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यीषु की धुन-हमारा श्रेश्ठ द्रश्टांत!THE ZEAL OF JESUS – OUR GREAT EXAMPLE! डो.आर.एल.हायर्मस, जुनि. द्वारा लोस एंजलिस के बप्तीस टबरनेकल में षनिवार षाम, 30 जुलै 2011 “तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी” (यूहन्ना 2: 17)। |
जब यीषु यरूषलेम मे आये तब षहर लोेगो की भीड़ से भरा था। वे फसह के खाने का उत्सव मनाने आये थे। वे मन्दिर मे गये और उन्होने व्यापारी और सर्राफो को देखा। वे बैल, मेम्ना और कबूतर बेेच रहे थे जो बलि के लिये इस्तेमाल होते थे। उन्होने मन्दिर के परिसर मे सर्राफो को व्यापार करते और मुनाफा कमाते देखा। उन्होने विलाप किया और उन्हे बाहर निकाला,
“और कबूतर बेचनेवालों से कहा, इन्हे यहाँ से ले जाओं; मेरे पिता के घर को व्यापार का घर मत बनाओ” (यूहन्ना 2: 16)।
फिर चेलोने भविश्यवाणी को याद किया जो भजनसंहिता 69:9 मे की गयी थी, “तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी” (यूहन्ना 2: 17)। यह अनुवाद किया जा सकता है कि, “तेरे घर की धुन मुझे नश्ट कर देगी”। “धुन” के लिये ग्रीक षब्द जो अनुवाद किया गया है वो है “फेरवोर” ;थ्मतअवतद्ध यह जड़ का षब्द है जिसका अर्थ है “तीव्र, उत्साही, उत्सुक होना।”
बाइबल कहता है कि यीषु “तुम्हे एक आदर्ष दे गया है कि तुम भी उसके पद-चिन्हों पर चलो” (1 पतरस 2: 21)। यीषु लवलीन, उत्साही, तीव्र और उत्सुक थे, प्रभु के घर को सम्मानित करने के लिये। हमे उनके द्रश्टांत का अनुकरण करना चाहिये। हमें लवलीन, उत्साही, तीव्र और उत्सुक होना चाहिये “परमेष्वर के घराने मे जो जीवते परमेष्वर की कलीसिया है” (1 तीमुथीयुस 3: 15)। हमें “भले कामो में सरगर्म” (तीतुस 2: 14) होना चाहिये “जीवते परमेष्वर की कलीसिया” में।
I. पहला, प्रचार लवलीन होना चाहिये।
हमे होलीवुड के चलचित्र से अभिप्राय मिलाना है कि यीषु ने बहुत नाजुक आवाज से प्रचार किया था। परन्तु एक छोटा सामान्य ज्ञान बताता है कि यह सच नही होगा। उन्होने हजारो लोगो को एक साथ प्रवचन दिया था। वे कैसे इतने सारे लोगो को प्रवचन दे सकते है बिना आवाज़ के बढ़ाये? यूहन्ना 7: 37 मेे हम पढ़ते है,
“यीषु खड़ा हुआ और पुकार कर कहा, यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पीए” (यूहन्ना 7: 37)।
उन्होने “पुकारा।” ग्रीक षब्द का अर्थ है “पुकारना रूक्ष स्वर से, या आवष्यकता से” (र्ज्योज रीकर बेरी); “चिल्लाना, जोर से बुलाना; चीखना, पुकारना” (स्ट्रोन्ग)। धर्मअनुयायी पीलीयम पर्कान्स (1558-1602) ने कहा, “धार्मिक प्रवचन मे षिक्षा के दिखावे मे हमे ज्यादा परिमित होना उचित है, परन्तु उपदेष मे ज्यादा उत्साही और बलवान” (वीलीयम पर्कीन्स, ध आर्ट ओफ प्रोफेसींग, ध बेनर ओफ ट्रुथ ट्रस्ट, 2002 मे फिर से छपा हुआ पृश्ठ. 75)। डो. जोन आर. राइस ने कहा,
कलीसिया की सबसे बडी परेषानी है प्रवक्ता की परेषानी... प्रवक्ता के पास कमी है दिव्य आग, यीषु की तरह उत्तेजना, बपतीस यूहन्ना की तरह साहस, पोलाइन की तरह सहनषक्ति, जो प्रभु के कलीसिया को जला देगी... हम सब को क्या जरूरत है और जरूरी है अगर हमे परमेष्वर को प्रसन्न करना हो औैर उनका काम असरकारक तरीके से करना हो वो है स्वर्ग से आग, आग हमारी हडड्ीयों मे जो जर्कयाह को थी... हमे प्रभु के वचनो की जरूरत है हमारे अंदर मन को जलाने, हमारी हडड्ीयों को जलाने की तरह, ताकि हम न रह सके (जोन आर. राइस, डी. डी., ध सोल वीनर्स फायर, स्वोड ओफ ध लोर्ड प्रकाषन, 1969, पृपृश्ठ. 53-54)।
आमीन! और आमीन!
