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मैं करूंगा − तू शुद्ध हो जा!I WILL – BE THOU CLEAN! द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स रविवार की सुबह, १ मार्च, २०१५ को लॉस ऐंजिलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में प्रचार ''और एक कोढ़ी ने उसके पास आकर, उस से बिनती की, और उसके साम्हने घुटने टेककर, उस से कहा; यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है। उस ने उस पर तरस खाकर हाथ बढ़ाया, और उसे छूकर कहा; मैं चाहता हूं तू शुद्ध हो जा। और तुरन्त उसका कोढ़ जाता रहा, और वह शुद्ध हो गया।'' (मरकुस १:४०−४२) |
मुझे मरकुस का सुसमाचार पढना प्रिय है। उसका इब्रानी नाम यूहन्ना था। मरकुस उसका लेटिन भाषा का नाम था, लेटिन में उसे ''मारकस'' कहते हैं। यूहन्ना मरकुस शिष्य पतरस का आत्मिक पुत्र था। पतरस उसे यूं कहकर बुलाते थे, ''मारकस मेरे पुत्र'' (१ पतरस ५:१३) पूर्वी कलीसिया के पुरोहितों मे से एक पपियाज नामक (७०−१६३) पुरोहित थे। पपियाज का कथन था कि मरकुस को यह सुसमाचार पतरस से मिला था। पपियाज ने बताया, ''मरकुस, जो पतरस का एक प्रकार से (सचिव) था, उसने बडे ध्यानपूर्वक (पतरस) द्वारा बतायी गयी बातों का संकलन किया।'' जस्टिन मार्टियर (१००−१६५) ने भी कहा था कि मरकुस ने इस सुसमाचार को पतरस के कहे गये शब्दों के अनुसार लिखा है। एक और चर्च के पुरोहित यूसेबियुस (२६३−३३९) ने कहा कि पूर्वी मसीहियों ने ''मरकुस से प्रार्थना की थी कि वह उनके लिये लिखित रूप में वे शिक्षायें छोड दें जो उन्हें (पतरस) से प्राप्त हुई थी।''
मरकुस सुसमाचार का किृयाशील रूप है। क्योंकि पतरस एक कर्म करने वाला सकिृय पुरूष था। यह सुसमाचार मूलत: रोमी पुरूषों के लिये लिखा गया है जो मूलत: कर्मठ लोग माने जाते थे। ''और'' शब्द मरकुस के सुसमाचार में १३३१ बार आया है। इसके अतिरिक्त ''सीधे'' और ''तत्काल'' शब्द भी मरकुस के सुसमाचार में बार बार मिलता है। ''और'' शब्द सदैव आगे की किृयाशील स्थिति को बताता है। ध्यान दीजिये इन पांच पदों पर जिनका आरंभ ''और'' से होता है। अभी पढे गये इस पद में तीनों पद ''और'' से आरंभ होते हैं।
''और एक कोढ़ी ने उसके पास आकर उस से बिनती की'' (पद ४०)
''और उस ने उस पर तरस खाकर हाथ बढ़ाया'' (पद ४१)
''और उसे छूकर कहा;मैं चाहता हूं तू शुद्ध हो जा। और तुरन्त उसका कोढ़ जाता रहा, और वह शुद्ध हो गया।'' (पद ४२)
रोमी बल और कार्य करने में विश्वास रखते थे। मरकुस में केवल १६ अध्याय हैं और वे सभी हमारे प्रभु यीशु मसीह की शक्ति और कार्यो के वर्णन से भरपूर हैं। इन अध्यायों में पुराने नियम से लिये गये लंबे गद्याशों और उद्धरणों का वर्णन नहीं है मसीह के कार्य पुराने नियम के वर्णन के साथ नहीं जुडे हैं। इनको मरकुस ने छोड दिया है और केवल शक्ति और कार्यों की ही बातें लिखी हैं जो मरकुस के रोमी पाठकों को बहुत आकर्षित करती थी।
अब आप देखिये मरकुस के प्रथम अध्याय में ही कितनी कियाशीलता का वर्णन है,
