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तीन बगीचों की कहानीTHREE GARDENS TELL THE STORY द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स रविवार की संध्या, 6 अप्रेल, 2014 को दि लॉस एंजीलिस के दि बैपटिस्ट टैबरनेकल में प्रचार किया गया संदेश ''क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा म्रत्यु आई, तो मनुष्य के द्वारा मरे हुओं का पुनरूत्थान भी आया। और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे'' (१कुरंथियों १५˸२१−२२) |
आदम के द्वारा शारिरिक व आत्मिक मौत आई। क्योंकि आदम के पाप करने के कारण समस्त मानव जाति पापी उत्पन्न हुई। हम पापी स्वभाव के साथ जन्मे हैंं। पर चूंकि मसीह की धार्मिकता के कारण हम बचाये गये हैं एवं धर्मी बनाये गये हैं इसलिये हमें भी अनंत जीवन प्राप्त होता है। पद पैतालीस में हम प्रथम व अंतिम आदम के बारे में पढते हैं। अंतिम आदम, यीशु मसीह है, जो समस्त मानव जाति के लिये उद्धार लेकर आया जितनों ने भी उस पर विश्वास किया उनका मन परिवर्तित हुआ। पाप और उसका प्रचार यह चित्रण तीन बगीचों में हम को मिलता है, जो पाप और उद्धार को प्रस्तुत करते हैं। मैं इन तीनों बगीचों के अर्थ को प्रकट किये बिना पाप व उद्धार की स्पष्ट तस्वीर प्रस्तुत नहीं कर सकता हूं।
१. प्रथम, कुछ समय के लिये अदन की वाटिका के बारे में सोचते हैं।
बाईबल बताती है कि परमेश्वर ने प्रथम मनुष्य बनाया। बाईबल की शिक्षा है कि एक सच्चे वास्तविक मनुष्य को परमेश्वर ने बगीचे में रखा। “और यहोवा परमेश्वर ने पूर्व की ओर अदन देश में एक वाटिका लगाई; और वहां आदम को जिसे उस ने रचा था, रख दिया'' (उत्पत्ति २˸८) उस मनुष्य को बगीचे में रखने का मकसद था कि वह बगीचे के उपर अपना आधिपत्य रखे एवं इस संसार पर भी उसका शासन रहे। उसे एक आज्ञा देकर कहा गया था कि भले व बुरे के ज्ञान वाला पेड का फल उन्हे खाने की मनाही है।
“पर भले या बरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा।” (उत्पत्ति २˸१७)
किंतु शैतान बगीचे में आया और मनुष्य को प्रतिबंधत फल खाने के लिये भरमाया। मनुष्य ने इसे खाया और परमेश्वर ने समस्त मनुष्य जाति को शापित ठहराया। दंड स्वरूप मनुष्य व उसकी पत्नी को अदन के बगीचे से बाहर निकाल दिया गया। धरा का संपूर्ण वातावरण भी परमेश्वर के दिये हुये शाप के प्रभाव से दूषित हो गया। यह संसार सभी जीवित प्राणियों के रहने के लिये एक असुरक्षित व आक्रमक स्थान बन गया। यह सब आदम द्वारा परमेश्वर की अवाा के कारण घटा। मौत आदम के द्वारा संपूर्ण मानव जाति पर आ गई। यह आत्मिक मौत भी थी अर्थात जिसमें मनुष्य परमेश्वर से अलग हो गया था, सच जानने के प्रति अंधा हो गया था। शारीरिक मौत भी मनुष्य जाति को दंडस्वरूप मिली। डॉ.मार्टिन ल्यॉड जोंस ने कहा था,
