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वह मुझे महिमामंडित करेगा (आत्मिक जागरण पर संदेश ५) द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स रविवार की शाम, १७ अगस्त, २०१४ को लॉस एंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में प्रचार किया गया संदेश |
डॉ. मार्टिन ल्यॉड−जोंस आत्मिक जागृति के बड़े जागरूक व सतर्क विधार्थी थे। उन्होंने आत्मिक जागृति के इतिहास, का गहन अध्ययन किया था और यहां तक कि उन्होंने अपनी खुद की कलीसिया वेल्श में सन १९३१ में आत्मिक जागरण का अनुभव भी किया। उन्होंने महान इवेंजलिस्ट हॉवेल हैरिस १७१४−१७७३ के ''दि डॉक्टर'' व्याख्यान पर कहा था, ''हम पुन: १८वीं शताब्दी के समान अंधकार व निर्जीव अवस्था में जी रहे हैं'' (डी.एम.ल्यॉड−जोंस, दि प्यूरीटेंस देअर आँरिजिंस एंड सक्सेसर्स, दि बेनर आँफ ट्रूथ ट्रस्ट, १९९६ संस्करण, पेज ३०२) एक ओर अन्य पुस्तक में, डॉ. ल्यॉड−जोंस ने कहा था ''पिछले सैंकडों वर्षो में चर्च में खतरनाक रूप में बढ़ती हुई अराजकता (अब १५०) वर्ष में भी व्याप्त है'' (रिवाईवल, क्रासवे बुक्स, १९८७, पेज ५५)
मैंने ५५ सालों के अपने सेवकाई अनुभवों में बहुत नाटकीय गिरावट देखी है। आजकल के चर्च, मेरी जवानी के दिनों के चर्च से बिल्कुल अलग हटकर हैं - और इनमें जों बदलाव आया वह अच्छा बदलाव नहीं था। सचमुच में ''हम फिर से अंधकार और निर्जीव दशा में पहुंच गये हैं।'' सचमुच में, हम ''खतरनाक चंचलता'' के युग में है।
मुझे यह निश्चय है कि यह चर्च में भयानक दशा पास्टर्स के कारण होती है क्योंकि पास्टर्स यह भूल गये हैं कि कौन सी बातें एक इंसान को मसीही बनाती है। मेरे अनुभव से, बहुत थोड़े प्रचारक नये जन्म और परिवर्तन के विषय में अनुभव रखते हैं, किंतु आज मैं इस विषय पर नहीं बोलूंगा।
कई प्रचारक जो आत्मिक जागरण पर प्रचार करते हैं वे जानते हैं कि उन्हें पवित्र आत्मा की आवश्यकता है जो चर्चेस में ऐसा कुछ कर सके ताकि आत्मिक जागरण फैले! किंतु बहुत कम लोग यह जानते हैं कि पवित्र आत्मा से वे क्या किये जाने की अपेक्षा रखते हैं। वे नहीं जानते कि पवित्र आत्मा उनके लिये क्या करे क्योंकि वे यह पहचान ही नहीं रहे हैं कि वे कितनी खतरनाक समस्या से जूझ रहे हैं। वे सोचते हैं कि उनके अधिकतर लोग बचाये गये हैं और वे सोचते हैं कि वे लोगों को उद्धार का अनुभव करवाना भी जानते हैं। यद्यपि मैं ऐसे किसी बड़े प्रचारक को नहीं जानता हूं जो इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश डालते हो। इसका यह परिणाम होता है, कि हमारे चर्चेस में भीड़ ही भीड़ भरी है, पैर रखने तक की जगह नहीं है, किंतु सारे खोये हुये लोगों की भीड़ है! हमने इस विषय पर इस समस्या पर बड़े विस्तार से हमारी इस पुस्तक में लिखा है, टू डेज एपोस्टेसी (इसे पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिये)।
