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ओबामा के युग में प्रार्थना और उपवासPRAYER AND FASTING IN THE AGE OF OBAMA द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स रविवार की सुबह, १२ जुलाई, २०१५ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में प्रचार किया गया संदेश ''जब वह घर में आया, तो उसके चेलों ने एकान्त में उस से पूछा, हम उसे क्यों न निकाल सके? उस ने उन से कहा, कि यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के निकल नहीं सकती'' (मरकुस ९:२८) |
कहानी बिल्कुल साधारण है। यीशु एक पहाड पर गये हुये थे। जब नीचे उतर कर आये तो देखा कि उनके चेलो के आसपास बडी भीड एकत्रित थी। यीशु ने पूछा कि क्या हो रहा है। एक व्यक्ति भीड में से निकल कर आया और बताने लगा कि उसके बेटे को दुष्टात्मा ने जकड रखा है। दुष्टात्मा के प्रकोप के कारण उसको प्रचंड दौरे पड रहे है। उसने कहा कि उसने यीशु के चेलो से उसे निकाल देने को कहा था, लेकिन वे उसे निकाल न सके। यीशु ने उससे कहा कि अपने पुत्र को उनके पास लेकर आये। यीशु ने उस दुष्टात्मा को डांटा कि, ''बालक में से निकल जाये और दुबारा प्रवेश न करे।'' दुष्टात्मा चीखती हुई उस बालक में से निकल गई। यीशु ने उस बालक को हाथ से पकडा और उठाया और वह चंगा हो गया था। इस घटना के कुछ मिनटों बाद यीशु एक घर में गये। चेले उनके पास पहुंचे और पूछने लगें कि, ''हम क्यों नहीं दुष्टात्मा निकाल पाये?'' (मरकुस ९:२८)
डॉ मार्टिन ल्योड जोंस ने कहा कि, ''उन्होंने उनका पूरा प्रयास लगा लिया, पर वे असफल रहे। वे दूसरे अनेक मामलो में सही रहे। पर यहां वे सब असफल हो गये। जबकि एक ही क्षण में प्रभु (यीशु मसीह) ने बहुत सहजता से एक वाक्य कहा और वह लडका अच्छा हो गया। ‘हम क्यों उसे नहीं निकाल पाये?’ उन्होने पूछा, और (मसीह) ने उनको उत्तर दिया कि, ''यह प्रजाति बिना प्रार्थना और उपवास के नहीं निकलती।'' (मार्टिन ल्योड जोंस, एम डी, रिवाइवल, क्रास वे बुक्स, संस्करण १९९४, पेज ९, मरकुस ९:२८, २९ पर व्याख्या)
दुष्टात्मा का यह वर्णन कि चेले उसे निकाल नहीं पाये बहुत महत्व का है। यह वर्णन इतने महत्व का है कि पवित्र आत्मा ने इसे नये नियम में तीन बार दर्ज किया है − मत्ती, मरकुस और फिर से लूका में। डॉ ल्योड जोंस ने कहा कि यह वर्णन आज हमारे लिये बहुत महत्व का है। मैं उनसे पूर्ण रूप से सहमत हूं। पर इसके पहले कि मैं चर्च में इस कहानी का अर्थ लागू करूं मैं बाइबल के उन आलोचको के बारे में कहना चाहूंगा जिन्होनें सारे आधुनिक अनुवादों में से ''और उपवास'' शब्द निकाल दिया।
तो, इसके पहले कि मैं संदेश में जाउं मैं पद २९ के इन दो शब्दों पर जाना चाहूंगा − ''और उपवास।'' स्कोफील्ड सेंटर नोट ''यू'' कहता है, ''दो सर्वाधिक श्रेष्ठ माने जाने वाली (हस्तलिपि) एमएसएस भी ‘और उपवास’ को लोप कर देती है।'' इसका यह अर्थ हुआ कि अति परंपरावादी कहलाये जाने वाली स्कोफील्ड स्टडी बाइबल भी १९ वी सदी के उत्तरार्ध की विनाशकारी बाइबल आलोचना से प्रभावित रही। क्यों ये दो ''सर्वाधिक उत्तम'' कहलाये जाने वाली हस्तलिपियों ने भी इन दो शब्दों को निकाल दिया? मुख्य हस्तलिपि जिसका प्रयोग आलोचक करते थे वह सिनेटीकस हस्तलिपि कहलाती थी। आलोचको का मानना था कि जितनी पुरानी हो उतना अच्छा है। पर हम उनकी इस मान्यता के प्रति इतने आश्वस्त कैसे रह सकते है?
