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शैतान क्यों नहीं चाहता है कि आप
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हां, मैं इसी पद पर दूसरे संदेश का प्रचार कर रहा हूं। पर मैं इस विषय में और अधिक कहना चाहता हूं। मैं बिल्कुल आवश्यक चीज कर रहा हूं क्योंकि कुछ दिनों तक मैं एक शैतान द्वारा आक्रमित किया गया था! पिछले दो तीन वर्षो से और दूसरे संदेशों की तुलना में इस संदेश को तैयार करने में मुझे सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पडा। एक स्थान पर तो मुझे लगा कि मुझ पर शैतान का सीधा प्रहार हुआ है। मैं जानता हूं कि कुछ लोग (यहां तक कि कुछ प्रचारक) सोच सकते हैं कि मैं बढा चढा कर बोल रहा हूंगा। पर मैं ऐसा नहीं कर रहा हूं। पिछले रविवार की रात से जब मैंने इस पद पर प्रचार आरंभ किया तो मैं बीमार पड गया और दिमागी रूप से भी शून्य हो गया। तभी मुझे यह स्पष्ट हुआ कि परमेश्वर चाहते हैं कि मैं दुबारा मरकुस ९:२९ पर प्रचार करूं। लेकिन शैतान बडे व्यवधान उत्पन्न कर रहा था और मुझे ऐसा करने से रोक रहा था।
पिछली रविवार की रात को मैने आपको (''ओबामा के युग में प्रार्थना और उपवास'') संदेश में छ: कारण बताये थे कि क्यों मरकुस में से ''और उपवास'' शब्द नहीं निकाला जाना चाहिये। वह यूनानी हस्तलिपि जिसके पदों में से इन शब्दों को हटा दिया गया था, टिस्केंडोर्फ नामक व्यक्ति को (१८१५−१८७४) सिनई पेनिनसियुला के, ऐलिग्ज़ैन्ड्रीया से ४०० मील दूर सेंट कैथरीन मठ में मिली थी। यह वह क्षे़त्र था जहां रहस्यवाद बहुत पनपा और इस क्षेत्र ने भौतिक संसार को अस्वीकार किया और इसका ध्यान अभौतिक पर केंद्रित रहा।
सेंट कैथरीन मठ का निर्माण ५४८ ए.डी. में हुआ था। सिनेटीकस हस्तलिपि की ३६० ए.डी. में हाथ से नकल की गई थी। यह इस बात की ओर संकेत देता है कि यह कहीं ओर से लायी गयी थी, हो सकता है ऐलिग्ज़ैन्ड्रीया से ही लायी गई हो। उन रहस्यवादी मठवासियों ने ''और उपवास'' शब्द को हटा दिया क्योंकि यह उनके विचार अनुरूप नहीं था।
हमको इस तरह की समस्या को एक मसीही विचारधारा से देखना चाहिये। एक ऐसी मनोवृत्ति जो शैतान और दुष्ट आत्मा को बहुत गंभीरता से लेती हो। क्या यह संयोग है कि ''अंतिम दिनों के'' इस वितरण में सिनेटीकस हस्तलिपि को खोजा गया? क्या यह संयोग है कि जब हमारे चर्चेस में ''निर्णयवाद'' ने सच्चे परिवर्तन का स्थान ले लिया? क्या यह संयोग है कि जब चर्चेस में शैतानी शिक्षा घुसपैठ कर गई है और इस हस्तलिपि को जगत भर में प्रचार मिल रहा है? क्या यह संयोग है कि फिने का निर्णयवाद, कैंपबेलाईटस का बैपटिज्मल निर्वाण, मार्मन्स के तीन देवता, उदारवादियों द्वारा बाईबल पर प्रहार, यहोवा विटनेस द्वारा कार्य के आधार पर धार्मिकता और सेवथ डे वालों का सब्तवाद ये सब १९ वी सदी में पिछले ५० सालों में अस्तित्व में आये? क्या यह संयोग है कि डारविन की पुस्तक क्रमिक विकास इसी अवधि के दौरान प्रकाशित हुई? क्या यह संयोग है कि पश्चिमी दुनिया की अंतिम आत्मिक जाग्रति उसी काल में हुई अर्थात १८५७−५९ के समय काल में जब सिनेटीकस हस्तलिपि को टिस्केंडोर्फ ने खोजा? क्या यह संयोग है कि सिनेटीकस हस्तलिपि की खोज के बाद से चूंकि ''और उपवास'' शब्द अनुवादों में से निकाल दिया गया इसके बाद फिर कभी कोई बडी आत्मिक जाग्रति नहीं हुई? ये सब संयोग कैसे हो सकते हैं? नहीं, इस काल ने इतिहास में पुरातनपंथी मसीहत के उपर कई आक्रमण देखे हैं − और उनमें से ''और उपवास'' शब्द का निकलना उन में से एक है!
