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शिष्य कैसे बनाये!
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बहुत लंबे समय पहले मुझे स्थानीय चर्च की प्रमुखता और प्राथमिकता सिखाई गयी थी। मुझे ठीक से स्मरण नहीं है कि मैंने इसे कब सुना था − पर शायद बहुत लंबे समय पूर्व सुना होगा क्योंकि वह ऐसा समय था जब मैंने इस पर विश्वास नहीं किया था। नये नियम में जितना सब कुछ दिया है वह सब स्थानीय चर्चेस में केंदित है। जिम जेंट ने कहा था, ''नये नियम में ‘चर्च’ शब्द १०० बार काम में लिया गया......चर्च परमेश्वर के लिये कोई बाद का सोचा हुआ विचार नहीं है...... पूर्वी मसीहियों के लिये स्थानीय चर्च परमेश्वर द्वारा अभिषिक्त वह एकमात्र ऐसी इकाई थी जिसे परमेश्वर ने कार्य करने के लिये चुना।'' (जिम जेंट, दि लोकल चर्च गॉडस प्लान फॉर प्लेनेट अर्थ, स्मरनीया पब्लिकेशन, १९९४, पेज८१, ८३, ८४)
यूनानी भाषा में ''चर्च'' के लिये अनुवादित शब्द ''ऐक्लेशिया'' है − इसका अर्थ है बुलाये हुओं की सभा − परमेश्वर ने जिन्हें इस संसार में से चुना है उनका जमा किया हुआ झुंड, और जिन्हें उसने अपनी आत्मा में मसीह के द्वारा बांध लिया है। ठीक से कहे तो हम ''चर्च नहीं जाते'' बल्कि हम जो बचाये गये हैं वे ही चर्च हैं! मसीह ने हमें चर्च की स्थापना के लिये मत्ती १६:१७, १८ में कहा है। फिर उसने हमें चर्च के अधिकार और अनुशासन के लिये मत्ती १८:१५−२० में कहा है। इसके साथ ही उस महान आज्ञा में मसीह कहते हैं कि चर्च को क्या करना चाहिये उसका उददेश्य और कार्य क्या है। मरकुस १६:१५ में मसीह कहते हैं,
''और उस ने उन से कहा, तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो।'' (मरकुस१६:१५)
संपूर्ण जगत में जाने की यह आज्ञा कई बार दोहराई गयी है। मत्ती २८:१९−२० में यह मुख्य विषय नहीं है। डॉ डब्ल्यू ए किसवेल ने कहा था, ''यीशु द्वारा सौंपा गया कार्य.........हर युग में चर्च ही था। इस महान आज्ञा में आदेशात्मक शब्द है ‘सब देशों में प्रचार करो’। जो रूपांतरित होकर कहता है ‘चेले बनाओ’'' (दि किसवेल स्टडी बाइबल, थॉमस नेल्सन पब्लिशर्स, १९७९; मत्ती २८:१९−२० पर व्याख्या)
कुछ लोगों का मानना है कि यह आज्ञा केवल चेलो को सौंपी गई है। यह एक गलत धारणा है। हम अगर प्रेरितों के काम देखे तो पायेंगे कि नये नियम के सारे चर्चेस यह विश्वास करते थे कि यह आज्ञा उनको सौपी गई है − सारे चर्चेस को दी गई है। डॉ डब्ल्यू किसवेल ने यह भी संकेत दिया कि ''सब देशों में प्रचार करो'' जिसका शाब्दिक अर्थ है ''चेले बनाओ''। मेरे लंबे समय तक के पास्टर रहे डॉ तिमोथी लिन जो न्यू अमेरिकन स्टेडर्ड बाइबल के अनुवादकों में से एक रहे। उन्होंने तलबोट थियोलोजिकल सेमनरी में पढाया और चायना इवेंजलीकल सेमनरी के अध्यक्ष रहे। डॉ लिन ने मत्ती मत्ती २८:१९−२० की यह व्याख्या दी,
