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जीवन देने वाला मसीहा !

THE LIFE-GIVING SAVIOUR!
(Hindi)

द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

रविवार की सुबह, १९ अप्रैल, २०१५ को लॉस ऐंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में
प्रचार किया गया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Morning, April 19, 2015

“फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं
चाहते।” (यूहन्ना ५:४०)


“जीवन” शब्द यूनानी शब्द “जो” का अनुवाद है। यह परमेश्वर पिता और पुत्र का जीवन है। जैसा मसीह ने कहा,

“पिता अपने आप में जीवन (जो) रखता है, उसी रीति से उस ने पुत्र को भी यह अधिकार दिया है कि अपने आप में जीवन (जो) रखे।” (यूहन्ना ५:२६)

यीशु इस संसार में आये कि हमें यह जीवन प्रदान कर सके ताकि हम जीवित रह सके। यीशु मैं ने कहा, “मैं इसलिये आया कि वे जीवन (जो) पाएं, और बहुतायत से पाएं।” (यूहन्ना १०:१०)

यीशु कूस पर मरे ताकि हमें जीवन मिले। और जो परिवर्तित होते हैं उन्हें यही “जीवन” मिलता है। मसीह ने कहा, “जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है” (जोयेनायेओनियन)” यूहन्ना ३:३६ डॉ ए टी राबर्टसन ने कहा उसके लिये “यह जीवन यहां है और अभी उपलब्ध है” (वर्ड पिक्चर्स; यूहन्ना ३: ३६ पर व्याख्या)

हैनरी स्कूगल (१६५०−१६७८) केवल २८ वर्ष के थे जब वह मरे। जब वह २६−२७ के रहे होंगे तो उन्होंने एक पुस्तक लिखी दि लाईफ आफ गॉड इन दि सोल आँफ मेन (मार्टिनो पब्लिशिंग, २०१० संस्करण)

दि लाईफ आफ गॉड इन दि सोल आँफ मेन नामक पुस्तक चाल्र्स वेस्ली ने जार्ज वाईटफील्ड को पढ़ने को दी थी। इसको पढ़ कर वाईटफील्ड परिवर्तित हुए और सदाकाल के महानतम सुसमाचार प्रचारकों में से एक प्रचारक कहलाये। जैसे ही वाईटफील्ड ने इसको पढ़ा वह कह उठे, “कि इस पुस्तक ने ऐसी आत्मिक किरण बनकर मेरी आत्मा को गहरे तक भेद दिया!” वाईटफील्ड का कथन था, “कि प्रभु यीशु ने.......स्वयं को मुझ पर प्रगट किया और मुझे नया जन्म दिया।” इस पुस्तक ने प्रथम और द्वितीय महान आत्मिक जागरण में एक महान भूमिका निभाई। जॉन वेस्ली ने इसे चौदह बार छापा। अमेरिका के फस्र्ट बैपटिस्ट चर्च फिलाडेल्फया के पास्टर विलियम स्टाटन ने भी इसे छापा। यहां तक कि बैंजामिन फ्रेंकलिन ने भी इसका एक संस्करण छापा!

दि लाईफ आफ गॉड इन दि सोल आँफ मेन नामक पुस्तक में हैनरी स्कूगल ने कहा कि हमें मसीहत के बाहरी रूप को सच्ची मसीहत समझने की गलती नहीं करनी चाहिये। हैनरी स्कूगल ने कहा कि सच्ची मसीहत “परमेश्वर से हमारी आत्मा का मिलन है अर्थात वास्तविक रूप में आत्मिक स्वभाव का हिस्सा (बनना) ।” (उक्त संदर्भित ३०) दूसरे शब्दों में कहें तो दि लाईफ आफ गॉड इन दि सोल आँफ मेन! परमेश्वर का आत्मा तब ही हमारे भीतर प्रवेश कर सकता है जब हम यीशु के पास आये। मसीह ने कहा,

“फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।” (यूहन्ना ५:४०)

और जैसा कि आधुनिक अनुवाद कहता है,

“तुम जीवन पाने के लिये इंकार करते हो” (एन आय वी)

मसीह ने यह बात उन लोगों से कही जो परम पिता पर विश्वास रखते थे। मसीह ने यह बात उन लोगों से कही जो धर्मशास्त्र के एक एक शब्द पर विश्वास रखते थे। मसीह ने यह बात उन लोगों से कही जो प्रत्येक सप्ताह कम से कम दो दिन उपवास रखते थे। मसीह ने यह बात उन लोगों से कही जो धार्मिक होने का बहुत प्रयास कर रहे थे। और इसीलिये वह यह बात आज आपसे कह रहे हैं जो अभी तक परिवर्तित नहीं हुए हैं,

“फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।” (यूहन्ना ५:४०)

सच्चे मसीही बनने का एकमात्र तरीका यही है कि आपकी आत्मा में परमेश्वर का जीवन बसता हो। और आपकी आत्मा में उस जीवन को प्राप्त करने के लिये आपको यीशु के पास आना होगा। तौभी मसीहा कहते हैं कि, “फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।” मैं इस पद को कई तरीके से लागू करूंगा,

१. पहला, आप यीशु के पास क्यों नहीं आये हैं।

“निर्णयवादी” यह सोचते हैं कि मसीह के पास कभी भी आया जा सकता है। उन्हें केवल अपना हाथ उठाना है और संदेश समाप्त होने पर “सामने आ जाना” है। उन्हें केवल पापियों द्वारा दोहरायी जाने वाली “प्रार्थना बोलना” है। ये सब मानवीय कार्य हैं जो कोई भी कभी भी कर सकता है। पर इनमें से कोई भी “निर्णय” आप को बचा नहीं सकते। डॉ आयजक वाटस ने कहा था,

बाहरी कोई भी रूप मुझे शुद् नहीं कर सकता है, कोढ़ तो मेरे भीतर है।

“फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।” अर्थात तुम अभी तक अपरिवर्तित हो और इस प्रकार के जीवन को पाने से वंचित हो। बाइबल कहती है कि तुम “स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे” (इफिसियों २:३) । बाइबल कहती है कि तुम “पापों के कारण मरे हुए” थे (इफिसियों २:५) । बाइबल कहती है कि तुम “पाप के वश में हैं” (रोमियों ३:९) ।

“पाप के वश में हैं” − कितना खतरनाक वाक्य है, पर सच है। डॉ मार्टिन ल्योड जोंस ने इसका अर्थ यह समझाया था कि “समस्त मानव जाति स्वभावगत पाप के वश में है, पाप की शक्ति के अधीन है, पाप की मलिनता से ग्रस्त हैं......... । हम जन्म से ही पापी है, ‘पाप के वश में है।’ और यह जो पद ‘अधीन’ काम में लिया गया है मैं यह सोचता हूं कि, यह ऐसा प्रभाव उत्पन्न करता है कि हम उस अधिकार के वश में है जिस के क्षेत्र में हम रहते हैं........क्योकि हम सब आदम के वंशज है हम सब पाप में ही उत्पन्न हुए........(आदम का पाप) जो संसार में सर्वाधिक प्रलय लाने वाली और नष्ट करने वाली घटना है।” (रोमियों, अध्याय २:१−३:२०, ट्रूथ ट्रस्ट,१९८९, पेज १९०−१९१)।”

उन्होनें यहां तक कहा कि, “अगर तुम तुम्हारा यह वर्णन स्वीकार नहीं करते हो........तो इस संबंध में बहस करने की भी कोई आवश्यकता नहीं है, तुम एक मसीही नहीं हो.... तुम्हें अभी तक न तो अपने पापों का बोध हुआ है, और न ही तुमने पापों से प्रायश्चित किया है, न ही तुम मसीह में एक विश्वासी हो, भले ही तुमने यह मान रखा हो कि तुम एक विश्वासी हो। अगर तुम इस बात से इंकार करते हो, तो तुम स्वत: ही अपने आप को मसीही विश्वास से....बाहर कर लेते हो। मनुष्य के पाप में पड़े होने की यह सच्चाई बिल्कुल साधारण सा सच है, एक खतरनाक सच है।” (पूर्वोक्त, २१४)।

आर्थर डबल्यू पिंक ने कहा था कि, केवल इतना होना कि ‘पाप में आत्मा दौर्बल्य,’ है पाप का तुम्हारे भीतर अन्तर्निवास है तो यह एक घृणास्पद पाप है” (मैंस टोटल डिप्रविटी, मूडी प्रेस, १९८१) । पाप की बीमारी ने तुम्हें ऐसा जकड़ा है कि तुम मसीह के पास आना ही नहीं चाहते। तुम उसके पास नहीं आना चाहते क्योंकि तुम उसे चाहते ही नहीं। तुम पाप के ऐसे दास हो कि तुम मसीह के साथ कोई संबंध स्थापित करना ही नहीं चाहते हो!