मेरी पत्नी और मैं कई वर्ष पूर्व सीनै पर्वत के तल पर सेंट कैथरीन के मठ चढ़े। हमने वह स्थान देखा था जहां हस्तलिपि मिली थी − इस प्राचीन मठ के मलबे में। मठ के द्वार पर बहुत बडा मानव हडिडयों का ढेर लगा हुआ है। यह उन भिक्षुकों की हडिडयां जो वहां सदियों से रहते आये है। मैंने पहली बार किसी चर्च जैसे पवित्र स्थल पर ऐसा अंधकार और ऐसी शैतानी भयावहता महसूस की। आँस्ट्रच के दर्जनों अंडे छत से लटक रहे थे। यह स्थान सडती हुई मोमबत्तियों से प्रदीप्त है। यह स्थान को आप ''रेडर्स आँफ दि लॉस्ट आर्क'' के दृश्य के समान पायेंगे! मैं तो ऐसी भयानक जगह पर रात नहीं बिताना चाहूंगा! ऐसी अंधेरी भूतहा इमारत से टिसकेंडोर्फ को सुसमाचार की प्राचीन हस्तलिपि मिली थी। बाद में मेरी पत्नी और मैंने यह वास्तविक हस्तलिपि लंदन के बिटिश म्यूजियम में देखी।
मैं इस बात से सहमत हूं कि मठ में रहने वाले प्राचीन भिक्षुक रहस्यवाद से प्रेरित थे। बेशक रहस्यवादी उपवास पर जोर नहीं देना चाहते थे। इसी रहस्यवाद से प्रभावित भिक्षुको ने हाथ से प्रतिलिपी की नकल करते समय मरकुस के इस पद से ''उपवास'' शब्द हटा दिया।
एक और कारण जो मैं समझता हूं कि ''उपवास'' शब्द स्वयं मरकुस द्वारा लिखा गया। आप देखेंगें कि वाक्य में अगर ''उपवास'' शब्द न हो तो यह अर्थहीन लगता है। एनआयवी और अन्य अनुवादों में इस प्रकार से लिखा गया है, ''यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से निकल नहीं सकती।'' केवल अपना दिमाग उपयोग में लाइये। क्या आप नहीं जानते कि चेलो ने प्रार्थना की थी? बेशक उन्होने प्रार्थना की थी! लेकिन ''यह जाति'' को निकालने के लिये प्रार्थना से भी अधिक कुछ ओर चीज की आवश्यकता थी। क्या ऐसा प्रतीत नहीं होता? जैसा कि सी एस लेविस ने अपने एक निबंध में कहा था कि बाइबल के आलोचको को अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन करना चाहिये था। अगर उन्होने ऐसा किया होता तो वे समझ जाते कि क्या कमी थी। ''यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से निकल नहीं सकती थी?'' कितना असंगत लग रहा है! बेशक उन्होने प्रार्थना की थी। इस वाक्य का कोई अर्थ नहीं निकलता जब तक कि यहां ऐसा नहीं लिखा जाता, ''यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के निकल नहीं सकती।''
तब एक और तीसरा कारण भी है। मसीहत का अगर लंबा इतिहास देखे तो हम पायेंगे कि मसीहियों ने यह विश्वास किया था कि प्रार्थना के साथ साथ उपवास करने की भी आवश्यकता थी जब शैतानी ताकतो ने परमेश्वर का कार्य रोक दिया था। प्राचीन समय के सभी महान प्रचारक जानते थे कि किसी समय उन्हें भी उपवास करने की आवश्यकता थी। पर आज वे सब उपवास करने से भटक गये हैं क्योंकि ''प्रार्थना और उपवास'' शब्द से उपवास शब्द विलोपित कर दिया गया है। क्या