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यीशु द्वारा क्रूस पर कहे
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यीशु की शारीरिक पीडा बहुत कष्टकारी थी। यह कोडे मारने से प्रारंभ हुई थी जिससे चमडी छिल कर गहरे घाव बन जाते थे। कई लोग तो ऐसे कोडे खाते खाते ही मर जाते थे। फिर, उन्होंने कांटो का ताज उनके सिर पर पहना दिया। उनकी कटपटी में गहरी सुईयां मानो गड गयी और पूरा चेहरा रक्तरंजित हो गया। उन्होंने उनके चेहरे पर थप्पड मारे, मुंह पर थूका, अपने हाथों से उनकी दाडी के बाल उखाडे । फिर उन्होंने उनके उपर क्रूस लाद दिया कि यरूशलेम की गलियों में से लेकर चले और कलवरी पर जहां उन्हें क्रूस पर चढाया जाना था, वहां पहुंचे। अंतत उनके हाथों में जहां कलाई और हथेली का जोड होता है और पैरों में कीलें ठोक दी गयीं। इस तरह कीलों से ठोककर उन्हें क्रूस पर चढाया गया। बाइबल का वचन है,
''जैसे बहुत से लोग उसे देखकर चकित हुए (क्योंकि उसका रूप) यहां तक (बिगड़ा) हुआ था कि मनुष्या का सा न जान पड़ता था और (उसकी सुन्दरता भी आदमियों की सी न रह गई थी)'' (यशायाह ५२:१४)
हम हालीवुड के कलाकारों को यीशु के उपर बनने वाली पिक्चर्स में देखते हैं। ये मोशन पिक्चर्स कभी भी संपूर्ण रूप में क्रूसीकरण की कठोर भयावहता और अपरिष्कृत निर्दयता का वर्णन नहीं करतीं। यीशु ने यथार्थ में जो दुख क्रूस पर उठाया फिल्म में दर्शाये गये दृश्य उसकी तुलना में कुछ नहीं हैं। यहां तक कि ''पैशन आफ क्राईस्ट'' भी उतना वर्णन नहीं करती। वास्तव में बहुत ही भयावह घटना यथार्थ में घटी थी।
उनके सिर की त्वचा पर दरारें पड गई थी। रक्त की धारा उनके चेहरे और गर्दन को डूबों रही थी। उनकी आंखे फूलकर बंद हुये जा रही थीं। शायद उनकी नाक और उनके गाल की हडडी भी टूट चुकी होगी। उनके होंठ फट चुके थे और उनसे रक्त बहा जा रहा था। उन्हें पहचानना नितांत असंभव हो रहा था।
यद्यपि इस दुख उठाने वाले सेवक के लिये भविष्यवक्ता यशायाह ने बिल्कुल यही दशा पहले ही बखान कर दी थी, ''उसका रूप यहां तक बिगड़ा हुआ था कि मनुष्यों का सा न जान पड़ता था और उसकी सुन्दरता भी आदमियों की सी न रह गई थी'' (यशायाह ५२:१४) भविष्यवक्ता ने यह भी भविष्यवाणी की थी कि उसका उपहास उडाया जायेगा और उसके मुंह पर थूका जायेगा: ''मैं ने मारने वालों को अपनी पीठ और गलमोछ नोचने वालों की ओर अपने गाल किए: अपमानित होने और थूकने से मैं ने मुंह न छिपाया'' (यशायाह ५०:६)
यह वर्णन हमें क्रूस पर ले चलता है। यीशु क्रूस पर चढे हुये हैं लहूलुहान हो रहे हैं। जब वह क्रूस पर चढे हुये हैं उस समय वह सात छोटे वचन उच्चारित करते हैं। मैं चाहता हूं कि हम यीशु द्वारा उच्चारित उन सात वचनों पर ध्यान करें।
१. पहला वचन है − क्षमा।
''जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुंचे, तो उन्होंने वहां उसे और उन कुकिर्मयों को भी एक को दाहिनी और और दूसरे को बाईं और क्रूसों पर चढ़ाया। तब यीशु ने कहा: हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहें हैं '' (लूका २३:३३−३४)
यह वह कारण है जिसके लिये यीशु क्रूस पर चढे − ताकि हमारे पापों को क्षमा करें। यरूशलेम आने के बहुत समय पहले यीशु जानते थे कि वह मारे जायेंगे। नया नियम हमें यह शिक्षा देता है कि यीशु ने एक अभिप्राय से स्वयं को क्रूस पर चढाये जाने के लिये दे दिया ताकि आप के पापों का दंड भर सकें।
