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एडोनीराम जुडसन -
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ये धार्मिक प्रवचन जीवविद्या संबंधी होगा। मैं आपको एडोनीराम जुडसन (1788 - 1850) के परिवर्तन की कहानी देने जा रहा हूँ। उनका परिवर्तन उचित होगा, खास करके रूचिकर होगा उन युवा लोगो के लिये जो कलीसिया में बडे हुए है। वो ‘‘कलीसिया बालक'' का पूर्ण द्रश्टांत है जो लंबे परिश्रम के बाद परिवर्तित हुआ था।
एडोनीराम जुडसन मार्गदर्षक धर्मप्रचारक बनने लगे, धर्मप्रचारक के पहले समुदाय में से एक जो दक्षिण अमरिका से बाहर भेजा गया था। 19 फरवरी, 1812 को एडोनीराम और एन्न जुडसन केप कोड (Cape Cod), मासाष्युसेटस (Massachusetts) से भारत आने के लिये जलमार्ग से निकले। यहाँ से वे सुसमाचार बर्मा (अब म्यानमार) ले गये। जुडसन को कडवे कठोर षारीरिक क्लेष, कारावास और परिवार की दुर्घटना से गुजरना पडा पहले सुधारक के समान, पूरी तरह मूर्तिपूजक धरती पर जहाँ कोई धर्मप्रचारक इससे पहले नहीं गया था। फिर भी जुडसन कभी भी उनके इस मूर्तिपूजक लोगो को जीतकर मसीह के पास लाने और पहली बार बाइबल का अनुवाद बर्मा की भाशा में करने के वचन से डगमगाया नहीं। एडोनीराम जुडसन इतने मजबूत मसीही कैसे बने? उनके जीवन की कहानी पढ़ने से, मैं सहमत हो गया कि उनके मसीही जीवन की नींव है उनके सच्चे परिवर्तन के अनुभव जो उन्होंने युवा व्यक्ति की तरह किया था उसमें, उनके कभी भी धर्मप्रचार के कार्य पर जाने से पहले। इस धार्मिक प्रवचन में मैं भारपूर्वक निर्भर कर रहा हूँ कर्टनी एन्डरसन की किताब, टु ध गोल्डन षोर : ध लाइफ अॉफ एडोनीराम जुडसन (To the Golden Shore : The Life of Adoniram Judson) जुडसन प्रेस, 1987 की प्रत।
उनका नाम एडोनीराम जुडसन जुनीयर था, उनके पिता एडोनीराम जुडसन (सीनीयर) ज्येश्ठ पुराने रीति के धर्मसंप्रदाय संबंध धर्मप्रचारक थे। व्यक्ति जिससे युवा एडोनीराम सबसे ज्यादा डरते थे वो थे उनके पिता। ये केवल श्रध्धायुक्त भय था आदमी का जिससे उनके पुत्र को उनसे डरने का कारण बना। वो मन की भावना बताने या हँसने से लगभग असमर्थ था। वो स्वयं प्रभु की तरह कठोर और दृढ था। हकीकत में एडोनीराम के युवा मनमें, प्रभु और उनके पिता ने करीब करीब समान पहिचान ली थी।
एडोनीरामने तीन वर्श की उम्र में पढना सीखा। इसके कारण उसके पिता महसूस करने लगे कि ये बालक बडा आदमी बनेगा, और उसके पिताने उसे ये बार - बार कहा। उसके पिता सिर्फ गरीब याजक थे, परन्तु उनको इच्छा थी कि उनका पुत्र उनसे बहुत बडा प्रचारक बने बडे नये इंग्लेंड कलीसिया में। उनको आषा थी कि उनका पुत्र प्रसिद्धि और सफलता प्राप्त करें जो उन्होंने कभी भी नहीं जानी।
