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इस वर्तमान समय में प्रार्थना व उपवास द्वारा छुटकारा (आत्मिक जागृति पर संदेश ३) द्वारा डॉआरएलहिमर्स रविवार की शाम, ३ अगस्त, २०१४ को लॉस एंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में प्रचार किया गया संदेश ''जब वह घर में आया, तो उसके चेलों ने एकान्त में उस से पूछा, हम उसे क्यों न निकाल सके? उस ने उन से कहा, कि यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से निकल नहीं सकती'' (मरकुस ९:२८,२९) |
अगर आप इस संदेश को पढ़ रहे हैं, या हमारी वेबसाईट पर पढ़ रहे हैं या, यू टयूब पर देख रहे हैं, तो मेरी विनती है कि आप इसे पढ़ना बंद मत कीजिये जब मैं इस पद के अंतिम दो शब्दों पर अपना वक्तव्य देता हूं, ये दो शब्द हैं ''और उपवास''। यद्यपि मुझसे भी चूक हो सकती है किंतु इन दो शब्दों का यहां बहुत महत्व है। पहला कारण इनके बिना पद का इतना महत्व नहीं रह जाता है। पहले भी जब चेलों ने दुष्ट आत्मायें निकाली थी तो जाहिर था कि उन्होंने प्रार्थना की होगी। इसलिये प्रार्थना के अलावा कुछ और शर्त भी जोड़ी जाना चाहिये − और यह दो शब्द बहुत सी प्राचीन हस्तलिपियों में हैं, ''और उपवास''। पहले जब चेलों ने दुष्ट आत्मायें निकाली तब वे दुर्बल आत्मायें थीं। किंतु इस बार उनका सामना एक ताकतवर दुष्ट आत्मा से था जो अकेले प्रार्थना से नहीं निकल सकती थी। इसीलिये यीशु ने कहा था, ''यह जाति किसी और उपाय से निकल नहीं सकती केवल प्रार्थना व उपवास के अलावा'' (मरकुस ९:२९) और दूसरा कारण मैं आपको देना चाहता हूं कि क्यों ये दोनों शब्द इस पद में रहने देने थे। मैं अपने पूरे मन व विचारों से यह विश्वास रखता हूं! कृपया इसे पढ़ना या देखना बंद मत कीजिये!
मेरी पत्नी और मैं कई वर्ष पूर्व सीनै पर्वत चढ़े। जब हम पहाड़ से नीचे उतरे, तब हमें सेंट कैथरीन के मठ ले जाया गया। यह सीनै पर्वत की तलहटी में बसा है। यह एक अंधेरी भूतहा पूर्वी प्राचीन आँर्थोडॉक्स चर्च की इमारत, जो ६टवीं शताब्दी में निर्मित की गई थी। एक कोने में छ: फीट उंचा मानव हडिडयों का ढेर लगा हुआ था − यह उन भिक्षुकों की हडिडयां थीं जो वहां सदियों से रहते आये थे। इसके सामने वाले दरवाजे पर एक भिक्षुक का संपूर्ण ढांचा जंजीरों में जकड़ा हुआ खडा था। इस मद्धिम रोशनी वाले चर्च में, मोमबत्ती टिमटिमा रही थी, और आँस्ट्रच के अंडे छत से लटक रहे थे। इसे आप शैतानी जगह समझ सकते हैं जिसे आप टी.वी.पर एक वीडियो में ''रेडर्स आँफ दि लॉस्ट आर्क'' के दृश्य के समान पायेंगे। इस अंधेरी भूतहा इमारत के एक शेल्फ पर कई भाषाओं में, एक संदेश लिखा हुआ था। इसका अंग्रेजी संस्करण कहता है कि यहां, नये नियम की सिनैटीकस हस्तलिपि रखी हुई थी, किंतु ''टिसकेंडोर्फ ने इसे चुरा लिया और बिटिश को बेच दिया''। इस हस्तलिपि में से जो इस अंधेरी व शैतानी दिखने वाली जगह से चुराई गई थी, ''और उपवास'' ये दो शब्द प्रगट नहीं हुये। यह हस्तलिपि किसी बिटिश ने खरीद ली। मेरी पत्नी और मैंने यह हस्तलिपि हमारी लंदन की यात्रा के दौरान, बिटिश म्यूजियम