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की सेवकाई।
यीशु का बपतिस्मा।
निर्जन में यीशु की परीक्षा।
यीशु की गलील में आरंभिक सेवकाई।
पतरस और अंद्रियास का बुलाया जाना।
कफरनहूम में दुष्टात्माओं का निकाला जाना।
शिमौन पतरस की सास का ज्वर अच्छा करना।
गलील में यीशु की प्रचार यात्रा।
हमारे पढे गये पद में कोढी का अच्छा किया जाना।
मसीह एक कर्मशील और शक्ति के स्त्रोत के रूप में दिखाये गये हैं। आज की सुबह उनकी यही शक्ति और कार्य आप को भी बचा सकते हैं।
यीशु! नाम हमारे भय को कम करता है,
हमारे दुखों को विलोप कर देता है;
पापी के कानों में स्वर घोलता है,
यह जीवन है, स्वास्थ्य है और शांति हैं।
(''ओ, फॉर ए थाउजैंड टंग्स'' चार्ल्स वेस्ली, १७०७—१७८८)
मरकुस के पहले अध्याय में नौ प्रमुख घटनाओं का विवरण है! डॉ मैगी ने कहा था, ''उत्पत्ति प्रथम को छोडकर बाईबल के और किसी अध्याय में इतना अधिक कार्यो का वर्णन नहीं है जितना कि मरकुस के पहले अध्याय में।'' (जे वर्नान मैगी, टी एच डी, थ्रू दि बाईबल, वॉल्यूम ४, थॉमस नेल्सन, १९८३, पेज १६१)
अब हम अपने पद पर आते हैं, और कोढ से चंगा होने वाले व्यक्ति के बारे में पढेंगे।
''और एक कोढ़ी ने उसके पास आकर, उस से बिनती की, और उसके साम्हने घुटने टेककर, उस से कहा; यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है। उस ने उस पर तरस खाकर हाथ बढ़ाया, और उसे छूकर कहा; मैं चाहता हूं तू शुद्ध हो जा। और तुरन्त उसका कोढ़ जाता रहा, और वह शुद्ध हो गया।'' (मरकुस १:४०−४२)
इस पद से तीन प्रमुख सत्य सीखने को मिलते हैं।
१. पहला, इस व्यक्ति को कोढ था।
लैव्यवस्था के तेरहवें और चौदहवें अध्यायों में कोढ की भयानक बीमारियों के लिये बताया गया है। इसमें कई प्रकार की त्वचा की व्याधियों का वर्णन है, जिसमें आधुनिक प्रकार के कोढ या (हैंसन व्याधि) का भी वर्णन है। एक व्याख्याकार ने कहा था कि इस व्यक्ति को शायद वास्तविक प्रकार के कोढ की बीमारी थी, क्योंकि उस बीमारी के अच्छे होने पर जगह जगह अचंभा छा गया, जैसा कि पद पैंतालीस में वर्णित है। न्यू अंगर की बाईबल डिक्शनरी कहती है, ''इसमें थोडा ही संशय है कि अधिकतर नये नियम में वर्णित कोढियों की बीमारी वास्तव में हैंसन बीमारी है जो प्रचलन में है'' (दि न्यू अंगर बाईबल डिक्शनरी, मूडी प्रेस, १९८८, पेज ३०७)
इस कोढी व्यक्ति को बीमारी का सर्वाधिक बुरा रूप इस प्रकार का था कि चमडी पर सफेद चकत्ते थे और वे सुन्न पड जाते थे। उसके शरीर में जगह जगह सूजन रहती थी। और घाव बन गये थे जिनसे मवाद निकलता था। जैसे जैसे बीमारी रौद्र रूप लेती गई वैसे वैसे हाथ पैर टेढे मेढे और फूलते गये। इस बीमारी से अंदर अंदर ही गठाने होती चली गई, जिसके शरीर के अवयव वास्तव में खत्म होते गये। चेहरे पर फूले हुये हिस्स दिखाई देने लगे, जिससे चेहरा खौफनाक बन गया − कहें तो विक्टोरियन इंग्लैंड के जमाने में ''एलिफैंट मैन'' नामक व्यक्ति के समान जिसे चेहरे को छिपाने के लिये घूंघट डालना होता था। कोढी व्यक्ति की चमढी मोटी और लाल हो चुकी थी। यह वास्तविक प्रकार का कोढ था, जो अभी हैंसन नामक बीमारी के नाम से जाना जाता है। बडा भयानक रोग है! (देखिये न्यू अंगर बाईबल डिक्शनरी, उक्त संदर्भित)
