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तब वे उपवास करेंगे (आत्मिक जागृति पर संदेश ४) द्वारा डॉ. आर.एल.हिमर्स रविवार की शाम, १० अगस्त, २०१४ को लॉस एंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में दिया गया संदेश ''परन्तु वे दिन आएंगे, जिन में दूल्हा उन से अलग किया जाएगा, तब वे उन दिनों में उपवास करेंगे।'' (लूका ५:३५) |
यीशु ने मत्ती को अपना चेला होने के लिये चुना। तब मत्ती ने अपने घर में बड़ा भोज किया। उस भोज में यीशु के साथ में ''कई चुंगी लेने वाले और पापियों की भीड़'' भी थी (मत्ती ९:१०) फरीसियों ने यीशु को इन लोगों के साथ भोज करते देखा तो पूछा कि वह क्यों ऐसे बुरे लोगों के साथ भोजन करता है। यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, ''क्योंकि मैं धर्मियों को नहीं परन्तु पापियों को बुलाने आया हूं'' (मत्ती ९:१३) उसका कहने का यह अर्थ था कि वह उनके लिये नहीं आया जो स्वयं को धर्मी समझते थे। वह तो उन्हें बुलाने आया था जिन्हें यह अहसास था कि वे पापी हैं।
यूहन्ना बपतिस्मादाता के चेले यीशु के साथ भोज में शामिल थे। उन्होंने उससे कहा, कि वे, और फरीसी तो अक्सर उपवास करते हैं − किंतु यीशु के चेले तो कभी उपवास नहीं करते। तब यीशु ने उन्हें उत्तर दिया,
''यीशु ने उन से कहा; क्या तुम बरातियों से जब तक दूल्हा उन के साथ रहे, उपवास करवा सकतेहो? परन्तु वे दिन आएंगे, जिन में दूल्हा उन से अलग किया जाएगा, तब वे उन दिनों में उपवास करेंगे।'' (लूका ५:३४, ३५)
यीशु का कहने का यह अर्थ था कि उसके चेलों के लिये अभी उपवास करना इतना उपयुक्त नहीं था − क्योंकि अभी यीशु स्वयं उनके साथ रहता था। उसने स्वयं को ''दूल्हा'' कहा और भोज की एक यहूदी विवाह से तुलना की। यीशु ने समझाया कि वह जल्द ही ''उन से अलग किया जाएगा'' (लूका ५:३५) उसका कहने का मतलब था कि वह स्वर्ग पर पुन: उठा लिया जायेगा − उस समय के पश्चात चेले उपवास करेंगे।
''परन्तु वे दिन आएंगे, जिन में दूल्हा उन से अलग किया जाएगा, तब वे उन दिनों में उपवास करेंगे।'' (लूका ५:३५)
आज, मैं चाहता हूं कि आप मसीही के इन शब्दों पर अपना ध्यान लगायें,
''तब वे उन दिनों में उपवास करेंगे।'' (लूका ५:३५)
डॉ.जॉन आर. राईस का कथन था,
जब (यीशु) हमसे अलग कर लिया जायेगा, तब लोगों के उपर क्लेश का समय, सताव और आत्मिक सामर्थ के लिये इंतजार करने के दिन आयेंगे तब वे उपवास करना आरंभ करेंगे।(ये शब्द ''तब वे उपवास करेंगे'') यह दर्शाते हैं कि पेंतुकुस्त के दिन आने के पहले तक चेले ठहरे रहे और उन्होंने अवश्य ही उपवास रखा होगा (प्रेरितों के कार्य १:१२−१४) पवित्र आत्मा का बल पाने के लिये, पौलुस ने उपवास करते हुये प्रार्थना की (प्रेरितों के कार्य ९:९,११,१७) बरनबास, पौलुस और अन्य प्रचारक व शिक्षक भी परमेश्वर की राह तकते हुये प्रार्थना व उपवास करते थे, प्रेरितों के कार्य १३:१−१३ (जॉन आर.राईस.डी.डी. किंग आँफ दि ज्यूस, सोर्ड आँफ दि लॉर्ड पब्लिशर्स, १९८० संस्करण, पेज १४४)
