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उपदेश आरंभ होने से पूर्व गीत गाया: ‘‘क्या मैं जो योद्धा क्रूस का?’’ (रचयिता डॉ. आयजक वाट’स‚ १६७४—१७४८)


मसीह के संग मैं क्रूस पर चढ़ाया गया!

CRUCIFIED WITH CHRIST!
(Hindi)

डॉ. आर. एल. हायमर्स, जूनि.
पास्टर ऐमेरीटस
by Dr. R. L. Hymers, Jr.,
Pastor Emeritus

लॉस ऐंजीलिस के बैपटिस्ट टैबरनेकल में रविवार की दोपहर
मई १७‚ २०२० को दिया गया संदेश
A sermon preached at the Baptist Tabernacle of Los Angeles
Lord’s Day Afternoon, May 17, 2020

‘‘मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूं‚ और अब मैं जीवित न रहा‚ पर मसीह मुझ में जीवित है: और मैं शरीर में अब जो जीवित हूं तो केवल उस विश्वास से जीवित हूं‚ जो परमेश्वर के पुत्र पर है‚ जिस ने मुझ से प्रेम किया‚ और मेरे लिये अपने आप को दे दिया’’ (गलातियों २:२०)


मसीह के संग ‘‘क्रूस पर चढ़ाए जाने से’’ क्या अर्थ निकलता है? मेरा मानना है कि इसका अर्थ है कि आत्मा को एक गहरे अंधकार में से होकर जाना आवश्यक है। हमें अपने पाप को महसूस करना अवश्य है‚ व्यवस्था की कड़ी मार को महसूस करना अवश्य है‚ कीलों के गढ़ने का अहसास जरूरी है‚ मसीह के संग मरना जरूरी है — मसीह के संग उनके मरण तथा उनके पुनरूत्थान में संयुक्त होना आवश्यक है।

पास्टर रिचर्ड वर्मब्रेंड ने मसीह के संग क्रूस पर चढने को अनुभव किया जब वह दो वर्षो तक जेल की एक निर्जन कोठरी में बंद थे। अपनी पुस्तक‚ इन गॉड अंडरग्राउंड‚ उन्होंने समझाया कि मसीह के संग क्रूस पर चढ़ाया जाना क्या होता है। वर्मब्रेंड का कथन था‚

     मुझे जेल की इस कोठारी में दो वर्ष से कैद में रखा गया था। मेरे पास कुछ पढ़ने व लिखने की साम्रगी नहीं थी‚ साथ देने के लिए केवल मेरे विचार ही थे। मैं ध्यान लगाने जैसा व्यक्ति नहीं था बल्कि मेरे भीतर एक ऐसी आत्मा थी जो खामोश रहना नहीं जानती थी।
     क्या मेरा विश्वास परमेश्वर पर था? अब मेरे लिए परीक्षा की घड़ी आयी थी। मैं अकेला था। कमाने के लिए कुछ नहीं था‚ कोई ऐसे प्रोजेक्ट नहीं आ रहे थे जिन पर काम किया जाता। परमेश्वर ने केवल मेरे लिए कष्ट ही सामने रखे थे — तब भी क्या मुझे उनसे प्रेम करते जाना था?
     धीमे — धीमे मैंने सीखा कि चुप्पी के वृक्ष पर शांति के फल लगा करते हैं.......यहां तक कि जेल में (अकेले इस कोठरी) भी मेरे विचार और भावनाएं परमेश्वर की ओर मुड़ गए थे। एक के बाद एक रात, मैं आत्मिक अभ्यास एवं परमेश्वर की प्रशंसा करने में गुजारने लगा। मैं जानता था कि यह कोई ढोंग नहीं था। बल्कि मैंने विश्वास किया था!
(इन गॉड’स अंडरग्राउंड‚ पेज १२०)

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अक्सर मेरे जैसे हठी इंसान के समान एक मनुष्य को कई बार आत्मा के इस गहरे अंधकार से होकर गुजरना बहुत जरूरी होता है‚ इसके पहले कि वह स्वयं को पूर्ण रूप से मसीह के सामने समर्पित कर दे और मसीह के साथ ‘‘क्रूस पर चढ़ाए जाने’’ का अनुभव प्राप्त करे। मैं अभी भी सत्य को सीखने की इस प्रक्रिया में हूं, जबकि मैं अपने जीवन के अस्सी वर्ष में चल रहा हूं।

