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सच्चा परिवर्तन REAL CONVERSION डॉ. आर. एल. हायर्मस, जुनि. लोस एंजलिस के बेप्टीस टबरनेकल चर्च में 1 फरवरी 2009 को ‘‘मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक तुम न फिरो और बालको के समान न बनो, तुम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे'' (मती 18:3). |
यीशु ने कहाँ, ‘‘जब तक तुम फिरोगे नहीं ... तुम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं पाओगे।'' इसलिए, प्रभु ने इसे सहज और सरल बनाया ताकि आप परिवर्तन का अनुभव करो। प्रभुने कहाँ अगर आप परिवर्तन का अनुभव नहीं करोगे तो आप ‘‘स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं पाओगे।''
आज इस सुबह मैं आप को जिसने परिवर्तन किया है उनके अनुभव बताने जा रहा हूँ। र्स्पंजनने कहा, ‘‘जगत में पहली नजर में विश्वास होता होगा, पर हम को आम तौर पे विश्वास कदम कदम बढकर ही मिलता है।'' (सी. एच. र्स्पजन, अराऊंड ध विकेट गेट, पासाडेना, टेक्सास : पीलग्रीम पब्लिकेशनस्, 1992 रीप्रीन्ट, पी.57). ये कुछ ‘‘स्तर'' है जीस पर ज्यादातर लोग चलते है।
1. पहला, चर्च में परिवर्तन के अलावा किसी कारण आइए।
अधिकतर लोग ये करते है, और पहले कुछ समय कुछ गलत कारणो से चर्च आते हैं। मैने भी यही किया और भी ग्रीफिथ ने भी जिन्होंने ‘‘अमेझींग ग्रेस'' गाया और शायद आप भी।
मैं अपनी कुमारावस्था में चर्च आया था क्योंकि हमारे पडोसी ने उनके साथ मुझे चर्च आने के लिए निमंत्रण दिया था। इस तरह मैंने 1954 में चर्च जाना शुरू किया क्योंकि मै अकेला था, और हमारे पडोसी बहुत अच्छे थें। ये तो ‘‘सच्चा'' कारण नहीं है ना ? पहले प्रवचन के अंत में मैं ‘‘आगे'' गया और मेरा बपतिस्मा हुआ और इस तरह मैं बपतिस बना। पर यह परिवर्तन नहीं था। मैं आया था क्योंकि वे लोग मुझसे अच्छे थे, नहीं की मुझे बचना था। इसलिए परिवर्तन होने के पहले मैंने सात साल तक कोशिष की और फिर 28, सितंबर 1961, में परिवर्तित हो सका। जब मैंने डॉ. चार्ल्स जे. वुडब्रीज को बाइलो महाविद्यालय में सुना (अब बाइलो विश्वविद्यालय)।
आप का क्या विचार है ? आप अकेलेपन के कारण चर्च आए है या आपके माता-पिता आप को बच्चा समझकर चर्च लाए ? अगर आप आज अपनी आदत के कारण यहाँ हैं, जैसे की एक बच्चे को चर्च लाया जाता है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप परिवर्तित हो, या आप भ्ी वैसे ही आए जैसे की मैं, क्योंकि आप अकेले थे और किसी ने आपको निमंत्रीत किया और लोग आप से अच्छे हैं? आपने अगर यह किया है तो इसका यह मतलब नहीं है कि आप परिवर्तित हो। मुझे गलत मत समझीये. मैं बहुत खुश हुँ कि आप यहाँ हो - चाहे किसी बच्चे की तरह चर्च आने कि आदत के कारण, या अकेलेपन से, जैसे मैं जब तेरह साल का था। ये सारे कारण समझ सकते हैं, चर्च में आने के लिए, परंतु येकारण आप को बचा नहीं सकते। सही तरीके का परिवर्तन ही आपको बचा सकता है। आप हकीकत में बचना चाहते हो यही ‘‘सही'' कारण है।
आप अगर अकेलेपन से या कोई आदत वश यहाँ हो तो कोई गलत नहीं हैं पर यही सिर्फ सही कारण नहीं है। आपको परिवर्तन के लिए और भी कुछ चाहिए, इसलिए नहीं की आप को चर्च आकर अच्छा महसूस होता है।
2. दूसरा, आप जानने लगोगे कि हकीकत में प्रभु है।