''इसलिये कि मसीह ने भी, अर्थात अधमिर्यों के लिये धर्मी ने पापों के कारण एक बार दुख उठाया, ताकि हमें परमेश्वर के पास पहुंचाए'' (१पतरस ३:१८)
''पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया।'' (१कुरूंथियों१५:३)
जैसे ही वह क्रूस पर चढें, यीशु ने प्रार्थना की, ''पिता उन्हें क्षमा कर।'' प्रत्येक व्यक्ति जो यीशु पर पूर्ण विश्वास रखता है उसे पूर्ण क्षमा प्राप्त हुई। क्रूस पर उनका प्राण देना आप के पापों का दंड भरना है। उनका रक्त आप के पापों को धो देता है।
२. दूसरा वचन है − उद्वार।
यीशु के दोनों ओर दो चोर क्रूस पर चढाये गये थे।
''जो कुकर्मी (अपराधी) लटकाए गए थे, उन में से एक ने उस की निन्दा करके कहा; क्या तू मसीह नहीं तो फिर अपने आप को और हमें बचा। इस पर दूसरे ने उसे डांटकर कहा, क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरताॽ तू भी तो वही दण्ड पा रहा है। और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इस ने कोई अनुचित काम नहीं किया। तब उस ने कहा; हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना। उस ने उस से कहा, मैं तुझ से सच कहता हूं; कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा'' (लूका २३:३९−४३)
दूसरे चोर का परिवर्तन बहुत स्पष्ट है। यह निम्नलिखित बातें बताता है।
१. चर्च सदस्यता या बपतिस्मा लेने से उद्वार नहीं हो जाता − चोर के पास इनमें से कुछ नहीं था।
२. उद्वार अच्छी भावना रखने से नहीं मिलता − चोर की भावनायें बुरी थी − उसे इसके दंड हेतु क्रूस पर चढाया गया था लेकिन उसे अपने पाप का बोध हुआ था।
३. उद्वार चर्च में आगे जाने या हाथ खडा करने से नहीं मिलता − चोर के तो हाथ और पैर तो क्रूस पर कीलों से जडे थे।
४. उद्वार ''यीशु को अपने दिल में बुलाने से'' नहीं मिल जाता अगर चोर को ऐसा करने को किसी ने कहा होता तो वह तो अचंभित रह जाता!
५. उद्वार ''पापियों की प्रार्थना'' दोहराने से नहीं मिल जाता चोर ने ऐसी प्रार्थना नहीं की थी उसने यीशु से केवल उसे स्मरण रखने को कहा था।
६. उद्वार जीवन शैली बदल लेने से नहीं मिल जाता चोर के पास ऐसा करने के लिये समय नहीं था।
जैसे चोर बचाया गया वैसे ही आप का बचाया जाना आवश्यक है:
''उन्होंने कहा, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा'' (प्रेरितों १६:३१)
अपने पूरे मन से यीशु पर विश्वास रखिये और वह आप को अपने रक्त और धार्मिकता के द्वारा आप के पापों से मुक्ति देंगे जैसे क्रूसित चोर ने उन पर विश्वास किया था।
३. तीसरा वचन है − प्रेम।
''परन्तु यीशु के क्रूस के पास उस की माता और उस की माता की बहिन मरियम, क्लोपास की पत्नी और मरियम मगदलीनी खड़ी थी। यीशु ने अपनी माता और उस चेले को जिस से वह प्रेम रखता था, पास खड़े देखकर अपनी माता से कहा: हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है। तब उस चेले से कहा, यह तेरी माता है, और उसी समय से वह चेला, उसे अपने घर ले गया'' (यूहन्ना १९:२५−२७)
यीशु ने यूहन्ना को अपनी माता का ध्यान रखने के लिये कहा। जब आप उद्वार प्राप्त कर लेते हैं तो मसीही जीवन में करने के लिये बहुत कुछ होता है। आप का भी ध्यान रखे जाने की आवश्यकता होती है। यीशु ने अपने शिष्य को प्रिय माता की देखभाल के लिये ठहराया था। वह आप को भी स्थानीय चर्च की देखरेख में सौंपते हैं। स्थानीय चर्च की देखभाल और प्रेम के बिना मसीही जीवन संभव नहीं है। यह वह सत्य है जो वर्तमान में भुला दिया गया है।
