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मनुश्य का गिराव और नया जन्म

THE FALL OF MAN AND THE NEW BIRTH

डो. आर. एल. हायर्मस, जुनि. द्वारा
by Dr. R. L. Hymers, Jr.

लोस एंजलिस के बप्तीस टबरनेकल में प्रभु के दिन की षाम, 28 नव्हम्बर, 2004
को दिया हुआ धार्मिक प्रवचन
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Evening, November 28, 2004

“अचम्भा न कर कि मैंने तुुझ से कहा, तुझे नये सिरे से जन्म लेना अवष्य है” (यूहन्ना 3:7)।


पीछले रविवार की रात हमने यह विशय का अध्ययन किया, और मुझे चाहिये कि हम आज रात इस विशय पर फिर से आये। हम मसीह के वचनों के साथ षुरूआत करेंगे;

“तुझे नये सिरे से जन्म लेना अवष्य है” (यूहन्ना 3:7)।

यीषु किसी एक आदमी से बात नही कर रहे थे जब उन्होने ये कहा। यह पद 3 में स्पश्ट किया गया है,

“यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेष्वर का राज्य देख नहीं सकता” (यूहन्ना 3:3)।

“आदमी” जिक्र करता है कोई भी आदमी, सामान्यतः,आमतौर पर। ये इस पद से, और पूरे अध्याय से स्पश्ट है, कि यीषु सारे आदमीयों से कहते थे जब उन्होने कहा “तूझे नये सिरे से जन्म लेना अवष्य है”। यह बताता है कि मनुश्य को जिसकी जरूरत है वो सिर्फ नये जन्म द्वारा ही मिल सकती है। क्या कारण हुआ जो आदमी को नया जन्म लेने की आवष्यकता हुई? नये जन्म के बिना आदमी की अवस्था क्या होगी? इस अवस्था के लिये क्या उपाय है? मैं आज रात पूरी तरह से प्रयत्न करूँगा इस तीन प्रष्न का सरलता से जवाब देने का।

I. पहला, क्या कारण हुआ जो आदमी को नया जन्म लेने की आवष्यकता हुई?

महेरबानी करके उत्पति 1:27 पर फिरो। अब चलिये खडे रहते है और ये पद जोर से पढते है।

“तब परमेष्वर ने मनुश्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेष्वर ने उसको उत्पन्न किया; नर और नारी करके उसने मनुश्यों की सृश्टि की” (उत्पति 1:27)।

आप बैठ सकते हो। पहली चीज है ध्यान देने कि वो है मनुश्य की “सृश्टि” की गई थी। मनुश्य जाति जीवन के नीचले रूप से प्रकट नही हुई। नहीं, वो प्रभु के खास कार्य से उत्पन्न की गई थी। दूसरी चीज जो ध्यान देनी है वो है आदमी “परमेष्वर के स्वरूप में” उत्पन्न किया गया था। यह बताता है कि आदमी प्रभु की सामनता में प्राकृतिक और आध्यात्मिकरूप में उत्पन्न किया गया था।

प्राकृतिक सामनता द्वारा से हमारा मतलब है कि आदमी के पास ज्ञान है, ताकि वो सोच सके, जैसे प्रभु सोच सकते है। उसके पास भावनाएँ है, ताकि वो महसूस कर सके, जैसे प्रभु महसूस सकते है। उसके पास इच्छा है, ताकि वो निर्णय ले सके, जैसे प्रभु निर्णय ले सकते है। परन्तु प्राणीयों में भी ये सारी योग्यता होती है। मेरी छोटी कुत्ती पीक्सी सोच सकती है। वह महसूस कर सकती है। वह निर्णय कर सकती है। अगर आप उसको जानते हो, तो मैं जरूर कहुँगा कि आप मेरे साथ सहमत होंगे। एक व्यक्ति ने कहा, “वो ज्यादा चतुर है, मैं कुछ लोगों से मिला हु उनसे!” परन्तु आदमी के पास कुछ ऐसा है जो प्राणियों के पास नहीं है। आदमी परमेष्वर के नीतिमान् और आध्यात्मिक स्वरूप में उत्पन्न किया गया था। (सीएफ. ध रायरी स्टडी बाइबल, उत्पति 1:26 पर टीप्पणी)। कोई भी प्राणी के पास आध्यात्मिक “स्वरूप” नही होता। यही चीज है जो मनुश्यजाति को पूरी तरह से अनोखा बनाती है। सिर्फ आदमी में ही सामर्थ्य है प्रभु को जानने का और उनके साथ व्यवहार करने का।