हमें अंतिम दिनों में शैतानी कार्यकलापों के उपर एक विशेष चेतावनी दी गई है। शिष्य पौलुस ने कहा था,
''परन्तु आत्मा स्पष्टता से कहता है, कि आने वाले समयों में (बाद के समय में) कितने लोग भरमाने वाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएंगे।'' (१तीमुथियुस ४:१)
डॉ हैनरी एम मोरिस ने कहा था,
ये छल करने वाली दुष्ट आत्मायें हैं, जो अपने राजकुमार अर्थात शैतान की सेवा करती हैं, ये वे अदृश्य ताकतें हैं जो अंत के दिनों में विश्वास के उठ जाने का कारण है। उनका एकमात्र उददेश्य होता है कि वे पुरूषों और महिलाओं को लूसीफर शैतान के पास लेकर आये पर ऐसा ये बडे कपटपूर्ण तरीके से करती हैं बजाय कोई काम खुले तरीके के करने से। (हैनरी एम मोरिस, पी.एच.डी., दि डिफेंडर्स स्टडी बाईबल, वल्र्ड पब्लिशर्स, १९९५, १३४५; १ तीमुथियुस पर व्याख्या ४:१)
यद्यपि यीशु के रक्त के विषय को लेकर मैं उनसे असहमत हूं, डॉ मेकआर्थर ने कहा था कि ''मसीह के आगमन के पूर्व शैतानी हलचल अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचेगीं'' (दि मेकआर्थर स्टडी बाईबल; १ तीमुथियुस पर व्याख्या ४:१)
मैं बिल्कुल दृढ़ निश्चयी हूं कि ''बाद के इस समय'' में होने वाली इन विशाल त्रुटियों के लिये ये शैतान रूपी अदृश्य ताकतें उत्तरदायी हैं – जैसे ''निर्णयवाद,'' कैंपबेलिज्म, मार्मनिज्म, सेवंथ डे ऐडवेंटिज्म, लिबरलिज्म, यहोवा विटनेस, किश्चयन साइंस, और फिर से क्रियाशील हुआ इस्लाम। शैतान यह जानता था कि प्रार्थना और उपवास मसीह लोगों के के हाथों में बहुत ताकतवर हथियार हैं। शैतान यह भी जानता था कि नये नियम में मरकुस ९:२९ और मत्ती १७:२१ केवल ऐसे स्थल हैं जो उपवास और प्रार्थना की आवश्यकता और ताकत को प्रगट करते हैं। इन दो पदों के अतिरिक्त प्रभु यीशु के मुंह से उपवास और प्रार्थना की शिक्षा और कहीं नही निकली हैं। जरा सोचिये! जब ''और उपवास'' शब्द निकल जायेगा तो कोई विशेष शिक्षा क्यों और कैसे उपवास करना चाहिये बचेगी ही नहीं! क्या यह संयोग है कि हमारे चर्च ''और उपवास'' शब्द निकल जाने से कमजोर और ताकतहीन हो गये हैं? मैं तो ऐसा नहीं सोचता! बिल्कुल भी नहीं!