''और जो उद्धार पाते थे, उन को प्रभु प्रति दिन कलीसिया में यरूशलेम में मिला देता था'' (प्रेरितों २:४७)
४. चौथा वचन है − क्रोध।
''दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अन्धेरा छाया रहा। तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, एली, एली, लमा शबक्तनी अर्थात हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?'' (मत्ती २७:४५−४६)
यीशु की यह वेदना भरी पुकार, त्रिएक परमेश्वर की सत्यता को प्रगट करती है। जब आप के पाप परमेश्वर पुत्र ने अपने उपर ले लिये, तो वह भी पापी कहलाये और परमेश्वर पिता ने उनसे मुख मोड लिया। बाइबल का कथन है:
''क्योंकि परमेश्वर एक ही है और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है अर्थात मसीह यीशु जो मनुष्य है'' (१तीमुथियुस २:५)
५. पांचवा वचन है − दुख उठाना।
''इस के बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका; इसलिये कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो कहा, मैं प्यासा हूं। वहां एक सिरके से भरा हुआ बर्तन धरा था, सो उन्होंने सिरके में भिगोए हुए इस्पंज को जूफे पर रखकर उसके मुंह से लगाया'' (यूहन्ना १९:२८−२९)
यह पद यीशु के उस महान कष्ट का स्मरण दिलाता है जो यीशु ने हमारे पापों का दंड के लिये सहा:
''वह हमारे ही अपराधो के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कुचला गया'' (यशायाह ५३:५)
६. छटवां वचन है − प्रायश्चित।
''जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा पूरा हुआ और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिए'' (यूहन्ना १९:३०)
मैंने जितना भी कहा वह एक कैथोलिक प्रचारक भी कह सकता था। किंतु छटवे वचन पर प्रोटेंस्टैंट पुर्नजागरण, और बैपटिस्ट विश्वास सदियों से टिका हुआ है। यीशु ने उच्चारित किया, ''पूरा हुआ।''
क्या यीशु ''पूरा हुआ'' उच्चारित करते समय सही थे? कैथोलिक चर्च कहता है, ''नहीं।'' उनके विश्वास के अनुसार हर परमप्रसाद वितरण के समय यीशु का नूतन रूप में क्रूस पर चढना और अपना बलिदान देना आवश्यक है। किंतु बाइबल इस विश्वास को गलत ठहराती है क्योंकि लिखा है।
''उसी इच्छा से हम यीशु मसीह की देह के एक ही बार बलिदान चढ़ाए जाने के द्वारा पवित्र किए गए हैं'' (इब्रानियों १०:१०)
''क्योंकि उस ने एक ही चढ़ावे के द्वारा उन्हें जो पवित्र किए जाते हैं सर्वदा के लिये सिद्ध कर दिया है'' (इब्रानियों १०:१४)
''और हर एक याजक तो खड़े होकर प्रति दिन सेवा करता है और एक ही प्रकार के बलिदान को जो पापों को कभी भी दूर नहीं कर सकते बार बार चढ़ाता है। पर यह व्यक्ति तो पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ा कर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा'' (इब्रानियों १०:११−१२)
यीशु ने एक ही बार में, अपने प्राण देने के द्वारा हमारे पापों के लिये समस्त बलिदान चढा दिया।
यीशु ने सब चुका दिया,
जो मेरा सारा दंड था भर दिया;
पाप ने छोडा था एक गहरा दाग,
उसे बर्फ जैसा श्वेत बना दिया।
(''यीशु ने सब चुका दिया'' एल्वीना एम हाल, १८२०−१८८९ )
७. सांतवा वचन − परमेश्वर से प्रतिबद्वता।
''और यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा; हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूं: और यह कहकर प्राण छोड़ दिए'' (लूका २३:४६)