बाईबल पाखंड प्रगट करने वाले उपवास की भत्र्सना करती है, किंतु गंभीर रूप से किये गये उपवास की कभी निंदा नहीं करती। बाईबल स्पष्ट रूप में बताती है कि मसीह ने स्वयं जंगल में अपनी सेवकाई आरंभ (मत्ती ४:१,२) होने से पूर्व उपवास किया था। तीनों सिनोप्टक सुसमाचार (मत्ती, मरकुस, और लूका) यीशु के इन शब्दों को दर्ज करते हैं, ''तब वे उन दिनों में उपवास करेंगे।'' हम आज ''उन दिनों में ही रह रहे हैं'' − आज के वर्तमान दृश्य के लिये यीशु का यह निर्देश था − कि हम ''उन दिनों के'' समान दिनों में ही रह रहे हैं अत: उपवास रखना आवश्यक है। डॉ.जे.वर्नान मैगी का कथन था, ''उपवास का सही महत्व आज है उपवास इस विचार के साथ किया जाना चाहिये कि हम स्वयं को प्रभु के सामने समर्पित कर रहे हैं कि प्रभु हम आपकी दया और मदद चाहते हैं'' (जे वर्नान मैगी, टी.एच.डी., थू दि बाईबल, थॉमस नेल्सन पब्लिशर्स, १९८३, वॉल्यूम ४, पेज ५३ मत्ती ९:१५ पर लेख)
स्पर्जन ने कहा था, ''प्रार्थना और उपवास में बड़ी ताकत है'' (''दि सीक्रेट आँफ फेल्योर'') मैं जानता हूं यह सत्य है। पहली आत्मिक जागृति के समय मैंने देखा था, कि लोग खाना पीना भूल गये और वे, प्रार्थना में इतने मगन हो गये। तीन साल के समय में सैंकडो लोग परिवर्तित हो गये। तीसरी जागृति के समय मैंने देखा, कि प्रचारक को उपवास और प्रार्थना करनी पड़ी तब परमेश्वर ने रविवार की शाम की आराधना में जागृति भेजी। लगभग ५०० लोग परिवर्तित हुये, उस रात से लगाकर तीन महीनों के भीतर। मैं अपने स्वयं के अनुभव से जानता हूं जब स्पर्जन ने कहा था, ''उपवास और प्रार्थना में बड़ी ताकत है।'' डॉ.मार्टिन ल्यॉड ने इस विषय पर कड़ी आलोचना करते हुये कहा था कि, ''यह संपूर्ण विषय (उपवास) हमारे जीवनों से बाहर ही हो गया है, और हमारी विचार धारा से भी अलग हो गया है'' (स्टडीज इन दि सरमन आँन दि माउंट, इर्डमन, १९८७,पेज ३९) डॉ. जॉन.आर.राईस का कथन था कि, ''उपवास मानो कोई खोई हुई कला हो गई हो, जिसका अभ्यास अब लोग कम करते हैं, हमें इस बात पर अब ध्यान देना चाहिये.......कि उपवास का अर्थ क्या होता है'' (जॉन आर.राईस, डी.डी., प्रेयर−आँस्किंग एंड रिसिविंग, सोर्ड आँफ दि लॉर्ड पब्लिशर्स, १९७० संस्करण, पेज २१६ )
डॉ.राईस ने उपवास के बारे में कुछ बातें की।
१. उपवास यने परमेश्वर को पहले स्थान पर रखना। ऐसा समय हमारे जीवन में आता है जब हमें पूरी दुनियां से मुंह मोड कर केवल परमेश्वर की शरण में जाना चाहिये। यह समय उपवास और प्रार्थना का होता है।