महेरबानी करके उत्पति 2:7 पर फिरो। यहाँ हम पढते है,

“तब यहोवा परमेष्वर ने आदमी को भूमि की मिट्टी से रचा, और उसके नथनों में जीवन का ष्वास फूँक दिया; और आदमी जीवित प्राणी बन गया” (उत्पति 2:7)।

वाक्यखण्ड “जीवन का ष्वास” अंग्रेजी अनुवाद है इब्रानियो षब्द “नेषमाह” ;दमेींउींद्ध का। और यह ये “नेषमाह” है जो एकदम अनोखा है मनुश्यजाति को। कोई प्राणी के पास “नेषमाह” नही होता। सिर्फ आदमी के पास ये विष्श्टि लक्षण है, जो उसे समर्थ करता है प्रभु को जानने और उनके साथ व्यवहार करने। जैसे हमने अय्युब 32:8 में पढा,

“मनुश्य में आत्मा तो है ही, सर्वषक्तिमान की दी हुई साँस, जो उन्हें समझने की षक्ति देता है” (अय्युब 32:8)।

“जीवन का ष्वास” या “नेषमाह” वो है जो मनुश्य को सामर्थ्य देता है आध्यात्मिक चीजे जानने और समझने के लिये।

परन्तु आदमी का आध्यात्मिक स्वभाव अब मर चुका है गिराव के कारण। महेरबानी करके उत्पति 2:17 पर फिरो। यही है जो प्रभुने आदम को कहा था। चलिये खडे रहते है और ये पद जोर से पढते है।

“पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना : क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवष्य मर जाएगा” (उत्पति 2:17)।

आप बैठ सकते हो। ये सिर्फ षारीरिक मृत्यु का जिक्र नहीं कर सकता। आदम बहुत लंबे वर्शो तक षारीरिकरूप से जीवित थे, वृक्ष से फल खाने के बाद। परन्तु प्रभुने कहा, “जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवष्य मर जाएगा” (उत्पति 2:17)। हकीकत में, आदम आध्यात्मिकरूप से मरा उसी दिन जब उसने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाया था। उसके पापने सिर्फ उसके अन्दर के परमेष्वर के स्वरूप को नही मिटाया, परन्तु “जीवन का ष्वास”, “नेषमाह” का भी कत्ल किया। यही कारण है कि मनुश्य को नये जन्म की जरूरत है।

II. दूसरा, नये जन्म के बिना आदमी की अवस्था क्या होगी?

जैसे मैंने कहा, आदम में परमेष्वर का स्वरूप मिट चूका था। डो. रायरीने कहा,

आदमी प्रभु के प्राकृतिक, और नीतिमान् स्वरूप में उत्पन्न किया गया था। जब उसने पाप किया, उसने उसका नीतिमान् स्वरूप खो दिया...परन्तु प्राकृतिक स्वरूप ज्ञान, भावना और इच्छा का अभी भी है (ध रायरी स्टडी बाइबल, उत्पति 1:26 पर टीप्पणी)।

आदमी अभी भी सोच, महसूस और काम कर सकता है - परन्तु उसका प्रभु के साथ ओर मिलन नही हो सकता।

सिर्फ परमेष्वर का स्वरूप ही नही मिटा था, परन्तु “जीवन का ष्वास” या “नेषमाह” भी मारे गये थे। मैं यहाँ “मारा गया” षब्द बहुत जतन से इस्तेमाल करता हूँ। मैं यह इस्तेमाल कर रहा हूँ वो ज्ञान में जो बाइबल में इस्तेमाल किया गया उत्पति 1:27 में,