आज की रात में आत्मिक जागरण की समस्या के उपर नहीं बोल रहा हूं। मेरा ध्यान इस बात पर केंदित है कि हमें किस बात के लिये प्रार्थना करनी चाहिये अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमारे स्थानीय चर्च में आत्मिक जागरण भेजे। हम अक्सर इस जाल में फंस जाते हैं कि जब हम आत्मिक जागरण की पुस्तकें पढ़तें हैं तो ऐसी आशा रखते हैं कि चर्चेस में बहुत बड़ा परिवर्तन आ जायेगा − कम से कम एक बड़ी भीड़ उद्धार प्राप्त करेगी। किंतु प्रत्यक्ष में जब ऐसा होते दिखाई नहीं देता तो हम स्वयं में हताशा का अनुभव करते हैं।
हमें यह समझना आवश्यक है कि प्रत्येक वास्तविक परिवर्तन एक चमत्कार होता है। डॉ. कैगन और मैं उन लोगों की सूची देख रहे थे जो वास्तविक रूप में नया जन्म पाये हुये हों। हमने पाया कि प्रत्येक महिने में लोगों ने नया जन्म पाया है। बेशक, मैं लोगों के द्वारा ''निर्णय लिये जाने'' के विषय में नहीं बोल रहा हूं बल्कि मैं सच्चे नये जन्म व परिवर्तन के बारे में बातें कर रहा हूं। हम जो आत्मिक जागरण के लिये प्रार्थना कर रहे हैं इसका अर्थ है कि हम और अधिक परिवर्तन होने की प्रार्थना मांग रहे हैं, जो एक चमत्कार ही होंगे, जिसके लिये परमेश्वर नीचे उतर आयेंगे और बहुत सारे लोगों को मसीह के पास लेकर आयेंगे।
अब, हमें वास्तव में किस बात के लिये प्रार्थना करना चाहिये? मेरा मानना है कि हमारा मुख्य ध्यान इस बात पर होना चाहिये कि हम पवित्र आत्मा को बड़े बल से उतर आने के लिये प्रार्थना करें। मैं सोचता हूं कि कई लोग इस विषय पर मेरी कही हुई अनेक बातों को अस्वीकार कर देंगे। बींसवी शताब्दी में पवित्र आत्मा पर इतनी गलत शिक्षायें व्याप्त है कि मैं उन पर दोष नहीं देता। यद्यपि पवित्र आत्मा ही हरेक जन के नये जन्म पाने का मूल स्त्रोत है, और वही आत्मिक जागरण पैदा करता है। आज चर्च के सदस्य सोचते हैं कि पवित्र आत्मा आकर लोगों को ''अन्य अन्य भाषा बोलना सिखायेगा,'' या उन्हें इतना समर्थ बना देगा कि वे दौलत कमा सके, या उन्हें शारिरिक चंगाई देगा। किंतु ये सब पवित्र आत्मा के मुख्य कार्य नहीं है। बाईबल में यूहन्ना १६:१४ निकालिये। यहां हम परमेश्वर के आत्मा का मुख्य कार्य देखते हैं। यीशु ने कहा,
''वह मेरी महिमा करेगा'' (यूहन्ना १६:१४)
''महिमा करने'' का यूनानी अनुवाद है, ''सम्मान, गौरव, उच्च स्थान देना, प्रशंसा करना'' (स्ट्रांग १३९२) पवित्र आत्मा का कार्य है मसीह की महिमा करना, मसीह को प्रतिष्ठा देना, मसीह को गौरव प्रदान करना और उसे सम्मान देना।
जब लोगों का गलत रूप में परिवर्तन होता है, यह इसलिये होता है क्योंकि उन्होंने स्वंय यीशु को अस्वीकार किया है। डॉ. कैगन ने हमारी पुस्तक, टूडेज एपोस्टेसी में बताया है,
कैथोलिक परिवारों से आये लोग प्राय: सोचते हैं कि उद्धार कर्मो से मिलता है: जैसे कुछ पापों का परित्याग करना, चर्च जाना, यीशु का अनुसरण करना, यीशु से प्रेम रखना पापांगीकार करना, और प्राय: ''अच्छे बने रहना।''
जो लोग बैपटिस्ट, सुधारवादी या सुसमाचारीय भूमिका वाले परिवारों से हैं वे बपतिस्में पर विश्वास करना, ''पापियों की प्रार्थना दुहरा लेना,'' दिमागी तौर पर मसीही सैद्धान्तिक शिक्षा का विश्वास रखना, ताकि ''उद्धार की योजना'' या ''वेस्टमिंस्टर कैटेकाइज्म'' दोहराना आदि को उद्धार पाने में सहायक पाते हैं।