प्राचीन समय में पास्टर्स समझते थे कि झूठे धर्म के पीछे शैतानी हाथ है। प्राचीन काल में भी प्रचारक समझते थे कि शैतान और दुष्टात्मायें इतनी अतिक्रमित होती हैं कि बिना प्रार्थना और उपवास के निकल ही नहीं सकती। तब वे मसीह के द्वारा झिडकी जाती थी, ''यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास किसी और उपाय से निकल नहीं सकती'' (मरकुस ९:२९)। १९ वी सदी के उत्तरार्ध के सभी इवेंजलिस्ट और प्रचारक जानते थे कि जॉन वेस्ली (१७०३−१७९१) यह कहते हुये सही थे, ''जब उन्होने कहा कि कुछ प्रकार के शैतान (दुष्टात्मायें) जो चेलों ने निकाले वे बिना उपवास के ही निकाले थे'' − ''लेकिन इस प्रकार के शैतान (दुष्टात्मायें) बिना उपवास और प्रार्थना के निकलते ही नहीं हैं − फलदायी उपवास की कितनी उत्तम गवाही है जब यह जोशीली प्रार्थना के साथ किया जाता है।'' (वेस्ली नोटस आँन दि न्यू टेस्टामेंट, वॉल्यूम १, बेकर बुक हाउस, १९८३ पुर्नसंस्करण; मत्ती१७:२१ पर व्याख्या)
सभी महान आत्मिक जागरण लाने वाले लोग उपवास करते और प्रार्थना करते थे − लूथर, मेलनक्थॉन, केल्विन, नॉक्स − सभी ने प्रार्थना और उपवास किया था! प्रार्थना और उपवास महान प्रचारकों जैसे बुनयन, वाईटफील्ड, एडवर्डस, हावेल हैरिस, जॉन सैनिक, डैनियल रोलैंड, मैकेने, नैटलटन और अन्य कई लोगों के द्वारा भी किया गया। पर अब मैं यहां डॉ ल्योड जोंस के शब्दों का प्रयोग कर रहा हूं, ''चर्च बेहोश और मोहित हो चुका है वह सुप्त अवस्था में है और (शैतान) के साथ संघर्ष के प्रति उदासीन है।'' (मार्टिन ल्योड जोंस, एम. डी., दि किश्चन वारफेअर, दि बैनर आँफ ट्रूथ ट्रस्ट, १९७६, पेज १०६)
मसीह ने जो ''प्रार्थना और उपवास'' के निर्देश दिये, वे शैतान को निकालने के लिये ही उपयोग में नहीं लाये जाने चाहिये बल्कि जो कठिनतम मन परिवर्तन के मामले हैं उनके लिये भी प्रयुक्त होना चाहिये − क्योंकि अंत के दिनों में तो मन परिवर्तन के सब मामले और अधिक कठिन होते जा रहे हैं! डॉ ल्योड जोंस का कथन था, ''जब हम इन पर सीधा नियंत्रण नहीं कर पा रहें हैं तो हमें समझना चाहिये कि हमारा विरोधी शैतान अपना वर्चस्व और ताकत कईयों पर आजमा (इस्तेमाल) कर रहा है'' हमें समझना चाहिये कि हम हमारे जीवन को किसी बडी ताकत से बचाने के लिये उसके विरूद् लड रहे हैं। हम एक ताकतवर शत्रु के विरूद् उठ खडे हुए है।'' (स्टडीज इन दि सर्मन आँन दि माउंट, भाग २, इयर्डमंस, १९८७, पेज १४८)
हम एक आत्मिक युद् लड रहे हैं। शैतान की ताकतें और अधिक मजबूत होती जा रही है। हम भटको हुओं के लिये प्रार्थना करते हैं और कुछ भी नहीं होता है। उनको पाप का प्रायश्चित होता ही नहीं है। वे अपने लिये मसीह की आवश्यकता को महसूस ही नहीं करते। उनके दिमाग अंधेरों में हैं। उनकी समस्त बातों की आध्यात्मिक बातों की समझ गहन अंधकार में है। हम प्रार्थना करना जारी रखते हैं पर फिर भी कुछ नहीं होता। बहुत कम नये लोग चर्च में आते हैं और ठहरे रहते हैं। साहस छूटने लगता है। पर ठहरिये! और भी कुछ आप के लिये है! देखिये डॉ ल्योड जोंस ने क्या कहा है,
''मुझे आश्चर्य होता है कि कभी हमें उपवास जैसे विषय पर भी विचार करने की जरूरत होगी। सत्य तो यह है कि, क्या यह ऐसा नहीं है, कि उपवास का यह विषय हमारे संपूर्ण मसीही जीवनों से ही ओझल हो गया है, और तो और हमारी विचारधारा से ही गायब हो गया है।'' (स्टडीज इन दि सर्मन आँन दि माउंट, भाग २, पेज ३४)
जब वेस्ली बंधु प्रार्थना और उपवास करते थे तो चमत्कार होते थे। चार्ल्स के उपर सदैव अपने भाई का अतिरिक्त प्रभाव रहा। किंतु यह बताया जाता है कि जब चार्ल्स वेस्ली प्रचार करते थे तब अधिक संख्या में लोग परिवर्तित होते थे। जब चार्ल्स वेस्ली का गाना सुनते हैं तो क्या आपको परमेश्वर की सामर्थ उतरते प्रतीत नहीं होती!
