इस वेबसाईट का उद्देश्य संपूर्ण विश्व भर के पास्टर्स व प्रचारकों को, विशेषकर तीसरी दुनिया के पास्टर्स व प्रचारकों को नि:शुल्क हस्तलिखित संदेश और संदेश के विडियोज उपलब्ध करवाना है, जहां बहुत कम धर्मविज्ञान कॉलेज और बाइबल स्कूल्स हैं।
इन संदेशों की पांडुलिपियां प्रति माह २२१ देशों के १,५००,००० कंम्प्यूटर्स पर इस वेबसाइट पते पर www.sermonsfortheworld.com जाती हैं। सैकड़ों लोग इन्हें यू टयूब विडियो पर देखते हैं। किंतु वे जल्द ही यू टयूब छोड़ देते हैं क्योंकि विडियों संदेश हमारी वेबसाईट पर पहुंचाता है। यू टयूब लोगों को हमारी वेबसाईट पर पहुंचाता है। प्रति माह ये संदेश ४२ भाषाओं में अनुवादित होकर १२०,००० प्रति माह हजारों लोगों के कंप्यूटर्स पर पहुंचते हैं। उपलब्ध रहते हैं। पांडुलिपि संदेशों का कॉपीराईट नहीं है। आप उन्हें बिना अनुमति के भी उपयोग में ला सकते हैं। आप यहां क्लिक करके अपना मासिक दान हमें दे सकते हैं ताकि संपूर्ण विश्व में सुसमाचार प्रचार के इस महान कार्य में सहायता मिल सके।
जब कभी आप डॉ हायमर्स को लिखें तो अवश्य बतायें कि आप किस देश में रहते हैं। अन्यथा वह आप को उत्तर नहीं दे पायेंगे। डॉ हायमर्स का ईमेल है rlhymersjr@sbcglobal.net.
.
प्रार्थनायें जिनका उत्तर परमेश्वर देते हैं।THE PRAYERS GOD ANSWERS डॉ आर एल हिमर्स रविवार की संध्या, २२ मार्च, २०१६ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल ''एलिय्याह भी तो हमारे समान दुख सुख भोगी मनुष्य था और उस ने गिड़िगड़ा कर प्रार्थना की कि मेंह न बरसे और साढ़े तीन वर्ष तक भूमि पर मेंह नहीं बरसा।'' (याकूब ५:१७) |
यह बहुत रोचक बात है कि पुराने नियम में एलिय्याह की इन प्रार्थनाओं का कहीं जिक्र नहीं है। एलिय्याह भविष्यवक्ता यह जानता था कि जिन प्रार्थनाओं का वर्णन नहीं किया गया है परमेश्वर उन प्रार्थनाओं का उत्तर देंगे (१ राजा १७:१) । ऐसा लगता है कि एलिय्याह की इन प्रार्थनाओं के बारे में याकूब को विशेष प्रकाशन दिया गया है। पुराने नियम में वह वर्णन मिलता है जो भविष्यवक्ता ने राजा अहाब से कहा था। डॉ मैगी ने कहा था कि भविष्यवक्ता मनुष्यों से बातें करते थे और प्रचारक परमेश्वर से बातें करते थे। चूंकि एलिय्याह भविष्यवक्ता था इसलिये बाइबल हमें वह वर्णन करती है जो एलिय्याह ने अहाब से कहा। एलिय्याह ने परमेश्वर से जो कहा वह तभी प्रगट हुआ जब उसका प्रकाशन याकूब को मिला। एलिय्याह ने अहाब से कहा था,
''इस्राएल का परमेश्वर यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्थित रहता हूँ, उसके जीवन की शपथ इन वर्षों में मेरे बिना कहे, न तो मेंह बरसेगा, और न ओस पड़ेगी'' (१ राजा १७:१) ।
हमें सूखे और बारिश की एल्लियाह की प्रार्थना के बारे में पता नहीं चल पाता अगर याकूब को परमेश्वर याकूब ५:१७ में इसका दर्शन नहीं देते (२ तीमुथियुस ३:१६)।