लोग जो पेंटीकॉस्टल या करिश्माई भूमिका वाले परिवारों से हैं वे प्राय: भावनाओं और अनुभवों के आधार पर सोचते हैं। अगर एक व्यक्ति को ऐसा कुछ अनुभव हुआ कि मानो ''पवित्र आत्मा,'' मिल गया हो और वह परमेश्वर की आशीषों को जीवन में महसूस करता हो, शांति अथवा आनंद की अनुभूति उसके मन में होती हो, तो वह स्वयं को उद्धार पाया हुआ मानने लगता है।
ऐसे कई लोग हमारे पास सलाह के लिये आते हैं, वे ऐसे ही उपरोक्त कई अनुभवों को बांटते हैं किंतु सत्यता तो, ये है कि वे मसीह पर भरोसा रखने के द्वारा बचाये नहीं गये हैं (टूडेज एपोस्टेसी, हर्थ स्टोन पब्लिशिंग, २००१ संस्करण, पेज १४१)
हमारे चर्च में अक्सर हमें इस तरह से सुनने को मिलता है। पास्टर उनसे पूछता है कि वे बतायें कि वे किस तरह बचाये गये, तो वे एक जैसी आवाज में एक लंबी ''शैबी डॉग'' वाली उबाउ कहानी अथवा गवाही सुना देंगे, जिसमें उनके द्वारा पहले सुने गये संदेशों के उपर अपने विचार होंगे, बहुत सा वर्णनात्मक विवरण होगा, जिसमें उनकी पापी महसूस करने वाली भावना भी होगी। वे प्राय: एक कहानी सुनाते हैं, उसका विस्तार से वर्णन करते हैं, यह कहानी परिवर्तन की तरफ ले चलती है जिसे वे अपना परिवर्तन समझते हैं, तब एकाएक वे बीच में ही कहानी बंद कर देते हैं। वे अक्सर यह कहते हुये अंत करते हैं कि, ''और तब मैंने यीशु पर विश्वास किया, या ''तब मैं यीशु के पास आया।''
जब हम उनसे यीशु के बारे में थोड़ा सा अनुभव पूछते हैं, और पूछते हैं कि जब वे यीशु के पास आये (या उस पर विश्वास किया) तो आगे क्या हुआ। तब आगे चलकर उनकी गवाही पूरी बिखर जाती है, वे ज्यादा कुछ कह ही नहीं पाते हैं, और तो और, स्वयं यीशु के विषय में बोल नहीं पाते। स्पर्जन ने अपनी पुस्तक, अराउंड दि विकेट गेट, में कहा था कि, ''मनुष्यों में एक बड़ी निंदनीय प्रवृत्ति पाई जाती है कि वे सुसमाचार में से मसीह को बाहर कर देते है'' (पिलगिम पब्लिकेशंस, १९९२ संस्करण, पेज २४) मैं उनसे कहता हूं कि मैं चाहता हूं कि वे आते रहें और सुसमाचार सुनते रहें। मैं यह तसल्ली कर लेना चाहता हूं कि उनकी गवाहियों में मसीह मुख्य पात्र हो। किसी की गवाही कितनी ही रोचक क्यों न हो, किंतु उस गवाही में मुख्य भूमिका अगर यीशु की नहीं है, तो वे अभी भी बचाये हुये नहीं होंगे!
सच्चे मन परिवर्तन में पवित्र आत्मा दो कार्य करता है। पहला कार्य जो यूहन्ना १६:८−९ में वर्णित है,
''और वह आकर संसार को पाप और धामिर्कता और न्याय के विषय में निरूत्तर करेगा। पाप के विषय में इसलिये कि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते।'' (यूहन्ना १६:८−९)
परमेश्वर के आत्मा का पहला कार्य है कि वह मनुष्यों को उनके पापों का बोध करवाये। हम तो नया जन्म को एक मामूली चीज समझते हैं, एक कम महत्व की बात, जिसके लिये चंद शब्द दुहराने होते हैं और उसका उद्धार मानो हो गया। परमेश्वर ऐसे लोगों को बचाये! हमने पवित्र आत्मा को छोड़ दिया है! हम यह भूल गये हैं कि पवित्र आत्मा हमारे मन की गहराई में बसे पाप और परमेश्वर के प्रति प्रतिकार करने वाले पाप का बोध करवाता है! डॉ. ल्यॉड−जोंस इस बोध का वर्णन करते हुये कहते हैं कि यह मानों हमारे मन में लगे रोग को देखना है, और आदम से जो दूषित स्वभाव हमें मिलता है, यह उस स्वभाव को दिखाता है। इस बोध के द्वारा हम स्वयं को असहाय अवस्था में पाते हैं, हमारी हताशा, परम पवित्र धर्मी परमेश्वर के सामने, जो पाप से घृणा करता है, प्रगट होती है (आत्मिक जागरण से साभार, क्रास वे बुक्स, १९८७, पेज ४२) यह बोध, थोड़ा या अधिक, उन सभी लोगों में होता है जो वास्तविक रूप में परिवर्तित होते हैं। डॉ.