इस वेबसाईट का उद्देश्य संपूर्ण विश्व भर के पास्टर्स व प्रचारकों को, विशेषकर तीसरी दुनिया के पास्टर्स व प्रचारकों को नि:शुल्क हस्तलिखित संदेश और संदेश के विडियोज उपलब्ध करवाना है, जहां बहुत कम धर्मविज्ञान कॉलेज और बाइबल स्कूल्स हैं।
इन संदेशों की पांडुलिपियां प्रति माह २२१ देशों के १,५००,००० कंम्प्यूटर्स पर इस वेबसाइट पते पर www.sermonsfortheworld.com जाती हैं। सैकड़ों लोग इन्हें यू टयूब विडियो पर देखते हैं। किंतु वे जल्द ही यू टयूब छोड़ देते हैं क्योंकि विडियों संदेश हमारी वेबसाईट पर पहुंचाता है। यू टयूब लोगों को हमारी वेबसाईट पर पहुंचाता है। प्रति माह ये संदेश ४२ भाषाओं में अनुवादित होकर १२०,००० प्रति माह हजारों लोगों के कंप्यूटर्स पर पहुंचते हैं। उपलब्ध रहते हैं। पांडुलिपि संदेशों का कॉपीराईट नहीं है। आप उन्हें बिना अनुमति के भी उपयोग में ला सकते हैं। आप यहां क्लिक करके अपना मासिक दान हमें दे सकते हैं ताकि संपूर्ण विश्व में सुसमाचार प्रचार के इस महान कार्य में सहायता मिल सके।
जब कभी आप डॉ हायमर्स को लिखें तो अवश्य बतायें कि आप किस देश में रहते हैं। अन्यथा वह आप को उत्तर नहीं दे पायेंगे। डॉ हायमर्स का ईमेल है rlhymersjr@sbcglobal.net.
.
राष्ट्रपति की माता − मातृदिवस का संदेशPRESIDENT REAGAN’S MOTHER – द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स रविवार की सुबह, १० मई, २०१५ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में |
निवेदन है कि मेरे साथ निर्गमन, अध्याय दो, पद दो को बाइबल में से निकाल लेवें। यह स्कॉफील्ड बाइबल में पेज ७२ में पाया जाता है। निवेदन है कि आप खड़े होकर इस पद को मेरे साथ जोर से पढ़े,
“और वह स्त्री गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और यह देखकर कि यह बालक सुन्दर है, उसे तीन महीने तक छिपा रखा।” (निर्गमन २:२)
अब आप बैठ सकते हैं।
यह मूसा के जन्म का वर्णन है। मूसा की मां का नाम और वह एक इब्रानी महिला थी। जब मिस्त्र के सम्राट ने आज्ञा दी कि सभी इब्रानी नर बालकों को नील नदी में डूबो कर मार डाला जाए तो उसकी मां ने उसे तीन महिने छिपा कर रखा। जब वह और अधिक नही छिपा पाई तो उसने एक टोकरी बनाई और उसमें मूसा को लेटा कर टोकरी को उस स्थान तक बहने दिया जहां फिरौन की पुत्री नहाने आती थी। यहोबेद को यह आशा थी कि बच्चे का जीवन बच सकता है अगर फिरौन की पुत्री उसे बचा ले। उसने बहुत गहराई से प्रार्थना की होगी जब वह बालरश की झाडि़यों में छिपकर उसके बच्चे की टोकरी को वहां बहता हुआ देख रही थी जहां फिरौन की पुत्री नहा रही थी। परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना का उत्तर दिया और फिरौन की पुत्री बच्चे को घर ले गई “तब उसे तरस आया।” (निर्गमन २:६) ।
