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निर्णायक्ता, काल्वीनझम और आज का स्वधर्म त्याग!DECISIONISM, CALVINISM AND TODAY’S APOSTASY! डो. आर. एल. हायर्मस, जुनि.द्वारा लोस एंजलिस के बप्तीस टबरनेकल में प्रभु के दिन की शाम, “किसी रीति से किसी के धोखे में न आना : क्योंकि वह दिन न आएगा, जब तक धर्म का त्याग न हो ले...” (2 थिस्सलुनीकियों 2:3)। |
प्रेरितो पौलुस हमे कहते है की प्रभु के दिन के आने से पहले दो महत्वपूर्ण और भयानक चीजे़ होंगी (1) “पहले धर्म का त्याग होगा”, और (2) “पापों का पुरूष प्रगट होगा।” डो. मेकगी ने कहाँ, “पहला, निर्मित किया हुआ कलीसिया विश्वास से मुँह फेर लेगा-जिसे हम स्वधर्म त्याग कहते है” (जे. वेरनोन मेकगी, टीएच.डी., थ्रु ध बाइबल, थोमस नेलसन प्रकाशक, 1983, भाग V, पृष्ठ.413; 2 थिस्सलुनीकियों 2:3 पर टीप्पणी)। कलीसिया का स्वधर्म त्याग पहले आता है, और फिर, “पापों का पुरूष” प्रगट होता है। “स्वधर्म त्याग” का अर्थ है “विश्वास से रवानगी”, धर्म का त्याग जो बाइबल में प्रगट किया गया है।
आपका अेस्केटोलोजीकल मंतव्य जो भी हो, आपको जरूर मानना है, अगर कलीसिया के इतिहास पता है, की हम अभी पीछले दो हजार सालो के बीच के बडे स्वधर्म त्याग में जी रहे है। इसलिये, मेरे लिये, आज हमारे पसंद की मुख्य चीज वो पाठ के वो शब्द है, “पहले धर्म का त्याग।”
“किसी रीति से किसी के धोखे में न आना : क्योंकि वह दिन न आएगा, जब तक धर्म का त्याग न हो ले...” (2 थिस्सलुनीकियों 2:3)।
“पहले धर्म का त्याग।” डो. डबल्यु. ए. क्रिसवेल ने बताया की ग्रीक शब्द जो अनुवाद किया गया है “धर्म का त्याग” वो है “हे अपोस्टेसीया” - “स्वधर्म त्याग”। डो. क्रिसवेल ने कहाँ “क्रियापद (हे) का इस्तेमाल संकेत करता है की पौलुस के दिमाग मेें कुछ खास स्वधर्म त्याग था”- हे अपोस्टेसीया - स्वधर्म त्याग (डवल्यु. ए. क्रिसवेल, पीएच.डी., क्रिसवेल की बाइबल की पढ़ाई, थोमस नेलसन प्रकाशक, 1979, पृष्ठ.1409; 2 थीस्सलुनीफियो 2:3 पर टीप्पणी)। डो. क्रिसवेलने कहाँ, “क्रियापद (हे - “घ” अंग्रेजीमे) संकेत करता है की पौलुस के दिमाग में कोई खास स्वधर्म त्याग था। अनुमान है की ‘प्रभु के दिन के' पहले वहाँ पर स्वीकृत मानने वालोंका धर्म त्याग होगा” (ibid.)।
इसलिये, कब “स्वधर्म त्याग” की शुरूआत हुई? कब ये “खास स्वधर्म त्याग” शुरू हुआ? पच्चीस सालो से ज्यादा समय से इस विषय को पढने के बाद, मैं द्रढता से मान चूका हुँ की आजका धर्म त्याग अचानक शुरू नही हुआ है। आज के स्वधर्म त्याग की शुरूआत और बढ़ावा इतिहास में है। आज के स्वधर्म त्याग की शुरूआत हुई जर्मन थीयोलोजीयन जोहान सेम्लर (1725-1791) के साथ, बाइबल के समालोचक जिन्होंने सिखाया की “वहाँ पर बाइबल में बहुत कुछ है जो प्रेरित नही किया गया” (जे. डी. डगलास, संपादक, मसीही के इतिहास में कौन किसका, टायनडेल हाऊस प्रकाशक, 1992, पृष्ठ.619)। बाइबल की आलोचना इतनी जल्दी से बढ़ी की 1887 में सी. एच. र्स्पजन ने कहाँ, “कलीसिया आधुनिक मतान्तर के उबलते कीचडे के नीचे दफनाया जा रहा है (सी. एच. र्स्पजन घ मेट्रोपोलीटन टबरनेकल पुलपीट, पीलग्रीम प्रकाशक, 1974 में फिर से छपा हुआ, भाग XXXIII, पृष्ठ.374)। “निम्न कक्षा का विवाद”, जो र्स्पजन वीरता से लडे, वो बाइबल के सर्मथन और बाइबल के समालोचक के बीच के परिश्रम की शुरूआत थी, सिध्धांतवादी / आधुनिक रीति के सर्मथक के विवाद के जैसे जानी जाती थी, जो 1887 में फटा, और आज तक चल रहा है। वो है पहला भाग जो आज के स्वधर्म त्याग तक ले जाता है - बाइबल की तीव्र समालोचना।
