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खोई आत्माओं का द्वीप THE ISLAND OF LOST SOULS डो. आर. एल. हायर्मस, जुनि. द्वारा लोस एंजलिस के बप्तीस टबरनेकल में प्रभु के दिन की ‘‘षरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है; परंतु आत्मा पर मन लगाना जीवन और षान्ति है। क्योंकि षरीर पर मन लगाना तो परमेष्वर से बैर रखना हैः क्योंकि न तो परमेष्वर की व्यवस्था के अधीन है, और न हो सकता है। और जो षारीरिक दषा में है, वे परमेष्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते'' (रोमियों 8:6-8)। |
प्रेरितो पौलुस ने कहा, ‘‘षरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है''। यह उनकी दषा का वर्णन करता है जो खोए हुए है। ‘‘मृत्यु'' जिसकी वे बात करते है वो है आत्मिक मृत्यु। उन्होंने इफिसियों के दूसरे पाठ में इसके बारे में दो बार बात की। उन्होंने कहा वे ‘‘अपराधों और पापों के कारण मरे हुए'' थे (इफिसियों 2:5)। उन्होंने कहा वे ‘‘पाप में मरे हुए'' थे (इफिसियों 2:5)। इफिसियों 2:5 पर स्कोफिल्ड की टीप्पणी कहती है, ‘‘आत्मिक मृत्यु स्वाभाविक या फिर से न जन्मे हुए आदमी की अवस्था है जैसे वह अभी भी अपने पापों में है, परमेष्वर के जीवन से अलग किया हुआ, और आत्मा रहित'' (ध स्कोफिल्ड स्टडी बाइबल, 1917 की प्रत, इफिसियों 2:5 पर टीप्पणी)।
प्रेरितो ने ‘‘मृत्यु'' षब्द का अन्तर किया ‘‘जीवन और षान्ति'' षब्दों से! अपरिवर्तित रहना आत्मिक ‘‘मृत'' रहने जैसा है। परिवर्तित होना ‘‘जीवन और षान्ति'' मिलने समान है। डॉ. मार्टीन लोयड-जोन्स ने निर्देष किया कि ‘‘षान्ति'' रोमियों के पाठ 8 में मुख्य षब्द है। और पौलुस के अनुसार इसका अर्थ है ‘‘परमेष्वर के साथ षान्ति'' -
‘‘अतः जब हम विष्वास से धर्मी ठहरे, परमेष्वर के साथ मेल रखे'' (रोमियों 5:1)।
बिन-मसीही लोगों को परमेष्वर के साथ षान्ति क्यों नहीं होती? कारण हमारे पाठ के पद 7 में दिया है। उनको प्रभु के साथ षान्ति नहीं होती,
‘‘क्योंकि षरीर पर मन लगाना तो परमेष्वर से बैर रखना हैः क्योंकि न तो परमेष्वर की व्यवस्था के अधीन है और न हो सकता है'' (रोमियों 8:7)।
1599 की जीनीवा बाइबल ‘‘विशयी'' को ‘‘षरीर'' की तरह अनोवाद करती है। और इसकी इस पद पर टीप्पणी देती है। ‘‘षरीर से उनका अर्थ है आदमी जो फिर से न जन्मा हो''। बिनाबचाया हुआ, फिर से न जन्मा हुआ व्यक्ति ‘‘परमेष्वर से बैरी है''।
अगर गंभीरता से लिया जाए, पद हमें देता है भयानक नकारात्मक मंतव्य मानव-जाति का उसके पाप में अपरिवर्तित अवस्था में।
‘‘क्योंकि षरीर पर मन लगाना तो परमेष्वर से बैर रखना हैः क्योंकि न तो परमेष्वर की व्यवस्था के अधीन है और न हो सकता है'' (रोमियों 8:7)।
चाहे बहुत नकारात्मक, यह मानव-जाति का सही वर्णन है। चलिये दो मुददो के बारे में सोचे जो हमारे पाठ से आते है।
।. पहला, यह पाठ मानव जाति का एकदम सही वर्णन है।
पिछले रविवार मैं मेरी व्यायाम-षाला में तैर रहा था। वहाँ मैं एक स्त्री से मिला जिसे मैंने बहुत महिनों से नहीं देखा था। वह बहुत ही अच्छी व्यक्ति है आनंदित व्यक्तित्व के साथ। मैं प्रसन्नता उसे बहुत महिनों बाद फिर से देख के। अवष्य वह जानती है कि मैं याजक हूँ। जैसे मैं सदा हमारा वार्तालाप हकारात्मक और सम्मुख रखने का प्रयत्न करता हूँ। मुझे स्मरण नहीं है क्यों, परंतु हमने तीन या चार मिन्ट से अधिक बात नहीं की होंगी उसके कहने के पहले की वह परमेष्वर में विष्वास नहीं कर सकी जिसने संसार में इतनी