वह शून्य किये गये पाप की ताकत को तोडता है,
वह बंदी को स्वतंत्र करता है;
उसका रक्त घृणित को भी शुद्व कर सकता है;
उसका रक्त मेरे लिये हितकारी है!
यीशु! वह नाम है जो भय को शांत कर देता है,
जो हमारे दुखों को कम होने की आज्ञा देता है;
यह पापी के कानों में वह संगीत है,
यह जीवन है, स्वास्थ्य है और शांति है!
(''गर होती हजारों जीभें गाने के लिये'' द्वारा चार्ल्स वेस्ली, १७०७−१७८८;
''ओ सेट यी ओपन अनटू मी की धुन पर'')
यीशु मेरी आत्मा से प्रेम करने वाला, अपने मानस में मुझे उडान भरने देता,
जब समुद्र में तूफान गहराया हो, और बवंडर भी उठा हो:
छुपा ले मुझे, मेरे मसीह, मुझे जब तक यह जीवन का तूफान गुजर न जाये;
उस स्वर्गीय स्थान में मुझे ले चल, अंत में मेरी आत्मा को ग्रहण कर!
(''यीशु मेरी आत्मा से प्रेम करने वाला'' द्वारा चार्ल्स वेस्ली, १७०७−१७८८)
तो चार्ल्स वेस्ली द्वारा रचे गये ये बहुत सुंदर गीत हैं!
मेरे साथ यशायाह ५८ खोल लीजिये। यह स्कोफील्ड बाईबल में पेज संख्या ७६३ पर है। यशायाह ५८, पद ६। जब मैं इसे पढता हूं तो आपसे खडे होने का अनुरोध करता हूं।
''जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहने वालों का जुआ तोड़कर उन को छुड़ा लेना, और, सब जुओं को टूकड़े टूकड़े कर देना?'' (यशायाह ५८: ६)
अब आप बैठ सकते हैं। इस पद को रेखांकित कर लीजिये। यह पद उपवास करने के सही तरीके को दर्शाता है। परमेश्वर मसीहियों से किस प्रकार का उपवास चाहता है। मैं चाहता हूं कि आप इसे स्मरण कर लीजिये। यह हमारा नया स्मरण रखने वाला पद है, यशायाह ५८: ६। परमेश्वर के अनुरूप उपवास करने से
(१) पाप के बंधन (बेड़ी) से मुक्त हुआ जा सकता है।
(२) भारी बोझ को नष्ट किया जा सकता है।
(३) बंधनों में जकडे हुये को मुक्त किया जा सकता है।
(४) हर प्रकार की दासता से मुक्ति मिल सकती है।
आर्थर वालिस ने कहा था, ''एक उपवास प्रार्थना योद्वा (प्रार्थना मध्यस्थ) को मजबूती प्रदान करता है कि वह शत्रु (शैतान) पर दवाब बनाये रखे कि वह बंधुए के उपर से अपनी पकड छोड दे। इस तरह से परमेश्वर (छुटकारा देता है) शैतान की ताकत से छुडाता है'' (आर्थर वालिस, गॉडस चोसन फास्ट, २०११ संस्करण, पेज ६७) मैं चाहता हूं जिन्होने मलाकी में से पहले से ही पद स्मरण कर लिये हैं वे अब यशायाह ५८: ६ पद याद कर लें।
हम आने वाले शनिवार फिर से उपवास रखेंगे। मै आपको कुछ बिंदु देना चाहता हूं जिस पर आप विचार करें कि कैसे उपवास रखना है।
१. अपने उपवास को गुप्त रखिये (जितना अधिक संभव हो) लोगो पर जाहिर मत करते रहिये (अपने रिश्तेदारों पर भी नहीं) कि आप उपवास कर रहे हैं।
२. बाईबल पढने में समय बिताइये। अगर प्रेरितो के काम को पढेंगे (अच्छा होगा उसके प्रारंभिक भागों को पढें)।
३. शनिवार के उपवास के दिन यशायाह ५८:६ को स्मरण कीजिये।
४. परमेश्वर से उपवास को आपकी प्रार्थना का उत्तर देने के द्वारा सम्मानित करने को कहिये।