मैंने इस सत्य को सीखने की शुरूआत एक चायनीज चर्च में बने रहने से आरंभ की थी‚ जहां मैं दशकों तक एक ‘‘बाहरी व्यक्ति’’ बना रहा। मैं चर्च छोड़ना चाहता था किंतु परमेश्वर ने मुझे चर्च छोड़ने नहीं दिया। उन्होंने सीधे — सीधे मुझे चर्च नहीं छोड़ने के विषय में इब्रानियों १०:२५ के द्वारा और बाइबल में और भी जगहों के माध्यम से बता दिया। इस तरह मैंने ‘‘मसीह के संग क्रूस पर चढ़ाया’’ जाना आरंभ किया।

अगली बार मेरे लिए परीक्षा की घड़ी मैरीन काउंटी के सदर्न बैपटिस्ट सेमनरी में आयी। मुझे यह जगह नापसंद थी क्योंकि यहां के विश्वासरहित उदारवादी प्राध्यापकों के द्वारा लगभग हर कक्षा में बाइबल के हिस्सों को तोड़ —मरोड़ कर पढ़ाया जाता था। मुझे वहां रहना ही नापसंद था‚ किंतु तौभी परमेश्वर ने मुझे वहां ठहरे रहने के लिए कहा‚ भले ही मुझे वहां अच्छा महसूस नहीं होता था। एक दिन मध्यरात्रि के बाद‚ परमेश्वर ने उसी सेमनरी के मेरे कमरे में‚ मुझे आवाज दी। एक ‘‘ठहरे‚ मंद स्वर’’ ने कहा‚ ‘‘अब से कई वर्षों बाद तुम इस रात्रि के बारे में सोचोगे और तुम्हें स्मरण आएगा कि मैंने तुमसे कहा था कि तुम्हारा मुख्य कार्य केवल तब आरंभ होगा जब तुम बूढ़े हो जाओगे.......तब तुम सीख जाओगे कि डरना नहीं है।’’ मैं तुम्हारे संग रहूंगा.....अगर तुम मेरी बातों को लोगों को नहीं बताओगे, तो कोई नहीं बताएगा, जबकि मेरी इन बातों को दुस्साहसपूर्ण तरीके से कहे जाने की आवश्यकता है — दूसरे तो इसे कहने में डरते हैं, इसलिए अगर तुम इसे नहीं बताओगे, तो कोई नहीं बताएगा, या वे बताएंगे भी तो इतने अच्छे ढंग से नहीं बताएंगे।’’

फिर प्रवचनशास्त्र पढ़ाने वाले मेरे प्राध्यापक थे‚ डॉ. गार्डन ग्रीन‚ उन्होंने मुझसे कहा था‚ ‘‘हायमर्स‚ तुम एक बहुत अच्छे प्रचारक हो‚ अच्छे प्रचारकों में एक। परंतु....... तुमको सदर्न बैपटिस्ट चर्च, पास्टर के रूप में कभी नहीं मिलेगा‚ अगर तुम परेशानी खड़ी करना बंद नहीं करोगे।’’ मैंने उनकी आंखों में देखा और कहा‚ ‘‘अगर इसकी मुझे यह कीमत चुकानी पड़ेगी‚ तो मुझे कोई ऐसा चर्च चाहिए भी नहीं।’’ अब मेरे पास खोने को कुछ नहीं था (अगेंस्ट ऑल फियर्स‚ पेज ८६)।

फिर उसके बाद मैं लॉस ऐंजीलिस आया और इस चर्च को आरंभ किया। बाद में आगे चलकर क्रेटन ने चर्च के दो भाग कर दिए क्योंकि वह मुझसे ‘‘सहमत नहीं’’ था। किन बातों पर वह मुझसे सहमत नहीं था? उन कई मुद्दों पर जिन पर मैं निडर रहकर कदम उठाता था‚ उसके लिए वह मुझसे सहमत नहीं था! वह एक ‘‘डरपोक’’ छोटा नाटा आदमी था‚ जो परमेश्वर की सच्चाई के लिए आवाज उठाने के लिए खड़े होने से डरता था! तो अलविदा‚ छोटे चूहे!

