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यीशु का − बगीचे में दुख उठानाJESUS – SUFFERING IN THE GARDEN डॉ आर एल हिमर्स रविवार की सुबह, २८ फरवरी, २०१६ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में किया गया प्रचार संदेश ''फिर वे गतसमने नाम एक जगह में आए और उस ने अपने चेलों से कहा‚ यहां बैठे रहो‚ जब तक मैं प्रार्थना करूं। और वह पतरस और याकूब और यूहन्ना को अपने साथ ले गया और बहुत ही अधीर‚ और व्याकुल होने लगा। और उन से कहा; मेरा मन बहुत उदास है‚ यहां तक कि मैं मरने पर हूं: तुम यहां ठहरो‚ और जागते रहो'' (मरकुस १४:३२−३४) |
मसीह ने फसह पर्व को अपने चेलो के साथ मनाया। भोजन के अंत में उन्होंने चेलों को रोटी और कटोरा दिया। इसे हम ''प्रभु भोज'' मानते हैं। इसे हम प्रभु भोज मानते हैं। उन्होंने कहा कि यह रोटी उनकी देह का प्रतीक है जो अगले दिन क्रूस पर बलिदान की जायेगी। यह कटोरा उनके रक्त का प्रतीक है जो वह हमारे पापों को शुद्व करने के लिये अगले दिन बहायेंगे। तब यीशु और चेलों ने एक गीत गाया और उस रात वे कमरे से बाहर निकल गये।
वे यरूशलेम के पूर्वी ढलान की तरफ बढ़े और किद्रोन की नदी पार की। वे यरूशलेम के पूर्वी ढलान की तरफ बढ़े और किद्रोन की नदी पार की। तब वे थोडा और आगे बढे और गैतसेमनी के किनारे तक आये। बगीचे के किनारे उन्होंने आठ चेलों को पीछे छोड दिया और कहा कि प्रार्थना करते रहें। फिर उन्होंने बगीचे के अंदर प्रवेश किया और वहां पतरस याकूब और यूहन्ना को छोडा। तत्पश्चात वह जैतून पेडो की तरफ व्याप्त गहरे अंधेरे की ओर बढे। तो यह वह स्थान था जहां ''वह बहुत ही अधीर (निस्तब्ध)‚ और व्याकुल (सघनदुखी) होने लगे। और चेलों से कहा; मेरा मन बहुत उदास है‚ यहां तक कि मैं मरने पर हूं......तुम यहां ठहरो‚ और जागते रहो और भूमि पर गिरकर प्रार्थना करने लगे‚ कि यदि हो सके तो यह घड़ी मुझ पर से टल जाए'' (मरकुस १४:३३‚ ३५) ।
चर्च आफ इंग्लैंड के बिशप जे सी राईल ने कहा‚ ''गैतसेमनी के बगीचे में यीशु की पीडा बहुत गहरी थी। धर्मशास्त्र में यह पद बहुत ही रहस्यमयी है। इसमें वे बातें हें जो विद्वान (धर्मशास्त्री) भी पूर्ण रूप से नहीं समझा पाये। तौभी इसमें......सीधे तौर पर जो सत्य निहित है वह (अत्यधिक) महत्व का है'' (जे सी राईल‚ एक्सपोजिटरी रिमार्क ओन माक्र्स‚ बैनर आफ ट्रूथ ट्रस्ट‚ १९९४‚ पेज ३१६‚ मरकुस १४: ३२−४२ पर व्याख्या) ।
आज सुबह हम गैतसेमनी पर विचार करेंगे। मरकुस लिखता है कि वह ''सघन दुख'' में थे (मरकुस १४:३३) । इसके लिये यूनानी शब्द ''एकथेंबीस्थाई'' है − बेहद ''निस्तब्ध‚ आकुल‚ उद्विग्न और अचम्भित थे।'' ''और भूमि पर गिरकर प्रार्थना करने लगे''...... और चेलों से कहा‚ ''मेरा मन बहुत उदास है‚ यहां तक कि मैं मरने पर हूं'' (मरकुस १४:३४‚ ३५) ।