५. उन जवानों के (नाम लेकर) परिवर्तन के लिये प्रार्थना कीजिये परमेश्वर से ५८:६ में कही बातों को उनके लिये करने के लिये मांगिये।
६. प्रार्थना कीजिये कि आज (रविवार) को जो आगंतुक पहली बार आये हैं वे अगले रविवार भी आयें। संभव हो तो उनके नाम लेकर प्रार्थना कीजिये।
७. परमेश्वर से प्रार्थना कीजिये कि मुझे मार्गदर्शन दें कि मैं अगले रविवार को क्या प्रचार करूं − सुबह और संध्या को।
८. निमंत्रण के लिये प्रार्थना करें − केवल जवानों के प्रार्थना समूह के लिये (हमारे यहां उनमें से तीन समूह है)। अगर आप चाहें तो जॉन सेम्यूएल कैगन के लिये प्रार्थना करें।
९. खूब मात्रा में पानी पीजिये। हर घंटे में एक एक गिलास पीजिये। अगर आपको रोज सुबह कॉफी पीने की आदत है तो प्रारंभ में ही एक बडा कप भरकर कॉफी पी लीजिये। शीतल पेय या स्फूर्ति देने वाले पेय पदार्थ मत पीजिये।
१०. अगर अपने स्वास्थ्य के लिये चिंतित हैं तो उपवास के पहले मेडिकल डॉक्टर से चर्चा कर लीजिये। (आप डॉ क्रेटन चान या डॉ जूडिथ कैगन को जो हमारे चर्च में हैं उन्हें दिखा सकते हैं) उपवास मत कीजिये अगर आप को कोई गंभीर विकार है तो जैसे डायबिटिज या उच्च रक्तचाप आदि। आप शनिवार का उपयोग इन निवेदनों के उपर प्रार्थना करने में भी बिता सकते हैं।
११. अगले दिन शनिवार की संध्या ५:३० तक चर्च में मिलने वाले भोजनके अतिरिक्त खाने में कुछ ग्रहण मत कीजिये।
१२. स्मरण रखिये कि सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हमारे चर्च में जवान भटके हुये लोगों के मन परिवर्तन के लिये प्रार्थना करना − एवं जो नये लोग इस दौरान चर्च में आ रहे हैं वे हमारे साथ स्थायी रहें।
वास्तव में देखा जाये तो यह प्रभु यीशु मसीह ही हैं जो दुष्टता के बंधन को खोलते हैं, पाप के भारी बंधन को हटाते हैं, जो शैतान द्वारा सताये हुये हैं उन्हें छुडाते हैं, और हर शैतानी जुआ तोडते हैं। पर हमको परमेश्वर पिता से प्रार्थना करनी चाहिये कि वह यीशु के द्वारा परमेश्वर की आत्मा को चर्च में उतरने दें और नये लोगों को उद्वार और चर्च के खो चुके बच्चों को छुटकारा दें! हम आप को इस संदेश की छपी हुई प्रति देंगे ताकि आप घर ले जा सके। इसे बार बार पढिये और शनिवार को जब आप प्रार्थना करते हैं तो इसके १२ बिंदुओं पर प्रार्थना में मनन कीजिये।
अब मैं कुछ शब्द उन लोगों के लिये कहूंगा जो अभी तक परिवर्तित नहीं हुये हैं। यीशु मसीह आपके पापों का सवोच्च मोल चुकाने के लिये कूस पर मरे इसलिये आपके पापों का कोई न्याय नही होगा। उन्होनें ऐसा इसलिये किया कि वह आप को अनंत जीवन प्रदान कर सकें। यीशु जीवित होने के पश्चात तीसरे स्वर्ग में परमेश्वर पिता के दाहिने हाथ विराजमान हैं। आप विश्वास रखकर उनके पास आ सकते हैं और वह आप को पाप और न्याय से बचायेंगें! परमेश्वर आप को आशीष देवें। आमीन! डॉ चान मैं निवेदन करता हूं कि आप प्रार्थना करें।
दिसंबर २४, २०१३ के “प्यूरीटन ब्लॉग'' की एक प्रविष्टी ''वन लिटिल नेल'' पर सिनेटीकस हस्तलिपि पर एक लेख हैं।
http://www.puritanboard.com/showthread.php/81537-Sinaiticus-is-corrupt
