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प्रेसबिटेरियन्स और बैपटिस्टों में प्रसिद्ध
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यह नये नियम के महानतम उद्धरणों में से एक उद्धरण है। समस्त मनुष्य जाति ने पाप किया है। हम केवल परमेष्वर के अनुग्रह द्वारा ही धर्मी ठहराये जा सकते हैं। हम केवल मसीह के द्वारा ही बचाये जा सकते हैं। परमेष्वर ने यीषु को क्रूस पर बलिदान देने के लिये भेजा ताकि उसका न्याय संतुष्ट हो सके और हम यीषु के लहू बहाये जाने पर विष्वास रखकर बचाये जा सकें। परमेष्वर ने यीषु को हमारे स्थान पर मरने और लहू बहाने के लिये भेजा था ताकि परमेष्वर का न्याय संतुष्ट हो सके और उसी समय पापी भी निर्दोष ठहराये जा सकें। यह सुसमाचार का केंद्रीय भाव है। परन्तु इस सुसमाचार को धर्मविज्ञानी उदारवादी मसीहत स्वीकार नहीं करती। डॉ0 एच.रिचर्ड निबुर ने वर्ष 1938 में उनकी पुस्तक ‘अमेरिका में परमेष्वर का राज्य‘ में इस धर्मविज्ञानी उदारवादी प्रोटेस्टेंटवाद के प्रसिद्ध षब्द इस प्रकार लिखे, ‘‘परमेष्वर बिना क्रोध किये मनुष्य को बिना मसीह के क्रूस द्वारा पाप रहित व निर्दोष बनाकर केवल मसीह की सेवकाई द्वारा अपने राज्य में लेकर आया।” निबुर स्वयं बड़ा उदारवादी व्यक्ति था किंतु उसने देखा कि उदारवाद अपनी अनिष्चितता व खोखलेपन के उपरांत भी प्रोटेस्टेंटवाद की मुख्य धारा को 1930 के मध्य काल में निगल गया। दित्रिच बॉनहाफर ने भी इसी बिंदु को इंगित करते हुए कहा कि अमेरिका में आपको ‘‘बिना उद्धार के प्रोटेस्टैंटवाद” मिलेगा!
उदारवादी प्रोटेस्टैंट आत्मिक सिद्धान्तों को समाप्त करता है ताकि आधुनिक मनुष्य इसे स्वीकार सकें। उदारवादी ‘‘पाप”, ‘‘न्याय”,‘‘कू्रस” और विष्ोषकर ‘परमेष्वर का क्रोध' जैसे षब्दों को नापसंंद करते हैं। उनका मानना है कि ऐसे षब्द अविष्वासियों को चर्च से दूर ले जायेंगे। रॉबर्ट एच.षूलर,उदारवादी,टी.वी.प्रचारक व पास्टर,कुछ इस तरह से समझाते हैं,
‘‘अन्य धर्म को मानने वाले लोगों के समक्ष हम ‘परमेष्वर यों कहता है” जैसे वाक्य नहीं कह सकते। हम उनके सामने जो बाईबल के प्रति आस्था नहीं रखते इस तरह भी प्रचार नहीं कर सकते कि,‘‘बाईबल ऐसा कहती है” (राबर्ट एच.षूलर,डी.डी., सेल्फ-ऐस्टिमः द न्यू रिफॉर्मेषन,वर्ड बुक्स,1982,पृष्ठ 13)
मेरे दृष्टिकोण में यह निरी बकवास,अनर्गल प्रलाप और निरर्थक बातें हैं। मैं 55 वर्षों से इस सेवकाई में हूं। सारे समय मैं गैर-मसीहियों से बातें करता रहता हूं और उन्हे मसीह में जीत लेता हूं। पिछले सोमवार की रात मेरी पत्नी और मैं एक रेस्तरा में षाम का भोजन कर रहे थे। एक चीनी व्यक्ति हमारे पास आया और कहने लगा कि 48 वर्ष पूर्व मैं उसे मसीही विष्वास में लेकर आया था। वह चाइना टाऊन के आसपास घूमने वाला एक छोटा निरंकुष लडका था। लोग उसे हमारे चीनी बैपटिस्ट चर्च में ले आये। गर्मियों के एक कैंप में जब उसने मुझे प्रचार करते हुए सुना वह मसीही बन गया। यह 1915 की बात है। अब वह 55वर्षीय मेडीकल डॉक्टर है। वह याद कर रहा था कि कैसे मैंने उस दिन प्रचार किया था और वह कांपते हुए आया और मसीह पर विष्वास किया।
