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यह आत्मिक जागृति में होता है! (आत्मिक जागृति पर संदेश संख्या ८) द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स रविवार की संध्या, २१ सितंबर, २०१४ को लॉस एंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में प्रचार किया गया संदेश |
अब मैं चाहता हूं कि आप बाईबल में से प्रेरितों के कार्य ८:५ निकालें।
''और फिलेप्पुस सामरिया नगर में जाकर लोगों में मसीह का प्रचार करने लगा।'' (प्रेरितों के कार्य ८:५)
अब पद आठ निकालिये,
''और उस नगर में बड़ा आनन्द हुआ'' (प्रेरितों के कार्य ८:५)
अब आप बैठ सकते हैं।
मैंने सामरिया शहर की कुछ घटनायें छोड दी थी। किंतु आप देख सकते हैं कि ये पेंतुकुस्त के दिन यरूशलेम में जो घटा उससे बहुत मिलती जुलती है। फिलिप ने मसीह का प्रचार लोगों को किया। लोगों ने उसका संदेश बडी ध्यानपूर्वक सुना। कई लोग परिवर्तित हुये। ''और उस नगर में बड़ा आनन्द हुआ।'' (प्रेरितों के कार्य ८:८)
पेंतुकुस्त के दिन भी बिल्कुल यही बात हुई! पतरस ''उंचे शब्द'' में मसीह का प्रचार करने लगा। उन्होंने भी ''खुशी खुशी वचन ग्रहण किया'' और परिवर्तित हुये। उनको प्रतिदिन की संगति में आनंद आता था। ऐसा ही तब भी हुआ जब प्रेरितों ने ''यीशु के मुरदों में से जी उठने का प्रचार'' किया तब भी काफी संख्या में लोग बचाये गये (प्रेरितो के कार्य ४:२,४) प्रेरितों की पुस्तक को पढने से पता चलता है कि जो पेंतुकुस्त के दिन हुआ वैसा बार बार होता चला गया। इसलिये हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि पेंतुकुस्त ''एक बार का'' अनुभव नहीं था। और मैं यह भी नहीं मानता हूं कि पेंतुकुस्त ''कलीसिया का जन्म दिवस'' है जैसा कि कुछ लोग शिक्षा देते हैं। चेले और कुछ अन्य लोग पेंतुकुस्त के पूर्व ही बचा लिये गये थे। पेंतुकुस्त के पहले, प्रेरितों के कार्य १:१५ में हम पढते हैं कि उपरी कोठरी में लगभग एक सौ बीस लोग प्रार्थना कर रहे थे जो ''चेले'' और ''विश्वासी भाई'' कहलाये। पेंतुकुस्त का दिन आने से पहले यह विश्वासी लोगों की सभा एक चर्च के रूप में एकत्रित हुई थी। इसलिये जब पेंतुकुस्त आया तब चर्च पहले से ही मौजूद था! इसके साथ ही, पेंतुकुस्त केवल ''एक बार'' का अनुभव नहीं था जैसा कुछ लोग शिक्षा देते हैं कि वह एक बार बीत चुका है और दुबारा दोहराया नहीं जायेगा। प्रेरितों के कार्य में पेंतुकुस्त के आवश्यक लक्षण कई बार दुहराये गये हैं − और पूरे मसीही इतिहास में भी दोहराया जायेगा।
तो फिर पेंतुकुस्त क्या था? डॉ.मार्टिन ल्यॉड−जोंस ने कहा,
यह एक सत्य कथन (सत्य वाक्य) है कि चर्च में जितनी भी आत्मिक जागृति देखी है, वे सब किसी न किसी रूप में पेंतुकुस्त के दिन का दोहराव है.....और प्रत्येक आत्मिक जागृति, में निसंदेह रूप में, मानता हूं सचमुच ही पेंतुकुस्त के दिन का दोहराव है.....हमें सचमुच यह कहना बंद करना चाहिये कि पेंतुकुस्त के दिन जो हुआ वह एक बार हो चुका और हमेशा के लिये हो चुका (मार्टिन ल्यॉड−जोंस, एम डी, रिवाईवल, क्रास वे बुक्स, १९८७, पेज १९९, २००)