अब मेरी ८० वर्ष की आयु में‚ मैं अनुभव करता हूं कि परमेश्वर मुझे अंत — युग में लोग यीशु मसीह पर अविश्वास करेंगे‚ संबंधी भविष्यवाणियां करने के लिए तैयार कर रहे हैं (२ थिस्सलुनीकियों २:३)।

जब अन्य लोग कह रहे हैं कि अंत में विश्वासी बादलों पर उठा लिए जाएंगे‚ मेरा कहना है कि आपको महा क्लेश में से होकर जाना पड़ेगा‚ जैसा मार्विन रोजेंथॉल प्री रेथ रैप्चर ऑफ दि चर्च में कहते हैं। जबकि क्रेटन जैसे लोग‚ आपको नये इवेंजलीज्मवाद में खींचना चाहते हैं‚ मेरा कहना है‚ ‘‘मसीह में दृढ़ खड़े रहिए — चाहे कुछ भी हो।’’

मैं जॉन सैम्यूएल को नापसंद नहीं करता हूं। मैं सिर्फ इतना महसूस करता हूं कि वह इन अंतिम दिनों के लिए एक भविष्यवक्ता की आवाज बनने के लिए इतना मजबूत नहीं है। वह डरता था कि वह मेरे साथ बना रहा‚ तो ‘‘विफल हो जाएगा।’’ ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जॉन सैम्यूएल अभी तक ‘‘मसीह के संग क्रूस पर चढ़ाया नहीं गया’’ है। मैं तो अनेकों बार ‘‘विफल हुआ’’ इसलिए विफलता से अब मुझे डर नहीं लगता!

डॉ. कैगन मुझे बताते रहते हैं कि मैं जो इन अंतिम दिनों में मजबूत बने रहने का प्रचार करता हूं‚ यह प्रचार उन्हें पसंद आता है। यह प्रोत्साहन मेरे लिए बहुत बड़ा है! अगर आप ‘‘मसीह के संग क्रूस पर चढ़ाएं गए हैं’’ तो आप मेरे और डॉ. कैगन के संग इस विश्वास त्याग के दिनों में भी (२ थिस्सलुनीकियों २:३) बने रहेंगे और आप आत्मिक रूप से महिमादायी शहीद कहलाएंगे — या कम से कम पास्टर वर्मब्रेंड के समान पाप स्वीकारकर्ता कहलाएंगे!

‘‘मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूं‚ और अब मैं जीवित न रहा‚ पर मसीह मुझ में जीवित है: और मैं शरीर में अब जो जीवित हूं तो केवल उस विश्वास से जीवित हूं‚ जो परमेश्वर के पुत्र पर है‚ जिस ने मुझ से प्रेम किया‚ और मेरे लिये अपने आप को दे दिया’’ (गलातियों २:२०)

डॉ. तिमोथी लिन अपनी पुस्तक दि किंगडम ऑफ गॉड में लिखते है, ‘‘आज बहुत से चर्च सदस्य परमेश्वर की आवाज को सुन नहीं सकते हैं क्योंकि वे सब चीजों से बढ़कर, केवल खुद से प्रेम करते हैं........उनके हृदय कड़े हो चुके हैं, इसलिए वे सीखते अधिक‚ लेकिन सुनते कम हैं। कई लोग सोचते हैं कि उन्हें बाइबल का पूरा ज्ञान है, जबकि वे कई मूलभूत सत्य बातों को ही नहीं जानते हैं। कई तो उनमें से आपको यह नहीं बता पाते हैं कि उनके जीवन का उद्देश्य क्या है!’’ डॉ. ए. डब्ल्यू. टोजर ने एक उदाहरण दिया था,