“क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवष्य मर जाएगा” (उत्पति 1:27)।

उस दिन आदम आध्यात्मिकरूप से मर गया। उसके अंदर का “नेषमाह” मर गया।

ये आपके लिये क्यों महत्वपूर्ण है? आपको इस से क्यों चिन्ता होनी चाहिये जो आदम को हुआ था इतिहास की षुरूआत में? मैं कहता हूँ क्यों।

“एक मनुश्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई” (रोमियों 5:12)।

“आदम में सब मरते है” (1 कुरिन्थियों 15:22)।

बाइबल का क्या अर्थ है जब वो कहता है, “आदम में सब मरते है”? इसका अर्थ है कि आदम के पाप से सारी मनुश्यजाति गिरती है और उसके साथ उस पहले वह अपराध में गिरा। और सारे आध्यात्मिकरूप से आदम में मरे।

“एक मनुश्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई” (रोमियों 5:12)।

जब से आदमने पाप किया सारे लोग स्वभाव से पापी है। हम सब पापभरे स्वभाव के साथ जन्मे, जो हमे हमारे पहले मातापिता से वारसे में मिला है। सारे मनुश्य पाप में मरे हुए जन्में।

“आदम में सब मरते है” (1 कुरिन्थियों 15:22)।

आदम की हर सन्तान में प्रभुका चहेरा कुरूप और नश्ट हुआ है, पूरी मनुश्यजाति में। “नेषमाह” मर चुका है सारी मानवता के मन में।

यह इफिसियों 4:18 में अच्छी तरह स्पश्ट किया गया है। महेरबानी करके आपकी बाइबल में उस पद पर फिरो और खडे रहो जब हम ये जोर से पढते है।

“क्योंकि उनकी बुध्धि अन्धेरी हो गई है, और उस अज्ञानता के कारण जो उनमें है, और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेष्वर के जीवन से अलग किए हुए है” (इफिसियों 4:18)।

आध्यात्मिक समझदारी का काम मर चुका है। प्रभु के जीवन से अलग किया हुआ, आदमी का मन अंधा है। यही है जो बाइबल का अर्थ है जब वो कहता है कि आप

“पाप में मरे हुअे हो” (इफिसियों 2:5)।

यही है बाइबल का अर्थ जब वो कहता है,

“आदम में सब मरते है” (इफिसियों 15:22)।

आप बैठ सकते हो।

जब तक आप ये महसूस नही करते, हम सिर्फ आपकी थोडी सी सहाय ही कर सकते है। मैं पूरी तरह से सहमत हूँ श्रेश्ठ सुसमाचार प्रचारक ज्योर्ज वाइटफिल्ड के साथ जब वे बार बार प्रवचन देते है कि कोई भी सच्ची तरह से परिवतिर्त नही हो सकता जब तक वो अपने आप अपने अन्दर प्रभु के तरफ की अपनी निर्जीवता महसूस नही करते।

जब आदमने पाप किया, उसने अंजीर के पत्तो का लंगोट बनाया अपने आपको ढकने के लिये (उत्पति 3:7)।

“तब आदम और उसकी पत्नी वाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेष्वर से छिप गए” (उत्पति 3:8)।

क्या ये वो नहीं है जो सारे आदमी करते है? उन्होनें अंजीर के पत्ते साथ में जोडे और अपने लिये लंगोट बनायी, और प्रभु की उपस्थिति से छिप गये। कौन से अंजीर के पत्तो से आप अपने आपको ठकते हो? “प्रभु की उपस्थिति” से आप कैसे छिपेंगे?