मैंने पहले भी दो संदेशों में कहा कि आत्मिक जागरण तब आता है जब पवित्र आत्मा उस व्यक्ति को पापों का बोध देता है (यूहन्ना १६:८) और, दूसरी बात, जब पवित्र आत्मा पापियों को मसीह के पास खींचता है (यूहन्ना १६:१४,१५) तब मसीह पापी जन के लिये जीवित सत्य बन जाता है। पिछले साल हमारे चर्च में यह हर महिने में एक बार घटा है। इसका अर्थ यह है, कि प्रत्येक माह में एक जन परिवर्तित हुआ है। किंतु, जब आत्मिक जागरण होता है, कई लोग एक साथ कम समय में ही परिवर्तित हो जाते हैं। आयन एच.मुर्रे ने कहा था ''पेंतुकुस्त के समय से लेकर, आगे तक पवित्र आत्मा का (कार्य) दो रूप में देखा जा सकता है, एक तो साधारण रूप में और एक अति विशेष रूप में'' (आयन एच.मुर्रे, पेंटीकोस्ट टूडे? दि बिब्लीकल बेसिस फॉर अंडरस्टैंडिंग रिवाईवल, दि बैनर आँफ ट्रुथ ट्रस्ट, १९९८, पेज १८) हम पवित्र आत्मा के ''साधारण'' कार्य का लगातार अनुभव कर रहे हैं जब प्रत्येक चार या पांच सप्ताहों में एक व्यक्ति हमारे चर्च में परिवर्तित हो रहा है। जब परमेश्वर आत्मिक जागरण भेजता है तो ''अति विशेष'' परिवर्तन संख्या बढ जाती है − शायद बहुत कम समय में ही दस या बारह (या अधिक) नया जन्म प्राप्त कर लेते हैं।
मैं अक्सर चौंक जाता हूं जब हमारे लोग अक्सर आत्मिक जागरण को वह समय समझने की भूल कर बैठते है कि हमें तब शायद अधिक मेहनत का कार्य करना पडता होगा, या पापियों के लिये बहुत अधिक अपील करनी पडती होगी। यह विचार हमारे मन में स्वाभाविक रूप में ही जन्म लेता है। किंतु ऐसा कुछ नहीं होता है बल्कि जब परमेश्वर आत्मिक जागरण भेजता है तो इसके विपरीत ही कार्य होता है।
सबसे पहली आत्मिक जागृति जो पेंतुकुस्त के दिन हुई उसके बारे में सोचिये तो आपको अपना सोचा हुआ विचार गलत प्रतीत होने लगेगा। मैं सोचता हूं कि हम इसे एक शैतानी विचार भी कह सकते हैं। क्या बिल्कुल यही बात शैतान भटके हुये लोगों को नहीं सिखाता? क्या शैतान ही उनके मनों में ये विचार नहीं डालता? वह तो कहता है, ''अगर आप बचाये जाओगे तो यह बचाये जाने की प्रकिृया बहुत कठिन होगी। आपको इसमें बहुत मेहनत करनी होगी, और आपको किसी प्रकार का आराम या आनंद बिल्कुल नहीं मिलेगा।'' शैतान तो एक झूठा व्यक्ति है। जबकि जो वह कहता है उसके उलट सब बातें सच्ची है। जब आप मन फिराते हो तो यह आपके लिये अभी के बजाय अधिक आसान होता जाता है! शैतान तो झूठा है! किंतु यीशु कभी झूठ नहीं बोलता! यीशु सदैव हमें सत्य बातें कहता है! यीशु ने यह कहा भी था, ''मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।'' (मत्ती ११:२८), और यीशु ने यह भी कहा, ''तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।'' (मत्ती ११:२९) इस आयत को पढिये। मत्ती अध्याय ११:२८−३० से निकालिये। निवेदन है कि अपनी जगह खडे होकर जोर से पढिये। यह स्कोफील्ड स्टडी बाईबल की पेज संख्या १०११ पर मिलता है।
''हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।'' (मत्ती ११:२८−३०)
अब आप बैठ सकते हैं। अब अपनी कलम लेकर पद २८ के अंतिम पद के पांच शब्दों पर लाईन खींचिये, ''मैं तुम्हे विश्राम दूंगा। अब पद २९ के अंतिम सात शब्दों के लिये लाईन खींचिये, ''तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।'' इसके पश्चात पद तीस की पूरी आयत पर लाईन खींचिये, ''क्योंकि मेरा जुआ सहज और मेरा बोझ हल्का है।''
मैंने अक्सर नये विश्वासियों को यह कहते हुये सुना है, ''अरे यह तो सब कुछ बहुत आसान है! मैंने तो सोचा था कि मसीही बनने के उपरांत कितना कठिन जीवन होगा! किंतु अब तो मैंने यीशु पर विश्वास रखके कितना अधिक विश्राम पाया है। सचमुच यीशु ने मुझे बचाया यह प्रकिृया कितनी आसान लग रही है।'' यही सब विचार हम हमारे गीतों से प्रगट होते देखते हैं! कुछ आप गाते भी हैं, किंतु कुछेक लोगों ने इसका अनुभव नहीं किया होगा!
न तो मेरे हाथों की कोई मेहनत
खुदा तेरी व्यवस्था को पूरी कर सकती है;
न मेरी कोई ऐसी धुन करती विराम,
न मेरे कोई ऐसे लगातार बहते आंसू,
मेरे पाप के बदले दंड सह सकते थे;
वह तो केवल मसीह बचाता है, केवल वह
(''रॉक आँफ ऐजेस, क्लेफटफट फॉर भी,'' आँगस्टस एम.टॉपलेडी, १७४०−१७७८)
इस संसार में खोज न सकोगे
उलझे मन में कोई शांति न दे सकेगा;
मसीह के पास आइये, उस पर ईमान रखिये,
शांति और आनंद दोनों मिलेगा।
अभी क्यों नहीं? अभी क्यों नहीं?
यीशु के पास अभी क्यों नहीं आ जाते?
अभी क्यों नहीं? अभी क्यों नहीं?
यीशु के पास अभी क्यों नहीं आ जाते?
(''अभी क्यों नहीं?'' डेनियल डब्लू विटल, १८४०−१९०१)
यीशु थके मांदे को बुला रहा−
आज बुला रहा, आज बुला रहा;
उसके पास अपने बोझ ले आओ और मुक्त हो जाओ;
वह आपको लौटायेगा नहीं।
(''यीशु बुला रहा'' फैनी जे क्रासवी, १८२०−१९१५)
मेरे बंधनो, दुख और काली रातों से बाहर निकालता है,
यीशु, मैं आता हूं, यीशु, मैं आता हूं;
तेरी मुक्ति, तेरे आनंद और तेरी रोशनी में,
यीशु मैं आता हूं......
(''यीशु, मैं आता हूं'' विलियम टी.स्लीपर, १८१९−१९०४)
हे मेरे मन, तू क्यों थका और उलझा है?
अपने अंधेरे में तूने कोई रोशनी की किरण न देखीं?
मसीहा को देखते रहने से प्रकाश मिलता है,
तब जीवन और भरपूर व विश्रामपूर्ण हो जाता है!
अपनी आंखे तब यीशु की ओर लगाओ,
उसके अदभुत चेहरे को पूर्ण निहारो,
तब इस संसार की उलझने तुम्हे मद्धिम लगने लगेंगी,
यीशु की महिमा व अनुग्रह के प्रकाश में।
(''अपनी आंखे यीशु की ओर लगाओ'' हैलेन एच.लैमेन, १८६३−१९६१)
मैं तो ये अदभुत गीत गाता चला गया, गाता चला गया!