अपने बचपन के दौरान एडोनीराम ने जो भी उनको हाथ में मिला पढने के लिये वो पढा, उनके पिता के पुस्तकालय से पुस्तको को लेकर, नवलकथा और नाटक जो उस समय मषहूर थे। अब भी वो बहुत कार्यषील और प्रबल थे। जब वे दस साल के हुए तब वे निपुण गणितषास्त्री थे, और ग्रीक तथा लेटीन भाशाकी मूल पढ़ाई पढ़ चुके थे। उनके पिताने उनसे कहा, ‘‘तुम बहुत (प्रभावषाली) बालक हो एडोनीराम, और मैं आषा रखता हूँ कि तुम बडे आदमी बनोगे। इन षब्दों ने उन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला। ‘‘मैं आषा रखता हूँ कि तुम बडे आदमी बनो।''
इस समय के दौरान उनके पिता का समुदाय भयानक कलीसिया टूटने (Split) से गुजरे। आखिरकार पूरे परिवार को दूसरे षहर में जाना पडा जहाँ उनके पिता दूसरे छोटे कलीसिया के याजक बने। अभी भी एडोनीराम को उनके पिता के द्रश्टांत : कभी भी समझौता न करना, पर बडा आदर था।
एडोनीराम ने महसूस किया था कि उनका भाग्य है (destiny) सुवक्ता, कवि, या जोन आदमस के समान राजनीतिज्ञ बने कुछ किताबों और पढ़ने के साथ जुड़ा हुआ था, कुछ जो उसे सम्मान और प्रसिद्धि दिलाए, और उनका नाम युगो तक जाना जाये।
उसे सदा ही सच्चा धर्मात्मा बनना था। फिर भी वो सच्चा मसीही और बडा आदमी दोनो एक साथ केसे हो सकता है? जब वो बिस्तर पर बीमार पडा था, उसे लगता था उसने मनमें आवाज सुनी, ‘‘हम पर नहीं, हम पर नहीं; परन्तु आपके नाम पर महिमा हो।'' यह राश्ट्र का अनजान याजक हो सकता था जिसकी प्रसिद्धि अनंतता तक बजेंगी, चाहे वो यहाँ नहीं सुना गया हो। संसार उसके पराक्रमी पुरूशों के बारे में गलत था। संसार उसके न्याय में गलत था। अनजाने राश्ट्रीय याजक की प्रसिद्धि तुच्छता में डूब गयी। यही एक सिद्धि थी जो कब्र पर विजयी हुई। ‘‘हम पर नहीं, हम पर नहीं, परन्तु आपके नाम पर महिमा हो'' उसके मन में बजा। उसने सिरकनी (Bolt) अपने बिछौने में सीधी रखी, इस अन्जान विचारों के द्वारा चकित होकर।
उसने तुरंत ही उन्हें बाहर निकाल दिया, कैसे भी। परन्तु उस एक छोटी पल के लिये परिज्ञान (insight) इतना मजबूत था कि वो इसे जीवनभर याद रखेगा।
सोलह वर्श की उम्र में एडोनीराम महाविद्यालय जाने के लिये तैयार थे। स्वयं येले (Yale) के स्नातक होने के बावजूद भी, एडोनीराम के पिता ने अपने बेटे को वहाँ नहीं भेजा, क्योंकि षायद वो घर से बहुत दूर था। चाहे हार्वड (Harvard) सिर्फ पच्चास मील दूर था, उसने उसके पुत्र को वहाँ नहीं भेजा क्योंकि वो पहले से ही पक्षपातहीन बन रहा था। इसके बदले आदरणीय जुडसन ने उसके बेटे को रोडे आयलेन्ड महाविद्यालय, प्रोवीडेन्स (Rhode Island College, Providence) में भेजा। एडोनीराम के महाविद्यालय में प्रवेष पाने के कुछ समय बाद ही वो ‘‘ब्राऊन विष्वविद्यालय'' बन गया। आदरणीय जुडसन को जानकारी थी कि ये सार्थक, बाइबल में माननेवाली षाला थी। आदरणीय जुडसन ने महसूस किया कि एडोनीराम इस महाविद्यालय में सुरक्षित होंगे।
