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निर्माण से षवपेटी (सन्दूक) तक

(उत्पति की किताब पर धार्मिक प्रवचन क्रमांक 75)
FROM CREATION TO A COFFIN
(SERMON #75 ON THE BOOK OF GENESIS)
(Hindi)

डो. आर. एल. हायर्मस, जुनि. द्वारा
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

लोस एंजलिस के बप्तीस टबरनेकल में प्रभु के दिन की षाम, 17 मार्च, 2013 को दिया हुआ धार्मिक प्रवचन
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Evening, March 17, 2013

‘‘और यूसुफ ने अपने भाईयों से कहा, मैं तो मरने पर हूँ; परन्तु परमेष्वर निष्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देष से निकालकर उस देष में पहुँचा देगा, जिसके देने की उसने अब्राहम, इसहाक और याकूब से षपथ खाई थी। फिर यूसुफ ने इस्त्राएलियों से यह कहकर कि परमेष्वर निष्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उनको इस विशय की षपथ खिलाई, हम तेरी हड्डीयों को यहाँ से उस देष में ले जाएँगे। इस प्रकार यूसुफ एक सौ दस वर्श का होकर मर गया और उसके षव में सुगन्धद्रव्य भरे गए, और यह षव मिस्त्र में एक सन्दूक में रखा गया'' (उत्पति 50:24-26)।


उत्पति की किताब षुरूआत करने की किताब है। ‘‘उत्पति'' षब्द का अर्थ है ‘‘जन्म'' या ‘‘षुरूआत''। प्राचीन रब्बी जिसने इसे ग्रीक में अनुवाद किया, इसे ‘‘उत्पति'' कहा क्योंकि यह षुरू होता है षब्दों के साथ, ‘‘आदि में परमेष्वर ने आकाष और पृथ्वी की सृश्टि की'' (उत्पति 1:1)। उत्पति की किताब वर्णन करती है आकाष और पृथ्वी के आदि की - और पौधे, पषु और मानव जीवन की भी। इसलिये उत्पति की किताब जीवन की किताब है!

परंतु यह मृत्यु की किताब भी है। मृत्यु का मूल दिया गया है। मृत्यु की भयानक असर का वर्णन किया गया है। पाप और मृत्यु का संबंध समझाया गया है। चौथे पाठ में पहली मृत्यु का लेखप्रमाण है, एबल की हत्या में। पांचवे पाठ में आदरणीय वृद्ध पादरीयों की मृत्यु, पुरानी रीति की गणना की गई थी। छठ़े पाठ में पूरी मानव जाति की महा-जल प्रलय में मृत्यु, नूह और उसके परिवार के अपवाद के अलावा का वर्णन किया गया है। जीवन और मृत्यु के यह दो लक्ष्य का पूरी उत्पति की किताब में वर्णन किया गया है और आपस में गूँथा गया था।

आज रात मेरा लक्ष्य है यूसुफ की मृत्यु पर रोषनी डालना हमारे पाठ में, अंष की तरह, छोटा वाक्यखण्ड जो उजागर करता है वह जीवन और मृत्यु की सच्चाई।

‘‘और यूसुफ ने अपने भाईयों से कहा, मैं तो मरने पर हूँ; परन्तु परमेष्वर निष्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देष से निकालकर उस देष में पहुँचा देगा, जिसके देने की उसने अब्राहम, इसहाक और याकूब से षपथ खाई थी। फिर यूसुफ ने इस्त्राएलियों से यह कहकर कि परमेष्वर निष्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उनको इस विशय की षपथ खिलाई, हम तेरी हड्डीयों को यहाँ से उस देष में ले जाएँगे। इस प्रकार यूसुफ एक सौ दस वर्श का होकर मर गया और उसके षव में सुगन्धद्रव्य भरे गए, और यह षव मिस्त्र में एक सन्दूक में रखा गया'' (उत्पति 50:24-26)।