२. उपवास अर्थात अपना संपूर्ण हृदय प्रार्थना में उंडेल देना और परमेश्वर की राह देखना चाहिये। इसलिये उपवास वास्तव में परमेश्वर को पहला स्थान देना कहलाता है, जब एक आदमी प्रार्थना करता है, और परमेश्वर की लालसा भोजन से भी बढकर करता है।
३. उपवास अर्थात प्रार्थना में लगातार लगे रहना। उपवास का अर्थ स्वयं को दंड देना नहीं है किंतु वास्तव में, जीवंत प्रार्थनायें करना है।
४. उपवास एक व्यक्ति की गंभीरता और ईमानदारी को प्रगट करता है कि परमेश्वर उसे उत्तर देगा। प्रार्थना तो कभी कभी उथली और हल्की हो जाती है। यह भी एक कारण है कि प्रार्थनाओं का जवाब नहीं मिलता है। किंतु उपवास यह दर्शाता है कि हम परमेश्वर से उत्तर पाने के लिये कितने गंभीर हैं (उपरोक्त, पेज २१८−२२०)
डॉ.राईस ने उन कई चीजों की सूची भी बनाई जिसे हम प्रार्थना और उपवास द्वारा परमेश्वर से मांग सकते हैं (उपरोक्त, पेज २२०−२२७)
१. संकट में सहायता उपवास और प्रार्थना से आती है। परेशानी का समय प्रार्थना करने के लिये सबसे अच्छा समय है। अगर परेशानी तकलीफदायक है तब तो उपवास रखने का और भी अच्छा समय है, जब हम प्रार्थना में भी लगे रह सकते हैं।
२. हमें कभी कभी उपवास रखना चाहिये और प्रार्थना में लगे रहकर यह जानना चाहिये कि क्या गलत है, हमारी कौन सी बातें परमेश्वर को नाराज करती हैं।
३. उपवास और प्रार्थना से पाप पर विजय प्राप्त होती है। पहली जागृति के समय मैंने देखा था कि, जवान लोग परमेश्वर को प्रसन्न करने की चेष्टा कर रहे थे, यहां तक कि वे एक दूसरे के सामने अपने पापों को भी मान रहे थे। आत्मिक जागृति में कभी कभी ऐसा होता है। जब हमने प्रार्थना और उपवास किया, तब पाप के उपर उन्हें महान विजय प्राप्त हुई।
४. उपवास और प्रार्थना दूसरों के लिये भी सहायक सिद्ध होता है। आप किसी एक को बचाने के लिये प्रार्थना करते हो, न कि केवल औपचारिक प्रार्थना करते हो कि, ''हे पिता, सचमुच आज किसी को बचा।'' किसी खोये हुये का नाम लेकर दुआ करना और उपवास रखना चाहिये। क्या कोई है जिसके लिये आप उपवास और प्रार्थना करेंगे? तो उस एक व्यक्ति के लिये तब तक उपवास और प्रार्थना कीजिये जब तक परमेश्वर, का जवाब न मिल जाये। एक प्राचीन गीत इसे बहुत अच्छी रीति से कहता हैं,
क्या तुमने तब तक दुआ की, जब तक उत्तर नहीं आ गया हो?
यह एक सच्चा वायदा है कि विश्वास से मांगो;
प्रार्थना के स्थल पर खुदा तेरा इंतजार करता है,
क्या जाके उस से वहां मिले, क्या वहां ठहर कर दुआ की?
क्या तुमने तब तक दुआ की जब तक जवाब न मिला?
क्या मसीहा के नाम में दुआ मांगी?
क्या तब तक दुआ की जब तक खुदा से जवाब न मिला;
क्या तब तक दुआ की, जब तक जवाब न आया?
