तब भी मैं इसे नकार रहा था लेकिन मैं अब और नहीं सह सका। मैं जानता था कि मैं बहुत ही बुरा व्यक्ति था और परमेश्वर द्वारा मुझे नर्क में भेजना सही था। मैं अपने विरूद्व संघर्ष करते करते थक गया था। मैं सच में बहुत थक चुका था। पास्टर ने मुझे समझाया कि मसीह के पास आ जाओ। मैं उनकी अवज्ञा करता रहा। मेरे पाप मेरी आंखों के सामने थे तौभी मेरे पास यीशु नहीं थे। ये क्षण मेरी जिंदगी के सबसे भारी क्षण थे और मुझे लग रहा था कि मुझे उद्वार नहीं मिल सकेगा और मेरा नर्क जाना निश्चित है। मैं स्वयं ''बचने'' का प्रयास कर रहा था। मैं यीशु पर ''विश्वास'' रखने का प्रयास कर रहा था लेकिन यह सब करने मे मैं असफल रहा और मैं और अधिक हताश होता चला गया। मैं जान रहा था कि मेरे पाप मुझे नर्क की तरफ धक्का दे रहे थे और मेरे भीतर का हठी मन मेरे आंसुओं को दूर धकेल रहा था। मैं इस संघर्ष में फंस कर रह गया।
अचानक मुझे बरसों पुराना एक प्रचार याद आया जिसके शब्द थे: ''मसीह के आगे समर्पण करो! मसीह के आगे समर्पण करो!'' अचानक यीशु को जीवन समर्पण के विचार ने मुझे हताशा से भर दिया और मुझे लगा कि मैं उन्हें जीवन नहीं दे पाउंगा।'' यीशु ने तो मेरे लिये अपने प्राण दिये। सच्चे यीशु मेरे लिये क्रूस पर चढ़ गये और मैं उनका ही शत्रु बना जा रहा था उनके आगे समर्पित होने से बच रहा था। इस विचार ने मुझे तोड़ कर रख दिया और मैंने अपने भीतर से सब बह जाने दिया। अब मैं अपने आप पर काबू नहीं रख पाया और मुझे यीशु की तीव्र आवश्यकता मेरे जीवन में महसूस होने लगी! उसी क्षण मैं विश्वास के साथ यीशु के आगे समर्पित हो गया और मुझे लगा कि मैं अगर समर्पण नहीं करता हूं तो शायद मर ही जाउंगा और यीशु ने मुझे नया जीवन दिया! न मैंने अपने किसी प्रयास से न इच्छा के बल पर बल्कि अपने मन से यीशु को अपना मान लिया और यीशु ने मुझे नया जीवन दिया! उन्होंने अपने रक्त से मेरे पापों को धो दिया। उस एक क्षण में मैंने यीशु का विरोध करना बिल्कुल बंद कर दिया। अब मेरे सामने यह बिल्कुल स्पष्ट था कि मुझे सिर्फ यीशु पर विश्वास करना था। मैं उस एक क्षण को भी पहचान रहा था जब मैं मैं नहीं रहा और मेरे भीतर का स्व यीशु के आगे समर्पित था। मुझे समर्पित होना ही था! न मेरे भीतर कोई ऐसी भावना पैदा हुई और न कोई प्रकाश मेरे सामने कौंधा मुझे किसी भावना की जरूरत नहीं थी मुझे केवल यीशु चाहिये थे! यीशु की ओर मुड़ा तो मुझे मेरे उपर से पापों का बोझ उठता हुआ प्रतीत हुआ। मैंने पापों की ओर से मुंह मोड़ कर केवल यीशु की ओर ताका! यीशु ने मुझे बचा लिया
