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लूथर का परिवर्तनLUTHER’S CONVERSION द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स रविवार की सुबह, ११ अक्टूबर, २०१५ को लॉस ऐंजीलिस के दि ''जैसा लिखा है, कि विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा'' (रोमियों१:१७) |
कुछ लोग मुझसे पूछ सकते हैं कि मैं क्यों मार्टिन लूथर के उपर प्रचार कर रहा हूं (१४८३−१५४६) प्रारंभ से ही मैं आपको बता दूं कि मैं बैपटिस्ट हूं, लूथरन नहीं। चर्च के संदर्भ में भी मैं बैपटिस्ट हूं, लूथरन नहीं। बपतिस्मा के संदर्भ में भी मैं बैपटिस्ट हूं, लूथरन नहीं। प्रभु भोज के संदर्भ में मैं बैपटिस्ट हूं, लूथरन नहीं। इजरायल और यहूदी राष्ट्र के संदर्भ में मैं बैपटिस्ट हूं, लूथरन नहीं। ये सब महत्वपूर्ण बिंदु हैं और इनमें से हर बिंदु पर मैं लूथरन लोगो से असहमत हूं, और बैपटिस्टों के साथ खडा हूं। तौभी मैं लूथर की बेहद स्पष्ट शिक्षा, कि सिर्फ मसीह पर विश्वास रखा जाने से ही धर्मी ठहरते हैं इसका गहरा प्रशंसक हूं। मैं सभी आधुनिक लुथरन्स के लिये नहीं कह रहा हूं। मैं सिर्फ लूथर के लिये ही कह रहा हूं। वह अभी तक के युगों में महान कहलाने वाले मसीहियों में से एक था।
लूथर इतिहास में अपने समय का, एक प्रसिद्व व्यक्ति माना जाता है, यद्यपि कभी कभी उसे कठोर और हठी भी माना गया है। वह हमेशा चीजों को स्पष्ट नहीं देखता था। वह अभी तक रोमन कैथोलिक की ''स्थानापन्न धर्मशिक्षा'' में विश्वास करता था जिसके अनुसार चर्च पूर्णत: इजरायल को हटाकर उसका स्थान ले लेता है। इस कैथोलिक धर्मशिक्षा ने ही उसे, जीवन के बाद के वर्षो में, यहूदियों की कठोर आलोचना करने को मजबूर किया। परंतु रिचर्ड वर्मबैंड, जो एक परिवर्तित यहूदी थे और लूथरन पास्टर हो गये थे, उन्होंने एक बार मुझे बहुत साधारण तौर पर कहा, ''कि मैंने उन्हें माफ कर दिया।'' पास्टर वर्मबैंड जानते थे कि लूथर भी हम सब लोगों के समान अपने समय के माने व्यक्ति थे। बाद का इतिहास बताता हैं कि हम सब आज बेहद असिद्व बातों से भरे हुये हैं –विशेषकर ''निर्णयवाद'' जैसे कृत्य के द्वारा अपनी आत्मा को दोषी ठहराने वाली त्रुटि करने के द्वारा। यह कृत्य भी मध्य युग के कैथोलिकवाद के समान एक नारकीय छलावा है।
यद्यपि कुछ ''कमजोरियों'' के उपरांत भी लूथर को कुछ असाधारण वरदान प्राप्त थे। स्पर्जन बैपटिस्टों के प्रत्येक कालखंड के प्रचारक माने जाते थे। (देखिये लूथर के उपर स्पर्जन के संदेश, दि मेट्रोपॉलिटन टेबरनेकल पुल्पिट, वॉल्यूम २९ पेज ६१३−६३६) स्पर्जन ने उनके विषय में कहा था कि, ''हमारे महान सुधारक की सबसे मुख्य गवाही यह थी कि वे कहते थे कि पापी जन एकमात्र यीशु पर विश्वास रखने से ही धर्मी कहलाया जाता है।'' अनेकों बार लूथर ने धर्मसिद्वांतो वाले प्रश्नों के केंद्र को समझा था − और उन्होंने उनके उत्तर बडी मौलिकता और प्रबलता से दिये।