(''क्या ठहर कर दुआ की तुमने?'' द्वारा रेव्ह. विलियम सी.फुले, १८७५−१९४९; पास्टर द्वारा बदला गया)
जब सन १९६० में, मैं बचाया गया, मैं जॉन वेस्ली का अखबार लगभग रोज पढ़ता था। यह प्रेरितों के काम पुस्तक पढ़ने के समान था। यह ''आत्मिक जागृति'' के बारे में बताता था। मैं मात्र एक लडका ही था, लगभग २२ साल का। मैं नहीं जानता था कि लगभग सौ वर्षो से कोई आत्मिक जागृति हुई ही नहीं। मैं सोचता था, ''अगर जॉन वेस्ली के दिनों में आत्मिक जागरण हो सकता था, तो परमेश्वर इसे आज भी कर सकता है।'' मेरी अज्ञानता ने मुझे संशय करने से बचाया कि परमेश्वर मेरे चायनीज चर्च में भी आत्मिक जागरण भेज सकता है। मैं उपवास करता था और परमेश्वर से प्रार्थना करता था कि चर्च में आत्मिक जागृति आए। प्रति बुधवार प्रार्थना सभा में, पूरी मंडली के सामने मैं यह दुआ करता था। एक बार मर्फी लूम ने मुझे भोज के पहले खाने पर आशीष मांगने को कहा। मैं खड़ा हो गया और दस मिनिट तक आत्मिक जागृति मिले, यही दुआ में मांगता रहा! मैं भोजन के लिये दुआ करे बगैर ही बैठ गया! इस तरह आत्मिक जागृति के लिये दुआ मांग मांग कर मैंने अपना मजाक बना लिया था! कुछ लोग सहानुभूतिपूर्वक कहते थे, ''अरे, अभी यह नया लड़का ही है, थोड़े दिनों में उबर जायेगा! किंतु एक सुबह, जब मैं कैंप में था, मैं सो ही रहा था, कि प्रभु ने मुझे उत्तर दे दिया! मैं उस शक्तिशाली जागरण को कभी नहीं भुला सकूंगा जब लगभग सौ जवान चीनी लड़के चर्च में आने लगे और यीशु को ग्रहण किया।
सालों बीत गये मैं भूल गया कि मैं कैसे दुआ किया करता था। किंतु एक दिन डॉ.लुम ने मुझसे कहा, ''बॉब, क्या तुम्हे याद है कि १९६० के प्रारंभिक दिनों में तुम आत्मिक जागरण के लिये कितनी प्रार्थना किया करते थे?'' तब मुझे याद आया। डॉ. लुम ने कहा, ''बॉब, जो तुमने मांगा, तुम्हे मिला'' जब मुझे वह समय याद आया तब मेरी आंखे भर गई कि मैंने कैसी लौ लगाकर प्रार्थनायें की थी'' ताकि हमारे चर्च में परमेश्वर
एक ओर समय की बात है, जब मैं सेमनरी कर रहा था तो मेरे साथ के लड़के कमरे में प्रार्थना कर रहे थे कि कुछ अविश्वासी प्राध्यापक को या तो परिवर्तित कर दे या उन्हें कॉलेज से हटा दे। हममें से कई लड़के उपवास और प्रार्थना कर रहे थे कि कुछ ऐसा हो जाये। जब आखिरी बार वहां प्रार्थना सभा हुई, तो मुझे याद आता है लगभग १०० से अधिक छात्र कमरे में एवं हॉल में, खिडकी के बाहर जमा थे। लगभग ३५ साल गुजर गये हैं, और मैं भी भूल गया कि कैसे उपवास रखकर प्रार्थना करते थे। तब एक दिन हमें खबर मिली कि हमारा आखिरी उदारवादी प्राध्यापक भी कॉलेज से चला गया − और अब आने वाला हर प्राध्यापक बाईबल पर विश्वास करता है, और उनमें से तो कई सुधारवादी भी हैं! वे जवान लड़के जो हर सप्ताह मेरे कमरे में प्रार्थना करने जमा होते थे, मन लगाकर ठहरकर, प्रार्थनायें किया करते थे! और प्रभु ने हमें हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया जो हमारी उम्मीद से कहीं अधिक था!
क्या तुमने तब तक दुआ की जब तक जवाब न मिला?
क्या मसीहा के नाम में दुआ मांगी?
