इस वेबसाईट का उद्देश्य संपूर्ण विश्व भर के पास्टर्स व प्रचारकों को, विशेषकर तीसरी दुनिया के पास्टर्स व प्रचारकों को नि:शुल्क हस्तलिखित संदेश और संदेश के विडियोज उपलब्ध करवाना है, जहां बहुत कम धर्मविज्ञान कॉलेज और बाइबल स्कूल्स हैं।
इन संदेशों की पांडुलिपियां प्रति माह २२१ देशों के १,५००,००० कंम्प्यूटर्स पर इस वेबसाइट पते पर www.sermonsfortheworld.com जाती हैं। सैकड़ों लोग इन्हें यू टयूब विडियो पर देखते हैं। किंतु वे जल्द ही यू टयूब छोड़ देते हैं क्योंकि विडियों संदेश हमारी वेबसाईट पर पहुंचाता है। यू टयूब लोगों को हमारी वेबसाईट पर पहुंचाता है। प्रति माह ये संदेश ४२ भाषाओं में अनुवादित होकर १२०,००० प्रति माह हजारों लोगों के कंप्यूटर्स पर पहुंचते हैं। उपलब्ध रहते हैं। पांडुलिपि संदेशों का कॉपीराईट नहीं है। आप उन्हें बिना अनुमति के भी उपयोग में ला सकते हैं। आप यहां क्लिक करके अपना मासिक दान हमें दे सकते हैं ताकि संपूर्ण विश्व में सुसमाचार प्रचार के इस महान कार्य में सहायता मिल सके।
जब कभी आप डॉ हायमर्स को लिखें तो अवश्य बतायें कि आप किस देश में रहते हैं। अन्यथा वह आप को उत्तर नहीं दे पायेंगे। डॉ हायमर्स का ईमेल है rlhymersjr@sbcglobal.net.
.
जब आप उपवास करेंWHEN YOU FAST द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles ''जब तुम उपवास करो'' (मत्ती ६:१६) |
अपनी सेवकाई प्रारंभ करने के पूर्व यीशु ने भी उपवास किया था। उनके शिष्य भी उपवास करेंगे जब वह वापस स्वर्ग चले जायेंगे। उन्होंने कहा था,
''उस समय वे उपवास करेंगे।''
डॉ जॉन आर राइस ने कहा कि यह यह दर्शाता है कि उन्होंने पेंतुकुस्त पर आत्मिक जागरण के दस दिन पूर्व तक उपवास किया। मैं सोचता हूं यह सत्य होना चाहिये! शिष्य पौलुस ने अपने परिर्वतन के पूर्व तीन दिन तक उपवास और प्रार्थना की (प्रेरितों के कार्य ९:९‚११) परमेश्वर की इच्छा जानने के लिये अंताकिया के सदस्यों ने उपवास किया (प्रेरितों के कार्य १३:२) । जब पौलुस और बरनबास को मिशनरी के रूप में भेजा तो उन्होंने फिर ''उपवास और प्रार्थना'' की (प्रेरितों के कार्य १३:३) । शिष्य पौलुस का कथन था कि वह ''अक्सर उपवास'' किया करते थे (२ कुरूंथियों ११:२७) । यहां इस पद में भी यीशु हमसे कहते हैं कि हमें उपवास करना चाहिये। उन्होंने कहा, ''जब तुम उपवास करो'' (मत्ती ६:१६) उन्होंने यह भी कहा, ''उस समय वे उपवास करेंगे।'' (मत्ती ९:१५)
डॉ जे वर्नान मैगी के लिये मेरे मन में बहुत आदर है। १९६० में मैंने संपूर्ण बाइबल पढ ली थी, जिल्द से लगाकर जिल्द तक, रेडियो पर मैं उनके द्वारा एक एक पद की व्याख्या सुनते जाता। हमारे इस पद के संदर्भ में, ''जब तुम उपवास करो'' डॉ वर्नान मैगी का कथन था, ''हमारे दिनों में विश्वासियों के लिये उपवास का महत्व है। मैं इससे सहमत हूं'' (जे वर्नान मैगी, टी एच डी, थ्रू दि बाइबल, थॉमस नेल्सन पब्लिशर्स, १९८३, वोल्यूम ४, पेज ३८)।