में देखी। दो अंग्रेज, उदारवादी चर्च के धर्मपुरोहित ब्रुक वेस्टकॉट (१८२५−१९०१) और फैंटन हॉर्ट (१८२८−१८९२) ने टिसकेंडोर्फ से सिनैटीकस हस्तलिपि खरीदी और इसे वेस्टकॉट व हॉर्ट के यूनानी नये नियम के (१८८१) स्त्रोत के रूप में इस्तेमान किया। यह सेंट कैथरीन से ली गई हस्तलिपि का यूनानी अनुवाद था। जितने भी आधुनिक अनुवाद हुये वे वेस्टकॉट और होर्ट के यूनानी अनुवाद से लिये गये हैं। तो, जब आप कोई आधुनिक अनुवाद पढ़ते हो, तो इसका अर्थ है कि आप सेंट कैथरीन मठ में एक समय पाई जाने वाली हस्तलिपि पढ़ रहे हो जो टिसकेंडोर्फ ने उस डरावनी शैतानी जगह से चुरा ली थी। मुझे अब पक्का निश्चय हो गया है, कि कोई प्राचीन भिक्षुक, जो रहस्यवाद से प्रभावित था उसने ''और उपवास'' ये दो शब्द सिनैटीकस हस्तलिपि की नकल करते समय हटा दिये। इसके आगे, मैं यह भी मानता हूं कि शैतान ने यह हस्तलिपि आधुनिक काल तक संभाले रहने दी − और अराजकता वाले काल में होने वाले तमाम अनुवादों के अंदर धीमें से इसका रूप बदल दिया। आज इवेंजलीकल्स जो आधुनिक अनुवाद पढ़ रहे हैं वे ''शैतान की बाईबल'' से लिये गये हैं।
निवेदन है कि इसको समझने में गलती मत कीजिये! शैतान चाहता ही था कि ''और उपवास'' शब्द निकाल दिये जायें। क्यों? साधारण सी बात है! शैतान इन दो शब्दों को इसलिये निकलवाना चाहता था क्योंकि ''यह जाति, बिना प्रार्थना और उपवास के, और किसी उपाय से नहीं निकल सकती''!!! साधारण सी बात है! डॉ.मार्टिन ल्यॉड−जोंस ने कहा था, ''शैतान सदैव इंतजार करता रहता है कि हमें संशय में डाले और उलझा दे। वह परमेश्वर के कार्य को नष्ट करना चाहता है'' (स्पिरिचुअल ब्लेसिंग, किंग्सवे पब्लिकेशन्स, १९९९, पेज १५८)
क्या आपको आश्चर्य नहीं होता कि १८५९ से अमेरिका में कोई राष्ट्रीय आत्मिक जागृति नहीं देखी गई? आश्चर्य करना बंद कीजिये! जब से वेस्टकॉट और हॉर्ट की बाईबल प्रसिद्ध होती गई लोगों ने उपवास रखना बंद कर दिया। यह मुख्य कारणों में से एक कारण है जिसकी वजह से १५४ सालों तक देश में आत्मिक जागृति नहीं देखी गई! इसके पहले हर दस सालों में परमेश्वर ने एक एक जागृति की लहर भेजी है! जरा सोचिये १८वीं सदी के सभी प्रचारक, पहली आत्मिक जागृति के समय उपवास व प्रार्थना करते थे, जो इन शब्दों से प्रेरित थी, ''यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के और किसी उपाय से नहीं निकल सकती।'' मत्ती में इसके समानांतर पद पर व्याख्या करते हुये, महान इवेंजलिस्ट जॉन वेस्ली ने कहा था − ''कितनी अच्छी गवाही हमें प्रभावशाली (असरकारक) रूप में देखने को मिलती है जब उपवास के साथ गंभीर प्रार्थना भी मिली होती है।'' (जॉन वेस्ली, एमए एक्सप्लेनेटरी नोटस आँन दि न्यू टेस्टामेंट, बेकर बुक हाउस, १९८३संस्करण, वॉल्यूम१, मत्ती १७:२१ पर व्याख्या)। जॉर्ज वाईटफील्ड, हॉवेल हैरिस, जोनाथन एडवर्ड, और महान जागृति के समय के सभी प्रचारक जॉन वेस्ली के साथ पूरी तरह सहमत थे कि उपवास में लौलीन होकर की गई प्रार्थना बहुत असरदायक होती है! इन के पास उस समय तक वेस्टकॉट और होर्ट की कटी फटी बाईबल नहीं थी!