मनुष्य जाति की संपूर्ण कहानी इस बात में समाहित की जा सकती है कि जो कुछ हुआ वह सब आदम के कारण हुआ.....सारी परेशानी, दुख, नैतिक पतन, चोरी, डकैती, हत्या, तलाक, अलगाव इन सब चीजों का जनक आदम है। ऐसा क्यों होता है? और हमेशा ही ऐसा क्यों होता है? इतिहास बताता है कि हमेशा ही इन घटनाओं का क्रम ऐसा ही रहा है। जैसा संसार पहले था वैसा ही आज भी है। परन्तु ऐसा क्यों हो रहा है? प्रेरित पौलुस इस प्रश्न का उत्तर (रोमियों ५˸१२−२१) में देते हैं। उनका कहना है कि यह सब आदम के कारण हुआ है, समय घटनायें इस सत्य से बंधी है कि जो कुछ आदम ने किया उसका परिणाम हमें भोगना है, हम आदम के वंशज हैं (मार्टिन ल्यॉड जोंड, एम.डी., रोमन्स-एक्सपोजिशन आँफ चेप्टर फाईव, दि बैनर आँफ ट्रूथ ट्रस्ट, २००३, पेज १७८)
बाईबल इसे बहुत स्पष्ट कहती है,
“इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।” (रोमियों ५˸१२)
यह मौत जो हमें विरासत में मिली है इससे शत्रुता, द्वेष और परमेश्वर के प्रति कडवाहट भी निहित है, आदम की मौत को धारण करने के कारण हमारा मनुष्य दिमाग भी बाईबल के सच के प्रति अंधा हो गया है,
“क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्वर की व्यवस्था के आधीन है, और न हो सकता है।” (रोमियों ८˸ ७ )
आदम के विचारों वाला दिमाग बाईबल के सत्य को नहीं स्वीकारता है।
“परन्तु शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता, क्योंकि वे उस की दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं, और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उन की जांच आत्मिक रीति से होती है” (१कुरंथियों २˸१४)
स्पिरिट आँफ दि रिफॉर्मेशन बाईबल कहती है,
सुधारवादी धर्मविज्ञान प्रमुख यप से पाप में पतन होने की ऐतिहासिक सत्यता पर आधारित है.....पाप मूल रूप से धार्मिकता व सत्य के वातावरण में निर्मित हुआ था किंतु वह अपनी दशा से गिर गया। पतित हो गया... इस पतन की कहानी एक माने जाने वाले ऐतिहासिक वर्णन को प्रस्तुत करती है जिसमें मनुष्य के स्वभाव का पलट जाना निहित है (स्पिरिट आँफ दि रिफॉर्मेशन स्टडी बाईबल, जोंडरवन पब्लिशिंक हाउस, २००३‚ पेज १४)
इस तरह हम पाप का मूल, अंधता और मनुष्य जाति के विद्राही स्वभाव की जडें खोज सकते हैं जो परमेश्वर की आज्ञा आदम द्वारा तोडे जाने पर उत्पन्न हुई। यह इतिहास के प्रारंभ में अदन के बगीचे में घटा। अदन का बगीचा वह स्थान था जहां पाप का जन्म हुआ और मानव जाति के नष्ट होने का कारण पैदा हुआ। हम इसे ''मौत का बगीचा'' नाम भी दे सकते हैं।
आप में से कुछ जो आज परिवर्तित होने के लिये संघर्ष कर रहे हों। आप कह सकते हैं कि आप मसीह पर विश्वास तो करना चाहते हैं; पर आपसे ऐसा हो नहीं पाता। तो आखिर बात क्या है? आप असल में आदम के पाप के कारण अंधे हो गये हैं, वह पाप जो आपके अंदर जीन्स में मौजूद है जिसने आपकी आत्मा को भी पापी ठहरा दिया! बाईबल कहती है आप'' पाप में मरे हुये हैं'' (इफिसियों २:५) आप मसीही होना सीख नहीं सकते क्योंकि आप मौत के लिये दूषित कर दिये गये हैं! आपके लिये इस मनुष्य जगत से कोई उम्मीद नहीं है क्योंकि पाप का काला जहर आपकी नसों में दौड रहा है, यह वह कैंसर का वाइरस है जो अदन का बगीचा − मौत के बगीचा से ही आपके अंदर प्रवेश करके आया!
अरे, तुम छिपे हुये राक्षस, पाप,
कैसा शाप तुम लेकर आये!
सारी जमीं विलाप कर रही है,
तुमने सबको संकट में डाल दिया!