परन्तु एक दूसरा तत्व भी है जो आज के स्वधर्म त्याग तक जाता है। उन्नीसवी सदी के पहले भाग में दो लोगोने पुनःनिर्माण की नीव की शिक्षा को ललकारा। वे थे नेथेनीयल टेयलर (1786-1858) और चालर्स जी. फिनेय (1792-1875)। टेयलर पहले येले विश्वविद्यालय में मसीही धर्म की पढ़ाई के प्राध्यापक थे। 1822 में पदवीग्रस्त कीये गये थे, टेयलर अपनी बाकी की पूरी जींदगी येले में एक मसीही धर्म के अग्रसर प्राध्यापक रहे। इच्छाशक्ति की आजादी पर टेयलर के मंतव्य के वजह से “ऐसा विवाद जो कुछ ओर धर्मनिष्ठ (लोग) जो येले से अलग हुअे और प्रतिवादी धर्म की पाठशाला बनाई हार्टफोर्ड में 1834 में” - जहाँ फिनेय के विरोधी डो. अेसहेल नेटलेटन ने कई बार पढ़ाया (डगलास, ibid. पृष्ठ.661)।
टेयलर की वेदान्त द्वारा आधारित चार्लस जी.फिनेय ने आदमी की भश्ट्रता और सिर्फ कृपा द्वारा मुक्ति के पुनःनिर्मित मंतव्य पर हमला किया। फिनेयने अपनी सुसमाचार प्रचार सभा, उनके लोगो को बुलाने “निर्णय” लेने के लिये “नये तरीके” से प्रचार किये। उनहे परिवर्तित करने सिर्फ प्रभु की कृपा पर आधार रखने के बजाय, फिनेय ने लागो से कहाँ, “उनके लिये नया मन बनाओ” मसीह के लिये निर्णय द्वारा। फिनेयने हजारो लोगो को रास्ता दिखाया “निर्णय” करने के लिये और उनके षारिरिक कार्य सबूत की वे बचाये गये है उसे समजाना। इससे हजारो अपरिवर्तित लोग कलीसिया मे जुड गये, और हजारो अपरिवर्तित सेवको, जो हाल ही में बाइबल की जर्मन समालोचना से आर्कशित हुअे थे। इसलिये “निर्णायकता” आज के स्वधर्म त्याग का मुख्य कारण है-हजारो की संख्या मे दोनो अपरिवर्तित सेवक और कलीसिया के अपरिवर्तित सदस्य पैदा करते हुअे।
“किसी रीति से किसी के घोखे में न आना : क्योंकि वह दिन आएगा, जब तक धर्म का त्याग न हो ले...” (2 थीस्सलुनिफियो 2:3)।
हमने देखा “स्वधर्म त्याग” जो “निर्णायक्ता” द्वारा हुआ है उससे बड़ी संख्यामें एक के बाद एक वर्गो को विवश करके और फिर नाश करके, ज्वार भाटा की लहरोकी तरह कलीसिया के पास चलती रही, जैसे पानी में नाव को तबाही और पतन में छाडे दिया। हमने देखा है की निर्णायक तरीका फिनेय के “नये तरीके” से बढकर पूरे विश्व में फैल रहा है, जैसे रशिया, पोलेन्ड, फ्रान्स, एशिया और बाकी जगह में, लोग जिन्होने कभी भी फिनेय के बारे में नही सूना था, अब विश्वास करते है आप बचाये जाओगे “आगे बढने” के द्वारा या “पापीयों की प्रार्थना” कहने से। इसलिए “निर्णायक्ता” अब विश्वभर में सबसे बडी भूल है - हमारे समय के सच्चे मसीही के मत में आनेवाली बडी आपत्ति की सूचना है।
बप्तीसमा देनेवाली “पुरानी शाला” और प्रधान याजक के पंथ को माननेवालो न फिनेय के “निर्णायक्ता” के नये तरीके का पांच कारणो से विरोध किया था :