अब दूसरी आत्मिक जागृति के बारे में सोचिये। उस समय के महान प्रचारक क्या कर रहे थे? तिमोथी डवाईट उपवास करते थे। एशाहेल नैटलटन उपवास करते थे। रॉबर्ट मुरे एम.चेयने उपवास रखते थे। जॉन एंजेल जेम्स उपवास रखते थे। उन्होंने बड़ी आत्मिक जागृतियां देखी, और उन्होंने इसके लिये उपवास व प्रार्थनायें की थी। किंतु तब उनके पास वेस्टकॉट और होर्ट की कटी फटी बाईबल नहीं थी!
और, जैसा कि मैंने कहा, तीसरी जागृति जो (१८५७−५९) में हुई तब तक शैतान की बाईबल आ चुकी थी। लोग उपवास रखना बंद कर चुके थे तभी तो राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को युद्ध के समय एक दिन उपवास व प्रार्थना का अलग से घोषित करना पडा! १८५९ की आत्मिक जागृति एक प्रार्थना सभा में आई, जहां पुरूष उपवास व प्रार्थना दोनों साथ साथ कर रहे थे। इस तीसरी आत्मिक जागृति का सबसे बड़ा प्रचारक स्पर्जन था। स्पर्जन अक्सर उपवास किया करता था, और अक्सर उपवास और प्रार्थना के समय प्रचार किया करता था! १९०५ की वेल्श आत्मिक जागृति भी इसके पहले हो गई थी जब वेल्श के प्रचारक पुरानी किंग जेम्स बाईबल का प्रयोग करते थे। वेल्श के लोग प्रार्थना और उपवास रखने के लिये प्रसिद्ध थे। लेविस के टापू, जो स्कॉटलैंड के तट से दूर हैं, वही १९४९ में आत्मिक जागृति आई, वहां दो बूढी अंधी महिलाओं ने तब तक दुआयें मांगी जब तक परमेश्वर ने आत्मिक जागृति नहीं भेजी!
चीन के बारे में क्या विचार है? चीन के सभी पुराने मसीही संरक्षकों ने उपवास और प्रार्थना की। उन्हें महान पथप्रदर्शक मिशनरी जेम्स हडसन टेलर ने (१८३२−१९०५) प्रार्थना करना सिखाया। महान सामर्थवान इवेंजलिस्ट जॉन सुंग (१९०१−१९४४) ने कम्यूनिस्टों के आने के पहले बड़ी बड़ी आत्मिक जागृतियां देखी थी। डॉ सुंग लगातार उपवास और प्रार्थना करते रहते थे। चीनी संरक्षक वांग मिंगदाओ ने (१९००−१९९१) सुसमाचार प्रचार करने के कारण बाईस वर्ष जेल में बिताये। वह भी लगातार प्रार्थना और उपवास किया करते थे। डॉ जेम्स हडसन टेलर ३, जो हडसन टेलर के परपोते थे, उन्होंने वांग मिंग दाओ के लिये कहा, ''किसी बीसवी सदी के चीनी मसीही अगुवे ने इतने सुस्पष्ट तरीके से सुसमाचार को यीशु मसीह से नहीं जोड़ा होगा'' (डेविड एकमेन, जीजस इन बींजिग, रेगनेरी पब्लिशिंग कंपनी, २००६ संस्करण, पेज ५६)। एलन युआन (१९१४−२००५) ने भी २० साल जेल में बिताये कारण था सुसमाचार प्रचार करना। वह भी लगातार उपवास व प्रार्थना में लीन रहते थे। सेम्युअल लैंब (१९२४−२०१३) मोजेस जाई (१९१८३−२०११) और