कुछ लोग सोचते हैं कि यीशु मत्ती ६:१६−१८ में उपवास के विरूद् सिखा रहे हैं। पर लोगों का ऐसा सोचना गलत है। जैसे स्कोफील्ड के लेख बताते हैं यीशु ''कर्मकांड'' के विरूद् बोल रहे हैं। वह पाखंडपूर्ण ढंग से दूसरों के देखे जाने के विषय में सिखा रहे हैं। लेकिन वे वास्तविक उपवास के विरूद् नहीं सिखा रहे हैं। इसके ठीक विपरीत उन्होंने कहा कि ''जब तुम उपवास करो,'' और फिर उन्होंने उन्हें बताया कि इसे कैसे करें और उन्हें उन्हें इसे क्यों करना चाहिये? यीशु ने यह नहीं कहा, ''कि अगर तुम उपवास करो'' नहीं, ऐसा नहीं कहा! पर यीशु ने कहा, ''कि जब तुम उपवास करो।''
उपवास की आज भी उपयोगिता है। बाइबल के प्रसिद् टीकाकार मैथ्यू हैनरी ने अपने समय में गहरा शोक प्रगट करते हुये कहा था ''यह प्राय:....मसीहियों के बीच उपेक्षित है'' (मत्ती १६:१६ पर लेख) मैथ्यू हैनरी के मरने के २५ वर्ष उपरांत जॉन वेस्ली ने यह प्रथा जीवित की, उन्होंने लोगो को यह कहा कि पूर्वी मसीहियों के उदाहरण का अनुसरण करो जो सप्ताह में दो बार उपवास रखते थे। तो इस तरह जब लोगों की प्रार्थना और उपवास में रूचि जागी उससे प्रथम महान आत्मिक जागरण का उदय हुआ। इस तरह जाग्रत की गई उपवास और प्रार्थना की प्रथा की जडे मसीह के इस कथन में थी,
''कि जब तुम उपवास करो।'' (मत्ती ६:१६)
बाइबल कहती है कि जब आज हम प्रार्थना करते हैं तो उपवास रखने के कई कारण होते हैं। उनमें से तीन मैं आज बताने जा रहा हूं।
१. प्रथम, हमें उपवास और प्रार्थनारत रहकर परमेश्वर से शैतान की ताकत के उपर विजय मांगना चाहिये।
निवेदन है कि मरकुस ९:२८−२९ निकाल लीजिये। खडे होकर ये दो पद जोर से पढिये।
''जब वह घर में आया, तो उसके चेलों ने एकान्त में उस से पूछा, हम उसे क्यों न निकाल सके? उस ने उन से कहा, कि यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से निकल नहीं सकती'' (मरकुस ९:२८−२९)
अब आप बैठ सकते हैं। जैसा मैंने पहले भी अपने एक संदेश में कहा कि मै यह मानता हूं आधुनिक अनुवादों में मरकुस मरकुस ९:२९ मे से ''और उपवास'' शब्द हटा दिया गया है। यह एक त्रुटि है, जो गलत होने के कारण आलोचना का विषय बनती है। दुख की बात हैं कि इन आधुनिक अनुवादों में से ''और उपवास'' शब्द हटा दिया गया। ये अनुवाद उन दो पुरानी हस्तलिपियों से लिये गये हैं जो रहस्यवाद से प्रेरित पुरोहितों द्वारा तैयार की गई थी और उन्होंने ये दो शब्द हटा दिये थे। तो इन दो शंकास्पद हस्तलिपियों पर आधारित अनुवादों को जब पश्चिम के मसीही जन जब पढते हैं, तो यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है कि उपवास करना उनकी सोच में नहीं आता है। इसलिये इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि हमारे चर्चेस के पास शैतान से लडने के लिये बहुत कम ताकत है! डॉ जॉन आर राइस ने कहा था, ''इसमे कोई संदेह नहीं कि बच्चे को दुष्ट आत्मा (शैतान) ने जकड रखा था। दुष्ट आत्मा हमारे आस पास हैं।'' (कमेंटरी ओन दि गास्पल अकार्डिंग टू मैथ्यू, , सोर्ड आँफ दि लॉर्ड पब्लिशर्स संस्करण १९८०, पेज ३६४; मत्ती १७:१४−२१ पर व्याख्या) बाइबल कहती है,
''क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं, परन्तु ... उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं।'' (इफिसियों ६:१२)