परमेश्वर की ईश्वरीय सुरक्षा में पुत्री के सेवक उस बच्चे को दूध पिलाने के लिये एक इब्री स्त्री की तलाश करने लगे। सेवक उस बच्चे को दूध पिलाने के लिये यहोबेद को ही लेकर आये जो वास्तव में बच्चे की वास्तविक मां थी। यहोबेद मूसा की तब तक देखभाल करती रही जब तक वह दस बारह सालों का नहीं हो गया। उसके पश्चात वह फिरौन के दरबार में फिरौन की पुत्री के पुत्र के रूप में बड़ा होने लगा।
“और मूसा को मिसरियों की सारी विद्या पढ़ाई गई, और वह बातों और कामों में सामर्थी था।” (प्रेरितों के काम ७:२२)
मूसा फिरौन के दरबार में बड़ा हुआ। उसने मिस्त्री लोगों में होने वाली मूर्तिपूजा संबंधी सारी धार्मिक विधा पढ़ी। सबने यही सोचा कि वह एक मिस्त्री जन ही है। परन्तु मूसा मन ही मन में जानता था कि वह एक इब्री बालक है क्योंकि उसकी मां यहोबेद ने उसे पालते पोसते हुए परमेश्वर के बारे में और उसके इब्री वंश के बारे में बहुत कुछ सिखाया था।
मिस्त्र के सम्राट से बढ़कर यहोबेद का प्रभाव उसके पुत्र पर अधिक पढ़ा। “मिसरियों की सारी विद्या से बढ़कर” उसकी मां का प्रभाव मूसा पर अधिक पढ़ा (प्रेरितों के काम ७:२२) बाइबल बताती है कि जब वह बड़ा हो गया तो उसने मिस्त्र के धर्म को ठुकरा दिया और अपनी मां के परमेश्वर को मानने लगा। बाइबल बताती है कि,
“विश्वास ही से मूसा ने सयाना होकर फिरौन की बेटी का पुत्र कहलाने से इन्कार किया। इसलिये कि उसे पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने से परमेश्वर के लोगों के साथ दुख भोगना और उत्तम लगा। विश्वास ही से राजा के क्रोध से न डर कर उस ने मिसर को छोड़ दिया, क्योंकि वह अनदेखे को मानों देखता हुआ दृढ़ रहा।” (इब्रानियों ११:२४, २५, २७)
मूसा अपनी मां के विश्वास से इतना अधिक प्रभावित था कि मिस्त्र के राजमहल की धन दौलत सत्ता की ताकत और मिस्त्र का ज्ञान भी उसे अपनी मां के परमेश्वर को मानने से रोक नहीं पाया।
संपूर्ण इतिहास गवाह है कि परमेश्वर का भय मानने वाली मां हमेशा अपने बच्चों पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने कहा था कि,
समाज में योग्य व्यक्ति की तुलना में एक अच्छी मां, बुद्विमान मां का होना अत्यंत आवश्चक है। समाज में उसका कार्य अधिक सम्मान के योग्य है समाज में अन्य सफल व्यक्तियों की तुलना में भले ही वे व्यक्ति, कितने ही सफल क्यों न हो।
क्या राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने सही कहा था? मैं तो उनके कथन को सत्य मानता हूं। यहोबेद के जीवन से तो यही सिद् होता है। उसका पुत्र मूसा इतिहास में परमेश्वर का महानतम भक्त साबित हुआ। वह इबियों को मिस्त्र की गुलामी से छुड़कार निकाल ले गया। मिस्त्र की मूर्तिपूजक संस्क्रति में रहते हुये भी वह अपनी मां के दिये हुये, ईश्वरीय संस्कार नहीं भूला।
क्या यह हमारे आज के समय में सही सिद्व होता है? हां आज भी ऐसा होता है। मैं आपको नेली रीगन का उदाहरण बताता हूं जो एक सर्वोत्तम उदाहरण है उनके पुत्र, रोनाल्ड विल्सन रीगन थे जो अमेरिका के इकतालीसवें राष्ट्रपति थे।