अन्य प्रचारकों ने जेल में उपवास और प्रार्थनायें की। परमेश्वर ने उनकी सुनी और चीन में ''सांस्कृतिक जागृति'' की भयानकता के बावजूद मसीहत को जिंदा रखा। तब १९८०, में परमेश्वर ने ऐसी विशाल आत्मिक जागृति को भेजा जो आज तक जारी है! अमेरिकन बाईबल सोसायटी अनुमान लगाती है कि प्रत्येक घंटे में अर्थात २४ घंटे पूरे दिन भर, चीन में ७०० नये जन्म होते हैं − १७०००० मन परिवर्तन प्रतिदिन हो रहे हैं! चीन के पादरियों के हाथ में उस समय वेस्टकॉट और हार्ट की कटी फटी बाईबल नहीं पहुंची थी। वे अभी भी नियमित उपवास और प्रार्थना करते हैं और परम पिता परमेश्वर उन्हें उत्तर देता है। निवेदन है कि ''क्रूस'' को देखिये इसे अमेजोन से खरीदने के लिये क्लिक कीजिये यह आत्मिक जागृति पर बनी चीनी फिल्म थी, और आपको महसूस होगा कि आपने मानो प्रेरितों के कार्य का सजीव वर्णन देख लिया हो! लगभग २३ वर्षो से डॉ.तिमोथी लिन मेरे बूढे चीनी पास्टर थे। उनके पास साठ सालों से भी पुरानी चीनी बाईबल थी जिसे वह अपने साथ रखते थे। यह बाईबल वेस्टकॉट और होर्ट से प्रभावित बाईबल नहीं थी। इसमें से कुछ शब्द अलग नहीं किये गये थे। अपनी पूरी सेवकाई के दौरान वह उपवास और प्रार्थना करते रहे। मैंने उनके चर्च को आत्मिक जागृति के प्रभाव में फलते फूलते हुये देखा, जिसके कारण कुछ ही महिनों में कई जवान उनके चर्च में सम्मिलित होने लगे। परमेश्वर की आशीषें पाने के लिये डॉ लिन उपवास और प्रार्थना में विश्वास रखते थे। किंतु मुझे यह कहते हुये दुख भी है कि जो उनका अनुसरण करते थे वे अक्सर ''पश्चिमी सोच'' और वेस्कॉट और होर्ट की कटी फटी बाईबल से प्रभावित हो जाया करते थे।
मैं समझ रहा हूं कि कुछ लोग सोच रहे होंगे कि मैं आधुनिक अनुवादों को निम्न ठहराने पर तुला हुआ हूं। किंतु मेरा प्रश्न भी वैसा ही है जैसा चेलों ने मसीह से पूछा था, ''हम उसे क्यों नहीं निकाल सके?'' (मरकुस ९:२८) स्पर्जन पुनरीक्षित संस्करण में, इस पद में से ''उपवास'' शब्द मिटाये जाने के बारे में जानते थे जब उन्होंने सन १८८६ में ''दि सीक्रेट आँफ फेल्योर'' एक संदेश दिया। (दि मेट्रापोलिटन टैबरनेकल पुलपिट वॉल्यूम ४३, पिलगिम पब्लिकेशंस, संस्करण १९७६, पेज ९७−१०६) किंतु उन्होंने इसके उपर संदेश में कहा, ''प्रार्थना और उपवास में बड़ी ताकत है........इस प्रकार का शैतान (दुष्टआत्मा) होती है जो साधारण प्रार्थना से बाहर नहीं निकलती, इसके निकालने की अपील में कुछ इतना लौलीन होकर बात कहना चाहिये। कि मांगने का असर बढ़ जाये इसलिये ''प्रार्थना और उपवास'' जरूरी है (उक्त संदर्भित, पेज १०५)