नीचे एक कहानी का उल्लेख है कि कैसे टिस्केंडार्फ को कोडेस्क सिनेटीकस प्राप्त हुई:
“यह वर्ष १८४४ की बात है कि सेक्सोनी के राजा फ्रेडरिक आँगस्टस के संरक्षण में हस्तलिपियों की तलाश में यात्रा करता हुआ माउंट सिनैई के पास स्थत सेंट कैथरीन मठ पहुंचा। जब वह एक टोकरी में पुराने से दिखने वाले कागजात को देख रहा था तो उसे सेप्टयूजिंट वर्शन के त्रियालीस चर्मपत्र मिले जो स्टोव सुलगाये जाने के लिये रखे थे उसने उन्हे उठा लिया। किंग जेम्स बाईबल के बचाव पक्ष के विरूद् खडे होने वाले शत्रु पक्ष का दावा था कि ये चर्मपत्र “रद्दी की टोकरी'' में नहीं मिले लेकिन वास्तव में ये वही मिले थे। इनका वर्णन टिस्केंडार्फ ने ठीक इस प्रकार किया। “मुझे एक लंबी चौडी पुराने चर्मपत्रों से भरी एक डलिया मिली; लाइब्रेरियन ने बताया कि ऐसे दो ओर ढेर आग के हवाले किये जा चुके हैं। मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही जब मैने इस ढेर को पाया.........'' (सिनेटीकस हस्तलिपि की खोज की कहानी, पेज २३) जॉन बुरगोन जो उस समय जीवित थे जब टिस्केंडार्फ को कोडेस्क सिनेटीकस प्राप्त हुई वह स्वयं प्राचीन हस्तलिपियों की जांच करने के लिये गये उन्होने भी इस बात की गवाही दी “कि हस्तलिपि कांवेंट की रद्दी की टोकरी में मिली।'' (इस पुनर्लेखन को पुनरीक्षित किया गया, १८३३, पेज ३१९, ३४२)।
तो मुझे ऐसा पक्का विश्वास है कि उन पुरातनपंथी सन्यासियों ने बहुत पहले यह निर्णय लिया कि इन हस्तलिपियों में से अनेक चीजें विलोपित व रूपांतरित कर दी जाये और ऐसी कोठरी में रख दिया जाये जहां ये अप्रयुक्त रखी रहे। यद्यपि टिस्केंडार्फ ने इसे अचूक हस्तलिपि के रूप में बडे व्यापक रूप जोशपूर्ण ढंग से प्रोत्साहित करवाया।उन हजारो हस्तलिपियों की तुलना में जो टेक्सटस रिसेप्टस का समर्थन करती थी। साथ ही साथ उसने यह भी माना कि यह ४ थी शताब्दी की धरोहर थी पर उसके पास इसके १२ वीं शताब्दी के पूर्व का होने का कोई प्रमाण नहीं था।
कोडेक्स सिनेटीकस के संबंध में कुछ सत्य और विषमताओं का अध्ययन कीजिये:
१. सिनेटीकस को तीन अलग अलग जातियों द्वारा लिखा गया और कई अनेक लोगों द्वारा इसमें सुधार किया गया। (यह ब्रिटिश म्यूजियम के, एच.जे.एम मिलने और टी.सी. स्कीट के द्वारा की गई गहन जांच के परिणामस्वरूप निकला निष्कर्ष था, जो स्क्राईब्स एंड करेक्टर्स आफ कोडेक्स मेन्यूस्क्रीप्ट, लंदन, १९३८ में छपा) टिस्केंडार्फ ने इस हस्तलिपि में १४८०० सुधारों को गिना। (डेविड ब्राउन, दि ग्रेट अंशियल्स, २०००)। डॉ एफ.एच.ए. स्किीवीनर, जिन्होंने १८६४ में कोडेक्स सिनेटीकस का पूर्ण तुलनात्मक अध्ययन छापा उन्होने यह गवाही दी: “यह कोडेक्स स्पष्ट रूप से फेरबदल से भरा हुआ है जिसे लगभग दस संशोधन कर्ताओं द्वारा सामने लाया गया है उनमें से कुछ तो व्यवस्थित रूप से हर पेज पर मिलेंगे, कुछ कहीं कहीं मिलेंगे, कुछ हस्तलिपि के विशेष भागों तक सिमट गये हैं, इसमें से कई तो इसके प्रथम लेखक के समान समसामयिक है। पर इसका अधिकतम भाग छटवीं और सातवीं सदी को समर्पित है।'' इस तरह यह प्रामाणिक है कि विगत समय के लेखकों ने सिनेटीकस को शुद् गदयांश के रूप में प्रस्तुत होने से बचाये रखा। यह आधुनिक आलोचकों द्वारा इतनी सम्मानीय क्यों हैं यह रहस्य की बात है।