प्राण त्यागने से पहले यीशु ने अपने अंतिम वचन में परमेश्वर पिता के प्रति अपनी प्रतिबद्वता प्रगट की। जैसा स्पर्जन ने बताया कि यीशु द्वारा कहे गये ये वचन उनके पहले कहे गये शब्दों पर प्रकाश डालते हैं, ''क्या नहीं (जानते) कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्य है?'' (लूका २:४९) प्रारंभ से अंत तक, यीशु ने परमेश्वर की इच्छा पूर्ण की।
एक बहुत कठोर शतपति जिसने उनकी कलाई में कीलें ठोकी थी वह उनके सात वचन सुन रहा था। उसने अनेकों लोगों को क्रूस पर चढाया होगा किंतु उसने मरने से पहले किसी को इस तरह रक्तरंजित और असहनीय कष्ट में भी अदभुत वचन कहकर मरते हुये नहीं देखा ।
''सूबेदार ने, जो कुछ हुआ था देखकर, परमेश्वर की बड़ाई की, और कहा; निश्चय यह मनुष्य धर्मी था'' (लूका २३:४७)
उस शतपति ने यीशु के विषय में थोडा विचार किया, और बोला,
''सचमुच यह मनुष्य, परमेश्वर का पुत्र था'' (मरकुस१५:३९)
वह परमेश्वर के पुत्र है! वह जीवित हुये हैं − शरीर से जीवित हुये हैं − मरके जी उठे हैं। वह स्वर्ग में चढाये गये हैं। वह परमेश्वर के सीधे हाथ विराजमान हैं। ''प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा'' (प्रेरितों १६:३१)
ऐसे भी कुछ लोग हैं जो सोचते हैं कि केवल परमेश्वर पर विश्वास रखना पर्याप्त है। पर वे गलत सोचते हैं। परमेश्वर पर विश्वास रखने से किसी का उद्वार नहीं हुआ है। यीशु ने कहा है, ''बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता'' (यूहन्ना १४:६) डा ए डबल्यू टोजर का कथन है, ''मसीह परमेश्वर तक पहुंचने के अनेक तरीकों में से एक तरीका नहीं है; न वह कई तरीकों में से एक उत्तम तरीका हैं; किंतु मसीह ही एकमात्र तरीका है जिससे परमेश्वर तक पहुंचा जा सकता है (दैट इनक्रेडिबल क्रिश्चियन, पेज १३५) अगर आप यीशु पर विश्वास नहीं रखते हैं तो आप भटके हुये ही हैं भले ही आप कितने अच्छे क्यों न हों, कितनी ही बार आप चर्च क्यों न जाते हो या बाइबल पढते हैं अगर आप ने यीशु पर विश्वास नहीं किया है आप भटके हुये ही कहलायेंगे। ''बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता'' एकमात्र यीशु ही अपने रक्त से आप के पापों से शुद्व कर सकते हैं। आमीन।
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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा धर्मशास्त्र पढ़ा गया: मरकुस १५:२४−३४
संदेश के पूर्व बैंजमिन किंकेड ग्रिफिथ ने एकल गान गाया गया:
''धन्य मुक्तिदाता'' (एविस बर्जसन क्रिश्चियनसन, १८९५−१९८५)
रूपरेखा यीशु द्वारा क्रूस पर कहे THE SEVEN LAST WORDS डॉ आर एल हिमर्स ''जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुंचे, तो उन्होंने वहां उसे और उन कुकिर्मयों को भी एक को दाहिनी और और दूसरे को बाईं और क्रूसों पर चढ़ाया'' (लूका २३:३३) (यशायाह ५२:१४; ५०:६) १. पहला वचन है − क्षमा, लूका २३:३३−३४; १ पतरस ३:१८; १ कुरूंथियों १५:३ २. दूसरा वचन है − उद्वार, लूका २३:३९−४३; प्रेरितों १६:३१ ३. तीसरा वचन है − प्रेम, यूहन्ना १९:२५−२७; प्रेरितों २:४७ ४. चौथा वचन है − क्रोध, मत्ती २७:४५−४६; १ तीमुथियुस २:५ ५. पांचवा वचन है − दुख उठाना, यूहन्ना १९:२८−२९; यशायाह ५३:५ ६. छटवां वचन है − प्रायश्चित, यूहन्ना १९:३०; इब्रानियों १०:१०;
७. सांतवा वचन − परमेश्वर से प्रतिबद्वता, लूका २३:४६; लूका २:४९; २३:४७;
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