यीशु ने मुझसे कितना प्रेम किया होगा जब मैं इस योग्य भी नहीं था कि इतने अच्छे चर्च में पला होने के बाद भी यीशु को अपने जीवन में नकार रहा था! शब्द भी मेरे पास कम पड़ेगें कि मैं अपने मन परिवर्तन का अनुभव बयान करूं और मसीह के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करूं। मसीह ने अपने जीवन को मेरे लिये दिया और इसके लिये मैं अपना संपूर्ण जीवन उन्हें देता हूं। यीशु ने अपने सिंहासन को छोड़ दिया कि क्रूस पर चढ़ जावें और मैं उनके ही चर्च को नकारता रहा और पापों से मिलने वाली मुक्ति का उपहास उड़ाता रहा; तो मैं किस तरह उनके प्रेम और करूणा पाने के योग्य हूं? यीशु ने मेरे नफरत और गुस्से को लिया और बदले में प्रेम दिया। उन्होंने मुझे एक नयी शुरूआत ही नहीं दी − बल्कि एक नया जीवन भी दिया। केवल विश्वास से मैंने जाना कि परमेश्वर ने मेरे पापों को धो दिया परंतु कैसे मैं ठोस प्रमाणों की अज्ञानता की कमी में भी यह जान रहा था; महसूस कर रहा था कि ''विश्वास अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।'' मुझे शांति मिली जब मैंने बहुत सोच विचार के बाद पाया कि मेरा विश्वास केवल यीशु में विश्राम पाता है। यीशु ही मेरा उत्तर है।
मैं परमेश्वर के इस अनुभव के लिये जो उन्होंने मुझ पर किया मैं बहुत धन्यवादी हूं। उन्होंने मुझे अनेक अवसर दिये। उन्होंने मुझे सामर्थपूर्वक मसीह के पास खींच लिया अन्यथा मैं उनके पास अपने बल पर नहीं आ पाता। ये तो शब्द हैं पर मेरा विश्वास यीशु में बना हुआ है क्योंकि उसने मुझे बदला है। वह हमेशा से मेरे साथ है, मेरा छुड़ाने वाला, मेरा विश्राम, मेरा मसीहा बनकर। मेरा प्रेम उनकी तुलना में कितना कम है जितना उन्होंने मुझसे प्रेम किया। मैं उनके लिये कभी इतनी गंभीरता से जीवन व्यतीत नहीं कर सकता। मैं उनके लिये और अधिक कभी नहीं कर सकता हूं। यीशु की सेवा करना मेरा आनंद है! उन्होंने तो मुझे प्रेम और शांति ही दी जबकि मैंने तो सिर्फ यह जाना था कि नफरत कैसे करूं। यीशु ही मेरी इच्छा और दिशा है। मैं अपने आप पर भरोसा नहीं रखता परंतु अपना पूरा भरोसा उन पर रखता हूं। उन्होंने मुझे कभी निराश नहीं किया। मसीह मेरे पास आये इसलिये मैं उन्हें कभी नहीं छोड़ूगा।
जोन सैम्यूएल ने यह गवाही १५ साल की उम्र में दी थी। अब सेवकाई में जाने की उनकी योजना है। जोन कैगन के साथ जो हुआ, वास्तविक गवाही में ऐसा ही होता है! परमेश्वर आप के लिये भी वही करेगा जो उसने जोन कैगन के लिये किया!
आज के प्रचारकों ने उसे भी वह प्रार्थना बोलने के लिये आमंत्रित किया होता, फिर उसे बपतिस्मा दिया होता − और उसे भी हमारे चर्चेस की लाखों आत्माओं में से एक भटकी हुई आत्मा बना लिया होता! पहला कारण कि क्यों हमारे यहां आत्मिक जागरण नहीं हो रहा है क्योंकि प्रचारक परमेश्वर का कार्य लोगों के मनों में नहीं होने देना चाहते। वे पापी को परमेश्वर के कार्य होने से दूर खींच कर ले जाते हैं और उसकी भटकी हुई अवस्था में ही उसे बपतिस्मा दे देते हैं! मैं मानता हूं कि जितने भी बपतिस्में आज हुये हैं वे सब भटके हुये लोगों के ही हुये हैं। यह पहला कारण है कि क्यों हमारे यहां आत्मिक जागरण नहीं हो रहा है!