डॉ वाल्टर एल विल्सन ने कहा कि यह बीमारी का प्रकार जैसे पाप (की तस्वीर) हो। यह अच्छी नहीं हो सकती और मनुष्य को नष्ट कर देती है। बाईबल में बताया है कि उस कोढी को ''शुद्ध होना'' बडा आवश्यक था। क्योंकि कोढ फैल सकता था। कोढी को अकेला रहना आवश्यक था। उसे चेहरे को कपडे से ढंकना होता था और चिल्लाना पडता था ''मैं अशुद्ध हूं! अशुद्ध हूं!'' उसे शहर या भीड वाली जगहों में प्रवेश नहीं मिलता था।
यह बातें एक बिना उद्धार पाये जन के उपर भी लागू होती है। वह चर्च का सदस्य नहीं हो सकता। वह पाप के कारण स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकता। (वॉल्टर एल विल्सन, एम डी ए डिक्शनरी आफ बाईबल टाईप्स, हैंडरिकसन पब्लिशर्स, १९९९ पुर्नमुद्रण, पेज २५७) लैव्यव्यवस्था १३:४५, ४६ कहता है
''और जिस में वह व्याधि हो उस कोढ़ी के वस्त्र फटे और सिर के बाल बिखरे रहें, और वह अपने ऊपर वाले होंठ को ढांपे हुए अशुद्ध, अशुद्ध पुकारा करे। जितने दिन तक वह व्याधि उस में रहे उतने दिन तक वह तो अशुद्ध रहेगा; और वह अशुद्ध ठहरा रहे; इसलिये वह अकेला रहा करे, उसका निवास स्थान छावनी के बाहर हो।'' (लैव्यव्यवस्था १३:४५, ४६)
स्कोफील्ड लैव्यवस्था १३:१ की व्याख्या कर कहता है, ''कोढ प्रतीक है (१) जैसे रक्त में ही पाप धुला हो; (२) सुस्त होते होते अक्रियाशील हो जाना; (३) मानवीय साधनों द्वारा बचाव नहीं (दि स्कोफील्ड स्टडी बाईबल, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, १९१७, पेज १४१; लैव्यवस्था १३:१ पर व्याख्या)
कोढ एक चित्रण है (रोमियों ८:७) प्रकार है, मनुष्य के पूर्ण रूप से निष्कासित होने की अवस्था। आदम के समय से हमें निष्कासन रक्त में मिला हुआ है। यह गुरू तो छोटे रूप में होता है, थोडे विद्रोह के साथ,किंतु अंत में बेहद घृणात्मक और नकारात्मक बन जाता है।
''क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है'' (रोमियों ८:७)
और बाईबल कहती है,
''कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजने वाला नहीं। सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए, कोई भलाई करने वाला नहीं, एक भी नहीं।'' (रोमियों ३:११−१२)
जॉन वेस्ली (१७०३−१७९१) कैल्वीनिस्ट नहीं था, किंतु उसने इस गदयांश के लिये कहा था, कि जो लोग उद्धार पाये हुये नहीं होते हैं वे ''बेसहारा, अकर्मणीय, खुद को भी कोई लाभ पहुंचाने वाले नहीं और दूसरों के लिये भी लाभ के नहीं होते हैं.......(सभी जन) पाप की पकड और शर्म में डूबे हैं।'' रोमियों ३:१२, ९ पर व्याख्या (जॉन वेस्ली, एम ए, एक्सप्लेनेटरी नोटस अपॉन दि न्यू टेस्टामेंट, वॉल्यूम २, बेकर बुक हाउस, १९८३ पुर्नमुद्रण, पेज ३३,३४; रोमियों ३:१२, ९ पर व्याख्या)