सारी तड़प, दुःख स्वीकृत किया। जबकि वहाँ इतना दुःख है, उसने कहा वह प्रभु में विष्वास नहीं करती, और यह उसकी भूूल थी। वह उनका विष्वास करती अगर उन्होंने बाते इस प्रकार की होती जैसे उसने सोचा वह होनी चाहिए थी! अच्छा, अवष्य, मैंने प्रभु को बचाया। मैंने कहा यह आदमी था, प्रभु नहीं जिसने उसका प्रभु के सामने द्रोह से इतनी पीड़ा लाए। परंतु उस पर उसकी आँखे चमक उठी, और वह सुन नहीं रही थी। मैंने विशय बदला और उसके बाद हमारे पास प्रसन्न वार्तालाप था।
उस स्त्रीने जो कहा यह एकदम यर्थाथ द्रश्टांत था खोए लोग जो सोचते हैं उसका। ‘‘षरीर पर मन लगाना परमेष्वर से बैर रखना है''। उन्हें प्रभु जिस तरह चीजे करते है वह पसंद नहीं। वे परमेष्वर से नाराज़ है। जब वे प्रभु के बारे में सोचते हैं, वे उनसे एक या दूसरे कारण से नाराज़ होते है। ‘‘याजक ने मुझे कश्ट दिया है''। वह केथलिकों के लिये बड़ी बात है। ‘‘अगर वहाँ प्रभु होते, उन्होेंने वह स्वीकृत नहीं किया होता,'' वे कहते हैं। मैंने जवाब दिया, ‘‘हाँ, परंतु प्रभु को उससे कुछ मतलब नहीं है। यह आदमी था पाप में जिसने वह किया!'' उनकी आँखे चमक उठ़ी। वे आपको नहीं सूनेंगे। वे परमेष्वर को दोश देते ही रहेंगे।
‘‘मैंने कलीसिया में पाखण्डी देखे''। वह बेप्टीस्ट और पेन्टाकोस्टल्स के लिये बड़ी बात थी। मैंने जवाब दिया, ‘‘हाँ, परंतु परमेष्वर ने वह नहीं किया। पापी आदमी ने वह किया। यह प्रभु नहीं थे जिन्होंने उन्हें पाखण्डी बनाया। उन्होंने अपनेस्वयं को पाखण्डी बनाया''। फिर से, उनकी आँखे चमक उठ़ी और वे मुझसे दूर देखने लगे। और इसलिये यह हरएक अपरिवर्तित व्यक्ति कि साथ होता है मैं जिनसे बात करता हूँ। हरएक सोचते है कि वे कहते है कुछ गंभीर और गहन चाहे - ऐसा किसी ओर ने कभी भी सोचा हो इसके बारे में!!! फिर भी, उनकी षिकायतें इतनी सामान्य है कि वे वास्तव में सर्वव्यापी है!!! हरएक जो परिवर्तित नहीं है एकदम इसी प्रकार बोलते है प्रभु के बारे में। ऐसा लगता है वे सब बिस्कुट के समान ढांचे से आए हो! और उनकी दलीले ना सिर्फ सर्वव्यापी है, परंतु हकीकत में बहुत बालिष है। ‘‘मुझे नहीं पसंद प्रभुु जिस प्रकार चीजे करते है - इसलिये मैं उन में विष्वास न करके उनको सजा दूंगा''। अनर्थक! व्यक्ति जिन्हें वे क्षति पहुँचाते है वो है सिर्फ वे स्वयं। बालहठ, बिगडे़ हुए बच्चे की तरह, वे अपना खिलौना उठ़ाते है और चले जाते है जब जीवन का खेल उनके आग्रह के समान नहीं खेला जाता!
‘‘क्योंकि षरीर पर मन लगाना तो परमेष्वर से बैर रखना हैः क्योंकि न तो परमेष्वर की व्यवस्था के अधीन है और न हो सकता है'' (रोमियों 8:7)।
ध्यान दीजीये कैसे आदमी का भ्रश्ट, विशयी स्वभाव अपनेस्वयं को कलीसिया में व्यक्त करता है। कलीसिया अलागाने का कारण सदा अपरिवर्तित कलीसिया सदस्यों द्वारा हुआ है। मैं सोचता हूँ वहाँ कोई ओर पर्याय नहीं है - कम से कम मैंने कभी भी जिसके बारे में सुना या जाना हो। जब चीजे एकदम ऐसे नहीं होती जैसे वे चाहते है उसे होना, वे अपने खिलौने उठाते है, गुस्से में कुछ कहते है, और चले जाते है! किनारा आता है जब आप उनके साथ प्रयत्न करते हो विचार करने का, या उन्हें पवित्रषास्त्र दिखाने का। आप कहते हो, ‘‘परंतु प्रभु नहीं चाहते आप कलीसिया छोड़ो''। वे आपको सुन नहीं सकते। उनकी आँखे चमक उठ़ती है, ओर वे आपसे दूर देखते है। मैंने कभी भी एक आदमी भी नहीं जाना जो संतुश्ट किया जा सके उनके कलीसिया छोड़ने के निर्णय लेने के बाद - एक भी नहीं! क्यों?