उद्वार पाने की सब शिक्षाओं में धर्मी कहलाये जाने की शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है। बिना धर्मी कहलाये पापी का हश्र नरक ही है! एक मनुष्य चर्च जाने में सही हो सकता है, बपतिस्मा पाने में सही हो सकता है, प्रभु भोज लेने में सही हो सकता है, इजरायल के विषय पर सही हो सकता है − लेकिन वह फिर भी नर्क जा सकता है अगर वह धर्मी नहीं है। दूसरी ओर लूथर जैसा व्यक्ति, यद्यपि दूसरे बिंदुओं पर गलत हो सकता है, लेकिन अगर मसीह की धार्मिकता उसे प्राप्त है तो वह बचाया जा सकता है। इसलिये स्पर्जन ने धर्मी ठहराये जाने को ''उद्वार पाने का मुकुट'' कहा था क्योंकि परमेश्वर की में धर्मी ठहरना सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा है। लूथर ने केवल विश्वास रखने से धर्मी ठहराये जाने के लिये कहा था यह ''वह सिद्वांत है जिस पर या तो चर्च का उत्थान होता है या पतन हो जाता है।'' बिना दोष मुक्ति के कोई उद्वार प्राप्त नहीं कर सकता! मसीहत की सब शिक्षाओं में सर्वाधिक नाजुक और सूक्ष्म शिक्षा पर मैं इस महान सुधारक के साथ खडा हूं। मैं लूथर की इस विचारधारा के साथ एकमत हूं कि एकमात्र यीशु मसीह के उपर विश्वास रखने से ही मनुष्य को दोषमुक्ति प्राप्त होती है! यही लूथर का मुख्य मूल विषय था − और मैं इससे पूर्णत: सहमत हूं!
''विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा'' (रोमियों १:१७)
लूथर ने इस पद को किस प्रकार समझा? स्पर्जन हमें लूथर के परिवर्तन के बारे में इस प्रकार से बताते हैं,
मैं लूथर के जीवन की कुछ घटनाओं का वर्णन करते हुये सारगर्भित रूप में इस शिक्षा को समझाउंगा। इस महान सुधारक पर सुसमाचार का प्रकाश धीमे धीमे पडा। अपने मठ में खंभे से बंधी जंजीर में एक पुरानी बाइबल को पढते समय, उन्हें यह पद मिला − ''विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा'' इस स्वर्गिक कथन ने उनके उपर प्रभाव डाला: लेकिन वह इस पद का संपूर्ण आशय नहीं समझ सके। उनको अपने धार्मिक पेशे और मठ के अभ्यास में भी शांति नहीं मिली। मठ की इस कठोर जीवन प्रणाली में, तपस्या और आत्मदमन की उन विधाओं के, श्रम को करते करते उन्हें बेहोशी आने लगती। ऐसा प्रतीत होता जैसे विनाश द्वार पर खडे हो.....वह नित तपस्या में लीन रहते, सोचते कि आत्मा विश्राम पायेगी पर ऐसा कुछ प्राप्त नहीं हो सका....... (तत्पश्चात) प्रभु ने उन्हें इस संपूर्ण अंधविश्वास से छुटकारा दिया। और उन्होंने पाया कि न कोई धर्मपुरोहित, न कोई पुरोहिताई, न किसी प्रकार की तपस्या, न ही कोई अन्य प्रयास, जिसके लिये वह अभी तक जीते आ रहे थे, उन्हें मुक्ति दिला सकते हैं जितना कि एकमात्र (मसीह) के उपर विश्वास रखने भर से ही मुक्ति संभव है। आज (सुबह) के हमारे इस पद ने एक (कैथोलिक) सन्यासी को स्वतंत्रता की राह दिखाई और उनकी आत्मा में लौ जाग्रत की।
[''विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा'' (रोमियों १:१७)]
अंतत: इस पद को संपूर्ण रूप से लूथर ने समझ लिया और एकमात्र मसीह के उपर विश्वास किया। उन्होंने अपनी मां को पत्र लिखा कि, ''मैने नये जन्म पाया है और ऐसा प्रतीत हुआ मानो मेरे लिये स्वर्ग जाने का दरवाजा खुल गया हो।'' स्पर्जन ने कहा था,
