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वह दिन जब यीशु मरेTHE DAY JESUS DIED द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स रविवार की संध्या, २३ मार्च, २०१४, को लॉस एंजिलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में प्रचार किया गया संदेश “तब उस ने उसे उन के हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढाया जाए। तब वे यीशु को ले गए। और वह अपना क्रूस उठाए हुए उस स्थान तक बाहर गया, जो खोपडी का स्थान कहलाता है और इब्रानी में गुलगुथा। वहां उन्होंने उसे और उसके साथ और दो मनुष्यों को क्रूस पर चढाया, एक को इधर और एक को उधर, और बीच में यीशु को।” (यूहन्ना १९: १६−१८) |
मानव इतिहास में यीशु की क्रूस पर मौत चौथा सबसे प्रमुख दिन था। पहला प्रमुख दिन वह जब परमेश्वर ने पहला मनुष्य बनाया। दूसरा दिन वह जब मनुष्य का पतन हुआ‚ जब मनुष्य ने पाप किया और संसार में मौत व बरबादी आई। तीसरा दिन वह जब नूह के समय में बाढ आई। किंतु चौथा सबसे अधिक महत्वपूर्ण दिन जब मसीह यरूशलेम के बाहर एक पहाडी पर क्रूस पर मारे गये।
वह दिन जब मसीह क्रूस पर मरे संपूर्ण मानव इतिहास की धारा ही बदल गई - हमेशा के लिये! हजारों हजार मनुष्य जीवन बदल गये। आत्मायें परिवर्तित हुई‚ और संसार फिर पहले जैसा नहीं रहा। आज रात हम पुन उस दिन पर मनन करेंगे जिस दिन मसीह मरे और उस समय की चार बडी घटनाओं पर ध्यान करेंगे जो उस समय घटित हुई।
१. प्रथम उस दिन सर्वत्र अंधकार छा गया ।
बाईबल कहती है:
“छटवें घंटे तक (दोपहर) से लेकर नवें घंटे तक (तीसरे पहर) तक उस सारे देश में अन्धेरा छाया रहा।” (मत्ती २७:५१)
डॉ. जे.वर्नान मैगी का कथन है:
तीसरे घंटे हमारा मसीह क्रूस पर चढा दिया गया, जो सुबह का नौ बजे का समय कहलाता है। बारह बजे तक, मनुष्य ने परमेश्वर के पुत्र के साथ जितनी यातना उन्हें दी जा सकती थी दी। तब दोपहर के पहर, सब दूर अंधेरा छा गया, और क्रूस एक वेदी बन गया जिस पर एक मेम्ना संसार के पापों को उसके उपर लादे हुये अपना बलिदान दे रहा था (थू दि बाईबल, थॉमस नेलसन, १९८३, वॉल्यूम ४, पेज १४८)
मत्ती, मरकुस और लूका वर्णन करते हैं कि ''समस्त देश में'' दोपहर से लेकर तीन बजे तक अंधेरा छाया रहा, जब यीशु की मौत हुई। डॉ. जॉन मैक आर्थर, यद्यपि मसीह के लहू के विषय में गलत शिक्षा दे सकते हैं, किंतु जब उन्होंने उस अंधकार के विषय में कहा तो वह सत्य थे:
यह अंधकार किसी ग्रहण के कारण नहीं हुआ, क्योंकि यहूदी लूनर कैलेंडर प्रयुक्त करते थे, और फसह का पर्व पूरे चांद के दिन होता था, इसलिये ग्रहण का प्रश्न ही नहीं उठता। यह एक अलौकिक अंधकार था (मैकआर्थर स्टडी बाईबल, लूका २३:४ पर व्याख्या)
अलौकिक अंधकार, जो मसीह के मरने पर समस्त देश में छा गया था, वह हमें इजरायल के लोगों के मिस्र छोडने के समय हुये बारहवें चमत्कार का स्मरण दिलाता है। जो चमत्कार मूसा ने किया था :
“फिर यहोवा ने मूसा से कहा, अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ा कि मिस्र देश के ऊपर अन्धकार छा जाए, ऐसा अन्धकार कि टटोला जा सके। तब मूसा ने अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ाया, और सारे मिस्र देश में तीन दिन तक घोर अन्धकार छाया रहा.........।” (निर्गमन १०:२१−२२)
परमेश्वर ने वैसा अंधकार मूसा के समय में भी भेजा था। और परमेश्वर ने वही अंधकार जब यीशु क्रूस पर मरे तब भेजा। डॉ.वॉटस इसे इस प्रकार कहते हैं:
सूरज अंधकार में छिप गया था, और अपनी रोशनी देनी बंद कर दी,
