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लूथर का पदLUTHER’S TEXT द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स रविवार की संध्या, २६अक्टूबर, २०१४को लॉस एंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में किया गया प्रचार ''क्योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिये कि वह हर एक विश्वास करने वाले के लिये, पहिले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिये उद्धार के निमित परमेश्वर की सामर्थ है। क्योंकि उस में परमेश्वर की धामिर्कता विश्वास से और विश्वास के लिये प्रगट होती है; जैसा लिखा है, कि विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा'' (रोमियों १:१६, १७) |
प्रेरित पौलुस रोम के मसीहियों से बातें कर रहा था। उस समय विश्व की राजधानी रोम को माना जाता था। उस महान शहर में संगमरमर के मंदिर थे, और रोमन देवताओं की विशाल मूर्तियां थी। वहां चर्च की इमारतें नहीं थी। रोम में उस समय मसीही जन, एक छोटा और उपेक्षित वर्ग था − उनका कोई जाना पहचाना धर्म नहीं था। किंतु पौलुस ने बडी निर्भीकता के साथ कहा था, ''मुझे मसीह के सुसमाचार से कोई लज्जा नहीं आती।''
वह क्यों ऐसा कह सका? उसमें ऐसा कहने का आत्मविश्वास कहां से आया? कि ''मैं मसीह के सुसमाचार से लजाता नहीं'' मसीह का सुसमाचार यह कहता है कि हमारे पापों का मोल उसने क्रूस पर अपनी मौत द्वारा चुकाया, उसके पुनरूत्थान द्वारा हमें जीवन प्रदान किया गया। पौलुस ने कहा, ''मैं इन सब बातों से नहीं लजाता हूं।'' क्यों नहीं लजाता? ''सामर्थ'' के लिये यूनानी शब्द ''डूनामिस'' मिलता है। हमको यूनानी शब्द से निकला हुआ अंग्रेजी शब्द ''डायनामाईट'' मिलता है। सुसमाचार में सामर्थ है! डॉ मार्विन आर विन्सेंट ने इसे ''आत्मिक उर्जा'' नाम दिया है। मसीह का सुसमाचार सामर्थ से भरा है! सुसमाचार निर्जीव आत्माओं को जिलाता है। सुसमाचार के द्वारा निर्जीव आत्मायें भी जीवन पा जाती है!
आप यहां चर्च तो आते हैं परमेश्वर और मसीह की बातें भी सुनते हो किंतु आपको कोई असर ही नहीं होता और आप वापस लौट जाते हैं। किंतु मैं तो आपको सुसमाचार सुनाता हूं। आप कहते होंगे, ''कि यह उसकी बातें क्यों करता रहता है? यह बोलता ही चला जाता है, मसीह का क्रूस पर जान देना और मुरदों में से जिलाया जाना। कोई और बातें करने के लिये नहीं है क्या?'' तो सुनिये, मेरे मित्रों, मैं यह जानता हूं कि आप को पापी से एक वास्तविक मसीही के रूप में कोई ताकत नहीं बदल सकती! मैं आपको मसीह का सुसमाचार परमेश्वर की सामर्थ द्वारा आपके भीतर डायनामाईट जैसा कार्य करेगा − ताकि आपके अंदर बसे गलत विचारों को तोड सके− आपका मन मसीह की तरफ खोल सके − आपकी आत्मा को जीवन प्रदान कर सके! जब सुसमाचार आपको जकड लेता है, आपकी आत्मा जी जाती है − आप मसीह पर विश्वास लाते हैं और आपका पुर्नजन्म हो जाता है! कोई और नहीं केवल मसीह के सुसमाचार में यह करने की ताकत है! चाल्र्स वेस्ली से अच्छा और किसी ने नहीं लिखा,
वह पापों का बल तोडता है,
वह कैदी को मुक्त कराता है;