डॉ मार्टिन ल्योड−जोंस १८९९−१९८१ ने कहा था, ''पाप में मनुष्य....पाप द्वारा ही शासित, नियंत्रित किया जाता है'' (मार्टिन ल्योड − जोंस, एमडी, अश्योरेंस, रोमियों ५, दि बैनर आफ ट्रूथ ट्रस्ट, १९७१, पेज ३०६)
डॉ आइजक वॉटस ने इसे अपने गीतों में से एक गीत में लिखा है,
प्रभु, मैं निकम्मा, पाप में पैदा हुआ, जन्मा अपवित्र अशुद्ध;
मनुष्य जाति से जन्मा जो सदैव दोषी है, कलंकित करती है सबको।
देख, मैं तेरे आगे गिरा जाता हूं; तेरी दया ही मेरा शरणस्थान है;
बाहर की कौन सी चीज मुझे शुद्ध बनायेगी; कोढ तो मेरे भीतर गहरा बसा है।
(भजन ५१, आयजक वाटस, डी डी, १६७४−१७४८)
पाप दिमाग को अंधेरा बना देता है, यह आप के मन में ऐसे विचार डालता है, ''बहुत सारी बातें मुझे छोडना पडेगी। अगर मैं सच्चा मसीही बन गया, तो मुझे कई सारी चीजें छोडनी होगी।'' तो, आप पाप की ही गुलामी में, बिना किसी उम्मीद के; अनंत काल की आशा के जीवन बिताते हैं। या पाप आपके मन में ऐसे विचार भी डालता है, ''मैं तो हर रविवार चर्च जाता हूं। मैं तो अपनी जगह सही हू।'' इस तरह आपको, बिना राहत और उम्मीद के पाप रूपी कोढ की बीमारी हो जाती है। या पाप आपको यह भी विचार करने देगा कि, ''मुझे उद्धार मिल गया है इसको सिद्ध करने के लिये मुझमें कोई खास भावना आनी चाहिये।'' किंतु बाईबल कभी भी हमें यह शिक्षा नहीं देती कि हम किसी भावना से बचे हैं। हम यीशु मसीह पर भरोसा करने से बचे हैं। कई लोग तो महिनों तक, कई लोग सालों तक ऐसी भावना ही तलाशते रहते हैं कि उनके मन में उद्धार की भावना का जन्म हो ऐसे लोग सीधे यीशु पर भरोसा नहीं रख पाते। क्या ऐसा मन पाप के कोढ से नष्ट नहीं हो गया है! आगस्टस टॉपलेडी ने, उसके गीतों में से एक गीत में लिखा था,
अचम्भित और आकुल होकर,
मैं अपनी आंखे फेर लेता हूं;
मेरा दिल भारी पाप के बोझ से दबा हुआ है,
जो हर पाप की जड है।
बुरे विचारो की भीड जमा है,
कितने निकम्मी लालसायें हैं!
अविश्वास, अनुमान छल-कपट,
घमंड, जलन, तुच्छ भय।
(''दि हार्ट'' आगस्टस टॉपलेडी, १७४०−१७७८)
फिर से, डॉ वॉटस ने कहा,
''बाहर की कौन सी चीज मुझे शुद्ध बनायेगी;
कोढ तो मेरे भीतर गहरा बसा है।''
''पापी वाली प्रार्थना'' भी दोहराओगे तो कुछ भला नहीं होने वाला एक जवान ने रहस्योदघाटन किया कि, ''मैं तो यह प्रार्थना इसलिये जल्दी जल्दी दोहरा रहा था कि मुझे बाहर जाकर खेलने को मिले!'' तो कहां गया इस प्रार्थना का महत्व, ऐसी प्रार्थना क्या कभी किसी का जीवन बचायेगी! ऐसे ही कई लोग आराधना के अंत में ''सामने उठकर'' आ जाते हैं ताकि जीवन ''समर्पित'' करे। इससे भी कोई भला नहीं होने वाला। ये सब बेकार के झूठे ''बाहरी दिखावे वाले रूप'' है इनसे उद्धार प्राप्त नहीं होता।
''बाहर की कौन सी चीज मुझे शुद्ध बनायेगी;
कोढ तो मेरे भीतर गहरा बसा है।''
तो इस पद में कोढी की भी यही दशा थी। उस आदमी को कोढ की बीमारी थी। वह जानता था वह स्वयं को शुद्ध करने के लिये बीमारी से अच्छा करने के लिये कुछ भी नहीं कर सकता था।
२. दूसरा, वह कोढी मनुष्य यीशु के पास आया।