जब एडोनीराम पहिले से लेटीन, ग्रीक, गणित, ज्योतिशषास्त्र, तर्कषास्त्र, पब्लीक स्पीकींग और प्रेरणात्मक तत्वज्ञान जानता था, उसने षाला में प्रवेष किया सोफोमोरो (Sophomore) की तरह बजाय नये आदमी की तरह। उनके प्राध्यापक को उनके बारे में तुरंत ही पता चला। षाला के वर्श के अंत में महाविद्यालय के राश्ट्रपति ने उनके पिता को चिट्ठी भेजी, एडोनीराम को ‘‘सबसे प्यारा और आषाजनक पुत्र'' कहते हुए। आदरणीय जुडसन का मन गर्व से भर गया जैसे ही उन्होंने वो चिट्ठी पढ़ी।
षाला के विद्यार्थीयों ने जल्दी ही जाना कि, वो धर्मप्रचारक का पुत्र होने के बावजूद भी, एडोनीराम को हफते की दो प्रार्थना सभा में बहुत ही कम रूचि थी। इसके बदले वो षाला में अपरिवर्तित लोगो के साथ बहुत मषहूर बन गया।
एडानोरीम जल्द ही जेकब एमास नाम के युवा आदमी का मित्र बन गया, जो उससे एक वर्श बडा था। एमास बुद्धिषाली, निपुण और बहुत मषहूर था - परन्तु वो ईष्वरवादी था मसीही नहीं। वो और एडोनीराम बहुत गहरे मित्र बन गये और एडोनीराम उससे इतना प्रभावित हुआ था कि वो जल्दी ही जेकब एमास की तरह अविष्वासु बन गया। अगर एडोनीराम के पिता को जानकारी होती कि वो ईष्वरवादी बन गया है, वे उसे उस विष्वविद्यालय से तुरंत ही निकाल देते। आदरणीय जुडसन ने लीबरलीझम (liberalism), (युनीटेरीयनझम) अद्वैतवाद (Unitarianism), और युनीवर्सलीझम (Universalism) विष्वव्यापक्तावाद का तिरस्कार किया, परन्तु उन्होंने महसूस किया कि ईष्वरवाद इन सब में सबसे बुरा था। ईष्वरवादी ने बाइबल का पूरी तरह अस्वीकार किया था। ईष्वरवादी सिर्फ मानते है कि वहाँ पर प्रभु थे जिसे आदमीयों से कभी भी संबंध नहीं था। उन्होंने मसीह को प्रभु का पुत्र मानने से अस्वीकार किया, स्वर्ग और अधोलोक, या मसीह के लहू के प्रायष्चित को नहीं मानते। परन्तु आदरणीय जुडसन को जानकारी नहीं थी कि एडोनीराम के मित्र जेकब एमासने उसके बेटे को दोश और अविष्वास में डाला था।
जेकब एमास युवा लोगो का नेता था जिनके साथ एडोनीराम बाहर घुमता था। ये लड़के साथ में पढते थे, मेजबानी करते थे युवा स्त्रीयों के साथ, एक साथ बाते करते थे और साथ में खेलते थे। इस युवा लोगों को मसीहीता में रूचि नहीं थी। वे बाते करते थे बडे लेखक, खिलाडी और अभिनेता बनने के बारे में। वे ष्ोक्सपीयर या सोना बनानेवाले (Goldsmith) बनते थे अमरिका के नये विष्व में। पूरा धर्म जो एडोनीराम के पिता ने इतने जतन से उसके पुत्र को सीखाया था वो पूरी तरह नश्ट हो गया। जेकब एमास के पास था ‘‘स्वतंत्र'' एडोनीराम उसके पिता की पुरानी मान्यता से, और उसे प्रसिद्धि और भविश्य खोजने के लिये आजाद किया।
अभी भी एडोनीराम को दोश की कुछ व्याकुलता महसूस हुई। उसके पिता के प्रभु का अस्वीकार करना उसके पिता का अस्वीकार करने के समान था, जिन्हें वो अभी भी मन की गहराई से चाहता था। वो उसके पिता की अस्वीकृति से डरता था, इसलिये उसने कभी भी उसके अविष्वास को नहीं दर्षाया जब वो महाविद्यालय के दो सत्र के बीच में घर आया था।