आगे चलकर, मैंने बिल्कुल गैर मसीही इलाके जैसे उत्तर सैनफ्रांसिस्को में मेरियन काउंटी व लॉस ऐंजल्स के बीचो बीच बसे सिविक सेंटर में मामूली सी संख्या वाले लोगों से दो चर्च स्थापित किये। मैंने सदैव इस तरह प्रचार किया,‘‘परमेष्वर यों कहता है।” मैंने सदैव बाईबल का उद्धरण पढने के उपरांत ही अपना संदेष प्रारंभ किया है।
मैंने कभी भी गैर मसीही पापियों को प्रसन्न करने के लिये अपने संदेष में कोई संषोधन नहीं किया। मेरे पास षूलर्स के समान बडा चर्च नही हो सकता और सही मायने में तो वह सच्चा मसीही चर्च है भी नहीं। उनका‘‘क्रिस्टल कैथेड्रल”अब एक रोमन कैथोलिक चर्च में परिवर्तित हो चुका है। उनकी पूर्व कलीसिया अब चारों दिषाओं में बिखर चुकी है। मेरे द्वारा प्रारंभ किये गये दोनों चर्च अब मजबूत हो चले हैं। तो मेरा मानना यह है कि पापियों से सीधे बात करने का मेरा तरीका ज्यादा उपयोगी है बजाय उनकी उदारवादिता चालाकी का प्रयोग करने के।
यद्यपि उदारवादियों को यह सिखाना अत्यंत कठिन है। न्यू प्रेसबिटेरियन चर्च की भजन कमेटी (अमेरिका) ने अपनी गीत की पुस्तिका मे से बडा प्रसिद्ध आधुनिक गीत ‘‘इन क्राइस्ट अलोन” हटा दिया क्योंकि इस भजन के लेखक उसमें लिखित ‘परमेष्वर का क्रोध' षब्द हटाने के लिये तैयार नहीं थे। यह वह गीत था जो मि.ग्रिफिथ ने अभी-अभी गाया था। जिन पंक्तियों को उदारवादी नहीं चाहते थे, वे इस प्रकार थी,
जब तक यीषु क्रूस पर न मरा,
परमेष्वर का क्रोध संतुष्ट न हुआ।
कुछ महिने पूर्व,दक्षिणी बैपटिस्ट कन्वेंषन ने एक नयी भजनों की पुस्तक इसी भजन के साथ छापी। उन्होंने भजन की पंक्ति ‘परमेष्वर का क्रोध संतुष्ट हुआ', के स्थान पर ‘परमेष्वर का प्रेम महिमा मंडित हुआ' कर दिया। उन्होंने लेखक की अनुमति के बगैर यह परिवर्तन किया,जब प्रेसबिटेरियन्स ने उनकी बात मानने से इंकार कर दिया।
‘‘परमेष्वर का क्रोध संतुष्ट हुआ” को ‘परमेष्वर का प्रेम महिमा मंडित हुआ” से बदल दिया गया। जैसे ही मैंने इसे पढा मैं समझ गया इसमें एक उदारवादी कहलाये जाने वाली महिला का हाथ है। निष्चित तौर पर वह भजन कमेटी की अध्यक्ष और धार्मिक प्रोफेसर मेरी लुईस ब्रिंगल है। उसने पुरूषत्व दर्षाने वाली पंक्ति ‘परमेष्वर का क्रोध संतुष्ट हुआ' को एक नर्म लगने वाली पंक्ति ‘परमेष्वर का प्रेम महिमामंडित' में बदल दिया। लियान जे.पॉडलेस ने मसीहत में व्याप्त इस स्त्रीत्व की भावना के मददेनजर एक भेदने वाली पुस्तक लिखी है, ‘द चर्च इम्पोटेंट' (स्पेंस पब्लिषिंग कंपनी,1999) और डेविड मुरो ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक,‘पुरूष क्यों चर्च जाने से घृणा करते gSa' में स्पष्ट व मजबूत ढंग से यह बात उठायी है कि स्त्रीत्व ही वह कारण है जिसके कारण बडे लोग व जवान चर्च से दूर भाग रहे हैं (थॉमस नेलसन पब्लिषर्स 2004)