आप कह सकते हैं कि, “मैं तो चर्च आ रहा हूं। क्या इससे यह प्रगट नहीं होता कि मैं बिल्कुल सही हूं?” नहीं बिल्कुल भी नहीं! यह तो यह प्रगट करता है कि आप अपने किसी स्वार्थ को पूरा करने आ रहे हैं। चलिये इस सत्य का सामना करते हैं। आप यहां इसलिये नहीं आये हैं कि आप मसीह को चाहते हैं। आप यहां इसलिये आये हैं कि क्योंकि प्रसन्नचित्त जवान लोगों की संगति में आप को अच्छा लगता है।आप को यहां लोग अच्छे लगते हैं आप को मसीह नहीं चाहिये! मैं चाहता हूं आप ईमानदारी से बताये, क्या यह बात सच है कि नहीं? कोई कह सकता है कि, “हां यह सच है इसलिये मैं अब यहां और नहीं आउंगा। मैं ईमानदार रहूंगा और यहां अब और नहीं आउंगा।” पर यह तो और उस बात को बढ़कर प्रमाणित करता है जो मैंने कहा! यह तो और इस बात को अधिक प्रमाणित करता है कि आप यीशु को नहीं चाहते! यह तो और इस बात को अधिक प्रमाणित करता है कि आप पाप में विवश हैं और बेडि़यों में जकड़े हुए हैं − आपके उपर पाप का संपूर्ण आधिपत्य है। जैसे कि प्रेरित पौलुस ने कहा कि तुम, “पाप के वश में हो।” इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि आप यीशु के पास नहीं आये हैं! इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि यीशु ने आप से कहा, “फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।” आप को मसीह नहीं चाहिये। आप को जीवन नहीं चाहिये। आप को पाप चाहिये। यीशु ने कहा, “मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उन के काम बुरे थे।” (यूहन्ना ३:१९) जब तक आप स्वयं की पापमय दशा स्वीकार नहीं करेंगे तब तक आप के लिये कोई आशा नहीं होगी। आप को इस बारे में सतर्क हो जाना आवश्यक है। आप को अपने आप से यह कहना आवश्यक है कि, “हां, यह सच है। मैं ज्योति के बजाय अंधकार से अधिक प्रेम रखता हूं। मैं जैसा हूं वैसा ही स्वयं को पसंद करता हूं और मैं यीशु द्वारा बचाया नहीं जाना चाहता। अगर मैं बदल भी गया तौभी मैं बचाया जाना नहीं चाहता! मैं जैसा हूं वैसा ही रहना पसंद करता हूं। तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आप यीशु के पास नहीं आना चाहते! इसमें कोई आश्चर्य नहीं जब यीशु यह कहते हैं,

“फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।” (यूहन्ना ५:४०)

२. दूसरा, उनके साथ क्या होता है जो यीशु के पास आना नहीं चाहते।

मुझे स्मरण आता है कि मेरे साथ क्या हुआ था। मैं अपनी आत्मकथा लिख रहा हूं इसलिये यह मेरे विचारों में है।

पहले मैंने भी यही सोचा था कि चर्च आना ही सब कुछ होता है। मेरे पड़ोसी मुझे भी अपने बच्चों के साथ हटिंगटन पार्क, कैलीफोर्निया के फस्र्ट बैपटिस्ट चर्च ले गये। मैं चर्च आता रहा क्योंकि वहां मुझे सब भले स्वभाव के लोग मिलते थे। और इसके अलावा कोई दूसरा कारण भी नहीं था। मुझे पसंद था बस। यही खास बात थी।

मुझे आश्चर्य होगा अगर आपके लिये चर्च आने का यही कारण हो। आप यहां आने के अनुभव का आनंद लेते हैं − इससे ज्यादा और कुछ नहीं। ऐसा लंबे समय तक चल सकता है। अगर आपको यीशु नहीं मिलते हैं तो आपकी चर्च आने से मिलने वाली बाहरी खुशी भी ज्यादा देर तक नहीं टिक सकती। आगे चलकर इस तिलिस्म को टूटना ही है। कभी न कभी कुछ ऐसा घटेगा कि आप केवल चर्च आने से भी असंतुष्ट रहेंगे। चर्च में कुछ अच्छी न लगने वाली घटना घटेगी। क्योंकि कोई भी चर्च सिद् नहीं है, और वहां कुछ ऐसा दिखाई देगा या सुनाई देगा जो आप को विचलित कर देगा। मैंने यह कहना शुरू किया था कि, “आप कुछ ऐसा देख या सुन सकते हैं जो आप को व्यथित कर सकता है।” किंतु मैं इसे कहता हूं कि आप कुछ ऐसा देखोगे या सुनोगे जो आपको विचलित कर देगा। यह तो होना ही है। ऐसा सदैव होता है। इस प्लेटफार्म पर मेरे साथ एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसने चर्च में कुछ ऐसा देखा और उससे गहराई से व्यथित न हुआ हो। पर तौभी वे यहां हैं। यद्यपि, दूसरे भी है जिन्होंने वहीं चीजें देखी समझने में नाकाम रहे, एवं आना बंद कर दिया। उनका सटीक वर्णन हम बीज बोने वाले उदाहरण में पढ़ सकते है,