डो. मार्टीन लोयड-जोनेस बार-बार याद किये जाते है उनकी अर्थ प्रकाषक प्रचार के लिये। यह है क्योंकि उनकी बहुत सी किताबे उनके सुबह के धार्मिक प्रवचन से आती है, मसीहीयो को निर्देषित करती हुई। उनके रविवार रात के कुछ ही सुसमाचार प्रचारक धार्मिक प्रवचन छपे हुअे है। परन्तु अगर आप उनके रविवार रात के धार्मिक प्रवचनों की टेप (केसेट) सुनोगे तो आप सुनेंगे प्रचार मे क्या उचित है उसको सुन्दर द्रश्टांतो मे। बहुत से लोग उनके रविवार सुबह के धार्मिक प्रवचन से ज्यादा रविवार रात के धार्मिक प्रवचन सुनने आये थे। नाम न दिये हुए प्रचारक के लिये बोलते हुए डो. लोयड-जोनेस ने कहा, “वहाँ पर धुन नहीं थी, उत्साह नहीं था... उसका पूरा व्यवहार लगता था विभिन्न और षास्त्र-विशयक और नियमानुसार... प्रचार मे उत्तेजना कहाँ है जो भूतकाल के श्रेष्ठ प्रचारों मे सदा गुण बताती थी? आधुनिक प्रचारक क्यों चलाये और लिये नही जाते जैसे भूतकाल के श्रेष्ठ प्रचारक बार-बार लिये जाते थे?... प्रचार क्या है?... यह आग पर सिध्धांत है... प्रचार करना सिध्धांत है जो आग पर के आदमी से आता है” (डो. मार्टीन लोयड-जोनेस, एम.डी., प्राचींग एन प्रार्चस, झोन्डरवान प्रकाषन घर, 1989, पृपृश्ठ. 88,90,97)। आमीन! और आमीन!
मैं अब सत्तर वर्श कां हूँ। मुझे हर रोज आधा घंटा तैरना होता है, और पूरे वर्श मे लाल-मॉस दो-चार बार से ज्यादा नही खाना-प्रचार करने के लिये स्वस्थ रहने। मुझे अपनी पढ़ाई और प्रार्थना और वांचन मे बहुत से घंटे बिताने चाहिये-प्रचार करने के लिये स्वस्थ रहने। आप धार्मिक प्रवचन के हस्तलेख पढ़के बोल नही सकते, परन्तु जब वे प्रचार किये जाते है, वे बडे उत्साह के साथ प्रचार किये जाते है। वे एक-एक वाक्य द्वारा प्रचार किये जाते है, दो अनुवाद के साथ। मैं अंग्रेजी में वाक्य देता हूँ, फिर श्रीमान सोन्ग इसे मेन्डेरीयन चीनी भाशा मे अनुवाद करते है, फिर श्रीमान मेन्सीया उसे स्पेनीस मे अनुवाद करते है - फिर से मेरे पास वापस। यह धार्मिक प्रवचन दो अनुवाद के साथ, करीबन पचास मीनट चलता है। यह बहुत विनोदहीन होगे जब तक हम तीनो इसमे अपना मन नही डालते प्रचार करने के उत्साह के साथ “प्रचन्डता से” प्रचार करते समय भी जैसे विलियम पर्कीन्स ने सलाह दी थी!