रोनाल्ड रीगन नेली रीगन और जेक रीगन के दूसरे पुत्र थे वह इलियोनिस, के छोटे से कस्बे टेंपिको, में १९११ में पैदा हुये। उनके पिता उनको प्रेम से “डच” कहकर बुलाते थे। यही नाम चल पड़ा और उनके करीबी मित्र आज तक स्वर्गीय राष्ट्रपति को “डच” ही कहकर पुकारते है। किंतु डच के पिता नाममात्र के कैथोलिक थे और बहुत शराब पीते थे। उनकी मां नैली एक प्रोटेस्टैंट महिला थी जो अपने विश्वास के प्रति बहुत जाग्रत थी।
जैक रीगन को जब अच्छा कार्य मिल गया तो वह उस कस्बे को छोड़ गये। अंतत: वह टैंपिको से इलियोनोईस के डिक्सन में आ गये वहां वे पांच किराये के घरों में रहे। उनके पड़ोसी कहते थे कि “वे अत्यधिक गरीब थे।”
इतनी अधिक जगहों से गुजरने के कारण रीगन अंतमुखी स्वभाव के, शर्मिले और अकेले हो गये। डच ने कहा, कि बच्चे के रूप में, वह मित्र बनाने में थोड़े धीमे थे। लोगों से नजदीकी बनाने में हिचक रखने वाले स्वभाव ने कभी उनका पीछा नहीं छोड़ा।” जब मैं अपने परिवार के साथ उनसे उनके आफिस में मिला तो मैंने महसूस किया कि वह शर्मिले स्वभाव के हैं। किंतु राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने उसे छुपा लिया था। आप चर्च के दूसरे माले पर लगी तस्वीरों में, राष्ट्रपति रीगन के साथ मेरे लड़के, मेरी पत्नी, और मेरी तस्वीर देख सकते है।
अब मैं सीधे डॉ पॉल केनगार (हार्पर कोंलिंस पब्लिशर्स २००४) द्वारा लिखी गॉड और रोनाल्ड रीगन नामक पुस्तक में से मैं कुछ अंश पढ़ने जा रहा हूं। मैं कई पदों को उदघ्रत करूंगा।
(रोनाल्ड रीगन) परमेश्वर से एक एकाकी लड़के के रूप में जुड़े....रीगन के ईश्वर की ओर झुकने का कारण (उनके पिता का) असफल रहना भी था....छोटे रीगन के ग्यारवें जन्मदिन के बाद....उन्हें एक खाली घर में प्रवेश करना था। साथ ही वह इस बात से भी दहल गये थे कि (उनके पिता) घर के पोर्च के सामने बर्फ में ही मदोन्मत्त पड़े हुये थे। “यह व्यक्ति मदोन्मत्त था” उनके पुत्र को याद था कि “यह व्यक्ति संसार के लिये तो मर चुका है।”
डच ने अपने पिता का ओवरकोट पकड़ा और उन्हें भीतर खींच कर लाये। वह उन्हें घर में खींच कर लाये और बिस्तर पर लिटाया.....यह उनके लिये बहुत उदास कर देने वाला क्षण था। उन्हें न गुस्सा आया, न कोई रोष बस दुख हुआ....उनका संसार उथल-पुथल था − फिर से एक बार.....वह उस समय केवल ग्यारह सालों के ही थे।
इस घटना ने रीगन के आध्यात्मिक जीवन में उथल पुथल मचाने का काम किया। चार माह बाद उन्होंने बपतिस्मा लिया और चर्च के सदस्य के रूप में जीवन प्रारंभ किया। उनके दिमाग में उनके पियक्कड़ पिता के बर्फ में पड़े रहने का ख्याल बस गया था जो शायद जीवन भर कौंधता रहा हो कि उनके पिता ऐसे ही रहेंगे।
(इस बिंदु पर पहुंचकर) ऐसे समय में उनकी मां की भूमिका रोनाल्ड रीगन को मसीही बनाने में खास हो गई।