यूनिवर्सिटी के एक विधार्थी से पूछिए, ‘‘बॉब‚ आप इस धरती पर क्यों आएं हैं?’’
‘‘मैं विवाह करना चाहता हूं; मैं पैसा कमाना चाहता हूं; और मैं भविष्य में खूब घूमना चाहूंगा’’
किंतु बॉब, ‘‘ये कोई दूरदर्शी चीजें बिल्कुल नहीं हैं। आप इन्हें करते रहेंगे, फिर बूढ़े हो जाएंगे और मर जाएंगे। आखिर आपके जीवन का बड़ा उद्देश्य क्या है?’’
शायद बॉब का जवाब यह आ सकता है, ‘‘मैं नहीं जानता मेरे जीवन का कोई उद्देश्य है भी या नहीं’’
कई लोग उनके जीवन का उद्देश्य क्या है, नहीं जानते हैं (‘‘दि पर्पस ऑफ मैन’’ पेज २७)

एक मसीही जन यह कह सकता है कि जीवन में उसका उद्देश्य स्वर्ग में जाना है। किंतु डॉ लिन बारंबार कहते हैं कि बाइबल में ऐसा एक भी पद नहीं है जो आपके जीवन का उद्देश्य स्वर्ग जाना बताता हो!

आपको यह बताने के लिए कि आपके जीवन का उद्देश्य क्या है‚ आइए‚ तिमोथी २:१२ में से इसे पढ़ते हैं। पद १२ के पहिले आधे हिस्से को पढ़िए‚

‘‘अगर हम दुख उठाते हैं तो उनके साथ राज्य भी करेंगे......’’

‘‘दुख उठाना’’ अर्थात उनके साथ ‘‘दुख झेलकर भी बने रहना’’। प्रकाशितवाक्य २०:६ कहता है‚ ‘‘वे परमेश्वर और मसीह के याजक होंगे और उसके साथ हजार वर्ष तक राज्य करेंगे।’’ ‘‘दुख उठाना’’ शब्द का अर्थ है ‘‘दुख झेलकर भी बने रहना।’’ २ तिमोथी २:१२ का प्रसंग २ तिमोथी २:१—११ में दिया हुआ है। पद १ को लेकर स्कोफील्ड की व्याख्या सही कहती है, ‘‘अविश्वास के युग में ‘अच्छे योद्धा का मार्ग।’’’ मसीह के संग राज्य करने की बात सीधे तौर पर लूका १९:११—२७ के दस मुहरें वाले दृष्टांत में देखने को मिलती है। वे जो मसीह के साथ राज्य करने की तैयारी करते हैं, उन्हें ‘‘दस शहरों के ऊपर’’ राज्य करने का अधिकार (पद १७) या ‘‘पांच शहरों के ऊपर’’ (पद १९) राज्य करने का अधिकार दिया जाएगा। डॉ. लिन का कथन था कि ये बातें बिल्कुल यथाशब्द होंगी। जो इस जीवन में दुख उठाकर भी बने रहते हैं, वे मसीह के आने वाले राज्य में उनके संग मिलकर राज्य करेंगे! ‘‘दुख उठाने का’’ तात्पर्य ‘‘दुख झेलकर भी बने रहना’’।

हमें कौनसा दुख सहन करना अवश्य है? हमें इस संसार के मोह को त्यागने का दुख सहन करना अवश्य है‚

‘‘तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है‚ तो उस में पिता का प्रेम नहीं है। क्योंकि जो कुछ संसार में है‚ अर्थात शरीर की अभिलाषा और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड‚ वह पिता की ओर से नहीं‚ परन्तु संसार ही की ओर से है। और संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं‚ पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है‚ वह सर्वदा बना रहेगा’’ (१ यूहन्ना २:१५—१७)

हम चर्च के दो टुकड़े होने पर भी जाते नहीं बल्कि ठहरे रहकर सहन करते हैं‚

‘‘वे निकले तो हम ही में से‚ पर हम में के थे नहीं; क्योंकि यदि हम में के होते‚ तो हमारे साथ रहते‚ पर निकल इसलिये गए कि यह प्रगट हो कि वे सब हम में के नहीं हैं’’(१ यूहन्ना २:१९)

हम झूठे शिक्षकों का इंकार करके दुख सहना अधिक अच्छा समझते हैं‚

‘‘हे प्रियों‚ हर एक आत्मा की प्रतीति न करो: वरन आत्माओं को परखो‚ कि वे परमेश्वर की ओर से हैं कि नहीं; क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं’’ (१ यूहन्ना ४:१)