जब संसार के पाप के लिये, मसीह, सामर्थशाली, मनुष्य के पापों के लिये मरा
(''ओह!मेरेमसीहाकालोहूबहा?'' इजहाक वॉट, डी.डी.,१६७४−१७९८)
२. दूसरा, मंदिर का पर्दा उस दिन दो भाग में फट गया ।
बाईबल कहती है,
“और देखो मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया ।” (मत्ती २७:५१)
मंदिर के भीतर एक विशाल, मोटा पर्दा था। डॉ. जॉन आर. राईस उस मंदिर के विषय में हमें बताते हैं:
हमें बताया गया है कि वेदी, या मंदिर स्वयं, नब्बे फीट लंबा, तीस फीट चौडा और नब्बे फीट उंचा था....यह वेदी दो भागों में विभक्त थी। प्रथम साठ फीट पवित्र स्थल था....यह शेष मंदिर के स्थान से एक विशाल परदे के द्वारा अलग की गई थी, वह अति पवित्र स्थान था, अथवा महा पवित्र स्थान था (डॉ. जॉन आर राईस, दि किंग आँफ दि ज्यूस: ए कमेंटरी आँन मैथ्यू, सोर्ड आँफ दि लॉर्ड, १९५५‚ पेज ४७९)
डॉ.राईस के कथन अनुसार उस महापवित्र स्थान में महायाजक के अतिरिक्त कोई प्रवेश नही कर सकता था। महायाजक भी वर्ष में केवल एक बार प्रायश्चित के दिन जा सकता था।। तब डॉ. राईस ने कहा:
जब मसीह क्रूस पर मरे, इसलिये, ''मंदिर का परदा उपर से नीचे तक फटकर दो भाग हो गया'' (मत्ती २७:५१) शीर्ष स्थान से, परदे का फटना इस बात का संकेत था कि स्वयं परमेश्वर ने इस परदे को (फाडा) था.... जैसे ही परदा फटा, तब परमेश्वर व मनुष्य के बीच की प्रत्येक बाधा दूर हो गई और अब लोग (मसीह) के द्वारा परमेश्वर से मेल मिलाप कर सकते थे (उक्त वर्णित‚ पेज ४८०)
३. तीसरा, उस दिन एक भुंईडोल हुआ।
बाईबल कहती है,
“और धरती डोल गई और चटानें (तड़क गईं।” (मत्ती २७:५१)
यह भुंइडोल भी परदे को फाडने में शामिल रहा हो सकता है। मैं सोचता हूं यह शामिल था। किंतु ऐदेर शेम ने संकेत दिया था कि, ''यद्यपि भुंइडोल भौतिक वस्तुयें हिला सकता था, मंदिर के परदे का फटना....वास्तव में परमेश्वर द्वारा किया गया कार्य था'' (अल्फ्रेड ऐदेरशेम, दि लाईफ एंड टाईम्स आँफ जीजस दि मसाया, ऐर्डमन्स, १९४५, वॉल्यूम २, पेज ६११) ऐदेरशेम ने बताया कि परदे की मोटाई आदमी की हथेली की मोटाई (लगभग ढाई इंच मोटी) के बराबर थी। ''अगर तालमुद में किये गये वर्णन के अनुसार यह परदा था, तो यह मात्र भूकंप से नहीं फट सकता था'' (उक्त वर्णित)
मंदिर के फटने का द्रश्य उस समय हुआ ''जब, शाम के बलिदान के लिये नियुक्त याजक पवित्र स्थान में दाखिल हुआ, या तो धूप जलाने के लिये या कोई अन्य आराधना करने के लिये'' (उक्त वर्णित) । मंदिर के परदे फटने का यहूदी याजकों पर भयानक असर पडा। डॉ. चाल्र्स सी. राइरी कहते हैं कि इस ''अलौकिक घटना मंदिर के परदे फटने का वर्णन प्रेरितों के कार्य ६:७ में मिलता है, जहां हमें बताया गया है, 'याजकों का एक बडा समूह विश्वास भक्त था'' (राईरी स्टडी बाईबल, मत्ती २७: ५१ पर व्याख्या)
जब मसीह मरे, परदा दो भागों में फट गया। अब आप परमेश्वर के पास आ सकते हैं, क्योंकि मसीह बिचवई है। अब परमेश्वर और आपके बीच कोई परदा नहीं है। परमेश्वर और आपके बीच अब यीशु है। यीशु के पास आइये और आपको सीधे परमेश्वर की मौजूदगी में ले जायेगा।
“क्योंकि परमेश्वर एक ही है और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है, अर्थात मसीह यीशु जो मनुष्य है।” (१ तीमुथियुस २:५)
४. चौथा, मसीह उस दिन क्रूस पर से बोले