यह पद बताता है कि एल्लियाह ने बहुत ''मन लगाकर'' सूखे और बारिश के लिये प्रार्थना की। ''मन लगाकर'' का यूनानी अर्थ है कि ''उसने बहुत गहन प्रार्थना भाव से प्रार्थना की।'' टामस मैंटन ने कहा था (१६२०−१६७७) कि यह यह दर्शाता है कि ''जबान और मन का बहुत गहरा संबंध है। दिल ने जो प्रार्थना की वही जबान से (भी) निकली ।'' (कमेंटरी ऑन जेम्स, दि बैनर ओफ ट्रूथ ट्रस्ट, १९९८ का पुर्नमुद्रण) । जोर की आवाज से प्रार्थना करने के स्थान पर यह प्रार्थना अधिक प्रभावशाली होती है। मेरे विचार से मैंटन ने सही कहा था दिल में भरे शब्दों का जबान से तालमेल बहुत प्रभावशाली होता है। ऐसी प्रार्थना में जुबान वही कहती है जो दिल गंभीरतापूर्वक कहता है।
बरसों तक मैंने प्रार्थनाओं के बहुत यादगार उत्तर देखें। कई दफे उत्तर त्वरित तो नहीं मिले । प्रार्थनाओं के महान उत्तर अक्सर तब मिले जब मैंने बहुत मन लगाकर प्रार्थना की। यह कुछ ऐसी बात होती थी जिसके लिये मैं रात दिन सोचता था। पुराने समय के मसीही लोग कहते थे कि यह वह बात होती थी जिसके कारण मन दिन रात ''बोझ'' से दबा जाता हो, कोई बहुत गंभीर बात हो, इतनी गंभीर हो कि आप के मन में बार बार उठती हो। और आप तब तक प्रार्थना करते हो कि जब तक इसका उत्तर न मिल जाता हो।
मसीह ने दो दृष्टान्त बताये थे जिसके द्वारा यह समझा जा सकता है कि बोझ से प्रार्थना करने का उत्तर आने का कितना महत्व होता है। पहली नीतिकथा एक ''जिददी व्यक्ति की प्रार्थना'' है। जिददी का अर्थ है ''दीर्घस्थायी हठी'' या ''परेशानी खडा करने वाला।'' यह लूका ११:५−१३ में दिया गया है। स्कोफील्ड स्टडी बाइबल में पेज १०९० पर भी यह अंकित है। कृपया खडे होकर इसे जोर से पढिये।
''और उस ने उन से कहा, तुम में से कौन है कि उसका एक मित्र हो, और वह आधी रात को उसके पास आकर उस से कहे, कि हे मित्र मुझे तीन रोटियां दे। क्योंकि एक यात्री मित्र मेरे पास आया है, और उसके आगे रखने के लिये मेरे पास कुछ नहीं है। और वह भीतर से उत्तर दे, कि मुझे दुख न दे अब तो द्वार बन्द है, और मेरे बालक मेरे पास बिछौने पर हैं, इसलिये मैं उठकर तुझे दे नहीं सकता मैं तुम से कहता हूं, यदि उसका मित्र होने पर भी उसे उठकर न दे, तौभी उसके लज्ज़ा छोड़कर मांगने के कारण उसे जितनी आवश्यकता हो उतनी उठकर देगा। और मैं तुम से कहता हूं कि मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा, ढूंढ़ों तो तुम पाओगे खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई मांगता है उसे मिलता है और जो ढूंढ़ता है, वह पाता है और जो खटखटाता है उसके लिये खोला जाएगा। तुम में से ऐसा कौन पिता होगा कि जब उसका पुत्र रोटी मांगे तो उसे पत्थर दे या मछली मांगे तो मछली के बदले उसे सांप दे या अण्डा मांगे तो उसे बिच्छू दे सो जब तुम बुरे होकर अपने लड़के बालों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो तो स्वर्गीय पिता अपने मांगने वालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा'' (लूका ११:५−१३)
अब आप बैठ सकते हैं।
पूरा दृष्टान्त यह कहता है कि तब तक प्रार्थना करते रहो जब तक कि उत्तर न मिल जाये। पद नौ और दस कहते हैं,