खुशी का दिन, खुशी का दिन, जब यीशु ने मेरे पापों को धो दिया!
उसने मुझे प्रार्थना करना सिखाया, हर दिन खुशी से रहना सिखाया;
खुशी का दिन, खुशी का दिन, जब यीशु ने मेरे पापों को धो दिया!
(''सचमुच खुशी का दिन'' फिलिप डाडिज, १७०२−१७५१)
शैतान तो यह बताता है कि मसीही बनना बहुत कठिन और असहनीय है। किंतु ये गीत प्रगट करते हैं कि वह तो खुशी का दिन होगा! यीशु भी कहते हैं, ''मैं तुम्हे विश्राम दूंगा....मेरा जुआ सहज, और मेरा बोझ हल्का है!'' (मत्ती ११:२८,३०)
और यही अनुभव आत्मिक जागरण में होता है! ''और सारे शहर में आनंद छा गया'' (प्रेरितों के कार्य ८:८) यही पेंतुकुस्त के दिन हुआ। यही सामरिया में हुआ। यही हर सच्ची आत्मिक जागृति में होता है। ''और सारे शहर में आनंद छा गया।'' डॉ ल्यॉड जोंस ने कहा था, ''हर आत्मिक जागरण....को मैं पेंतुकुस्त के दिन का दोहराव देखता हूं'' (रिवाईवल, उक्त संदर्भित, पेज १९९, २००) इसलिये हमें हमारे मनों में पेंतुकुस्त का आनंद याद रखना चाहिये, वे मुख्य बातें जो आत्मिक जागृति में हुई। अगर हम पेंतुकुस्त के बारे में विचार करते हैं, तो हम यह भी जान जायेंगे कि हम किस लिये प्रार्थना कर रहे हैं, और हम आत्मिक जागरण के द्वारा क्या खोज रहे हैं।
पेंतुकुस्त के दिन पतरस खडा हुआ और योएल की पुस्तक से उद्धरण पढा,
''अन्त कि दिनों में ऐसा होगा, कि मैं अपना आत्मा सब मनुष्यों पर उंडेलूंगा........मैं अपने दासों और अपनी दासियों पर भी उन दिनों में अपने आत्मा में से उंडेलूंगा, और वे भविष्यद्वाणी करेंगे।'' (प्रेरितों के कार्य २:१७, १८)
क्या आप जानते हैं कि आत्मिक जागरण में परमेश्वर अपनी आत्मा ''में'' से उडेलता है। वह कहता है, ''उन दिन में मैं अपनी आत्मा में से उंडेलता है।'' कितनी अजीब बात है कि कितने ही आधुनिक अनुवादों ने अपनी आत्मा ''में'' से उडेलने वाले शब्द को ही खारिज कर दिया। यह यूनानी भाषा में तो मिलता है। पुरानी जिनेवा बाईबल में इस प्रकार है, ''मेरी आत्मा में से।'' किंग जेम्स में इस प्रकार है ''आत्मा में से।'' आधुनिक अनुवादों में केवल एन ए एस वी में यह मिलता है। इसलिये मैं नये अनुवादों को नहीं मानता। इसलिये मैं आपको कहता हूं कि किंग जेम्स बाईबल, का स्कोफील्ड संस्करण काम में लाइये। आप इस पर भरोसा कर सकते हैं! पुराने अनुवादों में शब्दों को यथावत रखा या बिल्कुल उनके अर्थ को स्पष्ट करते हुये ''निकट के अर्थ'' दिये गये हैं। ''मैं उन दिनों में अपनी आत्मा में से उडेलूंगा।'' उदारवादी जन कहता है, ''यह सप्तुजिंट है'' मैं कहता हूं, ''बकवास है!'' बकवास है! यूनानी नये नियम के लेख्न पर पवित्र आत्मा उडेला गया और जैसी प्रेरणा मिली वैसा