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परमेश्वर द्वारा त्यागे गये मसीह!

THE GOD-FORSAKEN CHRIST!
(Hindi)

डॉ आर एल हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

रविवार की सुबह, २४ जनवरी, २०१६ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल
में किया गया प्रचार संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Morning, January 24, 2016

''हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?''
(मत्ती २७:४६)


जब मैं रविवार की सुबह चर्च में प्रचार करता हूं तो मैं अक्सर जवान लोगों से बोलता हूं। मैं ऐसा इसलिये करता हूं क्योंकि हमारे चर्च में रविवार की सुबह बहुत से ऐसे जवान लोग होते हैं जिन्होंने सुसमाचार प्रचार स्पष्ट रूप से नहीं सुना होता है। हम माल्स और कालेज में जाते हैं जहां हमें जवान लोग मिलते हैं, उन्हें हम यहां आने के लिये निमंत्रण देते हैं। आप हमारे निमंत्रण पर यहां चर्च में आये, इसके लिये मैं आपका बहुत आभारी हूं। यहां आने के लिये मैं आपको बहुत धन्यवाद देता हूं।

एक ओर दूसरा कारण है जिसके कारण मैं हर रविवार की सुबह जवान लोगों से बोलता हूं। वह दूसरा कारण है कि जवान लोगों को जो तीस से कम उम्र के होते हैं उन्हें उद्वार मिलने के अधिक अवसर होते हैं बजाय उनके जो बडी उम्र के होते हैं। मैंने जितने भी अध्ययन पढ़े हैं और मत जाने हैं वे सब यही बताते हैं। मेरा स्वयं का अनुभव कहता है यह सच भी है। अगर एक व्यक्ति को बचाये जाना है तो यह कार्य प्राय: सोलह से पच्चीस की उम्र के मध्य हो जाता है। मैं मानता हूं कि कुछ अपवाद हो सकते हैं, पर यह बहुत कम होते हैं।

हम इसे कैसे समझा सकते हैं? एक कारण यह हो सकता है कि यही समय होता है जब जवान लोग यह समझना आरंभ करते हैं कि जीवन कठिन और मुश्किल है। आप यह जानना प्रारंभ कर देते हैं कि आप मरणशील हैं और आप को मरना है। या आप को यह अहसास होने लगता है कि यह संसार एक भयानक और अक्सर एक निर्जन स्थान है। आप ने अभी तब कुछ उन्मत्त और कई तरह के अलग अलग तरीकों से अपने भय पर काबू पाने की असफल कोशिश की होगी।

आप में से अनेक स्वयं से यह पूछते हैं कि, ''मैं ऐसे शुष्क, अनाकर्षक और निर्जन संसार में कैसे रह सकता हूं?'' इसलिये मैं अपने संदेश में बार बार अकेलेपन के विषय पर आता हूं। अहा, मैं यह भी समझता हूं कि अकेलेपन का यह विषय हर जवान व्यक्ति को अच्छा भी नहीं लगता होगा। मैं यह भी जानता हूं कि अकेलेपन की इस अवस्था से निपटने के लिये आप में से कईयों ने अलग अलग प्रकार के उन्मत्त करने वाले क्रियाकलाप में लिप्त रहना सीख लिया होगा। जिन्होंने उन क्रियाकलाप को सीख लिया होगा वे मेरे संदेश पर इतना ध्यान नहीं देंगे। पर मैं यह भी जानता हूं कि यहां कोई शांत रहने वाला लड़का भी होगा और सोच विचार करने वाली लड़की भी होगी जो घर जाकर कहेंगे कि, ''आज उस वृद्ध व्यक्ति ने मुझसे बात की और मैं उनका प्रचार पुन: सुनने जाउंगा या जाउंगी।''

और ऐसे ही विचारवान जवान लड़के लड़कियों से मैं आज बात करना चाहता हूं। मेरा विषय है − शुष्कपन, कठोरपन, भयावहता, दिल का टूटना और अकेलापन। इन सब बातों को इस से अच्छा और कहां व्यक्त किया गया होगा और महसूस किया गया होगा जब मसीह क्रूस पर से चिल्लाये थे,

''हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?'' (मत्ती २७:४६)

