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जल और लहूTHE WATER AND THE BLOOD द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स रविवार की सुबह, २० सितंबर, २०१५ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में ''परन्तु सिपाहियों में से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उस में से तुरन्त लोहू और पानी निकला। जिस ने यह देखा‚ उसी ने गवाही दी है‚ और उस की गवाही सच्ची है; और वह जानता है‚ कि सच कहता है कि तुम भी विश्वास करो।'' (यूहन्ना १९:३४‚३५) |
बारह चेलों में यूहन्ना सबसे छोटा था। यूहन्ना केवल १८ वर्ष था। यद्यपि वही एकमात्र चेला था जो यीशु मसीह के साथ कूस तक गया था। उनमें से शेष तो फिर भी छिपे हुये थे। इस बात में भी एक सबक छुपा हुआ है। अमेरिकी सेना १८ से २२ वर्ष तक की उम्र के लडकों को युद् के लिये चुनती है। बूढे लोग अधिक रुढ़िवादी और कम हिम्मत वाले होते हैं। मेरा विचार हैं कि इतिहास में जितनी भी विशाल आत्मिक जाग्रतियां हुई उनका नेतृत्व जवानों ने किया हरेक जन जवान था! मैंने बूढे लोगों का जागरण कभी नहीं सुना। मैंने बूढे लोगों के मध्य आत्मिक जाग्रति की बात कभी नहीं सुनी।
यद्यपि‚ मुझे थोडा सावधान होना पडेगा। मैंने पिछले सप्ताह आत्मिक जाग्रतियों पर जोर देना रोक दिया है जब मैंने इस विषय पर कुछ अधिक भ्रांति देखी और परिणामस्वरूप बहुत कम जागरूकता देखी। पर फिर भी आप को इन विषयों पर मेरी सलाह चाहिये रहेगी। मैं एक बूढा सैनिक हूं। मैं अनेक लडाइयों से होकर गुजरा हूं − उनमें से कुछ तो बहुत बडी लडाइयां थी! सेमनरी में बाइबल के महत्व के लिये लडी गयी लडाई। गर्भपात के लिये लडी गयी लडाई। उस भयंकर चलचित्र ''दि लास्ट टैंपटेशन आँफ क्राईस्ट'' के लिये लडाई। रूकमैनिज्म के विरुद्ध लडाई। निर्णयवाद के विरुद्ध संघर्ष। ओलिवा विभाजन में जिन्होंने हमारा चर्च छोडा उनके लिये लंबी लडाई। इसके साथ ही‚ मैं परमेश्वर द्वारा भेजी गयी तीन बडी अनोखी आत्मिक जाग्रतियों का गवाह रहा हूं। तो‚ इस बूढे सैनिक ने कहा‚ ''थोडा रूको! हम अभी तैयार नहीं हैं!'' पुराने सैनिक इस प्रकार के तौर तरीके जानते हैं। डगलस मैकआर्थर अमेरिका के महानतम सेनापतियों में से एक था। विश्व युद्व २ के समय फिलिपाइंस से प्रेसीडेंट रूजवेल्ट ने उन्हें निकाल दिया था। लेकिन जब प्रेसीडेंट चले गये तो सेनापति मैकआर्थर ने कहा कि‚ ''मैं लौटूंगा।'' वह लौटे! और हम जीते! परमेश्वर का धन्यवाद हो! हे जवानों‚ हम लौटेंगे − और मैं मानता हूं‚ कि जल्द या देर से‚ हम हमारे समय में जरूर आत्मिक जाग्रति देखेंगे!
प्रभु‚ आत्मिक जाग्रति भेजिये‚
प्रभु‚ आत्मिक जाग्रति भेजिये‚
प्रभु‚ आत्मिक जाग्रति भेजिये−
और यह आप की ओर से आने दीजिये!