आप जानते हैं कि जॉन वेस्ली प्रथम विशाल आत्मिक जागरण के समय सप्ताह में दो या तीन बार उपवास रखते थे? क्या आप जानते हैं कि जोनाथन एडवर्ड ने ''क्रोधित परमेश्वर के हाथ में पापी का पडना'' जैसे विषय पर प्रचार करने से पूर्व तीन बार उपवास किया था? इस संदेश के प्रचार के बाद उनके चर्च में जबरदस्त आत्मिक क्रांति आई थी और यह नये इंग्लैंड तक पहुंच गयी थी − और फिर संपूर्ण इंग्लैंड में फैल गयी! क्या ऐसी क्रांति आई होती अगर एडवर्ड ने प्रार्थना के साथ साथ उपवास नहीं किया होता? यह तो बिल्कुल तय बात है − उसने प्रार्थना के साथ उपवास भी किया तो परमेश्वर ने निश्चत ही आत्मिक जाग्रति भेजी! वर्तमान में आत्मिक जाग्रति के अभाव होने का एक कारण यह भी है कि चर्च में उपवास नहीं रखा जाता है? यह तो बिल्कुल तय बात है − आत्मिक जाग्रति तो बहुत ही कम हो गई है और इसके साथ और भी कम होती जायेगी अगर उपवास न रखा गया! यह बिल्कुल तय है!
एक चौथा कारण और है कि ''उपवास'' रखा जाये। लूथर ने धर्मशास्त्र की ''तुल्यता'' अपनाने का सुझाव दिया। उसका कथन था कि अगर हम किसी गदयांश को समझा रहे हैं तो हमें तुलनात्मक रूप में धर्मशास्त्र के अन्य समान पदों का भी अध्ययन करना चाहिये। उपवास के विषय में बाइबल में सबसे अधिक प्रसिद्व गद्यांश कौनसा है? निश्चत ही बाइबल का विद्यार्थी यह जानता है यह यशायाह ५८:६ में मिलता है।
''जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए (बंधन) दासों, और अन्धेर सहने वालों का जुआ तोड़कर उन को छुड़ा लेना, और....सब जुओं को टूकड़े टूकड़े कर देना?'' (यशायाह ५८:६)
यीशु यशायाह को बहुत अच्छे से जानता था। जब उन्होने नाजरथ के आराधनालय में बोला तो वह अंश भी यशायाह के ६१:१,२ में से लिया गया था। अवश्य ही यीशु यशायाह ५८:६ के इस पद का भी हवाला दे रहे थे जब उन्होंने ऐसा कहा कि, ''यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के निकल नहीं सकती'' (मरकुस ९:२९)
''जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए (बंधन) दासों, और अन्धेर सहने वालों का जुआ तोड़कर उन को छुड़ा लेना, और....सब जुओं को टूकड़े टूकड़े कर देना?'' (यशायाह ५८:६)
यशायाह के संदर्भ द्वारा यीशु चेलो को बता रहे है कि उपवास के द्वारा ''अन्याय सहने वाले को मुक्त किया जा सकता है'' − और शैतान का हर बंधन तोडा डाला जा सकता है! यही धर्मशास्त्र की तुल्यता बताती है! हमारे पद के लिये बाइबल ही सबसे उत्तम व्याख्या है। मुझे निश्चय है कि लूथर भी मेरी इस बात से सहमत होते।