1. क्योेंकि वे आगे आने और प्रार्थना करनेवालो के बाहरी कार्य को नये जन्म के साथ भ्रमित करते है। फिनेय के “नये तरीको” ने सिखाया की अपरिवर्तित लोग कुछ कार्य कर सकते है जो उन्हे मसीही बनाने में मददरूप होगा। परन्तु “पुरानी शाला” के प्रवचन में ये माना जाता था की पापो का अपराधभाव उनके रहने का मुख्य कारण नयी रचना का काम; नये जीवन को सुरक्षित करने के लिये प्रभु को खोने का कारण बन जायेगा। मसीह में नये जन्म के बिना, पुरानी शाला के प्रवक्ता के अनुसार कोई भी परिवर्तन नही हुआ होगा।
2. क्योेंकि फिनेय की नयी शिक्षा खतरनाक तरीके से परिवर्तन की बाहरी द्रष्टि को मशहूर कर रहा था, जो पापो की बाहरी द्रष्टि से आता है, फिनेय को जवाब देते हुअे, डो. चालर्स होडझ ने कहाँ, “आत्मा को नष्ट करनेवाली ओर ज्यादा शिक्षा इच्छीत नही है उससे की शिक्षा जो पापीयो को... पच्छतावे और विश्वास करले सिर्फ तभी जब वे प्रसन्न होते है” - कभी भी और कही भी!
3. क्योंकि लोगो को कहा गया था की वे बचाये जायेंगे अगर वे आते है या पापीयों की प्रार्थना करते है। इस प्रकार उन्हे मुक्ति का जुठा विश्वास दिया गया था।
4. क्योंकि आदमी पे “निर्णय करने का” दबाव डालना - बजाय बदलते जीवन को अनुभव करने के - लाखो अपरिवर्तित लोगो को कलीसिया के सदस्य बनने के लिये मंजुरी दे दी।
5. क्योेंकि वे मानने थे, जैसे जोन एलीयास ने 1828 में कहा, की, “...फिनेय के गलत सिध्धांतो के परिणाम को हमारी धरती के नष्ट कलीसिया की मुलाकात लेनी चाहिये।” (“पुरानी शाला क्यो फिनेय का विरोध करती है” से संक्षिप्त रूप में लिया गया इयान एच. मुरेय द्वारा पिन्तेकुस्त आज? बाइबल संबधी मूलसार पुनःउध्धार समजने के लिए, घ बेनर ओफ ट्रुथ ट्रस्ट, 1998, पृपृष्ठ.49-53)।
परन्तु पूरानी शाला के आगेवान “निर्णायकता” को रोकने के लिये असर्मथ थे। “निर्णायकता” का तरीका और मान्यता कलीसिया द्वारा जल्दी से फैल रही थी क्योंकि ये इतना आसान लगता था “यीशु के लिये निर्णय” बाहरी तरीके से करने के लिये लोगो का मिलना उससे की उन्हे पूरे परिवर्तन से गुजरने से, जैसे सब कलीसिया ने किया फिनेय से पहले। फिनेय के पहले, आशावादी परिवर्तन छ महिने के या ज्यादा दिनो तक प्रमाणी करण पर रखे जाते है, “विश्वास की सार्वजनिक धार्मिक संस्था” बनाने की अनुमति देने के पहले (इयान एच. मुरेय, रीवाइवल अेन्ड रीवाइवलीझम : घ मेकिंग अेन्ड मेरीन्ग ओफ अमरीकन इवान्जलीकालीझम, घ बेनर ओफ ट्रुथ ट्रस्ट, 1994, पृष्ठ.369)। 1833 में जेकब नेप्प, फिनेय के चेले, ने पहलीबार “तात्कालिक बप्तीसमा” बप्तीस कलीसिया में आरंभ किया (रीवाइवलीझम, ibid., पृष्ठ.313)। नेप्प ने कहाँ, “एवर्टसभाई और मैने छीयानवे लोगो को एक दिन में इसाई बनाया; और ये काम लगातार दस हफतो तक चला” (रीवाइवलीझम, ibid., पृष्ठ.314)। इस प्रकार, जेकब नेप्पने करीबन 900 लोेगो को इसाई बनाया दस हफतो में। उनमे से ज्यादातर लोग कुछ ही समय में गिर गये। ये उस मुदे पर था की ये जुठे परिवर्तित “विषयी मसीही” कहे जाने लगे थे। सच्चाई यह थी की वे “जुठे भाईयो” (2 कुरिन्थियों 11:26), सच्चे मसीही कभी नहीं! निर्णायक्ता इतनी जल्दी बढ़ी की 1920 तक में बीली सन्डे घोषित करते थे की हर एक बचाया गया था जो आये थे और जिसने उनसे हाथ मिलाये थे उनके धार्मिक प्रवचन बंद होने के समय पर!