लिखा गया − पवित्र आत्मा झूठ नहीं बोलता! जब परमेश्वर का आत्मा सप्तुजिंट उदघृत करता है, नये नियम में बिल्कुल शुद्ध अर्थ वाले यूनानी शब्द ''उच्चारित किये जाते हैं।'' ''अपनी आत्मा में से।'' यह इतना क्यों आवश्यक है? मैं आपको बताउंगा क्यों? परमेश्वर अपनी संपूर्ण आत्मा नहीं उडेलता। वह उतना ही आत्मा भेजता है जितनी आवश्यकता है! जॉर्ज स्मेटन ने,१८८२ में फिर से, कहा, ''परम पवित्र के कहे गये शब्दों का अर्थ ‘अपनी आत्मा में’ (एपो) का अर्थ जरा भी नहीं खोता है जब यह उस नाप का वर्णन करता है जो (दिया) जाता है मनुष्यों को और उस (असीमित) सोते से जो लबालब भरा है'' (जॉर्ज स्मेटन, दि डाक्टरीन आँफ दि होली स्पिरिट, १८८२; रिपिंटेड बॉय दि बैनर आँफ ट्रूथ, १९७४; पेज २८) प्रेरिताई चर्चेस को आत्मा का लगातार प्रवाह प्राप्त होता रहा क्योंकि देने में भी सदैव बहुतायत है! मैं इतना आशीषित रहा हूं कि मैंने तीन आत्मिक जागृतियां देखीं। मैं आयन एच मुर्रे के साथ पूर्ण रूप से सहमत हूं, जब उन्होंने इस प्रकार कहा, ''आत्मिक जागरण की गवाही देना बेशक उन आशीषों का मिलना है जो पहले नहीं दी गई'' (उक्त संदर्भित, पेज २२) उल्स्टर में १८५९ के आत्मिक जागरण की एक चश्मदीद गवाह ने, उत्तरी आयरलैंड में कहा, ''मनुष्यों को ऐसा महसूस हुआ मानो प्रभु ने उनमें अपनी श्वांस फूंक दीं हो। वे पहले तो भयभीत होकर आश्चर्यचकित थे− किंतु उसके बाद वे आंसुओं में नहा गये − उसके बाद के बता न सकने वाले प्रेम से भर गये'' (विलियम गिब्सन, दि ईयर आँफ ग्रेस, ए हिस्ट्री आँफ दि उल्स्टर रिवाइवल आँफ १८५९, इलियट, १८६०, पेज ४३२) । रेव्ह डी सी जोंस ने २९ फरवरी, १८६० में कहा था, ''हमने पवित्र आत्मा का अत्यधिक प्रभाव महसूस किया है जितना पहले कभी नहीं पाया। यह 'तेज हवा के झोंके के समान आया' और......तब आया जब चर्च ने इसकी अपेक्षा भी नहीं की थी'' (मुर्रे, उक्त संदर्भित, पेज २५) इस तरह मैंने पहली और तीसरी बार आत्मिक जागरण का अनुभव प्राप्त किया। इस तरह मैंने पहली और तीसरी बार आत्मिक जागरण का अनुभव प्राप्त किया। पवित्र आत्मा इतना अचानक और अपअपेक्षित आया कि मैं जब तक जीवित रहूंगा इसका प्रवाह भूल नहीं पाउंगा! मैं आपको आत्मिक जागरण के बारे में कुछ बातें बताउंगा, जो डॉ.ल्याड-जोंस के संदेश से साभार ली गई है,
उनका परमेश्वर पर विश्वास ही नहीं था। परमेश्वर अब उनके लिये सत्यता बन चुका था। परमेश्वर उनके बीच उतर आया, ऐसा महसूस हुआ, उसकी उपस्थति वहां थी.....प्रत्येक उसकी उपस्थति और उसकी महिमा से अभिभूत हो रहा था (रिवाईवल, पेज२०४)
चर्च को, इसके परिणामस्वरूप, सच्चाई के लिये बडा भरोसा प्राप्त हुआ (उक्त संदर्भित)