स्पर्जन ने भी चेलों द्वारा पूछे जाने वाला प्रश्न दोहराया ''हम उसे क्यों नहीं निकाल सके?'' उनका यह प्रश्न चर्चेस की कमजोर पड़ती दशा से था। स्पर्जन ने कहा,
''हम उसे क्यों नहीं निकाल सके?'' परमेश्वर का चर्च यह कहने पाये.......हम जब यहां प्रचार करते हैं तो हजारों लोग क्यों नहीं सुसमाचार सुनने आते हैं? हमारे शहर की गलियों में तो नाच गाना और संगीत चल रहा है: परमेश्वर के चर्च ने यह नाच गाना क्यों नहीं समाप्त करवा दिया? एक ऐसा पाप फैला हुआ है − ऐसा पाप जिसके उपर बोलने की हमारी हिम्मत नहीं होती, यह इतना घृणित है; हम इस पाप को क्यों नहीं दूर कर पाये?.......क्यों नहीं हम इतनी घृणित ताकतों को निकाल पाये?.......और वे भी, जो सालों से प्रचार सुनने आते हैं किंतु बिल्कुल वैसे के वैसे ही हैं। कौन से शैतान (दुष्टआत्मा) के वश में हैं ये लोग? हम क्यों नहीं इस शैतान को निकाल पाये? (संदर्भित, पेज १०१)
स्पर्जन का उत्तर मसीह के उत्तर के समान था, ''इस प्रकार की दुष्टआत्मायें प्रार्थना और उपवास के बगैर निकल नहीं सकती'' (मरकुस ९:२९)
डॉ ल्यॉड−जोस भी इसी प्रश्न पर बोले, ''हम क्यों उसे नहीं निकाल सके?'' और मसीह के उत्तर पर भी उन्होंने संदेश दिया, ''यह जाति प्रार्थना और उपवास के अतिरिक्त और किसी उपाय से नहीं निकल सकती।'' ''डॉक्टर'' ने कहा था कि हमें यह पता करना है कि ''यह किस प्रकार'' की दुष्टआत्मा आज व्याप्त है? उनका कथन था,
''यह किस प्रकार की'' दुष्ट आत्मा है? आज कौन सी समस्या से हम जूझ रहे हैं? मैं इस समस्या को और बढता हुआ महसूस करता हूं, जब हम सच में इस का वास्तविक परीक्षण करते हैं, हम देखते हैं यह समस्या तो बडी गहरी और हताश करने वाली है यह तो लंबे समय पूर्व मसीही कलीसियाओं की स्थति से भी कहीं अधिक बढकर निराश करने वाली है (मार्टिन ल्यॉड−जोंस, एम.डी. रिवाइवल क्रासवे बुक्स, १९९७, पेज १५)
उन्होंने कहा पूर्व में प्रचलित तरीकों से ''इस प्रकारकी'' वर्तमान में व्याप्त दुष्टआत्मा को नहीं निकाला जा सकता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ''नये तरीके'' भी इस समस्या को हल नहीं करते हैं। नये अनुवाद समस्या का हल नहीं है। सुसमाचार के पर्चे और बडे बडे कुसेड भी खोये हुये लोगों को चर्च लाने में असफल रहे हैं। उन्होंने कहा, ''आपको यह अहसास होना आवश्यक है कि आप का सामना ऐसी दुष्ट आत्माओं से है जो आपके तरीकों से कहीं अधिक बढ़कर प्रभावशाली है'' (उक्त संदर्भित, पेज १९)