एडोनीराम अपनी कक्षा में अव्वल आया। वो बिदाई के समय का आर्षीवाद देने, और उसके स्नातक्ता में मुख्य भाशण देने के लिये चुना गया था। जैसे ही उसने जाना कि उसने ये सम्मान जीता है, वो अपने कमरे में भागा और लिखा, ‘‘प्यारे पिता, मुझे ये मिला है। आपका स्नेही पुत्र, ए.जे.।'' कार्यक्रम के अंत में, सब से उच्च सम्मानित पद में, एडोनीराम ने बिदाई के समय का भाशण दिया, उसके प्रेक्षकों में गर्वित पिता और माता के साथ।
इस प्रकार, उन्नीस वर्श में, एडोनीराम तैयार थे उनका जीवन कार्य षुरू करने। परन्तु उसे कोई विचार नहीं था कि वो क्या होगा। वो घर आया और उसके माता पिता के साथ हर रविवार कलीसिया गया। उसके माता पिता को जानकारी नहीं थी कि वो अब अविष्वासु था। उसे पाखण्डी की तरह महसूस होने लगा जब हर समय वो अपने माता और पिता के साथ परिवार की प्रार्थना में जुड़ा।
हर हफते वो ज्यादा बैचैन होता रहा। वो सोचता रहा उन महत्वाकांक्षाओं के बारे में जो उसने जेकब एमास के साथ सोची थी। उस गर्मीयों में उसके आखिरकार निर्णय किया घर छोडने और न्युयोर्क जाने का। वो लोगों से मिल सके जो नाटयषाला के साथ जुडे थे। वो शायद रंगभूमि के लिये नाटक लिखना सीखेगा। उसे जानकारी थी कि उसके पिता और माताने सीखाया था कि न्यूयोर्क अमरिका का आधुनिक व्यभिचार में सबसे पाप भरा षहर था। उसे पता था कि उन्होंने सीखाया था नाटयषाला थी अधोलोक का छेद, दुश्टता और पाप का। परन्तु उसने सोचा कि उसके माता पिता बहुत छोटे मन के थे।
जल्दी ही वो न्युयोर्क जाने के लिये तैयार था। उसके माता पिता ने ऐसा प्रत्याधात दिया जैसे की वो चाँद की सफर पर जा रहा हो! वे महसूस नहीं कर सके कि वो उनके आदेष छोड़ने के पद पर आया है, अभिनय करने और स्वयं को युवान सोचते हुए। इस समय पर उसके पिताने उसे धर्मप्रचारक बनने के लिये पढ़ाई करने को कहा। जब एडोनीराम ने वो सुना, उसने उद्वेग से अपने माता पिता को सच्चाई कही। उनके प्रभु उसके प्रभु नहीं थे। वा ेअब बाइबल में विष्वास नहीं करता था। वो विष्वास नहीं करता था कि यीषु प्रभु के पुत्र थे।
उसके पिता ने उससे बात करने कि कोषिश की, परंतु निश्फल हुए। उसकी माता रोयी और विलाप किया उसके पीछे एक कमरे से दूसरे कमरे में जाते हुए। ‘‘तुम अपनी माँ के साथ ऐसा कैसे कर सकते हो?'' वो चिल्लायी। उसके प्यारे एडोनीराम ने दुश्टता को चुना और प्रभु का अस्वीकार किया। वो उसका रोना और उसके लिये की गई प्रार्थना सुन सकता था जब कभी वो घर में गया।
एडोनीराम इसके साथ 6 दिनों के लिये रखा गया था। फिर वो अपने घोडे पर बैठा और न्युयोर्क की ओर रवाना हो गया। परन्तु जब वो वहाँ पहुँचा उसने जाना कि वो वह स्वर्ग नहीं था जिसका उसने ख्वाब देखा था। वहाँ उसके लिये कोई स्वागत और नौकरी नहीं थी। वो सिर्फ कुछ हफते रहा लौटकर जाने से पहले व्याकुल और मन से बीमार।