आप के दिमाग में मसीह की छवि रखिये। जब वह अकेले गैतसेमनी के बगीचे में प्रार्थना कर रहा था तब उन्होंने उसे कैद किया। उन्होंने उसके वस्त्र अलग कर दिये और उसे लगभग अधमरा होने तक मारा। उन्होंने उसके सिर पर कांटों का ताज रख दिया। जब वह मार्ग में से क्रूस घसीट कर ले जा रहा था तो वे उसका उपहास उड़ा रहे थे और उस पर हंस रहे थे। उन्होंने उसके हाथों और पैरों पंर कीलें ठोंक दी। उन्होंने क्रूस उपर उठाया और खडा किया। उसका शरीर वहां लटका रहा और वे उसका मखौल उडाने वाले शब्द चिल्लाते रहे। आखिरकार, मसीह चिल्ला उठे,

''हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?'' (मत्ती २७:४६)

उस चिल्लाहट का महत्व समझने के लिये हमें दो प्रश्नों का उत्तर देना आवश्यक है।

१. पहला, यह मनुष्य यीशु कौन था?

वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। बाइबल कहती है परमेश्वर ने ''अपना एकलौता पुत्र दे दिया'' (यूहन्ना ३:१६) यह व्यक्ति जो चिल्लाया वह परमेश्वर का एकमात्र पुत्र था। उन्होंने इसके विषय में कहा भी था

''मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत के होने से पहिले, मेरी तेरे (परमेश्वर पिता) के साथ थी'' (यूहन्ना १७:५)

यह मनुष्य जो क्रूस पर से चिल्लाया वह शाश्वत त्रिएकत्व का दूसरा व्यक्ति था। वह अपने पिता के साथ इतने एकाकार थे कि उन्होंने कहा,

''मैं और पिता एक हैं'' (यूहन्ना १०:३०)

परमेश्वर पिता और यीशु मसीह की पुत्र रूप में संयुक्तता आदि से लेकर आगे आने वाले सनातन कालों तक रहने वाली है। वह परमेश्वर का वचन हैं।

''आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। यही आदि में परमेश्वर के साथ था। सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई'' (यूहन्ना १:१−३)

''और वचन देहधारी हुआ हमारे बीच में डेरा किया'' (यूहन्ना १:१४)

यीशु स्वर्ग से उतर आये। यीशु, जो त्रिएकत्व के दूसरे व्यक्ति थे, वह पृथ्वी पर रहे। वह पृथ्वी पर बिताये जीवन में निरंतर पिता से उसी रूप में संयुक्त रहें। गेतसेमनी के उस गहरे अंधकार में जब शिष्य सो गये थे तब भी उन्होंने प्रार्थना की और अपने पिता परमेश्वर के साथ बातचीत की। भले ही वह कैद में ले जाये गये और उन पर झूठा मुकदमा चला तब भी परमेश्वर पिता उन के निकट थे। जब उन्हें कोड़े मारे गये और क्रूस पर चढाया गया तब भी परमेश्वर उनके निकट थे। उन क्षणों में भी वह परमेश्वर से प्रार्थना कर सके और कहा,

''हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहें हैं'' (लूका २३:३४)

पर अब सब दूर अंधकार छा गया था।

''दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अन्धेरा छाया रहा। तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, एली, एली, लमा शबक्तनी अर्थात हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?'' (मत्ती २७:४५−४६)

उन भयावह क्षणों में जो अंधकार छाया वह उस तस्वीर को प्रगट कर रहा था जिसने परमेश्वर पुत्र से पहली बार परमेश्वर पिता को अलग कर दिया। इसके पहले परमेश्वर पुत्र कभी भी अपने स्वर्गीय पिता से अलग नहीं हुये थे पर अब ऐसा हो गया था। उस अंधकार के क्षणों में वह चिल्ला उठे थे,

''हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?'' (मत्ती २७:४६)

आखिर यह व्यक्ति कौन है? वह यीशु है जो सनातन और परमेश्वर के एकमात्र पुत्र हैं − और पहली बार इस अनंत काल में अपने स्वर्गीय पिता से पूर्ण रूप से अलग हुये हैं।

२. दूसरा, वह क्यों चिल्ला उठे?