''और मैं तुम से कहता हूं कि मांगो तो तुम्हें दिया जाएगा ढूंढ़ों तो तुम पाओगे खटखटाओ तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई मांगता है उसे मिलता है और जो ढूंढ़ता है वह पाता है और जो खटखटाता है उसके लिये खोला जाएगा।'' (लूका ११:९−१०)
''मांगो'' ''खोजो'' और ''खटखटाओं'' यूनानी पद में यह वर्तमान काल में लिखे गये हैं। इसका अनुवाद ऐसे भी किया जा सकता है कि ''लगातार मांगते रहो'' ''खोजते रहो'' और ''खटखटाते रहो।'
''सो जब तुम बुरे होकर अपने लड़के बालों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो तो स्वर्गीय पिता अपने मांगने वालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा'' (लूका ११:१३)
तो इसलिये लगातार प्रार्थना रत रहने से परमेश्वर आप के ''मित्रों'' को पवित्र आत्मा देगा जिन्हें पवित्र आत्मा की आवश्यकता हैं। जोन आर राईस ने कहा यह उन मसीही लोगों पर सही बैठता है जो आत्मायें जीतने के लिये पवित्र आत्मा मांगते हैं। (प्रेयर: आस्किंग ऐंड रिसीविंग, पेज २१२,२१३)
यही शिक्षा मत्ती ७:७−११ में भी दे रखी है। यह स्कोफील्ड बाइबल के पेज १००३ पर भी है। इसे जोर से पढिये,
''मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा ढूंढ़ो, तो तुम पाओगे खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है और जो ढूंढ़ता है, वह पाता है और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा। तुम में से ऐसा कौन मनुष्य है, कि यदि उसका पुत्र उस से रोटी मांगे, तो वह उसे पत्थर दे? वा मछली मांगे, तो उसे सांप दे? सो जब तुम बुरे होकर, अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने मांगने वालों को अच्छी वस्तुएं क्यों न देगा?'' (मत्ती ७:७−११)
आप देखेंगे कि पद ११ में अलग शब्द हैं। लूका ११ में यीशु कहते हैं, ''तो स्वर्गीय पिता अपने मांगने वालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा''? मत्ती ७: ११ में लिखा है, ''तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने मांगने वालों को अच्छी वस्तुएं क्यों न देगा?''
भविष्यदर्शी एलियाह ने प्रार्थना की थी, कि जल न बरसे और साढें तीन साल तक जल नहीं बरसा। परमेश्वर ने उसके मन में यह बोध दिया था। और जब उसने प्रार्थना की तो परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना का उत्तर वर्षा को रोककर दिया। कभी कभी परमेश्वर शीघ्र उत्तर देता है। तो कभी समय से पहले उत्तर नहीं देता।
मुझे वह रात अच्छी तरह से याद है जब परमेश्वर ने मेरी प्रार्थना का उत्तर जल्दी दिया था। मैं तब बारह साल का था। मैं अपने चाचा चाची के साथ रहने के लिये टोपेंगा केन्येन भेजा गया। कुछ महिने मुझे वहां स्कूल में पढना था − हाई स्कूल पूरा करने तक मैं बाईस स्कूलों में पढ चुका था। इसलिये पहली बार कालेज में मैं अनुत्तीर्ण कर दिया गया। जब आप बाईस स्कूलों में फिर चुके हों तो आप कुछ ज्यादा कुछ नहीं सीख पाते। मैंने पूरे अक्षरों में लिखना सीखा। मैंने जोड़ना घटाना