महान आज्ञा में चार क्रिया है: ''जाओ'' ''चेले बनाओ'' ''बपतिस्मा दो'' और ''प्रचार करो'' इसमें सिर्फ ''चेले बनाओ'' यह आदेशात्मक लहजे में लिखा है शेष तीन कृदन्त या क्रिया से निकले हुये विशेषण है। इसलिये एकदम सही अनुवाद यह होना चाहिये:
जगत में घूमते हुए, सब राष्ट्र में चेले बनाओ, और उन्हें पिता पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो। जो आज्ञा मैने तुम्हे दी है वे सब उसे सिखाओ, मैं तुम्हारे साथ जगत के अंत तक रहूंगा।
दूसरे शब्दों में कहें तो ''जाओ'' आज्ञा नहीं है (यहां) पर ''चेले बनाओ'' आज्ञा है और यही महान आज्ञा का मुख्य विषय है (तिमोथी लिन, एस टी एम, पी एच डी, दि सीक्रेट आँफ चर्च ग्रोथ, एफ सी बी सी १९९२, पेज ५९)
अल्बर्ट बर्नेस ने यही बात कही, ''शब्द (शिक्षा देने) का का उचित अर्थ है ‘शिष्य’ या ‘चेले बनाओ’'' (बर्नेस नोटस आँन दि न्यू टेस्टामेंट, बेकर बुक हाउस, संस्करण १९८३; मत्ती २८:१९ पर व्याख्या) दि न्यू इंटरनेशनल वर्शन इसका ऐसा अनुवाद करता है ''चेले बनाओ'' (एनआयवी, मत्ती २८:१९) डॉ आर सी एच लैंस्की, जो लूथरन व्याख्याकार थे वे इसका इस प्रकार अनुवाद करते थे, ''जगत में जाते हुये समस्त राष्ट्र को चेला बनाओ'' (दि इंटरपिटेशन आफ सेंट मैथ्यू गास्पल, आग्सबर्ग पब्लिशिंग हाउस, संस्करण १९६१, पेज ११७०) ''चेला बनाओ'' यह अनुवाद चाल्र्स जॉन एलिकोट और जॉन पीटर लैंगे ने भी अपनी व्याख्या में दिया। विलियम हैंडरिकसन ने कहा, ''‘इसलिये, जगत में जाते हुये चेला बनाओ' यह अपने आप मे अनिवार्यता है यह स्फूर्तिदायक आज्ञा है, आदेश है'' (दि गास्पल आफ मैथ्यू, बेकर बुक हाउस, संस्करण १९८१, पेज ९९९) इसलिये महान आज्ञा, स्थानीय चर्च का मुख्य विषय और मिशन कार्य है। चर्च में हम जो कुछ भी करते हैं उसका मुख्य उददेश्य जाकर चेले बनाने, उन्हें बपतिस्मा देने, और जैसा मसीह ने सिखाया है वैसा करने के उपर केंदित होना चाहिये। स्थानीय चर्च की भूमिका एक प्रशिक्षण केंद्र की होना चाहिये जो यह सिखाये कि ''समस्त राष्ट्र को कैसे चेला बनाओ'' हर कोई जो मेरे संदेश को ध्यान से सुनता है जानता है कि मैं डॉ जॉन आर राइस को कितना पसंद करता हूं।
मैं उनके हर बिंदु पर सहमत नहीं होता पर मैं उनके आत्मायें जीतने वाले कार्य करने वाले बिंदु पर जोर देने से बिल्कुल सहमत हूं। डॉ राइस ने जो महान आज्ञा मत्ती २८:१९, २० पर व्याख्या प्रतिपादित की है उसे सुनिये, डॉ राइस ने कहा था,