‘‘क्योंकि षरीर पर मन लगाना तो परमेष्वर से बैर रखना हैः क्योंकि न तो परमेष्वर की व्यवस्था के अधीन है और न हो सकता है'' (रोमियों 8:7)।
मेरी बेन्क में काम करनेवाली लड़कियों में एक जो गिनती करने का काम करती है उसने मुझे कहा वह मेरे घर के करीब छोट़े सधर्न बेप्टीस्ट कलीसिया में जाती थी। परंतु उसने कहा उसके मातापिता गुस्सा हो गए और छोड़ दिया - और उनके बिना वह वहाँ सुख महसूस नहीं करती थी। मैंने उससे बातचीत करने का प्रयत्न किया, परंतु उसकी आँखे चमक उठी, और उसने दूसरी ओर देखा। उसने सोचा उसके मातापिता सही थे कलीसिया अलगाने, चाहे अब वे किसी भी कलीसिया में नहीं जाते, वह स्वयं हाँफ चुकी थी और अब नहीं जाती, और कलीसिया स्वयं इतना नश्ट हो गया है कि इसका मुष्किल से अस्तित्व था - थोड़ी सी स्त्रीयाँ जो हाज़िर रहती थी उनके साथ! जब आप ऐसे लोगों से बात करने का आषय करते हो, और उन्हें पवित्रषास्त्र दिखाते हो, वे सदा उसी समान प्रकार से प्रतिभाव देेते है - जैसे वे समान बिस्कुट के ढाँचे से आते हो! उनकी आँखे चमक उठ़ती है, और वे फिर जाते है। क्यों?
‘‘क्योंकि षरीर पर मन लगाना तो परमेष्वर से बैर रखना हैः क्योंकि न तो परमेष्वर की व्यवस्था के अधीन है और न हो सकता है'' (रोमियों 8:7)।
सिर्फ एक और प्रमाण! उनसे बात करो जो फिर से मसीही नहीं जन्मे है। उन्हें मक्कम सुसमाचार प्रचारित धार्मिक प्रवचन दिजीये। उन्हें सामर्थ्यवान प्रार्थना सभाएँ दो। उन्हें खाना, और समागम, और महान् उपदेष दो - और उन सबको करीबन क्या करना है वह करो? वे कुछ प्राप्त करेंगे जिससे वे असहमत हो! वे कुछ बहाना खोजेेंगे व्याकुल रहने का। यह उनकी गलती नहीं होगी! ओह, नहीं, यह कभी भी उनकी गलती नहीं हो सकती! आप मानवीयता से जो हो सके कर सकते हो उन्हें रखने - और वे क्या करेंगे? उनकी आँखे चमक उठें़गी, और वे फिर जाएँंगे,
‘‘क्योंकि षरीर पर मन लगाना तो परमेष्वर से बैर रखना हैः क्योंकि न तो परमेष्वर की व्यवस्था के अधीन है और न हो सकता है'' (रोमियों 8:7)।
हाँ, पाठ हमें एकदम सही वर्णन देता है मानवजाति का उनकी अपरिवर्तित अवस्था में।
॥. दूसरा, यह पाठ हमें दुश्ट अवस्था की विष्व-व्यापकता दिखाता है।
किसी ने भी वह प्रेरितो यूहन्ना से अधिक स्पश्ट नहीं किया, जिन्होंने कहा,
‘‘सारा संसार उस दुश्ट के वष में पड़ा है'' (1 यूहन्ना 5:19)।
सारा संसार मानवी के षाप के अधीन है, और इसीलिये,
‘‘क्योंकि षरीर पर मन लगाना तो परमेष्वर से बैर रखना हैः क्योंकि न तो परमेष्वर की व्यवस्था के अधीन है और न हो सकता है'' (रोमियों 8:7)।