क्या तब तक दुआ की जब तक खुदा से जवाब न मिला;
क्या तब तक दुआ की, जब तक जवाब न आया?
मैंने अपनी पत्नी के लिये लंबे समय तक इंतजार किया। मैं अब चालीस साल का हो गया था। मुझे पास्टर की पत्नी बनने के लिये कोई स्त्री नहीं मिल रही थी। तब मैंने पत्नी के लिये प्रार्थना की। और हां, मैंने उपवास भी रखा और प्रार्थना की! तब एक रात मैंने इलियाना का चेहरा देखा। प्रभु ने कहा, ''यह वह स्त्री है जिसके लिये तुमने प्रार्थना की थी! कुछ लोगों ने कहा, ''तुम उस जवान लड़की से कैसे शादी करोगे, क्या तुम करोगे?'' परन्तु मैंने शादी की। और वह एक अच्छी पत्नी सिद्ध हुई − बिल्कुल उपयुक्त! एक पास्टर पत्नी के रूप में! मैंने प्रार्थना की थी − और परमेश्वर ने मुझे उत्तर दिया।
मैं तीन बातें और बताउंगा। किसी ने नहीं सोचा होगा कि मेरी मां बचायी जायेगी। मैं खुद भी नहीं सोचता था कि वह नया जन्म प्राप्त करेगी। मैंने उसके लिये प्रार्थना करना शुरू की, यद्यपि यह व्यर्थ लग रहा था। किंतु फिर भी मैं प्रार्थना करता रहा। मैं मेरी मां का जीवन बदलने के लिये उपवास और प्रार्थना किया करता था। अब वह ८० वर्ष की होने जा रही थी, और बिल्कुल भी आशा नहीं थी कि उसका नया जन्म हो सकता है। मैं और इलियाना, न्यू यार्क में कुछ विशेष सभाओं में प्रचार कर रहे थे। मुझे अच्छी रीति से याद है मैं कहां था। मैं उस रात सभा के पहले उपवास और प्रार्थना में था। एक ऐसा समय आया, कि मैंने मां के बचाये जाने के लिये भी प्रार्थना की। अचानक प्रभु ने मुझसे कहा। यह सुनाई देने वाली आवाज नहीं थी किंतु मुझे बिल्कुल ऐसा लगा। प्रभु ने मुझसे कहा, ''तुम्हारी मां अब बचायी जायेगी।'' मेरे चेहरे पर आंसू गिर रहे थे, मैंने उसी समय लॉस एंजीलिस में डॉ.कैगन को फोन किया। मैंने कहा, ''डॉक्टर, क्या तुम मेरी मां के पास जाओगे और उसे मसीह के पास लाने में मदद करोगे?'' उन्होंने कहा, नहीं, मैं ऐसा नहीं कर पाउंगा!'' उन्होंने ऐसा इसलिये कहा - क्योंकि इसके पहले मां ने उनके साथ ऐसी बातें करने पर बड़ा बुरा व्यवहार किया था। मैंने बोलना जारी रखा और कहा, ''डॉ.चले जाओ, प्रभु ने अभी मुझे कहा है कि वह बचायी जायेगी।'' संक्षिप्त में कहता हूं कि, वह मेरी मां को मिलने गये और बड़ी आसानी से उसे मसीह के पास ले आये! मेरे लड़के बता सकते हैं कि कैसे उनका जीवन पूर्ण रूप से बदल गया! वह प्रति रात चर्च में आती जब मैं प्रचार करता, और जीवन के अंत तक आती रही! मैंने बड़ी लौ लगाकर मेरी मां के लिये दुआ की थी! प्रभु के अनुग्रह से, मैंने तब तक दुआ की जब तक मुझे उत्तर न मिला!