२. इसकी नकल करने और सुधारने में बडी लापरवाही सामने आई है। कोडेक्स सिनेटीकस में त्रुटियों की भरमार हैं इनमें आंख और कलम से की गई त्रुटियों का बाहुल्य है जिसका कोई उदाहरण नहीं दिया जा सकता पर पहली बार के इन दस्तावेजों मे इतनी त्रुटियां मिलती नहीं है। कई मौको पर १०, २०, ३०, ४० शब्द आसानी से गायब कर दिये गये। बहुधा अक्षर, शब्द और यहां तक कि बडे वाक्य भी दो बार लिखे गये, या शुरू किये गये या लिखकर काट दिये गये। और एक ऐसी भीषण त्रुटि देखने को मिली जिसमें एक पूरा उपवाक्य ही हटा दिया गया क्योंकि वह उपवाक्य के अंत में वही शब्द थे जो उपवाक्य के प्रारंभ होने पर पाये गये थे नये नियम में ऐसे ११५ उदाहरण मिलते हैं। (जॉन बुरगोन पुनर्लेखन को पुनरीक्षित किया गया) ये तो स्पष्ट है कि जिन लेखकों ने कोडेक्स सिनेटीकस की नकल की वे परमेश्वर के सच्चे भक्त नहीं थे क्योंकि सच्चे भक्त तो धर्मशास्त्र को श्रद्धा से पूजते थे। यूनानी भाषा में जो धर्मशास्त्र था उसकी तुलना में सिनेटीकस के अकेले सुसमाचार वाले भाग में ३४५५ शब्द गायब थे। (बुरगोन, पेज ७५)
३. मरकुस १६:९−२० कोडेक्स सिनेटीकस में से गायब है, जबकि मूलत: यह वहां था पर मिटा दिया गया।
४. कोडेक्स सिनेटीकस में अप्रमाणिक पुस्तके सम्मिलित हैं (ऐसद्रास, तोबित, जूडिथ, १ और २ मैकाबी, नीतिवचन, सभोपदेशक) इसके साथ दो अप्रामाणिक लेखन बरनबास की पत्रियां और शेपर्ड आँफ हर्मास सम्मिलित हैं। अप्रमाणिक पुस्तक बरनबास की पत्रियां विधर्मी और काल्पनिक रूपकात्मक ढंग से लिखी गई हैं, जो यह दावा करती है, कि अब्राहम यूनानी जानता था और उद्वार पाने के लिये बपतिस्मा आवश्यक है। शेपर्ड आँफ हर्मास ऐसा रहस्यवादी लेखन है जो बताता है कि “मसीह का आत्मा'' उनके उपर बपतिस्मा लेते समय उतरा था।
५. अंत में, यह स्पष्ट है कि कोडेक्स सिनेटीकस (जिसके साथ कोडेक्स वेटीकेनुस भी सम्मिलित है) इन लेखन पर रहस्यवादी प्रभाव है। यूहन्ना १:१८ में “एकमात्र पुत्र'' को “एकमात्र परमेश्वर'' में बदल दिया गया इस तरह प्राचीन आर्यन विधर्मी सोच को निरंतर बनाये रखा जो पुत्र के रूप में यीशु को अलग कर देती है। इस तरह यूहन्ना १:१ के “परमेश्वर'' और यूहन्ना १:१८ के “पुत्र'' का सीधा संबंध तोडते हुये प्रस्तुत किया। हम यह भी जानते हैं कि परमेश्वर उत्पन्न नहीं हुये ;बल्कि अवतारवाद में पुत्र उत्पन्न हुये।
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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा बाइबल पाठ पढा गया: मरकुस ९:१७−२९
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गीत गाया गया:
''मै सत्य होता'' (हावर्ड ए वाल्टर, १८८३−१९१८)