उत्पति की किताब षुरू होती है जीवन की सृश्टि से अदन की वाटिका मे ंऔर खत्म होती है ‘‘मिस्त्र की सन्दूक में'' (उत्पति 50:26) । यह दिखाता है कि मैं महसूस करता हूँ हमे मृत्यु के नकारात्मक संदेष से षुरूआत करनी चाहिए, और खत्म करना चाहिए जीवन के हकारात्मक संदेष के साथ।

1. पहला, उत्पति प्रबलता से वर्णन करता है पाप और मृत्यु की व्यवस्था का।

प्रेरितो पौलुस बोले ‘‘पाप की और मृत्यु की व्यवस्था'' (रोमियों 8:2) के बारे में। पाप और मृत्यु की व्यवस्था का सरल अर्थ है, ‘‘पाप की मजदूरी तो मृत्यु है'' (रोमियों 6:23)। पाप और मृत्यु की व्यवस्था कहेती है ‘‘प्राणी पाप करे वही मर जाएगा'' (यहेजकेल 18:4)। अब वही था जो प्रभु ने हमारे पहले माता-पीता को कहा था। उन्होंने उनके वो निश्‍ोध फल नहीं खाने की चेतावनी दी थी, ‘‘क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवष्य मर जाएगा'' (उत्पति 2:17)। वो थी पाप और मृत्यु की व्यवस्था परमेष्वर ने कहा, अभिप्राय में, ‘‘अगर आप यह पाप करोगे आप मर जाओगे!'' परंतु उन्होंने प्रभु को नहीं माना। इसलिये उन्होंने खाया, और फिर मरे!

जब मैं छोटा बच्चा था, मेरी माँ ने एक छोटे बच्चे को हर दोपहर देखा था जिसका उपनाम था ‘‘जोकर''। स्टव जल रहा था, और माँ ने कहा, ‘‘जोकर अपनी अंगुली आग में मत डालो नहीं तो जल जाएगी।'' अवष्य, जोकर जैसे नाम के साथ, आप जानते हो क्या हुआ! उसने उसकी अंगुली आग की ज्वाला में डाली और फिर चिल्लाने लगा। माँ ने कहा, ‘‘मैंने कहा था तूझे क्या होगा।'' हाँ, परंतु उसने सुना नहीं। उसने उसकी अंगुली आग की ज्वाला में डाली और फिर चिल्लाने लगा। माँ ने कहा, ‘‘मैंने कहा था तूझे क्या होगा।'' हाँ, परंतु उसने सुना नहीं। उसने उसकी अंगुली आग की ज्वाला में डाली, और वह जल गयी। वो चित्रण करता है पाप और मृत्यु की व्यवस्था का। परमेष्वर ने कहा, ‘‘जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवष्य मर जाएगा''। उन्होंने उनका विष्वास नहीं किया। इसीलिये उन्होंने उससे खाया। और इसीलिये वे मरे। वही है पाप और मृत्यु की व्यवस्था! कोई षायद कहे, ‘‘वह सही नहीं है!'' मुझे क्षमा करना, षुद्धता (सहीपन) का इससे कोई लेना देना नहीं है! अगर आप अपनी अंगुली आग में रखते हो तो वह जलेगी ही। वही है निमित्त और अभिप्राय की व्यवस्था। अगर आप ऊपर हवां में पत्थर फेंकते हो वह नीचे आएगा ही। वो है गुरूत्वाकर्शण की व्यवस्था। अगर आप ऊपर हवां में पत्थर फेंकते हो और वह नीचे आकर आपके सिर पर गिरता है तो आप नहीं कह सकते हो ‘‘वह सही नहीं है''। षुद्धता (सहीपन) को इसके साथ को लेना देना नहीं है! यह है गुरूत्वाकर्शण की व्यवस्था। अगर आप कुछ ऊपर फेंकते हो, वह नीचे अवष्य आएगी! यह नियम है। वही बात पाप और मृत्यु की व्यवस्था के साथ भी सही है। आत्मा जो पाप करेगी वह मरेगी। हमारे पहले माता-पिता ने पाप किया था और वे मरे। वही है व्यवस्था - पाप और मृत्यु की व्यवस्था! सहीपन (षुद्धता) को इसके साथ कोई मतलब नहीं है! जो ऊपर जाता है, नीचे आना ही चाहिए। यह नियम है। वह जो पाप करेगा जरूर मरना चाहिए। यह व्यवस्था है। लोगों को यह पसंद नहीं है, परंतु यह फिर भी व्यवस्था है - और यह तोड़ नहीं सकते उससे अधिक की गुरूत्वाकर्शण का नियम (व्यवस्था) तोड़ सकते है।