ल्यॉड−जोंस ने कहा था, ''कोई भी मनुष्य जो जागृत अवस्था में पहुंच जाता है पाप का बोध उसे होने लगता है तो उसके सामने यह परेशानी पैदा होने लगती है कि कैसे वह अपने आप के प्रति मर सकता है परमेश्वर का सामना कर सकता है?'' (अश्योरेंस, रोमन्स ५, दि बेनर आँफ टुथ ट्रस्ट, १९७१, पेज १८)
तो यह प्रथम चीज है जो पवित्र आत्मा सच्चे परिवर्तन में दिखाता है। वह व्यक्तियों को परेशान कर देता है, अगर आप अपने पापी स्वभाव के प्रति गहराई से व्यथित नहीं होंगे, तब आप प्रभु यीशु मसीह के प्रति सोचेंगे भी नहीं। आप क्रूस पर मरते समय यीशु के शब्दों को सुन सकते हो किंतु वे आपके लिये अधिक अर्थ नहीं रखते हैं। क्यों? क्योंकि ''अपने पाप का बोध आपको हुआ ही नहीं, धार्मिकता, और न्याय को आपने जानने की कोशिश ही नहीं की'' (यूहन्ना १६:८) इसके उपरांत एक खोये हुये पापी को केवल पाप के बोध पर ही नहीं रूके रहना है! पाप का बोध हो जाने से भी आप नहीं बचोगे!
मैं अभी अभी एक जवान लड़के से बात कर रहा था जो कई दिन से पाप के बोध तले समय बिता रहा था। मैंने उससे कहा कि उसे यीशु के लहू द्वारा उद्धार प्राप्त करना चाहिये। मुझे ऐसा लगा कि वह ऐसा करने वाला है। ऐसा लगा कि वह यीशु के पास आयेगा। मैंने कुछ सप्ताह इंतजार किया और फिर उससे कहा कि वह मुझे अपने बचाये जाने का अनुभव बताये। वह अपने पाप के बोध के साथ जीता रहा। इसमें कोई शक नहीं था कि उसे अपने पापों का बोध हो चुका था और वह भी बहुत गहराई से। किंतु उसने भी अपनी गवाही इस तरह समाप्त की, ''और तब मैं यीशु के पास आ गया।'' मैंने उससे पूछा कि वह मुझे और अधिक यीशु के बारे में बताये। तो वह अटक गया, किंतु यह बिल्कुल स्पष्ट दिखाई दे रहा था, कि यद्यपि उसे पापों का बोध तो हुआ था, किंतु उसने मसीह और उसके लहू से शांति नहीं पाई थी!
अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं, ''आप यीशु के पास कैसे आये?'' उनको मैं यह उत्तर देता हूं कि हमें यूहन्ना ६:४४ पढ़ना चाहिये,
''कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले और मैं उस को अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा।'' (यूहन्ना ६:४४अ)
आप यीशु के पास तब खिंचे जाते हो जब पवित्र आत्मा के द्वारा परमेश्वर आपको यीशु के पास खींचता है। प्राय: ऐसा कह सकते हैं, कि परमेश्वर का आत्मा एक पापी को यीशु के पास तब खींचकर लाता है जब वह पापी पाप के गहन बोध में हो, और दया के लिये पुकार रहा हो। जब पवित्र आत्मा किसी को यीशु के पास खींचता है, तो ऐसा लगता है कि वे पहले अंधे थे, और अब उनकी आंखे खुली हैं − और वे सुंदर मसीहा को अब देख पाते हैं, जो अपनी बांहे चौड़ी फैलाये हुये उन्हें गले लगा रहा हो! वे जॉन-न्यूटन के समान गा सकते हैं (१७२५−१८०७),
एक बार मैं खो गया था, पर अब मिल गया हूं,