एच. जी. वेल्स नास्तिक थे जिन्होंने डार्वीन के जाति-विकास के सिद्धांत को मजबूती से बढ़ावा दिया। आप इसे देख सकते हो सारे विज्ञान कल्पना के चलचित्र उनकी नवलकथाओं पर आधारित होते है जैसे ‘‘ध वोर ओफ ध वर्ल्डस,'' ‘‘ध टाइम मषीन'', ‘‘ध लोस्ट वर्ल्ड,'' और विष्ोशकर ‘‘ध आयलेन्ड ओफ लोस्ट सॉल्स''। मैंने इसे पढ़ने में समय नहीं लिया, परंतु मैंने चलचित्र का 1932 का पाठान्तर दो बार देखा है। ‘‘ध आयलेन्ड ओफ लोस्ट सॉल्स'' तीन बार चलचित्र में बनाया गया है, परंतु 1932 का पाठान्तर ही देखने योग्य है। चलचित्र टीकाकार लीयोनार्ड माल्टीन ने इसे साढे़ तीन सितारे दिये संभवतः चार में से। यह कहानी है पागल वैज्ञानिक की, चार्ल्स लॉगटन द्वारा अदा किया गया, अलगाये हुए दूरवती द्वीप पर, जहाँ वो जंंगल पषुओं को हरे अर्ध-मानव में बदलते है जो कहे गये ‘‘हयूमनिमल्स'' ‘‘मानवपषु''। इन पषुओं में से एक की कलाकारी की गयी है बेला लुगोसी द्वारा, जिसने मूल चलचित्र पाठान्तर में ड्राकुला, डायन का किरदार किया था। लुगोसी का अर्ध-मानव, अर्ध-कुत्ता का किरदार अंत में लाँगटन पर हमला करता है, कहते हुए, ‘‘क्या हम आदमी नहीं है?'' सदा की तरह एच. जी. वेल्स की कहानी भरी हुई है संदर्भ से डार्वीन के जाति-विकास के सिद्धांत से। अगर आप इस चलचित्र का विडीयों देखो तो निष्चित करना की छोटे़ बच्चे इसे न देखे। यह 1932 में प्रदर्षित की गई थी, हेयस कोड (Hays Code) प्रभाव में गये उससे पहले। यह बहुत सी जगहो पर काफी भयानक है, खास करके अंतिम दृष्य में। ‘‘ध आयलेन्ड ओफ लोस्ट सॉल्स,'' ‘‘खोई आत्माओं का द्वीप''।
उनके मृत्यु से थोड़े समय पहले, सी. एस. लेवीस ने एक मित्र से कहा कि वे विष्वास करने आए थे वह विवरण ‘‘हमारे जीवन का केन्द्रीय असत्य'' है। और वे सही थे। डार्वीन का सिद्धांत हकीकत में सिर्फ विज्ञान कल्पना थी। ज्यादातर लोग नहीं जानते कि डार्वीन स्वयं के पास विज्ञान में स्नातकता की पदवी भी नहीं थी। उनके पास एकमात्र पदवी थी युनीटेरीयन थियोलोजी, अद्वैतवादी अध्यात्मविद्या में। उनकी किताबें हकीकत में पढ़ी जाती है विकटोरीयन सायन्स फिक्सन, विजयी विज्ञान कल्पना की तरह, जैसे जुलेस वर्ने की कहानीयाँ। तौ भी उनकी ‘‘थीयरी ओफ इवोल्युषन'' ‘‘विवरण का सिद्धांत'' ने बहुत से आधुनिक संसार के बिमारों को जन्म दिया, हीटलर के फॉसिसम्, समाज के समानाधिकार विरोधी सिद्धांत, कम्युनीझम, साम्यवाद, और गर्भपात की प्रचण्ड अग्नि को। एच. जी. वेल्स, डार्वीन के चेलों में से एक थे।
तौ भी ‘‘ध आयलेन्ड ओफ लोस्ट सोल्स'' अद्भूतता से वर्णन करता है आज-हम जी रहे है उस संसार का। मानव-जाति जी रही है ‘‘आयलेन्ड ओफ लोस्ट सोल्स'' ‘‘खोई आत्माओं के द्वीप'' पर। परंतु हम उस प्रकार नहीं ले सकते विवरण द्वारा! वहाँ पर पुरानी कविता है झाड़ पर बातें करते दो बन्दरों के बारे में। उनमें से एक कहता है,
‘‘हाँ, आदमी के वंषज, अॉरनेरी कस,
परंतु भाई, वह हममेंसे वंषज नहीं हुआ!''
