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परिवर्तन और यशायाह की बुलाहटTHE CONVERSION AND CALL OF ISAIAH द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स रविवार की सुबह, १ नवंबर, २०१५ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल ''जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया'' (यशायाह ६:१) |
यशायाह की पुस्तक वास्तव में इस अध्याय से प्रारंभ होती है। अनेक व्याख्याकार कहते है कि यह यशायाह की एक भविष्यदर्शी के रूप में बुलाहट है − और यह वही है। बल्कि यह उससे भी बढकर है। मैं सहमत हूं कि इसमें यशायाह का परिवर्तन है और भविष्यदर्शी के रूप में बुलाहट है। अतीत में यह अक्सर कई प्रचारकों के साथ भी हुआ। अक्सर जब उन्हें परिवर्तन का अनुभव प्राप्त हुआ तो उन्हें लगा कि परमेश्वर चाहते हैं कि वे भी जाकर लोगों को प्रचार करें। पर सबसे अधिक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि ये पद बताते हैं कि यशायाह कैसे परिवर्तित हुये। अगर आप परिवर्तित होने जा रहे हैं तो आप को भी कुछ ऐसे अनुभव में से जाना पडेगा जैसा यशायाह के साथ हुआ था।
१. पहली बात, परमेश्वर के बारे में जागरूकता होनी चाहिये।
आप वर्षो तक चर्च आ सकते हैं और परमेश्वर के प्रति कोई जागस्कता ही नहीं हो। आप बिना परमेश्वर के प्रति जागस्क रहे वर्षो तक बाइबल का अध्ययन कर सकते हैं और प्रार्थना कर सकते हैं। मुझे मेरे जीवन में यह विचार अनेक बार आया।
चाइनीज बैपटिस्ट चर्च आने के पहले मैं काकैशियन (श्वेत) बैपटिस्ट चर्च का कई वर्षो तक सदस्य रहा। यद्यपि मैं एक किशोर ही था तौभी मुझे स्मरण है मैं सोचा करता था कि वहां के जवानों में सभी जवानों में परमेश्वर के के साथ बिल्कुल भी संबंध नहीं था। वे सिर्फ संडे स्कूल के दिये गये कार्य को पूर्ण करते थे और प्रश्नों के उत्तर दिया करते थे। फिर वे संदेश के दौरान ही छटपटाते थे और नोटस का आदान प्रदान करते थे। उनमें कोई जीवन प्रतीत नहीं होता। उनमें कोई समझदारी दिखाई नहीं पडती। उनमें गंभीरता की भारी कमी दिखाई देती। मैं कभी नहीं मान सकता कि वे किसी शांत जगह पर जाकर प्रार्थना करते होंगे। ''मानो वे परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं'' (इफिसियों ४:१८)
उनके साथ क्या समस्या थी? सीधे शब्दों में कहें, तो उनके पास परमेश्वर नहीं था। क्या वे कभी परमेश्वर के बारे में भी सोचते थे? इतना तो मैं जानता हूं कि वे सोचते होंगे। लेकिन परमेश्वर उनके लिये केवल शिक्षा और सिद्वांतों में ही पाया जाता होगा, या भीतर की कोई भावना मात्र होगी।
हमारे यहां चर्च में भी तो ऐसे लोग है जिनके पास परमेश्वर नहीं है। आप जानते हैं, यह नई बात नहीं है। इस अत्याधुनिक सभ्यता में इन अंतिम दिनों में लगभग सभी लोग तो ऐसे ही हैं। अगर आप ने ऐसा कहा कि, ''परमेश्वर तो मेरे लिये बहुत वास्तविक है। परमेश्वर तो मेरे लिये सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं,'' तो मेरे स्कूल के मित्र क्या कहेंगे? मेरे आफिस के सहकर्मी क्या कहेंगें? क्या वे मुझे खाली निगाहों से नहीं घूरेंगें? क्या वे यह नहीं सोचेंगें कि आप कितने अजीब इंसान हैं? अब हम वास्तविकता पर आ रहे हैं! वे परमेश्वर को नहीं जानते − और न ही आप परमेश्वर को जानते हैं! आज सुबह भी यहां इस चर्च में ऐसे जवान हैं जिन्हें परमेश्वर के प्रति कोई जागरूकता नहीं है और वे भी अपने स्कूल कालेजों के मित्रों के समान ही हैं।