वह बेहद कलुषित को भी माफ करता;
उसका लहू मेरे लिये उपलब्ध है।
(''हजारों जिव्हा हो मेरी'' चाल्र्स वेस्ली, १७०७−१७८८)
इसलिये प्रेरित ने कहा, ''यह उद्धार की सामर्थ है जो प्रत्येक विश्वास करने वाले को दी जाती है।'' मसीह का सुसमाचार प्रत्येक को नहीं बचाता। कई लोग इस पर हंसते हैं। कई लोग सोचते हैं कि वे कभी भी किसी ओर तरीके से बचाये जा सकते हैं। मसीह केवल उनको बचाता है जो सुसमाचार पर विश्वास करते हैं और मसीह पर ईमान लाते हैं ये ही वे लोग होते हैं जो ''उद्धार के द्वारा परमेश्वर की सामर्थ'' का अनुभव करते हैं।
तब प्रेरित ने कहा, ''इसके परमेश्वर की धार्मिकता प्रगट होती है।'' ''इसमें'' का संकेत सुसमाचार की ओर है। मसीह के सुसमाचार में परमेश्वर की धार्मिकता प्रगट होती है। परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा, जो यीशु मसीह है, जो क्रूस पर हमारे पापों का मोल चुकाता है। अगर परमेश्वर हमारे पापों को नजरअंदाज कर देता तो वह धर्मी परमेश्वर नहीं कहलाता। उसने हमारे स्थान पर मसीह को मरने भेजा, ताकि हमारे पापों का दंड भरे। जब आप यीशु पर ईमान लाते हो, तो आप जैसा लूथर कहता है ''मसीह की धार्मिकता'' ओढ लेते हो। आप अपनी धार्मिकता में लिपटे हुये नहीं हो, जो आपने शायद ''भले कार्य'' करने से कमा रखी हो। जब मसीह पर विश्वास लाते हो, तो आप उसकी धार्मिकता में लिपटे जाते हो। यह ''गैर धार्मिकता'' है यह क्यों हमारी धार्मिकता नहीं है − क्योंकि यह तो मसीह की धार्मिकता है जो आपको बचाती है। वह अपनी धार्मिकता के वस्त्र आपको पहनाता है।
इसलिये पौलुस ने कहा, ''जैसा लिखा है कि धर्मी विश्वास से जीवित रहेगा'' (रोमियों १:१७) ''जैसा लिखा है।'' वह हबक्कूक पुराने नियम की पुस्तक से उदघृत करता है। तब भविष्यदर्शी हबक्कूक ने कहा था, ''धर्मी विश्वास से जीवित रहेगा'' (हबक्कूक २:४) पौलुस ने नये नियम में हबक्कूक से यह पद तीन बार इस्तेमाल किया – रोमियों १:१७, गलतियों ३:११, और इब्रानियों १०:३८ प्रत्येक बार यह कहता है, ''धर्मी विश्वास से जीवित रहेगा।'' यही वह पद है परमेश्वर ने इसके द्वारा मार्टिन लूथर की आंखे खोली। यही वह पद है जिसके द्वारा संसार में इतना बडा ''सुधार'' आया। डॉ मैगी ने जैसा इस पद के संदर्भ में कहा ''धर्मी विश्वास से जीवित रहेगा,''
विश्वास के द्वारा न्याय पाने का अर्थ है कि एक पापी जो मसीह पर विश्वास लाते हैं वे न केवल माफ किये गये क्योंकि मसीह उनके लिये मरा, बल्कि वह परमेश्वर के समक्ष मसीह की पूर्णता में खडा है। तो यह पाप का घटाव हुआ, और धार्मिकता का जुडाव हुआ। मसीह ''हमारे आरोपों से मुक्त हुआ और हमारे पवित्र ठहराये जाने के लिये उठाया गया'' (रोमियों ४:२५) − ताकि हम मसीह की पूर्णता में परमेश्वर के सामने खडे हो सकें (जे वर्नान मैगी टीएचडी, थू दि बाईबल, वॉल्यूम ५, पेज ६५१; रोमियों १:१७ पर व्याख्या)
