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रक्तिम पसीनाTHE BLOODY SWEAT डॉ आर एल हिमर्स रविवार की सुबह, ६ मार्च, २०१६ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल ''और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा: और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था'' (लूका २२:४४) |
यह संदेश सी एच स्पर्जन के दो महान संदेशों ''दि एगोनी इन दि गार्डन'' (अक्टोबर १८,१८७४) और ''गैतसेमनी'' (फरवरी ८, १८६३) पर आधारित है। मैं आप को प्रचार के राजकुमार कहलाने वाले स्पर्जन द्वारा रचित इन दो कलात्मक संदेशों का सारांश दूंगा। मैंने इन संदेशों को आधुनिक युग के कम साक्षर दिमाग के लिये सरल बना दिया है। ये विचार महान संदेशों में से निकले हुये हैं और मैं इस आशा से इन्हें आप के सामने प्रस्तुत कर रहा हूं कि स्पर्जन ने जिस प्रकार गैतसेमनी में मसीह का वर्णन किया है वह वर्णन आप की आत्मा को झकझोर देगा और आप के अनंतकालीन भाग्य को बदल कर रख देगा। यीशु ने फसह का भोज खाया और अपने शिष्यों के साथ प्रभु भोज ग्रहण किया। फिर वे उनके साथ गैतसेमनी के बगीचे की ओर प्रस्थान कर गये। यीशु ने क्यों अपनी इस घोर पीडा के लिये बगीचे को चुना? क्या इसलिये कि आदम द्वारा बगीचे में, अदन के बगीचे में किये गये पाप ने हमें बर्बाद किया था और यीशु जो अंतिम आदम थे उस पाप से हमें विमुक्त करवाने का आरंभ बगीचे से ही करना चाहते थे?
मसीह अक्सर गैतसेमनी में प्रार्थना करने आया करते थे। यह वह जगह थी जहां वह इसके पहले अनेक बार गये थे। यीशु हमें यह दिखाना चाहते थे कि हमारे पाप ने उनकी हर चीज को दुख में बदल दिया। यह वह बगीचा था जहां उन्होंने आनंदपूर्वक बहुत समय भी बिताया था। लेकिन अब इसी जगह उन्हें सवार्धिक दुख भी उठाना था। गैतसेमनी उन्होंने इसलिये भी चुना था कि यह स्थान उन्हें उनके पूर्व प्रार्थना करने के स्थान का स्मरण दिलाता हो। यह वह स्थान था जहां परमेश्वर ने अक्सर उनकी प्रार्थना के उत्तर दिये थे। अब जब वह गहन पीडा के क्षणों में प्रवेश करने वाले थे वह चाहते थे कि उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर उन्हें मिले।
शायद मुख्य कारण यही था कि वह यहां जाने की आदत में थे और हर कोई यह बात जानता था। शिष्य यूहन्ना हमें बताते हैं, ''यहूदा जिसने धोखा दिया था वह भी यह बात जानता था क्योंकि यीशु अक्सर अपने शिष्यों के साथ वहां आया करते थे'' (यूहन्ना १८:२) यीशु जानबूझकर उस स्थान पर गये जहां वह जानते थे कि उन्हें आसानी से पकडा जा सकता था। जब उनको धोखा दिये जाने का समय आया वह ''स्वयं वध होने वाले मेम्ने'' के समान प्रस्तुत हो गये (यशायाह ५३:७) । वह महायाजकों के सैनिकों से छिपे नहीं। उन्हें चोरों के समान खोजने या जासूस की मदद से खोजने की आवश्यकता नहीं हुई। यीशु स्वयं अपनी इच्छा से उस स्थान पर गये जहां उनको धोखा देने वाला व्यक्ति, शत्रु पक्ष के हाथ उन्हें पकडवाने आने वाला था।
अब हम गैतसेमनी के बगीचे में प्रवेश करते हैं। आज की रात यह कितना भयावह लग रहा था। निश्चित हम भी याकूब के समान यह कह सकते हैं, ''यह स्थान क्या ही भयानक है!'' (उत्पत्ति २८:१७) गैतसेमनी पर मनन करते हुये, हम मसीह की पीडा के बारे में विचार करेंगे और मैं बगीचे में उनके दुख से संबंधित तीन प्रश्नों के उत्तर देने की चेष्टा करूंगा।
१. गैतसेमनी में मसीह के दुख और पीडा का क्या कारण था?