आत्म कथाकारों ने नैली के जीवन की कहानी का आरंभ डिकसन में उसके विश्वासी जीवन के वर्णन द्वारा करते हैं। परंतु टैंपिको में उसके आरंभ का जीवन चर्च में उसकी भूमिका भी मायने रखता था। पिछले कुछ महिनों में जब (उनके पिता) अपने परिवार को फिर से कहीं ले जाने वाले थे। नैली चर्च में सकिय हो गई थी......१९१० मे एक आत्मिक जागरण हुआ था उसके फलस्वरूप सकिय हो गई थी एक सूत्र ने दावा किया कि नैली पास्टरविहीन चर्च चलाती थी और वह भी अकेले। वह बुलेटिन लिखती थी, रविवार के कार्यक्रम तैयार करती थी। संघर्षरत चर्च को सहायता करने के लिये लोगों को उत्साहित करती थोड़ा प्रचार भी करती........यहां तक कि डिकसन से चले जाने के बाद भी वह टैंपिको अपने पुराने चर्च की मदद करने के लिये आती रहती और साथ में डच को रस्से में बांघ कर लादकर लाती।
(तब रीगन की मां ने डिकसन में चर्च जाना आरंभ कर दिया) । (चर्च) पहले वायएमसीए के निचले तल में लगता था तब तक जब तक उसने चर्च इमारत के लिये चंदा न उगा लिया हो। तब तक जब तक उसने चर्च इमारत के लिये चंदा न उगा लिया हो। नया चर्च १८ जून १९२२ में खुला।
अब नैली (रीगन) अगुआ बन गई। स्थानीय चर्च का एक आघार स्तंभ बन गई। पास्टर के उपरांत वह ही सबसे अघिक दिखाई देने वाला चेहरा था।....... नैली के (संडे स्कूल) की कक्षा सबसे बड़ी कक्षा हुआ करती थी। १९२२ की चर्च डायरेक्टरी यह बताती है कि उस समय नैली की कक्षा में पैंतीस छात्र थे और पास्टर की कक्षा में पांच; उनकी पत्नी की कक्षा में नौ छात्र थे।
नैली चर्च में और चर्च के बाहर भी धार्मिक पाठ करती थी − इस सेवा के लिये उसकी बहुत आवश्यकता रहती थी। उसकी आवाज सबको बांधे रखने वाली और स्वाभाविक थी − यही गुण उसने अपने पुत्र को प्रदान किये − वह कई नाटको में भी हिस्सा लेती थी........ १९२६ जून में उन्होने बैपटिस्ट चर्च में एक नाटक खेला था जिसका नाम था “शिप आफ फैथ।”
.नैली ने, आर्मीस्टक डे कविता छपवाई........१९२६ में जिसमें उन्होने अपील की कि “परमेश्वर हमें भूलने को मना करता है”। (द्वितीय विश्व युद्व के उन सैनिकों को) जिन्होंने उनका प्राण न्यौछावर किया। नैली ने उन बहादुर सैनिको के लिये लिखा कि उन्होने विश्व प्रजातंत्र के लिये जीत हासिल की और स्वशासन को हमेशा हमेशा के लिये अभिशप्त कर दिया”........१९२७ में नैली अमेरिकी सेना के सामने जार्ज वाशिंगटन के बालपन पर − “भव्य भाषण” देने के लिये प्रस्तुत हुई निश्चत ही इस प्रस्तुति ने (उनके जवान पुत्र) को प्रभावित किया होगा।
प्रार्थना में पक्का विश्वास रखने वाली नैली कई प्रार्थना सभाओं का संचालन करती थी। जब पास्टर छुटटी पर होते........तो वह ही मघ्य सप्ताह की प्रार्थनाओं का संचालन करती और वह प्रार्थनाओं पर विचार विमर्श करती........ नैली एक “प्रमुख” की भूमिका का (भी) निर्वाह करती। वह लोगों के यहां “घरेलू प्रार्थना सेवा” भी प्रदान करती।
(यहां मिसिस मिल्डरेड की गवाही हमें पढ़ने को मिलती है जो उन्होंने नैली रीगन के द्वारा उनकी पुत्री के लिये की गई प्रार्थना के विषय में दी थी। वह लड़की इतनी बीमार हो गई थी कि न वह ठीक से खा पाती थी न सो पाती थी। उसकी मां चर्च गई। यहां यहां उसने इस प्रकार बताया) :
जब आराधना समाप्त हुई मैं अपनी जगह छोड़ नहीं सकी सब चले गये थे सिवाय नैली रीगन को छोड़कर........