''और एक कोढ़ी ने उसके पास आकर, उस से बिनती की, और उसके साम्हने घुटने टेककर, उस से कहा; यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।'' (मरकुस १:४०)
इसमें कोई संशय नहीं कि इस गरीब कोढी ने यीशु के बारे में सुन रखा था। जॉन वेस्ली के अनुसार उसने तो शायद यीशु को प्रचार तक करते हुये सुना होगा। वेस्ली के अनुसार, ''वह शायद लोगों की भीड से तो अलग ही रहा होगा पर उससे दूर रहकर प्रभु का संदेश सुना होगा'' (उक्त संदर्भित)। मि वेस्ली इस बात को इसलिये समझ पाये होंगे क्योंकि उनको तो हजारों लोग दूर से ही खडे खडे सुनते रहते थे − और उद्धार पाते थे! मि वेस्ली को १७४५ में लिखे गये एक पत्र का हिस्सा इस प्रकार है,
जब तक मैंने आपके भाई (चार्ल्स) और आपको नहीं सुना था, मैं स्वयं को जानता तक नहीं था। तब मैंने पाया कि मैं एक अविश्वासी हूं और मुझे मसीह को छोड कोई नहीं बचा सकता। मैं यीशु के लिये रो दिया, और उन्होंने मेरी सुनी और मेरे दिल में अपनी सामर्थ प्रगट करते हुये ये शब्द डाले, ''शांति से रहा, तुम्हारे पाप सब क्षमा हुये।'' (जॉन वेस्ली, एम ए, दि वर्क्स आफ जॉन वेस्ली, वॉल्यूम १, बेकर बुक हाउस, १९७९, पुर्नमुद्रण, पेज ५२९)
यही तो यीशु ने उस गरीब कोढी के साथ किया। ऐसे ही जब आप अपने आपको विनम्र बनाओगे और यीशु पर भरोसा लाओगे, जैसा उस कोढी ने किया तो बचाये जाओगे।
३. तीसरा, वह मनुष्य शुद्ध किया गया।
मैं पेंटीकोस्टल और करिश्माई ''चंगाई देने वालों'' के लिये कुछ शब्द कहना आवश्यक समझता हूं। जब मुख्य रूप से पूरा जोर शारीरिक चंगाई पर रहता है, तब सुसमाचार की शक्ति को अस्पष्ट कर देते हैं, और अक्सर उसकी उपेक्षा कर देते हैं। मनुष्य के शरीर की चंगाई पर मुख्य केंद्र बिंदु नहीं होना चाहिये। प्रभु यीशु हमें पाप रूपी कोढ से बचाने के लिये क्रूस पर मरें, न कि हमें कान के दर्द या टांसिल्स की बीमारी से बचाने के लिये! डॉ ए डब्ल्यू टोजर (१८९७−१९६३) ने ''इन चंगाईकर्ताओं'' के विषय में कहा था,
ऐसे कृत्यों ने शर्मनाक प्रदर्शन किया है, एक ऐसी प्रवृति जो अनुभव से प्रेरित है न कि मसीह के उपर निभर है उसको जन्म दिया है, ऐसे ही लोग तो देह और आत्मा से संचालित होने वाले कार्यो के बीच भेद करने योग्य नहीं रहते हैं (ए डब्ल्यू टोजर, डी डी कीज टू दि डीपर लाईफ, जोंडरवन पब्लिशिंग हाउस, एन डी, पेज 41, 42)
हां, मैं मानता हूं कि परमेश्वर हमारे शरीरों को चंगा कर सकता है। मैं पक्के तौर पर मानता हूं वह कर सकता है! पर क्या हो अगर हमें हमारे शरीरों की चंगाई मांगना हो या हमारी पाप से ग्रसित आत्मा की चंगाई मांगना हो? मेरे लिये तो चुनाव बहुत आसान होगा? देह को तो एक न एक दिन नष्ट हो जाना है।
कोढी को चंगाई मिली इस छोटी सी कहानी में न केवल हमें शारीरिक चंगाई देखने को मिलती है, पर आत्मिक चंगाई भी दिख पडती है। हम मसीह की शिक्षा को यहां संदर्भित कर सकते हैं,
''यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे (शारीरिक चंगाई सम्मिलित) और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा?'' (मरकुस ८:३६)