एक और घटना है। वैसे, ये तीनों घटनाऐं उपवास और प्रार्थना से जुड़ी हुई है। हां, उपवास इन सब में सबसे महत्व की बात थी! जब मेरी पत्नी गर्भवती थी, हमें एक बहुत खराब डॉक्टर का अनुभव हुआ। बाद में उसका डॉक्टरी करने का लायसेंस भी छीन लिया गया था। हम बच्चे का अल्ट्रासाउंड करवाने उसके पास गये थे। जब अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट आई, उसने हमें बैठने को कहा और बताया कि बच्चा बुरी तरह से विकृत है। उसने कहा कि वह एक अल्ट्रासाउंड और करेगा तब हमें सोमवार को अंतिम जवाब देगा। किंतु, चूंकि मेरी आदत थी, मैंने उपवास किया और प्रार्थना की कि यह बात सच न हो। उस रात प्रभु मुझे स्वप्न में आये। यह बिल्कुल सत्य बात है, मेरी पत्नी से पूछिये! प्रभु ने मुझे स्वप्न में कहा, ''राबर्ट, तुम्हारी पत्नी जुड़वां बच्चों को जन्म देगी − इसी चीज ने डॉक्टर को शक में डाल दिया था।'' जब मैं अगली सुबह उठा, तो इलियाना से कहा, ''चिंता मत करना। तुम्हे जुड़वा बच्चे होंगे।'' सोमवार को हम वापिस गये, और डॉक्टर ने हमें बैठाया और कहने लगा। तभी मैंने कहा, ''मैं बैठूंगा नहीं। मेरी पत्नी को जुड़वां बच्चे होने वाले हैं।'' उसने पूछा, ''आपको कैसे मालूम?'' मैंने जवाब दिया, ''प्रभु ने पिछले शुक्रवार की रात मुझे स्वप्न में बताया।'' तो इस तरह हमें दो लड़के दिये गये, जो स्वस्थ और संपूर्ण हैं, हमारी प्रार्थनाओं का जवाब है।
अब एक अंतिम घटना और आप लोगों को बताउंगा। ऐसे तो कई सारी घटनायें हैं, किंतु अभी इसी घटना को बताउंगा। एक बडी बाईबल कॉन्फ्रेंस का अंतिम दिन था। चर्च पूरा भरा हुआ था और संसार के कुछ जाने−माने प्रचारक भी वहां थे। पास्टर ने उस रविवार की रात का अंतिम संदेश मुझे देने को कहा। मेरे पास एक साधारण सा सुसमाचार संदेश ही देने को था। उस सुबह मैंने एक जवान लड़के से कहा था कि मुझे उस रात वहां क्या प्रचार करना चाहिये। उसने उत्तर दिया, ''जो भी प्रचार करो, मगर सुसमाचार संदेश मत प्रचार करना। हमारा पास्टर प्रति रविवार वही एक ही एक प्रचार करता है, और इसीलिये जितने भी लोग रात में आयेंगे वे सब पहले ही नया जन्म पाये हुये हैं। कुछ भी प्रचार करना, पर आज रात उद्धार का संदेश मत सुनाना!'' मैं अपनी मोटेल में वापस गया और इलियाना से कहा कि वह लड़को को लेकर बाहर चली जाये मैं दोपहर अकेले बिताना चाहता था। मेरे पास बस एक साधारण सुसमाचार संदेश था। मैं इधर उधर घूमने लगा। मुझे पसीने छूट रहे थे। शैतान मुझे बोल रहा था कि इतने प्रसिद्ध प्रचारकों के सामने मैं कितना मूर्ख साबित हूंगा। मैं वापस इधर उधर घूमने लगा। कहने की जरूरत नहीं है मैं उपवास कर रहा था! मैंने एक और दूसरा संदेश बनाने की कोशिश की, किंतु कुछ नहीं कर पाया। अब इतना स्पष्ट हो गया था कि मुझे वही साधारण सा छोटा सुसमाचारीय संदेश ही बोलना होगा। तब मैंने प्रार्थना की कि प्रभु आज दो या तीन लोग ''बचाये जायें।'' मैंने यह भी कहा, ''प्रभु इतने बड़े प्रचारकों के सामने मुझे नीचा न देखना पड़े!'' तब