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प्रार्थना और प्रार्थना सभा पर
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इस पद पर अधिकतर व्याख्या सीधे कुछ नहीं कहती हैं । उदाहरण के लिये, एक प्रसिद्व व्याख्या कहती है, ''संपूर्ण पृथ्वी पर एक ही दशा होगी कि अविश्वास फैल जायेगा।'' पर यीशु का इस पद में कहने का अर्थ कुछ और है। वह अंत समय में व्याप्त अधर्मीपन के लिये भी नहीं बोल रहे हैं न ही वह यह प्रश्न उठा रहे हैं कि उनके आने पर क्या सच्चे मसीही मिलेंगे। वास्तव में यीशु ने पतरस के बिल्कुल विपरीत कहा,
''मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे।'' (मत्ती १६:१८)
आइये यह गीत गायें ''ताज और सिंहासन समाप्त हो जायेंगे'' गीत संख्या ४ और उसका चौथा अंतरा है।
ताज और सिंहासन समाप्त हो जायेंगे, राज्य उठेंगे और गिरेंगे,
परंतु यीशु की कलिसिया हमेशा बनी रहेगी;
नर्क के दरवाजे कभी भी यीशु की कलिसिया पर प्रबल न होंगे;
हमारे पास मसीह की प्रतिज्ञा हैं जो कभी विनष्ट नहीं हो सकतीं।
आगे बढ़ों, मसीही सैनिकों, आत्मिक युद्व के लिये कूच करो,
क्योंकि यीशु का क्रूस आप के आगे चलता है।
(''आगे बढ़ों, मसीही सैनिकों'' सैबिन बैरिंग गोल्ड, १८३४−१९२४)
अब आप बैठ सकते है।
मत्ती १६:१८ यह बताता है कि इस पृथ्वी पर कितनी गहरी और भयानक अधर्मीपन की दशा क्यों न व्याप्त हो जायें कितु जब मसीह का पुनरागमन होगा तब भी अनेक सच्चे मसीही उपलब्ध होंगे। तीसरी दुनिया के कुछ भागों में और विशेष कर चीन में जहां आज भी सच्ची क्रिश्चियेनिटी पाई जाती है ऐसे अनेक सच्चे क्रिश्चियन उठा लिये जायेंगे।
''क्योंकि प्रभु आप ही स्वर्ग से उतरेगा; उस समय ललकार, और प्रधान दूत का शब्द सुनाई देगा, और परमेश्वर की तुरही फूंकी जाएगी, और जो मसीह में मरे हैं, वे पहिले जी उठेंगे। तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे, उन के साथ बादलों पर उठा लिए जाएंगे, कि हवा में प्रभु से मिलें, और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे।'' (१ थिस्सलुनीकियों १६:१७)
यहां तक कि उस महान सताव काल में भी ढेर सारे लोग बचाये जायेंगे।
''हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था'' (प्रकाशितवाक्य ७:९)
''ये वे हैं, जो उस बड़े क्लेश में से निकल कर आए हैं इन्होंने अपने अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धो कर श्वेत किए हैं।'' (प्रकाशितवाक्य ७:१४)
इस तरह, यीशु उनके आने पर उद्वार देने वाले विश्वास की अनुपस्थिति के बारे में नहीं बोल रहे हैं,
''तौभी मनुष्य का पुत्र जब आएगा तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?'' (लूका १८:८)
लंबे समय से मेरे पास्टर रहे डॉ तिमोथी लिन (१९११−२००९) को बाइबल की बहुत समझ थी। वह हिब्रू और कगनेट भाषा में पीएचडी थे। बोब जोंस यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट स्कूल में वह सन १९५० में सिस्टमेटिक थियोलोजी, बिबलीकल थियोलाजी, ओल्ड टेस्टामेंट हिब्रू, बिब्लीकल अरामिक, क्लासिकल अरेबिक, पेशिता सीरियक पढ़ाते थे। बाद में जेम्स हडसन टेलर तृतीय के बाद वह चाइना इवेंजलीकल सेमनरी के अध्यक्ष बने।