अब हमारे पहले माता-पिता ने अदन की वाटिका में पाप किया; और वे अदन की वाटिका में मरे। वही है पाप और मृत्यु की व्यवस्था। पहले वे आध्यात्मिक रूप से मरे, और बाद मे ंवे षारीरिकरूप से मरे क्योंकि जब उन्होंने पाप किया था उनमें मृत्यु की वंष प्रवेष चुकी थी।

षोकजनकरूप से, उनके पाप ने सिर्फ उनको मृत्यु नहीं दी, परंतु उनके सारे सन्तानों को भी। लोग षायद कहे, ‘‘वह सही नहीं है''। मैं जानता हूँ वे षायद यह कहे, परंतु सहीपन को इससे कोई मतलब नहीं! यह व्यवस्था है, पाप और मृत्यु की व्यवस्था। एक दिन मैंने पढा बालक के बारे में जो HIV (एच.आय.वी.) के साथ जन्मा था। बालक ने पाप नहीं किया था। परंतु माँ ने पाप किया था। इसलिये उसका बालक इस प्रकार जन्मा था। सहीपन को इसके साथ कोई लेना देना नहीं था। वह है पाप और मृत्यु की व्यवस्था। जब कोई आदमी पाप करता है वह दूसरो पर भी असर करता है। यह सदा असर करता है।

और इसी प्रकार यह था पूरी उत्पति की किताब में, हमारे माता-पिता के पाप और मृत्यु के साथ। परन्तु पाप और मृत्यु का श्राप यहाँ खत्म नहीं होगा। बाइबल कहता है,

‘‘एक मनुश्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे'' (रोमियों 5:19)।

जेसे बच्चा एचआइवी (HIV) के साथ जन्मा था, हम सभी ‘‘पापी ठहरे'' हमारे पहले माता-पिता के पाप द्वारा। हेइडेलबर्ग केटेसीझम (प्रष्नोतररूप में षिक्षा) कहता है कि हमारा पापभरा स्वभाव आता है ‘‘स्वर्ग में हमारे पहले माता-पिता आदम और हव्वा द्वारा गिरावट और आज्ञा न मानने से। यह गिरावट ने हमारे स्वभाव को इतना जहरीला बनाया है कि हम जन्म से पापी है - गर्भधारण से भ्रश्ट'' (ध हेइडेलबर्ग केटेसीझम, प्रष्न सात)। 1689 को बेपटीस्ट कन्फेषन कहता है कि हमारे पहले माता - पिता ‘‘... पाप लगाए गए थे, और भ्रश्ट स्वभाव दिया गया, उनकी सारी सन्तानों को, उनके द्वारा साधारण पीढ़ी में उतरी हुई, अब पाप में ली गयी, और स्वभाव द्वारा क्रोध के बच्चे, पाप के सेवक, मृत्यु के विशय और बाकी सारी दुर्गति, आध्यात्मिक जीवन संबंधी और अनन्त, जब तक प्रभु यीषु उन्हें आजाद न करे। इस मूल भ्रश्टाचार से ... आगेे बढ़ाओ सारे वास्तविक पाप को'' (ध बेपटीस्ट कन्फेषन अॉफ फेईथ, 1689, पाठ 6:2,3)।

