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द्रुष्टात्माओ की शिक्षाएDOCTRINES OF DEMONS डो. आर. एल. हायर्मस, जुनि. द्वारा लोस एंजजिस के बप्तीस टबरनेकल में प्रभु के दिन की शाम, “आत्मा स्पष्टता से कहता है, कि आनेवाले समयो में कितने लोग भरमानेवाली आत्माओ, और द्रुश्टात्माओ की षिक्षाओ, पर मन लगाकर विष्वास से बहक जाएँगे; यह उन झुठे मनुश्यो के कपट के कारण होगा; जिनका विवेक मानो जलते हुए लोहे से दागा गया है (1 तीमुथीयुस 4: 1-2)। |
डो. मेरील एफ. अन्जर की किताब, बाइबलीकल डेमोनोलोजी (क्रेगल प्रकाषन, 1994 प्रत), के प्रस्तावना में डो. वीलबर एम. स्मीथ ने बताया है पहले के कलीसिया के याजको, और जो उन्होने द्रुश्टात्मा के बारे मे लिखा था। डो. स्मीथ ने कहॉ,
ख्रिस्ती कलीसीया की पहले के चार सदीमे, वो ष्क्तिषाली वेदान्त, जिनमे से बहुतो ने प्रभु के वचन को गहराई से देखा था, द्रुष्टात्मा की ताकत पर बहुत कुछ लिखा था। (अन्जर, ibid., पृष्ठ. vii)।
डो. स्मीथने जस्टीन माटीर्यर (103-165) से बताया जिसने द्रठ रहकर बताया की बुतपरस्ती देवगाथा द्रुष्टात्माओ के छल से पैदा हुई। डो. स्मीथने भी लेक्टेन्टीयस (240-320) से बताया जो कहता है की द्रुष्टात्माए थे,
भविष्यवाणी के संशोधनंकार, और खुशामद करने वाले और पवित्रता...और चमत्कार की कला, और मनुष्य के इस परिश्रम के अलावा जो कुछ भी है वो द्रुष्टात्मा करता है, या तो खुल्लेआम या छिपकर...ये वो ही है जिसने आदमी को आकृति और मूर्तिया बनाना सिखाया; जो, शायद मनुष्य का दिमाग सच्चे प्रभु की पूजा से फिरा सके, मरे हुए राजाओ की (आकृतियों) का निर्माण और प्रतिष्ठित करके और अपने आपको उनके नाम से संबधित करके (अन्जर, ibid.)।
फिर डो. स्मीथने अगस्तीयन (345-430) को बताया जो “बारबार द्रुष्टात्माओ की भयानक ताकत पर जोर देते हुए बताया दोनो समय में जो आगे बीत गया है और जो समय अभी तक आने बाकी है” (ibid., पृष्ठ. viii)। डो. स्मीथने प्रभु के शहर से कथन किया, जिसमे अगस्तीयनने प्रश्न पूछा है,
वो कैसी आत्मा हो सकती है, जो गुप्त प्रेरणा से मनुष्य के भष्ट्राचार को हिलाती है, और उन्हे जातीय यातना की लाठी मारना...तब तक जब तक ये वोही है जो इस तरह के धार्मिक विधियो में आनंद पाते है, मंदिरो में शैतानो की मूर्तिया लगाते है...जो खानगी में कुछ पवित्र मान्यताओ से कानाफूसी करके जो कुछ अच्छे है उन्हे धोखा देते है, और...जो लाखो लोग कमजोर है उनपर अधिकार जताते है? (अगस्तीयन और कहते गये की ख्रिस्ती धर्म, एक मात्र सच्चा धर्म है) अकेले ही स्पष्टता करने के समर्थ थे के राष्ट्र के प्रभु ही ज्यादा अशुध्ध द्रुष्टात्मा है, जो प्रभु की तरह माने जाना चाहते है...आदमी की आत्मा के सच्चे प्रभु के परिवर्तन होने के इर्ष्या से (अन्जर, ibid.)।