जैसे सूर्य नीचे जा रहा था वो एक छोटे से गाँव में आया। उसने एक उपहारगृह (Inn) ढूँढा, उसके घोडे को अस्तबल में रखा और उपहारगृह के आदमी से कमरे के लिये पूछा। उपहारगृह करीब करीब भरा हुआ था। वहाँ पर सिर्फ एक ही कमरा बाकी था। मकानमालिक ने उससे कहा कि कमरा उस युवा आदमी के कमरे के बाजु में है जो बहुत ज्यादा बीमार है, षायद मरनेवाला है। रात में वो षायद अषांत हो सके। ‘‘नहीं'', एडोनीराम ने कहा, बाजु के दरवाजे से आता हुआ थोड़ा आवाज उसे रात के अच्छे आराम से व्याकुल नहीं करेगा। उस कुछ खाना देने के बाद, मकानमालिक एडोनीराम को उसके कमरे तक ले गया और उसे वहाँ छोड़ा। एडोनीराम बिस्तर पर पडा और नींद आने के लिये राह देखने लगा।
परन्तु वो सो नहीं सका। वो बाजु के कमरे से आता हुआ हलका आवाज सुन सकता था, पैरो के आवाज, आने और जाने का, पुठ्ठे के टूटने का, धीमा आवाज, पीडा से कराहना और हाँफना। इस आवाज ने उसे बहुत ज्यादा व्याकुल नहीं किया - नाही विचार की वो आदमी षायद मर रहा है। एडोनीराम के नये इन्गलैंड में मृत्यु सामान्य था। ये किसीको कभी भी कोई भी उम्र में हो सकता है।
जो उसे व्याकुल करता था वो था विचार कि दूसरे कमरे का आदमी मृत्यु के लिये षायद तैयार नहीं होगा। क्या वो, स्वयं, इसके लिये तैयार था? ये विचार उसके मन में चलने लगे जैसे वो वहाँ लेटा आधा ख्वाब में, आधा जागृत। उसे आष्चर्य हुआ वो अपनी मृत्यु का सामना कैसे करेगा। उसके पिता षायद मृत्यु का स्वागत करे अनंत महिमा के लिये द्वार खुलने की तरह। परन्तु एडोनीराम, अविष्वासु, के लिये मृत्यु द्वार था खाली गढ्डे का, अंधेरे का, अच्छे से अन्त तक और बुरे के लिये क्या? उसका षरीर काँप उठा जैसे उसने विचार किया कब्र का, लाष का धीरे धीरे सड़ना, मीट्टी के वजन का दफनाएँ हुए षवपेटी पर। क्या इतना पूर्ण था, अंतहीन सदीयों द्वारा?
परन्तु उसका दूसरा हिस्सा मुस्कुराया, इन मध्यरात्रि के विचारो पर। उसके महाविद्यालय में मित्र क्या सोचेंगे इस रात के आंतक के लिये? सबसे ऊपर, उसका मित्र जेकब एमास क्या सोचेगा? उसने सोचा एमास उसकी ओर हँस रहा था और उसे षरमिंदगी महसूस हुई।
जब वो उठा सूर्य खीडकी से चमक रहा था। उसका डर अंधेरे के साथ लुप्त हो गया था। वो मुष्किल से मान सका कि वो इतना कमजोर और भयभीत था अगली रात को। उसने स्वयं को तैयार किया और नीचे नास्ता करने गया। उसने उपहारगृह के मालिक को ढूँढा और उसका पैसा चुकाया। फिर उसने पूछा अगर वो युवा आदमी जो दूसरे कमरे में था वो ठीक था। आदमीने जवाब दिया, ‘‘वो मर गया है।'' फिर एडोनीराम ने पूछा, ‘‘क्या आप जानते हो वो कौन था? उपहारगृह के मालिक ने कहा, ‘‘ओह, हाँ वो ब्राउन विष्वविद्यालय से युवा आदमी था। उसका नाम था एमास, जेकब एमास।'' वो उसका सबसे अच्छा मित्र था, न माननेवाला जेकब एमास, जो अगली रात वहाँ बाजु के कमरे में मरा।