मैंने सोचा “मै जाकर मिसिस नैली से बात करती हूं” और मैं उनके पास गई........ मैंने उन्हें अपनी पुत्री के बारे में बताया। उन्होने कहा, “चलो पिछले कमरे में चलते हैं” । हम गये। उन्होंने कहा, “चलो घुटने के बल बैठकर इसके विषय में प्रार्थना करते है” उसने एक अदभुत प्रार्थना की और (जब हम खड़े हुये) मुझे मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर मिल गया था। उसने एक अदभुत प्रार्थना की। मैं घर गई। जल्द ही दरवाजे पर खटखटाहट हुई। मिसिस रीगन दरवाजे पर थी। उन्होंने पूरी दोपहर हमारे साथ (प्रार्थना) में बितायी। वह छ: बजे घर गई। कुछ ही क्षणों बाद (मेरी पुत्री के उपर) जो फोड़ें थे वे फूटने लगे। अगली सुबह डॉ ने कहा कि, “उन्हें इन संक्रमण पर चीरा लगाने की कोई आवश्चकता नहीं है।” परमेश्वर ने नैली रीगन की प्रार्थना सुनी और उसका उत्तर दे दिया।
मंडली के दूसरे सदस्य ने बताया:
वह कभी किसी पर हाथ नहीं रखती थी। वह घुटने के बल बैठती थी, आंखे उठी होती थी और वह इस तरह प्रार्थना करती थी मानो परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से जानती हो। या उनसे बहुत अच्छे रिश्ते हो। अगर किसी को वास्तव में कुछ समस्या हो या बीमारी हो। नैली उनके घर जाती और घुटने के बल बैठकर उनके लिये प्रार्थना करती........ जब वह प्रार्थना कर चुकी होती लोगो को बीमारी को सहन करना और आसान हो जाता।
........और यह विश्वास रखना वास्तव में कठिन हो जाता कि नैली का जवान बेटा भी प्रार्थना की इस शक्ति में अटूट विश्वास रखता था।
नैली रीगन ने अपना जीवन गंभीरतापूर्वक “गरीबों और असहाय की सेवा” के लिये दे दिया था। कहते हैं कि यह एक वायदा था जो उन्होंने अपनी मरती हुइ मां को उनकी मृत्यु शय्या पर दिया था.....जो लोग जेल की सींखचों के पीछे होते थे उन पर उनका विशेष ध्यान होता था.....वह (अक्सर) कैदियों को बाइबल पढ़कर सुनाने के लिये जेल चली जाती..........उनकी सेवकाई से अपराधियों के व्यवहार बदलने के भी अनुभव सुनने को मिले − एक तो वास्तव उस समय में आपराधिक गतिविधि में लिप्त था।
(एक उपद्रवी जवान ने नैली से जेल में बात की। उसके बाद वह उनकी गाड़ी में धोखे से सवार हो गया और योजना बनाई कि बंदूक की नोक पर गाड़ी को लूट लिया जाये। और जब वह उतरा तो उसने कहा) “गुडबाय लिफट देने के लिये”.......... “आपको पिछली सीट पर गन मिलेगी मैं इसे उपयोग में लाने ही वाला था लेकिन मैं जेल में एक महिला से बात कर रहा था..........” नैली रीगन ने उसे समझाया कि उसे अपराध कर जीवन छोड़ देना चाहिये।
१९२४ की गर्मियों मे गर्मियों मे न्यूयार्क चर्च शहर में रशियन चर्च खड़ा करने के लिये उन्होने चंदा उगाया इस तरह वह चाहती थी कि रशियन लोगो के साथ प्रतिबद्वता दिखाई दे। (जो उस समय कम्यूनिज्म के प्रभाव में थे)