परमेश्वर हमारे भीतर नहीं हैं। यह एक बडा महत्वपूर्ण बिंदु है। अगर आपने अपने सहपाठियों को बताया कि आप आध्यात्मिक हैं, तो वे इसकी परवाह नहीं करेंगें। अगर आप उन्हें बतायेंगें कि आप ने चर्च में रविवार के दिन परमेश्वर के बारे में सुना है तो वे इस बात पर प्रत्युत्तर नहीं देंगें। अगर आप उनकी आंखों में झांककर कहेंगें कि, ''परमेश्वर जिन्होंने यह संसार बनाया वह मेरे जीवन के लिये अति महत्वपूर्ण और वास्तविक मनुष्य हैं,'' तो वे आपकी तरफ देखेंगे और सोचेंगे कि आप बेहद अजीब इंसान है। वे ऐसा क्यों सोचेंगें? क्योंकि बाइबल यह बताती है कि,
''कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजने वाला नहीं'' (रोमियों ३:११)
पुन: बाइबल कहती है,
''संसार ने (अपने) ज्ञान से परमेश्वर को न जाना'' (१ कुरूंथियों १:२१)
आज कल के नये इवेंजलिस्ट भी बाकि के भटके हुये जगत से अलग नहीं हैं। वे आप के कालेज के बाइबल अध्ययन समूह में भाग ले सकते हैं लेकिन आप उन्हें गंभीरतापूर्ण तरीके से परमेश्वर की बाते करते हुये नहीं सुनेंगे। लडकियां तो प्राय वहां इधर उधर की गपशप करने जाती हैं। अगर वहां लडके हैं तो वे वहां प्राय लडकियों को ''देखने जाते हैं''। पर वे परमेश्वर के बारे में नहीं सोचेंगे − कम से कम बाइबल के परमेश्वर के बारे में तो नहीं सोचेंगे! अगर आप कहेंगे कि आप मुस्लिम हैं, कैथोलिक हैं, यहूदी हैं, या बैपटिस्ट भी क्यों न हो इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पडता। अगर आप ने कहा कि, ''परमेश्वर मेरे अंदर हैं, और आप के भी अंदर है तो ऐसे कथन से भी उन्हें अधिक परवाह नहीं होती।'' यह तो नई उम्र का विचार है। परंतु अगर आप ने कहा कि, ''परमेश्वर वहां है और हमारी ओर नीचे देख रहे हैं। वह हमारे पापों को देखते हैं और हमारा न्याय करेंगे।'' वे सोचेंगे कि आप अजीब प्राणी हैं क्या वे ऐसा नहीं सोचेंगे?
अब, इसे एक कदम और आगे ले जाये। चलिये आप की ही बात करें। आप यहां हैं और आपका परिवर्तन अभी तक नहीं हुआ है। आप परमेश्वर के बारे में क्या सोचते हैं? आप उनके बारे में कभी कभी सोचते हैं क्या नहीं सोचते? अगर आप परिवर्तित नहीं हुये हैं तो निश्चित रूप से आप उनके बारे में गलत ही सोचते हैं।
जब यशायाह का परिवर्तन हुआ तब वह जवान ही जन था। उसने बाइबल का अध्ययन कर रखा था। वह मंदिर में आराधनाओं में जा रहा था। पर उसके स्वयं के जीवन में परमेश्वर का निवास नहीं था। वह परमेश्वर के बारे में बातें जानता था लेकिन परमेश्वर का अनुभव नहीं किया था। वह संरक्षक अय्यूब के समान था। अय्यूब ने परमेश्वर से कहा था,
''मैं कानों से तेरा समाचार सुना था‚ परन्तु अब मेरी आंखें तुझे देखती हैं; इसलिये मुझे अपने ऊपर घृणा आती है‚ और मैं धूलि और राख में पश्चात्ताप करता हूँ।'' (अय्यूब ४२:५‚६)
अय्यूब ने परमेश्वर के बारे में सुना था। पर अब परमेश्वर ने ''अय्यूब को आँधी में से यूं उत्तर दिया'' (अय्यूब ३८:१; ४०:६) ''तब यहोवा ने अय्यूब को आँधी में से यह उत्तर दिया'' (एनआयवी)
मैं नहीं जानता कि इन सबको को मनुष्य की भाषा में कैसे समझाउं? अव्छा होगा कि मैं आप को कुछ सच्ची कहानियां सुनाउं। डॉ कैगन एक आस्तिक व्यक्ति थे। वह बिल्कुल भी परमेश्वर में विश्वास नहीं करते थे। एक देर रात वह बहुत डर गये। उन्हें यूसीएलए में एक बहुत ही महत्वपूर्ण टेस्ट देना था। पर वह विषय सामग्री बिल्कुल भी समझ नहीं पा रहे थे। वह जानते थे कि वह अगले दिन फैल हो जायेंगे। अचानक डॉ कैगन ने पहली बार अपने जीवन में प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि, ''परमेश्वर मुझे क्षमा कीजिये।'' फिर वह सो गये। जब वह जागे तो वह जानते थे कि उन्हें टेस्ट में फैल ही होना है। जब कक्षा में पहुंचे तो टेस्ट के प्रश्नों को देखा और उनका उत्तर आसानी से दे दिया और कक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त किये। तब उन्होंने जाना कि कुछ भी हो परमेश्वर वास्तव में हैं।