मैं सोचता हूं कि लगभग हरेक जन इस बात से सहमत होगा कि महान आज्ञा की इस योजना के अंर्तगत आत्माओं को जीतने का कार्य प्राथमिकता से किया जाना आवश्यक है आत्माओं को जीतने का कार्य मसीहियों पास्टर्स एवं चर्चेस द्वारा किया जाना आवश्यक है.......... (''सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो'') ''प्रचार करो'' से यहां तात्पर्य है कि धर्मशास्त्र केवल मसीहियों को ही नहीं सुनाया जाना है। यूनानी शब्द है ''माथेटयूओ'' अर्थात ''चेला बनाना''......... तो, पहली शिक्षा जो महान आज्ञा में दे रखी है कि चेला बनाओ। (जॉन आर राइस, डी डी, लिट डी, व्हाय अवर चर्चेस डू नॉट विन सोल्स, सोर्ड आफ दि लॉर्ड पब्लिशर्स, १९६६, पेज २२)।
जिस यूनानी शब्द का अनुवाद ''शिष्य'' के रूप में हुआ है उसे डब्ल्यू वाइन द्वारा बहुत अच्छे से वर्णित किया गया है − ''एक शिष्य न केवल (विद्यार्थी) होता है बल्कि वह एक अनुयायी (भी) होता है; इसलिये उसे उसके शिक्षको का अनुकरणकर्ता कहा जाता है।'' (डब्ल्यू इ वाइन, एन एक्सपोजिटरी डिक्शनरी आफ न्यू टेस्टामेंट वर्डस, फ्लेमिंग एच रेवेल पब्लिशर्स, १९६६ संस्करण, पेज ३१६)
पर प्रश्न यह उठता है − कि हम चेलो का चुनाव किस तरह करते हैं? मैं सोचता हूं कि हमारे समय का अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न है। हमने यह पाया है कि बहुत से पुराने तरीके, जो पुराने समय में कारगर थे, अब स्थानीय चर्चेस में नये लोगो को लेकर नही आते। वे अब प्रभावी नहीं रहे! ट्रैक्ट बांटने से नये शिष्य चर्च में नहीं आते। उनके दरवाजे पर आमंत्रण टांगने से कुछ नहीं होता। एक एक घर जाने से और ''पापियों वाली प्रार्थना'' दुहराने से कुछ नही होता। हर कोई जो गंभीरतापूर्वक इन पुराने तरीकों को काम में लाता है वह जानता है कि इस तरह से वे नये चेलों को चर्च में नहीं ला सकते।
जब मैं परिवर्तित हुआ तो प्रथम बार मैं जॉन वेस्ली का जर्नल पढ रहा था। यह जॉन वेस्ली का तरीका था कि क्षेत्र में जाओ और शिष्य बनाओ। कुछ लोग उनके पास आते थे और वह उनका एक छोटा समूह बना देते थे। मैंने सोचा कि शायद यह सुसमाचार प्रचार करने का तरीका है। तो मै भी प्रतिदिन कार्य से छूटकर लॉस ऐंजिल्स की गलियों में निकल जाता और प्रचार शुरू कर देता। पर इसके बहुत कम परिणाम सामने आये। जब मैं गली में प्रचार करता था तो एक वयोवृद्ध जन ने मुझे सुना और फिर उनके घर जाकर प्रचार करने से मैं उस दंपत्ति को मसीह में लाने में सफल रहा। लेकिन गली में दो साल किये गये प्रचार से केवल यही दो लोगो को मैं मसीह के पास लाने में सफल रहा!
फिर मैं ट्रैक्ट बांटने में लग गया। जब हमने यह चर्च शुरू किया था हम लगातार ट्रैक्ट बांट रहे थे। मैंने अनुमान लगाया कि हम लगभग आधे मिलियन उद्वार पाने संबंधी ट्रैक्ट बांट चुके थे। उन पर नाम व चर्च का फोन नंबर हुआ करता था। पर कई सालो तक हजारो हजार ट्रैक्ट देने के उपरांत भी हम एक भी जन को चर्च नहीं ला पाये! एक भी जन को नहीं!