पीछली रात मेरी पत्नी, मेरा पुत्र और हमारे कलीसिया के एक युवा आदमी ने डो. डबल्यु. ए. क्रीसवेल का टेक्सास के डल्लास मे पहले बपतीस कलीसिया में, 9 जून 1985 के धार्मिक प्रवचन का वीडीयो देखा। डो. चार्ल्स स्टेन्ली मंच पर सर्धन बेपटीस्ट कन्वेनषन के प्रमुख पद पर थे। डो. पाइज पेटरसन अब सर्धन बेपटीस्ट थीयोलाजी धार्मिक पाठषाला के प्रमुख ने निवेदन दिया। बडा समूहगान और प्रार्थना दी गई थी।
यह करिष्माई या “उभरते कलीसिया” की सभा नही थी। यह पुराने तरीके के बपतीस कलीसिया की सभा थी। परन्तु, वहाँ पर कुछ था जो आज हमारे बहुत से कलीसिया मे कम है। यह उत्तेजक था! लोग पहले बपतीस मे चार बार प्रषंसा मे तूट गये डो. क्रीसवेल के “प्रभु के अभ्रान्त वचन” पर प्रचार षुरू करने से पहले। उन्होने धार्मिक प्रवचन के दौरान तीन बार प्रषंसा की, डो क्रीसवेल को रूकाकर जोर से आमीन कहते हुए। प्रचार रोमांचक और उत्तेजक और धुन से भरा था। जैसे मैंने देखा मैंने सोचा, “हमे सच्चाई की प्रषंसा करने मे कभी षर्म महसूस नही करनी चाहीये! हमे प्रभु के लिये अपनी धुन बताने मे कभी भी षर्म महसूस नही करनी चाहिये!” हाँ, लोग मेरे धार्मिक प्रवचन के दौरान प्रषंसा करते है। क्यों नही? अगर यह डो. क्रीसवेल के लिये अच्छा हो, यह मेरे लिये भी अच्छा है! परन्तु कोई बात नही कितने भी उत्साह से हम प्रचार करें, या कितने भी उतेजित हम है, इसका खोये हुओ पर कोई टीकनेवाला असर नहीं होता जब तक परमेष्वर बीच मे नही आते और धार्मिक प्रवचनो का इस्तेमाल नही करते।
“तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी” (यूहन्ना 2: 17)।
जो हमे हमारे अगले मुददे पर ले जाता है।
II. दुसरा, प्रार्थना लवलीन होेनी चाहिये।
पहले के मसीही कितने उत्साह से प्रार्थना करते थे! द्रश्टांत के तौर पे, हम प्रेरितो 4:24 मे पढ़ते है,
“उन्होने एक चित होकर ऊँचे षब्द से परमेष्वर से कहा” (प्रेरितो 4: 24)।
ध्यान दिजाये कि “उन्होने ऊँचे षब्द मे कहा”। इस ग्रीक षब्द का अर्थ है कि उन्हो ने उनकी आवाज ऊँची की, और जोर से प्रार्थना की। फिर ध्यान दिजीये कि यह कहता है, “उन्होने एक चित होकर ऊँचे षब्द मे कहा”। ज्यादातर भाश्यकार नही जानते की इसका क्या करने! लगता है सिर्फ चार्ल्स जोन एलीकोट ने इसका अर्थ अनुमान किया। मुझे बहुत करके यह लगता है कि उनमे से एक ने उनकी आवाज “ ऊँची ऊठ़ाई” बजाय जोर से, और दुसरो ने उसको साथ दिया “आमीन” कहते हुए। ध्यान दिजीये कि उन्होने एक ही चीज की प्रार्थना की, वो थी “अपने दासों को यह वरदान दे कि तेरा वचन बड़े हियाव से सुनाएँ” (प्रेरितो 4:29)। उनकी सिर्फ यही वीनती थी। कदाचित, और भी, जब एकने वह प्रार्थना की; उन सब लोगोने एक साथ जोर से वही वीनती की। लगता है यही पद 28 मे लागु किया गया था, “एक चित होकर”। यह कभी कभी उद्वार के समय होता है, जैसे कोरीया के उद्वार के समय। मैं इसका गवाह हुँ एक विस्तृत उद्वार जहाँ मै मौजूद था, चीनी बपतीस कलीसिया मे। हम सब को धुन से प्रभु की प्रार्थना करनी चाहीये खोये हुओ को परिवर्तित करने के प्रचार करने के लिये! हम षायद बडी धुन के प्रार्थना करे, जैसे यीषु ने की थी गतसमनी की वाटिका मे,
“और वह अत्यन्त संकट मे व्याकुल होकर और भी हार्दिक वेदना से प्रार्थना करने लगा” (लूका 22:44)।
“तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी” (यूहन्ना 2: 17)।
III. तीसरा, गाना लवलीन होना चाहिये।
भजन संहिता 81: 1 कहता है, “परमेष्वर जो हमारा बल है, उसका गीत आनन्द से गाओः याकूब के परमेष्वर का जय जयकार करो।” अगर गाना धुन से नही गाया तो खोयें हुओ के मन फिरेंगे नहीं। अगर गाना यांत्रिक और नर्म हो, मैं नही सोचता की प्रभु प्रसन्न होंगे। मैं मानता हूँ कि सिर्फ अच्छा गाना जोर से और लवलीन गाना है! “परमेष्वर जो हमारा बल है, उसका गीत आनन्द से गाओः याकूब के परमेष्वर का जयजयकार करो” (भजनसंहिता 81: 1)। डो. जोन आर. राईस ने कहा, “यह दुःख की बात है कि हमारे कलीसिया के पास वो संगीत नही है जो आत्मा को भर दे और मन तक पहुँचे, ताकि आम तौर पे आत्मा जीतने मे थोडी मदद हो जाये” (जोन आर. राईस, डी.डी., व्हाय अवर चर्चेस डु नोट वीन सोल्स, स्वोर्ड ओफ ध लोर्ड प्रकाषन, 1966, पृश्ठ. 126)।
चलिये गाते है, हमारे फेफडों की ऊँचाई पर, हर गीत-हर सभा मे, प्रभु की कीर्ति मे। ‘‘परमेश्वर जो हमारा बल है, उसका गीत आनन्द से गाओ: याकूब के परमेश्वर का जयजयकार करो’’!!!