तुमने मनुष्य को निकम्मा व नष्ट किया
जबसे यह संसार शुरू हुआ था।
(“मच वी टॉक आँफ जीजस ब्लड'' द्वारा जोसेफ हार्ट, १७१२−१७६८)
२. दूसरा, अब गेतसमनी के बगीचे के विषय में सोचें।
यीशु ने उसके चेलों के साथ फसह के पर्व का भोजन किया। बहुत रात बीच चुकी थी जब उन्होंने भोजन समाप्त किया। तब एक भजन उन्होंने गाया और चले गये। वे जैतून पर्वत के बाजू में स्थापित जैतून के बगीचे में गया।यह गेतसमनी का बगीचा कहलाता था। यीशु ने अपने चेलों में से आठ चेलों को बगीचे के बाहर छोड दिया। वह पतरस, याकूब और यूहन्ना को बगीचे के अंधेरे में ले गया। वह इस समय गहन पीडा में था ''बेहद व्याकुल'' - ''बहुत विकल'' - ''प्राण निकलने की सीमा तक उदास'' (मरकुस १४:३३‚३४) - ''इतना अधिक दुखी कि मौत बिल्कुल नजदीक हो'' (एन ए एस वी संस्करण) तब प्रभु ने प्रार्थना की, ''हे पिता,यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो'' (लूका २२:४२) यह कैसा ''कटोरा था''? अधिकतर व्याख्याकार कहते हैं कि यह मसीह की अगले दिन होने वाली क्रूस पर मौत का इशारा था। किंतु यह विचार इब्रानियों १२:२ से विरोधाभास रखता है जहां इस प्रकार लिखा है प्रभु यीशु के लिये कि उन्होंने ''उस आनंद के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिंता न करके, क्रूस का दुख सहा।''
स्पर्जन ने पूछा था, ''गेतसेमनी के बगीचे में इतने अलग प्रकार के दुख का कारण क्या था?'' उनका कहना था कि यह दुख शारीरिक यातना होने के भय से उत्पन्न नहीं हुआ। यह अगले दिन मसीह के उपहास उडाये जाने व कूस पर चढाये जाने के भय से उत्पन्न नहीं हुआ था। कई शहीद मरने के पहले खुशी खुशी इस मार्ग पर गये। स्पर्जन का कहना था, ''कि हमारा स्वामी (शहीदों से) कम नहीं आंका जाना चाहिये, ऐसा हो ही नहीं सकता था कि वह कांपा हो जबकि अन्य शहीद उस समय बडे निडर रहे हों।'' उसका यह भी कथन था कि मसीह की इस पीडा का कारण शैतान का आक्रमण होना भी नहीं था। उसने कहा कि बगीचे में मसीह की गहन पीडा का कारण यह था कि: ''तौभी यहोवा को यही भाया कि उसे कुचले; उसी ने उसको रोगी कर दिया; जब तू उसका प्राण दोषबलि करे'' (यशायाह ५३:१०) ''यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया'' (यशायाह ५३:६)
डॉ.आर.सी.एच.लैस्की ने कहा, ''गेतसेमनी में यीशु का दुख सदैव हमारे लिये रहस्यमय बना रहेगा....संसार के पाप, यीशु द्वारा, उठाये जाने हैं ऐसा यीशु ने सदैव माना था, किंतु गेतसेमनी में अंतत: वह क्षण आ ही गया जब पाप उसके उपर रखे जाने थे'' (आर.सी.एच.लैस्की, पी.एच.डी., इंटरपिटेशन आँफ सेंट लूक गॉस्पल, आँक्सवर्ग पब्लिशिंग हाउस, १९४६, पेज १०७४)
मेरा मानना है कि यीशु ने गेतसेमनी के बगीचे में हमारे पाप अपने उपर लिये। इस प्रकिया ने लगभग उसे मार ही डाला था - क्योंकि लिखा है ''यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया।'' हमारे पापों ने उसे अंदर तक कुचल डाला,