जब मैं पंद्रह साल का था तो मैं अपनी दादी की मौत के पहले वाली रातों की भयानक घटनाओं से और अंतिम संस्कार वाले दिल बहुत सदमें में आ गया था। मैं ग्लेनडेल में दूर फारेस्ट लॉन की पहाडियों में भाग गया था। मैं मैदान में गिर पडा, हांफ रहा था और पसीने से तरबतर हो रहा था। तब परमेश्वर मेरे पास आये। और मैं उनकी समीपता को महसूस कर रहा था। इस बात से मुझे याकूब का स्मरण हो आता है जब परमेश्वर उसके पास एक रात आये,
''तब याकूब जाग उठा, और कहने लगा; निश्चय इस स्थान में यहोवा है; और मैं इस बात को न जानता था। और भय खा कर उसने कहा, यह स्थान क्या ही भयानक है! यह तो परमेश्वर के भवन को छोड़ और कुछ नहीं हो सकता; वरन यह स्वर्ग का फाटक ही होगा।'' (उत्पत्ति २८:१६, १७)
इन अनुभवों में न तो डॉ कैगन और न मैं तब परिवर्तित हुये थे। लेकिन अय्यूब के समान हम भी यह कह सके, ''मैंने कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आंखें तुझे देखती हैं'' (अय्यूब ४२:५ ) इसका यह अर्थ नहीं है कि उसने जागती आंखों से परमेश्वर के दर्शन किये थे। कहने का यह एक चित्रात्मक रूप है, कि उसने परमेश्वर के बारे में सुना था लेकिन वह अब परमेश्वर को जान गया था कि परमेश्वर वास्तविक है, बल्कि वह स्वयं एक पापी मनुष्य है इसलिये वह कह उठा, ''मुझे अपने ऊपर घृणा आती है और मैं पश्चात्ताप करता हूँ'' (उक्त संदर्भित) यशायाह का अनुभव भी याकूब और अय्यूब के समान ही था − डॉ कैगन और मेरे स्वयं के समान था − जब मेरी दादी मां के दारूण अंतिम संस्कार के समय मैं पंद्रह वर्ष का ही था। यशायाह का कथन था,
''जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र (पोशाक) के घेर से मन्दिर भर गया'' (यशायाह ६:१)
डॉ जे वर्नान मैगी ने कहा था,
जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, यशायाह सोच रहा था कि, ''अब एक भला राजा मर चुका है और परिस्थिति (खराब) होने वाली है। इजरायल बंदी बना लिया जायेगा। संपदा कम होती जायेगी। निराशा का समय होगा और अकाल पडेगा।'' अपनी इस दिमागी दशा में यशायाह ने वही किया जिसे हर व्यक्ति को करना चाहिये − कि वह मंदिर गया....... परमेश्वर के भवन में जाकर यशायाह को पता चला कि राष्ट्र का सच्चा राजा मरा नहीं है। ''मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया'' − परमेश्वर सिंहासन पर हैं.....परमेश्वर उंचे पर विराजमान है और वह पाप से कोई समझौता नहीं करेंगे (जे वर्नान मैगी, टी एच डी, थ्रू दि बाइबल, संस्करण ३, थॉमस नेल्सन पब्लिशर्स, १९८२; यशायाह ६:१ पर व्याख्या)।
यशायाह ६:३ को देखिये। सेराफीम, स्वर्गदूत वहां हैं,
''और वे एक दूसरे से पुकार पुकारकर कह रहे थे: सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है; सारी पृथ्वी उसके तेज से भरपूर है।'' (यशायाह ६:३)
वे पुकारकर कह रहे थे, ''सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है।'' डॉ डब्ल्यू ए किसवेल, जो टेक्सास डलास के, लगभग साठ वर्षो से महान पास्टर रहे हैं, उन्होंने कहा, ''कि मैं सोचता हूं कि यह उदबोधन तीनों व्यक्तियों के लिये है'' जो त्रिएकत्व में हैं (डब्ल्यू ए किसवेल, पी एच डी, यशायाह: एन एक्सपोजिशन, जोंदरवन पब्लिशिंग हाउस, १९७७ पेज ५३)
पवित्र, पवित्र, पवित्र!