डो. स्मीथ और कहते गये, डो. अन्जर के किताब की प्रस्तावना में, कि दानवीयता कम हो रही है, और भूलायी भी गयी है, आधुनिक समय में, “19वी सदी में ये पूरे विषय को एक अंधश्रध्धा का तर्क बताकर मज़ाक उडाया गया था” (ibid)। डो. स्मीथने बताया की सिर्फ 20वी सदी में दोनो विश्वयुध्ध आने से, और नास्तिकता और संप्रदायीत्व जल्दी से उठा, और दानवीयता का विषय फिर से चर्चीत होने लगा (अन्जर, पृपृष्ठ. viii-ix)। फिर उसने कहाँ,
इस जैसे घंटे में, तत्वशास्त्र हमे ये समजने में मदद नही करेगा की अविकसित मानवता के दिमाग में हकीकत में क्या चल रहा है; और नाही अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र या मानसशास्त्र हमे ये बता सकते है की ओर क्या आना बाकी है। हमे (जरूर) इस अंधकार भरे घंटो से प्रभु के वचन के प्रकाश में मुडना चाहिये (अन्जर, ibid., पृष्ठ. x)।
यह हमे हमारे विषय पर वापस ले जाता है,
“आत्मा स्पष्टता से कहता है, कि आनेवाले समयो में कितने लोग भरमानेवाली आत्माओ, और द्रुष्टात्माओ की शिक्षाओ, पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएँगे; यह उन झूठे मनुष्यों के कपट के कारण होगा; जिनका विवेक मानो जलते हुए लोहे से दागा गया है (1 तीमुथीयुस 4: 1-2)।
पवित्र आत्मा “स्पष्टता से कहता है”, ये स्पष्ट है, जो मनुष्य के कारणो से प्रकट नहीं हो सकता है। और यहाँ पर प्रभु की आत्मा क्या प्रकट कर रही है की वहाँ पर ख्रिस्ती धर्म के विश्वास से “आने वाले समय में” इसकी रवानगी और त्याग होगा। फिर हमे त्याग करने के लिये कारण दिया गया “लुभावनी (निराश करने वाली) आत्मा पर और शैतानी (द्रुष्टात्माओंकी) शिक्षाओ (शिक्षण) पर ध्यान देकर।” हमे कहाँ गया, पाठ के शुरुआत में की ये भयानक स्वधर्म का त्याग “बाद के समय में” होगा। इस संर्दभ में, सामान्यतः, पूरे ख्रिस्ती न्याय को, और ओर भी दुसरे पवित्रवाक्या इसी तरह स्वधर्म त्याग और शैतानी शिक्षण के बढती प्रवृति के मूदे के तरफ, जो बढता है अविरत जैसे युग नजदिक लाता है इसकी सर्वोतम उंचाई पर पहोचते है बडे क्लेश के दौरान, यीशु के दुसरे बार आने से पहले।
यह मेरा मानना है कि ये भविष्यवाणी परिपूर्ण होने की शुरूआत हुई 18वी सदी के “ज्योतिमान” होने के दौरान, जब लोगो ने अपने कारणो पर आधारित रहेना षुरू किया बजाय प्रभु के वचनो पर। इससे धार्मिक पढ़ाई और मान्यताए तूटने लगी और, सी. जी. फिनेय (1792-1875) के साथ-जिसका मंतव्य ज्योतिमान से बना था बजाय सुधारे जाने से - “निर्णायकता” का उद्य हुआ जिससे कलीसिया लाखो अपरिवर्तित लोगोसे भरने लगा, इस प्रकार उत्पन्न करना, इन अपरिवर्तित लोगो को क्रमांकसे, लोग जीसे सीधे सीधे दृश्टिकोण सिखाये गये, पवित्र वाक्या का अस्वीकार करते हुअे,
“ये भक्तिहीन है, और हमारे परमेष्वर के अनुग्रह को लुचपन मे बदल डालते है, और हमारे एकमात्र स्वामी, और प्रभु, यीषु मसीह का इन्कार करते है” (यहूदा 4)।