बिशप जे सी राईल ने कहा‚ ''इन भावों के लिये एक ही तर्कपूर्ण उत्तर है। इसमें शारीरिक दुख उठाने का भय नहीं था अपितु मनुष्य के पाप का भार उन पर लादा जा रहा था जो उन पर विचित्र रूप में हावी हो रहा था। यह मनुष्यों के पाप और अधर्म का (अव्यक्त भार) था जो उन के उपर रखा जा रहा था। वह ‘हमारे लिये शापित ठहराये’ गये। वह हमारे दुख और कष्टों को धारण कर रहे थे...... वह हमारे लिये ‘पापी ठहराये गये जबकि वह स्वयं निष्पाप’ थे। उनका पवित्र स्वभाव इस गुप्त बोझ को बहुत (गहराई) के साथ ग्रहण कर रहा था। बाहरी तौर पर उनके दुख के प्रगट होने के यही कारण थे। गैतसेमनी में हमारे प्रभु यीशु की वेदना में हमें मनुष्य के पापों की हद प्रगट होती है। पाप के विषय में (आज के इवेंजलीकल्स के विचार) इतने अधिक गंभीर नहीं हैं'' (राईल‚ पेज ३१७) ।
क्या आप चर्च नहीं आने के पाप को हल्का लेते हैं बाइबल पढने की उपेक्षा करके विडियो गेम्स खेलते हैं‚ पोर्नोग्राफी देखते हैं‚ नाच गाने में लिप्त रहते हैं। आप के इन्हीं सब पापों का बोझ यीशु के उपर गैतसेमनी में रखा गया था। पर इससे भी आगे − बहुत कुछ था। सबसे बडा पाप जो गैतसेमनी के बगीचे में यीशु के उपर रखा गया था वह था हमारा मूल पाप‚ हमारा अधर्मी स्वभाव‚ हमारे पूर्णरूप से पथभ्रष्ट होने का पाप। यह ''संसार में बुरी अभिलाषाओं से पैदा होता है'' (२ पतरस १:४) यह सत्य है कि ''हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं'' (यशायाह ६४:६) हमारा स्वभाव परमेश्वर के विरूद्व विद्रोह भरा है स्वार्थीपन लालच हमारे स्वभाव में व्याप्त है। क्योंकि ''शरीर पर मन लगाना (तो) परमेश्वर से बैर रखना है'' (रोमियों ८:७ ) जो परमेश्वर से विद्रोह करता है और उनके बिना ही रहना चाहता है (रोमियों ८:७ ) । सच में हम घृणास्पद हृदय के मालिक हैं (रोमियों ८:७ ) । ऐसा स्वभाव हमें आदम से मिला है जो संसार का पहला पापी मनुष्य था। उससे यह स्वभाव हमारे जींस‚ हमारे रक्त‚ और हमारी आत्मा में आया है (रोमियों ५:१२) − ''क्योंकि......एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से (सब लोग) पापी ठहरे'' (रोमियों ५:१९) ।