“परन्तु जड़ न पकड़ने से वे थोड़ी देर तक विश्वास रखते हैं, और परीक्षा के समय बहक जाते हैं।” (लूका ८:१३)

डॉ आर सी एच लेंस्की ने कहा कि, “परीक्षा तो हर विश्वासी को किसी न किसी रूप में आना ही है” (लूका ८:१३ पर व्याख्या) । जो मसीह में जड़ नहीं पकड़े होते हैं वे परीक्षा आने पर जल्दी बहक जाते हैं। चर्च आने पर भी वे क्यों परीक्षा में पढ़कर गिर जाते हैं? ऐसा इसलिये होता हैं क्योंकि मसीह का “जीवन” उनकी आत्माओं के अंदर नहीं है!

“फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।” (यूहन्ना ५:४०)

यह इस बात से सिद् होता है कि वे थोड़े समय पश्चात ही चर्च छोड़ देते हैं।

मै ऐसे लोगों को जानता हूं जो एक के बाद एक चर्च छोड़ते जाते हैं। पर वे कभी संतुष्ट नही होते। उन्हें हर जगह सदैव कुछ न कुछ त्रुटियां नजर आती ही हैं। पर वे कभी यह नहीं स्वीकारते कि मुख्य गलती तो उनके अपने भीतर मौजूद हैं। ऐसे लोगों को ही मसीह ऐसा कहते हैं,

“फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।” (यूहन्ना ५:४०)

३. तीसरे जो यीशु के पास आते हैं।

जो यीशु के पास आते हैं वे लोग परमेश्वर के अनुग्रह से यीशु के पास खींचे जाते है। जब मैं एक किशोर ही था तो मुझे हटिंगटन पार्क के फस्र्ट बैपटिस्ट चर्च में “विभाजन” का एक बहुत ही वास्तविक और खतरनाक अनुभव हुआ। मैं इस छोटे से संदेश में सब कुछ बखान नहीं कर सकता। इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि वह एक खतरनाक अनुभव था। रविवार की आराधना में लोगों ने एक दूसरे को पकड़ा और जानवरों के समान आपस में लड़ रहे थे। वे एक दूसरे पर गाने की किताब फेंक रहे थे। वे जो कह रहे थे और जो उन्होंने किया वह यहां इस आराधना में बताने लायक नहीं है। मैं उस समय एक किशोर था और मेरा उद्वार भी नहीं हुआ था। तौभी मैं यहां हूं, और पचास साल से उपर वक्त हो गया मुझे प्रचार करते हुए। मैं सोचता हूं उस समय के सारे किशोर अब तक पता नहीं कहां चले गये। मैं यहां क्यों हूं? मैं तो एक मसीही परिवार से भी नहीं हूं। मैं क्यों यहां हूं? मै सिर्फ इफिसियों १:४ का वर्णन करके इसे समझा सकता हूं, “उस ने हमें जगत की उत्पति से पहिले उस में चुन लिया।” मेरे अंदर कुछ अच्छा नहीं था जो मुझे बचा सकता। वह परमेश्वर ही था जिसने मुझे चुना! यह सब परमेश्वर के अनुग्रह से हुआ!

अदभुत अनुग्रह! मधुर और उत्तम,
जिसने मेरे जैसे निकम्मे को बचाया!
मै एक बार खो गया था, पर अब बचा लिया गया हूं।
पहले अंधा था, अब देखता हूं।

बहुत से खतरे, जाल और फंदों से,
निकल कर मैं आ चुका हूं;
यह परमेश्वर का विशुद् अनुग्रह ही था जिसने मुझे यहां तक पहुंचाया,
और अनुग्रह ही मुझे अपने घर ले जायेगा।
   (“अदभुत अनुग्रह” द्वारा जॉन न्यूटन १७२५−१८०७)

यीशु पर विश्वास करने से पहले मैं यीशु से प्रेम करता था। दूसरे तो चर्च में मूर्ख बना रहे थे पर मैं तो एक बेघरबार, पिताहीन लड़का था। पहले मैने सोचा कि मै स्वयं को एक भला लड़का होने के कारण से बचा लूंगा। पर मै भला नहीं बन पाया। अंतत: एक क्षण ऐसा आ गया जब मैं यीशु मसीह स्वयं के पास आ गया − और बल्कि यह कहा जाये कि यीशु मेरे पास आ गये। उन्होंने अपने बेशकीमती लहू से मेरे सारे पापों को धो दिया!