एक पांचवा कारण भी है कि जो दुष्टात्मा को निकालते है वे जानते है कि ''और उपवास'' करना इस प्रकार के मामलो में सहायक होता है। सम्मानित जॉन वेस्ली ने इस समानांतर पद मत्ती १७:२१ के विषय में बोलते हुये, कहा, ''इस प्रकार की दुष्टात्मा बिना प्रार्थना और उपवास के नहीं जाती − यहां उपवास कितना फलदायी माना गया है, जब इसके साथ उत्साही प्रार्थना भी जुडी हुई हो। पहले कभी चेलो ने बगैर उपवास के कुछ दूसरे प्रकार के शैतानो को निकाला होगा'' पर इस प्रजाति की दुष्टात्मा तो बिना प्रार्थना औा उपवास के तो निकल ही नहीं सकती थी (जॉन वेस्ली, एम ए, वेस्ली नोटस आँन दि न्यू टेस्टामेंट, बेकर बुक हाउस, १९८३, वॉल्यूम १, मत्ती १७:२१ पर व्याख्या)
जॉन वेस्ली (१७०३−१७९१) वेस्लीयन मैथोडिज्म के संस्थापक के रूप में अपनी लंबी सेवकाई की अवधि में दुष्टात्मा से छुटकारे के विषय में बहुत अच्छे से जानते थे।
डॉ थॉमस हेल थाइलैंड में एक मेडीकल मिशनरी थे। मिशन के क्षेत्रों में कई बार उनका सामना शैतान से हुआ इसलिये डॉ हेल ने अपनी व्याख्या में उपवास रखने की सलाह दी। मरकुस ९:२९ पर व्याख्या देते हुये, डॉ हेल ने कहा, ''किन्हीं परिस्थतियों में हमारी विनती परमेश्वर द्वारा स्वीकार किये जाने के लिये उपवास रखा जाना आवश्यक हो जाता है.......जब हम उपवास द्वारा यह बता देते है कि हम गंभीर है.......तत्पश्चात परमेश्वर भी हमें सामर्थ की अधिकाई के साथ विद्वता और आत्मिक आशीषों के द्वारा हमें उत्तर देता है।'' मिशन क्षेत्र में शैतान से सामना होने के पश्चात, डॉ हेल ने सुझाव देते हुये कहा कि हमें इस पद के अनुसार ''और उपवास'' भी रखना आवश्यक है। (थॉमस हेल, एम डी, दि अप्लाइड न्यू टेस्टामेंट कमेंटरी, किंग्सवे पब्लिकेंशंस, १९९७, पेज २६५, मरकुस ९:२९ पर व्याख्या)
अब मैं आपको छठा और अंतिम कारण ''और उपवास'' रखने के लिये देता हूं। केवल दो ऐसी प्रमुख हस्तलिपियां हैं जिनमें यह शब्द नहीं है, लेकिन ऐसी सैकडो प्राचीन हस्तलिपियां हैं, जिनमें यह लिखा हुआ है। आलोचको ने भी इन दो पर काम किया जिसमें ऐसा नहीं लिखा हुआ है और ऐसी सैकडो प्राचीन हस्तलिपियों को भूल गये जिसमें उपवास के विषय में लिखा हुआ है। सच में परमेश्वर हमारी सहायता करे! मैं नही सोचता कि हमें कभी आत्मिक जाग्रति देखने को मिलेगी अगर हम प्रार्थना के साथ साथ उपवास नहीं रखेंगे तो!
तो, मैंने इस पद के लिये आधुनिक अनुवादो को अस्वीकार करने के छह कारण दिये! मैं उनमे से प्रचार भी नहीं करता। मैं उन पर विश्वास भी नहीं करता। इसलिये मैं केवल किंग जेम्स बाइबल में से ही प्रचार करता हूं। इसीलिये मैं चाहता हूं कि आप पद भी किंग जेम्स बाइबल में से ही याद करे और प्रतिदिन का पठन भी किंग जेम्स बाइबल में से ही करे। यह आपको आशीषित करेगा और आप इस पर विश्वास कर सकते हैं!
''यह प्रजाति बिना प्रार्थना और उपवास के नहीं निकलती।'' (मरकुस ९:२९)
अब, शेष संदेश के लिये मैं इन दो प्रश्नो के उत्तर देने जा रहा हूं:
(१) यह कैसी ''प्रजाति'' है?
(२) हम ''इस प्रजाति'' पर कैसे विजय प्राप्त कर सकते हैं?