आज के समय में सुसमाचार द्वारा चर्च को बनाना बहुत कठिन काम है। कुछ तो यहां तक कह रहे हैं कि सुसमाचारवाद अमेरिका में मर चुका है। मुझे तो यहां तक लगता है कि शैतान की ताकत हमारे युग में बढ गई है। मुझे ऐसा लगता है कि ''आकाश में व्याप्त दुष्टता की ताकत'' पर विजय पाने के लिये हमें परमेश्वर की ताकत की जरूरत है। आइये उपवास और प्रार्थना करें कि शैतान के शिकंजे को तोड डालें! यह बिल्कुल तर्कसंगत है कि जब चर्चेस में ठंडापन और स्वधर्मत्याग बढता जा रहा है और शैतान इतनी सारी आत्माओं पर नियंत्रण कर रहा है जिंन्हें हम जीतने का प्रयास कर रहे हैं, तो उपवास और प्रार्थना की बहुत आवश्यकता है। आइये गीत संख्या ६ निकालकर गायें। आइये गीत संख्या ६ ''मुझे दुआ करना सिखायें'' निकालकर इसका दूसरा पद ''दुआ में ताकत है'' गाएं।
दुआ में ताकत है, दुआ में ताकत है,
इस धरती पर पाप औ दुख व चिंता व्याप्त है;
मनुष्य भटके हुये और मर रहे हैं, आत्मा कष्ट में हैं;
मुझे ताकत दीजिये दुआ में ताकत!
(''मुझे दुआ करना सिखायें'' अल्बर्ट एस रीटज, १८७९−१९६६)
मुझे ऐसा लगता है कि प्रार्थना में सामर्थ का मिलना उपवास करने से जुडा है जैसे यीशु ने कहा,
''जब तुम उपवास करो'' (मत्ती ६:१६)
२. हमें उपवास और प्रार्थना करने की आवश्यकता है ताकि परमेश्वर आत्मिक जाग्रति भेजने के लिये हस्तक्षेप करें।
नहीं मै नहीं सोचता कि हरेक बात आत्मिक जाग्रति पर ही निर्भर करती है। पर अमेरिका में राष्ट्र को परिवर्तित करने वाली जाग्रति १८५९ से नहीं हुई है − और हमारे देश में स्थानीय चर्चेस में तो देखने में ही नहीं आती है। मुझे डॉ केन कोनोली का यह कथन स्मरण आता है, ''हम उस पीढी में रह रहे हैं जिसने कभी आत्मिक जाग्रति को जाना ही नहीं।'' लेकिन शिष्य पौलुस ने आत्मिक जाग्रति को जाना था! प्रेरितों के काम में हम सर्वत्र पढते हैं कि परमेश्वर ने उन आराधनाओं को आशीषित किया और उनकी विद्यमानता वहां थी। हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिये जब हम पढते हैं, कि, पौलुस समय बिताते थे
''बार बार उपवास करने में'' (२ कुरूंथियों ११:२७)
मसीही इतिहासकार, डॉ शॉफ, का कथन था कि पूर्व समय के ''मसीही जन बुधवार और विशेषकर शुक्रवार'' को उपवास का दिन माना करते थे (फिलिप शॉफ, पी एच डी, हिस्ट्री आफ दि क्रिस्चिन चर्च, अर्डसमंस पब्लिशिंग कंपनी, १९७६ संस्करण, वॉल्यूम २, पेज ३७९) । जॉन वेस्ली ने प्रथम विशाल आत्मिक जागरण के समय इस प्रथा को पुर्नजीवित किया।
नहीं, मै नहीं सोचता कि प्रार्थना और उपवास स्वयं से आत्मिक जाग्रति ला सकते हैं। न ही मैं यह सोचता हूं कि उपवास के लिये कोई दिन निर्धारित हैं। बाइबल में हमें यह वर्णन नहीं मिलता है। पर मैं यह नहीं समझ पाता कि किन्ही दिनों में प्रार्थना और उपवास किये बिना हम कैसे आत्मिक जाग्रति का अनुभव कर सकते हैं। डॉ जॉन आर राइस ने कहा था,
बाइबल के महानतम संत अक्सर उपवास किया करते थे उपवास अक्सर संपूर्ण मन की प्रार्थना से जुडा है, इसमें शोक, पश्चाताप, शत्रु से छुटकारा और उपर से बुद्धि का प्राप्त करना निहित है। मूसा ने सीनै पर्वत.......पर उपवास किया था और हमारे मसीहा ने......