धर्मशास्त्र हमें बताते हैं ''वह दु:खी पुरूष था, रोग से उसकी जान पहिचान थी'' (यशायाह ५३:३) । परंतु यीशु का व्यक्त्वि हताश कर देने वाला नहीं था। उनके अंदर अपार शांति व्याप्त थी कि वह कहते थे ''अपनी शान्ति मैं तुम्हें देता हूं'' (यूहन्ना १४:२७) । मैं सोचता हूं कि मैं गलत नहीं कह रहा हूं कि यीशु एक शांत और प्रसन्नचित्त व्यक्ति थे।
परंतु गैतसेमनी में उस रात सब बदल गया। उनकी शाति जा चुकी थी। उनका आनंद व्याकुल करने वाले दुख में बदल गया। यीशु पहाडी ढलान पर होते हुये, किद्रोन नदी को पार करते हुये, अपने चेलों से प्रफुल्ल चित्त बातचीत करते हुये गैतसेमनी की तरफ बढे चले जा रहे थे (यूहन्ना १५:१७) ।
''यीशु ये बातें कहकर अपने चेलों के साथ किद्रोन के नाले के पार गया, वहां एक बारी थी, जिस में वह और उसके चेले गए'' (यूहन्ना १८:१)
यीशु पूरे जीवनकाल में मुश्किल से ही कोई शब्द या भाव अपने दुखी होने के विषय में बोले होंगे। परंतु अब, बगीचे मे प्रवेश के साथ, सब कुछ बदल गया था। वह क्रंदन कर उठे, ''हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए'' (मत्ती २६:३९) पूरे जीवनकाल में, कोई हताशा या दुख् का भाव न प्रगट करने वाला व्यक्ति, आज यहां दारूण भाव से पुकार रहा था, रक्त की बूंदो की तरह पसीना बहा रहा था और कह रहा था, ''मेरा जी बहुत उदास है, यहां तक कि मेरे प्राण निकला चाहते'' (मत्ती २६:३८) प्रभु यीशु आज आप के साथ ऐसा क्या हुआ है जो आप इतने अधिक व्याकुल हैं?
यह तो स्पष्ट है कि यह गहन दुख और व्यथा उनके शारीरिक दर्द का परिणाम नहीं था। इसके पहले उन्होंने किसी शारीरिक समस्या का जिक्र भी नहीं किया था। वह अपने मित्र लाजर के मरने पर दुखी अवश्य हुये थे। निसंदेह उन्हें दुख महसूस हुआ था जब उनके शत्रुओं ने उन्हें मदिरा में मदहोश होने का इल्जाम लगाया और उन पर शैतान की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालने का दोष मढा। पर वह पूरे समय बहादुर बने रहे और उन सब बातों से बाहर निकल आये। यह सब बातें तो अब बीत चुकी थी। अब तो वह दर्द से भी गहरे दर्द का सामना कर रहे थे, यह दर्द निंदा या दोषारोपण के दर्द से भी बढकर था, किसी के मरने पर होने वाले विछोह के दर्द से भी बढकर था। यह ऐसा दर्द था जिसने मसीहा को ''उदास और भारी मन का'' बना दिया था (मत्ती २६:३७) ।