मुझे आप को इसे साधारण रूप में समझाने में बहुत परेशानी हो रही है। इसमें आश्चर्य की कोई बात नही है! मसीह के ये शब्द वास्तव में समझाने के बाहर हैं। स्पर्जन के सामने भी यह समस्या थी। उन्होंने इन शब्दों के लिये कहा था, कि इन्हें कोई पूर्ण रूप से समझ नहीं सकता है। स्पर्जन के शब्द थे,

मार्टिन लूथर (पुर्नजागरण के महान अगुए) ने इस पद को समझने के लिये स्वयं को अध्ययन में झोक दिया। परमेश्वर का यह महान जन घंटों तक शांत बैठा रहता था और जो लोग उनका इंतजार करते थे उनसे मिलने के लिये कमरे में आते तो उन्हें गहरे ध्यान में डूबा पाते और सोचते कि मानो कोई मुरदा है। उनके न हाथ पैर हिलते और न ही वह कुछ खाते पीते, बस उनकी आंखे चौड़ी खुली रहती और वह इन आश्चर्यजनक शब्दों को सोचते सोचते अंर्तध्यान हो जाते, ''हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?'' और जब लंबे घंटो तक ऐसे ही डूबे रहने के पश्चात उन्हें आस पास घट रही बातों की भी सुध नहीं रही, वह खड़े हुये तो किसी ने उन्हें कहते हुये सुना, ''परमेश्वर ने परमेश्वर को छोड़ दिया! कोई इसे समझ नहीं सकता।'' ऐसा कहते हुये वह चले गये। हांलाकि इस पद की इस व्याख्या को प्रयोग करना थोड़ा कठिन है − इसकी पुष्टि करते हुये मुझे संकोच होगा − पर मुझे इसमें कोई भी आश्चर्य नहीं है कि इस पद ने स्वयं को मार्टिन लूथर के दिमाग में इस प्रकाश में प्रस्तुत किया होगा। यह कहा जाता है कि ऐसा प्रतीत हुआ था कि लूथर बहुत गहराई में डूब गये थे और पुन: वह प्रकाश में आये। मैं भी ऐसा महसूस करता हूं जैसे मैं इतनी गहराई में तो नहीं गया किंतु जिसने इस पद के भीतर झांक कर देखा हो जैसे वह भी इस राह का यात्री रहा हो व इस गहन अंधकार के मार्ग का सफर करते करते उसकी कंपकंपी छूट गयी हो और जो इस पुकार जितनी गहराई में जाने का साहस नही कर पाया हो (''हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?'') यह अति दारूण पुकार है और कोई इसकी गहराई नहीं नाप सकता (सी एच स्पर्जन, ''दि सैडेस्ट क्राय फ्राम दि क्रास'' दि मेट्रोपोलिटन टैबरनेकल पुल्पिट, पिलगिम पब्लिकेशंस, १९७७, वॉल्यूम ४८, पेज ५१७−५१८)

मै लूथर और स्पर्जन से सहमत हूं कि हम पूर्ण रूप से इसे नहीं समझ सकते कि कैसे परमेश्वर पिता परमेश्वर पुत्र को ''त्याग'' सकते हैं। मैं इन शब्दों को समझाने का प्रयास नहीं करूंगा पर इनके विषय में अपने कुछ विचार व्यक्त करूंगा।

मसीह यहां एक व्यक्ति के रूप में बोल रहे हैं। वह पूर्ण रूप से परमेश्वर हैं और वह पूर्ण रूप से मनुष्य हैं। यह त्रिएकत्व संयुक्तता है, और मसीह परमेश्वर होने के साथ साथ मनुष्य भी हैं। यहां वह एक मनुष्य के रूप में बोल रहे हैं और केवल एक वास्तविक मनुष्य ही ऐसा कह सकता है कि उसे परमेश्वर ने त्याग दिया है।

मसीह परमेश्वर द्वारा त्यागे गये क्योंकि हम त्यागे जाने योग्य ही हैं। क्रूस पर मसीह ने हमारा स्थान ले लिया और हमारे पापों का दंड जो हमें मिलना था वह उन्होंने सहा।

''निश्चय उसने हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दुखों को उठा लिया'' (यशायाह ५३:४)

हमारे आदि माता पिता ने जो पाप किया, वह पाप हम सभी मनुष्यों के भीतर जन्मजात विद्यमान है, इसके कारण हम परमेश्वर से अलग रहते हुये ही बड़े हुये हैं, परमेश्वर द्वारा त्यागे हुये हैं, और अकेले हैं, हमारे जीवनों को अकेलेपन में ही व्यतीत कर रहे हैं, परमेश्वर द्वारा अलग कर दिये गये हैं, परमेश्वर से विमुख होकर जी रहे हैं इसका कारण हमारे पाप और हमारा पापमय स्वभाव है।

''क्योंकि उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गई है और उस अज्ञानता के कारण जो उन में है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं'' (इफिसियों ४:१८ )