कोई भी नही दिखता था जिसने ध्यान दिया हो की “निर्णय” के आधार पर हजारो का स्वीकार कलीसिया को मार रहा था। धार्मिक समाज सूख कर मर रहा था, जल्दी से मेथोडीस्ट, फिर प्रेसबायटेरीयनस के अनुकरण करने से - और आखिरकर, बप्तीसमा देनेवाले और अन्य लोगो को। हर विचार करने लायक तरीके पर अवलंबित करते हुअे, दक्षिणी बप्तीसमा देनेवाले भी आखिरकार 2007 से कम होने शुरू हो गये। जीम एलीफ, दक्षिणी बप्तीसमा देनेवाला सूचकने, कहाँ की “...दक्षिणी बप्तीस कलीसिया के लगभग 90% सदस्य दूसरे ‘सांस्कृतिक मसीही' जिन्होने मुख्य रेखा के वर्ग को मशहूर किया था उससे थोडे अलग दिखते है। हालांकि ये लोगो ‘प्रार्थना की' और ‘गिरजे के बगली रास्ते पे चले', और मसीही कहे गये, पूरानी चीजे हकीकत में खत्म नही हुई है, और नयी चीजे़ नही आयी है। वे मसीह में नये जीव नही है, 2 कुरिन्थियो 5:17। बहुत सारी किस्सो में सामान्य चिन्ह पुनःनिर्माण न हुअे (अपरिवर्तित) मन के मिल सकते है...ये ‘बहाना करनेवाले विश्वासु', है जिसे बाइबल कहता है धोखेबाज” (जीम एलीफ, बाइबल संबंधी पुनःउध्धार के लिये मध्य पश्चिमी केन्द्र के दक्षिणी बप्तीस सूचक, मध्यपश्चिमी बप्तीस थीयोलोजीकल धार्मिक पाठशाला, शोधक की जरनल वेबसाइट, फरवरी 7, 1999)।
कलीसिया को बचाने और तोडना बंद करने के पागलपन पकड में, सभी धारा के प्रवक्ता विविध धुन में मुड गये - बझींग से, कारण धकेलने तक, तात्कालिक कलीसिया की रीति तक। फिर भी कलीसिया, पूरी तरह से, सालो साल कमजोर ओर कमजोर होते जा रहा है। जब मैं बात करता हूँ “निर्णायकता” के बारे में ज्यादातर याजक कहते है की वे इस तरह का अभ्यास नही करते। परन्तु वे करते है। एक याजक, जो कहते थे वो निर्णायक नही है, उन्होने बारह लोगो को फसाया मेरे मित्र के कलीसिया से। उसने उस सभी 12 लोगो को बप्तीसमा दीया जब वे पहली बार “आगे गये”। वे ये नही मानेंगे फिर भी, ये याजक खराब तरीके का, मेल न करने वाले निर्णायक है! परन्तु, अंतमें, “भेड़ीये चुराना” कठीनाई को सिर्फ खराब करता है, क्योेंकि इससे ज्यादा और ज्यादा अपरिवर्तित लोग कलीसिया में भर जाते है।
बहुत से अब काल्वीनीझम की ओर मुड रहे है, ये सोचते हुए की सुधारी हुई शिक्षा जवाब है। मुुझे ये एक ओर घुन ही लगती है। ये सच्चे परिवर्तन से किसी अर्थपूर्ण मात्रामें आर्शीवाद किये हुअे नही है। किसी पुनःउध्धार ने इसे साथ नही दिया। मुझे लगता है की वे अपरिवर्तित लोगो को ज्यादा मात्रा पुनःउध्धार की धार्मिक शिक्षा सिखाते है, जो उनके कलीसिया मे आते है उनके कान बुध्धिमति से काटने। डो. मार्टीन लोयड - जोनस ने इसे “मृत काल्वीनीझम” कहाँ। उन्हाने कहाँ, “अगर आपका काल्वीनीझम मृत दिखया है तो वो काल्वीनीझम नही है, यह तत्वज्ञान है। यह काल्वीनीस्ट के शब्द का प्रयोग करता हुआ तत्वज्ञान है, यह बुध्धिमान है, और ये सच्चा काल्वीनीझम नही है” (पुरीटीयन : उनका उद्गम और उत्राधिकारी, घ बेनर ओफ ट्रुथ ट्रस्ट, 1987, पृष्ठ.211)।