आप देखेंगे कि एक छोटा नवजात शिशु भी पाप में पैदा होता हैं। ए डब्ल्यू पिंक कहते हैं‚ ''मनुष्य की भ्रष्टता शिशु अवस्था में ही अस्तित्व में आ जाती है...... और इससे भी पहले भ्रूणावस्था में। मनुष्य में जो (वंशागत) अच्छाई है वह भी (शिशु अवस्था) से प्रगट होती है‚ फिर इस संसार के संपर्क में आने पर बुराईयां पैदा होने लगती हैं। तो क्या हम (शिशुओं को) निष्पाप कह सकते हैं? नहीं वे भी इस से बहुत दूर हैं। हर मनुष्य में जो एक सा विकास होता है वह यह है कि जैसे जैसे वे बडे होते जाते हैं (वे) पापी होते जाते हैं। वे स्वार्थीपन‚ डाह और बदला प्रगट करते हैं। वे ऐसी चीजों की मांग करते हैं जो उनके हित की नहीं है मना किये जाने पर (माता पिता से मुंह फुला) लेते हैं। उन्हें (चोट) पहुंचाने पर आमादा हो जाते हैं। पहले पहल तो उन्हें ईमानदारी के वातावरण में पाला जाता है पर बाद में वे (चोरी) जैसे कार्यो में लिप्त हो जाते हैं। इस तरह की (गलतियों) ......के कारण मानव स्वभाव अपने अस्तित्व से ही पापी जान पडता है'' (ए डब्ल्यू पिंक‚ ग्लिनिंग्स फ्राम स्क्रिपचर्स मैंस टोटल डिप्रेविटी‚ मूडी प्रेस‚१९८१‚ पेज १६३‚१६४) । मिनेसोटा क्राईम कमीशन ने अपनी एक रिपोर्ट में इसे और अधिक स्पष्ट किया है। ''प्रत्येक शिशु अपना जीवन एक छोटे असभ्य के रूप में ही प्रारंभ करता है। वह पूर्णत स्वकेंद्रित और स्वार्थी होता है। उसे जो चाहिये वह चाहिये किसी भी समय...... चाहे मां का ध्यान हो‚ बच्चे का खिलौना हो‚ या अंकल की घडी चाहिये हो। आप उसे इन (चीजों) को अगर न दें जो वह स्वभाव में प्रचंड हो जाता है‚ उग्रता प्रगट करने लगता है...... इसलिये हर छोटा बच्चा...... केवल छोटा बच्चा नहीं है पर वह स्वभावगत ही पापी पैदा होते हैं'' (हैडन डब्ल्यू राबिनसन‚ बिब्लीकल प्रीचिंग‚ बेकर बुक हाउस‚ १९८०‚ पेज १४४‚ १४५) । डा आयजक वाटस ने कहा था‚
जैसे ही हम शिशु रूप मे श्वास भरते हैं‚
दुष्काल के लिये पाप के बीज हमारे अंदर बढते हैं;
आपका नियम सिद्व चाहता है‚
पर हम तो हर भाग में अशुद्ध हैं।
(''भजन ५१'' डा आयजक वाटस‚ १६७४−१७४८)
एक बच्चा पैदा होते ही चीखता है। जानवर का बच्चा ऐसा नहीं करता है। अगर वह मानव शिशु के समान हल्ला मचाये और चीखे जो उसे जंगल में दूसरे जानवर मार डालेंगे। पर मानव शिशु पैदा होने पर परमेश्वर और उनकी सत्ता के विरूद्व चीखते हैं। क्या कारण है? वे अपने मूल पिता आदम से मिले जन्मजात पाप के कारण चीखते हैं। इसलिये आपकी प्रव्रति जो कहा जाये उसके विपरीत विद्रोह करने की होती है‚ असहमत होने की होती है जैसा मसीही अगुवे समझाते हैं उनसे अलग जाने की होती है‚ आप अपना रास्ता चुनना चाहते हैं। यही मनुष्य जगत के दुख और मौत का कारण है − मूल पाप। इसलिये आप पाप करते जाते हैं यहां तक कि परिवर्तित होने के बाद भी। आप के माता पिता सोचते हैं कि आप मसीही जवान हैं लेकिन आप तो जवान पापी जन हैं। जो परमेश्वर की इच्छा पूरा करने से चिढते हैं!