मुझे एक मित्र मिला है सचमुच कितना अदभुत मित्र!
   मेरे जानने से पहले उसने मुझसे प्रेम किया;
उसने मुझे प्रेम की रस्सियों से खींचा,
   और इस तरह मुझे अपने से बांध लिया।
और मेरे दिल से लिपटा रहता है
   वह गांठ कभी टूट कर अलग नहीं हो सकती,
क्योंकि मैं उसका हूं और वह मेरा है,
   हमेशा हमेशा के लिये।

मुझे एक मित्र मिला है सचमुच कितना अदभुत मित्र!
   उसने रक्त बहाया मुझे बचाने के लिये प्राण दिये;
न केवल जीवन का उपहार दिया,
   पर स्वयं अपने को दे दिया;
अब मैं अपना न रहा
   मैं तो जीवन दान देने वाले का हो गया;
मेरा दिल, मेरी ताकत, मेरा जीवन, मेरा सब कुछ
   उसका है, और सदैव उसका रहेगा।
(“मुझे एक मित्र मिला है” जेम्स जी स्मॉल, १८१७−१८८८)

मै तुझसे प्रेम रखता हूं, प्रभु क्योंकि तूने मुझसे पहले प्रेम रखा,
   और कलवरी कूस पर मेरा छुटकारा खरीद लिया;
मै तुझसे प्रेम रखता हूं प्रभु क्योंकि तूने सिर पर कांटो का ताज पहना;
   अगर मैने तुझसे कभी प्रेम रखा तो वह समय अभी है।

मैं तुझे जीवन भर प्रेम करता रहूंगा, मेरे मरने के समय तक प्रेम करता रहूंगा,
   और जब तक तूने मुझे सांस दी है मैं तेरी स्तुति करता रहूंगा;
और जब मौत की ओस मेरे ललाट पर पड़ेगी,
   अगर मैने तुझसे कभी प्रेम रखा तो वह समय अभी है।
(“मेरे यीशु, मै तुझसे प्रेम रखता हूं” विलियम आर फेदरस्टोन)

अरे मेरे प्यारे, जवान मित्रों, मैं तुमसे बिनती करता हूं कि तुम मेरे मसीहा, यीशु से प्रेम रखो! उसने तुम्हारे लिये कूस पर रक्त बहाया ताकि तुम्हें स्वर्ग जाने के योग्य बनाये। यीशु के पास आइये, उससे प्रेम कीजिए, उस पर विश्वास रखिये। यीशु के पास आइये वह आपको अनंत जीवन एवं अनंत आनंद देगा! वह जीवित है! वह जीवित है! वह तीसरे स्वर्ग में, परमेश्वर पिता के दाहिने हाथ विराजमान है। वह जीवित है! उसके पास आइये। उस पर विश्वास रखिये! वह आपसे प्रेम रखता है!

वह इतने लंबे समय तक प्रेम करता, बहुत प्रेम करता है,
   जीभ भी जिसका बयान न कर सके वह इतना प्रेम करता है;
वह इतने लंबे समय तक प्रेम करता, बहुत प्रेम करता है,
   वह नरक से आपकी आत्मा को बचाने के लिये मरा
(“वह अभी भी आपसे प्रेम करता है” डॉ जॉन आर राईस, १८९५−१९८०)

हे पिता, मैं प्रार्थना करता हूं कि आज सुबह कोई आपके बेटे, यीशु पर विश्वास लाये और हमेशा हमेशा के लिये बचाया जाये। आमीन।

(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे ने बाइबल पाठ पढ़ा: यूहन्ना ५:३३−४०
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गीत गाया गया:
''तुझसेअधिकप्यार'' (इलिजबेथपी.प्रेंटिस १८१८ – १८७८)


रूपरेखा

जीवन देने वाला मसीहा !

THE LIFE-GIVING SAVIOUR!

द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

“फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं
चाहते।” (यूहन्ना ५:४०)

(यूहन्ना ५:२६; १०:१०; ३:३६)

१. पहला, आप यीशु के पास क्यों नहीं आये हैं, इफिसियों २:३, ५;
रोमियों ३:९; यूहन्ना ३:१९

२. दूसरा, उनके साथ क्या होता है जो यीशु के पास आना नहीं चाहते,
लूका ८:१३

३. तीसरे, जो यीशु के पास आते हैं, इफिसियों १:४