वापस यूहन्ना पर आता हूं! क्या आदमी था यूहन्ना! वह पतरस से अधिक बहादुर था! थॉमस से अधिक विश्वास उसके अंदर था। वह कूस के समीप खडा रहता है। क्या आप जानते हैं‚ कि इस तरह उसने अपने जीवन को दांव पर लगा दिया था। वह वहां खडा होता है‚ और यीशु की माता को बचाता है। वह केवल एक किशोर ही है। पर क्या व्यक्ति है! कैसा हीरो है! वह कूस के रास्ते भर अपने मसीहा के साथ साथ चलता है! वह वहां खडे रहकर‚ अपने प्रभु अपने स्वामी को मरते हुये देखता है! मैं यकीनन जानता हूं कि उसने भी सोचा होगा कि अब सब समाप्त हो गया है। पर समाप्त नहीं हुआ था। समाप्त हो भी नहीं सकता है। मसीह ने कहा था‚ ''मैं पुन: लौटूंगा।'' हमारे महान मसीहा‚ हमारे महान सेनापति लौटेंगे! उन्होंने कहा था ''मैं पुन: लौटूंगा'' (यूहन्ना १४:३) और वह बिल्कुल वैसा ही करेंगे जैसा उन्होंने कहा था!
वे हमें इराक में मार रहे हैं। वे हमें इरान में मार रहे हैं। वे हमें सीरिया में मार रहे हैं। वे हमें नार्थ अफ्रीका में मार रहे हैं। यहां तक कि वे हमें व्हाइट हाउस में मार रहे हैं! यहां तक कि वे तानाशाह भी हो गये हैं! मैंने एक अमेरिकन सभासद को इसकी संभावना व्यक्त करते हुये सुना था। हो सकता है कि हमें आतंक में समय बिताना पडे! हमें भूमिगत हो जाना पडे − जैसा उन्होंने हमें चीन में भूमिगत हो जाने के लिये मजबूर किया। वे कुछ भी क्यों न करें‚ हमारे महान सेनापति ने कहा था‚ ''मैं पुन: लौटूंगा!'' धन्यवाद प्रभु! हमारे पास प्रभु की यह प्रतिज्ञा है! ''वह पुन: आ रहा है'' − आइये यह कोरस गायें।
वह पुन: आ रहा है‚ वह पुन: आ रहा है‚
वही यीशु‚ मनुष्यों का त्यागा हुआ;
वह पुन: आ रहा है‚ वह पुन: आ रहा है‚
सामर्थ और महिमा के साथ‚
वह पुन: आ रहा है!
(''वह पुन: आ रहा है'' मैबल जॉनस्टन कैंप‚१८७१−१९३७)
पुन: यूहन्ना पर लौटता हूं! कैसा हीरो था! क्या आदमी था! वह वहां खडे रहकर‚ अपने प्रभु अपने स्वामी को मरते हुये देखता है! मैं यकीनन जानता हूं कि उसने भी सोचा होगा कि अब सब समाप्त हो गया है। पर हो सकता है‚ मैंने कहा कि हो सकता है....यीशु के ये शब्द उसके दिमाग में कौंधे होंगे‚
''मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा। और वे उसे मार डालेंगे‚ और वह तीसरे दिन जी उठेगा। इस पर वे बहुत उदास हुए'' (मत्ती १७:२२‚२३)
''हो सकता है!'' ''नहीं‚ यह नहीं हो सकता है!'' ''परंतु हो सकता है!'' मुझे पक्का विश्वास है कि ये विचार यूहन्ना के दिमाग में आये होंगे। और इसलिये वह देखता रहा उसने अपने आप को फौलादी बना लिया और एक एक बात गौर से देखता रहा। वास्तव में‚ ऐसी महत्वपूर्ण घटना उसने पहले कभी नहीं देखी होगी।
मैं सोचता हूं कि यूहन्ना जानता था। मैं तो यह भी सोचता हूं कि वह जानता था कि एक दिन वह इन बातों को कलमबद् करेगा! उसे इसे ठीक से देखना था। उसे एक एक वृत्तांत याद रखना आवश्यक था। अर्नेस्ट हैंमिंग्वे के समान‚ जिसने सोचा था कि उसे लिखना होगा ''बिल्कुल सत्यता के साथ − किसी भी प्रकार की बनावट के बिना या बिना धोखा दिये।'' इसलिये यूहन्ना हर बात गौर से देखता रहा‚ और अपने दिमाग में तथ्य एकत्रित करता रहा।
क्या हम ऐसा नहीं करते जब हमारा कोई प्रिय व्यक्ति मर जाता है? हमें छोटी से छोटी बात याद रहती है। हम हमारे दिमाग के टेप बार बार चलाकर देखते हैं। क्या आप ऐसा नहीं करते हैं?