“और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लोहू की बडी बडी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था।” (लूका २२:४४)
उसने गेतसेमनी के बगीचे में हमारे पाप लेकर क्रूस तक उनका बोझ उठाया, और अगले दिन हमारे पापों के बदले वह बलिदान किया गया।
रूकिये! यह कोई मॉरमन धर्मविज्ञान नहीं है! आपमें से कुछ लोग जानते होंगे कि मॉरमन्स यह शिक्षा देते हैं कि गेतसमनी बगीचे में बहाया गया लहू क्षमा करता है। ब्रूस मैककांकी जो एक मार्मन थियोलॉजियन थे उन्होंने कहा, ''मसीह के गेतसेमनी में बहाये गये लहू से हमें क्षमा उपलब्ध है'' (ब्रूस आर.मैककांकी, दि प्रामिज्ड मसाया, डेजीक्रेट बुक कंपनी, १९७८, पेज ३३७) किंतु मैं ऐसा नहीं कहता! मैंने यह कहा कि मैं मानता हूं कि यीशु ने गेतसेमनी से क्रूस तक हमारे पाप अपने उपर लादे, एवं क्रूस पर उन पापों के बदले लहू बहाया। यह सुसमाचार का प्रथम बिंदु है कि ''मसीह धर्मशास्त्र के अनुसार हमारे पापों के लिये मरा'' (१कुरंथियों १५:३) बाईबल कहती है कि मसीह ने ''क्रूस पर रक्त बहाकर शांति स्थापित की'' (कुलुस्सियों १:२०) न कि बगीचे में लहू की बूंदों के मानिंद गिरने वाले पसीने से छुटकारा दियाहै! केवल क्रूस पर बहे लहू से हमारे पाप साफ होते हैं‚ न उसकी किसी उंगली के कटने से बहे लहू से − न कि बगीचे में लहू की बूंदों के मानिंद गिरने वाले पसीने से छुटकारा दिया है! इस तरह‚ मेरी दशा स्पर्जन, सुधारवादी धर्मविज्ञानी डॉ. जे.आँलीवर बसवेल, डॉ. जॉन आर.राईस के समान है। डॉ.बसवेल एवं डॉ.राईस ने गेतसेमनी के बगीचे पर जो लेख लिखा है उसे पढने के लिये यहां क्लिक कीजिये। इनके उद्धरण मेरे संदेश ''गेतसेमनी की भयावहता'' में है।
क्या यह कोई संयोग था कि मनुष्य के पाप का प्रारंभ एक बगीचे में हुआ, और मसीह ने हमारे पाप अपने उपर एक बगीचे में ही लिये? ऐसा हो सकता है - महान स्पर्जन ने इसके विषय में आश्चर्य व्यक्त करते हुये कहा है,
क्या हम यह धारणा नहीं बना सकते कि एक बगीचे में, आदम की अनाज्ञाकारिता व स्वार्थीपन ने हमें बरबाद कर दिया था, और एक अन्य बगीचे में दूसरे आदम ने हमारे पापों को अपने उपर लेने की वेदना को सहन किया? अदन के बगीचे में मना किये गये फल खाने से उत्पन्न बीमारियों की औषधि गेतसेमनी ने ही प्रदाय की (सी.एच.स्पर्जन, ''दि एगोनी इन गेतसेमनी,'' दि मेट्रापोलिटन टेबरनेकल पुलपिट, वॉल्यूम २०, पिलगिम पब्लिकेशन्स, १९७१, पेज ५८९)
किंतु आगे चलकर हमारे समक्ष तीसरा बगीचा भी है, और ये तीनों बगीचे मिलकर मनुष्य के पतन और पुन: मसीह यीशु में उसके उत्थान की बातें कहते हैं।
३. तीसरा, उस बगीचे के विषय में सोचिये जिसमें मसीहा की कब्र थी।
“तब उन्होंने यीशु की लोथ को लिया और यहूदियों के गाडने की रीति के अनुसार उसे सुगन्ध द्रव्य के साथ कफन में लपेटा। उस स्थान पर जहां यीशु क्रूस पर चढाया गया था, एक बारी थी; और उस बारी में एक नई कब्र थी; जिस में कभी कोई न रखा गया था। सो यहूदियों की तैयारी के दिन के कारण, उन्होंने यीशु को उसी में रखा, क्योंकि वह कब्र निकट थी।” (यूहन्ना १९:४०−४२)