फिर हमने घर घर जाकर उद्वार के बारे में समझाने का कार्य आरंभ किया। फिर मैने एक टेप रिकार्डिंग बनाई जिसमें मैं समझाता था कि किस तरह बचा जा सकता है। हमारे लोग हजारो हजार भटके हुये लोगों को यह टेप रिकार्डिंग दिखाते। तौभी बिल्कुल कम नहीं के बराबर लोग चर्च में आये! मुझे तो याद भी नहीं आता कि उनमें से कोई हमारे साथ बना हुआ है!
आखिकार हमने एक साधारण से निमंत्रण को आजमाया। हमने ट्रैक्ट, बाइबल या अन्य कोई साहित्य नहीं लिया। हमने हमारे लोगो को माल्स, कालेजों में, और कुछ चुने हुये चौराहों पर भेजना प्रारंभ किया। वे लोगों तक पहुंचेगे और उनसे अनौपचारिक बातें करेंगे। वे लोगों को बैपटिस्ट चर्च में रखी गयी पार्टी में आमंत्रित करेंगे। वे उनसे उनका प्रथम नाम और फोन नंबर पूछेंगे। हम जवान लोगो पर अधिक ध्यान रखेंगे। डॉ तिमोथी लिन ने कहा था, ''आंकडे बताते हैं कि चालीस के उपर मसीह को ग्रहण करने वालों का प्रतिशत बहुत कम है विशेषकर चीनी लोगों में।'' (उक्त, पेज ७३) यद्यपि, गैर चीनियों में तो यह ओर भी कम ही रहा! अन्य आंकडे भी बताते हैं कि लगभग सभी परिवर्तन (९०% या उससे अधिक) ३० के उम्र के नीचे ही होते हैं। मुझे बडा आश्चर्य होता है कि अंतिम दिनों में अधिकांश प्रचारक आत्मा जीतने वाले प्रयास अधिक उम्र वालों पर करते हैं जबकि यह बेहद प्रतिरोधी आयु समूह है! डॉ तिमोथी लिन ने कहा कि हमें ज्यादातर प्रयास जवान लोगो को शिष्य बनाने पर करना चाहिये। इसलिये हम १६ से २५ साल वालों तक का लक्ष्य रखते हैं। कई प्रचारक अंतिम दिनों में त्वरित परिणाम चाहते हैं। इसलिये वे कैसे भी करके अन्य चर्चेस के ''तैयार'' मसीहियों को खोजते हैं। वे लोगो को फुसलाते हैं कि उनका पुराना चर्च छोडकर नये में आ जाये। डॉ जेम्स डाबसन के अनुसार हमारे चर्चेस की लगभग सदस्य संख्या में बढोतरी सदस्यों के स्थानांनतरण के कारण होती है। यह बहुत त्रासदायक परिस्थति है। प्रचारक ऐसा करने के लिये बाध्य है क्योंकि वे नहीं जानते कि बाहर के भटके हुये संसार से नये चेले किस ढंग से लाये। कई प्रचारको को तो यह भी नहीं पता कि खोये हुये लोगों को कैसे आकर्षित करें उन्हें चेला बनाये और परिवर्तित करे। उनके पास कोई विचार नहीं है कि क्या करे! क्या वे केवल अन्य चर्चेस से ''भेडे चुरा सकते'' है! इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इसीलिये तो आत्मिक क्रांति नहीं आती!