कमेटी की अध्यक्षता करने वाली महिला का नाम कुमारी मेरी लुईस ब्रिंगल था। उसका कहना था,“परमेष्वर के लिये क्रूस की आवष्यकता परमेष्वर के क्रोध को षांत करने का उपाय था,इस मत को प्रगट करने से आराधकों को षिक्षा प्रदान करने में नकारात्मक प्रभाव होगा।” क्या कोरी बकवास है यह! धर्मषास्त्र का वचन सदियों से मसीह के हमारे स्थान पर बलिदान देने की समझ को पूर्ण संतुलन प्रदान करता है। यह भजन बिल्कुल सही कहता है,
जब तक यीषु क्रूस पर न मरा
तब तक परमेष्वर का क्रोध संतुष्ट न हुआ
क्योंकि हरेक पाप जो उस पर लादा गया -
मसीह की मृत्यु में मैं जीवित हूं।
कुमारी ब्रिंगल और उनकी कमेटी के उदारवादियों का मानना था कि ‘परमेष्वर के न्याय की संतुष्टि' वाला सिद्धान्त कि मसीह ने क्रूस पर हमारे छुटकारे के लिये बलिदान दिया, ग्यारहवीं षताब्दी में धर्मविज्ञानी ऐनसेल्म द्वारा खोजा गया था। किंतु वे लोग गलत थे। पुराने नियम में मसीह से लगभग सात सौ वर्ष पूर्व, भविष्यवक्ता यषायाह ने कहा था,
“वह (परमेष्वर पिता) अपने प्राणों का दुख उठा कर उसे देखेगा और तृप्त होगा; अपने ज्ञान के द्वारा मेरा धर्मी दास बहुतेरों को धर्मी ठहराएगा; और उनके अधर्म के कामों का बोझ आप उठा लेगा।” (यषायाह 53:11)
इसलिये “संतुष्ट” करने वाला सिद्धांत बाईबल में ऐनसेल्म से 1800 वर्ष पूर्व पढा दिया गया था। इसके साथ ही नये नियम में रोमियों 3:25; 1यूहन्ना 2:2 और 1यूहन्ना 4:10 में प्रायष्चित षब्द का प्रयोग, संतुष्ट करने को दर्षाने के लिये, सहायक ष्षब्द के रूप में प्रयोग किया गया है। पांच ईसवी सन में अगस्टीन ने घोषणा की कि मसीह ने क्रूस पर परमेष्वर के न्याय को संतुष्ट किया। और ऐनसेल्म को अस्वीकृत नहीं किया जा सकता। क्रिष्चियनिटी टू Ms में कहा गया था कि,“ऐनसेल्म हमेषा ही समकालीन रहा है- और सुसमाचार प्रचारकों के लिये आषीष का कारण रहा है।” इसके एक अध्याय में जिसका षीर्षक ‘संतुष्ट करना व बदले में प्राण देने की रूपरेखा,' से संबंद्ध महान प्यूरिटन धर्मविज्ञानी जॉन ओवेन ने (1616-1683) में निम्नलिखित आयतें उदधृत की,
“जो पाप से अज्ञात था,उसी को उस ने हमारे लिये पाप ठहराया,कि हम उस में होकर परमेष्वर की धार्मिकता बन जाऐं।” (2कुरूंथियों 5:21)
‘मसीह ने जो हमारे लिये श्रापित बना,हमें मोल लेकर व्यवस्था के श्राप से छुडाया क्योंकि लिखा है,जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह श्रापित है।'' (गलातियों 3:13)
“इसलिये कि मसीह ने भी,अर्थात अधर्मियों के लिये धर्मी ने पापों के कारण एक बार दुख उठाया,ताकि हमें परमेष्वर के पास पहुंचाएः यह षरीर के भाव से तो घात किया गया,पर आत्मा के भाव से जिलाया गए।''(1पतरस 3:18)
तब ओवेन ने कहा,‘‘ये सभी उद्धरण (अविवादित) रूप से यह दर्षाते हैं कि मसीह ने हमारे स्थान पर दुख उठाया और हमें बचाने आये। साधारण रूप में, हमारा लक्ष्य यह है कि परमेष्वर को संतुष्ट करने के द्वारा, कि वह ‘हमारे लिये पाप' ठहराया गया,ताकि हम आगे आने वाले क्रोध से बचाये जा सकें.......इसलिये, परमेष्वर की ओर से यह निष्चित किया गया कि ‘जिस ने अपने निज पुत्र को भी न रख छोडा,परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया' (रोमियों 8:32) ........