मैं इस बात पर समय बरबाद करने नहीं जा रहा हूं कि शैतान और दुष्टात्मा होते है। अगर आप एक आत्मा जीतने वाले हैं, तो आप अनुभव, से शैतान की सत्यता जानते होंगे। तो मैं आपको उनके अस्तित्व को सिद्व किये बगैर आगे बढना चाहूंगा।
''इस प्रकार की प्रजाति'' उस प्रकार के शैतान को कहा गया है जो हमें रोकते है जिन पर हम साधारण तरीकों से विजय प्राप्त नहीं कर सकते। बाइबल कहती है कि ये शैतान उन मनुष्यों को अंधा कर देते हैं ''जिनके दिल विश्वास नहीं करते हैं।'' (२ कुरूंथियों ४:४) और इस संसार में परिवर्तन के पहले हर मनुष्य के लिये यह बात सही है। हम ''इस प्रकार'' की प्रजाति से लंबे समय से जूझ रहे हैं। और हम इस प्रकार की प्रजाति पर तब विजय पाते हैं जब मसीह हमारी प्रार्थना का उत्तर देते हैं।
हम जानते हैं कि ''इस'' अविश्वासी के प्रकार की प्रजाति मन में से वचन को चुरा लेती है − ''तब शैतान आकर उन के मन में से वचन उठा ले जाता है'' (लूका ८:१२) और हमने अक्सर यह देखा है कि हम इस ''प्रकार'' की प्रजाति पर तब विजय पाते हैं जब मसीह हमारी प्रार्थना का उत्तर देते हैं।
आदिकाल से शैतान ने दुष्टात्माओं को दो काम करने के लिये भेजा है। उसने अदन के बगीचे में आदम और हवा के दिमाग को अंधा बना दिया। उसने पूर्व काल से उनके मन से वचन को उठा लिया।
हम ऐसा कह सकते है कि शैतान अमेरिका और पश्चिमी जगत के लोगो को गुलाम बनाने के लिये दो तरीके आज तक अपना रहा है। जब तक कि आधुनिक काल के लोग परमेश्वर साधारणत: पर विश्वास नहीं करेगे। उनके दिमागों को अंधा बना दिया गया है। उनके मन से वचन को उठा लिया गया है। पर फिर भी लोग साधारणत: बाइबल और परमेश्वर पर विश्वास रखते हैं। हम उन्हें ''पूर्व आधुनिक'' पुरूष और स्त्रियां कह सकते हैं। पूर्व आधुनिक के रूप में वे मसीहत में एक आलोचक विचारधारा के साथ प्रविष्ठ नहीं हुये। वे मसीह पर विश्वास नहीं करते हो पर वे ऐसे वाक्य बोलकर आलोचना नहीं करते कि ''कोई परमेश्वर नहीं है'' या ''परमेश्वर मृतक है'' − और इत्यादि। यह अपेक्षाकृत आसान है।
फिर इसके पश्चात हमने ''आधुनिक युग'' में प्रवेश किया। इस युग की जडे तकनीकी रूप से ज्ञानवाद से जुडी थी जो १७ वी शताब्दी के उत्तरार्ध में आरंभ होकर वोल्टेयर (१६९४−१७७८) तक जारी रहा। इस कालखंड में मनुष्य भौतिकतावादी और परमेश्वर व बाइबल का आलोचक होना प्रारंभ हो गया। पर इस आलोचनात्मक विचारधारा ने अभी १९ वी सदी तक सामान्य मनुष्य के मस्तिष्क में प्रवेश नही किया था। ''आधुनिक विचारधारा'' प्रत्येक चीज को ''विज्ञान की कसौटी'' पर परखकर सिद् मानती थी। यह हर आध्यात्मिक चीज की आलोचना करती थी। अपने प्रसिद् संदेश जो यूहन्ना ३:१६ पर आधारित था विख्यात इवेंजलिस्ट बिली ग्राहम ने कहा था ''आप ईश्वर को टेस्ट टयूब में रख कर नहीं परख सकते।'' वह ''आधुनिक'' आदमी को प्रचार कर रहे थे। पर आम तौर पर यह विचार प्रचलन में था कि ''आधुनिक'' वाद हिप्पी युग के साथ ही समाप्त हो गया।