मंदिर के पहरेदारों ने यीशु को गलत आरोप लगाकर गिरफतार कर लिया। वे उसे खींचकर महायाजक के पास ले गये, उन्होंने उसके मुह पर थूका और उसके चेहरे पर मुक्के मारे। चूंकि यहूदियों के पास कोई अधिकारिक शक्ति नहीं थी, वे यीशु को रोमन गवर्नर, पौन्तियुस, पिलातुस के पास ले गये। पिलातुस ने यीशु से प्रश्न किया, और उसे निर्दोष ठहराया उसके जीवन को बचाने का प्रयत्न किया। उसने यीशु को कोडे लगवाये, ये सोचकर कि महापुरोहित बचाने का प्रयत्न किया। उसने यीशु को कोडे लगवाये, ये सोचकर कि महापुरोहित शायद इस दंड से संतुष्ट हो जायेंगे। सिपाहियों ने उसकी पीठ पर कोडे मारे, उसे कांटों ताज बुनकर पहनाया और उसके सिर पर रखा, और उसे बैंजनी वस्त्र पहनाया। पिलातुस उसे निकालकर लोगों के सामने ले कर आया ताकि लोग जाने कि उसे कितना मारा गया है, शायद उन्हें यीशु पर तरस आ जाये। पिलातुस ने उनसे कहा, ''मैं इसमें कोई दोष नहीं पाता'' (यूहन्ना १९ : ४) जब महापुरोहितों ने उसे देखा तो वे चिल्लाने लगे, ''उसे क्रूस पर चढाओ! उसे क्रूस पर चढाओ!'' पिलातुस ने उनसे कहा, ''तुम इस पुरूष को ले जाओ और क्रूस पर चढा दो; क्योंकि मैं तो इसमें कोई दोष नहीं पाता। तब महापुरोहित चिल्लाने लगे, तो आपकी भक्ति कैसर की नहीं। जो स्वयं को राजा प्रकट करता है वह कैसर के विरूद्ध है।'' पिलातुस ने कहा‚ “क्या मैं तुम्हारे राजा को कूस पर चढा दूं?” तब महापुरोहित चिल्लाने लगे, ''हमारा कोई राजा नहीं है किंतु कैसर सम्राट है।'' तब पिलातुस ने यीशु को सैनिकों के हवाले कर दिया, और वे उसे क्रूस पर चढाने के लिये ले गये।
यीशु ने भयानक दिल दहलाने वाली पीडा सही जब उन्हें क्रूस पर कीलों से ठोंक दिया गया था। किंतु जब वे उस दर्द से होकर गुजर रहे थे उन्होंने क्रूस पर से ये शब्द कहे,
प्रथम वाणी - क्षमा
“जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुंचे, तो उन्होंने वहां उसे और उन कुकिर्मयों को भी एक को दाहिनी और और दूसरे को बाईं और क्रूसों पर चढ़ाया। तब यीशु ने कहा; हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहें हैं और उन्होंने चिट्ठियां डालकर उसके कपड़े बांट लिए।” (लूका २३:३३−३४)
इसी कारण यीशु क्रूस पर चढाये गये थे - कि हमारे पापों को क्षमा करें। यीशु हमारे पापों का मोल चुकाने सहज क्रूस पर बलिदान के लिये तैयार थे।
दूसरी वाणी - उद्धार
“जो कुकर्मी लटकाए गए थे, उन में से एक ने उस की निन्दा करके कहा; क्या तू मसीह नहीं तो फिर अपने आप को और हमें बचा। इस पर दूसरे ने उसे डांटकर कहा, क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है। और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इस ने कोई अनुचित काम नहीं किया। तब उस ने कहा; हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना। उस ने उस से कहा, मैं तुझ से सच कहता हूं; कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा” (लूका २३:३९−४३)
यीशु क्रूस पर पापियों को बचाने के लिये मरे। पहला पापी जिसे उन्होंने अपने उपर विश्वास रखने के कारण बचाया था वह क्रूस पर चढा हुआ चोर था। कई लोग सोचते हैं कि वे बचाया जाना सीख सकते हैं। किंतु ये चोर तो ऐसा कुछ नहीं जानता था। उसने सीधे यीशु पर विश्वास किया। कई लोग सोचते हैं कि उनके अंदर कोई विशेष भावना या आंतरिक परिवर्तन होना चाहिये। किंतु इस चोर को देखिये। उसने सीघे तौर पर यीशु पर विश्वास किया।
तीसरी वाणी - प्रेम
“परन्तु यीशु के क्रूस के पास उस की माता और उस की माता की बहिन मरियम, क्लोपास की पत्नी और मरियम मगदलीनी खड़ी थी। यीशु ने अपनी माता और उस चेले को जिस से वह प्रेम रखता था, पास खड़े देखकर अपनी माता से कहा; हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है। तब उस चेले से कहा, यह तेरी माता है, और उसी समय से वह चेला, उसे अपने घर ले गया” (यूहन्ना १९:२५−२७)