हकिकत में, ज्यादातर काल्वीनीझम जो मैने देखा है (या उसके बारे मेें पढा़ है) वो “निर्णायकता” का दूसरा स्वरूप ही है। “आगे आने” का निर्णय करने के बजाय; आजके मुख्य काल्वीनीझम आपको कहता है आपको आपकी धार्मिक शिक्षा बदलने का निर्णय करने को! ये मानसिक निर्णय है, परन्तु यह उतनी ही इंसानी “निर्णयक्ता” है जीतनी सुसमाचार प्रचार की सभामें आगे जाना, बचाय मनुष्य के आगे बठने के निर्णय के, उसने अभी निर्णय लिया है, काल्वीनीस्टीक शिक्षा में विश्वास रखने का। वे मानसिक निर्णय द्वारा शायद बचाये गये है बजाय शारिरीक के। फिर भी मुक्ति का आधार अभी भी मनुष्य के निर्णय पर ही है! परन्तु किसी भी प्रकार के निर्णय से कोई भी बचाया नही गया है - ये शारिरीक रूप से आगे बढ़ने या मानसिक शिक्षाओमें मानना। नही! नही! मुक्ति मनुष्य के निर्णय से कदापि नही आती!
“क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उध्धार हुआ है; और यह तुम्हारी ओर से नही : वरन् परमेंश्वर का दान है : और न कर्मो के कारण (या तो शारिरीक या फिर मानसिक), ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे” (इफिसियो 2:8-9)।
सच्चा परिवर्तन आता है जब प्रभु की आत्मा आपको दुरात्मा की तरह खोया हुआ और अंध महेसूस कराती है! सच्चा परिवर्तन तब आता है जब प्रभु की आत्मा आपको मन को आपको पापो के लिये, आनेवाले क्रोध और दण्ड से डरना सिखाता है। सिर्फ तभी ही पुरे अपराध भाव बोले पापी यीशु कर ओर खीचे जाते है और उनके लहू द्वारा पाप धोये जाते है, और उनके पुनःरूत्थान और उनके जीवन द्वारा बचाये जाते हो। यही तो था जो जोन न्युटनने कहाँ, और मैं उनके साथ सहमत हूँ! आपके गीतो के पर्चे का आंठवा गीत गाइये! गीत के सही शब्दो के बारे में सोचीये!
अद्भूत कृपा! कितनी मधुर आवाज है,
जिसने मेरे जैसे दुष्टात्मा को बचाया!
मैं एक बार खो गया था, परन्तु अब मिल गया हुँ,
अंधा था पर अब देख सकता हुँ।
वो कृपा थी जिसने मेरे मन को डरना सिखाया,
और कृपा ने मेरे डर को पुनःजिवीत किया;
कितनी बहुमूल्य वो कृपा लगती है
वो घंटा जो मैने पहले विश्वास किया!
(“अद्भूत कृपा” जोन न्यूटन द्वारा, 1725-1807)।
Click here to read, "A Review Of Iain H. Murray's 'The Old Evangelicalism.'"
(संदेश का अंत)
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धार्मिक प्रवचन के पहले डो. क्रेगटन एल.चान द्वारा पढ़ा हुआ पवित्र शास्त्र :
2 तीमुथियुस 4 : 2-5।
धार्मिक प्रवचन के पहले श्रीमान बेन्जामिन किनकेड ग्रीफिथ द्वारा गाया हुआ गीत :
“आप फिर जन्म लेने ही चाहिये” (वीलीयम टी.
स्लीपर, 1819-1904 द्वारा)।
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