आज − हम उस युग में में रह रहे हैं जिसे दार्शनिक ''उत्तर आधुनिक काल'' कहते हैं − आधुनिकवाद के बाद का समय। जवान लोगो का उत्तर आधुनिक दिमाग अनैतिक है। उसमें नैतिकता बाकि नहीं रही। उसमे कुछ ''राजनीतिक रूप से सही'' विचार हो सकते है लेकिन वास्तविक नैतिक आधार नहीं है। ''जो तुम्हारे लिये सही हो सकता है, वह मेरे लिये सही नहीं है।'' सही और गलत का कोई नैतिक मापदंड ही नहीं है। उत्तर आधुनिक काल का आदर्श वाक्य है ''अगर यह सही लगता है तो यह सही है।'' आधुनिककाल के लोगों के समान लोग भले ही यह नहीं कहते है ''कि कोई परमेश्वर नहीं है'' इसके स्थान − पर वे कहते हैं ''अगर आपका परमेश्वर सच्चा है तो ठीक है − पर मुझे मेरे देवताओं को मानने दीजिये।'' दूसरे शब्दों में कहें तो कोई मापदंड ही नहीं है। जो आपके लिये सही बैठता है − वह आपके लिये सही है।
तो यह ''यह प्रजाति है'' – अर्थात आज के जवानो की सोच जैसा वे सोचते हैं − जो अस्पष्ट, परिवर्तित, अनिश्चत प्रकार की है ''जो तुम्हारे लिये सही है वह करो'' ऐसी वाली विचारधारा। यह ''वह प्रजाति है।'' ये विचार वे शैतान है जिनके विरूद् हम लड रहे हैं! मैं वृद्ध लोगो को बोलते हुये सुनता हूं, और यह सही भी है, कि जबसे ओबामा है अंधकार व्याप्त है। हर चीज अलग प्रतीत होती है। कुछ भी निश्चत और स्थायी नहीं है। आप इसे ओबामा की आत्मा कह सकते है जो उत्तर आधुनिक दुष्टात्मा है और हर प्राचीन चीज को कुचले जा रही है − और इसे हटाने के बदले कुछ नहीं दे रही है। क्या यह हमारे चर्चेस को प्रभावित कर रही है? हां, बिल्कुल! दक्षिणी बैपटिस्टों ने पिछले वर्ष २००० चर्चेस को खोया! कभी नहीं सुनी होगी! इस प्रकार की कोई बात! डॉ ल्योड जोंस ने कहा था, ''कि हमें समझना होगा कि हम अपने जीवन के लिये इन भयानक ताकतो के विरूद् लड रहे हैं। हम एक बहुत सामर्थकारी शत्रु के विरूद् उठ खडे हुये हैं।'' (स्टडीज इन दि सर्मन आँन दि माउंट, भाग २, पेज १४८)
''यह प्रजाति'' हमारे लिये बहुत ताकतवर है। इस पर अकेले प्रार्थना से काबू नहीं पाया जा सकता। नहीं − हमें ''प्रार्थना और उपवास'' रखना अत्यंत आवश्यक है। नहीं तो हमारे सारे सुसमाचारिय प्रयास विफल माने जायेंगे। इसलिये मैं आपसे अगले शनिवार उपवास और प्रार्थना करने के लिये कह रहा हूं। अगर आपको कोई मेडीकल समस्या है तो उपवास मत रखिये। अगर आप हमारे साथ उपवास रखते भी हैं तो पर्याप्त पानी पीजिये, हर घंटे में लगभग एक गिलास पानी पीजिये। हम यहां चर्च में उपवास का अंत भोजन के साथ संध्या ५:३०बजे करेंगे। ''यह प्रजाति बिना प्रार्थना और उपवास के नहीं निकलती।'' सुनिश्चत कीजिये कि आप शनिवार को कई बार प्रार्थना करेंगे कि परमेश्वर भटके हुये लोगों को यहां लेकर आये यहां बनाये रखे और उन्हें मसीह के पास खींचकर लाये ताकि वे उनके रक्त् और धार्मिकता से उद्वार प्राप्त करें। हे स्वर्गीय पिता, ऐसा ही होने पाये। यीशु के नाम में मांगते हैं, आमीन।
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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा प्रार्थना की गई: मरकुस ९:१४−२९
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गीत गाया गया:
''होती मेरी हजारों जीभें गाने के लिये'' (चाल्र्स वेस्ली १७०७−१७८८; ओ सेटई ओपन अनटू मी धुन पर)