वास्तव में आज बिना सच्चा परिवर्तन हुये प्रत्येक के लिये घोषित किया जा चुका है कि उसका उद्वार हो चुका है, उसे बपतिस्मा दिया जा चुका है! मैं स्वीकार करता हूं कि मैंने भी वह पाप किया है। परमेश्वर मुझे क्षमा करे। परमेश्वर ने क्यों हमसे १४० साल तक आत्मिक जागरण को रोक कर रखा है? क्यों? तो इसका एक और कारण है!
२. द्वितीय, १४० सालों से कोई बड़ा आत्मिक जागरण नहीं हुआ क्योंकि हम पवित्र आत्मा पर अधिक जोर देते हैं बजाय मसीही जन अपने पापों का बोध करे और अपने पापों को यीशु के लहू से धोकर शुद्व होने दें।
यह वह बात है जो मैं पहले ही जानता हूं। पर यह मुझे अभी अभी स्पष्ट हुआ। मैं कई पुर्नजागरण सभाओं का गवाह रहा हूं। पहली सभा अभी तक की सबसे शक्तिशाली सभा थी − जो आत्मा के ''बपतिस्में'' अन्य भाषा बोलने, चंगाई और चमत्कार पर निर्भर नहीं थी। यह पूर्णतः मसीहियों पर निर्भर थी जिन्होंने अपने पापों को माना था और मसीह के रक्त से शुद्व हुये थे।
हमारे चर्चेस में जो लोग सच्चे रूप में परिवर्तित हुये हैं वे आज भी अपने पापों को मन में रोक कर रखे हुये हैं जैसे − मन के पाप विचारों के पाप और देह के पाप। पहले पुर्नजागरण में मैंने देखा था कि लगभग संपूर्ण चर्च ने अपने पापों को वेदी पर अंगीकार किया और फूट फूट का रोये जब तक कि परमेश्वर ने उन्हें यीशु के रक्त द्वारा शांति प्रदान न कर दी। शिष्य यूहन्ना ने कहा था,
''यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है'' (१ यूहन्ना १:९)
परमेश्वर मसीहियों के पाप कैसे क्षमा करते हैं? ''उसके पुत्र यीशु का लोहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है'' (१ यूहन्ना १:७)
प्रथम, अपने पापों को स्वीकार करना चाहिये चाहें वे आंतरिक या बाहरी पाप हों, दूसरा, हमारे पापों को यीशु का रक्त शुद्व करता है। कितनी सामान्य सी बात है, है न? पर कितने चर्चेस आज इस बात पर जोर देते हैं? मैं नही जानता कि आज कितने चर्च ऐसा करते हैं। दूसरा, यही कारण है कि आज १४० सालों से आत्मिक जागरण नहीं हुआ है!