आदमी हकीकत में ‘‘खोई आत्माएँ'' बने जब आदम ने वाटिका में परमेष्वर के सामने द्रोह किया, समय की षुरूआत में। और हमारे पहले मातापिता का द्रोह उनके सब वंषज में फैला। बाइबल कहता है, ‘‘ एक मनुश्य के द्वारा पाप जगत में आया'' (रोमियों 5:12)। और फिर से, ‘‘एक आदमी की आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे'' (रोमियों 5:19)। अब हरएक मानव जन्मा है दूशित स्वभाव के साथ ‘‘मूल पाप'' द्वारा। 1599 ए. डी. जीनीवा बाइबल कहती है, ‘‘पाप द्वारा का अर्थ है कि रोग जो हमारा है वंष द्वारा, और आदमी सामान्यरूप से उसे कहता है मूल पाप'' (रोमियों 5:12 पर टीप्पणी)।
मैं जानता हूँ कि ‘‘आधुनिक'' आदमी ‘‘मूल पाप'' की षिक्षा से नफरत करते है। परंतु उनकी इस पर नफरत सिर्फ हकीकत प्रमाणित करती है कि यह सत्य है! मैं बाइबल में (अधोलोक के अतिरिक्त) कोई भी षिक्षा मूल पाप, और इसका उपसिद्धांत, पूरे अपराध भाव से अधिक ज्यादा नफरत गई हो उसका अनुमान नहीं करता। और तौ भी, जैसे सी. एस. लेवीस ने दर्षाया, बाइबल में कोई भी षिक्षा ज्यादा आसान नहीं है प्रमाणित करना मानवजाति के निरीक्षण द्वारा।
द्रश्टांत के तौर पर, क्या आपको बालक को बुरा होना सिखाना पड़ता है? अवष्य नहीं! वे स्वभाव द्वारा ही बुरे है। बाइबल कहता है की आदमी ‘‘गर्भ ही से तेरा नाम अपराधी पड़'' है (यषायाह 48:8)।
लेखक वीलीयम गोल्डींग ने वर्णन किया मानवजाति से संपूर्ण अपराधभाव को उनकी प्रसिद्ध नवलकथा, ‘‘लोर्ड ओफ ध फ्लाइस'' में। यह कहानी है गाना गानेवाले अंग्रजी लड़को का समुदाय निःसहाय वृक्ष पर। पहले वे बहुत षुद्ध थे, और छोट़े सज्जनों की तरह रहे। परंतु थोड़े समय में वे उन्मत और अषिश्टता पर उतर आये। उन्हे अषिश्ट होना किसीको सिखाना नहीं पड़ा। यह स्वाभाविक्ता से आया, उनके अपराधी स्वभाव से - मूल पाप से जो उन्हें हमारे पहले मातापिता आदम से वारसे में मिला। ‘‘लोर्ड ओफ ध फ्लायस'' नाम है जो बाइबल ष्ौतान को देता है, बील्झेबब (Beelzebub) के रूप में। गाना गानेवाले अंग्रेजी छोट़े लड़के, जब सभ्यता की रूकावट से बाहर लाए गए; जल्दी ही ष्ौतान के अधिकार के अधीन अषिश्ट में वंषज हुए, ध लोर्ड ओफ ध फ्लायस।
कोई भी जो बच्चों को जानते हैं, ये घटना समय देखते हैं और फिर से भी। बच्चे उनके कलीसिया के कपड़ो में अच्छी तरह तैयार होकर आते हैं, हाथ में बाइबल के साथ। परंतु जैसे ही कोई बड़े उनको नहीं देखते वे कुछ उपद्रवी करते हैं - जैसे झूठ बोलना, या कुछ चुराना, या - ठीक हैं, आप जानते हो बच्चे क्या करते हैं? उन्हें बुरा होना या द्रोही होना सिखाना नहीं पड़ता। वे यह स्वभाव से ही करते है। क्या आप जानते हो वहाँ पर हीप-होप समुदाय था जो ‘‘नोटी बाय नेचर'' ‘‘स्वभाव से नटखट'' कहे जाते हैं? कैसा नाम हैं! यह हकीकत में मानवजाति का वर्णन है - स्वभाव से नटखट!
जब कलीसिया में छोटे बच्चे याजक या छोटे पादरी को देखते है, वे बहुधा विमुख हो जाते है, जैसे वे पकड़े गए हो! वे इस प्रकार प्रतिभाव देते है तब भी जब वे उस क्षण कुछ गलत ना भी करते हो! वे पीछे िख़्ासक जाते हैं उनके चेहरे पर चौंकी हुई दृश्टि के साथ - वैसे ही जैसे उनके परदादा आदमने देखा होगा जब परमेष्वरने उसे उसके पाप में पकड़ा था, वाटिका में।