‘‘जब तक प्रभु यीषु (हमें) आज़ाद न करे'' हम है ‘‘क्रोध के बच्चे, पाप के सेवक, मृत्यु का विशय''। बाइबल कहता है,

‘‘इसलिये जैसा एक मनुश्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुश्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया'' (रोमियों 5:12)।

उत्पति की किताब दिखाती है कि यह पद सही है। आदम और हव्वा का पहला बालक कैन का हत्यारा था। वह जन्मजात पापी था क्योंकि उसके माता-पिता ने पाप किए थे। उत्पति का पांचवाँ पाठ सूचीपत्र है जलप्रलय के पहले आदरणीय वृद्ध पादरीयों की मृत्यु का, क्योंकि ‘‘एक मनुश्य द्वारा पाप जगत में आया और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुश्यों में फैल गई।'' नूह के समय में,

‘‘यहोवा ने देखा कि मनुश्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है वह निरन्तर बुरा ही होता है'' (उत्पति 6:5)।

वह कैसे हुआ?

‘‘जैसा एक मनुश्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुश्यों में फैल गई'' (रोमियों 5:12)।

बाकी की उतपति में नीचे जाते हुए आदरणीय पादरी स्वभाव से पापी थे, और वे मरे आदम के पाप के परिणामस्वरूप। और इसलिये उत्पति पूरी होती है, विजय और आदमी की सफलता से नहीं, परंतु पाप के परिणामस्वरूप मृत्यु से,

‘‘इस प्रकार यूसुफ एक शौ दस वर्ष का होकर मर गया, और उसके षव में सुगन्धद्रव्य भरे गए, और वह षव मिस्त्र में एक सन्दूक में रखा गया'' (उत्पति 50:26)।

उत्पति की षुरूआत होती है परमेष्वर की जीवन सृश्टि रचने से, और यह खत्म होती है पाप के द्वारा उत्पन्न मृत्यु से, और यूसुफ ‘‘मिस्त्र में एक सन्दूक में रखा गया''।

अब, फिर, यह आपको कैसे असर करता है? आपके जीवन में इसका क्या प्रभाव होता है? हकीकत में, संसार आपको ओर ज्यादा कुछ भी चिंतित नहीं करता! पहले, आप पाप के परिणामस्वरूप षारीरिकरूप में मरोगे। मुझे स्मरण है पहली बार मैंने जाना मैं मरनेवाला हूँ। मैं करीबन आठ वर्श का था। मेरा छोट़ा कुत्ता बाहर सड़क पर भागा और एक कार से टकराया। जैसे मैंने उसकी टूटी देह मेरे हाथों में पकड़ी में पहली बार समझा कि मैं, भी मरूँगा। यह भयानक विचार था। मैं निष्चित हूँ कि हम में से ज्यादातर, चाहे हम इसे स्मरण रखे या नहीं, काँप् उठते है जब हम पहली बार महसूस करते है हम मरनेवाले है। और मृत्यु ऐसी चीज नहीं है कि आप एक या दो बार उसके बारे में सोचो। मनोचिकित्सक कहते है कि औषतः लोग सोचते है उनकी अपनी मृत्यु के बारे में हर घंटे मे एक बार से अधिक। यह सच है, हम हमारी मृत्यु के बारे में दूसरी बातों से अधिक सोचते है। हम इससे ड़र जाते है। हम इसे ढूँढने की कोषिश करते है। हम इसे बाजू में हटा देते है। परन्तु हमारा मन फिर से और फिर और फिर इस पर ही आता है। हम चाहे कुछ भी करें हम इसे हमारे विचारों से निकाल नहीं सकते। कभी कभी हम सोते है तब भी मरने के बारे में सोचते है। हम मरन केे विचार से बचके सरलता से जा नहीं सकते!