आपने शायद महसुस किया होगा कि आपके चर्च आने से पहले से ही प्रभु मौजूद है। लेकिन कुछ लोगो को प्रभु पर सिर्फ अधूरी सी मान्यता और अहसास था। जब तक कि उन्हें सुसमाचार नहीं मिला। शायद यही कारणवश कोई आपको यहाँ लाया।
अगर आप चर्च गये हो तो, आपने पवित्र वाक्यों के बारे में बहुत कुछ जाना होगा। आप बाइबल मे सच्ची जगह बहुत आसानी से खोज सकते हो। आपको पापों से बचना आता है। आप बाइबल के कई अध्याय से वाकीफ हो फिर भी प्रभु आपको अब तक अधूरे और काल्पनिक है।
फिर, आप चाहे नयी व्यक्ति हो या चर्च के बच्चे हो, कुछ तो शुरूआत होगी. आप मानने और मेहसूस करने लगते हो कि हकीकत में प्रभु है - ये सिर्फ प्रभु की बातें नहीं है। तब प्रभु आपके लिए एक सच्चा व्यक्ति बन जाते है। मुझे प्रभु की इतनी अनुभूति और एहसास होने लगी की पंद्रह साल की उम्र में जब में कब्रस्थान में गया, वहाँ पेड के नीचे, जहाँ मेरी दादी माँ को दफनाया गया था। मुझे पता चला कि परमेश्वर सचमुच में एक जिवीत व्यक्ति है, लेकिन मै तब भी परिवर्तित नहीं हुआ था।
क्या आपने भी कभी एैसा अनुभव किया है ? क्या आपके जीवन में प्रभु हकीकत में हैं ? ये बहुत जरूरी है। बाइबल में कहते है,
‘‘विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्वर के पास आनेवालो को विश्वास करना चाहिए कि वह है ‘‘(वह मौजूद है)'' (हीब्रुस 11:6)
प्रभु को मानने के लिए कुछ विश्वास का होना जरूरी है - पर यह बचानेवाला विश्वास नहीं हैं यह परिवर्तन भी नहीं है। मेरी माँ हमेशा कहती थी, ‘‘मै हमेशा प्रभुमें विश्वास रखती हुँ।'' और मुझे इसमे कोई संदेह नहीं है। मेरी माँ बचपन से प्रभु में विश्वास रखती थी। लेकिन उनकी 80 साल की उम्र तक वह भी परिवर्तित नहीं थी। यह जरूरी था कि वह प्रभुमें विश्वास करती थी, परंतु सही परिवर्तन के लिए कुछ और ज्यादा जरूरी था।
इसलिए, मैं कहता हुँ, कि शायद आप आज सुबह प्रभु की प्रतिति और अहसास के बिना ही चर्च आये होंगे पर धीरे, धीरे या जल्द ही, आप देखोगे हकीकत में प्रभु है। यह दूसरा चरण है, पर परिवर्तन नहीं है।
3. तीसरा, आपको अहसास हुआ है कि आपने अपने पापों से परमेश्वर को नाराज और क्रोधित किया है।
बाइबल में कहा है, ‘‘जो अपनी शारीरिक दशा मै है (जोकि परिवर्तित नहीं है) वह प्रभु को खुश नहीं कर सकते।'' (रोमियो 8:8) इसलिए हकीकत में आप पापी हो, ये मेहसूस करना शुरू करते है। हर रोज आप ‘‘अपनी कठोरता और हठीले मन से अपने लिये क्रोध कमा रहे हो।'' (रोमियो 2:5) बाइबल में कहा है
‘‘परमेश्वर धर्मो और न्यायी है। वरन् एैसा ईश्वर है जो प्रति दिन क्रोध करता है।'' (भजनसंहिता 7:11)
बाद में जब आप जान लेते हो कि प्रभु हकीकत में हैं, तो आप जान सकते हो कि आपने पाप करके प्रभु को नाराज किया है। आपने प्रभु से प्यार न करके भी प्रभु को नाराज किया है : आपने जो पाप किये है वो प्रभु और उनके आदेश के विरूद्ध है। और तब आप को यह बात साफ हो जाती है कि यह सच है। आप का प्रभु के प्रति प्यार का अभाव भी यहाँ एक पाप समझा जाता है।
यह चरण प्युरीटन्स के ‘‘जागृति'' का चरन माना जाता है. लेकिन अपने पापा की जानकारी के बिना और अपने प्रायश्चित के बिना यह जागृतता नहीं पा सकते हो। आप जोन न्युटन के जैसे मेहसुस करोगे जब उन्होने लिखा।
हे प्रभु, मै कितना कायर हुँ, अपवित्र और अशुद्ध!