(मसीह) ने उनके पापों को अपने ऊपर उठा लिया अथवा पापों के कारण जो दंड मनुष्य जाति को मिलना था,उस दंड को यीषु ने सह लिया........ताकि परमेष्वर का न्याय तृप्त किया जा सके और व्यवस्था पूर्ण हो सके,ताकि मनुष्य पापों से मुक्त हो सके और परमेष्वर के आने वाले क्रोध से बच सके; और इसीलिये एक संतोषजनक मूल्य यीषु ने हमारे छुटकारे के लिये चुकाया है कि परमेष्वर को संतुष्ट करें। ये वे चीजें हैं जो ‘संतुष्ट किये जाने‘ की ओर इषारा करती हैं (जॉन ओवेन डी.डी., ‘‘सेटिसफेक्षन एंड सबमिषन की रूपरेखा,” द वर्कस अॉफ जॉन ओवन, वाल्यूम 2, द बेनर अॉफ ट्रुथ ट्रस्ट,2004 पुनः मुद्रित,पृष्ठ 419)।
मैं जानता हूं यह एक कठिन पैरा है समझने व अनुसरण करने के लिये। डॉ0ओवेन एक धर्मविज्ञानी थे,प्रचारक नहीं। इसलिये मैं आपको एक साधारण व्याख्या के द्वारा न्याय का पूर्ण किया जाना समझाउंगा,जो भजन के इन षब्दों पर भी प्रकार डालता है
, .जब तक यीषु क्रूस पर न मरा
परमेष्वर का क्रोध संतुष्ट न हुआ
डॉ0थॉमस हेल ने कहा था,
क्योंकि परमेष्वर न्यायी व धर्मी है अतः उसके द्वारा पापों का दंड दिया जाना आवष्यक है। यह उसके न्याय का प्रगटीकरण था कि परमेष्वर ने हमारे पापों के बदले मसीह को दंडित किया। किंतु यह उसका प्रेम भी था कि उसने मसीह को हमारे स्थान पर दंडित किया। मसीह को दंड देने के द्वारा परमेष्वर वास्तव में अपने ऊपर दंड ले रहा था। क्योंकि परमेष्वर ने जगत से इतना प्रेम रखा कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया(थॉमस हेल,डी.डी., हेल,डी.डी., दअप्लाइडन्यू टेस्टामेंट कमेंटरी, किंग्सवे पब्लिकेषन्स, 1996,पृष्ठ 538;रोमियो 3:25)
कुमारी ब्रिंगल ने कहा था कि वह और उनकी कमेटी भजन में से इन षब्दों को निकालना चाहती हैः ‘‘परमेष्वर का न्याय संतुष्ट हुआ” क्योंकि यह धर्मविज्ञानी मत की ओर इषारा करता है जिसे वे अस्वीकृत कर चुके हैं। यह सच हो सकता है किंतु यह संपूर्ण सत्य नहीं है। मुझे लगता है उसे पुल्लिंग षब्द जैसे “परमेष्वर का क्रोध” आदि पसंद नहीं है। इसलिये वह स्त्रियोचित षब्द जैसे “परमेष्वर का प्रेम महिमामंडित” हुआ से बदलना चाहती है। इसीलिये वह स्त्रीलिंग दर्षाने वाले षब्दों का प्रयोग करने की इच्छुक है।
डेविड मूरो जो प्रेसबिटेरियन चर्च (अमेरिका )के धर्मवृद्ध हैं और कुमारी ब्रिंगल के समान ही डिनोमिनेषन के सदस्य हैं। कुमारी ब्रिंगल व उनकी कमेटी को वास्तव में मुरो की पुस्तक ‘‘आदमी चर्च जाने से क्यों घृणा करता है” (नेलसन 2008) पढना चाहिये। मुरो ने इसमें लिखा था“..........चर्च में नेतृत्व करना अर्थात पुरूषत्व न स्त्रीत्व वाली आत्माओं के मध्य संतुलन बनाये रखना” (पृष्ठ 152)। उसकी किताब का मुख्य भाव है कि हमारे चर्चेस में महिलाओं संबंधी कार्यक्रमों व उनसे संबंधित मूल्यों का जरूरत से अधिक प्रचार किया गया है। व्यक्तिगत तौर पर मेरा भी यही मानना है। इसे सुनिये,जो मुरो ने कहा है,
पुरूष किंन्ही असंभव परिस्थितियों में भी संसार को बचा लेने की कल्पना करते हैं। स्त्रियां किसी अदभुत पुरूष से संबंध होने की कल्पना करती है......