जैसे ही उन्होंने इस बात पर विश्वास किया वैसे ही उन्होंने स्फूर्तिमान होने के भाव में जीना आरंभ कर दिया। एक बार टेटजेल नामक एक (धर्मपुरोहित) समस्त जर्मनी में पापों की क्षमा को नकद रूपये लेकर बेच रहा था। आपका अपराध कैसा भी हो जैसे ही आपका पैसा (दान) पेटी के तल में जायेगा आपके पाप उसी समय क्षमा हो जायेंगे। लूथर ने यह सुना, और वह बहुत क्रुद्ध हुआ, उसने चिल्लाकर कहा कि, ''मैं उसकी दान पेटी में छेद बनाउंगा'' एवं उसने ऐसा किया भी और दूसरी दान पेटियों में भी छेद कर दिया। उसने चर्च के द्वार पर लेख लिखकर लगा दिया जिससे विरोध के स्वर स्वत: कम हो गये। लूथर ने यह घोषित करना आरंभ किया कि पापों से क्षमा केवल मसीह पर विश्वास रखने से मिलती है जो बिना पैसों के मिलती है बिना किसी दाम के मिलती है, और पोप का इस तरह का अनुग्रह फैलाना हास्य का कारण बन गया। लूथर जो विश्वास से जीवन बिता रहा था ऐसी बातों पर क़्रोधावेश में आ जाता था और जैसे शेर अपने शिकार पर झपटता है वैसी ही प्रबलता से वह विरोध दर्शाता था। जो विश्वास उसके भीतर भर गया था उसने उसे प्रचंड जीवन दिया, जिसके परिणामस्वरूप वह शत्रु के प्रति आक्रामक हो उठा। कुछ समय पश्चात उसे अधिकारी के सामने इस विषय को लेकर आग्सबर्ग में उपस्थित होने को कहा गया यद्यपि उसके मित्रों ने उसे आग्सबर्ग न जाने की सलाह दी, तथापि वह गया। उन्होंने उसे धर्मविरोधी मानकर बुलवाया था वहां उसे डायट आँफ वर्म्ज़ (इंपीरियल कौंसिल) के समक्ष उत्तर प्रस्तुत करने थे प्रत्येक ने (उससे कहा) कि वह इस मुददे से दूर हट जाये अन्यथा लोग उसे (धर्म के कारण) जला भी सकते थे। पर उसे यह आवश्यक लगा कि गवाही का फैलना बहुत आवश्यक है इसलिये वह एक वैगन में सवार होकर गांव गांव, शहर शहर जाता और प्रचार करता फिरता, गरीब लोग आकर उससे हाथ मिलाते क्योंकि वह ऐसा विश्वासी जन था जो मसीह और सुसमाचार के लिये अपनी जान को भी दांव पर लगा कर आता था। यहां आपको स्मरण होगा कि वह किस प्रकार से अगस्त असेंबली में वर्म्ज़ के सामने खडा था। वह मनुष्यों की ताकत से परिचित था कि उसे अपने बचाव के एवज में जान से भी हाथ धोना पड सकता है शायद वह जॉन हस के समान (धर्म के कारण जला) भी दिया जा सकता है फिर भी उसने प्रभु परमेश्वर के जन के रूप में स्वयं को (प्रस्तुत) किया। उस दिन जर्मन डायट (कोर्ट) में लूथर ने एक ऐसा कार्य किया जिसके लिये दस हजार बार दस हजार मांओं की संतान उसे धन्य कहेगी और इससे भी अधिक प्रभु परमेश्वर का नाम धन्य माना जायेगा। (सी एच स्पर्जन, ''ए लूथर सर्मन एट दि टैबरनैकल'', दि मेट्रोपालिटन टैबरनैकल पुल्पिट, पिल्ग्रम पब्लिकेशंस, १९७३ पुर्नमुद्रण, वाल्यूम २९, पेज ६२२−६२३)
''विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा'' (रोमियों १:१७)
मैने १९५० के पूर्वाद्व में पहली बार बैपटिस्ट चर्च में लूथर का सामना किया। रविवार की एक रात उन्होंने लूथर से संबंधित श्वेत श्याम चलचित्र दिखाया। वह मुझे इतिहास का एक पात्र प्रतीत हुआ, और उसमें मेरी कोई रूचि नहीं जगी। वह चलचित्र मुझे बेहद उबाउ और लंबा प्रतीत हुआ। मुझे तो बहुत आश्चर्य हुआ कि क्यों मेरे पास्टर डॉ वाल्टर ए पेग ने ऐसा चलचित्र दिखाने का कष्ट किया। लेकिन आज मैं एक बात जोडना चाहता हूं कि अब इस महान चलचित्र के प्रति मेरा बिल्कुल बदल चुका है। अब मैं इसे देखना पसंद करता हूं! इस चलचित्र का एक दृश्य देखने के लिये यहां क्लिक कीजिये।
लूथर से मेरा दुबारा सामना बहुत समय बाद हुआ जब मैं परिवर्तित हो चुका था। मैने जॉन वेस्ली के परिवर्तन के अनुभव के बारे में पढा था, जिसमें वेस्ली ने कहा था,