निर्जन में उपवास किया था। यहोशु, दाउद, एज्रा, नहेमायाह, दानियेल, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के चेले, ऐना, सारे चेले, पौलुस और बरनबास और अन्य लोग उपवास रत रहते हुये प्रार्थना करते थे। परमेश्वर के संत जब उपवास और प्रार्थना में रहते हुये परमेश्वर से उत्तर पाने की बाट जोहते थे तो उन्हें उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर भी मिलता था। बाइबल के समय से ही, महान लोगों ने अक्सर उपवास और प्रार्थनायें की हैं। एक मसीही अच्छी संगति में होता है जब वह अक्सर उपवास और प्रार्थना करता है......हमारे मसीहा ने न केवल (स्वयं) उपवास रखा लेकिन अपने चेलों को भी सिखाया कि उपवास कैसे रखें। जब उनका स्वर्गारोहण हुआ (उपर चढाये गये) उसके पश्चात चेलों ने इसे जारी भी रखा। (जॉन आर राइस, डी डी, प्रेयर − आस्किंग ऐंड रिसीविंग, सोर्ड आँफ दि लॉर्ड पब्लिशर्स, १९७० संस्करण, पेज २१५)
डॉ राइस ''उपवास और प्रार्थना के द्वारा लाई जाने वाली आत्मिक जाग्रति'' के विषय में भी बोले। (पूर्वोक्त, पेज २२७)
तौभी हमें यह नहीं सोचना चाहिये कि प्रार्थना और उपवास के द्वारा जाग्रति ''आयेगी'' रेव्ह आयन एच मुर्रे सही कहते हैं,
परमेश्वर ने प्रार्थना को आशीष का कारण ठहराया है यह नहीं कि उसके उददेश्य की पूर्ति हम पर निर्भर हो जायेगी बल्कि हमे उसके उपर संपूर्ण रूप से निर्भर होना सीखना है.....प्रार्थना की इस रूप में समझ जो हमें और नियतिवाद से दूर ले जाती है परमेश्वर की आत्मा के प्रति जागरूकता होती है और जिसे एक समकालीन लेखक कहते हैं विलक्षण रूप में.....प्रार्थना और उपवास सिर्फ (रेव्ह आयन एच मुर्रे, पेंटीकोस्ट टूडे? दि बिब्लीकल बेसिस फॉर अंडरस्टैंडिंग रिवाइवल, दि बैनर आँफ ट्रूथ ट्रस्ट, १९९८, पेज ६९)
यह बिल्कुल सही कहा गया है कि, ''जब परमेश्वर अपने लोगों को आशीषित करना चाहते हैं, तो वह सबसे पहले उन्हें प्रार्थना करने में लगा देते है।'' जॉन वेस्ली इसे दूसरी तरह से कहते हैं,
उपवास इस रीति से किया जाये कि हमारी आंखे.....परमेश्वर पर केंद्रित हों हमारा उद्देश्य केवल और केवल यही हो, कि हम अपने स्वर्गिय परमेश्वर की महिमा करें (दि न्यू इनसाइक्लोपीडिया आँफ कोटेशंस, बेकर बुक्स, २०००, पेज ३६०)
उपवास और प्रार्थना जाग्रति लाने के ''कारण'' नहीं है। परमेश्वर कारण है। उपवास और प्रार्थना में, हम परमेश्वर के पास खिंचे चले आते हैं और जब वह इन्हें उपयुक्त पाते हैं तो जाग्रति को भेजते हैं। यह सब परमेश्वर के हाथ में है। तौभी, यह भी सत्य है कि, जब जाग्रति का समय होता है तब लोगों की प्रार्थनायें भी शीघ्र, गहरी और प्रचुर होने लगती है जैसे जैसे लोग उपवास और प्रार्थना करने में बढ चलते हैं। एक वह समय था जब परमेश्वर जाग्रति भेज रहे थे तब जॉन वेस्ली यह पूछ सकते थे,
क्या आप ने के कोई से दिन निर्धारित किये हैं? अनुग्रह के सिंहासन को हिला दीजिये, धुन में लगे रहिये और दया उतर आयेगी। (लेटर्स आँफ जॉन वेस्ली, पेज ३४०)