इसलिये, आप देखो, अगर मृत्यु का विचार ही सिर्फ पाप का परिणाम होता, हमारे जीवन पर इसकी कितनी बड़ी असर होती है। परंतु वह ही सिर्फ पाप का परिणाम नहीं है। वहाँ पर और दूसरे असर भी है। उसमें से एक है अन्धेरे और बुरे विचार जो आपके पाप भरे मन से आते है। यीषु ने कहा, ‘‘क्योंकि भीतर से, अर्थात् मनुश्य के मन से बुरे बुरे विचार निकलते ... ये सब बुरी बाते भीतर ही से निकलती है'' (मरकुस 7:21,23)। मुझे आपको यह प्रमाणित नहीं करना पड़ेगा, क्या मुझे? आप दूसरों से अधिक बेहतर जानते हो अन्धेरे और पापभरे विचार जो आपके मन में चलते है, विचार जिस पर आपका वष नहीं है। आप उसे रोक नहीं सकते, कोई बात नहीं चाहे आप जो कुछ भी करो। यह, भी, मूल पाप की असर है, पापी स्वभाव जो हमें हमारे पहले माता-पिता से वारसे में मिलता है।

और फिर आपको प्रार्थना में मुष्किल होती है। परन्तु अवष्य! आपको प्रार्थना मुष्किल लगती है, क्या आपको नहीं लगती? आपको इतना कठोर नहीं होना चाहिए। आप जानते हो यह नहीं होना चाहिए। परन्तु ये वहाँ है, और आप इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते, क्या आप कर सकते हो? आप जानते हो कि अच्छा मसीही प्रार्थना करने से प्रेम करता है। और फिर भी आप इससे प्रेम नहीं करते। हकीकत में चलिए इसका सामना करें, आप सच में प्रार्थना करने से नफरत करते हो कितने भी लंबे समय तक - क्या आप नहीं करते?

अब, फिर, वह भेंट करता है आपकी भीतर के विचारों का अपवित्र और अन्धेरा चित्र, क्या यह करता है? आप मृत्यु के बारे में सोचो। आपके पास षर्मनाक विचार है। आपको प्रार्थना पसंद नहीं। हकीकत में, अगर आप किसी के साथ हो जो लंबे समय से प्रार्थना करता हो, आप हकीकत में इससे नफरत करते हो। आपके अन्दरूनी जीवन बहुत अच्छा सुन्दर चित्र नहीं है, क्या है? हकीकत में, अगर आप अपने स्वयं को इसके बारे में बहुत विचार करने दो, आप भी षायद प्रेरितो के साथ कहो,

‘‘मैं कैसा अभागा मनुश्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?'' (रोमियों 7:24)।

आप देखो, पाप और मृत्यु की व्यवस्था ने आपको फंसा लिया है, या जैसे बाइबल इसे रखता है, ‘‘पापो के कारण मरे हुए'' (इफिसियों 2:1)। क्या यह सच नहीं है - आध्यात्मिकरूप और मानसिकरूप से आप ऐसे अन्दर से मरे हुए हो जैसे यूसुफ का देह ‘‘मिस्त्र के एक सन्दूक में उसे रखा गया'' (उत्पति 50:26)। परन्तु, परमेष्वर का धन्यवाद, हम वहाँ छोड़े नहीं गए! और वह हमें इस धार्मिक प्रवचन के दूसरे मुद्दे पर ले जाता है।

2. दूसरा, उत्पति प्रबलता से वर्णन करती है आदमी की एकमात्र आषा का।

हमारे पाठ के पहले दो पद को फिर से सूनो

‘‘और यूसुफ ने अपने भाईयों से कहा, मैं तो मरने पर हूँ; परन्तु परमेष्वर निष्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देष से निकालकर उस देष में पहुँचा देगा, जिसके देने की उसने अब्राहम, इसहाक और याकूब से षपथ खाई थी। फिर यूसुफ ने इस्त्राएलियों से यह कहकर कि परमेष्वर निष्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उनको इस विशय की षपथ खिलाई, हम तेरी हड्डीयों को यहाँ से उस देष में ले जाएँगे'' (उत्पति 50:24-25)।