डॉ लिन ने बाइबल के इस पद का ईमानदारी भरा उत्तर दिया,
''तौभी मनुष्य का पुत्र जब आएगा तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?'' (लूका १८:८)
१. प्रथम, लगातार की गयी प्रार्थनाओं का महत्व
डॉ तिमोथी लिन बाइबल के एक बड़े विद्वान थे जो अलग अलग अमेरिकन सेमनरीज में पढ़ाते थे और ताईवान की चाईना इवेंजलीकल सेमनरी के अध्यक्ष थे। वह न्यू अमेरिकन स्टैंडर्ड बाइबल के पुराने नियम के अनुवादकों (एनएएसबी) में से एक थे। चौबीस सालों तक मेरे पास्टर रहे। मैं बिना किसी झिझक के कह सकता हूं कि अभी तक मैंने जिनको जाना है उनमें से तिमोथी लिन ने मुझे बहुत प्रभावित किया। जब मैं उनके चर्च का सदस्य था मैंने देखा परमेश्वर ने आत्मिक जाग्रति भेजी जिसमें सैकड़ों लोग बचाये गये और चर्च में आने लगे। डॉ लिन का कहना था,
''विश्वास'' शब्द बाइबल में सर्वाधिक प्रयुक्त हुआ है इसके संदर्भ का ठीक तरह से परीक्षण करके ही इसका सही अर्थ जाना जा सकता है। इस पद के पहले एक दृष्टांत है जो यह बताता है कि हमें सारे समय प्रार्थना करते रहना चाहिये और हिम्मत नहीं हारना चाहिये (लूका १८:१−८ अ) जबकि जो पद (लूका १८:९−१४) के बाद आ रहा है उसमे उस फरीसी और कर लेने वाले की प्रार्थना का वर्णन है। इसलिये इस पद (लूका १८:८) का संदर्भ स्पष्ट बताता है कि ''विश्वास'' शब्द यहां प्रार्थना में विश्वास को प्रदर्शित करता है। यह हमारे प्रभु का विलाप है कि उनका चर्च उनके द्वितीय आगमन के समय अपनी विश्वास की प्रार्थना को खो देगा। (तिमोथी लिन, पीएचडी, दि सीक्रेट औफ चर्च ग्रोथ, फस्र्ट चायनीज बैपटिस्ट चर्च औफ ल्योस ऐंजीलिस, १९९२, पेज ९४−९५)
डॉ लिन का कथन था कि लूका १८:१−८ की कथा का सार है कि मसीही जनों को प्रार्थना करते रहना चाहिये और दुर्बल नहीं पड़ना चाहिये। पद आठ बताता है अंत के दिन जिस में हम रह रहे हैं, मसीहियों में प्रार्थना में नियमितता पर से विश्वास उठ जायेगा। इसलिये हम इस पद पर टिप्पणी करते हुये कह सकते हैं‚
''तौभी मनुष्य का पुत्र जब आएगा तो क्या वह (पृथ्वी पर लगातार प्रार्थना वाला) विश्वास पाएगा?'' (लूका १८:१‚८)
डॉ लिन यह कहते रहे‚
आजकल चर्चेस में से प्रार्थना सभायें तो लगभग गायब हो गयी हैं। (या मध्य सप्ताह के बाइबल अध्ययन तक सीमित रह गयी है जिसमें केवल एकाध प्रार्थना हो पाती है) । यह ऐसी दुखदायी दशा है कि अधिकतर चर्चेस इस महत्वपूर्ण चेतावनी को नजरअंदाज कर देते हैं और अपनी संतुष्टि में डूबे रहने के कारण (लगभग) अपनी प्रार्थना सभाओं को रदद कर देते हैं। यह (एक) सच्चा संकेत है कि मसीह का दूसरा आगमन लगभग नजदीक है आजकल अनेक चर्च सदस्य टेलीफोन की अधिक आराधना करते है बजाय अपने प्रभु के......यह एक दुखद स्थिति है!...... अंतिम दिनों के चर्चेस में अधिक अधर्म पाया जाता है......प्रार्थना सभाओं के प्रति (बिल्कुल अरूचि) उत्पन्न हो गयी है (तिमोथी लिन‚ पीएचडी‚ उक्त संदर्भित‚ पेज ९५)