यद्यपि हम अनुभव से जानते हैं कि हम जैसा जॉन वेस्ली ने बताया वैसे आत्मिक जागरण का अनुभव अब नहीं कर सकते जब तक कि परमेश्वर हमें प्रार्थना में ऐसी सामर्थ प्रदान न करे। हमारे मुंह से निकली प्रार्थना के लेखक स्वयं परमेश्वर हैं जिनकी प्रार्थना तब तक ''अनुग्रह के सिंहासन को हिलाती है (जब तक) दया नीचे उतर कर प्रगट न हो।'' परमेश्वर ही गहन आत्मिक जाग्रति के लिये उपवास और प्रार्थना करने का मन देते हैं। चूंकि परमेश्वर ही इस कार्य के लेखक और इसे संपन्न करने वाले हैं इसलिये उनके प्रभाव में हम ऐसी ही प्रार्थना और उपवास रखते हैं जिससे आत्मिक जाग्रति पैदा हो। अन्यथा उनके बिना हमारे समस्त उपवास और प्रार्थना व्यर्थ होंगे। आइये हम परमेश्वर के सम्मुख जायें, और अपनी आत्मा को उन्हें समर्पित करें, और उपवास और प्रार्थना करें कि वह अपने चर्च में महिमामंडित हो। केवल ऐसी परमेश्वर केन्द्रित प्रार्थना और उपवास सच्ची आत्मिक जाग्रति को उत्पन्न कर सकते हैं। आइये खडे होकर ''मुझे दुआ करना सिखायें'' पुन: गाएं! गीत संख्या ६ का दूसरा पद ''दुआ में ताकत है'' है।
दुआ में ताकत है, प्रभु, दुआ में ताकत है,
इस धरती पर पाप औ दुख व चिंता व्याप्त है;
मनुष्य भटके हुये और मर रहे हैं, आत्मा कष्ट में हैं;
मुझे ताकत दीजिये दुआ में ताकत!
(''मुझे दुआ करना सिखायें'' अल्बर्ट एस रीटज, १८७९−१९६६)
३. तीसरा, आप व्यक्ति विशेष के परिवर्तन के लिये उपवास और प्रार्थना करें।
यीशु बोलते हैं,
''जब तुम उपवास करो'' (मत्ती ६:१६)
परमेश्वर ने यशायाह से कहा था,
''जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहने वालों का जुआ तोड़कर उन को छुड़ा लेना, और, सब जुओं को टूकड़े टूकड़े कर देना?'' (यशायाह ५८:६)
वह लडका जिसे चेले स्वतंत्र नहीं कर पायें वह ''दुष्टता के बंधन में बंधा हुआ था।'' चेले उसे स्वतंत्र नहीं कर पायें क्योंकि,
''यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से निकल नहीं सकती'' (मरकुस ९:२९)
क्या आप ऐसा नहीं सोचते कि जो चर्च आ रहे हैं उनमें से कुछ ऐसी ही दशा में है? क्या शैतान जो ''इस संसार का ईश्वर है......उसने अविश्वासियों की आंखे अंधी नहीं कर दी?'' (२ कुरूंथियों ४:४) क्या आप नहीं सोचते कि जब परमेश्वर ने ऐसा कहा तो वह हमसे भी ऐसा कहते हैं,
“जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहने वालों का जुआ तोड़कर उन को छुड़ा लेना, और, सब जुओं को टूकड़े टूकड़े कर देना?” (यशायाह ५८:६)
मैं सोचता हूं जब चार्ल्स वेस्ली ने यह गीत लिखा होगा तब यशायाह के यह पद उनके दिमाग में रहे होंगे,
वह निरस्त किये हुये पाप की ताकत को तोडता है,
वह बंदी को आजाद करता है;
उसका लहू कलुषित को भी निष्कलंक करता है;
उसका लहू मेरे लिये उपयोगी है।
(''गर हजारों जीभें मेरी होती'' चार्ल्स वेस्ली, १७०७−१७८८)
निवेदन है खडे होकर यह गीत गायें ''मुझ पर अभिषेक भेजें''
वह निरस्त किये हुये पाप की ताकत को तोडता है,
वह बंदी को आजाद करता है;
उसका लहू कलुषित को भी निष्कलंक करता है;
उसका लहू मेरे लिये उपयोगी है।
कृपया बैठ जाइये।
सचमुच, हमें किस प्रकार से उपवास और प्रार्थना उन लोगों के लिये करते रहना चाहिये जो अभी तक अपरिवर्तित हैं! सचमुच, हमें किस प्रकार से मसीह से प्रार्थना करते रहना चाहिये कि वह लोगों के उपर से पाप के प्रभाव को निष्प्रभावी करें और जो शैतान के बंधन में जकडे हैं उन्हें मुक्त करवायें! सचमुच, हमें कितनी अधिक मसीह से प्रार्थना और उपवास में लगे रहने की आवश्यकता है
''अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहने वालों का जुआ तोड़कर उन को छुड़ा लेना......''! (यशायाह ५८:६)
चार्ल्स वेस्ली का गीत पुन: गायें!