प्रभु ने कहा, ''क्या तुम प्रचारकों के लिये प्रचार कर रहे हो, या मेरे लिये?'' तब मैंने उत्तर दिया, ''प्रभु मैं आपके लिये प्रचार करूंगा, उनके लिये नहीं। मैं परवाह नहीं करूंगा अगर वे मुझे मूर्ख ही क्यों न समझें, किंतु मैं केवल आपके लिया प्रचार करूंगा।'' उस समय तक इलियाना और लड़के वापस आ गये थे। मैं अभी चर्च जाने के पहले तक चिंतामग्न था। जब गीत गाया जा रहा था मेरे पसीने छूट रहे थे। तब पास्टर ने मेरा परिचय दिया, और अचानक मैं इतना शांत हो गया जैसे यह मेरा अपना चर्च हो! मैंने अपने में मौजूद आत्मा की सामर्थ से प्रचार किया।
उस रात ७५ लोग आगे आये, पास्टर का बेटा खुद भी बचाया गया − जो एक भटका हुआ लड़का था और प्रचारक बनना चाहता था − एक बूढा व्यक्ति बचाया गया, जो चर्च में आगे तक घुटनों के सहारे, रोते हुये चला आया था, ''कि मैं भटका हुआ हूं! मैं भटका हुआ हूं! मैं खोया हुआ हूं!'' तीन किशोर लड़कियां जो गाना गाने के लिये उठी थी। वे फूट फूटकर रो रही थीं और उन्होंने स्वीकार किया कि, वे भी भटक गई थीं। उस रात आराधना ११ बजे तक चली। कोई भी नहीं हिला। लोगों को लग रहा था ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। डॉ.ईयान पैसले के बेटे ने मेरी पत्नी और लड़कों से कहा, ''मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा।'' वह विश्व प्रसिद्ध प्रचारक का बेटा था। उस चर्च में उस रात आत्मिक जागरण आया था। ५०० से अधिक लोग बचाये गये और कुछ ही सप्ताह में चर्च आने लगे।
शैतान ने उस जवान लड़के के द्वारा संदेश दिया था, ''जो भी प्रचार करो, पर सुसमाचारीय संदेश मत सुनाना'' किंतु परमेश्वर ने शैतान की सलाह को खारिज कर दिया और उस दोपहर की मेरी प्रार्थना का उत्तर देकर आत्मिक जागरण भेजा, चूंकि मैंने उपवास रखकर प्रार्थना में परमेश्वर से उत्तर चाहा था कि मैं क्या प्रचार करूं।
प्यारे मित्रों, हम आत्मिक जागृति ला सकते हैं। यह संभव है। जो हम सालों में नहीं कर सकते, परमेश्वर वह मिनटों में कर सकता है! इस संदेश की हस्तलिपि की प्रति आज रात अपने घर ले जाइये! इसे अगले सप्ताह तक कई बार पढे़। इससे आपका विश्वास बढे़गा! अगले शनिवार को हमारे साथ उपवास और प्रार्थना में शामिल होइये। प्रार्थना और उपवास कीजिये कि परमेश्वर उतर कर हमारे बीच में मौजूद रहे और उसके नाम को हम और उंचा उठायें!
यीशु आपके पापों का दंड चुकाने के लिये क्रूस पर मरा! उसने आपके सारे पापों को धोने के लिये क्रूस पर रक्त बहाया! वह मरे हुओं में से जी उठा ताकि आपको जीवन मिले! यीशु पर विश्वास लाइये और वह आपको बचायेगा− हर समय के लिये अनंत काल तक!आमीन!
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व धर्मशास्त्र पढ़ा गया ऐबेल प्रुधोमे द्वारा: मत्ती ९:१०−१५
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गीत गाया:
''क्या ठहर कर दुआ की तुमने?'' (द्वारा रेव्ह.विलियमसी.फुले, १८७५−१९४९;
पास्टर द्वारा बदला गया)
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