1950 में मेरी रविवार षाला के कक्ष में ‘‘सुंदर'' तरूण मुस्कुराएँगे और अच्छे प्यारे दिखेगें जब वयस्क मैजूद थे। परंतु जैसे ही वयस्क लोग चले गए थे वे गंदे उपहास कहना षुरू करेंगे। उसने मुझे पहले हकीकत में व्याकुल किया, परंतु फिर मैंने जाना (मैं परिवर्तित हुआ था उससे भी पहले) कि वे फोनीस थे, कभी भी सच्चे मसीही नहीं। वह देखने के लिये परमेष्वर का अनुग्रह चाहिए। ज्यादातर लोग उस प्रकार कभी नहीं देखते। इसलिये वे चले जाते है कहते हुए कि कलीसिया पाखण्डीयों से भरा हुआ है। मैं वह सारा समय सुनता हूँ, ‘‘मैंने छोड़ा क्योंकि कलीसिया पाखण्डीयों से भरा हुआ है''। परंतु वह सच नहीं है! इसका हकीकत में अर्थ है कि वहाँ कलीसिया लोग है जो मसीही नहीं है; लोग जो कभी भी परिवर्तित नहीं हुए। मैं यह मानने लगा हूँ कि ‘‘पाखण्ड'' बहुत सही षब्द नहीं है उनमें से ज्यादातर लोगों का वर्णन करने। वे सिर्फ खोए लोग है। वे वह लोग है जो कलीसिया में मौजूद होते है पर कभी भी परिवर्तित नहीं हुए। और ऐसे लोग ‘‘स्वभाव से नटखट'' है। वे कुछ और नहीं हो सकते! वे पाप में फंसे हुए है! वे इससे बच नहीं सकते! जैसे ‘‘खोई आत्माओं के द्वीप'' पर ‘‘मानवपषु'', वे उनके पापभरे, विशयी स्वभाव से बाहर नहीं आ सकते! ‘‘मानवपषु'' बेला लुगोसी द्वारा अदा किया हुआ ने कहा, ‘‘क्या हम आदमी नहीं है?'' वे इतने नश्टधर्मी है कि वे मानवों से अधिक पषु की तरह है! आजारात हमारे संसार में बहुत से क्षय होनेवाले लोगों का कैसा चित्र! और, कम पदवी में, अपरिवर्तित लोगों का हमारे कलीसिया में कैसा चित्र! मैंने कभी कभी देखे है ऐसे लोग हकीकत में इंसान से अधिक पषु की तरह व्यवहार करते है!
‘‘क्योंकि षरीर पर मन लगाना तो परमेष्वर से बैर रखना हैः क्योंकि न तो परमेष्वर की व्यवस्था के अधीन है, और न हो सकता है। और जो षारीरिक दषा में है, वे परमेष्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते'' (रोमियों 8:7-8)।
याजक रीचर्ड वुर्मब्रान्ड लुथरन सेवक थे जो रोमानीया में साम्यवादीयों द्वारा चौदह वर्श तक तड़पाएँ गए मसीह के लिये। जब वे युनाइटेड स्टेट्स सेनेट के सामने सभा में बोले, याजक वुर्मब्रान्ड ने सभासदो से कहा,
मसीही चार दिन और रातों के लिये क्रूस से बांधे गए [थे]। क्रूस जमीन पर रखे गए थे और सेकड़ो कैदीयों को उनकी षारीरिक आवष्यकताएँ पूरी करनी थी उन क्रूस पर बांधे हुए षरीरों पर। फिर क्रूस सीधे किए गए फिर से और साम्यवादीयों ने उपहास किया और मज़ाक उडाया। ‘‘आपके मसीह को देखो! कितने सुन्दर है वे! कैसी सुगंध वे स्वर्ग से लाते है!'' मैंने वर्णन किया कैसे, कश्ट के साथ करीबन पागल के समान ले जाने के बाद, याजक पर दबाव डाला गया था मानवीय मलोत्सर्ग और पिषाब को पवित्र करने और इस अवस्था में मसीहीयों को पवित्र मसीह के साथ संपर्क देने। यह हुआ रोमानीया कारावास पीइस्टी (Pitesti) में। मैंने बाद में याजक से पूछा क्यों वे मरना पसंद नहीं करते इस उपहास में हिस्सेदार होने से अधिक उन्होंने जवाब दिया, ‘‘मेहरबानी, करके मुझे तोलो मत! मैं मसीह से अधीक तड़पा हूँ''! बाइबल के सारे वर्णन अधोलोक के बारे में और डान्टेस इनफेरनो का दर्द कुछ भी नहीं है इन साम्यवादी कारावास की तड़प की तूलना में (रीचर्ड वुर्मब्रान्ड, टीएच. डी., र्टोचर्ड फोर क्राइस्ट, मसीह के लिये तड़पाया, लीवींग सेक्रीफाइस बुक कम्पनी, 1998 की प्रत, पृपृश्ठ. 36, 37)।
यह चित्रित करता है भयानकता जो हो सकती थी क्योंकि आदमी पाप द्वारा ज़हरीला हो गया है!