जब हमारे लोग ''सुसमाचार प्रचार'' से वापस आते तो वे लोगो के नाम और फोन नंबर लेकर फोन लगाने वालो के पास जाते। और फोन लगाने वाले जानते थे कि कैसे लोगो से बात की जाये और उन्हें आमंत्रित किया जाये। हम उनको ठीक ठीक बता देते थे कि वे किस बात के लिये आमंत्रित है − पहले मेरा संदेश होगा, फिर हम बर्थडे पार्टी मनायेंगे और साथ साथ भोजन करेंगे। हमेशा किसी न किसी की बर्थडे पार्टी होती रहती थी! जब नये लोग कुछ सप्ताह तक आने लगते तो हम उन्हें सुसमावार प्रचार के लिये ले जाते। हम इस बात का इंतजार का नहीं करते कि वे परिवर्तित हुये कि नहीं। हम यीशु का उदाहरण अपनाते। उन्होने पतरस, और संशय करने वाले थोमा, और अन्य लोगों को चेले बनने के लिये आमंत्रित किया इसके पहले कि उन्होने सुसमाचार को जाना और परिवर्तित भी नहीं हुये थे। यहूदा बिना परिवर्तित हुये तीन साल तक चेला रहा। इस तरह वे बिना बचे हुये चेले बने रहे! तरीका यीशु ने यही तरीका इस्तेमाल किया। मैने भी केवल इसी एक तरीके पर कार्य किया और यह तरीका काम करने लगा!
और तो और, यीशु ने आगे चलकर उन्होंने उन लोगो को ''आसानी'' से शिष्य नहीं बने रहने दिया। नहीं! उसने उन्हें शिष्यपन में डूब जाने दिया! ध्यान दीजिये कि कैसे यीशु ने उन प्रथम चेलो को बुलाया। यीशु ने उनसे कहा मेरे ''पीछे हो लो'' और वे अपने जाल छोड कर उसके पीछे हो लिये (मत्ती ४:१९, २०) । उसके बाद यीशु ने यहूदा और यूहन्ना को एक छोटी सी नाव में देखा। उसने उन्हे बुलाया। ''वे तुरन्त नाव को छोड़कर.......उसके पीछे हो लिए'' (मत्ती ४:२१, २२) उनको यह जानकारी नही थी कि यह कौन था। उन्होने कहा, ''कि यह किस प्रकार का व्यक्ति है?'' (मत्ती ८: २७) उस समय तक यीशु के पास बारह चेले थे। वे अभी तक नहीं जानते थे कि वह कौन था। यीशु क्या करते थे? वह उन्हे दो दो करके सुसमाचार सुनाने भेजने लगा! फिर उसने उन्हें फरीसियों के साथ एक के बाद एक विवाद में उलझने दिया। उनको एक धनवान जवान मिला। उसने यीशु से पूछा कि अनंत जीवन पाने के लिये वह क्या करें। यीशु ने उससे कहा, ''तो जा, अपना माल बेचकर कंगालों को दे; और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा; और आकर मेरे पीछे हो ले।'' (मत्ती १९: २१) वह धनवान जवान दुखी होकर चला गया। वह शिष्य नहीं बन पाया।
तब यीशु ने चेलो से कहा कि वह कूसित होने के लिये यरूशलेम जा रहे हैं। तब वे समझ नहीं पाये कि ऐसा कहने से यीशु का क्या मतलब है। तीन साल बीतने आ गये फिर भी चेले सुसमाचार को समझ ही नहीं पाये! फिर भी उन्होने नया जन्म मिलने से पहले चेला बनना सीख लिया था! जब यीशु को पकड लिया गया तो सब उन्हें छोडकर भाग गये और अंतत: एक कमरे में जा छिपे। ईस्टर रविवार की संध्या प्रभु यीशु उनसे मिलने आये। चेले प्रभु यीशु को जीवित देखकर अत्यंत खुशी से भर गये! तब प्रभु यीशु ने उन पर अपनी सांस फूंकी और कहा, ''पवित्र आत्मा लो।'' (यूहन्ना २०:२२) डॉ जे वर्नान मैगी ने कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से विश्वास करता हूं कि जिस क्षण प्रभु यीशु ने अपनी सांस फूंकी होगी और चेलो से कहा होगा कि, ' तुम पवित्र आत्मा लो' और चेलों ने नया जन्म पाया (पुनर्जन्म हुआ) होगा। (जे वर्नान मैगी, टी एच डी, थ्रू दि बाइबल, वोल्यूम ४ पेज ४९८; यूहन्ना २०:२२ पर व्याख्या)