क्रूसित कलवरी स्थान से लगे बगीचे में यीशु की देह, कब्र में रखी गई थी। उन्होंने एक बडे पत्थर से कब्र का मुंह बंद कर दिया था, और उस पर रोमन मुहर लगाकर उसे बंद कर दिया था। उन्होंने रात भर उस पर रखवाली करने के लिये पहरेदार भी बिठाये।
रविवार की प्रात: मरियम मगदलीनी और एक और मरियम बगीचे में सुगंधित मसाले लेकर, उसकी देह पर लगाने के लिये आई। जैसे ही वे वहां पहुंची एक तीव्र भुईंडोल हुआ। एक स्वर्गदूत आया और कब्र के मुंह पर से पत्थर हटा दिया। उसने उन दो महिलाओं से कहा,
“स्वर्गदूत ने स्त्रियों से कहा, कि तुम मत डरो; मैं जानता हूं कि तुम यीशु को जो क्रूस पर चढाया गया था ढूंढती हो। वह यहां नहीं है, परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठा है; आओ, यह स्थान देखो, जहां प्रभु पडा था।” ( मत्ती २८:५−६)
जब वे चेलों को बताने के लिये जा रही थी, यीशु उन्हें मिला। ''उन्होंने पास आकर और उसके पांव पकडकर उसको दंडवत किया'' (मत्ती २८:९) उसने कहा जाकर चेलों से कह दो।
म्रतकों में से जीवित होना मसीह की दो प्रमुख शिक्षाओं में से एक है। हमारे पापों के बदले उसकी मौत एक दंड चुकाना है, और उसका पुन: जी उठना ताकि हमें जीवन मिले यह सुसमाचार का दूसरा भाग है। ''सुसमाचार'' का अर्थ होता है ''शुभ संदेश'' यह बहुत शुभ सुसमाचार है कि यीशु मरे हुओं में से जी उठा ''ताकि हम धर्मी ठहरें'' (रोमियों ४:२५) उसका मरे हुओं में से जी उठना हमारे लिये धार्मिकता व जीवन उत्पन्न करता है अगर हम विश्वास के साथ उससे मिलकर रहें। जीवित यीशु उन सब को पाप के श्राप एवं अनंत दंड से बचाता है जो उसके पास आते हैं।
“ऐसा ही लिखा भी है, कि प्रथम मनुष्य, अर्थात आदम, जीवित प्राणी बना और अन्तिम आदम, (मसीह) (जीवनदायक) आत्मा बना।” (१कुरंथियों १५:४५)
प्रथम आदम ने तो मनुष्य जाति को पाप व मौत की खाई में धक्का दे दिया था। अंतिम आदम, मसीह, ने उस पाप से हमें छुटकारा दिया और सच्चा जीवन प्रदान किया। जैसा स्पर्जन कहते हैं; ''क्या हम यह धारणा नहीं बना सकते कि एक बगीचे में आदम के (पाप) ने हमें नष्ट कर दिया था, अन्य बगीचे में (अंतिम) आदम ने पुन: हमारी पापमय दशा को दूर कर दिया'' (उक्त) मसीह जो, अंतिम आदम है, तीसरे बगीचे में मरे हुओं में से जीवित हुआ - बगीचे की कब्र में से।
''क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा म्रत्यु आई, तो मनुष्य के द्वारा मरे हुओं का पुनरूत्थान भी आया। और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे'' (१कुरंथियों १५˸२१−२२)
यहां आपको पाप व उद्धार की शिक्षाओं का संपूर्ण दर्शन मिल सकेगा, जो हमें तीन बगीचों को देखने से मिलता है - पाप का बगीचा, दुख उठाने का बगीचा और नया जीवन प्रदान करने का बगीचा!