क्या आप को ऐसा लगता है कि यह आने वाली मौत का भय था या क्रूस पर चढाये जाने का खौफ था? अपनी आस्था के लिये अनेक शहीदों ने निर्भिकता से मौत को गले लगाया। तो ऐसा सोचना मसीह का अनादर कहलायेगा कि उनमें शहीदों से कम साहस था। हमारे स्वामी को उनके पीछे चलने के कारण मृत्यु सहने वाले शहीदों से कम आंकना तुच्छता कहलायेगी! जैसा बाइबल कहती है कि उन्होंने, ''उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्ज़ा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुख सहा.........'' (इब्रानियों १२:२) यीशु से बढकर मौत के दर्द को किसने चुनौती दी। तो बगीचे में होने वाली व्यथा का कारण मौत का भय भी नहीं था।
मैं यह भी नहीं मानता हूं, कि बगीचे में गैतसेमनी की पीडा कोई शैतान का आक्रमण था। उनकी सेवकाई के आरंभ में अवश्य जंगल में शैतान के साथ उनका प्रतिद्वन्द्व चला था। तथापि हमने कहीं नहीं पढा कि जंगल में मसीह ''गहन व्याकुल'' थे। जंगल में आयी परीक्षा के दौरान गैतसेमनी के समान व्यथित करने वाला पसीना नहीं बहा। जब वह जंगल में स्वर्गदूतों के साथ शैतान का सामना कर रहे थे तब उनका क्रंदन या आंसू नहीं निकले, और न ही वह जमीन पर विकल होकर गिरकर परमेश्वर की दुहाई दे रहे थे। यहां की तुलना में जंगल में उनका प्रतिद्वन्द् आसान था। लेकिन गैतसेमनी की पीडा ने तो उनकी आत्मा को ही घायल कर दिया था, उन्हें लगभग मार ही डाला था।
तो फिर उनकी पीडा का कारण क्या था? परमेश्वर ने हमारे कारण उनको दुख दिया। अब यीशु को पिता के हाथों से वह कटोरा लेना था। उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया। इसलिये आप यह जानकर निंश्चित हो सकते हैं कि यह शारीरिक दर्द की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण था और वह यह जिम्मेदारी लेने से कांपे नहीं। यह लोगों के उनके प्रति क्रोध से भी बढकर था − जिससे उन्होंने मुंह नहीं मोडा। यह शैतान द्वारा ली जाने वाली परीक्षा से भी बढकर था − जिस पर उन्होंने विजय प्राप्त कर ली। निश्चित ही यह कुछ कल्पना से ही बाहर भयावह बात घट रही थी, आश्चर्यजनक रूप से भयंकर बात थी − जो परमेश्वर पिता की ओर से उनके लिये भेजी गयी थी।
यह हर उस संदेह को खत्म कर देता है जो कहता है कि यह पीडा कहां से उपजी थी:
''यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया'' (यशायाह ५३:६)
अब वह उस श्राप को भोग रहे थे जो पापियों के कारण उन पर आ गया था। वह पापियों के स्थान पर खडे थे। उन सारी पीडाओं और व्याकुलता का यह रहस्य है जो मैं भी पूर्ण रूप से नहीं समझा सकता। इस कष्ट को मानवीय बुद्वि से नहीं समझा जा सकता।
सिर्फ ईश्वर और ईश्वर को,
उनके सारे दुख ज्ञात थे।
(''दाइन अननोन सफरिंग्स'' जोसेफ हार्ट, १७१२−१७६८)
परमेश्वर का मेम्ना मनुष्य जगत के पाप को अपनी देह में भोग रहा था। उन पापों का बोझ उनकी आत्मा के उपर था।
''वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिए हुए क्रूस पर चढ़ गया जिस से हम पापों के लिये मर कर के धामिर्कता के लिये जीवन बिताएं: उसी के मार खाने से तुम चंगे हुए'' (१ पतरस २:२४)
मैं विश्वास करता हूं कि हमारे सारे पाप ''उनकी देह में'' गैतसेमनी के बगीचे में रख दिये गये थे और हमारे पाप लेकर वह अगले दिन क्रूस पर चढ गए।
बगीचे में मसीह को पूर्ण रूप से यह बोध हो गया कि पापों का वाहक बनना क्या होता है। वह अब बलिदान किये जाने वाले बकरे के तुल्य हो गये थे, जिस के सिर पर इजरायल के पापों का बोझ लाद दिया जाता था, उसे तंबू से बाहर ले जाकर बलि कर दिया जाता था और फिर परमेश्वर की क्रोधाग्नि बरस कर उसे नष्ट कर देती थी। क्या अब आप महसूस करते हैं कि मसीह क्यों कांपे? परमेश्वर के सामने पापी के रूप में खडे होना कितनी भयप्रद बात थी − जैसे लूथर कहते हैं कि परमेश्वर उनमें संसार के सारे पापियों को देखते हैं। अब परमेश्वर का सारा बदला और क्रोध उन पर बरसना था। एक पापी को जो दंड मिलना था उसे अब वह सहन कर रहे थे। इस दशा में रहना मसीह के लिये बहुत भयप्रद बात थी।
उन पापों का दंड, उस बगीचे से ही उन्हें मिलना प्रारंभ हो गया। पहले तो, पाप स्वयं उनके उपर लादे गये, फिर उसका दंड उन्होंने भोगा। मनुष्यों के पाप का दंड जो परमेश्वर की ओर से मिलना था वह कोई कम दंड नहीं था। मैं यह अतिश्योक्तिपूर्ण सोचने से कभी नहीं डरता कि हमारे प्रभु ने क्या कुछ न सहन किया होगा। दर्द का जो प्याला उन्होंने पीना स्वीकार किया उसमें मानों पूरा नर्क समा गया हो।
मसीहा की आत्मा पर जो कहर टूट पडा था वह वर्णन से बाहर था। गुस्से का सैलाब उन के उपर बह निकला उनके बलिदानी मरण में जो घनीभूत पीडा वह सह रहे थे, हमारी सीमित समझ से बाहर की चीज है, इसलिये मुझे ज्यादा आगे नहीं जाना चाहिये, अन्यथा कोई मुझ पर इसे ठीक से वर्णन नहीं करने का आरोप भी लगा सकता है। पर मैं यह तो कहूंगा कि मनुष्य के पापों का जो प्रचंड छिडकाव उनके उपर हुआ, उसने मसीहा को रक्त के समकक्ष बहने वाले, पसीने में डूबोते हुये मानो बपतिस्मा दे दिया। यद्यपि वह स्वयं निष्पाप थे − लेकिन पापी के समान व्यवहार किया जाना, पापी के समान दंड पाना जाना यह मसीह की घोर पीडा का कारण था जिसके विषय में हमारे धर्मशास्त्र कहते हैं।
''और वह अत्यंत संकट में व्याकुल होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था'' (लूका २२:४४) ।
अब हम अगले प्रश्न पर आते हैं।
२. दूसरा, मसीह के इस रक्तिम पसीने का क्या अर्थ था?