सीखा। बस यही सब कुछ था। पर इससे भी बढ़कर मैं टोपेंगा केन्येन में अपनी चाची के साथ रहता था जो मदिरा के नशे में रहती थी। एक रात मेरा चचेरा भाई और उसके मित्र मदिरा पान कर रहे थे। देखा जाये तो वे बहुत धुत्त थे। उन्होंने मुझसे कहा, ''राबर्ट, आओ कार में बैठ जाओ हम घूमने जायेंगे।'' मैं जाना तो नहीं चाहता था। पर मैं मात्र बारह ही साल का था और उनका विरोध भी नहीं कर सका उन्होंने मुझे खींचा और कार में पीछे पटक दिया। यह मेरे चाचा की १९४० की फोर्ड कूपे कार थी। इसमें केवल आगे की सीट थी। उन्होंने मुझे आगे की सीट के पीछे संकरे बने स्थान में पटक दिया। फिर वे बीयर और व्हिस्की निकालकर पीने लगे। अब वे समुद्र तट की ओर अनियंत्रित होकर जाने लगे। अगर आप पहले कभी उस मार्ग पर गये हो तो रास्ता जाना पहचाना हो सकता है उपर से वह सड़क घुमावदार थी। वे नशे मे बहुत धुत्त थे और मेरा चचेरा भाई साठ मील प्रतिघंटा की दर से पर्वत की ढलान पर गाड़ी चला रहा था। वहां २५ मील प्रतिघंटा का गति निर्धारण का बोर्ड लगा हुआ था। वह ६५ या ७० पर जा रहा था। मरते दम तक मैं यह घटना भूल नहीं सकता। आज भी वह घटना याद आने पर मैं सिहर उठता हूं। मैं पीछे सिर झुकाये केवल प्रभु की प्रार्थना कर रहा था − जिसमें मैं इन शब्दों पर जोर दे रहा था, ''प्रभु मुझे बुराई से बचा।'' पहाड़ खत्म होते ही मैं बाहर निकल कर अंधेरे में कांपता खड़ा हो गया। मैं जानता था कि केवल परमेश्वर ने हमें बचाया था। उस सड़क पर बहुत दुर्घनायें होती थी। मैंने कारों को लुढ़कते और उनमें से आग की लपटों को निकलते देखा था। परमेश्वर ने प्रार्थना का उत्तर हमें बचाने के द्वारा दिया। मैं कल भी इसे जानता था और आज छियासी साल बाद भी इसे जानता हूं! कई बार परमेश्वर छोटी सी कही गयी प्रार्थना का उत्तर देते हैं।
पर कई बार हमें प्रार्थना का उत्तर आने से पहले लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है। सत्रह साल की उम्र में मैंने एक्टिंग करने का विचार त्याग सेवकाई की तरफ बढ़ने का मन बनाया। यह कोई भावुकता भरा निर्णय नहीं था। मुझे याद नहीं आता कि मैंने प्रचार के लिये कोई ''बुलाहट'' की आवाज सुनी थी। शायद किसी ने कहा हो पर मुझे याद नहीं आता। कई लोग कहते हैं कि उन्होंने प्रचार के लिये स्वयं को ''समर्पित'' किया। पास्टर्स अक्सर बहुत संघर्ष की बात करते हैं और तब जाकर अपने जीवन को ''समर्पित'' करने की बात करते हैं। पर मैं ऐसे किसी संघर्ष से नहीं गुजरा। मैंने तो सिर्फ यह सोचा कि एक्टिंग मूर्खता और निरर्थक है, और मैंने अपने आप को प्रचार के लिये समर्पित कर दिया चाहे जो हो! मैंने अपने आप को परमेश्वर की इच्छा के आगे समर्पित कर दिया। जो मुझे चायनीज चर्च लेकर गया, जहां मैं एक मिशनरी बना। मैंने जेम्स हडसन टेलर की जीवनी पढ़ी जो चीन के महान मिशनरी थे और मैं जानता हूं कि वह अनुसरण करने के लिये मेरे आदर्श थे।