मैं मानता हूं उनकी कही हुई सब बातें सत्य व उचित है। खोये हुये लोग स्वयं के लिये चर्च की आवश्यकता को महसूस ही नहीं करते हैं। वे तो स्वयं को पापी भी नहीं मानते और न ही क्षमा किये जाने की कोई आवश्यकता वे समझते हैं। आज की परिस्थति में चर्च ऐसी कौनसी चीज दे सकता है जो खोये मनुष्य को ''उस आवश्यकता'' का अहसास करवाये? इस विषय में कई सालों तक सोचने के पश्चात मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि अकेलापन वह मूल ''आवश्यकता है जो महसूस'' किये जाने योग्य है एवं इसका निदान हमारे चर्च नहीं कर पा रहे हैं। डॉ. विलियम ग्लासर, एक जाने माने मनोचिकित्सक, ने उनकी पुस्तक दि आइडेंटिटी सोसायटी में यह चौकानें वाले कथन दिया,
सारे लक्षण, चाहे मनोवैज्ञानिक हो या दैहिक, चाहे हिंसात्मक हो या, किसी को व्यथित करने वाले हों, ये सभी व्यवहार अकेलेपन की समस्या से उपजते हैं, यह व्यवहार उन लोगों में पाया जाता है जो लोग अपनी पहचान बनाये रखने के लिये संघर्ष करते रहते हैं, किंतु कभी सफल नहीं होते (जे. ओसवॉल्ड सेंडर्स से लिया उद्धरण, डी.डी. फेसिंग लोनलीनेस, डिस्कवरी हाउस पब्लिकेशंस, १९९० संस्करण, पेज ४६)
कई व्यसन, निराश हो जाना − ''ये सभी लक्षण.......और सब प्रकार का हिंसात्मक व्यवहार, चोट पहुंचाने वाला व्यवहार अकेलेपन की समस्या से उत्पन्न होता है।'' मैं सोचता हूं डॉ.ग्लासर बिल्कुल सही कह रहे थे! ''इस प्रकार'' की समस्या अर्थात ''मनुष्य का अकेलापन'' यह हमारे समाज में भयानक रूप से व्याप्त है। हम किसी व्यक्ति को उसके अकेलेपन से छुटकारा या आराम दिलवा ही नहीं पा रहे हैं, तो हम कैसे आशा रखेंगे कि कई खोये हुये लोग हमारे चर्चेस में आऐंगे!
डॉ.तिमोथी लिन, लंबे समय तक चाईनीज बैपटिस्ट चर्च में मेरे पास्टर रहे, वह यह बात अच्छी तरह से जानते थे! वह एक बूढ़े जन थे, मुख्य चीन प्रांत से थे, किंतु वह ऐसे पुरूष थे जिन्होंने अपना वक्त उपवास और प्रार्थना में बिताया। परमेश्वर ने उन्हें भटके हुये लोगों को अकेलेपन से निजात देने का महत्व समझाया। वह अक्सर कहा करते थे, ''हमें जवानों के अंदर भरे अकेलेपन को दूर करना है। चर्च को उनका दूसरा घर बनाना है।'' मैं उनसे बिल्कुल सहमत हूं! सन १९६० में उस चर्च ने वही किया, जैसा डॉ.लिन ने कहा और इस संसार के कितने सारे जवान लोग चर्च में पहुंचने लगे। चर्च ने परमेश्वर द्वारा भेजे जाने वाले आत्मिक जागरण को महसूस किया। कुछ लोग डॉ.लिन की सेवकाई के दौरान हुई बातें भूलने लगे, बाद में उन्हें याद नहीं रहा!