ब्रायन एडवर्ड के शब्द सुनिये, जिसने वास्तविक आत्मिक जागरण पर बहुत अध्ययन किया। उसने कहा था,
आत्मिक जागरण..... बहुत गहन रूप में पाप के बोध के साथ प्रारंभ होता है। पाप का ऐसा बोध जिस गवाही में होता है वह पुर्नजागरण के बारे में पढ़ने वाले को विचलित कर देता है। कभी कभी यह अनुभव विचलित करने वाला होता है। लोग अनियंत्रित रूप से रोते हैं और उससे भी बुरा होता है! पर बिना पाप का अहसास किये और आत्मा में व्याकुलता के (सच्चा) परिवर्तन नहीं होता है। (एडवर्ड, रिवाईवल, इवेंजलीकल प्रेस, २००४, पेज ११५)
पहला आत्मिक अनुभव जो मैने देखा कि वह ऐसे प्रारंभ हुआ कि कुछ मसीही लोग रो रहे थे और अपने पापों को स्वीकार करते थे। जल्द ही कुछ घंटों में चर्च के सारे लोग रोते हुये अपने पापों को मानते हुये और कुछ तो धीरे धीरे सिसक रहे थे। यही सब चल रहा था। कोई अन्य भाषा नहीं बोल रहा था। कोई आत्मा से भरा हुआ नहीं था। कोई चंगाई नहीं हुई थी। आत्मा का कुचला जाना नहीं था। केवल पापों को अंगीकार करना दिखाई दे रहा था, रोते और सिसकते हुये प्रार्थना कर रहे थे। ऐसा घंटों तक चला।
पर एक या दो दिन के बाद यह रूक जाता है - परंतु आत्मा का आगमन पुनः होता रहता है - तीन सालों में समय समय पर यह चलता रहा। जब पुर्नजागरण खत्म हुआ तो लगभग ३००० लोग चर्च में जोड़े गये। वह चर्च जिसमें १५० से भी कम लोग थे। उनको चार आराधनायें करनी होती थी, हर रविवार सुबह की आराधना के अतिरिक्त रविवार की रात्रि में दो आराधनायें संचालित होती थी।
परंतु मैं नहीं सोचता कि हमें चर्च में अधिक लोगों को जोड़ने के उददेश्य से पुर्नजागरण मांगना चाहिये। सच्चा लक्ष्य होना चाहिये कि चर्च शुद्व रूप में पाया जाये! हमें एक शुद्व चर्च की आवश्यकता है!
हमारे यहां बड़े बड़े धर्मयुद्व होते थे। हमारे यहां मसीही प्रचार के टी वी शो होते हैं। हमारी अपनी चंगाई सभायें होती हैं। हमने देखा है चर्च में अन्य भाषा बोले जाने के अनुभव होते हैं। परंतु अमेरिका में पारंपरिक और ऐतिहासिक स्तर पर कोई पुर्नजागरण १४० सालों से नहीं हुआ! हम इन अन्य बातों में भटक गये हैं। हम मसीहियों ने पवित्र आत्मा द्वारा स्वयं को पापों का बोध होने ही नहीं दिया। हम यीशु के लिये हमारे मन से कोई तीव्र पुकार नहीं उठी कि वह अपने कीमती, पवित्र रक्त से हमें धो दें!
हमारे चर्च में पुर्नजागरण का ''स्पर्श'' हो चुका था। चार रातों तक आराधना में ११ लोग परिवर्तित हुये। जिन्हें डॉ कैगन ने जांचा क्योंकि वे इस मामले के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने बताया कि सारे ११ लोग परिवर्तित हो चुके हैं। हमारे यहां ८ मसीही लोग जो थे उन्होंने अपने पापों को स्वीकार किया और आंसुओं के साथ हर रात प्रार्थना की। जब से हमारा चर्च प्रारंभ हुआ इन ४१ सालों में ऐसी सभा कभी नहीं हुई।