इस मूल पाप और उन सारे पापों को जो आप मन विचार और कर्म से करते हैं उसे जोड कर देखिये तो पायेंगे कि उस रात मसीह इतने शोकित क्यों थे! जब संसार के पाप उनके उपर लादे गये उस बोझ से वह कुचले गये।
बाइबल में लूका के वर्णन को निकाल लीजिये। स्कोफील्ड स्टडी बाइबल में यह पेज ११०८ पर है। यह लूका २२:४४ है। क्रपया खडे होकर इसे जोर से पढिये।
''और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था।'' (लूका २२:४४)
आप बैठ सकते हैं।
बिशप राईल ने कहा‚ ''हम हमारे प्रभु के गहनतम दुख का अंदाजा कैसे लगा सकते हैं जो उन्होंने गैतसेमनी में सहा? अपनी देह और दिमाग में इतने गहन दुख को सहन करने का क्या कारण था जो उन्होंने इसे सहा? इसका एक ही संतोषजनक उत्तर है। यह संसार (के) पापों का बोझ था जो उन्हें कुचल रहा था...... (पापों) का अति विशाल और भारी बोझ था जो उन्हें व्यथित बना रहा था। संसार के दुष्कर्मो के भार का अहसास उन्हें इस तरह व्याकुल बना रहा था कि परमेश्वर के अनंत पुत्र का पसीना रक्त की बूंदो की तरह बह रहा था'' (जे सी राईल‚ लूका वाल्यूम २‚ बैनर आफ ट्रूथ ट्रस्ट‚ २०१५‚ पेज ३१४‚ ३१५; लूका २२:४४ पर व्याख्या) ।
''जो पाप से अज्ञात था, उसी को उस (परमेश्वर) ने हमारे लिये पाप ठहराया'' (२ कुरूंथियों ५:२१)
''यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया'' (यशायाह ५३:६)
''वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिए हुए क्रूस पर चढ़ गया'' (१ पतरस २:२४)
बिशप राईल ने कहा था‚ ''हमें इस सुसमाचार पर अटल रहना चाहिये कि वह ‘हमारे पापों के बोझ’ तले (गैतसेमनी) और क्रूस पर कुचला गया। इसके अतिरिक्त कोई दूसरी शिक्षा (मसीह के पसीने गिरने का) वर्णन कर मनुष्य के दोषपूर्ण विवेक को संतुष्ट नहीं कर सकती'' (उक्त संदर्भित) । जोसेफ हार्ट ने कहा था‚
परमेश्वर के पुत्र का दुख भोगना देखो‚
वह छटपटाना‚ कराहना‚ रक्तरंजित होना!
इतनी गहनतम पीडा जिसका
भान स्वर्गदूतों को भी न होगा।
केवल और केवल परमेश्वर जानते थे
उन्हें इस संपूर्ण बोझ का ज्ञान था।
(''दाईन अननोन सफरिंग्स'' जोसेफ हार्ट‚ १७१२−१७६८
''इटस मिडनाईट एंड आलिव्य ब्रो'' की धुन)
पुनः जोसेफ हार्ट ने कहा‚
परमेश्वर पुत्र ने सारे दोष सहे;
अनुग्रह से वह इन्हें सह पाये;
पर जो भयानकता उन्होंने महसूस की
उसकी कल्पना करना भी असंभव है‚
कोई जिसे भेद नहीं सकता था‚
वह भयानक अंधेरा गैतसेमनी का।
(''मैनी वोज ही हेज ऐंडोयोर्ड'' जोसेफ हार्ट‚ १७१२−१७६८;
आओं ओ पापियों की'' धुन पर)
विलियम विलियम्स ने कहा था‚
मनुष्य के अति विशाल पाप का बोझ मसीहा पर लादा गया;
जैसे विलाप के साथ वस्त्र पहनाया हो‚ वह पापियों के लिये सजाया गया‚
वह पापियों के लिये सजाया गया।
(''लव इन एगोनी'' विलियम विलियम्स‚१७५९;
''मैजेस्टिक स्वीटनैस सिटस इनथ्रोंड'' की धुन)
''और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था।'' (लूका २२:४४)
''यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया'' (यशायाह ५३:६)
मसीह के हमारे स्थान पर पापों की क्षतिपूर्ति भरने का कार्य प्रारंभ हुआ। उनका ''स्थानापन्न'' बनना अर्थात किसी के बदले दुख सहना। मसीह ने स्वयं कोई पाप नहीं किया‚ पर वह आप के स्थान पर पापों का दंड भोग रहे थे। गैतसेमनी में जैतून पेडों के नीचे मध्य रात्रि के अंधकार में वह हमारे पापों का बोझ ले जाने वाले वाहक ठहरे। सुबह उन्हें कीलों से ठोक कर क्रूस पर चढा दिया जायेगा कि हमारे पापों का पूर्ण दंड भर दें। आप ऐसे प्रेम का इंकार कैसे कर सकते हैं − जो मसीह ने आप से किया? आप अपना मन कैसे सख्त कर सकते हैं और ऐसे प्रेम का इंकार कर सकते हैं? यह परमेश्वर के पुत्र थे‚ जो हमारे स्थान पर‚ हमारे किये गये पापों का स्वयं दंड भर रहे थे। क्या आप इतने शुष्क हैं कि उनके इस प्रेम का आप पर कोई असर नहीं पडेगा?