मैं अपने पापो के बोझ के साथ आप के सामने खडे रहने का साहस कैसे कर सकता हूँ?
क्या ये सही जगह है दूषित मन के लिये ?
ये गंदगी हर जगह फैली हुई है। जो मै खराबी देखता हूँ।
(‘‘है प्रभु, मै कितना कायर हुँ, जोन न्यूटन 1725-1807'').
आप गहरी सोच करने लगोगे, तब अपने दिल और दिमाग से पापो के बारे में सोचोगे। आप सोचेंगे ‘‘मेरा दिल पापो से भरा है, और प्रभु से बहुत दूर है।'' ये विचार आपको परेशान करेगा। आप अपने पापो के विचार और प्रभु के प्रति प्रेम के अभाव से बेचैन और परेशान होंंगे। अपने प्रभु के प्रति थंडा प्रतिभाव आपको अपने मन की गहराई में परेशान करेगा। आप को मेहसुस होगा की एक व्यक्ति जो आप जैसा मन में पापो के साथ कोई आशा नहीं रख सकता और देखोगे की प्रभु के लिये आप को नर्क में भेजना जरूरी और सही बन जाता है, क्योंकि आप नर्क के लायक हो। आप यही सोचेंगे जब आप को सही जागृतता और अहेसास होगा कि आपने अपने पापो से प्रभु को नजर अंदाज और क्रोधिक किया है। परंतु यही भी परिवर्तन नहीं है। एक व्यक्ति जो अपने पापो को देखकर जागृत होता है - पर अब भी वह परिवर्तन नहीं हैं, परिवर्तन और बहुत आगे है पापो के प्रश्चाताप से।
आप शायद अचानक से मेहसूस करोगे कि आपने ईश्वर को नाराज किया है, या अपनी जानकारी की थीयरी से अपनी पूरी समझदारी से प्रभु आपसे नजरअंदाज और नाराज हुए है। जब आप पूरी तरह अपने पापो से वाकीफ और समझते हो की आप अपवित्र हो तब क्या आप परिवर्तन के चौथे और अंतिम ‘‘चरण'' के लिए तैयार होंगे।
चार्ल्स र्स्पजन को अपने पापो की जानकारी अपने 15 वर्ष की उम्र में हुई। उनके पिताजी और दादाजी दोनो प्रवक्ता थे। वे उन दिनो में रहते थे जब सही ‘‘परिवर्तन'' का निर्णय अशुद्ध और धुंधला था। इसलिए, उनके पिता और दादाजीने उनको काल्पनिक ‘‘यीशु के निर्णय'' के तरफ नहीं ‘‘धकेला'', जब कि उन्होंने प्रभुद्वारा परिवर्तन के काम की प्रतिक्षा की। मुझे लगता है वे सही थे।
र्स्पजन जब 15 साल के थे तब उन्होंने अपने पापो का प्रायश्चित किया, स्पर्जनने अपने पापो को जागृतता को इन शब्दो में कहा :
सहसा/अचानक, मुझे मूसा (Moses) मिले, हाथो में प्रभु का नियम लिये हुए और जैसे ही उन्होंने मुझे देखा, वे मुझ ेअपनी वेधक नजरों से देखते ही गये। उन्होंने (मुझे पढने को कहा) ‘‘प्रभु के दस आज्ञाएँ'' - दस पवित्र आदेश और जैसे मै पढता गया, सारे आदेश मुझमें प्रभु की अनुभूति के समान समाने लगे।
उन्होंने देखा, उस अनुभव में, कि प्रभु के नजरो में वो पापी है, और कोई भी ‘‘धर्म'' या अच्छाई उसे बचा नहीं सकती। उन्होंने अपने कई तरीकों से प्रभु से शांति प्राप्त करने का प्रयत्न किया, लेकिन उनके सारे प्रयत्न नाकाम रहे। और तब वह चौथे ‘‘चरण'' के लिए तैयार हुए - परिवर्तन का अपना अंतिम कर्म.