वहाँ बहुत से पाठ है हम उन पदो से सीख सकते है, परन्तु मैं उसमें से सिर्फ एक ही बाहर लाऊँगा, बहुत सरल सा : यूसुफ जानता था की हमारी एक मात्र आषा परमेष्वर में है। उसने कहा, ‘‘परमेष्वर निष्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देष से निकालकर उस देष में पहुँचा देगा, जिसको देने की उसने अब्राहम, इसहाक और याकूब से षपथ खाई थी।'' ‘‘परमेष्वर निष्चय तुम्हारी सुधि लेगा उनको इस विशय की षपथ खिलाई, हम तेरी हड्डीयाँ को यहाँ से उस देष में ले जाएँगे''। यूसुफ को विष्वास था मानने की परमेष्वर उन्हें मिस्त्र से बाहर, कनान देष में लाएँगे। मिस्त्र पाप का और मृत्यु का चिन्ह है। कनान जीवन और मुक्ति का चिन्ह है। यूसुफ को विष्वास था की प्रभु उनको मृत्यु की जगह से बाहर लाएँगे, आषा और जीवन की भूमि में, इब्रानियों 11:22 कहता है,

‘‘विष्वास ही से यूसुफ ने जब वह मरने पर था, तो इस्त्राएल की सन्तान के निकल जाने की चर्चा की, और अपनी हड्डीयों के विशय में आषा दी'' (इब्रानियों 11:22)।

मैं इससे बेहतर तरीके नहीं सोच सकता आपको दिखाने की प्रभु ही सिर्फ आपकी आषा है। अगर प्रभु हमें नहीं बचाते है हम पाप और मृत्यु की व्यवस्था द्वारा दण्डित होंगे। और प्रभु को करनी ही चाहिए सारी बचत। यूसुफ ने कहा, ‘‘परमेष्वर निष्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देष से निकालकर उस देष में पहुँचा देगा, जिसको देने की उसने अब्राहम, इसहाक और याकूब से षपथ खाई थी'' (उत्पति 50:24)। ‘‘परमेष्वर लाएँगे ... आपको बाहर'' मृत्यु की जगह से जीवन की भूमि में।

अगर आप बाइबल की अगली किताब पढ़ते हो, निर्गमन की किताब, आप जानोगे कि प्रभु ने यह सब किया। लोगों ने द्रोह किया और पाप किया और अपने स्वयं को कुछ भी सहायता नहीं की। परमेष्वर ने सारी बचत की। प्रभु उनको गुलामी से बाहर लाये। प्रभु उनको षपथ की हुई जगह लाये। और चेलोने यीषु से पूछा,

‘‘किसका उद्धार हो सकता है? यीषु ने उनकी ओर देखकर कहा, मनुश्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेष्वर से हो सकता ...'' (मरकुस 10:26,27)।

फिर, आपको क्या करना चाहिए? कोई कहता है, ‘‘ठीक है, मैं कुछ भी नहीं करूँगा। मैं सिर्फ कलीसिया में मिट्टी के ढेर की तरह बैठा रहूँगा और परमेष्वर की राह देखुँगा मुझे बचाने''। ठीक है, अगर आप वैसा करते हो, आप अधोलोक में जाएँगे। वहाँ कुछ है जो आपको करना है। बाइबल कहता है,

‘‘प्रभु यीषु मसीह पर विष्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा'' (प्रेरितो 16:31)।

यीषु पर विष्वास करो! उन पर भरोसा करो और वे सारी बचत करेंगे! वे क्रूस पर मरे आपके पापों को चुकाने। वे कब्र से उठे आपको जीवन देने और पाप और मृत्यु की व्यवस्था से मुक्त करने!