कुछ कलीसियाओं मेें पुरूषत्व के मूल्यों पर आधारित होकर कार्य पूर्ण होता है,पुरूषत्व दर्षाने वाले मूल्य अर्थातः जोखिम लेना और पुरस्कृत करना,कार्य संपादित करना,वीरतापूर्वक बलिदान, रोमांचक कार्य करना। हर वह व्यक्ति जो इन मूल्यों पर आधारित होकर कार्य करता है; चर्च की कौंसिल को उससे तकलीफ हो जाएगी। इसलिये (पुरूष चर्च जाने से चिढने लगते हैं, पृष्ठ 15)
क्या भजन ‘‘इन क्राइस्ट अलोन‘‘ के ऊपर विवाद में मैं बहुत आगे निकल गया हूं? मैं ऐसा नहीं सोचता। मैं सोचता हूं कि इन ष्षब्दों को सूक्ष्म परिप्रेक्ष्य में बदलने से एक विषाल दृष्टिकोण उभर कर सामने आता है- एक छोटी सी जानकारी जो हमारे चर्चेस के अंदर व्याप्त स्त्रियोचितपन बडी समस्या को सामने लाकर रख देती है। इसकी मूल पंक्तियों को सुनिये,
जब तक यीषु क्रूस पर न मरा
परमेष्वर का क्रोध संतुष्ट न हुआ
ये मूल पंक्तियां दो पुरूषों द्वारा लिखित है। अब कुमारी ब्रिंगल व उनकी कमेटी ने इसे संपादित कर इस तरह बना दिया,
जब तक यीषु क्रूस पर न मरा
परमेष्वर का प्रेम महिमामंडित नहीं हुआ।
इसमें से कौन सी पंक्तियां पुरूषत्व को दर्षाती हैं? कौन सी पंक्तियां पुरूष को प्रभावित करेगी? निष्चित ही, वह मूल भजन की पंक्तियां जो दो पुरूषों ने मिलकर रची है! “परमेष्वर का क्रोध संतुष्ट न हुआ।” इस प्रकार के परमेष्वर को मनुष्य सम्मान देता है - वह परमेष्वर जो लगातार पाप में पडे अनाज्ञाकारी मनुष्यों को प्रलय में डुबो देता है; वह परमेष्वर जो जमीन को गडडे के समान खोलकर उसमें विद्रोहियों के झुंड को सीधे नरक पहुंचाता है; वह परमेष्वर जो दुष्ट फिरौन और उसके सिपाहियों को लाल समुद्र में डुबो कर नष्ट कर देता है, वह परमेष्वर जो एक दुष्ट राजा को अपनी सामर्थ दिखाता हुआ, तीन इब्री पुरूषों को धधकती भटटी में से बिना नुकसान पहुंचे निकाल लाता है; वह परमेष्वर जो मंदिर में एक बार नहीं दो बार जाता है और व्यापारियों की मेजे उलट देता है और उन को बाहर निकाल देता है; वह परमेष्वर जो बंदीगृह के दरवाजे खोल देता है और पतरस को बच निकलने देता है और उसे धार्मिक षासकों के पास ले चलता है और बुलवाता है कि मनुष्योंं की आज्ञा से बढकर परमेष्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है;‘‘वह परमेष्वर जो एक पुरूष व उसकी पत्नी को पतरस से झूठ बोलने के कारण मृत बना देता है; वह परमेष्वर जिसने (अपनी) ‘‘ठहराई हुई मनसा और होनहार के ज्ञान के अनुसार” मसीह को ‘‘अधर्मियों के हाथ से” पकडवाया और कू्रस पर चढवाकर मार डाला (पे्ररितो के काम 2:23); वह परमेष्वर जिसने ‘‘हमारे अधर्म उस पर लाद दिये” (यषायाह 53:6); वह परमेष्वर जिसको‘‘यह भाया कि उसे कुचले और रोगी कर दे और उसका प्राण दोषबलि करे........ उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी हो जाएगी। वह अपने प्राणों का दुख उठाकर उसे देखेगा (और) तृप्त होगा‘‘ (यषायाह 53:10,11)- यही वह परमेष्वर है जिसका वर्णन इस भजन में है,
जब तक यीषु क्रूस पर न मरा
परमेष्वर का क्रोध संतुष्ट न हुआ!!!