IV. प्टण् चौथा, वहाँ पर बडी धून होनी चाहिये खोये हुओ की चिन्ता करने जब वे हमारी सभा मे लाये जाते है।
उदासीनता से, हम बार-बार देखते है जो दाउद ने हमारे अपने कलिसीया मे कहा,
‘‘मैंने दाहिनी ओर देखा, परन्तु कोई मुझे नहीं देखता: मेरे लिये शरण कही नही रही; न मुझ को कोई पुछता है’’ (भजनसहिता 142:4)।
खोए हुए लोग ऐसे कलिसीया मे जाकर देख सकते है कि सदस्य सिर्फ उनमे ही रूचि रखते है। उनके पास बैठने के लिये उनकी खास जगह है। उन्होने कभी भी नही सीखा उत्साहपुर्वक और मित्रता से नये लोगो के साथ रहना। वे षायद उनके साथ हाथ मिलायें और कुछ षब्द कहे, परन्तु वे उनके हावभाव द्वारा कहते है कि हकीकत मे वे उनके के लिये चिन्ता नही करते। “कोई भी आदमी ने मेरी आत्मा की चिन्ता नही की।” ओह, चलिये लवलीन, उत्तेजित और उत्साही बनते है खोये हुओ की चिन्ता करने जब वे हमारी सभा मे आते है! चलिये अपने आप को भूल जाते है और सिर्फ उनकी चिन्ता करने के बारे मे सोचे और उन्हे हमारे कलीसिया मे घर की तरह महसूस कराये! चलिये यीषु की तरह बनते है, जो सदा पापीयो के पीछे देखते थे। “क्योंकि मनुश्य का पुत्र खोए हुओ को ठूँठने और उनका उद्धार करने आया है” (लूका 19: 10)। हमारे लिये भी ऐसे ही कहा जाये, जो उनके लिये कहा गया था,
“तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी” (यूहन्ना 2: 17)।
महेरबानी करके खडे रहो और आपके गीत के पर्चे का 6ठा गीत गाओ।
नाष होते हुओ को मुक्त करो, मरते हुओ की चिनता करो,
उन्हे पाप और कब्र से छीन लो; भूले हुओ पर रोओ,
गिरे हुओ को उठाओ, उन्हे यीषु के बचानेवाली
षक्ति के बारे मे कहो। नाष होते हुओ को मुक्त करो,
मरते हुओ की चिन्ता करो, यीषु दयालु है, यीषु बचायेंगे।
(“नाष होते हुओ को मुक्त करो” फेन्नी. जे. क्रोस्बी द्वारा, 1820-1915)
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(संदेश का अंत)
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रूपरेखा यीषु की धुन-हमारा श्रेष्ठ द्रश्टांत! डो.आर.एल.हायर्मस, जुनि. द्वारा “तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी” (यूहन्ना 2: 17)। (यूहन्ना 2: 16, भजनसंहिता 69:9; 1 पतरस 2: 21; I. पहला, प्रचार लवलीन होना चाहिये, यूहन्ना 7: 37 II. दुसरा, प्रार्थना लवलीन होेनी चाहिये, प्रेरितो 4: 24,29; लूका 22: 44। III. तीसरा, गाना लवलीन होना चाहिये, भजनसंहिता 81: 1। IV. प्टण् चौथा, वहाँ पर बडी धून होनी चाहिये खोये हुओ की चिन्ता करने जब वे हमारी सभा मे लाये जाते है, भजनसंहिता 142: 4; लूका 19: 10। |