4. चौथा, आप प्रभु के पुत्र यीशु मसीह के पास आओ।
जब र्स्पजन अपने पापो से वाकीफ हुए, प्रथम तो वह मान नहीं सके की वह यीशु मे विश्वास रख कर बचाये जा सकते है। उन्होंने कहा :
‘‘यीशु के पास आने से पहले, मैनें अपने आप से कहाँ - यह हो ही नहीं सकता की, जो मैं यीशु में विश्वास करू और मै जैसा हुँ वैसा ही बचाया जाऊ? मुझे कुछ महसूस होना चाहिए, मुझे कुछ करना चाहिए''
परंतु मुझे कुछ ‘‘मेहसूस'' नहीं हुआ, और नाही मैं कुछ ‘‘कर'' पाया! वह बहुत दुःखी था। अच्छा ! यही चीज है जो व्यक्ति को अपने से दूर - प्रभू के पुत्र यीशु मसीह के पास ले जाती है!
र्स्पजन बर्फ की वर्षा में भी चलकर छोटे से चर्च गये। वहाँ सिर्फ थोडे ही लोग थे। वहाँ के पादरी भी शीत लहरों की वजह से दूर थे। एक छोटा सा दूबला व्यक्ति अधूरा संदेश देने खडा हुआ। उन्होंने सिर्फ कहा, ‘‘यीशु को देखिये''। आखिरकार, उनकी सारी कोशिष के बाद और आंतरिक असंमजस बाद, छोटे स्पर्जन ने वह किया उन्होने यीशु मसीह को पहली बार अपने जीवन में श्रद्धा और विश्वास से देखा। स्पर्जन ने कहा, ‘‘मै रक्त से बचा लिया गया हुँ, मैं अपने घर तक नाचते हुए जा सकता था।'' उन्होंने सिर्फ यीशु को देखा! वह सहजता से यीशु के पास आया। यह सरल, और बहुत अलौकिक अनुभव जो एक मानव को मिल सकता है। यह, मेरे लापता दोस्त, सही परिवर्तन है।
सारांश
सही परिवर्तन और प्रभु की खोज में कोई भी आप को रूका नहीं सकता है। याद रखिये यीशु ने कहा हैः
‘‘जब तक तुम न फिरो और बालको के समान न बनो, तुम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे।'' (मती 18:3)
जैसे पीलग्रीमस प्रोग्रेस, के मुख्य अध्याय लिखा है में कोई भी काल्पनिक ‘‘यीशु के निर्णय'' को मत मानीये। नहीं! नहीं! आपका परिवर्तन सच्चा, हो ये जरूरी है क्योंकि अगर आप सच में परिवर्तित नहीं, हो तो, ‘‘आप स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं पा सकोगे'' (मती 18:3)
सही परिवर्तन पाने के लिय,
1) आपको ऐसी जगह आना है जहाँ माना जाता है कि प्रभु हकीकत मे है सच्चा प्रभु जो पापीओं को नर्क, और बचाये हुओ को उनकी मोत के बाद स्वर्ग ले जाते है।
2) आप को जानना चाहिए, अंतर आत्मा के भीतर से की आप पापी हो और आपने प्रभु को नाराज किया है, यही स्थिति मे आप शायद लंबे समय तक रहो (या शायद कम समय तक). डॉ. केगन, अपने सेवकों, ने कहा, ‘‘मैंने कई राते कई महीनो तक बेचैनी और अनिद्रा में बिताई, फिर मुझे प्रभु मिले मैं यह समय सिर्फ बता सकता हूँ की मेरी जींदगी के दो साल मानसिक तनाव में बीते।‘' (सी.एल. केगन, पीएच.डी. डार्विन टु डिझाइन से, व्हीटाकर हाऊस, 2006, पृष्ठ 41)
3) आपको जानना ही चाहिए की आप अपने नाराज और क्रोधित प्रभु को खुश करने के लिये कुछ भी नहीं कर सकते. ना ही कुछ बोल सकते है, ना कुछ सीख सकते हो। ये तो आपके दिल दिमाग में अंदर से शुद्ध होना चाहिये।
4) आपको प्रभु के पुत्र, यीशु मसीह के पास आकर, उनके रक्त से अपने पापो को साफ करना चाहिए। डॉ. केगन ने बताया ‘‘मुझे याद है, कुछ क्षणो के पहले, जब मैंने उनका विश्वास किया (यीशु) ... मैने देखा कि मै उनके सामने (यीशु) ... खडा हुँ। मै हकीकत में यीशु मसीह के हाजरी में था और वह मेरे पास मेरे साथ थे। कई सालो तक मैने उन्हे अनदेखा किया, जब कि वो हमेशा मेरे साथ ही थे, मुझे प्यार से पाप करने से बचाते रहे। लेकिन उस रात मैं जान गया था कि प्रभु पर विश्वास करने का समय आ गया हैं मैंने जाना या तो प्रभु के पास आओ, या पीछे मुड़ जाओ। वोही क्षण, कुछ ही पल मैं यीशु मसीह के पास आया। अब मैं और स्वार्थी और न मानने वाला नहीं था। मुझे यीशु मसीह में विश्वास था। मुझे उनमे आस्था थी। यह एकदम सरल था। वह छोटे से समय में, एक विश्वास और श्रद्धा के कारण ... मैंने सारी मुसीबतें ‘पार करके' यीशु के सामने आकर जिंदगी की सबसे बडी हकीकत - परिवर्तन पा लिया।ं मैं मेरी सारी जिंदगी भागता रहा था, पर उस रात मैं मुडा और सीधा यीशु मसीह के पास आ गया।'' (डो.सी.एल.केगन, ibid, P 19). यही सही परिवर्तत है। यही आपको अनुभव करना है यीशु मसीह के प्रति परिवर्तन होके!