एक संध्या मैं बडी अनिच्छा से अल्डर्सगेट की सोसायटी में गया, जहां एक व्यक्ति लूथर्स पिफेस टू दि इपिसेल टू दि रोमंस पढ रहा था। लगभग पौने नौ बजे जब वह यह वर्णन कर रहा था कि कैसे मसीह पर विश्वास करने से परमेश्वर मन में कार्य करता है उस समय मेरा एकाएक उष्णता से भर गया। मैंने महसूस किया कि मैंने मसीह पर विश्वास किया अपने उद्वार के लिये एकमात्र मसीह पर विश्वास किया; और मुझे जैसे एक भरोसा प्रदान किया, कि उसने मेरे पाप ले लिये यहां तक कि मेरे पाप ले लिये कि मुझे पाप व मृत्यु की व्यवस्था से बचा लिया। (जॉन वेस्ली, दि वर्क्स आँफ जॉन वेस्ली, तीसरा संस्करण, बेकर बुक्स हाउस, पुर्नसंस्करण १९७९, वाल्यूम १, पेज १०३)
इस संस्मरण ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला, क्योंकि मैं जान गया था कि पहली विशाल जाग्रति के दौरान महान प्रचारकों में से एक सामर्थशाली प्रचारक जॉन वेस्ली भी थे। वेस्ली का परिवर्तन तब हुआ जब उन्होंने लूथर के उस प्रचार को सुना कि एकमात्र मसीह पर भरोसा रखने से पाप मुक्ति मिल सकती है।
उसके बाद, मुझे ज्ञात हुआ कि जॉन बुनयन, जो हमारे बैपटिस्टों के पूर्वज थे, ने लूथर को पढा था जब उनका परिवर्तन हुआ था, ''उन्होंने धर्मशास्त्र के अपने अध्ययन को लूथर के लेखन के साथ पढकर और विस्तार से समझा।'' (पिलगिम्स प्रोग्रेस, थॉमस नेल्सन, १९९९ पुर्नसंस्करण, पब्लिशर्स इन्ट्रोडक्शन, पेज १२) बुनयन हर समय के सर्वाधिक पढे जाने वाले बैपटिस्ट लेखक कहलाये!
जॉन वेस्ली, जो मैथोडिस्ट थे, वह लूथर के शब्दों को सुनकर परिवर्तित हुये। जॉन बुनयन जो बैपटिस्ट थे उन्हें परिवर्तन के समय के संघर्ष में लूथर के लेखन को पढकर सहायता मिली। मैंने सोचा था कि आखिरकार लूथर के अंदर बहुत सारी अच्छाईयां मौजूद होनी चाहिये। मैंने पाया कि लूथर के संदेशों में रोमियों की पुस्तक का खास वर्णन होता था। लूथर का कथन था,
यह पत्री वास्तव में नये नियम का मुख्य भाग है एवं सबसे शुद्वतम सुसमाचार है और यह इस योग्य है कि प्रत्येक मसीही को न केवल इसे शब्द दर शब्द मन से समझना चाहिये अपितु अपनी आत्मा के लिये रोज की रोटी ग्रहण करने के लिये इसमें रच बच जाना चाहिये। इसे अधिक पढा या इस पर सोचा नहीं जा सकता बल्कि इस पर जितना अमल करेंगे यह उतना सुस्वादु होता चला जायेगा मार्टिन लूथर, ''प्रेफिस टू दि इपिसेल टू दि रोमंस,'' वक्र्स आँफ मार्टिन लूथर, बेकर बुक हाउस, पुर्नमुद्रण १९८२, वाल्यूम ६, पेज ४४७)
मैं क्यों यह सोचता हूं कि आज लूथर महत्वपूर्ण है? इसका खास कारण यह है कि लूथर हमें रोमियों की पुस्तक की ओर वापस ले चलता है और बहुत स्पष्ट रूप में यह दिखाता है कि ''रोमियों वास्तव में नये नियम का मुख्य भाग है और सबसे शुद्वतम सुसमाचार है।'' यह वह है जिसे हमें ''निर्णयवाद'' के इन बुरे दिनों में सुनना आवश्यक है। किसी भी चीज से बढकर, हमें रोमियों की पुस्तक की ओर लौटना नितांत आवश्यक है! लूथर के समय के कैथोलिक रोमियों का सारगर्भत संदेश भूल गये। हमारे समय के ''निर्णयवाद'' ने भी यही किया। वे रोमियों पढ तो सकते हैं, पर उन्हें इससे कोई लाभ नहीं पहुंचता। इसलिये ''निर्णयवाद,'' कई मायनों में, कैथोलिकवाद के ही समान है। कैथोलिक कहते हैं, ''ऐसा करो और जीवन जियो।'' ''निर्णयवादी'' कहते हैं, ''ऐसा करो और जीवन जियो।'' परंतु रोमियों कहता है,
''विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा'' (रोमियों १:१७)