लूका १८:८ मसीह के आने के पूर्व चर्चेस में प्रार्थनाहीनता का संकेत देता है एक ऐसा समय जिस में हम रह रहे है‚ उसमें हठी प्रार्थनायें करने का तो अभाव पाया जाता है‚ पर पूर्णत उद्वार दिलाने वाले विश्वास का अभाव नहीं होगा। मसीह के पुनरागमन के पूर्व चर्चेस में प्रार्थनाहीनता अंत समय का संकेत है जिसमे हम रह रहे हैं ।
''तौभी मनुष्य का पुत्र जब आएगा तो क्या वह (पृथ्वी पर लगातार प्रार्थना वाला) विश्वास पाएगा?'' (लूका १८:८)
''मुझे प्रार्थना करना सीखा'' आइये यह गीत गाये
मुझे प्रार्थना करना सीखा‚ मुझे प्रार्थना करना सीखा;
ये मेरे दिल की पुकार है दिन प्रतिदिन;
मैं आपकी और आपके मार्ग जानना चाहते हो;
मुझे प्रार्थना करना सीखा‚ मुझे प्रार्थना करना सीखा;
(''मुझे प्रार्थना करना सीखा'' अल्बर्ट एस रिर्टज‚ १८७९−१९६६)
२. दूसरा‚ प्रार्थना सभाओं का महत्व
डॉ लिन ने भी बताया कि प्रार्थना सभाओं में एक अकेले व्यक्ति की प्रार्थना में इतनी शक्ति नहीं होती जो सामूहिक प्रार्थना में पायी जाती है। उन्होंने कहा‚
लोग अक्सर कहते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि चाहे आप अकेले प्रार्थना करते हैं या सामूहिक‚ चाहे आप अकेले प्रार्थना करते हैं या चर्च में अपने भाई बहिनों के साथ‚ ऐसे कथन कहना मात्र एक सुस्ती और स्वयं को सांत्वना देना है! यह प्रार्थना की ताकत से अनभिज्ञ व्यक्ति का एक विश्वसनीय सा लगने वाला कथन है:
''फिर मैं तुम से कहता हूं‚ यदि तुम में से दो जन (चर्च में) पृथ्वी पर किसी बात के लिये जिसे वे मांगें‚ एक मन के हों‚ तो वह मेरे पिता की ओर से स्वर्ग में है उन के लिये हो जाएगी। क्योंकि जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं वहां मैं उन के बीच में होता हूं'' (मत्ती १८:१९−२०)
हमारे प्रभु ने जोर देकर हमें सिखाया है अलौकिक अधिकार किसी एक व्यक्ति के प्रयास से हासिल नहीं किया जा सकता। बल्कि सामूहिक प्रयास जो संपूर्ण चर्च करता है उससे (उसके द्वारा) यह संभव हो पाता है। दूसरे शब्दों में‚ केवल जब...... पूरा चर्च एक मन होकर (प्रार्थना) करे...... तब चर्च प्रभावकारी रूप में ऐसी अलौकिक ताकत प्राप्त कर (सकता) है।
अंतिम दिनों का चर्च‚ यधपि‚ इस सत्य की सच्चाई को ग्रहण नहीं कर सकता न ही परमेश्वर की ताकत (पाने का) उचित तरीका याद रख सकता है तो यह कितनी बड़ी हानि है! (चर्च) के पास स्वर्ग से स्वर्गिक अधिकार दिया गया है यधपि प्रबंधकीय ज्ञान नहीं‚ तौभी वह र्शतान के कार्य को बांधना चाहती है ताकि कुचले हुओं को छुड़ा सके और परमेश्वर की उपस्थिति को महसूस कर सके। पर दुख की बात है की बात है ऐसा हो नहीं पाता! (तिमोथी लिन‚ पीएचडी‚ उक्त संदर्भित‚ पेज ९२−९३)
इसलिये डॉ लिन ने प्रार्थना में विश्वास का महत्व और चर्च की प्रार्थना सभाओं का पूर्ण महत्व समझाया। निवेदन है कि खड़े होकर गाइये‚ ''मुझे प्रार्थना करना सीखा''
मुझे प्रार्थना करना सीखा‚ प्रभु‚ मुझे प्रार्थना करना सीखा;
ये मेरे दिल की पुकार है दिन प्रतिदिन;
मैं आपकी और आपके मार्ग जानना चाहता हूं;
मुझे प्रार्थना करना सीखा‚ मुझे प्रार्थना करना सीखा।
अब आप बैठ सकते हैं।
३. तीसरा‚''एक मन लगाकर'' प्रार्थना करने का महत्व
प्रेरितों के काम १:१४ निकाल लीजिये और जोर से पढिये।