आप कहते होंगे कि, ''यह तो बहुत सारी याद रखने योग्य सामग्री है!'' हां, किंतु मार्टिन लूथर के जीवन में यह सब बहुत स्पष्ट किया गया। वह १४८३ से लेकर १५४६ तक जीवित रहे। लूथर उस श्रेणी में आते हैं जो बहुत कम लोगों को प्राप्त होती है। वह पौलुस, कोलंबस, मैगीलेन, या एडिसन, या आईस्टाइन के समान थे − ऐेसे व्यक्ति थे जिन्होंने संसार को पलट कर रख दिया और इतिहास की धारा को भी मोड दिया। किंतु उनको भी उसी रीति से उद्धार चाहिये था जैसे आपको।
आधुनिक लेखक लूथर को एक ''प्राचीन'' आदमी मानते हैं। वे लूथर के स्वर्गदूतों, शैतानों और दुष्टआत्माओं में विश्वास की आलोचना करते हैं। वे सोचते हैं कि लूथर का यह मत कि मनुष्य जाति परमेश्वर व शैतान के मध्य युद्ध के बीच में संघर्षरत है कुछ बढा चढाकर प्रगट किया गया है। वे परमेश्वर के गुस्से और पाप के उपर नाराजगी को लूथर द्वारा माने जाने पर प्रतिकिृया व्यक्त करते थे। मुझे तो, ऐसा लगता है कि यह सब पढने के बाद तो हमें लेखको के बारे में उनकी स्वयं की मानसिकता अधिक प्रगट होती है बजाय लूथर के। उनकी सोच यह दर्शाती है कि ''नये इवेंजलिकल'' लेखक स्वर्गदूतों में, शैतान में और दुष्टआत्माओं में विश्वास नहीं करते! बाईबल जो भले और बुरे के मध्य संघर्ष की बात करती है ये लेखक तो इसमें भी विश्वास नहीं करते हैं! और विशेषकर, यह दर्शाता है कि ''नये इवेंजलीकल'' को परमेश्वर का कोई भय ही नहीं है और न ही पाप का कोई बोध है! लूथर तो एक सामान्य मसीही जन के जैसा है! आधुनिक नये इवेंजलीकल्स जो लूथर की आलोचना करते हैं वे स्वयं संसारी लोगों के समान खोये हुये प्रतीत होते हैं− मसीही जन तो बिल्कुल प्रतीत नहीं होते! सचमुच ईश्वर हमारी सहायता करे!
मुझे रोमियों की पुस्तक पर लूथर की व्याख्या बहुत, स्पष्ट और सही लगती है। मैं तो यह जानकर भी चौंक गया कि उन्होंने यहूदियों के विषय में कितना सही बोला था। उन्होंने कहा था, ''कि यह पद पढकर तो सामान्यत: यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि संसार के अंत में यहूदी मसीह पर विश्वास रखकर परिवर्तित हो जायेंगे.....जो यहूदी अभी खोये हुये हैं, वे नया जन्म पायेंगे और बचाये जायेंगे, मूर्तिपूजक जो चुने हुये हैं वे भी मसीह की पूर्णता में आयेंगे। फिर वे बाहर वाले लोग नहीं कहलायेंगे, बल्कि अपना समय आने पर बदले जायेंगे'' (लूथर कमेंटरी आँन रोमन्स, केजेल पब्लिकेशंस, १९७६ संस्करण, पेज १६१, १६२; रोमियों ११:२५−३६ पर व्याख्या)
यह बाईबल की शिक्षा के बिल्कुल करीब है। मैं जानता हूं जब वे बूढे हो गये थे, कुछ बीमार भी थे, तब उन्होंने कुछ कठोर बातें कह दी थी किंतु हमें उन्हें क्षमा कर देना चाहिये। उनका मत कैथोलिक की ''रिप्लेसमेंट थियोलॉजी'' के विरूद्ध आया था जो यह कहती कि चर्चेस इजरायल का स्थान ले लेंगे − यह एक गलत शिक्षा थी जो आज भी कैल्वीनिस्ट और अन्यों के द्वारा दी जाती है। सचमुच परमेश्वर हम पर दया करे! परमेश्वर की इजरायल से आज भी वाचा कायम है और यहूदी लोगों के साथ भी वह वाचा स्थापित है, जैसा रोमियों ११:२५−२७ में बताया गया है।