ऐलीकाट बताते हैं कि रक्तिम पसीने की सच्चाई ''सामान्यत जो दृष्टिकोण हैं'' उनसे प्रगट होती है (चाल्र्स जान एलीकोट, कमेंटरी ओन दि व्होल बाइबल, वोल्यूम ६, पेज ३५१) वह यह बताते हैं कि ''यह पद ‘रक्तिम पसीना’ अरस्तु के अत्यधिक निढाल होने के लक्षण की तरह देखा गया था'' (उक्त संदर्भित) अगस्तीन के समय से लेकर वर्तमान तक के व्याख्याकार यह कहते हैं कि ''मानो'' शब्द से तात्पर्य है कि यह पूरी तरह से रक्त ही था। हम भी विश्वास करते हैं कि मसीह को रक्तिम पसीना निकला था। यद्यपि यह थोडी असाधारण बात है पर इतिहास में यह कई मौको पर लोगों के साथ घटा है। प्राचीन गलेन मेडीकल किताबों में और उसके बाद की कुछ पुस्तकों में यह दर्ज है कि लंबे समय की कमजोरी के बाद लोगों को रक्तिम पसीना निकला था।
पर मसीह के रक्तिम पसीना बहने का मामला अनूठा है। न केवल उन्हें रक्तिम पसीना बहा पर वह ''थक्के स्वरूप था'' बडी बडी बूंदों के रूप में था, भारयुक्त बूंदे थी। बीमार लोगों के पसीने में रक्त निकलता है लेकिन वह बडी बूंदों का आकार नहीं लेता है। फिर हमें यह भी बताया गया है कि रक्त के थक्के उनके कपडे में नहीं सोखे जा रहे थे पर ''जमीन पर गिर रहे थे।'' चिकित्सा के इतिहास में मसीह एकमात्र ऐसे उदाहरण के रूप में खडे हैं। वह तैंतीस साल की आयु के हैं, उनका स्वास्थ्य अच्छा है। पर पापों के बोझ के कारण पैदा हुये मानसिक दवाब ने उनकी सारी ताकत निचोड ली, इसने उनके देह में एक अस्वाभविक उत्तेजना उत्पन्न की जिससे उनके शरीर के छिद्र खुल गये और रक्त की बडी बूंदे जमीन पर गिरने लगी। यह प्रगट करता है कि उनके उपर पापों का बोझ कितना अधिक था इसने मसीही को तब तक कुचला जब तक उनकी त्वचा से रक्त नहीं बह निकला।
यह मसीह का स्वेच्छा से दुख उठाने का उदाहरण सामने रखता है कि बिना चाकू लगाये स्वत: रक्त बह निकला। चिकित्सक कहते हैं कि जब मनुष्य बहुत अधिक डर जाता है तो रक्त हृदय की ओर बहने लगता है। गाल पीले पड जाते हैं चक्कर आने लगते हैं खून अंदर जा चुका होता है। पर हमारे मसीहा को उनकी पीडा के समय देखिये। वह स्वयं को इतना भूल जाते हैं कि उनका रक्त अंदर न जाकर, बाहर जमीन पर गिरने लगता है। जमीन पर रक्त का गिरना हमें मुक्त भाव से दिये गये संपूर्ण उद्वार का चित्र प्रस्तुत करता है। चूंकि रक्त उनकी त्वचा से स्वत: बह निकला आप भी यीशु पर विश्वास रखते हुये अपने पापों से बिना कीमत चुकाये शुद्व हो सकते हैं।
''और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था'' (लूका २२:४४) ।
उनकी आत्मा में गहरी व्याकुलता छाने के कारण उनको रक्त बह निकला। हृदय में दर्द उठना सबसे बडा दर्द होता है। दुख और हताशा अंधकारपूर्ण उपहार होते हैं। जिन्होंने गहरी हताशा को जाना है वह आप को बता सकते है कि यह सच है। मत्ती के अध्याय में हमने पढा है कि वह ''उदास और व्याकुल होने लगा'' (मत्ती २६:३७) । ''व्याकुल'' − होना बहुत गहरा भाव दर्शाता है। यह बताता है कि विचारों में पूरी तरह से दुख