‘‘क्योंकि षरीर पर मन लगाना तो परमेष्वर से बैर रखना हैः क्योंकि न तो परमेष्वर की व्यवस्था के अधीन है, और न हो सकता है। और जो षारीरिक दषा में है, वे परमेष्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते'' (रोमियों 8:7-8)।
डॉ. लोयड-जोन्स ने यह हमारे पाठ की निरीक्षणभरी स्पश्टता दी। ध्यान से सुनो - क्योंकि यह आपका वर्णन करता है, अगर आप अपरिवर्तित हो।
अविष्वासु ना सिर्फ आत्मिकरूप से मरा हुआ है, परंतु उसी समय वह ‘‘परमेष्वर के साथ बैर'' में है, उसकी प्रभु के लिये संपूर्ण समझ बहुत गलत है। वह प्रभु को दुष्मन की तरह समझता है; प्रभु कोई है जिसे वह [ना पसंद] करता है। वह षायद कहे वह प्रभु में विष्वास करता है; परंतु...वह महसूस करता है कि प्रभु उसके विरूद्ध है, वह चाहता है वहाँ प्रभु ही न हो। स्पश्टरूप से ऐसा आदमी षक्यतः प्रभु को प्रसन्न नहीं कर सकता, नाही प्रभु के व्यवस्था की धार्मिकता उसमें भरी जा सकती है। अविष्वासु के बारे में दूसरा सच यह है कि वह परमेष्वर की व्यवस्था का आश्रित नहीं है; वो प्रभु की व्यवस्था से नफरत करता है। संसार आज वह प्रदर्षित करता है। यह व्यवस्था की कल्पना से भी तिरस्कार करता है; यह षिस्तता से नफरत करना है, और जो आज़ादी की तरह वर्णन किया जाता है वह कुछ नहीं परंतु [स्वेच्छाचार] है। आदमी स्वभाव से, और पाप मेें, स्वयं तक में व्यवस्था चाहता है, उसे वोही करना है जो वह करना चाहता है, जो उसे प्रसन्न करे...और वह व्यवस्था और षिस्तता के हरएक सूचन को विरोध करता है। अविष्वासु प्रभु की व्यवस्था के आश्रित नहीं है। यर्थाथ में...वह इसके आश्रित होने के योग्य भी नहीं है-‘‘नाही यर्थाथ में हो सकता है।'' क्योंकि वह वोही है जो वो है, दुश्टता के कारण वह उसमें है, दोश के कारण, पाप का सामर्थ्य उसमें हे उसके कारण वह प्रभु की व्यवस्था के आश्रित होने की इच्छा भी नहीं कर सकता (डी. मार्टीन लोयड-जोन्स, एम. डी., रोमन्स : एन एक्सपोझीषन ओफ चेप्टर 8:5-17; रोमियों : पाठ 8:5-17 की स्पश्टता, ध बेनर ओफ ट्रुथ ट्रस्ट, 2002 में फिर से छपां हुआ, पृश्ठ. 43)।
और फिर, रोमियों 8 में उसी वाक्यखण्ड पर टीप्पणी करते हुए, डॉ. लोयड-जोन्स ने कहा, ‘‘मसीही बनने से पहले हम प्रभु की व्यवस्था के सामने लड़ते है; जिस पल हम मसीही बनते है वह लड़ाई का अंत होता है, और वहाँ षान्ति है'' (ibid., पृश्ठ. 45)।
‘‘क्योंकि षरीर पर मन लगाना तो परमेष्वर से बैर रखना हैः क्योंकि न तो परमेष्वर की व्यवस्था के अधीन है, और न हो सकता है। और जो षारीरिक दषा में है, वे परमेष्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते'' (रोमियों 8:7-8)।
अगर आप अपरिवर्तित हो, क्या यह आपका वर्णन नहीं करता, कम से कम कुछ ज्ञान में? क्या यह सच नहीं है कि आप हकीकत में भक्तिगीत गाना पसंद नहीं करते? क्या यह सच नहीं है कि आपको सच में पसंद नहीं षनिवार रात की प्रार्थना सभा में बैठना, मसीही आदमीयों की प्रार्थना सुनना? क्या यह सच नहीं है कि आपको हकीकत में आत्मा जीतने जाना पसंद नहीं है? क्या यह सच नहीं है कि आप षायद रविवार कहीं ओर रहे - कम से कम कभी कुछ समय? क्या यह सच नहीं है कि आप बहुधा सोचते हो कलीसिया बहुत कठोर है? क्या यह सच नहीं है कि आपको उन चीजो के बारे में सोचना पसंद है जो आप जानते हो गलत है - परंतु आप हकीकत में प्रार्थना करने से नफरत करते हो जब आप अकेले होते हो? और क्या वह सारी चीजे आपको नहीं दिखती कि आप खोए हुए पापी हो, विशयी और खोए मन के साथ?