यहां तक कि मेरी उम्र के प्रत्येक अमेरिकी को उस दिन की सारी बातें याद होगीं जब प्रेसिडेंट कैनेडी को गोली मारी गई थी। वे बातें हमेशा के लिये हमारे दिमाग में अंकित हो चुकी हैं। जिस दिन मेरी दादी की मृत्यु हुई थी मुझे उस दिन की एक एक छोटी से छोटी बात याद है − यह ५८ साल पहले की बात है जब मैं मात्र १५ साल का था। जिस दिन मेरी प्यारी मां का देहावसान हुआ था उस दिन की मुझे छोटे से छोटी बात याद है। जिस दिन मेरी प्यारी मां का देहावसान हुआ था उस दिन की मुझे छोटे से छोटी बात याद है। मैं जानता हूं कि मैं कहां था। मैं जानता हूं कि मैं क्या पढ रहा था। मुझे याद है कि उनका अस्पताल का कमरा कैसा दिखता था। मुझे याद है कि उनके कमरे की दीवार पर कौनसा चित्र टंगा था। मुझे याद है कि वह कैसी दिखती थी। मुझे याद है कि नर्स ने क्या कहा था। मुझे याद है डॉक्टर कैसा दिखता था। मुझे यह भी याद है कि उसने कैसे कपडे पहन रखे थे। अस्पताल की गंध कैसी थी। ये सब बारीकियां मेरे दिमाग में सदा के लिये अंकित हो चुकी थी।
और इसी तरह यूहन्ना के साथ हुआ। जिस दिन यीशु कूस पर मरे उस दिन की एक भी घटना वह कभी नहीं भूल नहीं सका।
''परन्तु सिपाहियों में से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उस में से तुरन्त लोहू और पानी निकला। जिस ने यह देखा‚ उसी ने गवाही दी है‚ और उस की गवाही सच्ची है; और वह जानता है‚ कि सच कहता है कि तुम भी विश्वास करो।'' (यूहन्ना १९:३४‚३५)
डॉ आर सी एच लैंस्की ने कहा था‚ ''यही वह परम सत्य था जिससे (विधर्मी सेरिंथुस) और पूर्व में हुए रहस्यवादियों ने इंकार किया। उनकी परिकल्पना में लोगोस (वचन) देहधारी नहीं हुआ था; आत्मा और लोगोस (‘जिसे यह मसीह का इयान’) कहकर बुलाते थे जो मसीह के उपर उतरा था और दुख भोग काल के पहले ही छोडकर चला गया; ‘मसीह’ दुख नहीं उठा पाये......यह एक प्रकार की भ्रांत शिक्षा थी। ऐसे विधर्मी लोग संगति या प्रभु भोज को ‘यीशु जो (परमेश्वर के) पुत्र’ हैं बिना उन के बलिदान और रक्त से शुद्व होने के स्मरणार्थ मनाते हैं यह दावा आज प्रत्येक उन समूहों द्वारा किया जाता है जो ‘प्राचीन काल से रक्त बहाये जाने की शिक्षा’ का उपहास (तुच्छ जानते) करते हैं। ‘रक्त’ विशिष्ट है बजाय ‘मृत्यु’ के‚ क्योंकि ‘रक्त’ संकेत है बलिदान का। हमेशा रक्त बहाया जाता है। परमेश्वर के मेम्ने ने अपना रक्त हमारे पापों के क्षतिपूर्ति (प्रायश्चित) स्वरूप बहाया...... यह ‘यीशु‚ परमेश्वर के पुत्र का’ रक्त था वह यीशु जो मनुष्य थे और जो रक्त बहाया वह ‘परमेश्वर के पुत्र‚’ भी थे‚ देहधारी वचन थे‚ त्रिएकत्व के दूसरे व्यक्ति थे‚ जो देहधारी हुये (यूहन्ना १:१४)‚ जिनका रक्त‚ जब बहाया गया‚ उसमें इतनी सामर्थ है कि हमारे सारे बुरे कर्मो को धो सके'' (आर सी एच लैंस्की‚ टी एच डी‚ दि इंटरपिटेशन आँफ दि इपिसेल्स आँफ सेंट जॉन‚ आग्सबर्ग पब्लिशिंग हाउस‚ १९६६‚ पेज ३८९; १ यूहन्ना १:७ पर व्याख्या)