बाइबल के पद पढ़ना और धार्मिक प्रवचन सुनना कुछ अच्छा नही है जब तक आप प्रभु से छिपे रहते हो।

“आदम में सब मरते है” (1 कुरिन्थियों 15:22)।

“क्योंकि उनकी बुध्धि अन्धेरी हो गई है, और उस अज्ञानता के कारण जो उनमें है, और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेष्वर के जीवन से अलग किए हुए है” (इफिसियों 4:18)।

“पापों में मरे हुअे हो” (इफिसियों 2:5)।

इसलिये यीषुने कहा,

“तुझ नये सिरे से जन्म लेना अवष्य है” (यूहन्ना 3:7)।

III. तीसरा, इस अवस्था का क्या उपाय है?

आपकी अवस्था के लिये उपाय मानवीय कार्य द्वारा नही हो सकता। मनुश्य सिर्फ अंजीर के पत्तोें को जोड़ कर छिप सकता है। इस लिये आधुनिक “निर्णायकता” गलत हुई। ये नये जन्म को कुछ ऐसा बनाती है कि आदमी कुछ भी स्वयं के लिये करता है - प्रभु पर अवलंबित नही है। इस प्रकार “निर्णायकता” मुडती है मेडीएवल केथलीकइझम के दोश और, हकीकत में, सुधार में बडी सच्चाई फिर से मिली थी उसका अस्वीकार। फिनोय और उनके चेलोने पढाया कि आदम के पाप का दोशारोपण उसके वंष की “ब२ज्ञानी कल्पना” थी। उसने पढ़ाया कि आप पाप में मरे हुअे नही हो, कि आप “अपने आपके लिये नया मन बना” सकते हो। परन्तु यह फिनेय और उनके चेले थे जिन्होने पढाया ब२ज्ञानी कल्पना! कोई आदमी जो पाप में मरा हुआ हो वो स्वयं पुनरूत्थान नही पा सकता! कलीसिया में जाना, बाइबल के अध्याय पढ़ना, “आगे” जाना, “पापीयों की प्रार्थना” कहना, बप्तीसमा लेना, “मुक्ति के विचार” कहना-ये सारे अंजीर के पत्ते है, आदम की सन्तान द्वारा प्रभु से छिपने के निये इस्तेमाल किये हुए! “समर्पित करना” और “पुनःसमर्पित करना” - “आपके वादे को फिर से नया बनाना” - सारे केथलिक कूडे-करकट, सारी “निर्णायकता” स्व-मुक्ति, सारे अंजीर के पत्ते, प्रभुकी आवाज से छिपने के लिये इस्तेमाल हुए! यीषु से कहते हो आपको बचाने? यह प्रार्थना द्वारा मुक्ति नही तो क्या है? फिर भी और ज्यादा निर्णायक अंजीर के पत्ते! प्रार्थना द्वारा मुक्ति मेडीएवल केथलीक और आधुनिक फिनेय निर्णायकता है, सरल और सामान्य डरानेवाला षब्द!

“लोग उससे मुख फेर लेते थे” (यषायाह 53:3)।

“हम तो सब के सब भेड़ों के समान भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया” (यषायाह 53:6)।

आप अपना मुख उनसे कैसे छिपायेंगे? कौन सा तरीका आप इस्तेमाल करोगे अपना “खुद का मार्ग” फिराने?

कोई भी तरीका आप इस्तेमाल करते हो और कुछ भी आप सीख नही सकते या कर नही सकते, जो आपको मदद करे फिर से परमेष्वर के स्वरूप को पाना या आपके मरे हुए मनमे फिर से जीवन ला सकें!

“अचम्भा न कर कि मैंने तूझ से कहा, तूझे नये सिरे से जन्म लेना अवष्य है” (यूहन्ना 3:7)।

मैं आपको क्या सूचना दे सकता हूँ? मैं आपको कैसे मदद कर सकता हूँ? मैं सिर्फ वही कर सकता हूँ जो परमेष्वरने भविश्यवक्ता यहेजकेल को करने के लिये कहा,

“इन हड्डियों से भविश्यवाणी करके कह, हे सूखी हड्डियो, यहोवा का वचन सुनो” (यहेजकेल 37:4)।

“तूझे नये सिरे से जन्म लेना अवष्य है” (यूहन्ना 3:7)।

आपको यह जरूर सिध्ध करना चाहिये कि आप आदम में मरे हुए हो। आपको नीचे लाना जरूरी है अपनी निःसहाय अवस्था अपने स्वयं को बचाने के विचार द्वारा। आपको जल्दी से काटना चाहिये आपके अपने अपराध और पाप द्वारा। आपको आपके पुनःजीवन की सारी आषाएँ छोड देनी चाहिये।