नहीं, यह व्यक्ति जानता था कि उसका कोढ शरीर से भी बढकर कुछ और गहरी चीज का प्रतीक था। उसने यीशु से स्वयं को चंगा करने के लिये नहीं कहा। उसने कहा था, ''अगर तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।'' उसके केवल ''नष्ट हो जाने वाली देह की चाहे नहीं मांगी।'' ''कोढ तो बहुत गहरे गया था।'' और इसीलिये यीशु ने उसे इतनी जल्दी चंगा कर दिया और अदभुत तौर पर बचा लिया।
''यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।'' (मरकुस १:४०)
''उस ने उस पर तरस खाकर हाथ बढ़ाया, और उसे छूकर कहा; मैं चाहता हूं तू शुद्ध हो जा। और तुरन्त उसका कोढ़ जाता रहा, और वह शुद्ध हो गया।'' (मरकुस १:४१)
और तत्काल ही ''वह शुद्ध हो गया'' (मरकुस १:४२)
यह सुसमाचार की शक्ति को प्रदर्शित करता है। यीशु ने आपके सारे पापों को शुद्ध करने के लिये क्रूस पर अपना रक्त बहाया। आपको नया जन्म मिले इसलिये वह मृतकों में से जीवित हुआ। अगर आप साधारण सा विश्वास रखते ''एकाएक'' ''तत्काल'' यीशु के पास आते हैं तो यीशु इस शक्ति के समान आप को भी बचायेगा! मेरे लिये, तो बाईबल का यही सबसे बडा संदेश है! ''अगर तू चाहे, तो तू मुझे शुद्ध कर सकता है।'' ''मैं चाहता हूं; तू शुद्ध हो जा'' − और वह शुद्ध हो गया! यह सुसमाचार है! यह उद्धार का शुभ संदेश है! आपकी एकमात्र आशा केवल यही है! ''यीशु अगर आप चाहे तो मुझे शुद् कर सकते हैं'' ''मैं चाहता हूं; तुम शुद्ध हो जाओ'' यीशु के पास आइये। उस पर भरोसा रखिये। यीशु पर भरोसा रखना आसान है। वह एक क्षण में आप को शुद्ध कर देगा! − जैसे उसने इस आदमी को किया था! इंतजार करने की और आवश्यकता नहीं! यीशु पर भरोसा लाइये और शुद्ध होइये! पिता मैं विनती करता हूं कि आज सुबह कोई यीशु पर विश्वास लाये और उसके रक्त से शुद्ध किया जाये! आमीन।
और मैं जानता हूं हां, मैं जानता हूं,
यीशु का रक्त निकम्मे पापी को भी शुद् बना देता है,
और मैं जानता हूं हां, मैं जानता हूं,
यीशु का रक्त निकम्मे पापी को भी शुद् बना देता है,
(''हां, मैं जानता हूं!'' ऐना डब्ल्यू वॉटरमेन, १९२०)
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा प्रार्थना की गई: मरकुस १:४०−४२
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गीत गाया गया:
(''हां, मैं जानता हूं!'' ऐना डब्ल्यू वॉटरमेन, १९२०)
रूपरेखा मैं करूंगा − तू शुद्ध हो जा! I WILL – BE THOU CLEAN! द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स ''और एक कोढ़ी ने उसके पास आकर, उस से बिनती की, और उसके साम्हने घुटने टेककर, उस से कहा; यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है। उस ने उस पर तरस खाकर हाथ बढ़ाया, और उसे छूकर कहा; मैं चाहता हूं तू शुद्ध हो जा। और तुरन्त उसका कोढ़ जाता रहा, और वह शुद्ध हो गया।'' (मरकुस १:४०−४२) (१ पतरस ५:१३) १. पहला, इस व्यक्ति को कोढ था, लैव्य १३:४५, ४६; रोमियों ८:७; ३:११−१२ २. दूसरा, वह कोढी मनुष्य यीशु के पास आया, मरकुस १:४० ३. तीसरा, वह मनुष्य शुद्ध किया गया, मरकुस ८:३६; १:४०,४१,४२ |