हम उन चीजों को करने में दुख उठाते हैं जो परमेश्वर को प्रसन्न करती हैं‚

‘‘और जो कुछ हम मांगते हैं‚ वह हमें उस से मिलता है; क्योंकि हम उस की आज्ञाओं को मानते हैं और जो उसे भाता है वही करते हैं’’ (१ यूहन्ना ३:२२)

हम परमेश्वर की आज्ञा पालन करने में दुख उठाते हैं‚

‘‘और जो कुछ हम मांगते हैं‚ वह हमें उस से मिलता है; क्योंकि हम उस की आज्ञाओं को मानते हैं; और जो उसे भाता है वही करते हैं। और उस की आज्ञा यह है कि हम उसके पुत्र यीशु मसीह के नाम पर विश्वास करें और जैसा उस ने हमें आज्ञा दी है उसी के अनुसार आपस में प्रेम रखें’’ (१ यूहन्ना ३:२२,२३)

हम हमारे शिक्षकों के प्रति समर्पित बने रहकर टिके रहते हैं‚

‘‘जो तुम्हारे अगुवे थे‚ और जिन्हों ने तुम्हें परमेश्वर का वचन सुनाया है‚ उन्हें स्मरण रखो; और ध्यान से उन के चाल—चलन का अन्त देखकर उन के विश्वास का अनुकरण करो......जो आपके ऊपर शासन करते हैं (अपने अगुवों) की मानो; और उनके आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं’’ (इब्रानियों १३:७‚ १७)

हम ‘‘हमेशा परमेश्वर के लिए प्रचुर मात्रा में कार्य करने के द्वारा’’ टिके रहते हैं — अटल रहने के कारण!

‘‘सो हे‚ मेरे प्रिय भाइयो‚ दृढ़ और अटल रहो‚ और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ‚ क्योंकि यह जानते हो२ कि तुम्हारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है’’ (१ कुरूंथियों १५:५८)

इन बातों को सहन करने से‚ परमेश्वर हमें शिष्य बनने के लिए प्रशिक्षित करते हैं‚ ताकि मसीह के आने वाले राज्य में उनके संग राज्य करें।

‘‘जो जय पाए‚ मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठाऊंगा ........ जिस के कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है’’ (प्रकाशितवाक्य ३:२१‚ २२)

पास्टर वांग मिग दाओ (१९००—१९९१) ने अपनी आस्था के कारण कम्यूनिस्ट चायना में जेल में २२ वर्ष बिताएं। उनका कथन था,

‘‘कुछ लोगों ने मुझसे पूछा कि चर्च को कौनसा रास्ता अपनाना चाहिए। मैंने जवाब दिया‚ निर्विवाद रूप से प्रेरितों के मार्ग को अपनाना चाहिए........ताकि मृत्यु आने तक प्रभु के प्रति विश्वसनीय बने रहें।’’ उन्होंने डॉ जॉन संग की अंतिम क्रिया के समय संदेश दिया था। जेल में रहते हुए‚ यातना से उनके सारे दांत टूट चुके थे‚ कान बहरे हो चुके थे‚ वह आंखों की रोशनी खो चुके थे। जब वह जेल से बाहर आए तब अपनी पत्नी के साथ अपने घर पर ही मसीही लोगों के समूहों को १९९१ तक‚ मृत्यु होने तक उपदेश देते रहे।

आइए, अपने स्थानों पर खड़े होकर हम अपने इस गीत को गाएंगें‚

क्या मैं जो चेला मेम्ने का और क्रूस का योद्धा हूं;
शरमाऊँ नाम के मानने से और सेवा न करूं?

जयफल परिश्रम संकट से औरों ने पाया है क्या बैठूं मैं‚
आराम के साथ‚ सुख भोगूं हर समय?

क्या दुष्टों का मैं सामना कर‚ शैतान से न लड़ू संसार
पर क्या मुक्त होने का भरोसा मैं प्रभु से करूं?

जो राज्य मैं करना चाहता हूं‚ वह निश्चय लड़ना है!
सहूंगा दुख परिश्रम को जब तक न हो विजय।
(‘‘एम आय ए सोल्जर ऑफ दि क्रॉस?‚’’ रचयिता डॉ. आयजक वाट’स‚१६७४‚१७४८)


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(संदेश का अंत)
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