''ये सब कई स्त्रियों और यीशु की माता मरियम और उसके भाइयों के साथ एक चित्त होकर प्रार्थना में लगे रहे '' (प्रेरितों के काम १:१४)
''वे एक मन होकर प्रार्थना और अनुनय विनय में लगे रहे...... '' डॉ लिन ने कहा‚
चायनीज बाइबल ''एक चित्त का'' अनुवाद इस प्रकार करती है ''एक मन और एक विचारधारा के साथ।'' इसलिये प्रार्थना सभा में भाग लेने वालों को‚ प्रार्थना की सच्चाई का महत्व समझना चाहिये ताकि प्रार्थना सभा में परमेश्वर की उपस्थिति को समझ सके‚ (प्रार्थना सभा में) ईमानदारी भरे मन को लेकर आना चाहिये.....ताकि अपनी याचना‚ विनय‚ धन्यवाद‚ दूसरे के पक्ष में कही प्रार्थना‚ परमेश्वर से एक मन लगाकर कह सके। तब प्रार्थना सभा सफल होगी और तभी अन्य सेवकाई भी सफल होगी (डॉ तिमोथी लिन‚ पीएचडी‚ उक्त संदर्भित‚ पेज ९३−९४)
''एक चित्त की प्रार्थना में'' जब कोई भाई प्रार्थना कर रहा होता है तो हम लोगों को ''आमीन'' कहना चाहिये जब हम एक साथ ''आमीन'' कहते हैं तब वह ''एक चित्त से मांगना'' कहलाता है।
तो ''प्रार्थना में विश्वास'' और ''एक चित्त होकर प्रार्थना करना'' और ''चर्च की प्रार्थना सभा का महत्व'' इनके उपर आप ने डॉ लिन की शिक्षायें और विचार जाने। तौभी आज रात यहां उपस्थित कितने लोग हमारे चर्च की प्रार्थना सभा में भाग नहीं ले रहे हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आप का आत्मिक जीवन कितना सुस्त है! क्या आप में से कोई आज यह कहेगा‚ ''पास्टर अब से मैं कम से कम एक प्रार्थना सभा में अवश्य भाग लूंगा?'' अपनी आंखे बंद कीजिये। अगर आप इच्छा रखते हैं तो हाथ उठाइये। प्रत्येक जन प्रार्थना करे कि परमेश्वर उन्हें उस निश्चय को बनाये रखने मे सहायता करे! (सब प्रार्थना करें) ।
अगर आप का मन अभी भी परिवर्तित नहीं हुआ है‚ तो मैं आप को जोर देकर कहता हूं कि आप शनिवार की प्रार्थना सभा में आयें। कृपया अपनी आंखे बंद कीजिये। कौन कहेगा कि‚ हां‚ ''पास्टर अब से मैं प्रति शनिवार की रात्रि प्रार्थना सभा में आउंगा।'' हाथ उठाइये। प्रत्येक जन प्रार्थना करे कि परमेश्वर उन्हें उस निश्चय को बनाये रखने मे सहायता करे! (सब प्रार्थना करें) ।
मसीह क्रूस पर आप के पापों का दंड चुकाने के लिये मरे। उन्होंने अपना लहू बहाया कि आप के पाप धोये जा सकें। वह अतुलनीय दर्द से होकर गुजरे क्रूस पर उन्हें कीलों से ठोक दिया गया कि आप के बदले पापों की कीमत चुका दें। वह मरकर तीसरे दिन जीवित हुये उसके बाद स्वर्ग में पिता परमेश्वर के दाहिने हाथ विराजमान हैं। मसीह के पास आइये और आप के पाप उन पर विश्वास रखने से मिट जायेंगे।
आज रात्रि कौन अपरिवर्तित ही है और चाहता है कि हम उनके मन परिवर्तन के लिये उनके उद्वार पाने के लिये प्रार्थना करें? कृपया अपनी आंखे बंद कीजिये। हाथ उठाइये ताकि हम आप के उद्वार पाने के लिये प्रार्थना करें। प्रत्येक जन प्रार्थना करे कि ये लोग अपने पापों से प्रायश्चित करे‚ मसीह के पास आयें और उनके बहाये गये लहू से अपने पापों को धोकर शुद्व हो जाने दें! (सब प्रार्थना करें) । निवेदन है कि खड़े होकर ७ संख्या वाला गीत उसके तीनों अंतरे गाइये‚ ''मुझे प्रार्थना करना सीखा!''