और भी, फिनेय के समय के कुछ पहले, जर्मनी के जोहान्न सेम्लर (1725-1791), ने बाइबल पर आलोचना करना सिखना षुरू किया । बाइबल पर जर्मन आलोचना, “निर्णायकता से” जोड कर कलीसियामे बडी गडबड पैदा की। और फिनेय के समय के दौरान, और उसके कुछ ही समय बाद, अजीब संप्रदाय और झुठे तर्क खडे हुअे-जैसे की केम्पबेलीझम, कलीसिया की सदस्यता, नाताल के पहले का सातवॉ-दिन, जेहोवा की गवाही और बहुत कुछ। ये सब 20 वी सदी के लंबे अरसे के समय के दौरान माना गया, जब पूर्वीय धार्मिक तर्क की बाद मे, और “नये युग” मे प्रार्थना द्वारा प्रभु को पहचानना पष्चिमी संस्कृति का स्थायी भाग हो गया। मै मानता हूँ कि ये हमे अपने पाठ का ऐतिहासिक और मृत्यु की षिक्षा की प्रगति देता है,
“आत्मा स्पश्टता से कहता है, कि आनेवाले समयो मे कितने लोग भरमानेवाली आत्माओ, और द्रृश्टात्माओ की षिक्षाओ, पर मन लगाकर विष्वास से बहक जाएँगे; यह उन झूठे मनुश्यो के कपट के कारण होगा; जिनका विवके मानो जलते हुए लोहे से दागा गया है” (1 तीमुथियुस 4:1-2)।
अब मैं प्रकाष डालता हुँ, धार्मिक प्रवचन के आखरी आधे भाग पर, ष्ौतानीयत और छल कपट की षिक्षा के विशय पर-या, अगर आप महेरबानी करो, द्रृश्टात्माओ की षिक्षाओ पर। अपने विशय के बारे मे बोलते हुए, डो. अन्जरने कहॉ, “‘लुभावनी आत्माअे' धोखा देने वाली ‘द्रृश्टात्मा' है, जो लगातार सत्य को पलटने के परिश्रममे और आगे बढनेमे ... सीधी षिक्षासे लोगो को सच्चाई से दूर” (अन्जर, ibid., पृश्ठ. 166)। फिर से, डो. अन्जरने कहाँ,
“द्रृश्टात्माओ की षिक्षा” से जो भी गलतीयॉ ठीक रूप् से सोची जाती है इस खास दृश्टांत (1 तीमुथियुस 4:3) से वह दिखावटी है... कुछ सामान्य मतान्तर तक सिमित है की... धमकियाँ... उस समय के कलीसियाकी षुध्धता, फिर भी ष्ौतानी छल कपट तक सीमाबध्ध होना जरूरी नहीं है की... तपस्वी, षादी से मना करना, और कुछ खाने पर अपना क्रोध दिखाना। (अलग अलग) तरीका और लगभग अंतहीन तरीका, जो “द्रृश्टात्माओ की षिक्षा” षायद सोचे, षुध्द कलीसिया के पलटने के (बहुत) द्वारा द्रृश्टांत किया गया... और खास करके गडबड और बहेकाने वाले संप्रदाय द्वारा और छोटे धार्मिक समुदाय जो आधुनिक ख्रिस्तीपन को परेषान करता है (अन्जर, ibid., पृश्ठ. 168)।
प्रेरितो यूहन्ना हमे कहते है की ष्ौतानीयत गलत आत्माओ के पीछे की ताकत है। महेरबानी करके 1 यूहन्ना 4:1-3 की तरक मूडीये, और जोर से पढ़ीये।
“हे प्रियो, हर एक आत्मा की प्रतीति न करो, वरन् आत्माओ को परखो किवे परमेष्वर की ओर से हैं कि नहीःं क्योकि बहुत से झुठे भविश्यवेता जगत मे निकल खड़े हुए है परमेष्वर का आत्मा तुम इस रीति से पहचान सकते होः जो आत्मा मान लेती है की यीषु मसीह षरीर में होकर आया है वह परमेष्वर की ओर से है, और जो आत्मा यीषु को नहीं मानती वह परमेष्वर की ओर से नही; और वही तो मसीह के विरोधी की आत्मा है, जिसकी चर्चा तुम सुन चूके हो कि वह आनेवाला है और अब भी जगत मे है” (1 यूहन्ना 4:1-3)।