यह बहुत व सच्ची धार्मिक शिक्षा है। परनतु इससे आपको क्या लाभ पहुंचता है? कुछ भी नहीं, अगर आप का नया जन्म नहीं हुआ है तो। आप जीवित हैं, एक दिन मर जायेंगे और नरक पहुंचेंगे। जो बातें मैं अभी बाईबल में से आपको बता रहा हूं वे आपको पीडा देंगी, कष्ट देंगी, पूरे अनंतकाल तक। मेरी प्रार्थना है आपके साथ ऐसा अनुभव न हो। ऐसा आपके साथ होगी भी नहीं अगर आप स्वयं को यीशु के हाथों छोड देते हैं। और संपूर्ण मन से उसके उपर विश्वास करते हैं।
सोचिये कितना अदभुत कार्य यीशु ने किया कि वह स्वर्ग से कष्ट सहने, लहू बहाने और हमारे पापों से हमारा छुटकारा देने के लिये नीचे उतर आया। क्या आप अपने बारे में सोचना छोड देंगे और केवल उसके बारे में सोचेंगे? क्या आप अपना ही विश्लेषण करना छोड देंगे और अब यीशु की ओर भी निहारेंगे? क्या आप उस पर भरोसा करेंगे बजाय अपने दिमाग और अपनी भावनाओं की चिंता करने के? एक पुराना भजन बिल्कुल सटीक है जब उसके शब्द हम सुनते हैं, ''मसीहा की तरफ देखने में रोशनी है''
हे आत्मा, क्या तू थकी और परेशान है?
अंधेरे में क्या कोई किरण नजर नहीं आती?
मसीहा की तरफ देखने में रोशनी है,
और जीवन आनंद से भरपूर है!
यीशु की ओर देखो,
उसके अदभुत चेहरे को निहारो;
और (तुम्हारे शक और भय का प्रभाव) कम हो जायेगा,
उसकी महिमा व अनुग्रह के प्रकाश में।
(''यीशु की ओर देखो'' द्वारा हेलेन एच.लेमेल, १८६३-१९६१
डॉ.हिमर्स द्वारा थोडा बदला गया है)
अगर आप यीशु द्वारा पापों की शुद्धि के बारे में हमसे बातें करना चाहते हैं, तो निवेदन है कि अपनी जगह छोडकर आँडीटोरियम के पिछले हिस्से में आ जाइये। डॉ.कैगन आपको वहां से दूसरे कमरे में ले जायेंगे जहां हम बात व प्रार्थना कर सकते हैं। डॉ. चॉन, निवेदन है कि आप प्रार्थना करें कि आज सुबह कोई यीशु पर विश्वास लाये। आमीन!
(संदेश का अंत)
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संदेश के पूर्व धर्मशास्त्र पढा गया मि.ऐबेल प्रुद्योमें: लूका२२:३९−४४
संदेश के पूर्व एकल गाना गाया गया। मि.बैंजामिन किन्केड गिफिथ:
“यीशुकीओरदेखो'' (द्वारा हेलेन एच.लेमेल‚१८६३−१९६१ पास्टर द्वारा बदला गया है)
रूपरेखा तीन बगीचों की कहानी द्वारा डॉ.आर.एल.हिमर्स ''क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा म्रत्यु आई, तो मनुष्य के द्वारा मरे हुओं का पुनरूत्थान भी आया। और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे'' (१कुरंथियों १५˸२१−२२) १. प्रथम, कुछ समय के लिये अदन की वाटिका के बारे में सोचते हैं‚ उत्पत्ति२˸८‚१७;रोमियों ५˸१२;८:७;१कुरंथियों २˸१४; इफिसियों २:५ २. दूसरा, अब गेतसमनी के बगीचे के विषय में सोचें‚मरकुस१४:३३‚ लूका२२:४४;इब्रानियों१२:२;यशायाह५३:१०‚६;लूका२२:४४; १कुरंथियों१५:३३;कुलुस्सियों१:२० ३. तीसरा, उस बगीचे के विषय में सोचिये जिसमें मसीहा कब्रथी‚यूहन्ना१९:४०−४२;मत्ती२८:५−६‚९;रोमियों ४:२५;१कुरंथियों१५:४५ |