मैं एक बार एक अन्त्येष्टि निर्वाहक से मिला वह मुझे उन लोगों के लिये नियुक्त करना चाह रहा था जिनके लिये कोई पास्टर नहीं होता है। वह मुझे लंच पर ले गया। उसका लंच भी विचित्र लंच था। उसके चेहरे पर विचित्र भाव थे उसने बताया कि वह अक्सर मुर्दाघर में शवों के साथ कार्य के दौरान ऐसे ही सैंडविच खा लिया करता है। मैं ऐसी नौकरी नहीं कर सकता था! मैं तो रेस्टोरेंट से ही डर के मारे भाग निकला। एक मुर्दा शरीर पर लेप लगाते हुये एक व्यक्ति कैसे सैंडविच खा सकता है? अति भयानक! बाद में मैंने सोचा कि यह काम करते करते उसका दिल और दिमाग बिल्कुल शुष्क को गया है कि उस पर कुछ असर ही नहीं होता है। क्या मैं आप से पूछ सकता हूं‚ कि मसीह के दुख उठाने का वर्णन सुनते सुनते आप भी ऐसे संज्ञीविहीन हो गये हैं कि आप को कुछ असर ही नहीं पडता? क्या आप इतने विचित्र हो गये हैं कि मैं मसीह के आप के स्थान पर आप के पापों के लिये दंड उठाने की कथा सुनाउं और आप सुनकर भी बेअसर रहें? क्या आप इतने बेरूख हो चुके हैं जितने कि वे सिपाही जिन्होंने यीशु को कीलें ठोकी थी − क्या आप उनके समान हो गये हैं जो मसीह के वस्त्र को बांट रहें थे जब वह मर रहा था। नहीं ऐसा नहीं हो सकता! आज सुबह मैं आप से विनती करता हूं कि आप मसीहा पर विश्वास लाये और उनके पवित्र रक्त से अपने पापों को धो लेंवे!
आप कहेंगे ''त्यागने के लिये तो बहुत कुछ हैं।'' मैं कहता हूं कि क्या आप शैतान की बातें सुनना बंद करेंगे! इस संसार में इससे बढकर कुछ महत्व पूर्ण नहीं है!
ओह! मेरे मसीहा का रक्त बहा? मेरा प्रभु महान मर रहा था?
क्या वह मेरे जैसे अधम पापी के लिये अपना सिर झुका देगा?
उस प्रेम के कर्ज को पीडा के (आंसू) भर नहीं (सकते);
प्रभु‚ मैं तो अपना सर्वस्व दे दूं यही मै कर सकता हूं!
(''ओह! मेरे मसीहा का रक्त बहा?'' डा आयजक वाटस‚ १६७४−१७४८)
क्या आप यीशु पर विश्वास लाने के लिये तैयार हैं? क्या आपका मन उनके प्रेम को सुनकर भर आया है? अगर ऐसा नहीं है तो आप मत जाइये। पर अगर ऐसा हैं तो डा कैगन आप को इस ओडिटोरियम के पिछले हिस्से में ले जायेंगे ताकि आप से बात करें। आमीन।
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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा धर्मशास्त्र पढ़ा गया: मरकुस १४:३२−३४
संदेश के पूर्व बैंजमिन किंकेड ग्रिफिथ ने एकल गान गाया गया:
''अपार दुख उसने सहा'' (जोसेफ हार्ट‚ १७१२−१७६८)