मैं इस षाम आप से कहता हूँ - प्रभु यीषु मसीह पर भरोसा करो! अपने स्वयं को उन पर डाल दो! उनका भरोसा करो! यह अभी करो! आप बहुत लंबा विलम्ब कर चुके हो! उनका भरोसा करो! वे आपको बचाएँगे! वे आपसे प्रेम करते है! वे आपके पापों को माफ कर देंगे! वे आपको न्याय से बचाएँगे! ‘‘उनकी प्रेमभरी दया, ओह, कितनी महान्!'' श्रीमान ग्रीफिथ, आओ और वह गीत फिर से गाओ!

उन्होंने मुझे गिरावट में नश्ट होते देखा,
   फिर भी मुझे प्रेम किया सारे विरोध किए बिना;
उन्होंने मुझे मेरे खोई अवस्था से बचाया
   उनकी प्रेमभरी दया, ओह कितनी महान्!
उनकी प्रेमभरी दया, प्रेमभरी दया,
उनकी प्रेमभरी दया, प्रेमभरी दया,
(‘‘उनकी प्रेमभरी दया'' सेम्युअल मेडली द्वारा, 1738-1799)।

अगर आप यीषु पर भरोसा करने तैयार हो, मेहरबानी करके सभागृह के पीछे जाओ और हम आपको षान्त जगह ले जाएँगे बातें और प्रार्थना करने। अभी जाओ जब श्रीमान ग्रीफिथ वह अंतरा फिर से गाते है। डो. चान मेहरबानी करके हमें प्रार्थना में ले जाओ उनके लिये जिन्होंने प्रतिसाद दिया है।

(संदेश का अंत)
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धार्मिक प्रवचन से पहले श्रीमान एबेल प्रुद्योम्म द्वारा पढ़ा हुआ पवित्रषास्त्र : उत्पति 50:22-26।
धार्मिक प्रवचन से पहले श्रीमान बेन्जामिन किनकेड ग्रीफिथ द्वारा गाया हुआ गीत :
‘‘उनकी प्रेमभरी दया'' ( सेम्युअल मेडली द्वारा, 1738-1799)।


रूपरेखा

निर्माण से षवपेटी (सन्दूक) तक

(उत्पति की किताब पर धार्मिक प्रवचन क्रमांक 75)

डो. आर. एल. हायर्मस, जुनि. द्वारा

‘‘और यूसुफ ने अपने भाईयों से कहा, मैं तो मरने पर हूँ; परन्तु परमेष्वर निष्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देष से निकालकर उस देष में पहुँचा देगा, जिसके देने की उसने अब्राहम, इसहाक और याकूब से षपथ खाई थी। फिर यूसुफ ने इस्त्राएलियों से यह कहकर कि परमेष्वर निष्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उनको इस विशय की षपथ खिलाई, हम तेरी हड्डीयों को यहाँ से उस देष में ले जाएँगे। इस प्रकार यूसुफ एक सौ दस वर्श का होकर मर गया और उसके षव में सुगन्धद्रव्य भरे गए, और यह षव मिस्त्र में एक सन्दूक में रखा गया'' (उत्पति 50:24-26)।

(उत्पति 1:1)

1. पहला, उत्पति प्रबलता से वर्णन करता है पाप और मृत्यु की व्यवस्था का, रोमियों 8:2; रोमियों 6:23; यहेजकेल 18:4; उत्पति 2:17; रोमियों 5:19,12; उत्पति 6:5; मरकुस 7:21,23; रोमियों 7:24; इफिसियों 2:1।

2. दूसरा, उत्पति प्रबलता से वर्णन करती है आदमी की एकमात्र आषा का, उत्पति 50:24-25; इब्रानियों 11:22; उत्पति 50:24; मरकुस 10:26,27;
प्रेरितो 16:31।