इसलिये मैं चायनीज चर्च गया और जो भी कार्य करने को मिला उसमें अपने आप को झोक दिया। यहां तक कि मैंने चर्च के माली और चौकीदार का भी काम किया, फर्श का पोंछा लगाया, कुर्सियां जमाई, जो भी काम कर सकता था सब किया। उस समय मैं मूडी प्रेस द्वारा छापे गये जौन वेस्ली के जर्नल पढ़ा करता था। मैं उसे पूरा पढ़ता था जैसे बाइबल पढ़ता था। मुझे उस समय तो इतना पता नहीं चला पर उस जर्नल में प्रथम आत्मिक जाग्रति का चित्र छपा था। वेस्ली के जर्नल ने मेरे भीतर आत्मिक जाग्रति के बारे में गहरी रूचि भर दी। मैं बहुत छोटा और अनुभवहीन था यह समझने के लिये कि उन दिनों के १९६० के आरंभ में होने वाली जाग्रतियां आखिर होती कैसे थी। मैं इस विषय पर ज्यादा नहीं जानता था, सीधा साधा था। सिर्फ यही जानता था कि आत्मिक जाग्रति के लिये मुझे प्रार्थना करना चाहिये। इसलिये मैं चायनीज चर्च में जाग्रति आये ऐसी प्रार्थना करता। प्रति दिन यह मेरी प्रार्थना का विषय होता। हर प्रार्थना सभा में उंची आवाज से मैं यह प्रार्थना। १९६० तक मैं पूरे समय इसी प्रार्थना में लीन रहा। मैं जानता था कि आत्मिक जाग्रति आयेगी क्योंकि मैं बच्चे के समान विश्वास रखकर, प्रार्थना मांगता था। मरने के पहले कुछ समय पहले डॉ मर्फी लूम ने मुझे स्मरण दिलाया। उन्होंने कहा, ''राबर्ट, तुम उस समय आत्मिक जागरण के लिये प्रार्थना कर रहे थे जब कि कोई इस विषय पर प्रार्थना नहीं कर रहा होता था।'' फिर उन्होंने कहा, ''मैं यह मानता हूं कि तुम लगातार प्रार्थना करते रहे इसलिये यह आत्मिक जाग्रति भेजी गयी।'' लेकिन उन्होंने जब ऐसा कहा था मैं यह बात लगभग भूल चुका था।
चायनीज चर्च में ऐसा आत्मिक जागरण आये मेरे दिल पर इसका बोझ था। मैं मानता हूं कि परमेश्वर ने मेरे अंदर यह बोझ रखा। इस विषय में सोचना कभी खत्म ही नहीं हो पाता। मैंने तब तक प्रार्थना की जब तक कि परमेश्वर ने इसका उत्तर नहीं दे दिया। पुराने समय के मसीही भाई कहते थे ''लगातार प्रार्थना करते रहो।'' आग्रहपूर्वक लगातार प्रार्थना करते रहो − जब तक कि परमेश्वर उत्तर न दे और आप को वह प्राप्त न हो जाये! यीशु कहते हैं,
''सो जब तुम बुरे होकर, अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने मांगने वालों को अच्छी वस्तुएं क्यों न देगा?'' (मत्ती ७:११)
पुन: यीशु कहते हैं,
''और मैं तुम से कहता हूं कि मांगो तो तुम्हें दिया जाएगा ढूंढ़ों तो तुम पाओगे खटखटाओ तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई मांगता है उसे मिलता है और जो ढूंढ़ता है वह पाता है और जो खटखटाता है उसके लिये खोला जाएगा।'' (लूका ११:९−१०)
''मांगो'' ''खोजो'' और ''खटखटाओं'' यूनानी भाषा में वर्तमान काल में लिखे गये हैं। जिसका अर्थ है ''लगातार मांगते रहो'' ''खोजते रहो'' और ''खटखटाते रहो।'' परमेश्वर की संतान को अधिकार है........वह परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को तब तक मांगते रहे जब तक कि जो आवश्यक है.......परमेश्वर से मिल न जाये। ओह, परमेश्वर के लोगो उत्साहित होकर प्रार्थना करते रहो, करते रहो, करते रहो − हो सके कि लोग लगातार प्रार्थना करते रहें!