वह परमेष्वर, और ऐसा ही परमेष्वर, इस प्रकार का परमेष्वर है जिसका सम्मान मनुष्य करता है और उसका अनुसरण करता है- न कि किसी स्त्रियोचित व कमजोर गुण प्रगट करने वाले परमेष्वर का सम्मान होगा जो कुमारी ब्रिंगल का परमेष्वर है, परन्तु सीनै पर्वत पर बसने वाले, कलवरी पहाड पर बलिदान देने वाले- “उस महान व कंपकंपाने वाले परमेष्वर” का जो नहेमायाह का परमेष्वर है (नहेमायाह 1:5)- ‘‘महान और भययोग्य परमेष्वर” जो दानियेल का परमेष्वर है (दानियेल 9:4)- परमेष्वर जिसने स्वयं अपने एकमात्र प्रिय पुत्र को अपने ही हाथो से “हमारे लिये श्रापित ठहराया” (गलातियों 3:13)- वह बाईबल का परमेष्वर है! वह परमेष्वर है और मसीह का पिता है! वह मेरा प्रभु है और वह मेरा परमेष्वर है! मैं कुमारी ब्रिंगल के परमेष्वर को नहीं जानता - और मैं उसे जानना भी नहीं चाहता - और अधिकतर लोग उसे नहीं जानना चाहते हैं! इसीलिये एपिस्कोपल चर्च ने अपने कई सदस्यों को खो दिया है। इसलिये मेथोडिस्ट चर्च ने अपने कई सदस्यों को खो दिया है! और हां कुमारी ब्रिंगल के प्रेसबिटेरियन चर्च (अमेरिका) ने अपने कई लोगों को खो दिया है (मुरो,पृष्ठ 55)
श्रीमान मुर्रो की पुस्तक में एक अध्याय का षीर्षक है, केवल पुरूष ही चर्च को नहीं छोड रहे हैं, मुरो का कथन है कि महिलायें सुरक्षा चाहती हैं किंतु पुरूष व जवान चुनौती लेना पसंद करते हैं। तो अनुमान लगाइये? महिलायें अधिकतर चर्च में रहना पसंद करती हैं- और पुरूष व जवान कम से कम चर्च में ठहरना पसंद करते हैं! (पृष्ठ 18) क्या यह भी एक कारण हो सकता है कि 25 वर्ष की आयु तक के 88 प्रतिषत नौजवान हमारे चर्चेस से दूर जा रहे हैं? मुर्रो का मानना है कि पुरूष व जवान, चर्च को बच्चों व महिलाओं के लिये पाते हैं, जहां उन्हें चुनौती देने वाली कोई बात नहीं है, और इसीलिये वे चर्च छोड जाते हैं!
अगर आप युवक और बडे लोगों के समूह का एक क्रास-सेक्षन तैयार करके उनका मत लेते हैं-तो बताइये निम्न किन पंक्तियों पर वे अपना मत प्रदान करेंगे?
जब तक यीषु क्रूस पर न मरा
परमेष्वर का क्रोध संतुष्ट न हुआ
अथवा
जब तक यीषु क्रूस पर न मरा
परमेष्वर का प्रेम महिमामंडित न हुआ?