लूथर के पिता अल्पसंख्यक थे, वह चाहते थे कि लूथर वकालत करें। उसने इसकी पढाई भी आरंभ कर दी थी। किंतु एक दिन जब वह तूफान में से होकर जा रहा था। बिजली उसके पास से कौंधी। वह जमीन पर गिर कर रोने लगा, ''सेंट एनी मेरी मदद करो। नहीं तो मैं भिक्षुक बन जाउंगा!'' अर्थात वह एक मठ में भर्ती होना चाहता था और संसार से भी अलग रहना चाहता था। धार्मिक किृयाओं में रूचि होने के उपरांत भी उसे शांति नहीं मिली और न ही परमेश्वर के साथ मेल मिलाप हुआ था। आधुनिक ''नये इवेंजलीकल'' लेखकों में यह कहने की प्रवृति है कि परमेश्वर का भय मानना गलत है और ''पुरानी'' बात हो गई। कितनी गलत शिक्षा है! बिल्कुल ही गलत! लूथर द्वारा परमेश्वर का भय मानने की शिक्षा देना बिल्कुल सही था। बाईबल उन लोगों के लिये कहती है जो बचाये नहीं गये हें, ''कि उनकी आंखों मे परमेश्वर का कोई भय नहीं है'' (रोमियों ३:१८) लूथर ने कहा, ''स्वभाव से हम अधर्मी और परमेश्वर का भय नहीं मानने वाले हैं। इसलिये, हमें स्वयं को बहुत अधिक नम्र बनाने की और परमेश्वर के आगे अपने घमंड को छोडने की आवश्यकता है'' (लूथर, उक्त संदर्भित, पेज ७४; रोमियों ३:१८) पर व्याख्या। यह परमेश्वर का अनुग्रह है जो पापी को उसकी खोयी हुई दशा से फेर कर लाता है। जैसा जॉन न्यूटन ने (१७२५−१८०७) में कहा, ''यह तेरा अनुग्रह है जो मेरे मन को भय मानना सिखाता है'' (''अमेजिंग ग्रेस'')। भय नहीं मानना आस्तिक होने का प्रतीक है।
लूथर अपने पाप के प्रति सतर्क था। उसने इसे दिल की बीमारी नाम दिया। उसने पाया कि मन में पाये जाने वाले अपराध बोध से कोई छुटकारा नहीं दिला सकता था। जैसे जैसे वह बाईबल पढता गया, उसे शिक्षक जोहनन स्टॉपिटज, जो उसे पढाते थे, उनकी बातें याद आती जो कहते थे, ''उस प्यारे मसीहा के घावों को देखों'' अब वह अध्ययन करते हुये मसीहा के क्रूस को देखता था। लूथर ने अपनी मां को पत्र लिखा,
रात और दिन मैं इन विचारों में चढता उतराता रहा जब तक कि मुझे परमेश्वर के न्याय और इस कथन के बीच कि ''धर्मी विश्वास से जीवित रहेगा'' के बीच संबंध न मिल गया। तब मैंने समझा कि परमेश्वर का न्याय करना वह धार्मिकता है जिसमें अनुग्रह और पूर्ण दया के द्वारा (मसीह में) विश्वास रखकर परमेश्वर को संतुष्ट किया जा सकता है। तब से मैंने स्वयं को नये जन्म की दशा में पाया और स्वर्ग के दरवाजे मेरे लिये खुलते चले गये। संपूर्ण बाईबल ही मेरे लिये नया अर्थ बनती जा रही थी (रोलेंड एच बैंटन, हियर आय स्टैंड, मेंटर बुक्स, १९७७, पेज ४९)
उस समय से लूथर का धर्मविज्ञान ''कूस का धर्मविज्ञान'' कहलाया। उसने कहा, ''अकेला क्रूस ही हमारा धर्मविज्ञान है।'' अगर आप अपने पापों से बचाये जाने वाले हैं, तो यह कूसित मसीह पर विश्वास रखने के द्वारा ही होना आवश्यक है! मसीह क्रूस पर है! पवित्र परमेश्वर के समक्ष आने का और कोई दूसरा तरीका नहीं है।