क्या आप ने कभी सोचा कि एक परमेश्वर होना चाहिये? क्या आप को कभी आश्चर्य हुआ कि परमेश्वर आप के सामने वास्तविक क्यों नहीं हैं? बाइबल से यहां इसका उत्तर है − परमेश्वर आपके समक्ष दिखाई इसलिये नहीं देते क्योंकि आप की आत्मिक समझ ''अंधेरे'' में है और आप का दिल भी ''अज्ञानता'' में पड़ा हुआ है। इसलिये आप ''परमेश्वर के जीवन से अलग'' चल रहे हैं। यूनानी क्रिया का सिद्व रूप निरंतर इसी दशा के उपर ही जोर देता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि आप ने कभी परमेश्वर को जाना था। इसका यह अर्थ है कि आप ने परमेश्वर को कभी जाना ही नहीं और अभी भी नहीं जानते हैं। आप निरंतर परमेश्वर से संबंध विच्छेदन की दशा में हैं निरंतर परमेश्वर से अलग हैं ''इसका कारण (आप के) दिल के भीतर अंधत्व का पाया जाना है'' (डॉ फ्रिटज रिनेकर, ए लिंग्यूस्टक की टू दि ग्रीक न्यू टेस्टामेंट, जोंदरवन, १९८०, पेज ५३३)

यीशु मसीह क्रूस पर मरे ताकि आप को परमेश्वर से संयुक्त कर दें।

''इसलिये कि मसीह ने भी, अर्थात अधमिर्यों के लिये धर्मी ने पापों के कारण एक बार दुख उठाया, ताकि हमें परमेश्वर के पास पहुंचाए'' (१ पतरस ३:१८)

मसीह क्रूस पर मरे ताकि हम को ''परमेश्वर के पास ले आये'' ताकि हमारे पापमय स्वभाव और वास्तविक पापों के कारण परमेश्वर से जो अलगाव बना हुआ है उसे दूर कर दें। ऐसा करने में मसीह को बहुत गहन ''दुख'' उठाने पडे और हमारे ''दुखों'' को लेकर वह कूस पर चढ़ गये।

''निश्चय उसने हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दुखों को उठा लिया'' (यशायाह ५३:४)

एक अपरिवर्तित पापी के रूप में आप इस संसार में अकेले ही रह जाते हैं। आप इस को महसूस करते हैं। आप को लगता है कि कहीं कुछ गलत है। जवान लोगों को उनके अकेलेपन का अहसास बहुत जल्दी आता है, कि वे परमेश्वर द्वारा त्यागे हुये हैं, और इस अंधकारयुक्त डरावने संसार में वे बिल्कुल अकेले हैं। इसलिये परमेश्वर अक्सर जवानी में ही लोगों को परिवर्तित कर देते हैं। जैसे जैसे आप बड़े होते जाते हैं आप अपने इस रिक्त पन को भरने के लिये नशीली दवाओं का सहारा लेते हैं, शराब पीते हैं, या सैक्स में लिप्त हो जाते हैं, पैसा बनाने में लग जाते हैं अथवा ''सफल कहलाने'' के किसी भी ''खेल में'' व्यस्त हो जाते हैं। जब अकेलेपन को भरने की इन तमाम ''तरकीबों'' को आप सीख चुके होते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और आप का उद्वार प्राप्त करना और कठिन होता जाता है।

''और जब उन्होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा, इसलिये परमेश्वर ने भी उन्हें उन के निकम्मे मन पर छोड़ दिया कि वे अनुचित काम करें'' (रोमियों १:२८)

पर आज सुबह जब आप अभी भी जवान ही है परमेश्वर आप से कह रहे हैं। आपके अकेलेपन की भावना के कारण परमेश्वर आप को बुलाते हैं और आप के दिल से बात करते हैं। सुनिये, उन शब्दों को सुनिये, जब मसीह क्रूस पर मर रहे थे,

''हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?'' (मत्ती २७:४६)

ये वे शब्द हैं जो विशेषकर हमसे आज भी बाते करते हैं जब हम जवान ही हैं। परमेश्वर पुत्र ने अपने परमेश्वर पिता से अलगाव सहा ताकि परमेश्वर से हमारा अलगाव समाप्त हो सके। आप परमेश्वर से दूर चले गये थे − और मसीह ने आप के पापों का दंड चुकाया! आप परमेश्वर को भूल गये थे − और मसीह ने आप के पापों का दंड चुकाया! आप चर्च आते रहे कुछ शब्दों को ''मुंह में'' दोहराते रहे, पर परमेश्वर के लिये कभी विचार नहीं किया − और मसीह ने आप के पापों का दंड चुकाया! मसीह ने आप के ईश्वररहित होने का दंड क्रूस पर चुकाया! कितना भयानक दंड उन्होंने चुकाया!