यीशु ने यूहन्ना के उपर अपनी मां की देख रेख का जिम्मा सौंपा। यीशु हमारी स्थानीय कलीसिया में भी एक दूसरे की देखभाल का कार्य सौंपना चाहते हैं।
चौथी वाणी - संतुष्ट करना
“दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अन्धेरा छाया रहा। तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, एली, एली, लमा शबक्तनी अर्थात हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?” ( मत्ती २७:४५−४६)
यीशु की पुकार दर्शाती है कि वह परमेश्वर पिता से अलग हो गये थे क्योंकि वह हमारे पापों के लिये बलिदान बन गये थे।
पांचवी वाणी - दुख सहना
“इस के बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका; इसलिये कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो कहा, मैं प्यासा हूं। वहां एक सिरके से भरा हुआ बर्तन धरा था, सो उन्होंने सिरके में भिगोए हुए इस्पंज को जूफे पर रखकर उसके मुंह से लगाया।” (यूहन्ना १९ :२८−२९)
यह वाणी यीशु के अत्यंत पीडा को सहन करने को प्रकट करती है जो उन्होंने हमारे पापों का दंड चुकाने के लिये स्वयं सहन की।
छटवीं वाणी - पाप मुक्ति के लिये बलिदान
“जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा पूरा हुआ और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिए” (यूहन्ना १९:३०)
हमारे उद्धार पाने के लिये जो शर्ते थी वे सब समाप्त हुई। अब एक खोये हुये जन को करने के लिये कुछ न बचा था सिवाय यीशु पर विश्वास करने के।
सातवीं वाणी - पिता के प्रति समर्पण
“और यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा; हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूं: और यह कहकर प्राण छोड़ दिए।” (लूका २३:४६)
एक कठोर सैनिक ने ऐसी कई क्रूस पर चढाये जाने की सजा देखी होगी। उसका दिल पहले से ही कठोर हो चुका होगा। किंतु उसने यीशु के समान किसी को ऐसे मरते हुये नहीं देखा होगा। उसने यीशु के शव को क्रूस पर टंगे हुये देखा। उसके गालों पर आंसू बह रहे थे, और उस सैनिक ने कहा,
''निश्चत यह जन परमेश्वर का पुत्र था'' (मरकुस १५:३९)
हो सके आप परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास लाये कि उसके बलिदान देने व लहू बहाने से आपके पाप क्षमा हुये। आमीन।
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व धर्मशास्त्र पढा गया मि.ऐबेल प्रुद्योमें: मरकुस १५:२५−३९
संदेश के पूर्व एकल गाना गाया गया। मि.बैंजामिन किन्केड गिफिथ:
“कांटों का ताज” (द्वारा इरा स्टेनफिल‚१९१४−१९९३ पास्टर द्वारा अल्प परिवर्तित)
रूपरेखा वह दिन जब यीशु मरे द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स “तब उस ने उसे उन के हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढाया जाए। तब वे यीशु को ले गए। और वह अपना क्रूस उठाए हुए उस स्थान तक बाहर गया, जो खोपडी का स्थान कहलाता है और इब्रानी में गुलगुथा। वहां उन्होंने उसे और उसके साथ और दो मनुष्यों को क्रूस पर चढाया, एक को इधर और एक को उधर, और बीच में यीशु को।” (यूहन्ना १९: १६−१८) १. प्रथम उस दिन सर्वत्र अंधकार छा गया‚ मत्ती २७:५१; निर्गमन १०:२१−२२ २. दूसरा, मंदिर का पर्दा उस दिन दो भाग में फट गया‚ मत्ती २७:५१अ ३. तीसरा, उस दिन एक भुंईडोल हुआ‚ मत्ती २७:५१ब; १ तीमुथियुस २:५ ४. चौथा, मसीह उस दिन क्रूस पर से बोले‚ यूहन्ना १९:४; |