डॉ लैंस्की एक लूथरन थे। लेकिन मैं किसी की भी परवाह नहीं करता (मेरा कहने का तात्पर्य किसी की भी) बिल्कुल परवाह नहीं करता कोई कुछ भी कहे − उन्होंने तो बिल्कुल सही कहा था − और वह उस समय बिल्कुल सही थे जब ''पुरानी रक्त बहाये जाने वाली धर्मविज्ञानी शिक्षा'' को अस्वीकार कर दिया गया था।
''क्योंकि प्राण के कारण लोहू ही से प्रायश्चित्त होता है।'' (लैव्यव्यवस्था १७:११)
''जो हम से प्रेम रखता है‚ और जिस ने अपने लोहू के द्वारा हमें पापों से छुड़ाया है।'' (प्रकाशितवाक्य १:५)
मैं बिना डर के इसे गाना पसंद करता हूं। मैं इसे जॉन मैकआर्थर के चर्च में गाना पसंद करूंगा! वह रक्त को नीचा दिखाते हैं। मैं तो चाहूंगा जॉन मैकआर्थर स्वयं यह गीत गाये!
क्या तुम यीशु के पास शुद्व होने के लिये गये हैं?
क्या आप मेम्ने के लहू में शुद्व हुये हैं?
क्या संपूर्ण भरोसा उस पर रखते हो?
क्या आप मेम्ने के लहू में शुद्व हुये हैं?
क्या आप लहू में शुद्व हुये हैं‚
आत्मा शुद्व करने हार मेम्ने के लहू में?
क्या तुम्हारे वस्त्र निष्कलंक हैं? क्या वे श्वेत हैं जितने कि बर्फ?
आत्मा शुद्व करने हार मेम्ने के लहू में?
(''क्या आप लहू में शुद्व हुये हैं?'' एलिशा ए हाफमन‚१८३९−१९२९)
वैसे‚ उस ''पुरानी रक्त बहाये जाने वाली धर्मविज्ञानी शिक्षा'' में कौनसी खास चीज गलत थी? डॉ मार्टिन ल्योड जोंस ने कहा था कि‚ ''लोग ‘रक्त की धर्मविज्ञानी शिक्षा‚’ को तिरस्कार के रूप में देखते थे पर मसीह के रक्त बहाने वाली इस शिक्षा से अलग हटकर कोई शिक्षा इतने अधिक महत्व की नहीं थी'' (मार्टिन ल्योड जोंस‚ एम डी‚ एश्योंरेस (रोमंस ५) ‚ बैनर आँफ ट्रूथ ट्रस्ट‚ १९७१‚ १४८)
वास्तव में दो प्रकार की धर्मविज्ञानी शिक्षा है − भले कार्यो वाली शिक्षा‚ और मसीह के रक्त वाली शिक्षा। फिने का धर्मविज्ञान और लूथर का धर्मविज्ञान। निर्णयवाद का धर्मविज्ञान या सुधारवाद का धर्मविज्ञान – दो धर्मविज्ञानी शिक्षा है‚ आप को चयन करना है। मैं उम्मीद करता हूं कि आप सही शिक्षा का चयन करेंगे‚ ''क्योंकि बिना रक्त बहाये माफी नहीं होती'' (इब्रानियों ९:२२) कैन सब्जियों के चढावे के साथ आया था जो (कार्य प्रार्थना‚ निर्णय का संकेत हैं)। उसका भाई हाबिल परमेश्वर के सामने रक्त का चढावा लाया। कैन की भेंट अस्वीकार हो गई। हाबिल की स्वीकार कर ली गई। उद्वार पाने के दो रास्तों को समझाने का यह बुनियादी उदाहरण है − कार्यो द्वारा उद्वार प्राप्त करना या रक्त द्वारा उद्वार प्राप्त करना। इस विषय में बाइबल में बिल्कुल साफ और सीधा लिखा है! या तो लोग