अप्रैल १९२७.........मे उसने जापान के विषय में बातचीत की और वहां मसीहत के बारे में जानना चाहा।
नैली रीगन के मन में परमेश्वर के कार्य के प्रति लगन थी। और उसने इस विश्वास को अपने बेटे रोनाल्ड को देने में कोई कसर नही छोड़ी। यह उसकी प्रार्थना थी जो वह अपनी मां के विश्वास को उंचाईयों तक ले गया।
२१ जुलाई, १९२२, को जब चर्च तीन दिन बाद खुला......... तीन दिन बाद डच और उसका भाई नील और तेइेस अन्य पहले लोग थे जिन्होने नये चर्च में बपतिस्मा लिया था। यह रोनाल्ड रीगन का स्वयं का विचार था कि वह बपतिस्मा ले। उन्होंने कहा था कि उन्हें “प्रभु यीशु के साथ व्यक्तिगत अनुभव” हुआ था।
एक वयस्क के रूप में, (राष्ट्रपति) रीगन ने बाइबल को अपनी पसंदीदा पुस्तक बताया और कहा इसमें “अब तक का महानतम संदेश” लिखा गया है। उन्होंने कहा कि इसके शब्द आध्यात्मिक मूल के है और इसकी आध्यात्मिक प्रेरणा के लिये उनके मन में “कभी कोई संदेह नहीं रहा।”
बपतिस्मा लेने के पश्चात (रोनाल्ड) रीगन (चर्च) के विशेषकर सकिय सदस्य हो गये। (रीगन, उनकी मां और उनके भाई प्रति रविवार को यही किया करते थे।) उनके भाई इसी सारणी को दुहराते थे। “रविवार सुबह को संडे स्कूल, चर्च संडे की आराधना, किश्चयन ऐंडेवर संडे इवनिंग, किश्चयन ऐंडेवर के पश्चात चर्च, और बुधवार की प्रार्थना सभायें।”....पंद्रह वर्ष की आयु में डच अपनी स्वयं की संडे स्कूल कक्षायें लेने लगे.... “उस समय के लड़कों के बीच वह अगुआ बन बैठे” उनके बचपन की मित्र सविला पामर याद करती है। “वे उसी की तरफ देखा करते थे।”
रोनाल्ड रीगन क्रिस्चन कालेज में दाखिल हो गये। १९८१ में वह संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति हो गये। उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में अपने आफिस की शपथ अपनी मां की बाईबल के उपर हाथ रखकर ली, और कहा, “तो परमेश्वर मेरी सहायता करे।”
राष्ट्रपति के रूप में बाईबल के आधार पर उन्होंने गर्भपात का विरोध किया। उन्होंने कहा,
मै विश्वास करता हूं अमेरिका के सामने कोई भी चुनौती इतनी महत्वपूर्ण नही हैं जितनी कि मनुष्य के जीवन को बचाना। इस अधिकार के बिना, दूसरे अधिकारों का कोई अर्थ नहीं है। “बालकों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों ही का है।”
१९८६ में स्टेट आफ यूनियन को संबोधित करते हुये उन्होंने कहा,
आज हमारे राष्ट्रीय विवेक में ही एक घाव है। अमेरिका कभी भी एक नहीं हो सकेगा जब तक हम रचयिता द्वारा अजन्मे को जीवन का अधिकार नहीं देंगे।
गर्भपात एक नैतिक मुददा था जिस पर उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में समझौता करने से मना किया।