हमे “आत्माओ” के पीछे की गलत भविश्यवाणी को परखने को कहॉ गया था। फिर हमे परख दी गई। अगर पढ़ाई ये बताती है की यीषु मसीह “षरीर मे होकर आते है” वो षिक्षा प्रभु से आयी है। डो. नोरमन एल. गेइस्लरने कहॉ वाक्यांष “आते है” (ग्रीक मे इलेलुथोटा) वे “पूर्ण काल मे है, मतलब यीषु भूतकाल मे षरीर मे आये थे और षरीर मे ही रहे थे” (नोरमन एल. गेइस्लर, पीएच.डी, पुनरूत्थान के लिये लडाई, वीप्फ अेन्ड स्टोक प्रकाषक, 1992 प्रत, पृश्ठ. 164)। परन्तु अगर षिक्षा कहती है की यीषु आत्मा थे, या अभी वो आत्मा है (अवतार धारण कीये हुए यीषु नही) तो वो षिक्षा ष्ोतानी आत्मा से है। डो. अन्जरने कहॉ,
सच्चाई से झूठ को अलग करने की कभी निश्फल न होनेवाली परख यीषु मसीह का अवतार लेने का नींव का सच है... ष्ौतान की बुरे और लुभावने आत्मा गुप्त, गुमराह और ये श्रेश्ठ सच का अस्वीकार, षर्मनाक, जैसे ये करते है, यीषु के मुक्ति के कार्य का समापन (अन्जर, ibid., पृश्ठ. 172)।
डो. अन्जर सुचि बनाते है “इंसानीयत, यीषु के कलीसिया की सदस्यता, नास्तिकता, प्रभु के अस्तित्व के बारे मे अस्पश्ट, जेहोवा की गवाही “जैसे” ष्ौतानी छल कपट की अलग अलग स्नातकता” होना (अन्जर, ibid., पृश्ठ. 178)। अन्जर औरभी सूची बताते है “एक प्रभु को माननेवाली आधुनिकता, और दूसरे (जैसे दिखाये गये) उनके जरूरी ष्ौतानी प्रकार” (अन्जर, ibid., पृश्ठ. 178)।
आधुनिकता (सरलता) जो बड़ै पष्चिमी ख्रिस्ती कलीसिया के सदस्य या बप्तीस कलीसिया की साखा 2 तीमुथियुस 3:16 के ष्ौतानी अस्वीकार से आती है। एक “द्रृश्टात्माओ की षिक्षाये” वो है की बाइबल की आंतरिक्ता का अस्वीकार, और बाइबल को “पूरक” करके दूसरी अधिक लिखाई के साथ जैसे कोरन, पाठ की आलोचना पर किताब, यीषु मसीह के बाद के दिनो के कलीसिया के सदस्य पर किताब, जेहोवा की गवाही पर साहित्य इत्यादि। मैं मानता हूॅ की दो ष्ौतानी षिक्षायें, दूसरे सबसे उपर, अपने कलीसिया को बहुत बडा नुकसान किया है-वो है (1) बाइबल की बहुत ज्यादा आलोचना (देखिये बाइबल के लिये लडाई, डो. हेरोल्ड लिन्डसेल द्वारा, झोन्डरवान, 1976), और (2) निर्णायक्ता-जो सचचे परिवर्तन को इंसान की काल्पनिक हरकतो से बदलता है (देखिये आज का स्वधर्म त्याग, डो. आर.एल.हायमर्स, जुनि. और सी.एल.केगन द्वारा। यहा पर क्लीक किजिये ओनलाईन पढने के लिये)। महेरबानी करके 2 तीमुथियुस 3:16 की ओर मुडीये और ये पद जोर से पढ़ीये।
“सम्पूर्ण पवित्रषास्त्र परमेष्वर की प्रेरणासे रचा गया है, और उपदेष, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की षिक्षा के लिये लाभदायक है” (2 तीमुथियुस 3:16)।