एडोनीराम कभी भी याद करने के समर्थ नहीं था कि बाद के कुछ घंटे कैसे बीते। सिर्फ उसे याद था कि उसने वो उपहारगृह कुछ समय के लिये नहीं छोड़ा। आखिरकार वो उसका घोडा चलाकर व्यग्रता में चला गया। एक षब्द उसके मन में घुमता रहा - ‘‘खोया हुआ।'' मृत्यु में, उसका मित्र जेकब एमास खोया था - पूरी तरह खोया हुआ। मृत्यु में खोया हुआ। उसके मित्रों के लिये खोया हुआ, संसार को, भविश्य के लिये खोया हुआ। ऐसे खोया जैसे धुँए के गुच्छे हवाँ में खो जाते है। अगर एमास के खुद के मंतव्य सच्चे थे, तो ना उसके जीवन और ना उसके मृत्यु का कोई अर्थ था।
परन्तु क्या अगर एमास गलत होता? क्या अगर बाइबल अक्षरषः सच्चा था और व्यक्तिगत प्रभु सच्चे थे? फिर जेकब एमास अनंतता के लिये खो गया। और पहिले से, उस क्षण, एमास जानता था कि वो गलत था। परन्तु अब एमास के लिये पष्चाताप करने बहुत देर हो चुकी थी। उसके दोश जानते हुए, एमास पहिले से न सोचनेवाली सजा अधोलोक की ज्वाला का अनुभव कर रहा था। बचाये जाने का पूरा मौका वो खो चुका था, सदा के लिये खो चुका था। ये विचार एडोनीराम के चक्ति मन में चलते रहे। एडोनीराम ने सोचा कि उसका सबसे अच्छा मित्र का बाजु के कमरे में मरना कोई अनुरूपता (Coincidence) नहीं हो सकता। उसने सोचा कि उसके पिता के प्रभु ने ये घटना विधि के द्वारा रची, कि वो अचानक से कभी भी नही था।
अचानक से एडोनीराम ने महसूस किया कि बाइबल के प्रभु सच्चे प्रभु थे। उसने उसके घोडे को फिराया और घर के लिये जाने लगा। उसकी यात्रा सिर्फ पाँच हफतो तक चली, परन्तु इन पाँच हफतो में जो हुआ वह जैसे उनके माता पिता का अंकुष फेंक कर आत्मा हिलानेवाले विप्लव में फिरना। वो अब गहरे उत्पात में था, उसकी अपनी आत्मा के लिये विनाषी भय। वो घर लौटा जागृत पापी की तरह।
इस समय दो धर्मप्रचारक उसके पिता के घर आये। उन्होंने सुझाव दिया कि एडोनीराम नयी धार्मिक पाठषाला में प्रवेष ले जिसने अभी उसके द्वार खोले थे। उसने एण्डओवर थीयोलोजीकल धार्मिक पाठषाला में अक्तूबर में प्रवेष लिया। वो अभी तक परिवर्तित नहीं था, इसलिये उसे खास विद्यार्थी की तरह प्रवेष दिया, सेवा के उम्मेदवार की तरह नहीं। विद्यार्थी की तरह उसने बाइबल पढना षुरू किया, मूल भाशा हीब्रु (Hebrew) और ग्रीक में। नवम्बर तक उसके सारे संदेह छूटने लगे, और वो यह लिखने समर्थ हुआ कि उसने ‘‘पवित्र आत्मा की पुनः सुधार का प्रभाव प्राप्त करने की आषा रखने की षुरूआत की''। दीसम्बर के दूसरा दिन वो कभी भी नहीं भूला - वो परिवर्तित था और उसने अपना पूरा जीवन प्रभु को समर्पित किया। उस समय से वो अक्षरषः नया आदमी था। वो अपनी सांसारिक सफलता के स्वप्न से सदा के लिये फिर गया, और सफलता से स्वयं को पूछा, ‘‘मैं कैसे प्रभु को सबसे अच्छी तरह से खुष करू?''