उन्होंने उनके वस्त्र अलग कर दिये और उन्हें अधमरा होने तक पीटा। उन्होंने क्रूस पर उनके हाथ और पैरों पर कीलें ठोक कर चढ़ा दिया। अंधेरा छा गया। परमेश्वर का कोप उन पर उतरा,

''तौभी यहोवा को यही भाया कि उसे कुचले'' (यशायाह ५३:१०)

परमेश्वर ने मसीह को स्थानापन्न बनाकर जो सजा हमें मिलनी थी उन्हें दी। और अंत में सबसे भयानक सजा आयी परमेश्वर ने अपने पुत्र से भी मुख मोडकर उन्हें अंधकार में अकेला छोड दिया। उस समय मसीह जो पुत्र थे अकेले ही यह सजा क्रूस पर सह रहे थे।

''हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?'' (मत्ती २७:४६)

इस भयानक और अदभुत पुकार का उत्तर, प्रेरित पतरस ने दिया, जब वह इस प्रकार कहते हैं,

''इसलिये कि मसीह ने भी, अर्थात अधमिर्यों (आप) के लिये धर्मी (वह) ने पापों के कारण एक बार दुख उठाया, ताकि हमें परमेश्वर के पास पहुंचाए'' (१ पतरस ३:१८)

आप ने परमेश्वर को त्याग दिया और मसीह ने आप के पापों का दंड स्वयं को परमेश्वर द्वारा त्यागे जाकर चुकाया − उन्होंने यह आप के स्थान पर किया, अकेले क्रूस पर कीलें सहीं, परमेश्वर द्वारा अलग कर दिये गये जबकि वह अपने पिता से अत्यधिक प्रेम रखते थे।

उस शापित क्रूस पर वस्त्रहीन होकर कीलों से ठोके गयें,
मृत्यु से सामना किया स्वर्ग की ओर निहारा,
रक्तरंजित घावों का वह दारूण दृश्य,
घायल प्रेम का वह उदास करने वाला दृश्य!

सुनो उनकी वह दिल दहलाने वाली पुकार
उस दृश्य पुकार से स्वर्गदूत भी दहल गये;
उनके मित्रों ने भी उस रात उन्हें त्याग दिया,
और अब परमेश्वर भी उन्हें त्यागता है!
   (''हिज पैशन'' जोसेफ हार्ट, १७१२−१७६८ पास्टर द्वारा परिवर्तित)

हमने तो मसीह के इन शब्दों के रहस्य पर बहुत थोडा विचार किया है,

''हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?'' (मत्ती २७:४६)

मैं आशा करता हूं कि आपने यह तो पर्याप्त रूप से सुना होगा कि यीशु आप के पापों का दंड चुकाने के लिये मरे और वह फिर जीवित हुये और स्वर्ग में परमेश्वर के दाहिने हाथ विराजमान हैं। आपने यह तो पर्याप्त रूप से देखा होगा कि आप की आशा केवल यीशु में हैं − क्योंकि उनके अलावा और किसी में ठोस आशा नहीं है। मैं प्रार्थना करता हूं कि आप सीधे मसीह के पास आयें और उन्हें अपने जीवन में ग्रहण करें उनके शाश्वत रक्त से धुलकर अपने पापों से शुद्व हो जायें − क्योंकि इस दुनिया और अनंत में बिना यीशु के कहीं भी मुक्ति मिलना संभव नहीं है। आमीन।


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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा धर्मशास्त्र पढ़ा गया: मत्ती २७:३५−४६
संदेश के पूर्व जैक नैन ने एकल गान गाया गया: ''हिज पैशन'' (जोसेफ हार्ट, १७१२−१७६८)


रूपरेखा

परमेश्वर द्वारा त्यागे गये मसीह!

THE GOD-FORSAKEN CHRIST!

डॉ आर एल हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

''हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?''
(मत्ती २७:४६)

१. पहला, यह मनुष्य यीशु कौन था? यूहन्ना ३:१६; १७:५; १०:३०; १:१−३‚१४;
लूका २३:३४; मत्ती २७:४५−४६

२. दूसरा, वह क्यों चिल्ला उठे? यशायाह ५३:४; इफिसियों ४:१८; १ पतरस ३:१८;
रोमियों १:२८; यशायाह ५३:१०