यद्यपि, दोनों बातें सही हैं, किंतु मैं जानता हूं कि अधिकतर पुरूष व जवान मूल षब्दों के लिये, जो दो पुरूषों ने लिखे थे, उस पर अपना मत देंगे, बजाय कुमारी ब्रिंगल के पुनरीक्षित संस्करण को मत देने के।
पुरूष और युवक एक महान, ताकतवर और भययोग्य परमेष्वर की ओर खिंचे चले आते हैं- जो बाईबल का परमेष्वर है ! अधेडावस्था की महिलाऐं, जिनका हृदय परिवर्तन नहीं हुआ है वे एक नम्र और सुरक्षित परमेष्वर का रूप पसंद करती है; वे परमेष्वर को चुनौतीपूर्ण और दंड देने वाले परमेष्वर के रूप में पसंद नहीं करती। अतः हमारे चर्चेस में अधेडावस्था व बूढी स्त्रियों की भरमार है जबकि पुरूष व 88 प्रतिषत युवकों को हम खो देते हैं।
हमारा स्वयं का चर्च पुरूषों से भरा रहता है। क्यों मैं सोचता हूं इसके कई कारण हैं। पहला कारण, मैं इस बात के लिये निष्चिंत रहता हूं कि मेरे संदेष बाईबल के महान व भययोग्य परमेष्वर पर एवं पराक्रमी व सौष्ठव मसीह के ऊपर केंन्द्रित हो जिन्होंने अपने व्यक्तियों का नेतृत्व किया कि वे संसार पर विजय प्राप्त करें। मैं लगातार उन साहसी पुरूषों व महिलाओं का उदाहरण देता रहता हूं जिन्होंने परमेष्वर की महिमा के लिये अपने प्राणों का बलिदान दिया। हम हमारे चर्च की दीवारों पर उनकी तस्वीर व चित्र टांंगते हैं ताकि विष्वास के इन महान वीरों को दिखा सकें। जैसे स्पर्जन, एडवर्डस, बुनयन, नॉक्स, वाइटफील्ड, वेस्ली,विलियम जेनिंग्स ब्रायन और ऐसे ही कई नाम इसमें षामिल है। आज उद्धार का रविवार है। जैसा हमेषा होता है हम लूथर पर आधारित ष्वेत व ष्याम पिक्चर देखेंगे और तत्पष्चात हमारा रात्रि-भोज तैयार है। इसके पूर्व, आराधना में हमने लूथर का ही द्रवित व सामर्थ प्रदान करने वाला गीत गाया था जिसके षब्द इस प्रकार हैं, ‘‘परमेष्वर हमारा षक्तिषाली गढ है।”
हम पुरूषों के लिये ‘‘नाष्ता” तैयार नहीं रखते। हमारे पास युवकों के लिये ‘‘आइस्क्रीम” भी नहीं है। नहीं! हम उन्हें लॉस ऐंजल्स की गलियो में दो-दो करके भेजते हैं ताकि वे जाकर आत्मा को जीतें। क्या यह कोई भयानक काम है? षायद कुमारी ब्रिंगल के लिये यह भयानक काम हो सकता है? क्या यह उसके कानों में घंटी नहीं बजाएगा! परन्तु हमारे पुरूषों व युवकों के लिये यह चुनौतीपूर्ण जरूर हो- निष्चित ऐसी ही चुनौती को उठाने की उन्हें आवष्यकता है-ताकि वे क्रूस के सच्चे सिपाही कहला सके!!!
बाईबल कहती है,
“मसीह यीषु के अच्छे योद्धा की नाईं मेंरे ाथ दुख उठा” (2तिमुथियुस 2:3)
“यदि हम धीरज से सहते रहेंगे,तो उसके साथ राज्य भी करेंगेः यदि हम उसका इन्कार करेंगे तो वह भी हमारा इन्कार करेगा” (2तिमुथियुस 2:12)
“उस ने सब से कहा,यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे,तो अपने आप से इन्कार करे और प्रतिदिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले” (लूका9:23)
“स्वामी ने दास से कहा,सडकों पर और बाडों की ओर जाकर लोगों को बरबस ले ही आ ताकि मेरा घर भर जाए” (लूका 14:23)
ये सभी उद्धरण बडे ही रोमांचक व चुनौतीपूर्ण हैं जो पुरूषों व युवकों को- और हमारी महिलाओं को - उनका जीवन मसीह व कलीसिया के प्रति समर्पित रखकर जीने के लिये प्रेरित करते हैं।