छाया हुआ है और दूसरे किन्हीं विचारों को उसमें जगह नहीं है। एक पापवाहक के रूप में उनका मस्तिष्क अन्य सब विषयों से दूर हो चुका था। वह मानसिक द्वंद्व के विशाल सागर में डूब उतर रहे थे। ''हम ने उसे परमेश्वर का मारा-कूटा और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा'' (यशायाह ५३:४)। ''वह अपने प्राणों का दु:ख उठा कर उसे देखेगा और तृप्त होगा'' (यशायाह ५३:११)। वह भय और बैचेनी से भर गये। वह ''अति व्याकुल थे'' । विद्वान थामस गुडविन ने कहा, ''दुर्बलता शब्द आत्मा में डूबना और मूर्छा आना दर्शाता है।'' एफाफ्रोडिटस की बीमारी जो उसे मौत के करीब ले आई थी वहां उसे इसी शब्द से पुकारा था। इस शिथिलता ने पसीना उत्पन्न किया। मरते हुये व्यक्तियों को ठंडा व चिपचिपा पसीना उनके दुर्बल हो गये शरीर के कारण आता है। लेकिन यीशु को रक्तिम पसीना उनकी आत्मा के आंतरिक मरण से उत्पन्न हुआ। उनकी आत्मा पूरी रीति से कुचली जा रही थी वह मानो अंदर ही अंदर एक मौत मर रहे थे इस अपार मानसिक कष्ट ने उन्हें शिथिल कर संपूर्ण देह को रक्तिम पसीने से तर कर दिया। वह ''अत्यधिक व्याकुल'' थे।
मरकुस का सुसमाचार बताता है वह बहुत ही व्याकुल होने लगे थे (मरकुस १४:३३) । यूनानी शब्दों के अनुसार उनकी व्याकुलता ने अधिकतम सीमा तक भय उत्पन्न किया जैसे लोगों को भय उत्पन्न होने पर उनके शरीर पर रोयें खडे हो जाते हैं। आज्ञाओं को लेते समय मूसा भय से कांप गया था ऐसे ही हमारे प्रभु उनके उपर रखे जाने वाले पापों के से भय से आक्रांत हो गये।
पहले मसीहा दुखी, हताश और बैचेन थे और अंत में ''बेहद व्याकुल'' हो गये। वह कंपकंपाने वाली बैचेनी से भर गये थे। जब उनके उपर पापों को रखे जाने के क्षण आये वह परमेश्वर द्वारा स्वयं को पापियों के प्रतिनिधि के रूप में देखे जाने पर अत्यधिक विस्मय से भर गये। वह परमेश्वर द्वारा त्यागे जाने के भय से व्याकुल हो गये। इन बातों ने उनके पवित्र व प्रेमी स्वभाव को धक्का पहुंचाया और वह ''अत्यंत व्याकुल'' हो उठे उनका ''हृदय डूब'' गया।
हमें आगे बताया गया है कि वह कहने लगे ''मेरा जी बहुत उदास है, यहां तक कि मेरे प्राण निकला चाहते'' (मत्ती २६:३८) यूनानी शब्द ''पेरीलूपोस'' का अर्थ होता है दुखों से घिर जाना। अगर कोई साधारण रूप में दुख उठाता है तो उसमें तौभी बच निकलने के मौके, कुछ आशा अवश्य होती है। परेशानी में पडे लोगों के लिये हम खराब स्थिति का अनुमान लगा सकते हैं लेकिन यीशु के मामले में तो यह सबसे अधिक बुरी स्थिति थी कि जैसे दाउद कहता है ''मैं अधोलोक की सकेती में पड़ा था'' (भजन ११६:३)। परमेश्वर के क्रोध की लहरें उनके उपर जोरों से बरस रही थीं। उनके उपर, नीचे, बाहर, भीतर चारो ओर, सिर्फ क्रोधाग्नि बरस रही थी और इस दर्द व दुख को उन्हें सहन करना ही था। मसीह के इस दुख से बढकर कोई दुख नही था और उन्होंने कहा, '' मेरा जी बहुत उदास है,'' दुखों से घिरा हुआ है ''यहां तक कि मेरे प्राण निकला चाहते'' − प्राण निकलने की सीमा तक!