एक बार मैं अंधा था, पर अब देखता हूं।
(''अमेजिंग ग्रेस'')
तो, जब हम आत्मिक जागरण के बारे में बोलते हैं, तो हमें इसे सुसमाचार के रूप में सोचना चाहिये। आत्मिक जागरण और कुछ नहीं है, केवल यह परमेश्वर के आत्मा द्वारा लोगों को उनके पापों का बोध कराना है, और तब यीशु के लहू से पापों को धोकर उद्धार पाते हैं। जब यह किसी एक व्यक्ति के साथ होता है, जैसा कि प्रत्येक कुछ सप्ताहों में हमारे यहां होता है, इसे परिवर्तन कहते हैं, यह परिवर्तन का चमत्कार है! जॉन−डब्ल्यू. पीटरसन ने इसे अपने गीतों में से एक गीत में बहुत स्पष्ट किया है,
तारों को उनकी जगह रखने के लिये चमत्कार किया था;
अंतरिक्ष में संसार को लटकाने के लिये चमत्कार किया था।
किंतु जब उसने मेरी आत्मा को बचाया,
मुझे पूरा शुद्ध किया, पूर्ण किया।
उसने अपने प्यार और अनुग्रह का चमत्कार किया।
(''इट टुक ए मिरेकल'' जॉन डब्ल्यू.पीटरसन, १९२१−२००६)
जब यह चमत्कार कई लोगों के साथ एक साथ घटित होता है, मान लीजिये १० या १२ लोगों के साथ स्थानीय चर्च में यह घटना होती है, तो यह आत्मिक जागृति कहलाती है! यह साधारण रूप में होता है! जो एक व्यक्ति के साथ मन परिवर्तन के समय होता है वही आत्मिक जागरण में कई लोगों के साथ होता है। जब आत्मिक जागृति की सामर्थ के साथ पवित्र आत्मा उतरता है, तो वह कई परिवर्तित लोगों के जीवनों से यीशु को महिमा प्रदान करता है!
''वह मेरी महिमा करेगा'' (यूहन्ना १६:१४)
डॉ. ल्यॉड−जोंस को एक बार और सुनिये।
आत्मिक जागृति, सब बातों से बढ़कर, प्रभु यीशु मसीह, परमेश्वर के पुत्र को महिमामंडित करना है। चर्च के जीवन में पुन: यीशु का प्रवेश लाना है........सतही मसीहत की कोई कीमत नहीं है, जो मसीह को महिमा नहीं देती, उसके लिये जीती नहीं है, और उसके लिये जीने (की) गवाही नहीं देती.......विशेषकर उसका हमारे एवज में प्राण देना, उसकी क्रूस पर मौत होना, उसका कुचला हुआ शरीर और उसके बहाये हुये लहू की गवाही नहीं देती है। फिर से मैं आपके लिये एक शुद्ध सत्य का उद्धरण दे रहा हूं जो आप स्वयं जांच सकते हैं। आप पायेंगे कि आत्मिक जागरण के प्रत्येक काल में, बिना अपवाद के, मसीह के लहू पर अधिक जोर दिया जाता रहा है। जितने भी गीत आत्मिक जागृति के दौरान गाये जाते हैं, वे सब मसीह के लहू के उपर हैं....जो बिल्कुल.....मसीही सुसमाचार का दिल है, ''जिसके लहू पर परमेश्वर ने लोगों के विश्वास रखने से छुटकारा ठहराया है'' रोमियों ३:२५......मैं उन पुरूषों और महिलाओं के लिये आत्मिक जागरण की कोई आशा नहीं रखता अगर वे क्रूस पर बहे लहू को अस्वीकार करते हैं.....(रिवाईवल, उपरोक्त संदर्भ, पेज४७,४८,४९)
इम्मानुएल के लहू से एक सोता बहता है
एक सोता बहता है;
और उसमें डूबते पापी लोग,
रंग पाप का छूटता है;
रंग पाप का छूटता है।
(एक सोता बहता है विलियम कॉउपर, १७३१−१८००;
''आँरटनविले'' ''मैजेस्टक स्वीटनेस सिटस एनथ्रान्ड'')
जिस क्रूस पर यीशु मरा था
वह क्रूस अदभुत जब देखता हूं,
सांसारिक लाभ को टोटा सा,
और यश को निंदा जानता हूं।
देख, उसके सिर, हाथ, पावों के घाव,
यह कैसा दुख और कैसा प्यार;
अनूठा है यह प्रेम स्वभाव,
अनूप यह जग का तारणहार?