और हृदय परिवर्तन का क्या होगा? स्मरण रखें, हृदय परिवर्तन हमें किसी भी प्रकार से डरपोक, बेवकूफ व परास्त व्यक्ति नहीं बनाता है। हृदय परिवर्तन एक ऐसा बडा कदम है जो व्यक्ति को उस प्रकार का व्यक्ति बना देता है जैसा परमेष्वर उसे चाहता है! मैं निष्चित तौर पर कह सकता हॅूं कि अगर मैं परिवर्तित नहीं हुआ तो मैं एक परेषान व असफल जीवन ही जी रहा होता। जब मैं मसीह के पास आया, उसने मुझे वह बनने की ताकत प्रदान की जो मुझे होना चाहिये था, और जो करना चाहिये, वह मैं कर सकूं, मैं ऐसी सामर्थ का स्वामी बन गया! मेरे जीवन की पसंदीदा आयत यह हैः
“जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं” (फिलिप्पियों 4:13)
‘‘जो मुझे सामर्थ देता है,”
लूथर की ओर देखो। वह कमजोर,डरपोक, परास्त आदमी था जो एक मठ में अपने दिन बिता रहा था। तब उसने मसीह पर विष्वास किया! और वह क्रूस का एक सामर्थषाली सिपाही बन गया। स्पर्जन ने लूथर के लिये कहा था कि, ‘‘वह एक सेना को आदेषित कर सकता था।”
जब आप अपनी पापमय दषा को स्वीकार कर लेत हो,क्रूस के तले गिर जाते हो, तो आप डॉ0 जॉन संंग के समान उठ खडे होंगे और एक सामर्थी मसीही बनेंगे जैसा परमेष्वर आपको बनाना चाहता है! पतरस की ओर देखो! अगस्टीन की ओर देखो! बुनयन की ओर देखो! ये सभी मसीह के पास निर्बल व भयभीत होकर आये थे, किंतु मसीह पर विष्वास लाने के पष्चात वे सामर्थी व्यक्ति के रूप में उठ खडे हुए। वेस्ली की ओर देखो- वह जार्जिया के मिषन क्षेत्र से भाग रहा था, निर्बल होकर मसीह के सामने गिर पडा - और महान आदमी के रूप में उठ खडा हुआ व संपूर्ण इंग्लैंड को परमेष्वर को मानने की षिक्षा देकर हिला दिया। वाईटफील्ड की ओर देखो,जो बिस्तर पर यह कहकर रो रहा था कि, ‘‘मैं प्यासा हूं, मैं प्यासा हूं!” और जब वह अपनी पापमयी दषा की निर्बलता से बाहर निकला उसने दो महाद्वीपों में सुसमाचार फैला दिया। आप नहीं कह सकते कि परमेष्वर आपके जीवन के साथ क्या करने जा रहा है अगर आपने मसीह को अपना जीवन दिया जो हमारे खातिर क्रूस पर चढाया गया और परमेष्वर का क्रोध सहा ताकि हम उस प्रकार के पुरूष-व-महिला बन सकें जैसा परमेष्वर हमसे चाहता है। ताकि हम लूथर के साथ यह गा सकें,
हमारा परमेष्वर एक मजबूत गढ है,
कभी न टूटने वाली षहरपनाह;
हमारा सहायक, उसने संसार की
दुष्टता के बढने पर.....
धन और जन को जाने दिया,
इस नष्वर जीवन को समाप्त होने दिया;
षरीर को वे घात कर सकते हैःं
परमेष्वर का सत्य अटल बना रहता है,
उसका राज्य सदैव बना रहेगा!
(‘‘हमारा परमेष्वर एक मजबूत गढ है” मार्टिन लूथर द्वारा रचित, 1483-1546)
आप निष्चिंत हो सकते हैं कि लूथर ने वे पंक्तियां चुनी थीं जो इस प्रकार कहती है,
उस क्रूस पर यीषु मरा,
परमेष्वर का क्रोध संतुष्ट हुआ।
मसीह के पास आइये, आज रात ही आइये। वह आपके पाप को क्षमा करेगा और आपको परमेष्वर के लिये जीवित रहने के लिये सामर्थ प्रदान करेगा।
(संदेश का अंत)
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संदेष के पूर्व धर्मषास्त्र पाठ का पठन श्री ऐबेल प्रुदोमे द्वारा किया गयाः रोमियों 3:20-26
संदेष के पूर्व एकल गान श्री बैंजामिन ग्रिफिथ द्वारा प्रस्तुत किया गयाः
‘‘इन क्राइस्ट अलोन‘‘ (केथ गेटी और स्टीवर्ट टाऊनएंड द्वारा रचित,2001)