प्रार्थना करते रहें
लगातार प्रार्थना करते रहें,
प्रार्थना करते रहें
लगातार प्रार्थना करते रहें,
परमेश्वर की महान प्रतिज्ञायें
सदैव सच होती हैं,
प्रार्थना करते रहें
लगातार प्रार्थना करते रहें'' (जौन आर राईस, डी डी, प्रेयर: आस्किंग ऐंड रिसीविंग,
सोर्ड औफ दि लोर्ड पब्लिशर्स, १९७०, पेज २१३,२१४)
डॉ आर ए टोरे ने अपनी एक छोटी पर महान पुस्तक हाउ टू प्रे में यही बात कही है। डॉ टोरे ने कहा है,
परमेश्वर हमें हमारे पहले प्रयासों में इच्छित चीजें नहीं देता है। वह हमें पहले प्रशिक्षित करता है कि हम उत्तम चीजों को पाने के लिये बहुत मेहनत करें........ वह सदैव हमें पहली प्रार्थना के उत्तर में वह चीजें नहीं देता है। वह हमें प्रशिक्षित करता है और हमें प्रार्थना करने वाले मजबूत जन बनाना चाहता है ताकि हम अच्छी चीज पाने के लिये लौ लगाकर प्रार्थना करते रहें। वह हमसे सतत प्रार्थना करवाना चाहता है।
मै खुश हूं कि ऐसा होता है। परमेश्वर से हमें कोई उत्तर मिलने के पूर्व हम जो लंबे समय तक बार बार मांगते रहते हैं प्रार्थना में ऐसा आशीषित प्रशिक्षण हमें मिलता है। जब उनकी पहली और दूसरी प्रार्थनाओं के उत्तर परमेश्वर नहीं देता है, लोग इसे उसकी इच्छा के प्रति समर्पण कहते हैं ओर प्रार्थना करना रोक देते हैं वे यह मान जाते हैं, ''कि ठीक है शायद परमेश्वर की इच्छा नहीं है।''
ऐसे में यह समर्पण नही परंतु आत्मिक सुस्तपन है........ अगर एक मजबूत पुरूष या स्त्री पहली बार दूसरी बार या फिर सौवी बार किसी कार्य को पूरा करना चाहता है और पूरा नहीं कर पाता है तौभी वह लगातार उसे करता जाता है। प्रार्थना में मजबूत बने रहने वाला जन लगातार प्रार्थना करता जाता है जब तक कि उसे यथाचेष्ट प्राप्त न हो जाये........ जब हम किसी चीज के लिये प्रार्थना करना आरंभ करते हैं तो हमें तब तक उसे प्रारंभ रखना चाहिये जब तक वह हमें मिल न जाये (आर ए टोरे, डी डी, हाउ टू प्रे, वाइटेकर हाउस, १९८३, पेज ५०, ५१)
इसका एक दूसरा पहलू और है। अगर आप का दिल परमेश्वर के साथ सही नहीं है तो आप को प्रार्थना का उत्तर नहीं मिलेगा। मैं जनवरी के शुरू में अपने परिवार को मैक्सिकों के केनकुन में अपने परिवार को छुटिटयों के लिये ले गया। एक दिन जब वे मयान के अवशेष देखने गये हुये थे मैं अकेला रूक गया था। मैंने इल औफ लेविस में हुई १९४९ से १९५२ तक की आत्मिक जाग्रति के बारे में सुना था । मैंने प्रार्थना की और एक संदेश लिखा। जब हम वापस लौटे मैंने कहा कि हम प्रति रात्रि सुसमाचारिय सभायें करेंगे। आप जानते हैं परमेश्वर की उपस्थिति उन सभाओं में थी। उन सभाओं में डॉ कैगन अपनी ८९ बरस की मां को मसीह यीशु के पास लाने में सफल हुये। यह आश्चर्यजनक बात थी क्योंकि वह कई बरसों से एक नास्तिक महिला रही हैं। तब उसके बाद डॉ कैगन की ८६ वर्षीय सास − का मन परिवर्तन हुआ। आंकड़े कहते हैं कि परिवर्तन सत्तर साल से उपर के व्यक्तियों में कम होता है। जबकि, कुछ ही दिनों में, यहां अस्सी से उपर दो महिलाओं ने उद्वार प्राप्त किया। याद रखने लायक बात है! उसके बाद एक के बाद एक ११ लोगों ने उद्वार प्राप्त किया। कुछ दिनों के बाद एक और आशातीत परिवर्तन का दौर चला। चौदह लोग कुछ ही दिनों में बचाये गये।
फिर मैंने रोमियों १२:१ और २ पढ़ा जो उन लोगों पर लागू होता है जिन्होंने बरसों पहले इस चर्च में उद्वार प्राप्त किया था।
''इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं कि अपने शरीरों को जीवित और पवित्र और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ, यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। और इस संसार के सदृश न बनो, परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चालचलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली और भावती और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो'' (रोमियों १२:१, २)
जब आप लंबे समय से प्रचार कर रहे होते हैं तो आप चर्च के लोगों का रूझान समझने लग जाते हैं। मुझे बहुत अच्छा रूझान नहीं मिला। मैं देखता हूं कि जवान लोग अपने जबड़े भींचे हुये फर्श को ताकते रहते हैं। हां मुझे महसूस होता है कि उनके मन में मसीह की ऐसी अवज्ञा और इंकार है कि जैसे वे कभी भी मसीह के सामने समर्पण नहीं करेंगे। मेरे हृदय में उनके कारण ठंडी सिहरन दौड़ जाती है। ऐसा लगता है कि उन्हें फिर से परिवर्तित होने की आवश्यकता है। यह तब होता है जब लोग अपने मन में मसीह के स्थान पर संसार की अन्य बातों को स्थान देने लगते हैं। उनका मन इतना निष्ठुर प्रतीत होता है जैसे उद्वार पाने के पहले कठोर था। ऐसों के मन का पुन: टूटना और मसीह के प्रति समर्पण आवश्यक है।
बागीपन उन लोगों के मन में सिर उठाता है जो मसीह के सामने लगातार समर्पण करने से बचते हैं। मसीह ने कहा ''प्रतिदिन अपना क्रूस उठा और मेरे पीछे हो ले'' इसलिये प्रतिदिन समर्पण करना आवश्यक है अन्यथा मन हठी और जिददी हो जायेगा । यह सोच गलत है, ''कि मेरा उद्वार हो चुका है अब मुझे मेरे जीवन को मसीह को समर्पित करना जरूरी नहीं है।'' यह सोच पौलुस की सोच से कितनी अलग हैं जो कहता है, ''इसलिये हे भाइयों, अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र........और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए'' जिस से तुम ''परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो'' (रोमियों १२:१, २)
जो हृदय ''जीवित बलिदान'' के रूप में मसीह के लिये समर्पित नहीं है वह एक विभक्त हृदय होता है। बाइबल कहती है, ''ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा'' (याकूब १:७) । यीशु कहते हैं, '' उनका कथन सभी लोगों के लिये है, यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप से इन्कार करे और प्रति दिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले।'' (लूका ९:२३) । यीशु अपने आप का इंकार करने के लिये कह रहे हैं। अपनी पहचान खो देने के लिये कह रहे हैं। अपने सम्मान के प्रति अधिक जागरूक रहने से बचिये। वह उनका अनुसरण करने के लिये आप को बुला रहे हैं। सचमुच मैंने अपने जीवन में कितनी बार उद्वार का आनंद खोया है सिर्फ इसलिये कि मैं अपने आप से से उपर नहीं उठ पाया! पर यीशु का आनंद मेरे सामने आता गया, जब समय समय पर मैं यीशु के सामने स्वयं को अर्पित करता गया! मैं आज रात यही प्रार्थना करता हूं कि आप भी ऐसा ही करें। मुझे मि. ग्रिफिथ का यह गीत लगभग जीवन भर पसंद रहा है। एक अकेले, परेशान किशोर के, समान मेरा मन भर आता है जब भी मैं इसके शब्दों को गाता हूं,
मैं उसके अनुग्रह का ऋणी हूं
प्रतिदिन मैं विवश किया जाता हूं!