(''वह क्रूस अदभुत जब देखता हूं'' डॉ.आयजक वाटस, १६७४−१७४८)
मुझे भले ही गलत समझा जाये, किंतु मुझे यह कहना आवश्यक है कि इसी जगह पर पेंटीकोस्टल और करिश्माई मत के लोग गलत हो गये हैं। वे केवल पवित्र आत्मा पर ही ध्यान केंदित करते हैं। उनके लिये यीशु मसीह का क्रूस पर मरना इतना महत्वपूर्ण नहीं है। वे चंगाई के प्रति बड़े उत्साही रहते हैं, आत्माओं को निकालने में, चिन्ह और चमत्कार में लगे रहते हैं। चाहे वे मेरा कितना ही विरोध करें, क्योंकि यह बात तो सत्य है कि उन्होंने क्रूस पर हमारे बदले मसीह के बलिदान देने को मुख्य विषय नहीं बनाया है! पाप के बोध और मसीह के लहू से क्षमा मिलती है इस सत्य को मुख्य बिंदु नहीं बनाया है। साथ ही मैं यह भी अवश्य कहना चाहूंगा कि हम इवेंजलीकल्स ओर पुरातन पंथी भी कोई अच्छे लोग नहीं है! हम हमारे चर्चेस में मसीहियों को बाईबल के एक एक पद लेकर शिक्षित करने में लगे हैं। इसी जगह पर हम सब गलत हो गये हैं। मसीही सुसमाचार का प्रमुख केंद्र यीशु मसीह और उसका क्रूसीकरण है। मसीहत का सबसे बड़ा प्रचारक कहता है,
''क्योंकि मैं ने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह वरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूं।'' (२:२ कुरिन्थियों)
अगर हमारे पुरूष और महिलायें अगर यही कहते रहेंगे कि, ''और तब मैं यीशु के पास आया'' तो ऐसे मसीहियों की तो ईश्वर मदद करें! अगर आपको परमेश्वर के मेमने के लिये यही भर कहना है जो आपको बचाने के लिये क्रूस पर यातना सहता है और क्रूसित होता है, तब तो मेरे विचार से आप यहोवा विटनेस वालों के समान या मुस्लिमों के समान अंधे लोग हैं! वे, भी तो, यीशु के बारे में बस जरा सी बात करते हैं! लहू की चर्चा कहां गई? कहां गया वह अतुलनीय प्यार जो उसे स्वर्ग से खींच कर लाया और यहां जमीन पर आकर कोड़े खाये, थूका गया, और क्रूस पर कीलों से जड़ दिया गया?
कभी कभी मैं सोचता हूं मैंने आपको निराश किया है। शायद मैंने आपको यीशु को इतना प्रेम करना नहीं सिखाया कि आप उसके बारे में थोड़ी तो बात कर सकते। शायद मैं आपको यीशु को प्यार करने के बिंदु तक नहीं ला पाया। मैं आपको यह महसूस नहीं करवा पाया, कि आप यह कहने योग्य बन जाते
मैं तुझसे प्यार करता हूं क्योंकि तूने मुझसे पहले प्यार किया,
और कलवरी के उस क्रूस पर मेरी क्षमा को तू ने खरीद लिया;
मैं प्यार करता हूं तुझसे क्योंकि तूने कांटो का ताज पहना,
अगर मैंने कभी तुझसे प्यार किया, तो मेरे यीशु, यह क्षण अभी ही है।
(''माय जीजस, आई लव दी'' विलियम फेदरस्टोन,१८४२−१८७८)
सचमुच, मेरे अजीज मित्रों, चलिये हम अगले शनिवार ५ बजे तक उपवास और प्रार्थना करेंगे। चलिये हम पवित्र आत्मा के लिये प्रार्थना करेंगे कि वह हमें दो बातें प्रदान करे - हमें अपने पापों का अहसास हो जाये और वह पापियों को उसके कीमती लहू में शुद्ध करने के उपरांत यीशु के पास लाने से यीशु को महिमा प्रदान करें। आमीन!
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व धर्मशास्त्र पढ़ा गया मि ऐबेल प्रुद्योमे द्वारा: यूहन्ना १६:७−१४
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गीत गाया गया:
''एक सोता बहता है'' (विलियम कॉउपर, १७३१−१८००;
''आँरटनविले'' ''मैजेस्टक स्वीटनेस सिटस एनथ्रान्ड'')
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