राष्ट्रपति रीगन अपने राष्ट्रपति काल में ईश्वर विहीन कम्यूनिज्म का भी पुरजोर विरोध करते रहे। उन्होने सोवियत यूनियन को “शैतानी साम्राज्य” कहा। उन्होने बर्लिन वॉल पर, दिये हुये अपने महानतम भाषण में कहा, “ मि. गोर्बाचोव इस दीवाल को तोड़ डालिये।” वह यह मानते थे कि कम्यूनिज्म का आस्तिकवाद ही उसमें निहित बुराई का स्त्रोत है। उन्होंने अमेरिका की सैन्य शक्ति बढाई ताकि सोवियत संघ उसकी ताकत की बराबरी न कर सके और उसके सामने कमजोर पड़ जाये। और वह कमजोर पड़ गया बिल्कुल उसी रूप में जैसा उन्होंने सोचा था। अगर कोई एकमात्र व्यक्तित्व उस “शैतानी साम्राज्य” के अंत के लिये उत्तरदायी था तो वह रोनाल्ड रीगन थे। और वह ही उस विस्तृत रूप से फैले कम्यूनिज्मवाद के अंत के लिये जिम्मेदार थे। उनके आत्मकथाकार एडमंड मोरिस ने कहा था कि, “वह मास्को में मसीहत का फैलाव चाहते थे, बस इतनी सी बात थी।” और रोनाल्ड रीगन इस प्रार्थना को पूर्ण होती देखने के लिये जीवित थे।
आज इस मातृदिवस के दिन जब आप चर्च से जायें तो मैं चाहता हूं कि आप मूसा की मां यहोबेद से प्रेरित रहे - और इसके साथ ही नैली रीगन, जो इकतालीसवें की मां थी उनसे प्रेरणा पाये। मैं चाहता हू कि आप यह जाने कि मसीह आप के पापों के कारण, दंड चुकाने के लिये, क्रूस पर बलिदान हुआ। मैं चाहता हू कि आप यह जाने कि यीशु का कीमती लहू आपके सब पापों को धो सकता है। मैं चाहता हू कि आप यह जाने कि प्रभु यीशु मरे हुओं में से जीवित हुये और आज भी जीवित हैं और परमेश्वर के दाहिने हाथ विराजमान है। मैं चाहता हू कि आप यीशु के पास आये और उस पर पूर्ण विश्वास करे। और यह सुनिश्चित करे कि प्रति रविवार चर्च में आना न भूले। इतना निश्चित करे कि अपने बच्चों पर आध्यात्मिक प्रभाव डाले ताकि वे मसीह के लिये जी सके। परमेश्वर आपको आशीष देवें, आमीन!
(संदेश का अंत)
आप डॉ0हिमर्स के संदेश प्रत्येक सप्ताह इंटरनेट पर पढ़ सकते हैं क्लिक करें
www.realconversion.com अथवा
www.rlhsermons.com
क्लिक करें ‘‘हस्तलिखित संदेश पर।
आप डॉ0हिमर्स को अंग्रेजी में ई-मेल भी भेज सकते हैं - rlhymersjr@sbcglobal.net
अथवा आप उन्हें इस पते पर पत्र डाल सकते हैं पी. ओ.बॉक्स 15308,लॉस ऐंजेल्स,केलीफोर्निया 90015
या उन्हें दूरभाष कर सकते हैं (818)352-0452
ये संदेश कॉपी राईट नहीं है। आप उन्हें िबना डॉ0हिमर्स की अनुमति के भी उपयोग में ला सकते
हैं। यद्यपि, डॉ0हिमर्स के समस्त वीडियो संदेश कॉपीराइट हैं एवं केवल अनुमति लेकर
ही उपयोग में लाये जा सकते हैं।
संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे ने बाइबल पाठ पढ़ा: इब्रानियों ११:२३−२७
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गीत गाया गया:
“मैंउसकी प्रशंसा करूंगा'' (मार्गरेट जे हैरिस, १८६५ –१९१९)