आप की भलाई मेरे दिल को बांध लेवे,
मेरे भटकते हृदय पर बेड़ियां डाल ले।
मेरा दिल, भटकने को आतुर होता है,
जिस प्रभु से प्रेम रखता हूं उसे छोड़ना चाहता हूं;
यह मेरा दिल है, उसे लेकर अपनी मुहर लगा लीजिये;
आप के स्वर्गिक मार्गो के लिये मुहर लगा लेंवे।
(''कम दाउ फाउंट'' राबर्ट राबिनसन, १७३५−१७९०)
क्या आप में से कुछ आज रात यहां ऐसे हैं जो स्वयं का इंकार − करने का विचार करते हैं और यीशु का अनुसरण करने का सोचते हैं? क्या आप में से कुछ ऐसे हैं जो सोचते हैं कि ''आप अपने शरीरों को'' प्रभु को ''जीवित बलिदान'' के रूप में चढ़ायेंगे? अगर आप ऐसा महसूस कर रहे हैं तो मैं आप से कहूंगा कि आप इसी समय अपनी सीट छोड़कर आडिटोरियम में सामने आकर घुटने के बल बैठ जायें। आइये और अपने आप को जीवित बलिदान के रूप में अर्पित कीजिये क्योंकि यीशु ने आप को बचाने के लिये अपने प्राण क्रूस पर दिये। आप के मन या जीवन में कोई भी पाप या विद्रोह हो तो उसे मान लीजिये। आकर यीशु से क्षमा मांगिये और उसकी आज्ञा मानने के लिये अपने को नया बनाइये। जब हम खड़े होते हैं तब आप यहां आगे आकर घुटने टेकिये और प्रार्थना कीजिये। जब मि. ग्रिफिथ मद्विम स्वर में गीत गाते हैं तब आप आ सकते हैं,
हर आशीष के बहते सोते आइये,
मेरे मन को आपका अनुग्रह गाने के लिये स्वर दें;
दया की धारायें, कभी कम नहीं होती,
उंची आवाज में प्रशंसा के गीत गाइये।
मुझे कुछ मधुर गाथा सुनाइये,
प्रजवल्लित जीभें जो गीत गाती हों;
प्रशंसा करता हूं − मेरी निगाहें केंद्रित हैं उस पर−
जो छुटकारा देने वाला प्रेम रूपी पर्वत है।
सहायता पाने के लिये अपने पत्थर को उठाता हूं,
आप की सहायता से मैं आता हूं;
आशा है मेरी, आप के मधुर आनंद से,
सुरक्षित घर अवश्य पहुंचुंगा।
यीशु ने मुझे खोजा जब मैं अजनबी ही था,
परमेश्वर के आश्रय से दूर भटक रहा था;
उसने मुझे खतरे से बचाने के लिये,
अपने कीमती लहू से मेरा उद्वार किया।
मैं उसके अनुग्रह का ऋणी हूं
प्रतिदिन मैं विवश किया जाता हूं!
आप की भलाई मेरे दिल को बांध लेवे,
मेरे भटकते हृदय पर बेड़ियां डाल ले।
मेरा दिल, भटकने को आतुर होता है,
जिस प्रभु से प्रेम रखता हूं उसे छोड़ना चाहता हूं;
यहां मेरा दिल है, उसे लेकर अपनी मुहर लगा लीजिये;
आप के स्वर्गिक मार्गो के लिये मुहर लगा लेंवे।
अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।
(संदेश का अंत)
आप डॉ.हिमर्स के संदेश इंटरनेट पर प्रति सप्ताह पढ सकते हैं
www.sermonsfortheworld.com पर
''पांडुलिपि संदेशों'' पर क्लिक कीजिये।
आप डॉ0हिमर्स को अंग्रेजी में ई-मेल भी भेज सकते हैं - rlhymersjr@sbcglobal.net
अथवा आप उन्हें इस पते पर पत्र डाल सकते हैं पी. ओ.बॉक्स 15308,लॉस ऐंजेल्स,केलीफोर्निया 90015
या उन्हें दूरभाष कर सकते हैं (818)352-0452
पांडुलिपि संदेशों का कॉपीराईट नहीं है। आप उन्हें बिना डॉ. हिमर्स की अनुमति के भी उपयोग में ला सकते हैं। यद्यपि डॉ. हिमर्स के सारे विडियो संदेश का कॉपीराईट है और उन्हें अनुमति से उपयोग में ला सकते हैं।
संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा धर्मशास्त्र पढ़ा गया: याकूब ४:१−१०
संदेश के पूर्व बैंजमिन किंकेड ग्रिफिथ ने एकल गान गाया गया:
''कम दाउ फाउंट'' (राबर्ट राबिनसन, १७३५−१७९०)