बडे पष्चिमी ख्रिस्ती कलीसिया के सदस्य या बप्तीस कलीसिया की मषहूर षाखा के परिणामस्वरूप बाइबल की मौखिक प्रेरणा का अस्वीकार करते है, “परिणाम कमजोर है, वैष्वीक कलीसिया पुःनिर्माण के लिये लाचार है, आकर्शित करने के लिये ताकतरहित है, और आत्मा की हकीकत के लिये पापभरी मानवता की परेषानी का जवाब देने के लिये असमर्थ। लुभावनी आत्मा को प्रार्थना सिर्फ प्रभु की आत्मा जल्दीसे जानेवाली पुनःजीवन ही अपनी धर्म पर की आस्था के कलीसिया को ज्यादा और ज्यादा लुप्त होने से ... राज्य, जिसमे अपने प्रभु धमकी देते है की वे लाओडीषीयन प्राध्यापको को “निकाल” देंगे अपने मुहसे, प्रकाषितवाक्य 3:16” (अन्जर, ibid., पृश्ठ. 179)।
इसलिये हमने दो रास्ते देखे जो बाइबल हमे देता है द्रृश्टात्माओ की षिक्षा की जानकारी (1 तीमुथियुस 4:1)। पहला पाठ जो हमने देखा वो 1 यूहन्ना 4:1-3 मे है। क्या वो ये सिखाते है की यीषु मसीह थे और है अवतरीत प्रभु जो “षरीर मे आते है” (पूर्ण काल)? दूसरा पाठ जो हमने देखा वो 2 तीमुथीयुस 3:16 मे है। क्या वो पवित्रवाक्या को मानते है बिना कीसी अधिक लिखाई जोडे हुअे जो या तो पवित्र वाक्या को मोडता है या उसे सही करता है?
“सम्पूर्ण पवित्रषास्त्र परमेष्वर की प्रेरणा से रचा गया है, और उपदेष, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की षिक्षा के लिये लाभदायक है” (2 तीमुथियुस 3:16)।
डो. अन्जरने कहॉ,
इस आधुनिक संप्रदाय की डरावनी व्याकुलताके बीचम ... बाइबल, प्रभु का जीवित वचन का सच, ख्रिस्तीयों का एक मात्र निष्चिंत बचाव है षिक्षा के छल के विरूध्द ... ष्ौतान और उसके यजमान इंसानके मंतव्य और लोगो के अनुवाद को बाजु कर सकते है, परन्तु वे प्रभु के पवित्र बचनो को जो अजेय है उसे छेद नहीं सकते! (अन्जर, ibid., पृश्ठ. 179-180)।
डो. जे. वेरनोन मेकगीने कहॉ,
मुक्ति का रास्ता सिर्फ यीषु के मृत्यु के द्वारा ही है, और इस सच्चाई के द्वारा हम द्रृश्टात्माओ की षिक्षाओ को परख सकते है (जे. वेननोन मेकगी, टीएच.डी, बाइबल के द्वारा, थोमस नेल्सन प्रकाषक, 1983, भाग V, पृश्ठ. 447; 1 तीमुथियुस 4:1 पर टीप्पणी)।
हम आपको बारबार बाइबल पढ़ने और प्रभु के वचन को सुनने के लिये कहते है। हम बारबार आपको कहते है की यीषु मसीह के पास आओ जो एकबार क्रुस पर चढ़ाये गये थे परन्तु अब मृत्यु से उठे हुए तारणहार है। प्रभु के वचन सूनो। यीषु के पास आओ। उसने आपके पापो का दण्ड क्रुस पर चूकाया। वे हमेषा प्रभु पितामह के दाहिने हाथ पर होते है। यीषु के पास आओ और वे आपको बचायेंगे “इस टेढ़ी जाति से” (प्रेरितो 2:40)। यीषु ने कहॉ
“जगत की ज्योति मै हूःॅ जो मेरे पीछे हो लेगा वह अन्धकार मे न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पायेगा” (यूहन्ना 8:12)।
(संदेश का अंत)
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धार्मिक प्रवचन के पहले डो. क्रेगटन एल.चान द्वारा पढ़ा गया पवित्र वाक्याः
2 तीमुथियुस 4:2-5।
धार्मिक प्रवचन के पहले श्रीमान बेन्जामिन कीनकेड ग्रिफिथ द्वारा गाया हुआ गीत :
“मुझे पता है बाइबल सत्य है” (बी.बी. मेककिन्नी द्वारा, 1886-1952)।
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