मुझे प्रार्थना करना सीखा‚ प्रभु‚ मुझे प्रार्थना करना सीखा;
ये मेरे दिल की पुकार है दिन प्रतिदिन;
मैं आपकी और आपके मार्ग जानना चाहता हूं;
मुझे प्रार्थना करना सीखा‚ मुझे प्रार्थना करना सीखा।
प्रार्थना में शक्ति है‚ प्रभु‚ प्रार्थना में शक्ति है‚
इस धरती पर पाप दुख और चिंता है‚
मनुष्य भटका हुआ और मरने पर है‚ आत्मा दुख में है;
मुझे शक्ति दीजिये प्रार्थना में शक्ति
ओह सचमुच मुझे शक्ति दीजिये‚ प्रार्थना में शक्ति!
मेरी दुर्बल इच्छा को‚ आप फिर से नया बना सकते हैं;
मेरे पापमयी स्वभाव को आप वश में कर सकते हैं;
मुझे अपनी नयी शक्ति से भर दीजिये;
प्रार्थना करने की व कुछ करने की ताकत से भर दीजिये!
(''मुझे प्रार्थना करना सीखा'' अल्बर्ट एस रिर्टज‚ १८७९−१९६६)
डॉ चान प्रार्थना कीजिये कि आज की रात कोई बचाया जाये अगर आप सच्चे मसीही बनने के विषय में बात करने के इच्छुक हैं तो डॉ कैगन‚ जौन कैगन और नोहा सांग के पीछे आडिटोरियम में चले जाइये। वे आप को शांत स्थल पर ले जायेंगे और आप के मन परिवर्तन के लिये आप के साथ प्रार्थना करेंगे।
डॉ लिन की आत्मकथा विकिपीडिया में पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये।
अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।
(संदेश का अंत)
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या उन्हें दूरभाष कर सकते हैं (818)352-0452
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा धर्मशास्त्र पढ़ा गया: लूका १८:१−८
संदेश के पूर्व बैंजमिन किंकेड ग्रिफिथ ने एकल गान गाया गया:
''मुझे प्रार्थना करना सीखा'' (अल्बर्ट एस रिर्टज‚ १८७९−१९६६)
रूपरेखा प्रार्थना और प्रार्थना सभा पर DR. LIN’S TEACHINGS ON PRAYER डॉ आर एल हिमर्स ''तौभी मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?'' (लूका १८:८) (मत्ती १६:१८; १थिस्सलुनीकियों ४:१६−१७; प्रकाशितवाक्य ७:९‚१४) १. प्रथम, लगातार की गयी प्रार्थनाओं का महत्व, लूका १८:८ २. दूसरा‚ प्रार्थना सभाओं का महत्व, मत्ती १८:१९−२० ३. तीसरा‚''एक मन लगाकर'' प्रार्थना करने का महत्व, प्रेरितों १:१४ |