प्रभु परमेश्वर सामर्थी!
भोर के समय हमारी
प्रशंसा आप तक पहुंचे;
पवित्र, पवित्र, पवित्र!
दयालू और अति सामर्थशाली!
परमेश्वर जो त्रिएकत्व में है,
धन्य त्रिएकत्व!
पवित्र, पवित्र, पवित्र,
यद्यपि अंधेरा आपको घेरे हुये है,
यद्यपि पापी की आंखे
आप की महिमा नहीं देख पाती है,
केवल आप ही पवित्र है;
आप के अतिरिक्त कोई नहीं
जो सामर्थ में सिद्व है,
प्रेम और पवित्रता में सिद्व है।
(पवित्र, पवित्र, पवित्र, रेजीनाल्ड हैबर, १७८३−१८२६)
अगर आप के मानस में परमेश्वर के प्रति कोई जागरूकता नहीं है − धर्मशास्त्र के त्रिएकत्व परमेश्वर के लिये जागरूक नहीं है − अगर आप उनकी पवित्रता, न्याय और दया के प्रति जागरूक नहीं हैं − तो कैसे आप एक सच्चे मसीही होने की आशा भी कर सकते हैं?
२. दूसरा, मनुष्य को अपने पापों का भान होना बहुत आवश्यक है।
यशायाह ६:५ को देखिये,
''तब मैं ने कहा, हाय! हाय! मैं नाश हूआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठ वाला मनुष्य हूं, और अशुद्ध होंठ वाले मनुष्यों के बीच में रहता हूं; क्योंकि मैं ने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आंखों से देखा है'' (यशायाह ६:५)
त्रिएकत्व पवित्र परमेश्वर की उपस्थिति ने भविष्यदर्शी को उसके पाप देखने की जागरूकता दी और वह कह उठा, ''मैं अशुद्ध होंठ वाला मनुष्य हूं।'' आप को इस प्रकार का पाप बोध तभी पैदा होगा जब परमेश्वर स्वयं आप के उपर यह प्रगट न कर दे कि वह समस्त ''पृथ्वी के न्यायकर्ता'' है। डॉ डेविड वेल्स एक सुधारवादी धर्मविज्ञानी हैं। उनका कथन था,
यह भविष्यदर्शी बहुत भयानक रूप से उस (खतरे) से परिचित हो गया था जिसके विषय में परमेश्वर का चरित्र लोगों को इसका बोध करवा देता है। परमेश्वर के तेजस्वी प्रकाश में कोई खडा नहीं हो सकता। हर कोई इसमें नाश हो जायेगा क्योंकि दिव्य प्रकाश व्यक्ति के चरित्र का अनुचित, दूषित रूप, स्वार्थीपन, अविश्वासीपन, कृतघ्नता और अनाज्ञाकारिता को प्रकाश में लाता है ........यशायाह ने अपने दर्शन में देखा और एकाएक परमेश्वर के प्रकाश के तेज में कह उठा, ‘हाय! मैं नाश हूआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठ वाला मनुष्य हूं, और अशुद्ध होंठ वाले मनुष्यों के बीच में रहता हूं; क्योंकि मैं ने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आंखों से देखा है!’ (यशायाह ६:५) धर्मशास्त्र के अनेक पदों में से एक पद यह भी है जो परमेश्वर की अतिशय पवित्रता के कारण मनुष्य को उसके पापों की बेहद कष्टदायक और भयानक सत्यता का बोध करवाता है। (डेविड एफ वेल्स, पी एच डी, दि करेज टू बी प्रोटेस्टैंट, अर्डमैंस पब्लिशिंग कंपनी, २००८, पेज १२५)
डॉ डब्ल्यू ऐ क्रिसवेल ने कहा था,