चर्च बडे आनंद व अतिरेक प्रशंसा के भाव में डूब गया..... जब चर्च में आत्मिक जागृति आयी हुई हो तब आपको लोगों को प्रशंसा करने के लिये प्रेरित करने की आवश्यकता नहीं है, आप उन्हें प्रशंसा करने से भी रोक नहीं पाओगे, वे इतना अधिक देवत्व से भर जायेंगे। उनके चेहरों से ही यह प्रदर्शित हो जायेगा। वे रूपांतरित हो जायेंगे.....एक ऐसा आनंद प्रगट होगा जो ''उसकी महिमा से भरपूर होगा और बताया न जा सकेगा'' (उक्त संदर्भित, पेज २०६)
आपको लोगों को आराधना करने के लिये धकेलना ही नहीं पडेगा, उनसे प्रशंसा करवानी ही नहीं पडेगी, और वे शब्द सुनने की कोशिश ही नहीं करनी पडेगी, वे तो स्वयं उच्चारित करंगे। वे तो हर रात समूह के समूह आते रहेंगे, घंटो तक रूके रहेंगे, सुबह होने तक ठहरे रहेंगे। यह सिलसिला हर रात चलता रहेगा (उक्त संदर्भित, पेज २०७)
(आत्मिक जागरण में) यही संदेश दिये जाते हैं और कई बार संदेश अलग अलग (भी होते हैं) । तब आत्मा का और उसकी सामर्थ का प्रदर्शन होता दिखाई देता (है) (उक्त संदर्भित, पेज २०८)
अगर आप अपने चर्चेस में भीड चाहते हैं, तो आत्मिक जागरण के लिए दुआ कीजिये! क्योंकि जिस क्षण आत्मिक जागरण होता है, भीड की भीड उमड पडती है (उक्त संदर्भित)
उन्होंने प्रचार समाप्त ही किया था कि लोग रोने लगे, और कहने लगे, ''कि हम क्या करें?''.....वे आत्मा में व्यथित थे, वे पाप के गहरे बोध से दुखित हो रहे थे (पेज २०९)
यह सिर्फ इतना प्रश्न नहीं है कि आपको आत्मिक जागृति कब आई, किंतु जरूरी है कि आप गहरे पश्चाताप में कब गये, यहीं से तो पुर्नद्धार का आरंभ है। लोग नया जीवन पाते हैं और पुराना जीवन छोडते जाते हैं.....कहानियां पढिये; ये सच्ची बातें हैं। यह कोई मेरा विचार नहीं है, यह कोई सिद्धांत नहीं है, परन्तु सत्य बात है (उक्त संदर्भित, पेज २०९)
नये परिवर्तित चर्च में आने लगते हैं.....इस तरह परमेश्वर चर्च प्रारंभ करता है, और परमेश्वर लोगों के आने के द्वारा चर्च को जीवित रखता है....क्या इस घडी की यही आवश्यकता नहीं है? तो ठीक है, अगर आप विश्वास रखते हैं, तो बिना रूके प्रार्थना करते रहिये....मैं यह नहीं कहता कि आप सारे प्रयास रोककर केवल इंतजार करें। नहीं, बल्कि वह सब प्रयास करते रहिये....जो आवश्यक है वह कार्य करते रहिये, किंतु मेरा कहना यह भी है कि − इस बात का निश्चय कीजिये कि आप आत्मिक जागृति के लिये दुआ करने का वक्त निकालेंगे, और यह सुनिश्चत करेंगे कि अधिक समय इस पर व्यतीत करेंगे। क्योंकि जब पवित्र आत्मा सामर्थ में प्रगट होता है तो वह कुछ एक घंटे में ही घट सकता है जिसे होने में पचास या सौ साल लगते हैं और वह भी कुछ लगनशील आपके या मेरे प्रयासों के द्वारा। पवित्र आत्मा की ताकत − जो पेंतुकुस्त के दिन का अर्थ है.... इसके (लिये) परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वह हम पर तरस खाये, दया करे, और पवित्र आत्मा हम पर भी उतरकर आशीषों से भर दे। (उक्त संदर्भित, पेज २१०, २११)