जब कोई व्यक्ति अपना खुद का अपराधभाव महसूस करना षुरू करता है ये कहा जा सकता है कि वो जागृत हो रहा है। ये कह सकते है कि “प्रभुं की आवाज” उस व्यक्ति को बुलाती है, जैसे उन्होने आदम को कहा (सीएफ. उत्पति 3:8-9)।

क्या परमेष्वर आपको बुलाते है? क्या आप अंतःमन में पीडा और अंदरूनी अपराध महसूस करते हो? अगर आपकी आत्मा में ऐसी परेषानी है, तो यह प्रभु की ओर से है। प्रभु बिना के जीवन के अंधेरे से बाहर, वो आपको यीषु मसीह के पास बुलाते है।

मैं यह धार्मिक प्रवचन समाप्त करता हूँ, पद जो मैने इस षाम को कई बार दिया है उसका दूसरा आधा पद कथन करने के द्वारा :

“और जैसे आदम में सब मरते है, वैसे ही मसीह में सब जिलाए जाएँगे” (1 कुरिन्थियों 15:22)।

“क्योंकि जब एक मनुश्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो परमेष्वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुश्य के, अर्थात यीषु मसीह के अनुग्रह से हुआ, बहुत से लोगों पर अवष्य ही अधिकाई से हुआ” (रोमियों 5:15)।

“इसलिये जैसा एक अपराध सब मनुश्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धर्म का काम भी सब मनुश्यों के लिये जीवन के निमित्त धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ। क्योंकि जैसा एक मनुश्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुश्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे...कि जैसा पाप ने मृत्यु फैलाते हुए राज्य किया, वैसा ही हमारे प्रभु यीषु मसीह के द्वारा अनुग्रह भी अनन्त जीवन के लिये धर्मी ठहराते हुए राज्य करे” (रोमियों 5:18-19,21)।

यीषु मसीह मृत्यु की जंजीर को ढीला करते है! यीषु मसीह खोया हुआ स्वरूप फिर से लाते है! यीषु मसीह मरे हुए मन का पुनरूत्थान करते है!

“जैसे आदम में सब मरते है, वैसे ही मसीह में सब जिलाए जाएँगे” (1 कुरिन्थियों 15:22)।

“अचम्भा न कर कि मैंने तुुझ से कहा, तुझे नये सिरे से जन्म लेना अवष्य है” (यूहन्ना 3:7)।

(संदेश का अंत)
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धार्मिक प्रवचन से पहले डो. क्रेगटन एल चान द्वारा पढा हुआ पवित्रषास्त्र : रोमियों 5:12-21।
धार्मिक प्रवचन से पहले श्रीमान बेन्जामिन किनकेड ग्रीफिथ द्वारा गाया हुआ गीत :
“तुझे नये सिरे से जन्म लेना अवष्य है”
(वीलीयम टी. स्लीपर द्वारा, 1819-1904)।


रूपरेखा

मनुश्य का गिराव और नया जन्म

डो. आर. एल. हायर्मस, जुनि. द्वारा

“अचम्भा न कर कि मैंने तुुझ से कहा, तुझे नये सिरे से जन्म लेना अवष्य है”
(यूहन्ना 3:7)।

(यूहन्ना 3:3)

I.    पहला, क्या कारण हुआ जो आदमी को नया जन्म लेने की आवष्यकता हुई? उत्पति 1:27; उत्पति 2:7; अय्यूब 32:8; उत्पति 2:17।

II.   दूसरा, नये जन्म के बिना आदमी की अवस्था क्या होगी? रोमियों 5:12; 1 कुरिन्थियों 15:22अ; इसिफियों 4:18; इसिफियों 2:5; उत्पति 3:8।

III.  तीसरा, इस अवस्था का क्या उपाय है? यषायाह 53:3,6; यहेजकेल 37:4;
1 कुरिन्थियों 15:22ब; रोमियों 5:15; 18-19,21।