सोचते हैं कि उनके भले कार्य उन्हें बचा लेंगे − या फिर वे महसूस करते हैं कि वे इतने अच्छे नहीं हो सकते और उनके बुरे कर्म केवल मसीह के रक्त से ही शुद्व किये जा सकते हैं। डॉ लैंस्की ने कहा था‚ ''कि एकमात्र मसीह का पवित्र और कीमती लहू हम बेचारे पापियों को परमेवर की संगति में ला सकता है और उसमें बनाये रख सकता है'' (पूर्वोक्त‚ पेज ३९०) । लूथर ने कहा था मसीह का रक्त परमेश्वर का रक्त था‚ और वह व्यक्तित्व शाश्वत और अनंत हैं‚ यहां तक कि उसकी एक बूंद ही संसार को बचाने के लिये पर्याप्त है'' (यशायाह ५३:३ पर व्याख्या) पुन: लूथर ने कहा कि‚ ''मसीह इस संतोष को पूर्ण करने के योग्य हैं कि उनके लहू की एक बूंद भी संसार के पापों को क्षमा करने के लिये पर्याप्त हैं'' (गलातियों २:१६) । और तीसरी बार इस महान सुधारक लूथर ने कहा‚ ''वह वह है जो अपने लहू द्वारा हमें छुटकारा देता है उसका लहू परमेश्वर का लहू है‚ जो सर्वशक्तिमान सृष्टिकर्ता है‚ महिमा के प्रभु का लहू है‚ परमेश्वर के पुत्र का लहू है। इसलिये चेले इसके विषय में बोलते हैं और इसके लिये जोर देकर गवाही देते हैं'' (१ यूहन्ना १:१७ प्रकाशितवाक्य १:५ पर व्याख्या)
शिष्य यूहन्ना ने कहा था‚
''परन्तु सिपाहियों में से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उस में से तुरन्त लोहू और पानी निकला।'' (यूहन्ना १९:३४)
यूहन्ना केवल मसीह के साथ कूस पर घटी घटनाओं का विवरण नहीं दे रहा था। वह मसीह के रक्त का बडा महत्व भी जानता है। उसने अपनी पहली पत्री में लिखा था‚ ''और उसके पुत्र यीशु का लोहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है'' (१यूहन्ना १:७) । पुन: पहली पत्री में लिखा था‚ ''और गवाही देने वाले तीन हैं; आत्मा, और पानी, और लोहू; और तीनों एक ही बात पर सहमत हैं'' (१यूहन्ना ५:८) ।
''परन्तु सिपाहियों में से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उस में से तुरन्त लोहू और पानी निकला।'' (यूहन्ना १९:३४)
इतिहास में काउंट निकोलस वॉन जिनजेनडॉर्फ (१७००−१७६०) महानतम मसीहियों में से एक था। वह यह सोचते सोचते ही परिवर्तित हो गया कि उसे उसके पापों से शुद्ध करने के लिये यीशु कूस पर रक्त बहा रहे थे। क्रूसित मसीह की पेंटिग के उपर लिखे वे शब्द‚ उसके मन के अंदर घर कर गये‚ ''ये मैंने तुम्हारे लिये किया तुम मेरे लिये क्या करते हो?'' इस कुलीन वर्ग के जवान के अंदर अपने पापों का बोध जागा; और उसने अपने मन मे जाना कि उसके पाप यीशु के रक्त से शुद्ध हो गये हैं। उसने संसार में दूर दूर तक मिशनरियों को भेजना प्रारंभ किया उसने आधुनिक मिशनरी आंदोलन प्रारंभ किया। उसके मिशनरियों में से एक जॉन वेस्ली को यीशु के पास लेकर आये। तो इस तरह उन्होंने पहली आत्मिक जाग्रति और संपूर्ण मैथोडिस्ट मिशन पर बुनियादी प्रभाव डाला। उनका प्रभाव विलियम कैरी (१७६१−१८३४) पर इस तरह पडा कि कैरी पहले बैपटिस्ट मिशनरी बन भारत निकल पडे। उसके पश्चात हजारों बैपटिस्ट मिशनरियों ने उनका अनुसरण किया।