वह निरस्त किये हुये पाप की ताकत को तोडता है,
वह बंदी को आजाद करता है;
उसका लहू कलुषित को भी निष्कलंक करता है;
उसका लहू मेरे लिये उपयोगी है।
चार्ल्स के भाई जॉन वेस्ली ने जाग्रति के समय में, इसे बहुत अच्छे ढंग से कहा था,
क्या आप ने के कोई से दिन निर्धारित किये हैं? अनुग्रह के सिंहासन को हिला दीजिये, धुन में लगे रहिये और दया उतर आयेगी।
(पूर्वोक्त)
क्या हम ठीक ऐसा अगले शनिवार कर सकते हैं! क्या हम जो समर्थ है अपने घर पर उनके लिये जो भटके हुये हैं उपवास और प्रार्थना कर सकते हैं! बेशक आप में से सब ऐसा नहीं कर सकते। पर जैसे समय, स्वास्थ्य और परिस्थितियाँ अनुमति दे तो आप में से जो समर्थ हो उपवास और प्रार्थना कर सकता हैं। तो अगले शनिवार पुन: आइये और संध्या ५:३० बजे प्रार्थना करके उपवास तोडिये और भोजन कीजिये और परमेश्वर में आनंदित होते हुये घर लौटिये! सचमुच, चार्ल्स वेस्ली का गीत कितना सत्य है! इसे पुन: गाइये!
वह निरस्त किये हुये पाप की ताकत को तोडता है,
वह बंदी को आजाद करता है;
उसका लहू कलुषित को भी निष्कलंक करता है;
उसका लहू मेरे लिये उपयोगी है।
क्या आज रात यहां कोई ऐसा है जो खोया हुआ हो? हमने आप के लिये प्रार्थना की है। आप को शैतान की पकड से छुडाने के लिये यीशु मसीह की आवश्यकता है और उसके बेशकीमती लहू से अपने पापों को धोने की आवश्यकता है। हम प्रार्थना कर रहे हैं कि आप विश्वास करें और बचाये जायें।
यहां उन बिंदुओं की सूची है जिनके उपर हम भटके हुओं के लिये शनिवार को उपवास और प्रार्थना करेंगें।
१. अपने उपवास को गुप्त रखिये (जितना अधिक संभव हो) लोगो पर जाहिर मत करते रहिये (अपने रिश्तेदारों पर भी नहीं) कि आप उपवास कर रहे हैं।
२. बाईबल पढने में समय बिताइये। अगर प्रेरितो के काम को पढेंगे (अच्छा होगा उसके प्रारंभिक भागों को पढें)।
३. शनिवार के उपवास के दिन यशायाह ५८:६ को स्मरण कीजिये।
४. प्रार्थना कीजिये कि परमेश्वर हमारे चर्च में दस और नये लोग दें जो हमारे चर्च में ठहरे रहें।
५. उन जवानों के नाम लेकर परिवर्तन के लिये प्रार्थना कीजिये परमेश्वर से ५८:६ में कही बातों को उनके लिये करने के लिये मांगिये।
६. प्रार्थना कीजिये कि आज (रविवार) को जो आगंतुक पहली बार आये हैं वे अगले रविवार भी आयें। संभव हो तो उनके नाम लेकर प्रार्थना कीजिये।
७. परमेश्वर से प्रार्थना कीजिये कि मुझे मार्गदर्शन दें कि मैं अगले रविवार को क्या प्रचार करूं − सुबह और संध्या को।
८. खूब मात्रा में पानी पीजिये। हर घंटे में एक एक गिलास पीजिये। अगर आपको रोज सुबह कॉफी पीने की आदत है तो प्रारंभ में ही एक बडा कप भरकर कॉफी पी लीजिये। शीतल पेय या स्फूर्ति देने वाले पेय पदार्थ मत पीजिये।