उन्होंने गैतसेमनी के बगीचे में प्राण नहीं त्यागे पर उन्होंने प्राण निकल जाने की हद तक अपार मानसिक वेदना सही। उनका दर्द और मनोव्यथा प्राण निकल जाने की हद तक पहुंच कर − थम गये।
मैं बिल्कुल अचंभित नहीं हूं कि इतने अधिक आंतरिक दवाब को सहते हुये हमारे प्रभु का पसीना रक्त की बूंदों के रूप में बाहर निकला। मानवीय धारणा से मैंने इसे जितना स्पष्ट हो सकता है उतना बताया।
सिर्फ ईश्वर और ईश्वर को,
उनके सारे दुख ज्ञात थे।
''और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था'' (लूका २२:४४) ।
३. तीसरा, मसीह इतने सब द्वंद्व से होकर क्यों गुजरे।
मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि अनेक लोग अचंभा करते हैं कि क्यों मसीह को इतनी मानसिक वेदना और रक्तिम पसीने से तर होना पडा। हां मैं जानता हूं कि, ''उन्हें इन सब से होकर गुजरना पडा पर मैं यह नहीं समझ पाता कि क्यों इन सब से होकर गुजरना पडा।'' मैं आप को छ कारण बता हूं कि यीशु को गैतसेमनी के बगीचे में इस अनुभव से होकर जाना पडा।
१. पहली बात है कि उनकी वास्तविक मानवता को हमें दिखाना था। उन्हें केवल परमेश्वर ही नहीं समझना चाहिये पर आप उन्हें अपने कुल का ही समझे, हडडी में से हडडी और अपनी देह में से देह। वह हमसे कितनी बखूबी से सहानुभूति रख सकते हैं! उन्होंने भी हमारे साथ बोझ सहा वैसे ही वह हमारे साथ सब दुखों में संभागी हुये। हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं घटा जो प्रभु नहीं जानते हो। इसलिये वह आपको सब परीक्षाओं में से ले चलने मे समर्थ हैं। यीशु को अपना मित्र समझिये। वह आप को विश्राम देंगे जो आप को जीवन की सारी मुसीबतों से पार ले चलेगा।
२. दूसरा, हम सब को एक उदाहरण देने के लिये शिष्य पतरस ने कहा था, ''मसीह भी तुम्हारे लिये दुख उठा कर, तुम्हें एक आदर्श दे गया, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो'' (१पतरस २:२१) मैं उन प्रचारकों से कभी सहमत नहीं होता जो कहते हैं कि मसीही के रूप में आपका जीवन आसान है! शिष्य पौलुस ने कहा था, ''पर जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।'' (२तीमुथियुस ३:१२) उन्होंने कहा, ''मसीह यीशु के अच्छे योद्धा की नाईं मेरे साथ दुख उठा'' (२तीमुथियुस २:३) पौलुस ने यह शब्द एक जवान प्रचारक को कहे थे। सेवकाई एक कठिन काम है। अधिकतर व्यक्ति इसे नहीं कर सकते हैं। जार्ज बारना के अनुसार ३५ से ४० प्रतिशत पास्टर्स सेवकाई छोड रहे हैं। यह संसार की सबसे कठिन बुलाहट है। जब तक व्यक्ति मसीह का सैनिक न हो वह इसे नहीं कर सकता! न केवल पास्टर्स पर सब भले मसीही जो परमेश्वर की सेवा करते हैं उन्हें तकलीफें आती हैं। बाइबल कहती है, ''हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।'' (प्रेरितों १४:२२) मैं सोचता हूं कि यह शायद जोन सुंग का कथन था, ''बिना क्रूस उठाये − ताज नहीं मिलता।''
३. तीसरा, गैतसेमनी में उनका अनुभव पाप की बुराई प्रगट करता है। आप पापी है पर यीशु कभी पापी नहीं थे। अरे ओ पापी जन, तुम्हारा पाप बहुत भयानक बात थी जिसने हमारे मसीहा को व्याकुल बना डाला। हमारे पापों को उनके भीतर रखे जाने से उनको रक्तिम पसीना बह निकला।