‘‘क्योंकि षरीर पर मन लगाना तो परमेष्वर से बैर रखना हैः क्योंकि न तो परमेष्वर की व्यवस्था के अधीन है, और न हो सकता है। और जो षारीरिक दषा में है, वे परमेष्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते'' (रोमियों 8:7-8)।
अब, अगर उसमें से कुछ भी आपका वर्णन करता है, आप उसके बारे में क्या कर सकते हो? वहाँ आप हकीकत में सिर्फ दो चीजे कर सकते हो। यह ये दो पर्याय खोलतर है।
1- आप अपनेस्वयं पर दबाव डाल सकते हो कलीसिया में आते रहने को थोड़ी देर के लिये, और फिर चले जाओ। हमारे पास लोग है जो समय पर चले जाते है उस कारण के लिये। उन्हे वो नहीं सुनना था जो प्रभु ने उनसे मांगा था, और उन्हें ऐसे कठोर कायदे के अधीन भी नहीं आना था कलीसिया में। इसीलिये उन्होंने कलीसिया छोड़ा। यह उन्हे थोड़ी देर के लिये चैन देता है। परंतु ‘‘विष्वासघातियों का मार्ग कड़ा होता है'' (नीतिवचन 13:15)। ‘‘दूश्टों के लिये षान्ति नहीं है, मेरे परमेष्वर का यही वचन है'' (यषायाह 57:21)। अंत में उनके मन अषान्त और असंतुश्ट होते है। जैसे सेंट अगस्तीन ने प्रभु को कहा, ‘‘हमारे मन अषान्त है जबतक वे आप में षान्ति पाए''।
2- आप परमेष्वर को प्रार्थना कर सकते हो आपका मन बदलने, और आपके मन को फिर से नया बनाने। सिर्फ मसीह आप में और आपके लिये यह कर सकते है! सिर्फ मसीह आपको प्रभु के साथ षान्ति और आत्मा की षान्ति दे सकते है। ‘‘तुझे नये सिरे से जन्म लेना अवष्स है'' (यूहन्ना 3:7)। सिर्फ परमेष्वर आप में वह कर सकते है। सिर्फ प्रभु ही आपको पाप के अपरधभाव के अधीन ला सकते है, और आपको मसीह के पास ले जा सकते उनके बहुमूल्य लहू में षुद्ध होने! उन्हे पुकारो, क्योंकि सिर्फ मसीह आपके विशयी मन को ले जा सकते है और आपको नया मन दे सकते है प्रभु को प्रेम करने-आपके पास अभी जो द्रोही मन है उसके बदले! ‘‘क्यों'', आप कहते हो, ‘‘वह चमत्कार होगा'' आप सही हो! यह चमत्कार होगा!
परंतु जब उसने मेरी आत्मा बचायी,
षुद्ध किया और मुझे संपूर्ण बनाया,
यह प्रेम और अनुग्रह का चमत्कार हुआ!
(‘‘यह चमत्कार हुआ'' जोन डबल्यु. पीटरसन द्वारा, 1921-2006)।
एन्ने स्टीले (1760), पहली महान् जागृतता के भक्तिगीत लिखनेवाले, ने कहा,
ओह हमारे ये नीच मन को बदलो,
और उन्हें दिव्य जीवन दो!
फिर हमारी उत्त्ोजना और हमारा सामर्थ्य
सर्वषाक्तिमान प्रभु, आपका होगा!
(‘‘कितना असहाय दोशी स्वभाव रहता है'' एन्ने स्टीले द्वारा, 1717-1778;
‘‘ओ सेट ये ओपन अनटु मी'' की तर्ज पर)।
अगर आपको हमारे साथ नये जन्म, और सच्चे मसीही बनने के बारे में बात करना पसंद हो तो, मेहरबानी करके अपनी बैठक छोड़ो और अभी सभागृह के पिछे जाओ। डॉ. केगन आपको षांत कक्ष में ले जाएँगे जहाँ हम बात और प्रार्थना कर सकते है। डॉ. चान, मेहरबानी करके जिसने प्रतिभाव दिया है उनके लिये प्रार्थना करो। आमीन।
(संदेश का अंत)
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धार्मिक प्रवचन से पहले श्रीमान एबेल प्रुद्योम्म द्वारा पढ़ा हुआ पवित्रषास्त्र : रोमियों 8:1-8।
धार्मिक प्रवचन से पहले श्रीमान बेन्जामिन कीनकेड ग्रीफिथ द्वारा गाया हुआ गीत :
‘‘यह चमत्कार हुआ'' (जोन डबल्यु. पीटरसन द्वारा, 1921-2006)।
रूपरेखा खोई आत्माओं का द्वीप डो. आर. एल. हायर्मस, जुनि. द्वारा ‘‘षरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है; परंतु आत्मा पर मन लगाना जीवन और षान्ति है। क्योंकि षरीर पर मन लगाना तो परमेष्वर से बैर रखना हैः क्योंकि न तो परमेष्वर की व्यवस्था के अधीन है, और न हो सकता है। और जो षारीरिक दषा में है, वे परमेष्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते'' (रोमियों 8:6-8)। (इफिसियों 2:1, 5; रोमियों 5:1) ।. पहला, यह पाठ मानव जाति का एकदम सही वर्णन है, रोमियों 8:7। ॥. दूसरा, यह पाठ हमें दुश्ट अवस्था की विष्व-व्यापकता दिखाता है, 1 यूहन्ना 5:19; रोमियों 5:12, 19; यषायाह 48:8; नीतिवचन 13:15; यषायाह 57:21; यूहन्ना 3:7। |