ये एक बहुत ही महत्वपूर्ण परिवर्तन था, क्योंकि इसने एडोनीराम को बनाया बर्मा का पहला विदेषी धर्मप्रचारक। अपनी दूतकर्म जगह पर आकर, एडोनीराम जुडसन बेपटीस्ट बन गया, ग्रीक षब्द ‘‘बेप्टीझो'' (Baptizo) की पढाई के द्वारा। वो बर्मा जा सकता था, उस समय जब कोई धर्मप्रचारक उस मूर्तिपूजक धरती पर नहीं आता था। कडवी कठोरता, कारावास और पारिवारिक दुर्घटना, दो पत्नी और कुछ बालको की मृत्यु को मिलाकर, इन सबके बीच से, एडोनीराम जुडसन कभी भी अस्थिर नहीं हुआ खोयी हुई आत्माओं को मसीह के लिये जीतना और पूरी बाइबल बर्मा की भाशा में अनुवाद करने के लिये। हम कैसे प्रार्थना करें कि कुछ युवा लोग हमारे कलीसिया में अनुभव करें सच्चे परिवर्तन का, जैसे एडोनीराम जुडसन ने किया और जीवन भर मसीह की सेवा करते रहे। डो. जोन आर. राइस (1895 - 1980) ने गीत लिखा जो एडोनीराम के परिवर्तन का पूरी तरह वर्णन करता है।
मैं आनंद की डगर पर चला,
मैंने सांसारिक खजाने के लिये कठोर परिश्रम किया,
परन्तु सारे परिमाण के पीछे
मैंने षान्ति पायी सिर्फ यीषु में ...
मेरी घमंडी अच्छाई ने मुझे निश्फल किया,
कोई उपाय नहीं जो पाप जिसने मुझे पीड़ा दी है,
प्रभु की आत्माने फिर मुझे प्रबल किया,
मेरे पाप यीषु पर छोडने ...
प्रभु के वचन मैंने बहुत समय तक रोके,
उसकी आत्माने पुकारा, वीनंती की,
पश्चाताप करके मैंने नाम लिखा,
यीषु के साथ, बहुमूल्य यीषु।
मेरे सारे पाप माफ किये गये,
पाप की जंजीर टूट गयी है
और मेरा पूरा मन दिया गया है,
यीषु, सिर्फ यीषु को।
ओ मसीह, निरन्तर प्रेम के लिये,
क्योंकि आषीर्वाद सदा के लिये बढ़ता है,
मेरे सारे भय छुडाने के लिये,
मैं प्रषंसा और प्रेम करता हूँ मेरे यीषु को
मेरे सारे पाप माफ किये गये,
पाप की जंजीर टूट गयी है
और मेरा पूरा मन दिया गया है,
यीषु, सिर्फ यीषु को।
(‘‘यीषु, सिर्फ यीषु'' डो. जोन आर. राइस द्वारा 1895 - 1980)।
मेहरबानी करके खडे रहो और अपने गीत के पर्चे का गीत क्रमांक 5, ‘‘लगभग प्रतीति दिलाया हुआ'' गाओ।
‘‘लगभग प्रतीति दिलाया हुआ'' अब विष्वास करने;
‘‘लगभग प्रतीति दिलाया हुआ'' मसीह को प्राप्त करने;
लगता है अब कुछ आत्माएँ कहते हुए,
‘‘जाओ, आत्मा जाओ तेरे रास्ते,
कुछ ज्यादा अनुकुल दिन यहाँ पर मैं पुकारूँगा''
‘‘लगभग प्रतीति दिलाया हुआ'' कटनी बीत चुकी है!
‘‘लगभग प्रतीति दिलाया हुआ'' आखिरकार दण्ड आता है!
‘‘लगभग'' सहाय नहीं कर सकता;
‘‘लगभग'' परन्तु वो निश्फल होता है!
दुःखी, दुःखी, वो कडवा विलाप -
‘‘लगभग'', परन्तु खोया हुआ।
(‘‘लगभग प्रतीति दिलाया हुआ'' फिलिप पी. ब्लीस द्वारा, 1838 - 1876)।
(संदेश का अंत)
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धार्मिक प्रवचन के पहले डो. क्रेगटन् एल. चान द्वारा प्रार्थना।
धार्मिक प्रवचन से पहले श्रीमान बेन्जामिन किनकेड ग्रीफिथ द्वारा गाया हुआ गीत :
(‘‘बोलो, प्रभु षान्ति मेंं'' इ. मेरी ग्रीमेस द्वारा, 1868 - 1927, याजक द्वारा ठीक किया हुआ)।
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