यीशु ने क्रोस पर मृत्यु पायी आप के पापों को चुकाने के लिये और प्रभु का आपके प्रति क्रोध मिटाने के लियें। यीशु शारिरीक रूप में मृत्यु से जी उठे और फिर स्वर्ग की ओर बढे, जहाँ अब वह प्रभु के दाहिने हाथो में बैठकर आपको बचाने के लिये प्रभु से प्रार्थना कर रहे है।
‘‘जब तुम मसीह के साथ लाए गए, तो स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में रहो, जहाँ मसीह विद्यमान है और परमेश्वर के दाहिनी और बैठा है। पृथ्वी पर नहीं परंतु स्वर्गीय वस्तुओ पर ध्यान लगाओ'' (कलुस्सियो 3:1-2).
यीशु को देखीये ! प्रभु के पुत्र को देखिये। अपने रक्त से आपके पापो को धो रहे है!
‘‘उसने तुम्हे भी जिलाया, जो अपने अपराधो और पापो के कारण मरे हुए थे; जिनमें तुम पहले इस संसार की रीति पर और आकार के अधिकार के हाकिम अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न माननेवालो में कार्य करता है। इनमें हम भी सब के सब पहले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे और शरीर और मन की इच्छाएँ पूरी करते थे। और अन्य लोगो के समान स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे। परंतु परमेश्वर ने जो दया का धनी है, अपने उस बडे प्रेम के कारण जिस से उसने हम से प्रेम किया, जब हम अपराधो के कारण मरे हुए थे तो हमे मसीह के साथ जिलाया (अनुग्रह ही से तुम्हारा उध्धार हुआ है।) और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आनेवाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए।'' (इफिसियों 2:1-7)
जैसे जोसेफ हार्ट ने कहा,
जिस वक्त पापी मानता है,
और अपने क्रोस पर चढे हुए प्रभु में विश्वास करता है,
और तब वह माफी पाता है,
प्रभु के रक्त द्वारा पापो का नाश होता है।
(‘‘जिस पल पापी मानता है'' जोसेफ हार्ट, 1712 - 1768).
र्स्पजन को यही हुआ। डॉ केगन को यही हुआ और यही आपको भी हुआ। आप को अपने जींदा प्रभु के साथ मिल कर अपने पापों को प्रभु के पवित्र रक्त से धोकर साफ करता है!
(संदेश का अंत)
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डॉ. क्रेगटन एल. चान द्वारा प्रवचन के पहले पढा गया पवित्र वाक्या : इफिसियों 2:1-7.
प्रवचन के पहले मीस्टर बेन्जामीन कीनकेइड द्वारा गाया हुआ गीत :
अमेझींग ग्रेस' (जॉन न्युटन ग्रेफिथ द्वारा, 1725 - 1807).‘
सच्चे परिवर्तन डॉ. आर. एल. हायर्मस, जूनि. ‘‘मै तुम से सच कहता हूँ कि जब तक तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तुम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे'' (मती 18:3). 1) पहला, आप परिवर्तन के अलावा किसी और कारण से चर्च आओ. 2) दूसरा, आप जानने और मानने लगते हो कि सचमें प्रभु है। (इब्रानियों 11:6). 3) तीसरा, आप मेहसूस करते हो कि आपने अपने पापों से प्रभु को नाराज और क्रोधित किया है, रोमियो 8:8, रोमियो 2:5, भजनसंहिता 7:11. 4) चौथा, परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह के पास आते हो, कलुस्सियो 3:1-2, इफिसियो 2:1-7. |