परंतु तब मैंने पाप किया। डॉ कैगन कहते हैं कि इसे पाप नहीं कहें। परंतु मैं कहता हूं कि मैंने पाप किया। मैं इतना घमंडी हो गया कि हमारे यहां पुर्नजागरण हुआ! पुर्नजागरण तो अभी प्रारंभ ही हुआ था। मैंने पापों के बोध और मसीह के रक्त के उपर प्रचार करना बंद कर दिया। मैंने सभायें किसी और को सौंप दी और संदेश का केंद्र और जोर यीशु से पवित्र आत्मा पर केंद्रित हो गया। मुझे यह स्मरण होना चाहिये कि यीशु ने पवित्र आत्मा के लिये क्या कहा, ''वह मेरी गवाही देगा'' (यूहन्ना १५:२६) मुझे किसी को आकर पवित्र आत्मा पर प्रचार नहीं करने देना था। ये मेरा पाप था। घमंड और गुमान करने का पाप। मैं आज रात उन्हें स्वीकार करता हूं। निवेदन करता हूं कि हर कोई मेरे लिये प्रार्थना करें कि यीशु और पाप स्वीकार के विषय की उपेक्षा करने की क्षमा मुझे मिले (वे प्रार्थना करते हैं)। अब प्रार्थना कीजिये कि जो प्रथम पुर्नजागरण मैंने देखा था परमेश्वर हमारे मध्य में पुनः उपस्थित होवे (प्रार्थनारत रहिये) कि परमेश्वर की उपस्थिति हमारे बीच वापस आवें। आंसुओं से प्रार्थना कीजिये जैसे चीन में प्रार्थना होती है निवेदन है कि आप खड़ें होकर गाइये, ''हैल्लुलयाह व्हाट ऐ सेवियर।'' अब गाइये, ''स्पिरिट ऑफ दि लिविंग गॉड।'' अब गाइये, ''सर्च मी ओ गॉड।'' अब पहला और अंतिम पद गाइये, ''फिल ऑल माय विजन'' मिस गुयेन प्रार्थना कीजिये कि परमेश्वर हमारे मध्य में उतर आये। हमारे बीच आज भी बहुत से लोग है जो भटके हुये हैं। परमेश्वर उनके लिये उतर कर आवें।
आप जो चाहते है कि आपको पुर्नजागरण मिले तो आप भी अपने स्थानों पर खड़े होकर प्रार्थना कीजिये कि परमेश्वर नीचे उतर आवें। जैसे चीन में प्रार्थना करते हैं वैसे ही कीजिये। जो अपने पापों को स्वीकारना चाहते हैं वे वेदी पर आ जावें। जो अपने पापों से मसीह के रक्त से शुद्व होना चाहते हैं यहां आकर पापों का अंगीकार करें। जो चाहते हैं कि यीशु उन्हें बचा लें वे भी आवें। सदर्न बैपटिस्ट चर्च के लेमेन जो २५ सालों से चर्च आ रहे हैं वे एक खोये हुये जन थे, उन्होंने मसीह पर विश्वास करके परिवर्तन का सच्चा अनुभव प्राप्त किया। आमीन।
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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐरोन यांसी द्वारा धर्मशास्त्र पढ़ा गया: २ तीमुथियुस ३:१−५
संदेश के पूर्व बैंजमिन किंकेड ग्रिफिथ ने एकल गान गाया गया: ''फार्थर ऐलोंग''
(डब्ल्यू बी स्टीवेंस, १८६२ −१९४०; बार्ने ई वारेन द्वारा रचित गान १८६७ −१९५१)
रूपरेखा अमेरिका और पश्चिम के चर्चेस में क्यों आत्मिक जागरण THE TWO REASONS WHY THE CHURCHES IN AMERICA डॉ आर एल हिमर्स ''पर यह जान रख, कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता पिता की आज्ञा टालने वाले, कृतघ्न, अपवित्र। दयारिहत, क्षमारिहत, दोष लगाने वाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी। विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्वर के नहीं वरन सुखविलास ही के चाहने वाले होंगे। वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे ऐसों से परे रहना। इन्हीं में से वे लोग हैं, जो घरों में दबे पांव घुस आते हैं और छिछौरी स्त्रियों को वश में कर लेते हैं, जो पापों से दबी और हर प्रकार की अभिलाषाओं के वश में हैं। और सदा सीखती तो रहती हैं पर सत्य की पहिचान तक कभी नहीं पहुंचतीं।'' (२ तीमुथियुस ३:१–७) (२ तीमुथियुस ३:१३, ५; १ कुरूंथियों २:१४) १. प्रथम, १४० सालों से कोई बड़ा आत्मिक जागरण नहीं हुआ क्योंकि हम २. द्वितीय, १४० सालों से कोई बड़ा आत्मिक जागरण नहीं हुआ क्योंकि हम पवित्र आत्मा पर अधिक जोर देते हैं बजाय मसीही अपने पापों का बोध करे और अपने पापों को यीशु के लहू से धोकर शुद्व होने दें। १ यूहन्ना १:९, ७; यूहन्ना १५:२६ |