मैं सोचता हूं कि डॉ मैगी बिल्कुल सही थे। पर अगर आप उस आखिरी बिंदु से नहीं भी सहमत हैं तौभी यह तो स्पष्ट है कि यीशु ने अपने चेलों को आज के चर्चेस की तुलना में बिल्कुल अलग ढंग से प्रेरिताई सिखाई थी। किसी भी चीज के पहले उन्होने उन्हें पहले प्रेरिताई सिखाई।
पिछले सौ सालों से हम लोगो को पहले मसीह के पास ''लेकर आने'' के लिये लगे हुये हैं और उसके पश्चात हमने आगे की कार्यवाही की। जबकि यीशु ने ठीक इसके विपरीत किया। मेरी आशा है कि कोई तो इस असफल तरीके से मुंह मोडेगा − और उस तरह से कार्य करेगा जैसे यीशु ने चेले बनाये। और अगर आप यहां हमारे साथ है तो मैं आप से यीशु के चेले बनने को कह रहा हूं। इसी तरह हमारे चर्च में आइये! कूस उठा लीजिये और मसीह का अनुसरण कीजिये! रविवार की सुबह आइये और रविवार की रात आइये! शनिवार की प्रार्घना सभा में भी आइये! एक गंभीर मसीही जीवन जीना सीखिये। फिर यीशु पर विश्वास कीजिये और नया जन्म पाइये − और यीशु के लहू में अपने सारे पापों को धो लीजिये। आमीन।
मैं आपको हमारे साथ आने के लिये कह रहा हूं। मैं आपको मसीह का चेला हो जाने के लिये कह रहा हूं − जो उससे सीखता है और उसी का अनुसरण करता है। मैं बिल्कुल आपको संपूर्ण रीति से हमारे चर्च आने के लिये आमंत्रित कर रहा हूं, रविवार को सुबह आइये, रात में आइये, शनिवार को आइये, प्रार्थना और सुसमाचार प्रचार के लिये आइये। हमारे साथ आइये और यीशु आपको ''मनुष्यों को पकडने वाला मछुआ'' बनायेगा! वह आपको आत्मा जीतने वाला बनायेगा − मनुष्यो के मछुआरे बनायेगा! यीशु ने कहा, ''मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़ने वाले बनाऊंगा'' (मत्ती ४: १९) । ये कोरस मेरे साथ गाइये!
आओ मैं तुमको मछुआ बनाउं,
मछुआ बनाउं, मछुआ बनाउं,
आओ मैं तुमको मछुआ बनाउं
गर तुम पीछे आओ।
गर तुम पीछे आओ, गर तुम पीछे आओ,
आओ मैं तुमको मछुआ बनाउं
गर तुम पीछे आओ!
(''आओ मैं तुमको मछुआ बनाउं'' हैरी डी क्लार्क, १८८८−१९५७)
उन्हें भीतर लाओ, उन्हें भीतर लाओ,
पाप के क्षेत्रों से उन्हें लौटा लाओ;
उन्हें भीतर लाओ, उन्हें भीतर लाओ,
भटकते हुओं को यीशु के पास लाइये।
(''उन्हें भीतर लाओ'' ऐलेक्सीनाह थॉमस, १९ वी सदी)
मसीह आपके पापों का दंड भरने के लिये कूस पर मारा गया। आपको सारे पापो से शुद् करने के लिये उसने अपना कीमती लहू कूस पर बहाया। वह मुरदो में से जी उठा ताकि आपको सनातन जीवन प्रदान कर सके। यीशु पर विश्वास कीजिये और वह आपको बचायेगा। हमारे साथ आइये ताकि हम आत्माओं को जीत सके। आमीन।
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(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा प्रार्थना की गई: मत्ती २८:१६−२०
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गीत गाया गया:
''उन्हें भीतर लाओ'' (ऐलेक्सीनाह थॉमस, १९ वी सदी)