४. चौथा, बगीचे में उनकी परीक्षा ने उनका हमारे प्रति प्रेम प्रगट किया। उन्होंने हमारे बदले पापी गिने जाने की भयप्रद स्थिति को सहन किया। पाप का दंड भरने के लिये, जो उन्होंने हमारा स्थान लिया, हम इस को सब कुछ देकर भी नहीं चुका सकते। जो उन्होंने हमसे बडा प्रेम किया हमें भी उनसे प्रेम रखना चाहिये।
५. पांचवा, यीशु को बगीचे में देखिये और उनके हमारा स्थान लेने की महानता देखिये। मैं परमेश्वर की निगाह में कितना मलिन और भ्रष्ट हूं। मैं सोचता हूं कि मैं केवल नर्क में डाले जाने लायक हूं। मैं तो अचंभित हूं कि परमेश्वर ने मुझे पहले नर्क में क्यों नहीं डाल दिया। पर मैं गैतसेमनी में प्रवेश करता हूं, जैतून के पेडो की तरफ देखता हूं, और मेरे मसीहा को वहां पाता हूं। हां मैं उन्हें घोर मानसिक यंत्रणा में लडखडाता हुआ पाता हूं उनका कराहना सुनता हूं। मैं उनके आसपास की जमीन देखता हूं जहां रक्त का छिडकाव था। उनका चेहरा रक्तिम पसीने से तरबतर हो रहा था। मैं ने उनसे पूछा, ''मसीहा आपको क्या हुआ है? मैं उन्हें उत्तर देते हुये पाता हूं, ''मैं तुम्हारे पापों के बदले दुख उठा रहा हूं।'' मैं महसूस कर सकता हूं कि परमेश्वर मुझे इस बलिदान के द्वारा मेरे पापों से क्षमा दे सकते हैं। यीशु के पास आइये और उन पर विश्वास लाइये। आप के पापों को वह अपने रक्त से क्षमा दे सकते हैं।
६. छटवां, उन लोगों को उस भयानक सजा के लिये सोचना चाहिये जो क्षमा देने वाले रक्त का इंकार करते हैं। अगर आप उनका इंकार करेंगें तो आप को पवित्र परमेश्वर के सामने, अपने पापों के दंड के लिये खडा होना पडेगा। मैं अपने दिल में बडा दर्द लिये, आप को यह बताना चाहूंगा, कि मसीहा, यीशु मसीह का इंकार करने पर आप के साथ क्या होगा, बगीचे में नही पर बिस्तर पर मौत का सामना करते हुये आप अचंभित होंगे। आप मर जायेंगे और आप की आत्मा दंड के लिये प्रस्तुत होगी और नर्क में भेज दी जायेगी। गैतसेमनी का बगीचा आप के लिये चेतावनी बने। वहां की कराहना, चीखें और बहाया गया रक्तिम पसीना आप को प्रायश्चित कर यीशु पर विश्वास लाने में मदद करे। उन के पास आइये। उन पर विश्वास लाइये। वह मुरदों में से जीवित हुये हैं और स्वर्ग में परमेश्वर पिता के दाहिने हाथ विराजमान है। इसके पहले कि देर हो जाये उन पर विश्वास लाइये और पापों से क्षमा पाइये। आमीन।
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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा धर्मशास्त्र पढ़ा गया: लूका २२:३९−३४
संदेश के पूर्व बैंजमिन किंकेड ग्रिफिथ ने एकल गान गाया गया:
''दाइन अननोन सफरिंग्स'' (जोसेफ हार्ट, १७१२−१७६८)
रूपरेखा रक्तिम पसीना THE BLOODY SWEAT डॉ आर एल हिमर्स ''और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा: और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था'' (लूका २२:४४) (यूहन्ना १८:२; यशायाह ५३:७; उत्पत्ति २८:१७) १. गैतसेमनी में मसीह के दुख और पीडा का क्या कारण था? २. दूसरा, मसीह के इस रक्तिम पसीने का क्या अर्थ था? ३. तीसरा, मसीह इतने सब द्वंद्व से होकर क्यों गुजरे? |