लूथर ने अपने अध्ययन में यह पाया। उसने यह देखा कि परमेश्वर की धार्मिकता इन पदों में परमेश्वर के गुण का बखान नहीं करती − किंतु यह वह धार्मिकता है जो परमेश्वर हमें देता है; और वह हमें मसीह पर विश्वास रखने के कारण इसे देता है। ''धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा'' (रोमियों १:१७) डॉ ल्यॉड−जोंस ने कहा था, ''हमारा विश्वास हमें सही नहीं ठहराता। यह तो प्रभु यीशु (मसीह की) धार्मिकता है जो हमें सही ठहराती है − और दूसरी कोई बात नहीं हो सकती!.......परमेश्वर हमें हमारे विश्वास को कार्यो में तब्दील होने से बचाता है, ताकि हम स्वयं को अपने विश्वास रखने से उचित नहीं ठहरा सके। विश्वास वह.......कडी है, जिसके द्वारा मसीह की धार्मिकता मुझे सौंपी गई है.....।'' (मार्टिन ल्योंड−जोंस, एम डी, रोमन्स − एक्सपोजिशन आँफ चेप्टर १, दि गॉस्पल आँफ गॉड, बेनर आँफ ट्रूथ, १९८५ संस्करण, पेज ३०७)
जब लूथर ने ये शब्द पढे, ''धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा'' उसने कहा, ''पौलुस की यह अभिव्यक्ति तो मेरी अभिव्यक्ति हो गई है.......और स्वर्ग जाने का दरवाजा भी।'' डॉ ल्योड−जोंस ने कहा था, ''कैसा प्रकाशन है! कैसा अदभुत परिवर्तन है! एक परेशान, निकम्मा, दुखी भिक्षुक जो अभी तक माला गिन रहा था और उपवास रखता एवं प्रार्थना में पसीने पसीने हो जाता, और तौभी लगता कि वह जीवन में असफल है, ऐसा भिक्षुक परिवर्तित हो गया! एक ऐसे महान प्रचारक के रूप में, जो सुसमाचार सुना रहा था और ''परमेश्वर के बच्चों के रूप में आजादी मिलने'' का आनंद मना रहा था!'' (ल्योड−जोंस, उक्त संदर्भित, पेज ३०९)। थोडी देर पहले ही गिफिथ ने गीत गाया, जिसमें काउंट जिनजेनडॉर्फ ने ऐसा कहा,
यीशु, तेरे लहू और धार्मिकता से
मेरी खूबसूरती, मेरे महिमामयी वस्त्र;
इस संसार में चमकते हैं, इन पोशाक में,
जहां आनंद से मैं सिर उठाता हूं।
(''जीजस, दाय ब्लड एंड राइचेसनेस''
बाय काउंट निकोलस वॉन जिनजेनडार्फ, १७००−१७६०)
या, जैसा एडवर्ड मोट ने लिखा,
मेरी आशा और किसी बात पर नहीं टिकी है
केवल यीशु के लहू और धर्मीपन पर......
उसकी धार्मिकता में ही लिपटी है,
सिंहासन के सामने बेदाग खडे होने के लिये।
मसीह वह, ठोस चटटान, जिस पर मैं खडा होता;
बाकि तो दूसरे धरातल सब डूबोने वाली रेत है;
बाकि तो दूसरे धरातल सब डूबोने वाली रेत है।
(''दि सोलिड रॉक'' एडवर्ड मोट, १७९७−१८७४)
मैं आज की रात उस यीशु पर विश्वास करने को कह रहा हूं, ''जो परमेश्वर का मेमना है, जो जगत के पाप ले जाता है'' (यूहन्ना १:२९) जिस क्षण यीशु पर आप भरोसा लाते हो, आप बचाये जाते हो, उचित ठहराये जाते हो, और फिर हमेशा हमेशा के लिये सुरक्षित हो जाते हो। मैं उम्मीद करता हूं आज की रात आप यीशु पर विश्वास लायेंगे। लूथर के समान आप का भी ''नया जन्म होगा ताकि आप स्वर्ग के दरवाजे के पार (जा) सको।'' जैसे योहनन स्टॉपिटज ने लूथर से कहा, ''देखो उस प्यारे मसीहा के घावों को।''
''धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा'' (रोमियों१:१७)
डॉ चान, निवेदन करता हूं कि आप प्रार्थना करें कि आज कोई यीशु पर विश्वास लाये और बचाया जाये! आमीन!
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व धर्मशास्त्र पढा गया डॉ. केटन एल. चान द्वारा: रोमियों १:१५−१७
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गीत गाया गया:
''जीजस, दाय ब्लड एंड राइचेसनेस''
(काउंट निकोलस वॉन जिनजेनडार्फ, १७००−१७६०)
अनुवादित जॉन वेस्ली, १७०३−१७९१)
रूपरेखा OUTLINE |