जिनजेनडॉर्फ का प्रचार और धर्मविज्ञानी सिद्वांत पूर्णत मसीह पर आधारित था। जिनजेनडॉर्फ का कथन था‚ ''मसीह का रक्त पाप के लिये न केवल सर्वोच्च उपचार है; पर यह मसीही जीवन के लिये (मुख्य) पोषक भी है।'' वह लगातार मसीह के घावों पर‚ और मसीह के रक्त पर प्रचार करता था। उसका कथन था कि‚ ''रक्त के द्वारा पूर्ण उद्वार प्राप्त होने के लिये आत्मा हम तक पहुंचता है।'' उसने कहा‚ ''मैं प्यासा हूं‚ आपके घायल हुए परमेश्वर के मेम्ने के लिये‚ ताकि मुझे आपके शुद्व करने वाले लहू में धो सके।'' उसने यह गीत जर्मन में लिखा और जॉन वेस्ली ने इसे अंगेजी में अनुवादित किया‚
यीशु‚ आपका लहू और धार्मिकता‚
मेरी सुंदरता मेरा महिमामय वस्त्र है;
इस ज्वलंत संसार में‚ अपने को इस पोशाक में सजाता हूं‚
आनंद के साथ मैं अपना शीश उपर उठाउंगा।
प्रभु‚ मैं आपके कीमती लहू पर विश्वास करता हूं‚
जो‚ आपके दया के सिंहासन पर रखा है‚
जो हमेशा पापियों की पुकार सुनकर शुद् करता है‚
जो मेरे लिये‚ मेरी आत्मा के लिये‚ बहाया गया
औगुस्तुस टॉपलेडी (१७४०−१७७८) कोई मूर्ख नहीं था। उसने वेस्टमिंस्टर स्कूल और आयरलैंड के डबलिन में कॉलेज से शिक्षा पाई थी। वह १५ वर्ष की आयु में परिवर्तित हो गया था। वह इंग्लैंड में २४ वर्ष की आयु में अभिषिक्त हो गया था। एल्गिन एस मोयर ने कहा था‚ ''चर्च आँफ इंग्लैंड में कैल्वेनिज्म का सर्वोत्तम जन बडी ईमानदारी से तर्क करता था और लिखता था'' (हू वॉज हू इन चर्च हिस्ट्री‚ मूडी प्रेस‚ १९६८‚ पेज ४०८) इस महान और विद्वान व्यक्ति ने वे गीत लिखे थे जो मेरे संदेश प्रारंभ होने से पूर्व हमने गाये थे। इस गीत में टॉपलेडी ने यीशु को युगों की चट्टान कहा है। जब मै पंद्रह साल का था तब मैंने पहली बार इस गीत को मेरी दादी की अंत्येष्टि में सुना था। इसने मेरे छोटे दिमाग पर इतना असर डाला कि मैं एक गीत की पुस्तक लाया और इसके शब्द बार बार पढे। यह आप के गीत के पेज पर पहली संख्या पर है। आइये इसे गायें।
युगों की चट्टान‚ मेरा रक्षा-स्थान‚ मुझे अपने में छुपने दें;
जल और लहू बह गये‚ जो तेरे घायल बाजू से बह गये‚
मेरे पाप के लिये दोहरा बचाव है‚ मुझे दोष और इसकी जकडन से साफ करता है
(''युगों की चट्टान‚ मेरा रक्षा-स्थान'' औगुस्तुस एम टॉपलेडी (१७४०−१७७८)