निवेदन है कि खडे होकर गीत संख्या ७ निकाल लें जो आपके गीत के कागज पर छपा है, ''जीजस, लवर आँफ माय सोअल'' जिसे महान प्रसिद्ध कवि चाल्र्स वेस्ली ने प्रथम बडी आत्मिक जागृति के समय लिखा था।
यीशु, मेरी आत्मा को चाहने वाला, मुझे अपनी छाती में छुपा ले,
जब निकल पानी के झरने बहते हैं, जब परीक्षा सख्त हो:
मुझे छुपा ले, ऐ प्रभु, छुपा ले, जब तक कि यह तूफां निकल न जाये;
अपने स्वर्गिक स्थानों में सुरक्षित कर ले; प्रभु मेरी आत्मा को!
मेरा कोई दूसरा शरण स्थान नहीं है, आत्मा असहाय हो चुकी है:
न छोड, ओह! न त्याग मुझे अकेले, मुझे सहारा दे आराम दे।
मेरा भरोसा तुझ पर ठहरा, मेरी संपूर्ण सहायता तुझसे ही आतीहै;
मेरे असुरक्षित शीश का ढंप दे तरी अदभुत छाया से।
ओह, मेरे मसीहा, यही सब तो मैं चाहता हूं; मैं तुझमें सब पाता हूं;
गिरे हुओं को, तू उठाता, खुशी देता मुरझाये को, बीमार को।
अंधे को दिखाता राह पवित्र तेरा नाम, मैं तो अधर्मी जन हूं;
गलतियों पाप से भरा मैं; तू सत्य और महिमा से भरा हुआ।
तुझमें अपार अनुग्रह के भंडार मिलते, वह अनुग्रह ढंप देता मेरे पाप;
चंगाई की नदियां बहने दे; मुझे शुद्ध भीतर से बना।
तुझमें जीवन के सोते बहते, मैं उसमें से सेंतमंत पी लूं;
मेरा मन उमंग से उछलने लगेगा; अनंत काल में प्रवेश करूंगा
(''जीजस, लवर आँफ माय सोल'' चाल्र्स वेस्ली १७०७−१७८८)
मेरी विनती है आप यीशु के पास आ जायें। जैसा चाल्र्स वेस्ली ने कहा, यीशु आपकी आत्मा से प्रेम रखता है! वह आपके पापों का दंड चुकाने के लिये क्रूस पर मरा! उसने आपके सारे पापों को शुद्ध करने के लिये अपना कीमती लहू बहाया! वह मरे हुओं में से जी उठा ताकि आपको शाश्वत जीवन प्रदान करे! यीशु के पास आइये। यीशु पर विश्वास कीजिये।.
केवल उस पर विश्वास करो, केवल उस पर विश्वास करो,
केवल उस पर विश्वास करो।
वह आपको बचायेगा, वह आपको बचायेगा,
वह आपको अभी बचायेगा।
(''केवल उस पर विश्वास करो'' जॉन एच स्टॉकटन, १८१३−१८७७)
डॉ.चान, प्रार्थना में हमारी अगुवाई कीजिये। आमीन।
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व धर्मशास्त्र पढा गया मि.ऐबेल प्रुद्योमें द्वारा: प्रेरितों के कार्य २:४०−४७
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गीत गाया गया:
''पवित्र आत्मा प्रभु, अकेले'' (फैनी जे.क्रासवी,१८२०−१९१५)
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