९. अगर अपने स्वास्थ्य के लिये चिंतित हैं तो उपवास के पहले मेडिकल डॉक्टर से चर्चा कर लीजिये। (आप डॉ क्रेटन चान या डॉ जूडिथ कैगन को जो हमारे चर्च में हैं उन्हें दिखा सकते हैं) उपवास मत कीजिये अगर आप को कोई गंभीर विकार है तो जैसे डायबिटिज या उच्च रक्तचाप आदि। आप शनिवार का उपयोग इन निवेदनों के उपर प्रार्थना करने में भी बिता सकते हैं।
१०. शुक्रवार के भोजन के पश्चात उपवास प्रारंभ कीजिये शुक्रवार के भोजन के बाद अगले दिन शनिवार की संध्या ५:३० तक चर्च में मिलने वाले खाने के अतिरिक्त कुछ ग्रहण मत कीजिये।
११. स्मरण रखिये कि सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हमारे चर्च में जवान भटके हुये लोगों के मन परिवर्तन के लिये प्रार्थना करना − एवं जो नये लोग इस दौरान चर्च में आ रहे हैं वे हमारे साथ स्थायी रहें।
अगर इस संदेश ने आपको आशीषित किया है तो डॉ हिमर्स को इस पते पर ई मेल भेजिये rlhymersjr@sbcglobal.net (यहां क्लिक कीजिये)। यह भी उन्हे लिखें कि आप किस देश से हैं। आप डॉ हिमर्स को किसी भी भाषा में ई मेल भेज सकते हैं पर अंगेजी भाषा में भेजना उत्तम होगा।
(संदेश का अंत)
आप डॉ0हिमर्स के संदेश प्रत्येक सप्ताह इंटरनेट पर पढ़ सकते हैं क्लिक करें
www.realconversion.com अथवा
www.rlhsermons.com
क्लिक करें ‘‘हस्तलिखित संदेश पर।
आप डॉ0हिमर्स को अंग्रेजी में ई-मेल भी भेज सकते हैं - rlhymersjr@sbcglobal.net
अथवा आप उन्हें इस पते पर पत्र डाल सकते हैं पी. ओ.बॉक्स 15308,लॉस ऐंजेल्स,केलीफोर्निया 90015
या उन्हें दूरभाष कर सकते हैं (818)352-0452
ये संदेश कॉपी राईट नहीं है। आप उन्हें िबना डॉ0हिमर्स की अनुमति के भी उपयोग में ला सकते
हैं। यद्यपि, डॉ0हिमर्स के समस्त वीडियो संदेश कॉपीराइट हैं एवं केवल अनुमति लेकर
ही उपयोग में लाये जा सकते हैं।
संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा बाइबल पाठ पढा गया: मत्ती ६:१६−१८
एकल संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गीत गाया गया:
''आय एम प्रेयिंग फॉर यू'' (एस औ मेली क्लौ, १८३७−१९१०)
रूपरेखा जब आप उपवास करें WHEN YOU FAST द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स ''जब तुम उपवास करो'' (मत्ती ६:१६) (मत्ती ९:१५; प्रेरितों के काम ९:९, ११; १३:२‚३) १. प्रथम, हमें उपवास और प्रार्थनारत रहकर परमेश्वर से शैतान की ताकत के उपर विजय मांगना चाहिये, मरकुस ९:२८−२९; २. दूसरा, हमें उपवास और प्रार्थना करने की आवश्यकता है ताकि परमेश्वर आत्मिक जाग्रति भेजने के लिये हस्तक्षेप करें, ३. तीसरा, आप व्यक्ति विशेष के परिवर्तन के लिये उपवास और प्रार्थना करें, |