परमेश्वर के दर्शन के लिये आत्मिक आंखे, और मन के कानों का सुनना बहुत आवश्यक है। जो आत्मिक रूप से अंधे हैं, उनके लिये तो परमेश्वर है ही नहीं। जो बहरे हैं उनके लिये तो परमेश्वर बोलते ही नहीं हैं। जिनके पास देखने के लिये आंखें, सुनने के लिये कान, और महसूस करने के लिये मन हो तो, परमेश्वर उनके लिये अपनी महिमा में सदैव उपस्थित रहते हैं। यशायाह ने अपने दर्शन में, स्वयं को पापी और अयोग्य महसूस किया। हर वह व्यक्ति जो परमेश्वर की उपस्थिति में खडा होता है वह अपनी अयोग्यता और अशुद्वता की बाढ के अहसास में नहा जाता है (क्रिसवेल, उक्त संदर्भित पेज ५४)
एक दिन आप परमेश्वर से आमने सामने मिलेंगे। अगर आप इसी जीवन में नहीं बचाये गये तो आप अपनी समाप्ति के समय परमेश्वर के न्याय का सामना करेंगें। आप अपने दिमाग में कल्पना कीजिये क्या परमेश्वर आपसे प्रसन्न होंगें। वह कोई अन्य धर्म के परमेश्वर नहीं होंगें। आप बाइबल के परमेश्वर का सामना करेंगें। वह आपके पाप के लिये आपका न्याय करेंगें, विशेषकर आप के मन और मस्तिष्क में बसे पाप के लिये। आप के पापों को क्षमा करने के लिये केवल एक ही मार्ग था और वह आप के स्थान पर मसीह के मरने के द्वारा संभव किया गया − क्रूस पर। और आप के पापों को शुद्व करने के लिये केवल एक ही मार्ग था कि आप मसीह के द्वारा बहाये गये पवित्र लहू से धोये जायें। डॉ मार्टिन ल्योड जोंस ने कहा था, ''हमारा सुसमाचार रक्त का सुसमाचार है; रक्त ही इसकी नींव है; इसके बिना कुछ नहीं।'' (गॉडस वे आँफ रिकंसीलियेशंस, इफिसियों २, बैनर आँफ ट्रूथ ट्रस्ट, १९८१, पेज २४०)
अब पद आठ को देखिये,
''तब मैं ने प्रभु का यह वचन सुना, मैं किस को भेंजूं, और हमारी ओर से कौन जाएगा? तब मैं ने कहा, मैं यहां हूं! मुझे भेज'' (यशायाह ६:८)
अब यशायाह को प्रचार करने बुलाया जाता है। ''मैं यहां हूं! मुझे भेज'' अब वह जायेगा और दूसरो को वह प्रचार करेगा जो उसने अनुभव किया है।
आप अपने बुरे कर्मो से तभी मुक्ति पायेंगें जब आप यीशु पर विश्वास लायेंगें और उनके पवित्र रक्त से शुद्व किये जायेंगें। आप परमेश्वर का सामना करने में तभी समर्थ होंगे जब आप के पाप उनके पुत्र, प्रभु यीशु के रक्त में धुलकर शुद्व हुये हों। तब स्वर्ग में हम एक नया गीत गायेंगें, ''तू ने वध हो कर अपने लोहू से परमेश्वर के लिये लोगों को मोल लिया है'' (प्रकाशितवाक्य ५:९) मैं आज सुबह आप से मसीह पर विश्वास लाने के लिये बिनती करता हूं ताकि आप उनके रक्त में शुद्व होकर परमेश्वर की निगाह में पवित्र ठहर सकें! आमीन। कृपया, डॉ चान प्रार्थना में हमारी अगुआई कीजिये।
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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा धर्मशास्त्र से पढा गया: यशायाह ६:१−८
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गान गाया गया:
''दि गॉड आँफ अब्राहम प्रेज'' (डेनियल बेन जूडा, १४ वीं शताब्दी)
रूपरेखा परिवर्तन और यशायाह की बुलाहट THE CONVERSION AND CALL OF ISAIAH द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स ''जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया'' (यशायाह ६:१) १. पहली बात, परमेश्वर के बारे में जागरूकता होनी चाहिये, २. दूसरा, मनुष्य को अपने पापों का भान होना बहुत आवश्यक है, |