रोमियों ३:२० को पढिये।
''क्योंकि व्यवस्था के कामों से (पापियों वाली प्रार्थना बोलने से, हाथ खडा करने से, आगे जाने से, माफी मांगने से) कोई प्राणी उसके साम्हने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिये कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है'' (रोमियों ३:२०)
लूथर ने कहा कि आपको यह नहीं सोचना चाहिये कि व्यवस्था ऐसा करने को कहती है अथवा नहीं कहती है। इस तरह से तो मानवीय व्यवस्था कार्य करती है। मानवीय नियम तो भले कार्य करने से पूर्ण होते हैं भले ही आपका मन उन कार्यो से सहमत हो या न हो। लेकिन परमेश्वर तो मन की गहराई को जांचते हैं, और इसी कारण से परमेश्वर के नियम आंतरिक मन से बात करते हैं, और वह भले कार्या से संतुष्ट नहीं हो सकते हैं, बल्कि उन कार्या की निन्दा करते हैं जो मन की गहराई से किये जाने के बजाय पाखंड और झूठ पर आधारित होते हैं। इसीलिये तो भजन ११६:११ में सभी मनुष्यों को झूठा कहा गया है, क्योंकि दिल की गहराई से कोई परमेश्वर के नियम का पालन नहीं कर सकता, क्योंकि हर एक जन भलाई को नापसंद करता है और जो बुरा है उसमें आनंद लेता है। अगर भलाई करने में स्वेच्छा से आनंद नहीं आता है जो इसका अर्थ है कि आपका आंतरिक मन भलाई करने में इच्छुक नहीं है। यह तो परमेश्वर के नियम को नापसंद करता है और इसके विरूद्व विद्रोह करता है। तब यह निस्संदेह पाप कहलाता है जिसके लिये परमेश्वर का क्रोध और न्याय अवश्यंभावी है, भले ही, बाहरी तौर पर, आपने कितने ही भले कार्य क्यों न किये हों। आप को वास्तव में परमेश्वर के नियम ने दंडित किया है, क्योंकि आप के आंतरिक मन ने अपनी पूरी ताकत लगा कर परमेश्वर की आज्ञा की अवज्ञा की है।
परमेश्वर के नियम आप का न्याय करने या आप को बचाने के लिये नहीं दिये गये थे। रोमियों ३:२० को जोर से पढिये,
''क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके साम्हने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिये कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है'' (रोमियों ३:२०)
आप जितना संभव है भला बनने की कोशिश कर सकते हैं।परंतु परमेश्वर आप को बाहरी तौर पर नहीं देखता है। वह तो आप के मन को देखता है। तब वहां उन्हें जहरीले सर्प और बिच्छु नजर आते हैं और घोर विरोध और पाप दिखाई पडता है।
''क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके साम्हने धर्मी नहीं ठहरेगा......... '' (रोमियों ३:२०)
जितना अधिक आप उद्वार पाने के लिये नियमों के पालन की चेष्टा करेंगे, उतनी अधिक आपकी स्थिति खराब होती जायेगी। यह बात लूथर के परिवर्तन के अनुभव पर भी सच बैठती है, वेस्ली और बुनयन के परिवर्तन के अनुभवों पर भी लागू होती है, क्योंकि ये सभी लोग भले कार्यो के आधार पर ''अच्छे ठहराये'' जाकर धर्मी कहलाने की कोशिश कर रहे थे। परंतु परमेश्वर का नियम इससे भी आगे जाता है वह तो हमारे मन की भयानक सत्यता को जांचता है जो हमारे मन के भीतर पवित्र परमेश्वर के प्रति पाप और विरोध बसा है वह उसको देखता है। रोमियों के अंतिम शब्दों को देखिये,
''इसलिये कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है'' (रोमियों ३:२०)
आप को अपने आप में ''हताशा पैदा'' हो जाना चाहिये − अपने हृदय की पापमयी दशा के प्रति!