यीशु से यह प्रार्थना है‚ जो कूस पर घायल (विदीर्ण) लटके हुए थे यीशु से यह प्रार्थना है‚ कि पापों को उस जल और रक्त से धो दें जो घायल देह से बहे थे। यूहन्ना ने बाजू से जल और लहू को बहते देखा था। इसका यह अर्थ होना चाहिये कि सैनिक ने भाला यीशु के हृदय के पास स्थित जल की थैली पर मारा था − जिससे जल और लहू मिश्रित द्रव बाहर आया। यह वह जलीय लहू है जो अभी भी ताजा और उपलब्ध है जो सदा काल के लिये हमें सारे पापों से साफ करता है‚ और हमारी आत्मा को अनंतकाल‚ तक के लिये पाप से बचाता है। जब आप विश्वास से यीशु के पास आते हैं आप तत्क्षण अपने सारे पापों से यीशु के लहू द्वारा परमेश्वर की दृष्टि में शुद्व किये जाते हो। किसी भावना या अनुभूति को मत तलाशिये। यीशु की ओर देखिये। अपने हृदय में उन पर विश्वास कीजिये। आप वह दिन कभी नहीं भूलेंगे जब आप परमेश्वर की निगाह में पवित्र और कीमती लहू से धोये गये।
यूहन्ना ने तीसरे व्यक्ति के रूप में पुस्तक लिखी है‚ लेकिन मैं जोर देने के लिये हमारे पद में प्रथम पुरूष का उपयोग करूंगा।
''परन्तु सिपाहियों में से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उस में से तुरन्त (अचानक) लोहू और पानी निकला। (मैं) ने यह देखा‚ (और) गवाही दी है‚ और (मेरी) गवाही सच्ची है। (मैं जानता हूं) कि (मैं) सच कहता हूं‚ कि (मैं) गवाही दूं और तुम भी विश्वास करो।'' (यूहन्ना १९:३४‚३५)
यूहन्ना ने लिखा ताकि आप पाप और न्याय से बच जायें और यीशु जो परमेश्वर के पुत्र हैं उनके घायल बाजू से बहे जल और रक्त में धुलकर निर्मल हो जाये। सब कुछ समझने की चेष्टा मत कीजिये। यह इतनी गहरी बात हैं कि आप इसे पूर्ण रूप से समझ नहीं पायेंगे। यूहन्ना ने लिखा ताकि ताकि आप अपने हृदय से विश्वास करें। जब आप प्रभु यीशु पर भरोसा करते हैं‚ तो आप बुरे कर्मो के प्रभाव से धुलकर साफ होते हैं‚ और बचाये जाते हैं। डॉ चान आप प्रार्थना में हमारी अगुवाई कीजिये।
अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स आप से सुनना चाहेंगे। जब आप डॉ हिमर्स को पत्र लिखें तो आप को यह बताना आवश्यक होगा कि आप किस देश से हैं अन्यथा वह आप की ई मेल का उत्तर नहीं दे पायेंगे। अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये उन्हे आप किस देश से हैं लिखना न भूलें।। डॉ हिमर्स को इस पते पर rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये) ई मेल भेज सकते हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा। अगर डॉ हिमर्स को डाक द्वारा पत्र भेजना चाहते हैं तो उनका पता इस प्रकार है पी ओ बाक्स १५३०८‚ लॉस ऐंजील्स‚ केलीफोर्निया ९००१५। आप उन्हें इस नंबर पर टेलीफोन भी कर सकते हैं (८१८) ३५२ − ०४५२।
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा धर्मशास्त्र से पढा गया: यूहन्ना १९:३१−३७
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गान गाया गया:
''कांटो का ताज'' (इरा एफ स्टेनफिल‚ १९१४−१९९३)