मैं यहां रूककर एक निर्देश देना चाहता हूं। हमें यह नहीं सोचना है प्रार्थना और उपवास खुद ब खुद जागरण पैदा करेंगे − या कई नये जन्म होंगे। हमें परमेश्वर को एक ''ताकत'' के रूप में नहीं सोचना है जिसे वश में किया जा सके। यही तो जादू टोने वाले शिमौन ने सोचा था और मांगा, ''मुझे भी यह अधिकार दो'' (प्रेरितों के कार्य ८:१९) अगर हम परमेश्वर को एक दूरस्थ ''शक्ति'' मानकर उसे वश में या ''उपयोग'' में लाने की सोचते हैं तो हम खतरनाक रूप से ''सफेद जादू'' की ओर बढ़ रहे हैं। ''काले जादू'' में टोटके वाला कई मंत्र दोहराता है ताकि शैतानी आत्माओं को वश में कर ले। किंतु ''सफेद जादू'' में टोटके करने वाला कुछ निश्चत शब्द या प्रार्थना दोहराता है ताकि ''भली आत्मायें'' − यहां तक कि ''परमेश्वर, भी जिसे वे ''पवित्र आत्मा'' भी कहते हैं उसे वश में करना चाहते हैं। मुझे भले ही गलत समझें, किंतु मुझे पक्का निश्चय है कि बैनी हिन और उनके जैसे दूसरे ''करिश्माई अगुवे'' ''सफेद जादू'' का उपयोग कर रहे हैं।
परमेश्वर की सच्ची आत्मा एक व्यक्ति है। वह इस तरह ''वश में नहीं लाई'' जा सकती और न ही ''इस्तेमाल की जा सकती'' है मात्र कुछ शब्द दोहराने भर से − न उपवास और प्रार्थना से । वह व्यक्ति है, न कि कोई अवैयक्तिक ''ताकत''। आज जितने भी ''आत्मिक जागरण'' के कार्यक्रम हो रहे हैं वे वास्तव में शैतानी कृत्य है, ''सफेद जादूकी उपज''।
इसलिये जब हम परमेश्वर से उपवास में प्रार्थना करें ताकि जवान लोग चर्च में आयें, तो हमें यह महसूस करने में चौकन्ना रहना चाहिये कि हमारा परमेश्वर पवित्र परमेश्वर है। वह वास्तविक जन है, जिसे महान आदर, सम्मान देना चाहिये। एक ओर संदेश में, स्पर्जन ने कहा था,
मुझे निश्चय नहीं है कि हमने मसीही चर्चेस में उपवास त्याग देने से आशीषें भी खोई हैं....... किंतु एक प्राचीन ने चर्च को एक नाम दिया है, ''आत्मा को मोटा करने वाला उपवासी चर्च''। उन्होंने स्वयं अपना उदाहरण प्रस्तुत किया कि एक उपवास के दौरान उनकी आत्मा में और गहराई से प्रार्थना करने की चाह बलवती होने लगी ऐसा पहले अन्य समय में नहीं हुआ (दि मेट्रापोलिटन टेबरनेकल पुलपिट, वॉल्यूम १०, पिलगिम पब्लिकेशंस, १९९१ संस्करण, पेज ३५)
अगले शनिवार, शाम पांच तक, हम दूसरा उपवास रखेंगे, तब हम चर्च में आयेंगे और भोजन ग्रहण करके और प्रार्थना करेंगे। हम परमेश्वर से विनती करेंगे कि वह और लोगों को उनके ''अकेलेपन की आवश्यकता महसूस करके'' चर्च में आने के लिये तैयार करे। किंतु वे यहां चर्च में भी ज्यादा नहीं ठहर पायेंगे अगर उन्हे अपने पापों का बोझ न कचोटे और मसीह के पास आकर नया जन्म न लें। इसलिये लोगों के यहां आने के लिये और उनके वास्तविक मन फिराव व परिवर्तन के लिये भी प्रार्थना करें।
अगर आप परिवर्तित नहीं हुये हैं, तो मैं आपको बताना चाहता हूं कि यीशु आपसे प्यार करता है। वह क्रूस पर आपके पापों का दंड चुकाने के लिये मरा। उसका लहू जो क्रूस पर बहाया गया वह सारे पापों से आपको शुद्ध करता है। वह पुन: जीवित हुआ ताकि आपको जीवन प्रदान करे। ''प्रभु यीशु पर विश्वास रख, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा।'' (प्रेरितों के काम १६:३१) अपने मन और विचारों को अकेले यीशु पर ही केंदित कीजिये − जिसने क्रूस पर आपको बचाने के लिये लहू बहाया और मौत सही! संपूर्ण मन से उस पर विश्वास लाइये। वह आपको आपके पाप से, मौत से, और नरक से बचायेगा! आमीन!
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व धर्मशास्त्र पढा गया डॉ. केटन एल. चान द्वारा: मरकुस ९:२३−२९
संदेश के पूर्व बैंजामिन किन्केड गिफिथ द्वारा एकल गीत गाया गया:
''प्राचीन समय की ताकत'' (पॉल रादर, १८७८−१९३८)
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