जो लोग अपने प्रयासों से मुक्ति पाने का प्रयास कर रहे हैं उनकी आत्मा के बचाव के लिये परमेश्वर के पास हल है। जितना अधिक वह प्रयास करते हैं पाप से संघर्ष करके उस पर विजय पा लें जितना अधिक वह प्रयास करते हैं पाप से संघर्ष करके उस पर विजय पा लें उतना अधिक वह पाप में घसीटे जाते हैं। क्या आप की भी ऐसी परिस्थति नहीं है? जितना अधिक प्रयास आप करते हैं कि पाप न करें उतने अधिक आप पापी होते जाते हैं मसीह ने आप को पाप से मुक्ति देने के लिये जो बचाव तैयार किया है आप उसको और अधिक धकेलते जाते हैं और अपनी अच्छाई को स्थापित करते जाते हैं जिसमें आप अपने जीवन को पुर्नसमर्पित करते हैं, आगे जाते हैं, एक पापी की प्रार्थना वाले शब्दों को दोहराते भर हैं, उद्वार कैसे प्राप्त करें इसके बारे में सीखते रहते हैं, और न जाने ऐसे कितने धर्म कर्म के कार्य करते रहते है सिर्फ इस आशा में कि आप के प्रयासों से पाप मुक्ति मिल जाये। लेकिन स्मरण रखें आप के कुछ भी सीखने, कहने, करने या महसूस करने से, आप को परमेश्वर की शांति नहीं मिलेगी, क्योंकि परमेश्वर आप के व आत्मा की पापी दशा को भली भांति जानता है।
व्यवस्था के कार्य आप के लिये जो नहीं कर सकें वह परमेश्वर का अनुग्रह आप को मसीह के लहू पर ''विश्वास रखने से'' उद्वार प्रदान कर सकता है। केवल मसीह के लहू में आप को पापों से छुटकारा मिल सकता है और परमेश्वर के क्रोध को शांत किया जा सकता है। वह आपके स्थान पर बलिदान हुये और आप के पापों का दंड चुकाया अत: उनका लहू आप को सारे पापों से क्षमा कर सकता है! मसीह यीशु ने हरेक जन के पापों का पूरा दंड क्रूस पर चुकाया है।
तो फिर आप के करने के लिये क्या बचा है? इसका उत्तर रोमियों ३:२६ में दे रखा है,
''कि जिस से वह (परमेश्वर) आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे, उसका भी धर्मी ठहराने वाला हो'' (रोमियों ३:२६)
यीशु पर विश्वास करना आवश्यक है। यह वाक्य उस भटके हुये व्यक्ति के संघर्ष के लिये पूरा उत्तर है जो ''आज्ञा मानने'' के द्वारा अच्छा जीवन जीना चाह रहा है और अनेक ''निर्णय'' ले रहा हो। अपने अच्छे कार्यो और ''निर्णयों'' को दूर कीजिये अपने मनोवैज्ञानिक आत्म परीक्षण को दूर कीजिये और दूसरों से बेहतर होने की अपनी डींगों को छोड दीजिये। आप इन चीजों को करने के द्वारा नहीं बच सकते।
''जो यीशु पर विश्वास करे, (परमेश्वर) उसका भी धर्मी ठहराने वाला हो'' (रोमियों ३:२६)
मसीह के लहू पर विश्वास कीजिये, जो आप के लिये क्रूस पर बहाया गया, और अब स्वर्ग में विधमान है, जहां वह सदैव निर्मल, और सारे पापों को शुद्व करने में समर्थ है। उस लहू पर विश्वास कीजिये, जो मसीह का लहू है और आप अपने सारे पापों से मुक्त हो जायेंगे! डॉ चान कृपया प्रार्थना कीजिये।
अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा धर्मशास्त्र से पढा गया: रोमियों ३:२०−२६
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गान गाया गया:
''सब मेरे पापों के लिये'' (द्वारा नार्मन क्लेटन, १९४३)